३१
مِنْ فِرْعَوْنَ ۗاِنَّهٗ كَانَ عَالِيًا مِّنَ الْمُسْرِفِيْنَ ٣١
- min
- مِن
- फ़िरऔन से
- fir'ʿawna
- فِرْعَوْنَۚ
- फ़िरऔन से
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- kāna
- كَانَ
- था वो
- ʿāliyan
- عَالِيًا
- सरकश
- mina
- مِّنَ
- हद से बढ़ने वालों में से
- l-mus'rifīna
- ٱلْمُسْرِفِينَ
- हद से बढ़ने वालों में से
अर्थात फ़िरऔन से छुटकारा दिया। निश्चय ही वह मर्यादाहीन लोगों में से बड़ा ही सरकश था ([४४] अद-दुखान: 31)Tafseer (तफ़सीर )
३२
وَلَقَدِ اخْتَرْنٰهُمْ عَلٰى عِلْمٍ عَلَى الْعٰلَمِيْنَ ۚ ٣٢
- walaqadi
- وَلَقَدِ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- ikh'tarnāhum
- ٱخْتَرْنَٰهُمْ
- मुन्तख़ब कर लिया हमने उन्हें
- ʿalā
- عَلَىٰ
- इल्म की बिना पर
- ʿil'min
- عِلْمٍ
- इल्म की बिना पर
- ʿalā
- عَلَى
- तमाम जहानों पर
- l-ʿālamīna
- ٱلْعَٰلَمِينَ
- तमाम जहानों पर
और हमने (उनकी स्थिति को) जानते हुए उन्हें सारे संसारवालों के मुक़ाबले मं चुन लिया ([४४] अद-दुखान: 32)Tafseer (तफ़सीर )
३३
وَاٰتَيْنٰهُمْ مِّنَ الْاٰيٰتِ مَا فِيْهِ بَلٰۤـؤٌا مُّبِيْنٌ ٣٣
- waātaynāhum
- وَءَاتَيْنَٰهُم
- और दीं हमने उन्हें
- mina
- مِّنَ
- निशानियाँ
- l-āyāti
- ٱلْءَايَٰتِ
- निशानियाँ
- mā
- مَا
- जो
- fīhi
- فِيهِ
- उनमें
- balāon
- بَلَٰٓؤٌا۟
- आज़माइश थी
- mubīnun
- مُّبِينٌ
- वाज़ेह
और हमने उन्हें निशानियों के द्वारा वह चीज़ दी जिसमें स्पष्ट परीक्षा थी ([४४] अद-दुखान: 33)Tafseer (तफ़सीर )
३४
اِنَّ هٰٓؤُلَاۤءِ لَيَقُوْلُوْنَۙ ٣٤
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- hāulāi
- هَٰٓؤُلَآءِ
- ये लोग
- layaqūlūna
- لَيَقُولُونَ
- अलबत्ता वो कहते हैं
ये लोग बड़ी दृढ़तापूर्वक कहते है, ([४४] अद-दुखान: 34)Tafseer (तफ़सीर )
३५
اِنْ هِيَ اِلَّا مَوْتَتُنَا الْاُوْلٰى وَمَا نَحْنُ بِمُنْشَرِيْنَ ٣٥
- in
- إِنْ
- नहीं
- hiya
- هِىَ
- ये
- illā
- إِلَّا
- मगर
- mawtatunā
- مَوْتَتُنَا
- मौत हमारी
- l-ūlā
- ٱلْأُولَىٰ
- पहली
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- naḥnu
- نَحْنُ
- हम
- bimunsharīna
- بِمُنشَرِينَ
- उठाए जाने वाले
'बस यह हमारी पहली मृत्यु ही है, हम दोबारा उठाए जानेवाले नहीं हैं ([४४] अद-दुखान: 35)Tafseer (तफ़सीर )
३६
فَأْتُوْا بِاٰبَاۤىِٕنَآ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ٣٦
- fatū
- فَأْتُوا۟
- पस ले आओ
- biābāinā
- بِـَٔابَآئِنَآ
- हमारे आबा ओ अजदाद को
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- ṣādiqīna
- صَٰدِقِينَ
- सच्चे
तो ले आओ हमारे बाप-दादा को, यदि तुम सच्चे हो!' ([४४] अद-दुखान: 36)Tafseer (तफ़सीर )
३७
اَهُمْ خَيْرٌ اَمْ قَوْمُ تُبَّعٍۙ وَّالَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْۗ اَهْلَكْنٰهُمْ اِنَّهُمْ كَانُوْا مُجْرِمِيْنَ ٣٧
- ahum
- أَهُمْ
- क्या वो
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर हैं
- am
- أَمْ
- या
- qawmu
- قَوْمُ
- क़ौम
- tubbaʿin
- تُبَّعٍ
- तुब्बअ की
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- min
- مِن
- उनसे पहले थे
- qablihim
- قَبْلِهِمْۚ
- उनसे पहले थे
- ahlaknāhum
- أَهْلَكْنَٰهُمْۖ
- हलाक कर दिया हमने उन्हें
- innahum
- إِنَّهُمْ
- बेशक वो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- muj'rimīna
- مُجْرِمِينَ
- मुजरिम
क्या वे अच्छे है या तुब्बा की क़ौम या वे लोग जो उनसे पहले गुज़र चुके है? हमने उन्हें विनष्ट कर दिया, निश्चय ही वे अपराधी थे ([४४] अद-दुखान: 37)Tafseer (तफ़सीर )
३८
وَمَا خَلَقْنَا السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا لٰعِبِيْنَ ٣٨
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- khalaqnā
- خَلَقْنَا
- पैदा किया हमने
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों
- wal-arḍa
- وَٱلْأَرْضَ
- और ज़मीन को
- wamā
- وَمَا
- और जो
- baynahumā
- بَيْنَهُمَا
- दर्मियान है उन दोनों के
- lāʿibīna
- لَٰعِبِينَ
- खेलते हुए
हमने आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके बीच है उन्हें खेल नहीं बनाया ([४४] अद-दुखान: 38)Tafseer (तफ़सीर )
३९
مَا خَلَقْنٰهُمَآ اِلَّا بِالْحَقِّ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَ ٣٩
- mā
- مَا
- नहीं
- khalaqnāhumā
- خَلَقْنَٰهُمَآ
- पैदा किया हमने उन दोनों को
- illā
- إِلَّا
- मगर
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّ
- साथ हक़ के
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- aktharahum
- أَكْثَرَهُمْ
- अक्सर उनके
- lā
- لَا
- नहीं वो इल्म रखते
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- नहीं वो इल्म रखते
हमने उन्हें हक़ के साथ पैदा किया, किन्तु उनमें से अधिककर लोग जानते नहीं ([४४] अद-दुखान: 39)Tafseer (तफ़सीर )
४०
اِنَّ يَوْمَ الْفَصْلِ مِيْقَاتُهُمْ اَجْمَعِيْنَ ۙ ٤٠
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- yawma
- يَوْمَ
- दिन
- l-faṣli
- ٱلْفَصْلِ
- फ़ैसले का
- mīqātuhum
- مِيقَٰتُهُمْ
- वक़्त मुक़र्रर है उनका
- ajmaʿīna
- أَجْمَعِينَ
- सब के सब का
निश्चय ही फ़ैसले का दिन उन सबका नियत समय है, ([४४] अद-दुखान: 40)Tafseer (तफ़सीर )