وَقَالَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَوْ كَانَ خَيْرًا مَّا سَبَقُوْنَآ اِلَيْهِۗ وَاِذْ لَمْ يَهْتَدُوْا بِهٖ فَسَيَقُوْلُوْنَ هٰذَآ اِفْكٌ قَدِيْمٌ ١١
- waqāla
- وَقَالَ
- और कहा
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों ने जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- lilladhīna
- لِلَّذِينَ
- उनसे जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- law
- لَوْ
- अगर
- kāna
- كَانَ
- होता वो
- khayran
- خَيْرًا
- बेहतर
- mā
- مَّا
- ना
- sabaqūnā
- سَبَقُونَآ
- वो सबक़त ले जाते हम पर
- ilayhi
- إِلَيْهِۚ
- तरफ़ उसके
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब कि
- lam
- لَمْ
- नहीं
- yahtadū
- يَهْتَدُوا۟
- उन्होंने हिदायत पाई
- bihi
- بِهِۦ
- साथ उसके
- fasayaqūlūna
- فَسَيَقُولُونَ
- तो ज़रूर वो कहेंगे
- hādhā
- هَٰذَآ
- ये
- if'kun
- إِفْكٌ
- झूठ है
- qadīmun
- قَدِيمٌ
- पुराना
जिन लोगों ने इनकार किया, वे ईमान लानेवालों के बारे में कहते है, 'यदि वह अच्छा होता तो वे उसकी ओर (बढ़ने में) हमसे अग्रसर न रहते।' औऱ जब उन्होंने उससे मार्ग ग्रहण नहीं किया तो अब अवश्य कहेंगे, 'यह तो पुराना झूठ है!' ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 11)Tafseer (तफ़सीर )
وَمِنْ قَبْلِهٖ كِتٰبُ مُوْسٰٓى اِمَامًا وَّرَحْمَةً ۗوَهٰذَا كِتٰبٌ مُّصَدِّقٌ لِّسَانًا عَرَبِيًّا لِّيُنْذِرَ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا ۖوَبُشْرٰى لِلْمُحْسِنِيْنَ ١٢
- wamin
- وَمِن
- और उससे पहले थी
- qablihi
- قَبْلِهِۦ
- और उससे पहले थी
- kitābu
- كِتَٰبُ
- किताब
- mūsā
- مُوسَىٰٓ
- मूसा की
- imāman
- إِمَامًا
- इमाम/ राहनुमा
- waraḥmatan
- وَرَحْمَةًۚ
- और रहमत
- wahādhā
- وَهَٰذَا
- और ये
- kitābun
- كِتَٰبٌ
- किताब है
- muṣaddiqun
- مُّصَدِّقٌ
- तस्दीक़ करने वाली
- lisānan
- لِّسَانًا
- अर्बी ज़बान में
- ʿarabiyyan
- عَرَبِيًّا
- अर्बी ज़बान में
- liyundhira
- لِّيُنذِرَ
- ताकि वो डराए
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन्हें जिन्होंने
- ẓalamū
- ظَلَمُوا۟
- ज़ुल्म किया
- wabush'rā
- وَبُشْرَىٰ
- और ख़ुश्ख़बरी है
- lil'muḥ'sinīna
- لِلْمُحْسِنِينَ
- नेकोकारों के लिए
हालाँकि इससे पहले मूसा की किताब पथप्रदर्शक और दयालुता रही है। और यह किताब, जो अरबी भाषा में है, उसकी पुष्टि में है, ताकि उन लोगों को सचेत कर दे जिन्होंने ज़ु्ल्म किया और शुभ सूचना हो उत्तमकारों के लिए ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 12)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ قَالُوْا رَبُّنَا اللّٰهُ ثُمَّ اسْتَقَامُوْا فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُوْنَۚ ١٣
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- qālū
- قَالُوا۟
- कहा
- rabbunā
- رَبُّنَا
- रब हमारा
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह है
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- is'taqāmū
- ٱسْتَقَٰمُوا۟
- उन्होंने इस्तिक़ामत इख़्तियार की
- falā
- فَلَا
- तो ना
- khawfun
- خَوْفٌ
- कोई ख़ौफ़ होगा
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- walā
- وَلَا
- और ना
- hum
- هُمْ
- वो
- yaḥzanūna
- يَحْزَنُونَ
- वो ग़मगीन होंगे
निश्चय ही जिन लोगों ने कहा, 'हमारा रब अल्लाह है।' फिर वे उसपर जमे रहे, तो उन्हें न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होगे ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 13)Tafseer (तफ़सीर )
اُولٰۤىِٕكَ اَصْحٰبُ الْجَنَّةِ خٰلِدِيْنَ فِيْهَاۚ جَزَاۤءً ۢبِمَا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ ١٤
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- aṣḥābu
- أَصْحَٰبُ
- साथी
- l-janati
- ٱلْجَنَّةِ
- जन्नत के
- khālidīna
- خَٰلِدِينَ
- हमेशा रहने वाले हैं
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- jazāan
- جَزَآءًۢ
- बदला है
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yaʿmalūna
- يَعْمَلُونَ
- वो अमल करते
वही जन्नतवाले है, वहाँ वे सदैव रहेंगे उसके बदले में जो वे करते रहे है ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 14)Tafseer (तफ़सीर )
وَوَصَّيْنَا الْاِنْسَانَ بِوَالِدَيْهِ اِحْسَانًا ۗحَمَلَتْهُ اُمُّهٗ كُرْهًا وَّوَضَعَتْهُ كُرْهًا ۗوَحَمْلُهٗ وَفِصٰلُهٗ ثَلٰثُوْنَ شَهْرًا ۗحَتّٰىٓ اِذَا بَلَغَ اَشُدَّهٗ وَبَلَغَ اَرْبَعِيْنَ سَنَةًۙ قَالَ رَبِّ اَوْزِعْنِيْٓ اَنْ اَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِيْٓ اَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلٰى وَالِدَيَّ وَاَنْ اَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضٰىهُ وَاَصْلِحْ لِيْ فِيْ ذُرِّيَّتِيْۗ اِنِّيْ تُبْتُ اِلَيْكَ وَاِنِّيْ مِنَ الْمُسْلِمِيْنَ ١٥
- wawaṣṣaynā
- وَوَصَّيْنَا
- और ताकीद की हमने
- l-insāna
- ٱلْإِنسَٰنَ
- इन्सान को
- biwālidayhi
- بِوَٰلِدَيْهِ
- साथ अपने वालिदैन के
- iḥ'sānan
- إِحْسَٰنًاۖ
- एहसान करने की
- ḥamalathu
- حَمَلَتْهُ
- उठाया उसे
- ummuhu
- أُمُّهُۥ
- उसकी माँ ने
- kur'han
- كُرْهًا
- तक्लीफ़ से
- wawaḍaʿathu
- وَوَضَعَتْهُ
- और उसने जन्म दिया उसे
- kur'han
- كُرْهًاۖ
- तक्लीफ़ से
- waḥamluhu
- وَحَمْلُهُۥ
- और हमल उसका
- wafiṣāluhu
- وَفِصَٰلُهُۥ
- और दूध छुड़ाना उसका
- thalāthūna
- ثَلَٰثُونَ
- तीस
- shahran
- شَهْرًاۚ
- माह है
- ḥattā
- حَتَّىٰٓ
- यहाँ तक कि
- idhā
- إِذَا
- जब
- balagha
- بَلَغَ
- वो पहुँच गया
- ashuddahu
- أَشُدَّهُۥ
- अपनी जवानी को
- wabalagha
- وَبَلَغَ
- और वो पहुँचा
- arbaʿīna
- أَرْبَعِينَ
- चालीस
- sanatan
- سَنَةً
- साल को
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- awziʿ'nī
- أَوْزِعْنِىٓ
- तौफ़ीक़ दे मुझे
- an
- أَنْ
- कि
- ashkura
- أَشْكُرَ
- मैं शुक्र अदा करूँ
- niʿ'mataka
- نِعْمَتَكَ
- तेरी नेअमत का
- allatī
- ٱلَّتِىٓ
- वो जो
- anʿamta
- أَنْعَمْتَ
- इनआम की तू ने
- ʿalayya
- عَلَىَّ
- मुझ पर
- waʿalā
- وَعَلَىٰ
- और मेरे वालिदैन पर
- wālidayya
- وَٰلِدَىَّ
- और मेरे वालिदैन पर
- wa-an
- وَأَنْ
- और ये कि
- aʿmala
- أَعْمَلَ
- मैं अमल करूँ
- ṣāliḥan
- صَٰلِحًا
- नेक
- tarḍāhu
- تَرْضَىٰهُ
- तू राज़ी हो जाए जिससे
- wa-aṣliḥ
- وَأَصْلِحْ
- और इस्लाह कर दे
- lī
- لِى
- मेरे लिए
- fī
- فِى
- मेरी औलाद में
- dhurriyyatī
- ذُرِّيَّتِىٓۖ
- मेरी औलाद में
- innī
- إِنِّى
- बेशक मैं
- tub'tu
- تُبْتُ
- तौबा की मैं ने
- ilayka
- إِلَيْكَ
- तरफ़ तेरे
- wa-innī
- وَإِنِّى
- और बेशक मैं
- mina
- مِنَ
- मुसलमानों में से हूँ
- l-mus'limīna
- ٱلْمُسْلِمِينَ
- मुसलमानों में से हूँ
हमने मनुष्य को अपने माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करने की ताकीद की। उसकी माँ ने उसे (पेट में) तकलीफ़ के साथ उठाए रखा और उसे जना भी तकलीफ़ के साथ। और उसके गर्भ की अवस्था में रहने और दूध छुड़ाने की अवधि तीस माह है, यहाँ तक कि जब वह अपनी पूरी शक्ति को पहुँचा और चालीस वर्ष का हुआ तो उसने कहा, 'ऐ मेरे रब! मुझे सम्भाल कि मैं तेरी उस अनुकम्पा के प्रति कृतज्ञता दिखाऊँ, जो तुने मुझपर और मेरे माँ-बाप पर की है। और यह कि मैं ऐसा अच्छा कर्म करूँ जो तुझे प्रिय हो और मेरे लिए मेरी संतति में भलाई रख दे। मैं तेरे आगे तौबा करता हूँ औऱ मैं मुस्लिम (आज्ञाकारी) हूँ।' ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 15)Tafseer (तफ़सीर )
اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ نَتَقَبَّلُ عَنْهُمْ اَحْسَنَ مَا عَمِلُوْا وَنَتَجَاوَزُ عَنْ سَيِّاٰتِهِمْ فِيْٓ اَصْحٰبِ الْجَنَّةِۗ وَعْدَ الصِّدْقِ الَّذِيْ كَانُوْا يُوْعَدُوْنَ ١٦
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही वो लोग हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जो
- nataqabbalu
- نَتَقَبَّلُ
- हम क़ुबूल कर लेते हैं
- ʿanhum
- عَنْهُمْ
- उनसे
- aḥsana
- أَحْسَنَ
- बेहतरीन
- mā
- مَا
- जो
- ʿamilū
- عَمِلُوا۟
- उन्होंने अमल किए
- wanatajāwazu
- وَنَتَجَاوَزُ
- और हम दरगुज़र करते है
- ʿan
- عَن
- उनकी बुराइयों से
- sayyiātihim
- سَيِّـَٔاتِهِمْ
- उनकी बुराइयों से
- fī
- فِىٓ
- जन्नत वालों में होंगे
- aṣḥābi
- أَصْحَٰبِ
- जन्नत वालों में होंगे
- l-janati
- ٱلْجَنَّةِۖ
- जन्नत वालों में होंगे
- waʿda
- وَعْدَ
- वादा है
- l-ṣid'qi
- ٱلصِّدْقِ
- सच्चा
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yūʿadūna
- يُوعَدُونَ
- वो वादा किए जाते
ऐसे ही लोग जिनसे हम अच्छे कर्म, जो उन्होंने किए होंगे, स्वीकार कर लेगें और उनकी बुराइयों को टाल जाएँगे। इस हाल में कि वे जन्नतवालों में होंगे, उस सच्चे वादे के अनुरूप जो उनसे किया जाता रहा है ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 16)Tafseer (तफ़सीर )
وَالَّذِيْ قَالَ لِوَالِدَيْهِ اُفٍّ لَّكُمَآ اَتَعِدَانِنِيْٓ اَنْ اُخْرَجَ وَقَدْ خَلَتِ الْقُرُوْنُ مِنْ قَبْلِيْۚ وَهُمَا يَسْتَغِيْثٰنِ اللّٰهَ وَيْلَكَ اٰمِنْ ۖاِنَّ وَعْدَ اللّٰهِ حَقٌّۚ فَيَقُوْلُ مَا هٰذَآ اِلَّآ اَسَاطِيْرُ الْاَوَّلِيْنَ ١٧
- wa-alladhī
- وَٱلَّذِى
- और वो जिसने
- qāla
- قَالَ
- कहा
- liwālidayhi
- لِوَٰلِدَيْهِ
- अपने वालिदैन से
- uffin
- أُفٍّ
- उफ़्फ़
- lakumā
- لَّكُمَآ
- तुम दोनों के लिए
- ataʿidāninī
- أَتَعِدَانِنِىٓ
- क्या तुम मुझे धमकी देते हो
- an
- أَنْ
- कि
- ukh'raja
- أُخْرَجَ
- मैं निकाला जाऊँगा
- waqad
- وَقَدْ
- हालाँकि तहक़ीक़
- khalati
- خَلَتِ
- गुज़र चुकीं
- l-qurūnu
- ٱلْقُرُونُ
- उम्मतें
- min
- مِن
- मुझसे पहले
- qablī
- قَبْلِى
- मुझसे पहले
- wahumā
- وَهُمَا
- और वो दोनों
- yastaghīthāni
- يَسْتَغِيثَانِ
- वो दोनों फ़रियाद करते हैं
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- waylaka
- وَيْلَكَ
- (कहते हैं) तेरा बुरा हो
- āmin
- ءَامِنْ
- ईमान ले आ
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- waʿda
- وَعْدَ
- वादा
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- ḥaqqun
- حَقٌّ
- सच्चा है
- fayaqūlu
- فَيَقُولُ
- तो वो कहता है
- mā
- مَا
- नहीं
- hādhā
- هَٰذَآ
- ये
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- asāṭīru
- أَسَٰطِيرُ
- कहानियाँ
- l-awalīna
- ٱلْأَوَّلِينَ
- पहलों की
किन्तु वह व्यक्ति जिसने अपने माँ-बाप से कहा, 'धिक है तुम पर! क्या तुम मुझे डराते हो कि मैं (क़ब्र से) निकाला जाऊँगा, हालाँकि मुझसे पहले कितनी ही नस्लें गुज़र चुकी है?' और वे दोनों अल्लाह से फ़रियाद करते है - 'अफ़सोस है तुमपर! मान जा। निस्संदेह अल्लाह का वादा सच्चा है।' किन्तु वह कहता है, 'ये तो बस पहले के लोगों की कहानियाँ है।' ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 17)Tafseer (तफ़सीर )
اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ حَقَّ عَلَيْهِمُ الْقَوْلُ فِيْٓ اُمَمٍ قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلِهِمْ مِّنَ الْجِنِّ وَالْاِنْسِ ۗاِنَّهُمْ كَانُوْا خٰسِرِيْنَ ١٨
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही वो लोग हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जो
- ḥaqqa
- حَقَّ
- हक़ हो गई
- ʿalayhimu
- عَلَيْهِمُ
- उन पर
- l-qawlu
- ٱلْقَوْلُ
- बात
- fī
- فِىٓ
- उम्मतों में
- umamin
- أُمَمٍ
- उम्मतों में
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- khalat
- خَلَتْ
- जो गुज़र चुकीं
- min
- مِن
- उनस पहल
- qablihim
- قَبْلِهِم
- उनस पहल
- mina
- مِّنَ
- जिन्नों में से
- l-jini
- ٱلْجِنِّ
- जिन्नों में से
- wal-insi
- وَٱلْإِنسِۖ
- और इन्सानों में से
- innahum
- إِنَّهُمْ
- बेशक वो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- khāsirīna
- خَٰسِرِينَ
- ख़सारा पाने वाले
ऐसे ही लोग है जिनपर उन गिरोहों के साथ यातना की बात सत्यापित होकर रही जो जिन्नों और मनुष्यों में से उनसे पहले गुज़र चुके है। निश्चय ही वे घाटे में रहे ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 18)Tafseer (तफ़सीर )
وَلِكُلٍّ دَرَجٰتٌ مِّمَّا عَمِلُوْاۚ وَلِيُوَفِّيَهُمْ اَعْمَالَهُمْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُوْنَ ١٩
- walikullin
- وَلِكُلٍّ
- और हर एक के लिए
- darajātun
- دَرَجَٰتٌ
- दर्जे हैं
- mimmā
- مِّمَّا
- उसमें से जो
- ʿamilū
- عَمِلُوا۟ۖ
- उन्होंने अमल किए
- waliyuwaffiyahum
- وَلِيُوَفِّيَهُمْ
- और ताकि वो पुरा-पूरा बदला दे उन्हें
- aʿmālahum
- أَعْمَٰلَهُمْ
- उनके आमाल का
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- lā
- لَا
- वो ज़ुल्म ना किए जाऐंगे
- yuẓ'lamūna
- يُظْلَمُونَ
- वो ज़ुल्म ना किए जाऐंगे
उनमें से प्रत्येक के दरजे उनके अपने किए हुए कर्मों के अनुसार होंगे (ताकि अल्लाह का वादा पूरा हो) और वह उन्हें उनके कर्मों का पूरा-पूरा बदला चुका दे और उनपर कदापि ज़ुल्म न होगा ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 19)Tafseer (तफ़सीर )
وَيَوْمَ يُعْرَضُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا عَلَى النَّارِۗ اَذْهَبْتُمْ طَيِّبٰتِكُمْ فِيْ حَيَاتِكُمُ الدُّنْيَا وَاسْتَمْتَعْتُمْ بِهَاۚ فَالْيَوْمَ تُجْزَوْنَ عَذَابَ الْهُوْنِ بِمَا كُنْتُمْ تَسْتَكْبِرُوْنَ فِى الْاَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَبِمَا كُنْتُمْ تَفْسُقُوْنَ ࣖ ٢٠
- wayawma
- وَيَوْمَ
- और जिस दिन
- yuʿ'raḍu
- يُعْرَضُ
- पेश किए जाऐंगे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- ʿalā
- عَلَى
- आग पर
- l-nāri
- ٱلنَّارِ
- आग पर
- adhhabtum
- أَذْهَبْتُمْ
- (कहा जाएगा) ले चुके तुम
- ṭayyibātikum
- طَيِّبَٰتِكُمْ
- अपनी नेअमतें
- fī
- فِى
- अपनी ज़िन्दगी में
- ḥayātikumu
- حَيَاتِكُمُ
- अपनी ज़िन्दगी में
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया की
- wa-is'tamtaʿtum
- وَٱسْتَمْتَعْتُم
- और फ़ायदा उठालिया तुमने
- bihā
- بِهَا
- उनका
- fal-yawma
- فَٱلْيَوْمَ
- तो आज
- tuj'zawna
- تُجْزَوْنَ
- तुम बदला दिए जाओगे
- ʿadhāba
- عَذَابَ
- अज़ाब
- l-hūni
- ٱلْهُونِ
- रुस्वाई की
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- kuntum
- كُنتُمْ
- थे तुम
- tastakbirūna
- تَسْتَكْبِرُونَ
- तुम तकब्बुर करते
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- bighayri
- بِغَيْرِ
- बग़ैर
- l-ḥaqi
- ٱلْحَقِّ
- हक़ के
- wabimā
- وَبِمَا
- और बवजह उसके जो
- kuntum
- كُنتُمْ
- थे तुम
- tafsuqūna
- تَفْسُقُونَ
- तुम नाफ़रमानी करते
और याद करो जिस दिन वे लोग जिन्होंने इनकार किया, आग के सामने पेश किए जाएँगे। (कहा जाएगा), 'तुम अपने सांसारिक जीवन में अच्छी रुचिकर चीज़े नष्ट कर बैठे और उनका मज़ा ले चुके। अतः आज तुम्हे अपमानजनक यातना दी जाएगी, क्योंकि तुम धरती में बिना किसी हक़ के घमंड करते रहे और इसलिए कि तुम आज्ञा का उल्लंघन करते रहे।' ([४६] सूरह अल-अह्काफ़: 20)Tafseer (तफ़सीर )