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सूरा सूरह अल-अह्काफ़ - Page: 2

Al-Ahqaf

(The Wind-curved Sandhills, The Dunes)

११

وَقَالَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَوْ كَانَ خَيْرًا مَّا سَبَقُوْنَآ اِلَيْهِۗ وَاِذْ لَمْ يَهْتَدُوْا بِهٖ فَسَيَقُوْلُوْنَ هٰذَآ اِفْكٌ قَدِيْمٌ ١١

waqāla
وَقَالَ
और कहा
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन लोगों ने जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
lilladhīna
لِلَّذِينَ
उनसे जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
law
لَوْ
अगर
kāna
كَانَ
होता वो
khayran
خَيْرًا
बेहतर
مَّا
ना
sabaqūnā
سَبَقُونَآ
वो सबक़त ले जाते हम पर
ilayhi
إِلَيْهِۚ
तरफ़ उसके
wa-idh
وَإِذْ
और जब कि
lam
لَمْ
नहीं
yahtadū
يَهْتَدُوا۟
उन्होंने हिदायत पाई
bihi
بِهِۦ
साथ उसके
fasayaqūlūna
فَسَيَقُولُونَ
तो ज़रूर वो कहेंगे
hādhā
هَٰذَآ
ये
if'kun
إِفْكٌ
झूठ है
qadīmun
قَدِيمٌ
पुराना
जिन लोगों ने इनकार किया, वे ईमान लानेवालों के बारे में कहते है, 'यदि वह अच्छा होता तो वे उसकी ओर (बढ़ने में) हमसे अग्रसर न रहते।' औऱ जब उन्होंने उससे मार्ग ग्रहण नहीं किया तो अब अवश्य कहेंगे, 'यह तो पुराना झूठ है!' ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 11)
Tafseer (तफ़सीर )
१२

وَمِنْ قَبْلِهٖ كِتٰبُ مُوْسٰٓى اِمَامًا وَّرَحْمَةً ۗوَهٰذَا كِتٰبٌ مُّصَدِّقٌ لِّسَانًا عَرَبِيًّا لِّيُنْذِرَ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا ۖوَبُشْرٰى لِلْمُحْسِنِيْنَ ١٢

wamin
وَمِن
और उससे पहले थी
qablihi
قَبْلِهِۦ
और उससे पहले थी
kitābu
كِتَٰبُ
किताब
mūsā
مُوسَىٰٓ
मूसा की
imāman
إِمَامًا
इमाम/ राहनुमा
waraḥmatan
وَرَحْمَةًۚ
और रहमत
wahādhā
وَهَٰذَا
और ये
kitābun
كِتَٰبٌ
किताब है
muṣaddiqun
مُّصَدِّقٌ
तस्दीक़ करने वाली
lisānan
لِّسَانًا
अर्बी ज़बान में
ʿarabiyyan
عَرَبِيًّا
अर्बी ज़बान में
liyundhira
لِّيُنذِرَ
ताकि वो डराए
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन्हें जिन्होंने
ẓalamū
ظَلَمُوا۟
ज़ुल्म किया
wabush'rā
وَبُشْرَىٰ
और ख़ुश्ख़बरी है
lil'muḥ'sinīna
لِلْمُحْسِنِينَ
नेकोकारों के लिए
हालाँकि इससे पहले मूसा की किताब पथप्रदर्शक और दयालुता रही है। और यह किताब, जो अरबी भाषा में है, उसकी पुष्टि में है, ताकि उन लोगों को सचेत कर दे जिन्होंने ज़ु्ल्म किया और शुभ सूचना हो उत्तमकारों के लिए ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 12)
Tafseer (तफ़सीर )
१३

اِنَّ الَّذِيْنَ قَالُوْا رَبُّنَا اللّٰهُ ثُمَّ اسْتَقَامُوْا فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُوْنَۚ ١٣

inna
إِنَّ
बेशक
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
qālū
قَالُوا۟
कहा
rabbunā
رَبُّنَا
रब हमारा
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह है
thumma
ثُمَّ
फिर
is'taqāmū
ٱسْتَقَٰمُوا۟
उन्होंने इस्तिक़ामत इख़्तियार की
falā
فَلَا
तो ना
khawfun
خَوْفٌ
कोई ख़ौफ़ होगा
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
walā
وَلَا
और ना
hum
هُمْ
वो
yaḥzanūna
يَحْزَنُونَ
वो ग़मगीन होंगे
निश्चय ही जिन लोगों ने कहा, 'हमारा रब अल्लाह है।' फिर वे उसपर जमे रहे, तो उन्हें न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होगे ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 13)
Tafseer (तफ़सीर )
१४

اُولٰۤىِٕكَ اَصْحٰبُ الْجَنَّةِ خٰلِدِيْنَ فِيْهَاۚ جَزَاۤءً ۢبِمَا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ ١٤

ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
aṣḥābu
أَصْحَٰبُ
साथी
l-janati
ٱلْجَنَّةِ
जन्नत के
khālidīna
خَٰلِدِينَ
हमेशा रहने वाले हैं
fīhā
فِيهَا
उसमें
jazāan
جَزَآءًۢ
बदला है
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yaʿmalūna
يَعْمَلُونَ
वो अमल करते
वही जन्नतवाले है, वहाँ वे सदैव रहेंगे उसके बदले में जो वे करते रहे है ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 14)
Tafseer (तफ़सीर )
१५

وَوَصَّيْنَا الْاِنْسَانَ بِوَالِدَيْهِ اِحْسَانًا ۗحَمَلَتْهُ اُمُّهٗ كُرْهًا وَّوَضَعَتْهُ كُرْهًا ۗوَحَمْلُهٗ وَفِصٰلُهٗ ثَلٰثُوْنَ شَهْرًا ۗحَتّٰىٓ اِذَا بَلَغَ اَشُدَّهٗ وَبَلَغَ اَرْبَعِيْنَ سَنَةًۙ قَالَ رَبِّ اَوْزِعْنِيْٓ اَنْ اَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِيْٓ اَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلٰى وَالِدَيَّ وَاَنْ اَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضٰىهُ وَاَصْلِحْ لِيْ فِيْ ذُرِّيَّتِيْۗ اِنِّيْ تُبْتُ اِلَيْكَ وَاِنِّيْ مِنَ الْمُسْلِمِيْنَ ١٥

wawaṣṣaynā
وَوَصَّيْنَا
और ताकीद की हमने
l-insāna
ٱلْإِنسَٰنَ
इन्सान को
biwālidayhi
بِوَٰلِدَيْهِ
साथ अपने वालिदैन के
iḥ'sānan
إِحْسَٰنًاۖ
एहसान करने की
ḥamalathu
حَمَلَتْهُ
उठाया उसे
ummuhu
أُمُّهُۥ
उसकी माँ ने
kur'han
كُرْهًا
तक्लीफ़ से
wawaḍaʿathu
وَوَضَعَتْهُ
और उसने जन्म दिया उसे
kur'han
كُرْهًاۖ
तक्लीफ़ से
waḥamluhu
وَحَمْلُهُۥ
और हमल उसका
wafiṣāluhu
وَفِصَٰلُهُۥ
और दूध छुड़ाना उसका
thalāthūna
ثَلَٰثُونَ
तीस
shahran
شَهْرًاۚ
माह है
ḥattā
حَتَّىٰٓ
यहाँ तक कि
idhā
إِذَا
जब
balagha
بَلَغَ
वो पहुँच गया
ashuddahu
أَشُدَّهُۥ
अपनी जवानी को
wabalagha
وَبَلَغَ
और वो पहुँचा
arbaʿīna
أَرْبَعِينَ
चालीस
sanatan
سَنَةً
साल को
qāla
قَالَ
उसने कहा
rabbi
رَبِّ
ऐ मेरे रब
awziʿ'nī
أَوْزِعْنِىٓ
तौफ़ीक़ दे मुझे
an
أَنْ
कि
ashkura
أَشْكُرَ
मैं शुक्र अदा करूँ
niʿ'mataka
نِعْمَتَكَ
तेरी नेअमत का
allatī
ٱلَّتِىٓ
वो जो
anʿamta
أَنْعَمْتَ
इनआम की तू ने
ʿalayya
عَلَىَّ
मुझ पर
waʿalā
وَعَلَىٰ
और मेरे वालिदैन पर
wālidayya
وَٰلِدَىَّ
और मेरे वालिदैन पर
wa-an
وَأَنْ
और ये कि
aʿmala
أَعْمَلَ
मैं अमल करूँ
ṣāliḥan
صَٰلِحًا
नेक
tarḍāhu
تَرْضَىٰهُ
तू राज़ी हो जाए जिससे
wa-aṣliḥ
وَأَصْلِحْ
और इस्लाह कर दे
لِى
मेरे लिए
فِى
मेरी औलाद में
dhurriyyatī
ذُرِّيَّتِىٓۖ
मेरी औलाद में
innī
إِنِّى
बेशक मैं
tub'tu
تُبْتُ
तौबा की मैं ने
ilayka
إِلَيْكَ
तरफ़ तेरे
wa-innī
وَإِنِّى
और बेशक मैं
mina
مِنَ
मुसलमानों में से हूँ
l-mus'limīna
ٱلْمُسْلِمِينَ
मुसलमानों में से हूँ
हमने मनुष्य को अपने माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करने की ताकीद की। उसकी माँ ने उसे (पेट में) तकलीफ़ के साथ उठाए रखा और उसे जना भी तकलीफ़ के साथ। और उसके गर्भ की अवस्था में रहने और दूध छुड़ाने की अवधि तीस माह है, यहाँ तक कि जब वह अपनी पूरी शक्ति को पहुँचा और चालीस वर्ष का हुआ तो उसने कहा, 'ऐ मेरे रब! मुझे सम्भाल कि मैं तेरी उस अनुकम्पा के प्रति कृतज्ञता दिखाऊँ, जो तुने मुझपर और मेरे माँ-बाप पर की है। और यह कि मैं ऐसा अच्छा कर्म करूँ जो तुझे प्रिय हो और मेरे लिए मेरी संतति में भलाई रख दे। मैं तेरे आगे तौबा करता हूँ औऱ मैं मुस्लिम (आज्ञाकारी) हूँ।' ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 15)
Tafseer (तफ़सीर )
१६

اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ نَتَقَبَّلُ عَنْهُمْ اَحْسَنَ مَا عَمِلُوْا وَنَتَجَاوَزُ عَنْ سَيِّاٰتِهِمْ فِيْٓ اَصْحٰبِ الْجَنَّةِۗ وَعْدَ الصِّدْقِ الَّذِيْ كَانُوْا يُوْعَدُوْنَ ١٦

ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही वो लोग हैं
alladhīna
ٱلَّذِينَ
जो
nataqabbalu
نَتَقَبَّلُ
हम क़ुबूल कर लेते हैं
ʿanhum
عَنْهُمْ
उनसे
aḥsana
أَحْسَنَ
बेहतरीन
مَا
जो
ʿamilū
عَمِلُوا۟
उन्होंने अमल किए
wanatajāwazu
وَنَتَجَاوَزُ
और हम दरगुज़र करते है
ʿan
عَن
उनकी बुराइयों से
sayyiātihim
سَيِّـَٔاتِهِمْ
उनकी बुराइयों से
فِىٓ
जन्नत वालों में होंगे
aṣḥābi
أَصْحَٰبِ
जन्नत वालों में होंगे
l-janati
ٱلْجَنَّةِۖ
जन्नत वालों में होंगे
waʿda
وَعْدَ
वादा है
l-ṣid'qi
ٱلصِّدْقِ
सच्चा
alladhī
ٱلَّذِى
वो जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yūʿadūna
يُوعَدُونَ
वो वादा किए जाते
ऐसे ही लोग जिनसे हम अच्छे कर्म, जो उन्होंने किए होंगे, स्वीकार कर लेगें और उनकी बुराइयों को टाल जाएँगे। इस हाल में कि वे जन्नतवालों में होंगे, उस सच्चे वादे के अनुरूप जो उनसे किया जाता रहा है ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 16)
Tafseer (तफ़सीर )
१७

وَالَّذِيْ قَالَ لِوَالِدَيْهِ اُفٍّ لَّكُمَآ اَتَعِدَانِنِيْٓ اَنْ اُخْرَجَ وَقَدْ خَلَتِ الْقُرُوْنُ مِنْ قَبْلِيْۚ وَهُمَا يَسْتَغِيْثٰنِ اللّٰهَ وَيْلَكَ اٰمِنْ ۖاِنَّ وَعْدَ اللّٰهِ حَقٌّۚ فَيَقُوْلُ مَا هٰذَآ اِلَّآ اَسَاطِيْرُ الْاَوَّلِيْنَ ١٧

wa-alladhī
وَٱلَّذِى
और वो जिसने
qāla
قَالَ
कहा
liwālidayhi
لِوَٰلِدَيْهِ
अपने वालिदैन से
uffin
أُفٍّ
उफ़्फ़
lakumā
لَّكُمَآ
तुम दोनों के लिए
ataʿidāninī
أَتَعِدَانِنِىٓ
क्या तुम मुझे धमकी देते हो
an
أَنْ
कि
ukh'raja
أُخْرَجَ
मैं निकाला जाऊँगा
waqad
وَقَدْ
हालाँकि तहक़ीक़
khalati
خَلَتِ
गुज़र चुकीं
l-qurūnu
ٱلْقُرُونُ
उम्मतें
min
مِن
मुझसे पहले
qablī
قَبْلِى
मुझसे पहले
wahumā
وَهُمَا
और वो दोनों
yastaghīthāni
يَسْتَغِيثَانِ
वो दोनों फ़रियाद करते हैं
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
waylaka
وَيْلَكَ
(कहते हैं) तेरा बुरा हो
āmin
ءَامِنْ
ईमान ले आ
inna
إِنَّ
बेशक
waʿda
وَعْدَ
वादा
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह का
ḥaqqun
حَقٌّ
सच्चा है
fayaqūlu
فَيَقُولُ
तो वो कहता है
مَا
नहीं
hādhā
هَٰذَآ
ये
illā
إِلَّآ
मगर
asāṭīru
أَسَٰطِيرُ
कहानियाँ
l-awalīna
ٱلْأَوَّلِينَ
पहलों की
किन्तु वह व्यक्ति जिसने अपने माँ-बाप से कहा, 'धिक है तुम पर! क्या तुम मुझे डराते हो कि मैं (क़ब्र से) निकाला जाऊँगा, हालाँकि मुझसे पहले कितनी ही नस्लें गुज़र चुकी है?' और वे दोनों अल्लाह से फ़रियाद करते है - 'अफ़सोस है तुमपर! मान जा। निस्संदेह अल्लाह का वादा सच्चा है।' किन्तु वह कहता है, 'ये तो बस पहले के लोगों की कहानियाँ है।' ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 17)
Tafseer (तफ़सीर )
१८

اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ حَقَّ عَلَيْهِمُ الْقَوْلُ فِيْٓ اُمَمٍ قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلِهِمْ مِّنَ الْجِنِّ وَالْاِنْسِ ۗاِنَّهُمْ كَانُوْا خٰسِرِيْنَ ١٨

ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही वो लोग हैं
alladhīna
ٱلَّذِينَ
जो
ḥaqqa
حَقَّ
हक़ हो गई
ʿalayhimu
عَلَيْهِمُ
उन पर
l-qawlu
ٱلْقَوْلُ
बात
فِىٓ
उम्मतों में
umamin
أُمَمٍ
उम्मतों में
qad
قَدْ
तहक़ीक़
khalat
خَلَتْ
जो गुज़र चुकीं
min
مِن
उनस पहल
qablihim
قَبْلِهِم
उनस पहल
mina
مِّنَ
जिन्नों में से
l-jini
ٱلْجِنِّ
जिन्नों में से
wal-insi
وَٱلْإِنسِۖ
और इन्सानों में से
innahum
إِنَّهُمْ
बेशक वो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
khāsirīna
خَٰسِرِينَ
ख़सारा पाने वाले
ऐसे ही लोग है जिनपर उन गिरोहों के साथ यातना की बात सत्यापित होकर रही जो जिन्नों और मनुष्यों में से उनसे पहले गुज़र चुके है। निश्चय ही वे घाटे में रहे ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 18)
Tafseer (तफ़सीर )
१९

وَلِكُلٍّ دَرَجٰتٌ مِّمَّا عَمِلُوْاۚ وَلِيُوَفِّيَهُمْ اَعْمَالَهُمْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُوْنَ ١٩

walikullin
وَلِكُلٍّ
और हर एक के लिए
darajātun
دَرَجَٰتٌ
दर्जे हैं
mimmā
مِّمَّا
उसमें से जो
ʿamilū
عَمِلُوا۟ۖ
उन्होंने अमल किए
waliyuwaffiyahum
وَلِيُوَفِّيَهُمْ
और ताकि वो पुरा-पूरा बदला दे उन्हें
aʿmālahum
أَعْمَٰلَهُمْ
उनके आमाल का
wahum
وَهُمْ
और वो
لَا
वो ज़ुल्म ना किए जाऐंगे
yuẓ'lamūna
يُظْلَمُونَ
वो ज़ुल्म ना किए जाऐंगे
उनमें से प्रत्येक के दरजे उनके अपने किए हुए कर्मों के अनुसार होंगे (ताकि अल्लाह का वादा पूरा हो) और वह उन्हें उनके कर्मों का पूरा-पूरा बदला चुका दे और उनपर कदापि ज़ुल्म न होगा ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 19)
Tafseer (तफ़सीर )
२०

وَيَوْمَ يُعْرَضُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا عَلَى النَّارِۗ اَذْهَبْتُمْ طَيِّبٰتِكُمْ فِيْ حَيَاتِكُمُ الدُّنْيَا وَاسْتَمْتَعْتُمْ بِهَاۚ فَالْيَوْمَ تُجْزَوْنَ عَذَابَ الْهُوْنِ بِمَا كُنْتُمْ تَسْتَكْبِرُوْنَ فِى الْاَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَبِمَا كُنْتُمْ تَفْسُقُوْنَ ࣖ ٢٠

wayawma
وَيَوْمَ
और जिस दिन
yuʿ'raḍu
يُعْرَضُ
पेश किए जाऐंगे
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
ʿalā
عَلَى
आग पर
l-nāri
ٱلنَّارِ
आग पर
adhhabtum
أَذْهَبْتُمْ
(कहा जाएगा) ले चुके तुम
ṭayyibātikum
طَيِّبَٰتِكُمْ
अपनी नेअमतें
فِى
अपनी ज़िन्दगी में
ḥayātikumu
حَيَاتِكُمُ
अपनी ज़िन्दगी में
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَا
दुनिया की
wa-is'tamtaʿtum
وَٱسْتَمْتَعْتُم
और फ़ायदा उठालिया तुमने
bihā
بِهَا
उनका
fal-yawma
فَٱلْيَوْمَ
तो आज
tuj'zawna
تُجْزَوْنَ
तुम बदला दिए जाओगे
ʿadhāba
عَذَابَ
अज़ाब
l-hūni
ٱلْهُونِ
रुस्वाई की
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kuntum
كُنتُمْ
थे तुम
tastakbirūna
تَسْتَكْبِرُونَ
तुम तकब्बुर करते
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
bighayri
بِغَيْرِ
बग़ैर
l-ḥaqi
ٱلْحَقِّ
हक़ के
wabimā
وَبِمَا
और बवजह उसके जो
kuntum
كُنتُمْ
थे तुम
tafsuqūna
تَفْسُقُونَ
तुम नाफ़रमानी करते
और याद करो जिस दिन वे लोग जिन्होंने इनकार किया, आग के सामने पेश किए जाएँगे। (कहा जाएगा), 'तुम अपने सांसारिक जीवन में अच्छी रुचिकर चीज़े नष्ट कर बैठे और उनका मज़ा ले चुके। अतः आज तुम्हे अपमानजनक यातना दी जाएगी, क्योंकि तुम धरती में बिना किसी हक़ के घमंड करते रहे और इसलिए कि तुम आज्ञा का उल्लंघन करते रहे।' ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 20)
Tafseer (तफ़सीर )