وَلَمَنِ انْتَصَرَ بَعْدَ ظُلْمِهٖ فَاُولٰۤىِٕكَ مَا عَلَيْهِمْ مِّنْ سَبِيْلٍۗ ٤١
- walamani
- وَلَمَنِ
- और अलबत्ता जो कोई
- intaṣara
- ٱنتَصَرَ
- बदला ले
- baʿda
- بَعْدَ
- बाद
- ẓul'mihi
- ظُلْمِهِۦ
- अपने (ऊपर) ज़ुल्म के
- fa-ulāika
- فَأُو۟لَٰٓئِكَ
- तो यही लोग हैं
- mā
- مَا
- नहीं
- ʿalayhim
- عَلَيْهِم
- उन पर
- min
- مِّن
- कोई मुआख़िज़ा
- sabīlin
- سَبِيلٍ
- कोई मुआख़िज़ा
और जो कोई अपने ऊपर ज़ु्ल्म होने के पश्चात बदला ले ले, तो ऐसे लोगों पर कोई इलज़ाम नहीं ([४२] अश-शूरा: 41)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّمَا السَّبِيْلُ عَلَى الَّذِيْنَ يَظْلِمُوْنَ النَّاسَ وَيَبْغُوْنَ فِى الْاَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّۗ اُولٰۤىِٕكَ لَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ ٤٢
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- l-sabīlu
- ٱلسَّبِيلُ
- मुआख़िज़ा तो
- ʿalā
- عَلَى
- उन पर है जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन पर है जो
- yaẓlimūna
- يَظْلِمُونَ
- ज़ुल्म करते है
- l-nāsa
- ٱلنَّاسَ
- लोगों पर
- wayabghūna
- وَيَبْغُونَ
- और वो बग़ावत करते है
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- bighayri
- بِغَيْرِ
- बग़ैर
- l-ḥaqi
- ٱلْحَقِّۚ
- हक़ के
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब है
- alīmun
- أَلِيمٌ
- दर्दनाक
इलज़ाम तो केवल उनपर आता है जो लोगों पर ज़ुल्म करते है और धरती में नाहक़ ज़्यादती करते है। ऐसे लोगों के लिए दुखद यातना है ([४२] अश-शूरा: 42)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَمَنْ صَبَرَ وَغَفَرَ اِنَّ ذٰلِكَ لَمِنْ عَزْمِ الْاُمُوْرِ ࣖ ٤٣
- walaman
- وَلَمَن
- और अलबत्ता जिसने
- ṣabara
- صَبَرَ
- सब्र किया
- waghafara
- وَغَفَرَ
- और उसने माफ़ कर दिया
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- lamin
- لَمِنْ
- अलबत्ता हिम्मत के कामों में से है
- ʿazmi
- عَزْمِ
- अलबत्ता हिम्मत के कामों में से है
- l-umūri
- ٱلْأُمُورِ
- अलबत्ता हिम्मत के कामों में से है
किन्तु जिसने धैर्य से काम लिया और क्षमा कर दिया तो निश्चय ही वह उन कामों में से है जो (सफलता के लिए) आवश्यक ठहरा दिए गए है ([४२] अश-शूरा: 43)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَنْ يُّضْلِلِ اللّٰهُ فَمَا لَهٗ مِنْ وَّلِيٍّ مِّنْۢ بَعْدِهٖ ۗوَتَرَى الظّٰلِمِيْنَ لَمَّا رَاَوُا الْعَذَابَ يَقُوْلُوْنَ هَلْ اِلٰى مَرَدٍّ مِّنْ سَبِيْلٍۚ ٤٤
- waman
- وَمَن
- और जिसे
- yuḍ'lili
- يُضْلِلِ
- भटका दे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- famā
- فَمَا
- तो नहीं
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- min
- مِن
- कोई करसाज़
- waliyyin
- وَلِىٍّ
- कोई करसाज़
- min
- مِّنۢ
- उसके बाद
- baʿdihi
- بَعْدِهِۦۗ
- उसके बाद
- watarā
- وَتَرَى
- और आप देखेंगे
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- ज़ालिमों को
- lammā
- لَمَّا
- जब
- ra-awū
- رَأَوُا۟
- वो देख लेंगे
- l-ʿadhāba
- ٱلْعَذَابَ
- अज़ाब
- yaqūlūna
- يَقُولُونَ
- वो कहेंगे
- hal
- هَلْ
- क्या है
- ilā
- إِلَىٰ
- वापस लौटने की तरफ़
- maraddin
- مَرَدٍّ
- वापस लौटने की तरफ़
- min
- مِّن
- कोई रास्ता
- sabīlin
- سَبِيلٍ
- कोई रास्ता
जिस व्यक्ति को अल्लाह गुमराही में डाल दे, तो उसके पश्चात उसे सम्भालनेवाला कोई भी नहीं। तुम ज़ालिमों को देखोगे कि जब वे यातना को देख लेंगे तो कह रहे होंगे, 'क्या लौटने का भी कोई मार्ग है?' ([४२] अश-शूरा: 44)Tafseer (तफ़सीर )
وَتَرٰىهُمْ يُعْرَضُوْنَ عَلَيْهَا خٰشِعِيْنَ مِنَ الذُّلِّ يَنْظُرُوْنَ مِنْ طَرْفٍ خَفِيٍّۗ وَقَالَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اِنَّ الْخٰسِرِيْنَ الَّذِيْنَ خَسِرُوْٓا اَنْفُسَهُمْ وَاَهْلِيْهِمْ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ ۗ اَلَآ اِنَّ الظّٰلِمِيْنَ فِيْ عَذَابٍ مُّقِيْمٍ ٤٥
- watarāhum
- وَتَرَىٰهُمْ
- और आप देखेंगे उन्हें
- yuʿ'raḍūna
- يُعْرَضُونَ
- वो पेश किए जाऐंगे
- ʿalayhā
- عَلَيْهَا
- उस पर
- khāshiʿīna
- خَٰشِعِينَ
- झुके हुए
- mina
- مِنَ
- ज़िल्लत की वजह से
- l-dhuli
- ٱلذُّلِّ
- ज़िल्लत की वजह से
- yanẓurūna
- يَنظُرُونَ
- वो देखेंगे
- min
- مِن
- झुकी आँख /कनअखियों से
- ṭarfin
- طَرْفٍ
- झुकी आँख /कनअखियों से
- khafiyyin
- خَفِىٍّۗ
- झुकी आँख /कनअखियों से
- waqāla
- وَقَالَ
- और कहेंगे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- āmanū
- ءَامَنُوٓا۟
- ईमान लाए
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-khāsirīna
- ٱلْخَٰسِرِينَ
- ख़सारा पाने वाले
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो हैं जिन्होंने
- khasirū
- خَسِرُوٓا۟
- ख़सारे में डाला
- anfusahum
- أَنفُسَهُمْ
- अपने नफ़्सों को
- wa-ahlīhim
- وَأَهْلِيهِمْ
- और अपने घर वालों को
- yawma
- يَوْمَ
- दिन
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِۗ
- क़यामत के
- alā
- أَلَآ
- ख़बरदार
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- ज़ालिम लोग
- fī
- فِى
- अज़ाब में होंगे
- ʿadhābin
- عَذَابٍ
- अज़ाब में होंगे
- muqīmin
- مُّقِيمٍ
- मुक़ीम /दाइमी
और तुम उन्हें देखोगे कि वे उस (जहन्नम) पर इस दशा में लाए जा रहे है कि बेबसी और अपमान के कारण दबे हुए है। कनखियों से देख रहे है। जो लोग ईमान लाए, वे उस समय कहेंगे कि 'निश्चय ही घाटे में पड़नेवाले वही है जिन्होंने क़ियामत के दिन अपने आपको और अपने लोगों को घाटे में डाल दिया। सावधान! निश्चय ही ज़ालिम स्थिर रहनेवाली यातना में होंगे ([४२] अश-शूरा: 45)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا كَانَ لَهُمْ مِّنْ اَوْلِيَاۤءَ يَنْصُرُوْنَهُمْ مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ ۗوَمَنْ يُّضْلِلِ اللّٰهُ فَمَا لَهٗ مِنْ سَبِيْلٍ ۗ ٤٦
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kāna
- كَانَ
- होंगे
- lahum
- لَهُم
- उनके लिए
- min
- مِّنْ
- कोई मददगार
- awliyāa
- أَوْلِيَآءَ
- कोई मददगार
- yanṣurūnahum
- يَنصُرُونَهُم
- जो मदद करें उनकी
- min
- مِّن
- सिवाय
- dūni
- دُونِ
- सिवाय
- l-lahi
- ٱللَّهِۗ
- अल्लाह के
- waman
- وَمَن
- और जिसे
- yuḍ'lili
- يُضْلِلِ
- भटका दे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- famā
- فَمَا
- तो नहीं
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- min
- مِن
- कोई रास्ता
- sabīlin
- سَبِيلٍ
- कोई रास्ता
और उनके कुछ संरक्षक भी न होंगे, जो सहायता करके उन्हें अल्लाह से बचा सकें। जिसे अल्लाह गुमराही में डाल दे तो उसके लिए फिर कोई मार्ग नहीं।' ([४२] अश-शूरा: 46)Tafseer (तफ़सीर )
اِسْتَجِيْبُوْا لِرَبِّكُمْ مِّنْ قَبْلِ اَنْ يَّأْتِيَ يَوْمٌ لَّا مَرَدَّ لَهٗ مِنَ اللّٰهِ ۗمَا لَكُمْ مِّنْ مَّلْجَاٍ يَّوْمَىِٕذٍ وَّمَا لَكُمْ مِّنْ نَّكِيْرٍ ٤٧
- is'tajībū
- ٱسْتَجِيبُوا۟
- लब्बैक कहो
- lirabbikum
- لِرَبِّكُم
- अपने रब के लिए
- min
- مِّن
- इससे पहले
- qabli
- قَبْلِ
- इससे पहले
- an
- أَن
- कि
- yatiya
- يَأْتِىَ
- आ जाए
- yawmun
- يَوْمٌ
- एक दिन
- lā
- لَّا
- नहीं कोई टलना
- maradda
- مَرَدَّ
- नहीं कोई टलना
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- mina
- مِنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِۚ
- अल्लाह की तरफ़ से
- mā
- مَا
- नहीं
- lakum
- لَكُم
- तुम्हारे लिए
- min
- مِّن
- कोई जाए पनाह
- malja-in
- مَّلْجَإٍ
- कोई जाए पनाह
- yawma-idhin
- يَوْمَئِذٍ
- उस दिन
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- lakum
- لَكُم
- तुम्हारे लिए
- min
- مِّن
- कोई इन्कार करना
- nakīrin
- نَّكِيرٍ
- कोई इन्कार करना
अपने रब की बात मान लो इससे पहले कि अल्लाह की ओर से वह दिन आ जाए जो पलटने का नहीं। उस दिन तुम्हारे लिए न कोई शरण-स्थल होगा और न तुम किसी चीज़ को रद्द कर सकोगे ([४२] अश-शूरा: 47)Tafseer (तफ़सीर )
فَاِنْ اَعْرَضُوْا فَمَآ اَرْسَلْنٰكَ عَلَيْهِمْ حَفِيْظًا ۗاِنْ عَلَيْكَ اِلَّا الْبَلٰغُ ۗوَاِنَّآ اِذَآ اَذَقْنَا الْاِنْسَانَ مِنَّا رَحْمَةً فَرِحَ بِهَا ۚوَاِنْ تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ ۢبِمَا قَدَّمَتْ اَيْدِيْهِمْ فَاِنَّ الْاِنْسَانَ كَفُوْرٌ ٤٨
- fa-in
- فَإِنْ
- फिर अगर
- aʿraḍū
- أَعْرَضُوا۟
- वो ऐराज़ करें
- famā
- فَمَآ
- तो नहीं
- arsalnāka
- أَرْسَلْنَٰكَ
- भेजा हमने आपको
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- ḥafīẓan
- حَفِيظًاۖ
- निगेहबान बना कर
- in
- إِنْ
- नहीं
- ʿalayka
- عَلَيْكَ
- आपके ज़िम्मे
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-balāghu
- ٱلْبَلَٰغُۗ
- पहुँचा देना
- wa-innā
- وَإِنَّآ
- और बेशक हम
- idhā
- إِذَآ
- जब
- adhaqnā
- أَذَقْنَا
- चखाते हैं हम
- l-insāna
- ٱلْإِنسَٰنَ
- इन्सान को
- minnā
- مِنَّا
- अपनी तरफ़ से
- raḥmatan
- رَحْمَةً
- कोई रहमत
- fariḥa
- فَرِحَ
- वो ख़ुश हो जाता है
- bihā
- بِهَاۖ
- उस पर
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- tuṣib'hum
- تُصِبْهُمْ
- पहुँचती है उन्हें
- sayyi-atun
- سَيِّئَةٌۢ
- कोई तक्लीफ़
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- qaddamat
- قَدَّمَتْ
- आगे भेजा
- aydīhim
- أَيْدِيهِمْ
- उनके हाथों ने
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-insāna
- ٱلْإِنسَٰنَ
- इन्सान
- kafūrun
- كَفُورٌ
- सख़्त नाशुक्रा है
अब यदि वे ध्यान में न लाएँ तो हमने तो तुम्हें उनपर कोई रक्षक बनाकर तो भेजा नहीं है। तुमपर तो केवल (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है। हाल यह है कि जब हम मनुष्य को अपनी ओर से किसी दयालुता का आस्वादन कराते है तो वह उसपर इतराने लगता है, किन्तु ऐसे लोगों के हाथों ने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण यदि उन्हें कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो निश्चय ही वही मनुष्य बड़ा कृतघ्न बन जाता है ([४२] अश-शूरा: 48)Tafseer (तफ़सीर )
لِلّٰهِ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ يَخْلُقُ مَا يَشَاۤءُ ۗيَهَبُ لِمَنْ يَّشَاۤءُ اِنَاثًا وَّيَهَبُ لِمَنْ يَّشَاۤءُ الذُّكُوْرَ ۙ ٤٩
- lillahi
- لِّلَّهِ
- अल्लाह ही के लिए है
- mul'ku
- مُلْكُ
- बादशाहत
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِۚ
- और ज़मीन की
- yakhluqu
- يَخْلُقُ
- वो पैदा करता है
- mā
- مَا
- जो
- yashāu
- يَشَآءُۚ
- वो चाहता है
- yahabu
- يَهَبُ
- वो अता करता है
- liman
- لِمَن
- जिसके लिए
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- ināthan
- إِنَٰثًا
- लड़कियाँ
- wayahabu
- وَيَهَبُ
- और वो अता करता है
- liman
- لِمَن
- जिसके लिए
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- l-dhukūra
- ٱلذُّكُورَ
- लड़के
अल्लाह ही की है आकाशों और धरती की बादशाही। वह जो चाहता है पैदा करता है, जिसे चाहता है लड़कियाँ देता है और जिसे चाहता है लड़के देता है। ([४२] अश-शूरा: 49)Tafseer (तफ़सीर )
اَوْ يُزَوِّجُهُمْ ذُكْرَانًا وَّاِنَاثًا ۚوَيَجْعَلُ مَنْ يَّشَاۤءُ عَقِيْمًا ۗاِنَّهٗ عَلِيْمٌ قَدِيْرٌ ٥٠
- aw
- أَوْ
- या
- yuzawwijuhum
- يُزَوِّجُهُمْ
- वो मिला- जुला कर देता है उन्हें
- dhuk'rānan
- ذُكْرَانًا
- लड़के
- wa-ināthan
- وَإِنَٰثًاۖ
- और लड़कियाँ
- wayajʿalu
- وَيَجْعَلُ
- और वो बना देता है
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- ʿaqīman
- عَقِيمًاۚ
- बाँझ
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब इल्म वाला है
- qadīrun
- قَدِيرٌ
- ख़ूब क़ुदरत वाला है
या उन्हें लड़के और लड़कियाँ मिला-जुलाकर देता है और जिसे चाहता है निस्संतान रखता है। निश्चय ही वह सर्वज्ञ, सामर्थ्यवान है ([४२] अश-शूरा: 50)Tafseer (तफ़सीर )