هٰذَا هُدًىۚ وَالَّذِيْنَ كَفَرُوْا بِاٰيٰتِ رَبِّهِمْ لَهُمْ عَذَابٌ مِّنْ رِّجْزٍ اَلِيْمٌ ࣖ ١١
- hādhā
- هَٰذَا
- ये है
- hudan
- هُدًىۖ
- हिदायत
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- इन्कार किया
- biāyāti
- بِـَٔايَٰتِ
- आयात का
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- अपने रब की
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब है
- min
- مِّن
- बदतरीन क़िस्म का
- rij'zin
- رِّجْزٍ
- बदतरीन क़िस्म का
- alīmun
- أَلِيمٌ
- दर्दनाक
यह सर्वथा मार्गदर्शन है। और जिन लोगों ने अपने रब की आयतों को इनकार किया, उनके लिए हिला देनेवाली दुखद यातना है ([४५] अल-जाथीया: 11)Tafseer (तफ़सीर )
۞ اَللّٰهُ الَّذِيْ سَخَّرَ لَكُمُ الْبَحْرَ لِتَجْرِيَ الْفُلْكُ فِيْهِ بِاَمْرِهٖ وَلِتَبْتَغُوْا مِنْ فَضْلِهٖ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَۚ ١٢
- al-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो है जिसने
- sakhara
- سَخَّرَ
- मुसख़्खर किया
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम्हारे लिए
- l-baḥra
- ٱلْبَحْرَ
- समुन्दर को
- litajriya
- لِتَجْرِىَ
- ताकि चलें
- l-ful'ku
- ٱلْفُلْكُ
- कश्तियाँ
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- bi-amrihi
- بِأَمْرِهِۦ
- उसके हुक्म से
- walitabtaghū
- وَلِتَبْتَغُوا۟
- और ताकि तुम तलाश करो
- min
- مِن
- उसके फ़ज़ल से
- faḍlihi
- فَضْلِهِۦ
- उसके फ़ज़ल से
- walaʿallakum
- وَلَعَلَّكُمْ
- और ताकि तुम
- tashkurūna
- تَشْكُرُونَ
- तुम शुक्र अदा करो
वह अल्लाह ही है जिसने समुद्र को तुम्हारे लिए वशीभूत कर दिया है, ताकि उसके आदेश से नौकाएँ उसमें चलें; और ताकि तुम उसका उदार अनुग्रह तलाश करो; और इसलिए कि तुम कृतज्ञता दिखाओ ([४५] अल-जाथीया: 12)Tafseer (तफ़सीर )
وَسَخَّرَ لَكُمْ مَّا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الْاَرْضِ جَمِيْعًا مِّنْهُ ۗاِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يَّتَفَكَّرُوْنَ ١٣
- wasakhara
- وَسَخَّرَ
- और उसने मुसख़्खर किया
- lakum
- لَكُم
- तुम्हारे लिए
- mā
- مَّا
- जो कुछ
- fī
- فِى
- आसमानों में है
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों में है
- wamā
- وَمَا
- और जो कुछ
- fī
- فِى
- ज़मीन में है
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में है
- jamīʿan
- جَمِيعًا
- सब का सब
- min'hu
- مِّنْهُۚ
- अपनी तरफ़ से
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- fī
- فِى
- इसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसमें
- laāyātin
- لَءَايَٰتٍ
- अलबत्ता निशानियाँ हैं
- liqawmin
- لِّقَوْمٍ
- उन लोगों के लिए
- yatafakkarūna
- يَتَفَكَّرُونَ
- जो ग़ौर व फ़िक्र करते हैं
जो चीज़ें आकाशों में है और जो धरती में हैं, उसने उन सबको अपनी ओर से तुम्हारे काम में लगा रखा है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है जो सोच-विचार से काम लेते है ([४५] अल-जाथीया: 13)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ لِّلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا يَغْفِرُوْا لِلَّذِيْنَ لَا يَرْجُوْنَ اَيَّامَ اللّٰهِ لِيَجْزِيَ قَوْمًا ۢبِمَا كَانُوْا يَكْسِبُوْنَ ١٤
- qul
- قُل
- कह दीजिए
- lilladhīna
- لِّلَّذِينَ
- उन लोगों को जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- yaghfirū
- يَغْفِرُوا۟
- कि वो माफ़ कर दें
- lilladhīna
- لِلَّذِينَ
- उनको जो
- lā
- لَا
- नहीं वो उम्मीद रखते
- yarjūna
- يَرْجُونَ
- नहीं वो उम्मीद रखते
- ayyāma
- أَيَّامَ
- अल्लाह के दिनों कि
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के दिनों कि
- liyajziya
- لِيَجْزِىَ
- ताकि वो बदला दे
- qawman
- قَوْمًۢا
- एक क़ौम को
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yaksibūna
- يَكْسِبُونَ
- वो कमाई करते
जो लोग ईमान लाए उनसे कह दो कि, 'वे उन लोगों को क्षमा करें (उनकी करतूतों पर ध्यान न दे) अल्लाह के दिनों की आशा नहीं रखते, ताकि वह इसके परिणामस्वरूप उन लोगों को उनकी अपनी कमाई का बदला दे ([४५] अल-जाथीया: 14)Tafseer (तफ़सीर )
مَنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِنَفْسِهٖۚ وَمَنْ اَسَاۤءَ فَعَلَيْهَا ۖ ثُمَّ اِلٰى رَبِّكُمْ تُرْجَعُوْنَ ١٥
- man
- مَنْ
- जिसने
- ʿamila
- عَمِلَ
- अमल किया
- ṣāliḥan
- صَٰلِحًا
- नेक
- falinafsihi
- فَلِنَفْسِهِۦۖ
- तो उसी के लिए है
- waman
- وَمَنْ
- और जो
- asāa
- أَسَآءَ
- बुराई करता है
- faʿalayhā
- فَعَلَيْهَاۖ
- तो उसी पर है
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- ilā
- إِلَىٰ
- अपने रब ही की तरफ़
- rabbikum
- رَبِّكُمْ
- अपने रब ही की तरफ़
- tur'jaʿūna
- تُرْجَعُونَ
- तुम लौटाए जाओगे
जो कुछ अच्छा कर्म करता है तो अपने ही लिए करेगा और जो कोई बुरा कर्म करता है तो उसका वबाल उसी पर होगा। फिर तुम अपने रब की ओर लौटाये जाओगे ([४५] अल-जाथीया: 15)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ اٰتَيْنَا بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ الْكِتٰبَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ وَرَزَقْنٰهُمْ مِّنَ الطَّيِّبٰتِ وَفَضَّلْنٰهُمْ عَلَى الْعٰلَمِيْنَ ۚ ١٦
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- ātaynā
- ءَاتَيْنَا
- दी हमने
- banī
- بَنِىٓ
- बनी इस्राईल को
- is'rāīla
- إِسْرَٰٓءِيلَ
- बनी इस्राईल को
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- wal-ḥuk'ma
- وَٱلْحُكْمَ
- और हुकूमत
- wal-nubuwata
- وَٱلنُّبُوَّةَ
- और नुबूव्वत
- warazaqnāhum
- وَرَزَقْنَٰهُم
- और रिज़्क़ दिया हमने उन्हें
- mina
- مِّنَ
- पाकीज़ा चीज़ों से
- l-ṭayibāti
- ٱلطَّيِّبَٰتِ
- पाकीज़ा चीज़ों से
- wafaḍḍalnāhum
- وَفَضَّلْنَٰهُمْ
- और फ़ज़ीलत हमने उन्हें
- ʿalā
- عَلَى
- तमाम जहानों पर
- l-ʿālamīna
- ٱلْعَٰلَمِينَ
- तमाम जहानों पर
निश्चय ही हमने इसराईल की सन्तान को किताब और हुक्म और पैग़म्बरी प्रदान की थी। और हमने उन्हें पवित्र चीज़ो की रोज़ी दी और उन्हें सारे संसारवालों पर श्रेष्ठता प्रदान की ([४५] अल-जाथीया: 16)Tafseer (तफ़सीर )
وَاٰتَيْنٰهُمْ بَيِّنٰتٍ مِّنَ الْاَمْرِۚ فَمَا اخْتَلَفُوْٓا اِلَّا مِنْۢ بَعْدِ مَا جَاۤءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًاۢ بَيْنَهُمْ ۗاِنَّ رَبَّكَ يَقْضِيْ بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ فِيْمَا كَانُوْا فِيْهِ يَخْتَلِفُوْنَ ١٧
- waātaynāhum
- وَءَاتَيْنَٰهُم
- और दीं हमने उन्हें
- bayyinātin
- بَيِّنَٰتٍ
- वाज़ेह निशानियाँ
- mina
- مِّنَ
- (मामले में) दीन के
- l-amri
- ٱلْأَمْرِۖ
- (मामले में) दीन के
- famā
- فَمَا
- तो नहीं
- ikh'talafū
- ٱخْتَلَفُوٓا۟
- उन्होंने इख़्तिलाफ़ किया
- illā
- إِلَّا
- मगर
- min
- مِنۢ
- बाद उसके
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद उसके
- mā
- مَا
- जो
- jāahumu
- جَآءَهُمُ
- आया उनके पास
- l-ʿil'mu
- ٱلْعِلْمُ
- इल्म
- baghyan
- بَغْيًۢا
- ज़िद की वजह से
- baynahum
- بَيْنَهُمْۚ
- आपस में
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- rabbaka
- رَبَّكَ
- रब आपका
- yaqḍī
- يَقْضِى
- वो फ़ैसला करेगा
- baynahum
- بَيْنَهُمْ
- दर्मियान उनके
- yawma
- يَوْمَ
- दिन
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِ
- क़यामत के
- fīmā
- فِيمَا
- उसमें जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- fīhi
- فِيهِ
- जिसमें
- yakhtalifūna
- يَخْتَلِفُونَ
- वो इख़्तिलाफ़ करते
और हमने उन्हें इस मामले के विषय में स्पष्ट निशानियाँ प्रदान कीं। फिर जो भी विभेद उन्होंने किया, वह इसके पश्चात ही किया कि उनके पास ज्ञान आ चुका था और इस कारण कि वे परस्पर एक-दूसरे पर ज़्यादती करना चाहते थे। निश्चय ही तुम्हारा रब क़ियामत के दिन उनके बीच उन चीज़ों के बारे में फ़ैसला कर देगा, जिनमें वे परस्पर विभेद करते रहे है ([४५] अल-जाथीया: 17)Tafseer (तफ़सीर )
ثُمَّ جَعَلْنٰكَ عَلٰى شَرِيْعَةٍ مِّنَ الْاَمْرِ فَاتَّبِعْهَا وَلَا تَتَّبِعْ اَهْوَاۤءَ الَّذِيْنَ لَا يَعْلَمُوْنَ ١٨
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- jaʿalnāka
- جَعَلْنَٰكَ
- कर दिया हमने आपको
- ʿalā
- عَلَىٰ
- वाज़ेह रास्ते पर
- sharīʿatin
- شَرِيعَةٍ
- वाज़ेह रास्ते पर
- mina
- مِّنَ
- (मामले में) दीन के
- l-amri
- ٱلْأَمْرِ
- (मामले में) दीन के
- fa-ittabiʿ'hā
- فَٱتَّبِعْهَا
- पस पैरवी कीजिए उसकी
- walā
- وَلَا
- और ना
- tattabiʿ
- تَتَّبِعْ
- आप पैरवी कीजिए
- ahwāa
- أَهْوَآءَ
- ख़्वाहिशात की
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों की जो
- lā
- لَا
- नहीं वो इल्म रखते
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- नहीं वो इल्म रखते
फिर हमने तुम्हें इस मामलें में एक खुले मार्ग (शरीअत) पर कर दिया। अतः तुम उसी पर चलो और उन लोगों की इच्छाओं का अनुपालन न करना जो जानते नहीं ([४५] अल-जाथीया: 18)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّهُمْ لَنْ يُّغْنُوْا عَنْكَ مِنَ اللّٰهِ شَيْـًٔا ۗوَاِنَّ الظّٰلِمِيْنَ بَعْضُهُمْ اَوْلِيَاۤءُ بَعْضٍۚ وَاللّٰهُ وَلِيُّ الْمُتَّقِيْنَ ١٩
- innahum
- إِنَّهُمْ
- बेशक वो
- lan
- لَن
- हरगिज़ नहीं
- yugh'nū
- يُغْنُوا۟
- वो काम आऐंगे
- ʿanka
- عَنكَ
- आपके
- mina
- مِنَ
- अल्लाह से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह से
- shayan
- شَيْـًٔاۚ
- कुछ भी
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- ज़ालिम लेग
- baʿḍuhum
- بَعْضُهُمْ
- बाज़ उनके
- awliyāu
- أَوْلِيَآءُ
- दोस्त हैं
- baʿḍin
- بَعْضٍۖ
- बाज़ के
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- waliyyu
- وَلِىُّ
- दोस्त है
- l-mutaqīna
- ٱلْمُتَّقِينَ
- मुत्तक़ी लोगों का
वे अल्लाह के मुक़ाबले में तुम्हारे कदापि कुछ काम नहीं आ सकते। निश्चय ही ज़ालिम लोग एक-दूसरे के साथी है और डर रखनेवालों का साथी अल्लाह है ([४५] अल-जाथीया: 19)Tafseer (तफ़सीर )
هٰذَا بَصَاۤىِٕرُ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَّرَحْمَةٌ لِّقَوْمٍ يُّوْقِنُوْنَ ٢٠
- hādhā
- هَٰذَا
- ये
- baṣāiru
- بَصَٰٓئِرُ
- बसीरत की बातें हैं
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- wahudan
- وَهُدًى
- और हिदायत
- waraḥmatun
- وَرَحْمَةٌ
- और रहमत है
- liqawmin
- لِّقَوْمٍ
- उन लोगों के लिए
- yūqinūna
- يُوقِنُونَ
- जो यक़ीन रखते हैं
वह लोगों के लिए सूझ के प्रकाशों का पुंज है, और मार्गदर्शन और दयालुता है उन लोगों के लिए जो विश्वास करें ([४५] अल-जाथीया: 20)Tafseer (तफ़सीर )