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सूरा अद-दुखान - Page: 4

Ad-Dukhan

(धुँआ)

३१

مِنْ فِرْعَوْنَ ۗاِنَّهٗ كَانَ عَالِيًا مِّنَ الْمُسْرِفِيْنَ ٣١

min
مِن
फ़िरऔन से
fir'ʿawna
فِرْعَوْنَۚ
फ़िरऔन से
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
kāna
كَانَ
था वो
ʿāliyan
عَالِيًا
सरकश
mina
مِّنَ
हद से बढ़ने वालों में से
l-mus'rifīna
ٱلْمُسْرِفِينَ
हद से बढ़ने वालों में से
अर्थात फ़िरऔन से छुटकारा दिया। निश्चय ही वह मर्यादाहीन लोगों में से बड़ा ही सरकश था ([४४] अद-दुखान: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

وَلَقَدِ اخْتَرْنٰهُمْ عَلٰى عِلْمٍ عَلَى الْعٰلَمِيْنَ ۚ ٣٢

walaqadi
وَلَقَدِ
और अलबत्ता तहक़ीक़
ikh'tarnāhum
ٱخْتَرْنَٰهُمْ
मुन्तख़ब कर लिया हमने उन्हें
ʿalā
عَلَىٰ
इल्म की बिना पर
ʿil'min
عِلْمٍ
इल्म की बिना पर
ʿalā
عَلَى
तमाम जहानों पर
l-ʿālamīna
ٱلْعَٰلَمِينَ
तमाम जहानों पर
और हमने (उनकी स्थिति को) जानते हुए उन्हें सारे संसारवालों के मुक़ाबले मं चुन लिया ([४४] अद-दुखान: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

وَاٰتَيْنٰهُمْ مِّنَ الْاٰيٰتِ مَا فِيْهِ بَلٰۤـؤٌا مُّبِيْنٌ ٣٣

waātaynāhum
وَءَاتَيْنَٰهُم
और दीं हमने उन्हें
mina
مِّنَ
निशानियाँ
l-āyāti
ٱلْءَايَٰتِ
निशानियाँ
مَا
जो
fīhi
فِيهِ
उनमें
balāon
بَلَٰٓؤٌا۟
आज़माइश थी
mubīnun
مُّبِينٌ
वाज़ेह
और हमने उन्हें निशानियों के द्वारा वह चीज़ दी जिसमें स्पष्ट परीक्षा थी ([४४] अद-दुखान: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

اِنَّ هٰٓؤُلَاۤءِ لَيَقُوْلُوْنَۙ ٣٤

inna
إِنَّ
बेशक
hāulāi
هَٰٓؤُلَآءِ
ये लोग
layaqūlūna
لَيَقُولُونَ
अलबत्ता वो कहते हैं
ये लोग बड़ी दृढ़तापूर्वक कहते है, ([४४] अद-दुखान: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

اِنْ هِيَ اِلَّا مَوْتَتُنَا الْاُوْلٰى وَمَا نَحْنُ بِمُنْشَرِيْنَ ٣٥

in
إِنْ
नहीं
hiya
هِىَ
ये
illā
إِلَّا
मगर
mawtatunā
مَوْتَتُنَا
मौत हमारी
l-ūlā
ٱلْأُولَىٰ
पहली
wamā
وَمَا
और नहीं
naḥnu
نَحْنُ
हम
bimunsharīna
بِمُنشَرِينَ
उठाए जाने वाले
'बस यह हमारी पहली मृत्यु ही है, हम दोबारा उठाए जानेवाले नहीं हैं ([४४] अद-दुखान: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

فَأْتُوْا بِاٰبَاۤىِٕنَآ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ٣٦

fatū
فَأْتُوا۟
पस ले आओ
biābāinā
بِـَٔابَآئِنَآ
हमारे आबा ओ अजदाद को
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
ṣādiqīna
صَٰدِقِينَ
सच्चे
तो ले आओ हमारे बाप-दादा को, यदि तुम सच्चे हो!' ([४४] अद-दुखान: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

اَهُمْ خَيْرٌ اَمْ قَوْمُ تُبَّعٍۙ وَّالَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْۗ اَهْلَكْنٰهُمْ اِنَّهُمْ كَانُوْا مُجْرِمِيْنَ ٣٧

ahum
أَهُمْ
क्या वो
khayrun
خَيْرٌ
बेहतर हैं
am
أَمْ
या
qawmu
قَوْمُ
क़ौम
tubbaʿin
تُبَّعٍ
तुब्बअ की
wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जो
min
مِن
उनसे पहले थे
qablihim
قَبْلِهِمْۚ
उनसे पहले थे
ahlaknāhum
أَهْلَكْنَٰهُمْۖ
हलाक कर दिया हमने उन्हें
innahum
إِنَّهُمْ
बेशक वो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
muj'rimīna
مُجْرِمِينَ
मुजरिम
क्या वे अच्छे है या तुब्बा की क़ौम या वे लोग जो उनसे पहले गुज़र चुके है? हमने उन्हें विनष्ट कर दिया, निश्चय ही वे अपराधी थे ([४४] अद-दुखान: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

وَمَا خَلَقْنَا السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا لٰعِبِيْنَ ٣٨

wamā
وَمَا
और नहीं
khalaqnā
خَلَقْنَا
पैदा किया हमने
l-samāwāti
ٱلسَّمَٰوَٰتِ
आसमानों
wal-arḍa
وَٱلْأَرْضَ
और ज़मीन को
wamā
وَمَا
और जो
baynahumā
بَيْنَهُمَا
दर्मियान है उन दोनों के
lāʿibīna
لَٰعِبِينَ
खेलते हुए
हमने आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके बीच है उन्हें खेल नहीं बनाया ([४४] अद-दुखान: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

مَا خَلَقْنٰهُمَآ اِلَّا بِالْحَقِّ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَ ٣٩

مَا
नहीं
khalaqnāhumā
خَلَقْنَٰهُمَآ
पैदा किया हमने उन दोनों को
illā
إِلَّا
मगर
bil-ḥaqi
بِٱلْحَقِّ
साथ हक़ के
walākinna
وَلَٰكِنَّ
और लेकिन
aktharahum
أَكْثَرَهُمْ
अक्सर उनके
لَا
नहीं वो इल्म रखते
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
नहीं वो इल्म रखते
हमने उन्हें हक़ के साथ पैदा किया, किन्तु उनमें से अधिककर लोग जानते नहीं ([४४] अद-दुखान: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

اِنَّ يَوْمَ الْفَصْلِ مِيْقَاتُهُمْ اَجْمَعِيْنَ ۙ ٤٠

inna
إِنَّ
बेशक
yawma
يَوْمَ
दिन
l-faṣli
ٱلْفَصْلِ
फ़ैसले का
mīqātuhum
مِيقَٰتُهُمْ
वक़्त मुक़र्रर है उनका
ajmaʿīna
أَجْمَعِينَ
सब के सब का
निश्चय ही फ़ैसले का दिन उन सबका नियत समय है, ([४४] अद-दुखान: 40)
Tafseer (तफ़सीर )