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सूरा अज-जुखरूफ - Page: 8

Az-Zukhruf

(सोने के गहने, ऐश्वर्य प्रसाधन)

७१

يُطَافُ عَلَيْهِمْ بِصِحَافٍ مِّنْ ذَهَبٍ وَّاَكْوَابٍ ۚوَفِيْهَا مَا تَشْتَهِيْهِ الْاَنْفُسُ وَتَلَذُّ الْاَعْيُنُ ۚوَاَنْتُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَۚ ٧١

yuṭāfu
يُطَافُ
गर्दिश कराया जाएगा
ʿalayhim
عَلَيْهِم
उन पर
biṣiḥāfin
بِصِحَافٍ
रिकाबियों को
min
مِّن
सोने के
dhahabin
ذَهَبٍ
सोने के
wa-akwābin
وَأَكْوَابٍۖ
और साग़र
wafīhā
وَفِيهَا
और उसमें होगा
مَا
वो जो
tashtahīhi
تَشْتَهِيهِ
ख़्वाहिश करेंगे जिसकी
l-anfusu
ٱلْأَنفُسُ
दिल
wataladhu
وَتَلَذُّ
और लज़्ज़त पाऐंगी
l-aʿyunu
ٱلْأَعْيُنُۖ
निगाहें
wa-antum
وَأَنتُمْ
और तुम
fīhā
فِيهَا
उनमें
khālidūna
خَٰلِدُونَ
हमेशा रहने वाले हो
उनके आगे सोने की तशतरियाँ और प्याले गर्दिश करेंगे और वहाँ वह सब कुछ होगा, जो दिलों को भाए और आँखे जिससे लज़्ज़त पाएँ। 'और तुम उसमें सदैव रहोगे ([४३] अज-जुखरूफ: 71)
Tafseer (तफ़सीर )
७२

وَتِلْكَ الْجَنَّةُ الَّتِيْٓ اُوْرِثْتُمُوْهَا بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ ٧٢

watil'ka
وَتِلْكَ
और ये है
l-janatu
ٱلْجَنَّةُ
जन्नत
allatī
ٱلَّتِىٓ
वो जो
ūrith'tumūhā
أُورِثْتُمُوهَا
वारिस बनाय गए हो तुम उसके
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kuntum
كُنتُمْ
थे तुम
taʿmalūna
تَعْمَلُونَ
तुम अमल करते
यह वह जन्नत है जिसके तुम वारिस उसके बदले में हुए जो कर्म तुम करते रहे। ([४३] अज-जुखरूफ: 72)
Tafseer (तफ़सीर )
७३

لَكُمْ فِيْهَا فَاكِهَةٌ كَثِيْرَةٌ مِّنْهَا تَأْكُلُوْنَ ٧٣

lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
fīhā
فِيهَا
उसमें
fākihatun
فَٰكِهَةٌ
फल होंगे
kathīratun
كَثِيرَةٌ
बहुत से
min'hā
مِّنْهَا
उनमें से
takulūna
تَأْكُلُونَ
तुम खाओगे
तुम्हारे लिए वहाँ बहुत-से स्वादिष्ट फल है जिन्हें तुम खाओगे।' ([४३] अज-जुखरूफ: 73)
Tafseer (तफ़सीर )
७४

اِنَّ الْمُجْرِمِيْنَ فِيْ عَذَابِ جَهَنَّمَ خٰلِدُوْنَۖ ٧٤

inna
إِنَّ
बेशक
l-muj'rimīna
ٱلْمُجْرِمِينَ
मुजरिम लोग
فِى
अज़ाब में (होंगे)
ʿadhābi
عَذَابِ
अज़ाब में (होंगे)
jahannama
جَهَنَّمَ
जहन्नम के
khālidūna
خَٰلِدُونَ
हमेशा रहने वाले
निस्संदेह अपराधी लोग सदैव जहन्नम की यातना में रहेंगे ([४३] अज-जुखरूफ: 74)
Tafseer (तफ़सीर )
७५

لَا يُفَتَّرُ عَنْهُمْ وَهُمْ فِيْهِ مُبْلِسُوْنَ ۚ ٧٥

لَا
ना कम किया जाएगा
yufattaru
يُفَتَّرُ
ना कम किया जाएगा
ʿanhum
عَنْهُمْ
उनसे
wahum
وَهُمْ
और वो
fīhi
فِيهِ
उसमें
mub'lisūna
مُبْلِسُونَ
मायूस होंगे
वह (यातना) कभी उनपर से हल्की न होगी और वे उसी में निराश पड़े रहेंगे ([४३] अज-जुखरूफ: 75)
Tafseer (तफ़सीर )
७६

وَمَا ظَلَمْنٰهُمْ وَلٰكِنْ كَانُوْا هُمُ الظّٰلِمِيْنَ ٧٦

wamā
وَمَا
और नहीं
ẓalamnāhum
ظَلَمْنَٰهُمْ
ज़ुल्म किया हमने उन पर
walākin
وَلَٰكِن
और लेकिन
kānū
كَانُوا۟
थे वो
humu
هُمُ
वो ही
l-ẓālimīna
ٱلظَّٰلِمِينَ
ज़ालिम
हमने उनपर कोई ज़ुल्म नहीं किया, परन्तु वे खुद ही ज़ालिम थे ([४३] अज-जुखरूफ: 76)
Tafseer (तफ़सीर )
७७

وَنَادَوْا يٰمٰلِكُ لِيَقْضِ عَلَيْنَا رَبُّكَۗ قَالَ اِنَّكُمْ مَّاكِثُوْنَ ٧٧

wanādaw
وَنَادَوْا۟
और वो पुकारेंगे
yāmāliku
يَٰمَٰلِكُ
ऐ मालिक
liyaqḍi
لِيَقْضِ
चाहिए कि फ़ैसला कर दे
ʿalaynā
عَلَيْنَا
हम पर
rabbuka
رَبُّكَۖ
रब तेरा
qāla
قَالَ
वो कहेगा
innakum
إِنَّكُم
बेशक तुम
mākithūna
مَّٰكِثُونَ
(यूँही )रहने वाले हो
वे पुकारेंगे, 'ऐ मालिक! तुम्हारा रब हमारा काम ही तमाम कर दे!' वह कहेगा, 'तुम्हें तो इसी दशा में रहना है।' ([४३] अज-जुखरूफ: 77)
Tafseer (तफ़सीर )
७८

لَقَدْ جِئْنٰكُمْ بِالْحَقِّ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَكُمْ لِلْحَقِّ كٰرِهُوْنَ ٧٨

laqad
لَقَدْ
अलबत्ता तहक़ीक़
ji'nākum
جِئْنَٰكُم
लाए हम तुम्हारे पास
bil-ḥaqi
بِٱلْحَقِّ
हक़
walākinna
وَلَٰكِنَّ
और लेकिन
aktharakum
أَكْثَرَكُمْ
अक्सर तुम्हारे
lil'ḥaqqi
لِلْحَقِّ
हक़ को
kārihūna
كَٰرِهُونَ
नापसंद करने वाले थे
'निश्चय ही हम तुम्हारे पास सत्य लेकर आए है, किन्तु तुममें से अधिकतर लोगों को सत्य प्रिय नहीं ([४३] अज-जुखरूफ: 78)
Tafseer (तफ़सीर )
७९

اَمْ اَبْرَمُوْٓا اَمْرًا فَاِنَّا مُبْرِمُوْنَۚ ٧٩

am
أَمْ
बल्कि
abramū
أَبْرَمُوٓا۟
उन्होंने पुख़्ता फ़ैसला किया
amran
أَمْرًا
एक काम का
fa-innā
فَإِنَّا
तो यक़ीनन हम भी
mub'rimūna
مُبْرِمُونَ
पुख़्ता फ़ैसला करने वाले हैं
(क्या उन्होंने कुछ निश्चय नहीं किया है) या उन्होंने किसी बात का निश्चय कर लिया है? अच्छा तो हमने भी निश्चय कर लिया है ([४३] अज-जुखरूफ: 79)
Tafseer (तफ़सीर )
८०

اَمْ يَحْسَبُوْنَ اَنَّا لَا نَسْمَعُ سِرَّهُمْ وَنَجْوٰىهُمْ ۗ بَلٰى وَرُسُلُنَا لَدَيْهِمْ يَكْتُبُوْنَ ٨٠

am
أَمْ
या
yaḥsabūna
يَحْسَبُونَ
वो समझते हैं
annā
أَنَّا
बेशक हम
لَا
नहीं हम सुनते
nasmaʿu
نَسْمَعُ
नहीं हम सुनते
sirrahum
سِرَّهُمْ
राज़ उनका
wanajwāhum
وَنَجْوَىٰهُمۚ
और सरगोशी उनकी
balā
بَلَىٰ
क्यों नहीं
warusulunā
وَرُسُلُنَا
और हमारे भेजे हुए(फ़रिश्ते)
ladayhim
لَدَيْهِمْ
उनके पास हैं
yaktubūna
يَكْتُبُونَ
वो लिखते हैं
या वे समझते है कि हम उनकी छिपी बात और उनकी कानाफूसी को सुनते नही? क्यों नहीं, और हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) उनके समीप हैं, वे लिखते रहते है।' ([४३] अज-जुखरूफ: 80)
Tafseer (तफ़सीर )