يُطَافُ عَلَيْهِمْ بِصِحَافٍ مِّنْ ذَهَبٍ وَّاَكْوَابٍ ۚوَفِيْهَا مَا تَشْتَهِيْهِ الْاَنْفُسُ وَتَلَذُّ الْاَعْيُنُ ۚوَاَنْتُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَۚ ٧١
- yuṭāfu
- يُطَافُ
- गर्दिश कराया जाएगा
- ʿalayhim
- عَلَيْهِم
- उन पर
- biṣiḥāfin
- بِصِحَافٍ
- रिकाबियों को
- min
- مِّن
- सोने के
- dhahabin
- ذَهَبٍ
- सोने के
- wa-akwābin
- وَأَكْوَابٍۖ
- और साग़र
- wafīhā
- وَفِيهَا
- और उसमें होगा
- mā
- مَا
- वो जो
- tashtahīhi
- تَشْتَهِيهِ
- ख़्वाहिश करेंगे जिसकी
- l-anfusu
- ٱلْأَنفُسُ
- दिल
- wataladhu
- وَتَلَذُّ
- और लज़्ज़त पाऐंगी
- l-aʿyunu
- ٱلْأَعْيُنُۖ
- निगाहें
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- और तुम
- fīhā
- فِيهَا
- उनमें
- khālidūna
- خَٰلِدُونَ
- हमेशा रहने वाले हो
उनके आगे सोने की तशतरियाँ और प्याले गर्दिश करेंगे और वहाँ वह सब कुछ होगा, जो दिलों को भाए और आँखे जिससे लज़्ज़त पाएँ। 'और तुम उसमें सदैव रहोगे ([४३] अज-जुखरूफ: 71)Tafseer (तफ़सीर )
وَتِلْكَ الْجَنَّةُ الَّتِيْٓ اُوْرِثْتُمُوْهَا بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ ٧٢
- watil'ka
- وَتِلْكَ
- और ये है
- l-janatu
- ٱلْجَنَّةُ
- जन्नत
- allatī
- ٱلَّتِىٓ
- वो जो
- ūrith'tumūhā
- أُورِثْتُمُوهَا
- वारिस बनाय गए हो तुम उसके
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- kuntum
- كُنتُمْ
- थे तुम
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते
यह वह जन्नत है जिसके तुम वारिस उसके बदले में हुए जो कर्म तुम करते रहे। ([४३] अज-जुखरूफ: 72)Tafseer (तफ़सीर )
لَكُمْ فِيْهَا فَاكِهَةٌ كَثِيْرَةٌ مِّنْهَا تَأْكُلُوْنَ ٧٣
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- fākihatun
- فَٰكِهَةٌ
- फल होंगे
- kathīratun
- كَثِيرَةٌ
- बहुत से
- min'hā
- مِّنْهَا
- उनमें से
- takulūna
- تَأْكُلُونَ
- तुम खाओगे
तुम्हारे लिए वहाँ बहुत-से स्वादिष्ट फल है जिन्हें तुम खाओगे।' ([४३] अज-जुखरूफ: 73)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الْمُجْرِمِيْنَ فِيْ عَذَابِ جَهَنَّمَ خٰلِدُوْنَۖ ٧٤
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-muj'rimīna
- ٱلْمُجْرِمِينَ
- मुजरिम लोग
- fī
- فِى
- अज़ाब में (होंगे)
- ʿadhābi
- عَذَابِ
- अज़ाब में (होंगे)
- jahannama
- جَهَنَّمَ
- जहन्नम के
- khālidūna
- خَٰلِدُونَ
- हमेशा रहने वाले
निस्संदेह अपराधी लोग सदैव जहन्नम की यातना में रहेंगे ([४३] अज-जुखरूफ: 74)Tafseer (तफ़सीर )
لَا يُفَتَّرُ عَنْهُمْ وَهُمْ فِيْهِ مُبْلِسُوْنَ ۚ ٧٥
- lā
- لَا
- ना कम किया जाएगा
- yufattaru
- يُفَتَّرُ
- ना कम किया जाएगा
- ʿanhum
- عَنْهُمْ
- उनसे
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- mub'lisūna
- مُبْلِسُونَ
- मायूस होंगे
वह (यातना) कभी उनपर से हल्की न होगी और वे उसी में निराश पड़े रहेंगे ([४३] अज-जुखरूफ: 75)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا ظَلَمْنٰهُمْ وَلٰكِنْ كَانُوْا هُمُ الظّٰلِمِيْنَ ٧٦
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- ẓalamnāhum
- ظَلَمْنَٰهُمْ
- ज़ुल्म किया हमने उन पर
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- humu
- هُمُ
- वो ही
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- ज़ालिम
हमने उनपर कोई ज़ुल्म नहीं किया, परन्तु वे खुद ही ज़ालिम थे ([४३] अज-जुखरूफ: 76)Tafseer (तफ़सीर )
وَنَادَوْا يٰمٰلِكُ لِيَقْضِ عَلَيْنَا رَبُّكَۗ قَالَ اِنَّكُمْ مَّاكِثُوْنَ ٧٧
- wanādaw
- وَنَادَوْا۟
- और वो पुकारेंगे
- yāmāliku
- يَٰمَٰلِكُ
- ऐ मालिक
- liyaqḍi
- لِيَقْضِ
- चाहिए कि फ़ैसला कर दे
- ʿalaynā
- عَلَيْنَا
- हम पर
- rabbuka
- رَبُّكَۖ
- रब तेरा
- qāla
- قَالَ
- वो कहेगा
- innakum
- إِنَّكُم
- बेशक तुम
- mākithūna
- مَّٰكِثُونَ
- (यूँही )रहने वाले हो
वे पुकारेंगे, 'ऐ मालिक! तुम्हारा रब हमारा काम ही तमाम कर दे!' वह कहेगा, 'तुम्हें तो इसी दशा में रहना है।' ([४३] अज-जुखरूफ: 77)Tafseer (तफ़सीर )
لَقَدْ جِئْنٰكُمْ بِالْحَقِّ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَكُمْ لِلْحَقِّ كٰرِهُوْنَ ٧٨
- laqad
- لَقَدْ
- अलबत्ता तहक़ीक़
- ji'nākum
- جِئْنَٰكُم
- लाए हम तुम्हारे पास
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّ
- हक़
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- aktharakum
- أَكْثَرَكُمْ
- अक्सर तुम्हारे
- lil'ḥaqqi
- لِلْحَقِّ
- हक़ को
- kārihūna
- كَٰرِهُونَ
- नापसंद करने वाले थे
'निश्चय ही हम तुम्हारे पास सत्य लेकर आए है, किन्तु तुममें से अधिकतर लोगों को सत्य प्रिय नहीं ([४३] अज-जुखरूफ: 78)Tafseer (तफ़सीर )
اَمْ اَبْرَمُوْٓا اَمْرًا فَاِنَّا مُبْرِمُوْنَۚ ٧٩
- am
- أَمْ
- बल्कि
- abramū
- أَبْرَمُوٓا۟
- उन्होंने पुख़्ता फ़ैसला किया
- amran
- أَمْرًا
- एक काम का
- fa-innā
- فَإِنَّا
- तो यक़ीनन हम भी
- mub'rimūna
- مُبْرِمُونَ
- पुख़्ता फ़ैसला करने वाले हैं
(क्या उन्होंने कुछ निश्चय नहीं किया है) या उन्होंने किसी बात का निश्चय कर लिया है? अच्छा तो हमने भी निश्चय कर लिया है ([४३] अज-जुखरूफ: 79)Tafseer (तफ़सीर )
اَمْ يَحْسَبُوْنَ اَنَّا لَا نَسْمَعُ سِرَّهُمْ وَنَجْوٰىهُمْ ۗ بَلٰى وَرُسُلُنَا لَدَيْهِمْ يَكْتُبُوْنَ ٨٠
- am
- أَمْ
- या
- yaḥsabūna
- يَحْسَبُونَ
- वो समझते हैं
- annā
- أَنَّا
- बेशक हम
- lā
- لَا
- नहीं हम सुनते
- nasmaʿu
- نَسْمَعُ
- नहीं हम सुनते
- sirrahum
- سِرَّهُمْ
- राज़ उनका
- wanajwāhum
- وَنَجْوَىٰهُمۚ
- और सरगोशी उनकी
- balā
- بَلَىٰ
- क्यों नहीं
- warusulunā
- وَرُسُلُنَا
- और हमारे भेजे हुए(फ़रिश्ते)
- ladayhim
- لَدَيْهِمْ
- उनके पास हैं
- yaktubūna
- يَكْتُبُونَ
- वो लिखते हैं
या वे समझते है कि हम उनकी छिपी बात और उनकी कानाफूसी को सुनते नही? क्यों नहीं, और हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) उनके समीप हैं, वे लिखते रहते है।' ([४३] अज-जुखरूफ: 80)Tafseer (तफ़सीर )