فَاطِرُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ جَعَلَ لَكُمْ مِّنْ اَنْفُسِكُمْ اَزْوَاجًا وَّمِنَ الْاَنْعَامِ اَزْوَاجًاۚ يَذْرَؤُكُمْ فِيْهِۗ لَيْسَ كَمِثْلِهٖ شَيْءٌ ۚوَهُوَ السَّمِيْعُ الْبَصِيْرُ ١١
- fāṭiru
- فَاطِرُ
- पैदा करने वाला
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِۚ
- और ज़मीन का
- jaʿala
- جَعَلَ
- उसने बनाए
- lakum
- لَكُم
- तुम्हारे लिए
- min
- مِّنْ
- तुम्हारे नफ़्सों से
- anfusikum
- أَنفُسِكُمْ
- तुम्हारे नफ़्सों से
- azwājan
- أَزْوَٰجًا
- जोड़े
- wamina
- وَمِنَ
- और मवेशियों से
- l-anʿāmi
- ٱلْأَنْعَٰمِ
- और मवेशियों से
- azwājan
- أَزْوَٰجًاۖ
- जोड़े
- yadhra-ukum
- يَذْرَؤُكُمْ
- वो फैलाता है तुम्हें
- fīhi
- فِيهِۚ
- उसमें
- laysa
- لَيْسَ
- नहीं है
- kamith'lihi
- كَمِثْلِهِۦ
- उसकी मानिन्द
- shayon
- شَىْءٌۖ
- कोई चीज़
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो
- l-samīʿu
- ٱلسَّمِيعُ
- ख़ूब सुनने वाला है
- l-baṣīru
- ٱلْبَصِيرُ
- ख़ूब देखने वाला है
वह आकाशों और धरती का पैदा करनेवाला है। उसने तुम्हारे लिए तुम्हारी अपनी सहजाति से जोड़े बनाए और चौपायों के जोड़े भी। फैला रहा है वह तुमको अपने में। उसके सदृश कोई चीज़ नहीं। वही सबकुछ सुनता, देखता है ([४२] अश-शूरा: 11)Tafseer (तफ़सीर )
لَهٗ مَقَالِيْدُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۚ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَّشَاۤءُ وَيَقْدِرُ ۚاِنَّهٗ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيْمٌ ١٢
- lahu
- لَهُۥ
- उसी के लिए हैं
- maqālīdu
- مَقَالِيدُ
- कुंजियाँ
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِۖ
- और ज़मीन की
- yabsuṭu
- يَبْسُطُ
- वो फैलाता है
- l-riz'qa
- ٱلرِّزْقَ
- रिज़्क़
- liman
- لِمَن
- जिसके लिए
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- wayaqdiru
- وَيَقْدِرُۚ
- और वो तंग कर देता है
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- bikulli
- بِكُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ को
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
आकाशों और धरती की कुंजियाँ उसी के पास हैं। वह जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है नपी-तुली कर देता है। निस्संदेह उसे हर चीज़ का ज्ञान है ([४२] अश-शूरा: 12)Tafseer (तफ़सीर )
۞ شَرَعَ لَكُمْ مِّنَ الدِّيْنِ مَا وَصّٰى بِهٖ نُوْحًا وَّالَّذِيْٓ اَوْحَيْنَآ اِلَيْكَ وَمَا وَصَّيْنَا بِهٖٓ اِبْرٰهِيْمَ وَمُوْسٰى وَعِيْسٰٓى اَنْ اَقِيْمُوا الدِّيْنَ وَلَا تَتَفَرَّقُوْا فِيْهِۗ كَبُرَ عَلَى الْمُشْرِكِيْنَ مَا تَدْعُوْهُمْ اِلَيْهِۗ اَللّٰهُ يَجْتَبِيْٓ اِلَيْهِ مَنْ يَّشَاۤءُ وَيَهْدِيْٓ اِلَيْهِ مَنْ يُّنِيْبُۗ ١٣
- sharaʿa
- شَرَعَ
- उसने मुक़र्रर किया
- lakum
- لَكُم
- तुम्हारे लिए
- mina
- مِّنَ
- दीन में से
- l-dīni
- ٱلدِّينِ
- दीन में से
- mā
- مَا
- वो जो
- waṣṣā
- وَصَّىٰ
- उसने वसीयत की
- bihi
- بِهِۦ
- उसकी
- nūḥan
- نُوحًا
- नूह को
- wa-alladhī
- وَٱلَّذِىٓ
- और वो जो
- awḥaynā
- أَوْحَيْنَآ
- वही की हमने
- ilayka
- إِلَيْكَ
- तरफ़ आपके
- wamā
- وَمَا
- और वो जो
- waṣṣaynā
- وَصَّيْنَا
- वसीयत की हमने
- bihi
- بِهِۦٓ
- उसकी
- ib'rāhīma
- إِبْرَٰهِيمَ
- इब्राहीम
- wamūsā
- وَمُوسَىٰ
- और मूसा
- waʿīsā
- وَعِيسَىٰٓۖ
- और ईसा को
- an
- أَنْ
- कि
- aqīmū
- أَقِيمُوا۟
- क़ायम करो
- l-dīna
- ٱلدِّينَ
- दीन को
- walā
- وَلَا
- और ना
- tatafarraqū
- تَتَفَرَّقُوا۟
- तुम तफ़रक़ा डालो
- fīhi
- فِيهِۚ
- उसमें
- kabura
- كَبُرَ
- बड़ा ( भारी ) है
- ʿalā
- عَلَى
- मुशरिकों पर
- l-mush'rikīna
- ٱلْمُشْرِكِينَ
- मुशरिकों पर
- mā
- مَا
- जो
- tadʿūhum
- تَدْعُوهُمْ
- तुम बुलाते हो उन्हें
- ilayhi
- إِلَيْهِۚ
- तरफ़ उसके
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- yajtabī
- يَجْتَبِىٓ
- वो चुन लेता है
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- अपनी तरफ़
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- wayahdī
- وَيَهْدِىٓ
- और वो हिदायत देता है
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- अपनी तरफ़
- man
- مَن
- उसे जो
- yunību
- يُنِيبُ
- रुजूअ करता है
उसने तुम्हारे लिए वही धर्म निर्धारित किया जिसकी ताकीद उसने नूह को की थी।' और वह (जीवन्त आदेश) जिसकी प्रकाशना हमने तुम्हारी ओर की है और वह जिसकी ताकीद हमने इबराहीम और मूसा और ईसा को की थी यह है कि 'धर्म को क़ायम करो और उसके विषय में अलग-अलग न हो जाओ।' बहुदेववादियों को वह चीज़ बहुत अप्रिय है, जिसकी ओर तुम उन्हें बुलाते हो। अल्लाह जिसे चाहता है अपनी ओर छाँट लेता है और अपनी ओर का मार्ग उसी को दिखाता है जो उसकी ओर रुजू करता है ([४२] अश-शूरा: 13)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا تَفَرَّقُوْٓا اِلَّا مِنْۢ بَعْدِ مَا جَاۤءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًاۢ بَيْنَهُمْۗ وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِنْ رَّبِّكَ اِلٰٓى اَجَلٍ مُّسَمًّى لَّقُضِيَ بَيْنَهُمْۗ وَاِنَّ الَّذِيْنَ اُوْرِثُوا الْكِتٰبَ مِنْۢ بَعْدِهِمْ لَفِيْ شَكٍّ مِّنْهُ مُرِيْبٍ ١٤
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- tafarraqū
- تَفَرَّقُوٓا۟
- उन्होंने तफ़रक़ा डाला
- illā
- إِلَّا
- मगर
- min
- مِنۢ
- बाद उसके
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद उसके
- mā
- مَا
- जो
- jāahumu
- جَآءَهُمُ
- आ गया उनके पास
- l-ʿil'mu
- ٱلْعِلْمُ
- इल्म
- baghyan
- بَغْيًۢا
- सरकशी की वजह से
- baynahum
- بَيْنَهُمْۚ
- आपस में
- walawlā
- وَلَوْلَا
- और अगर ना होती
- kalimatun
- كَلِمَةٌ
- एक बात
- sabaqat
- سَبَقَتْ
- जो पहले गुज़र चुकी
- min
- مِن
- आपके रब की तरफ़ से
- rabbika
- رَّبِّكَ
- आपके रब की तरफ़ से
- ilā
- إِلَىٰٓ
- एक वक़्त तक
- ajalin
- أَجَلٍ
- एक वक़्त तक
- musamman
- مُّسَمًّى
- मुक़र्रर
- laquḍiya
- لَّقُضِىَ
- अलबत्ता फ़ैसला कर दिया जाता
- baynahum
- بَيْنَهُمْۚ
- दर्मियान उनके
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- ūrithū
- أُورِثُوا۟
- वारिस बनाए गए
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब के
- min
- مِنۢ
- उनके बाद
- baʿdihim
- بَعْدِهِمْ
- उनके बाद
- lafī
- لَفِى
- अलबत्ता शक में हैं
- shakkin
- شَكٍّ
- अलबत्ता शक में हैं
- min'hu
- مِّنْهُ
- उसकी तरफ़ से
- murībin
- مُرِيبٍ
- जो बेचैन करने वाला है
उन्होंने तो परस्पर एक-दूसरे पर ज़्यादती करने के उद्देश्य से इसके पश्चात विभेद किया कि उनके पास ज्ञान आ चुका था। और यदि तुम्हारे रब की ओर से एक नियत अवधि तक के लिए बात पहले निश्चित न हो चुकी होती तो उनके बीच फ़ैसला चुका दिया गया होता। किन्तु जो लोग उनके पश्चात किताब के वारिस हुए वे उसकी ओर से एक उलझन में डाल देनेवाले संदेह में पड़े हुए है ([४२] अश-शूरा: 14)Tafseer (तफ़सीर )
فَلِذٰلِكَ فَادْعُ ۚوَاسْتَقِمْ كَمَآ اُمِرْتَۚ وَلَا تَتَّبِعْ اَهْوَاۤءَهُمْۚ وَقُلْ اٰمَنْتُ بِمَآ اَنْزَلَ اللّٰهُ مِنْ كِتٰبٍۚ وَاُمِرْتُ لِاَعْدِلَ بَيْنَكُمْ ۗ اَللّٰهُ رَبُّنَا وَرَبُّكُمْ ۗ لَنَآ اَعْمَالُنَا وَلَكُمْ اَعْمَالُكُمْ ۗ لَاحُجَّةَ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ ۗ اَللّٰهُ يَجْمَعُ بَيْنَنَا ۚوَاِلَيْهِ الْمَصِيْرُ ۗ ١٥
- falidhālika
- فَلِذَٰلِكَ
- तो इसी ( दीन) के लिए
- fa-ud'ʿu
- فَٱدْعُۖ
- पस दावत दीजिए
- wa-is'taqim
- وَٱسْتَقِمْ
- और क़ायम रहिए
- kamā
- كَمَآ
- जैसा कि
- umir'ta
- أُمِرْتَۖ
- हुक्म दिए गए आप
- walā
- وَلَا
- और ना
- tattabiʿ
- تَتَّبِعْ
- आप पैरवी कीजिए
- ahwāahum
- أَهْوَآءَهُمْۖ
- उनकी ख़्वाहिशात की
- waqul
- وَقُلْ
- और कह दीजिए
- āmantu
- ءَامَنتُ
- ईमान लाया मैं
- bimā
- بِمَآ
- उस पर जो
- anzala
- أَنزَلَ
- नाज़िल किया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- min
- مِن
- किताब से
- kitābin
- كِتَٰبٍۖ
- किताब से
- wa-umir'tu
- وَأُمِرْتُ
- और हुक्म दिया गया है मुझे
- li-aʿdila
- لِأَعْدِلَ
- कि मैं अदल करूँ
- baynakumu
- بَيْنَكُمُۖ
- दर्मियान तुम्हारे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ही
- rabbunā
- رَبُّنَا
- रब है हमारा
- warabbukum
- وَرَبُّكُمْۖ
- और रब तुम्हारा
- lanā
- لَنَآ
- हमारे लिए
- aʿmālunā
- أَعْمَٰلُنَا
- आमाल हमारे
- walakum
- وَلَكُمْ
- और तुम्हारे लिए
- aʿmālukum
- أَعْمَٰلُكُمْۖ
- आमाल तुम्हारे
- lā
- لَا
- नहीं कोई झगड़ा
- ḥujjata
- حُجَّةَ
- नहीं कोई झगड़ा
- baynanā
- بَيْنَنَا
- दर्मियान हमारे
- wabaynakumu
- وَبَيْنَكُمُۖ
- और दर्मियान तुम्हारे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- yajmaʿu
- يَجْمَعُ
- वो जमा कर देगा
- baynanā
- بَيْنَنَاۖ
- हमें आपस में
- wa-ilayhi
- وَإِلَيْهِ
- और तरफ़ उसी के
- l-maṣīru
- ٱلْمَصِيرُ
- लौटना है
अतः इसी लिए (उन्हें सत्य की ओर) बुलाओ, और जैसा कि तुम्हें हुक्म दिया गया है स्वयं क़ायम रहो, और उनकी इच्छाओं का पालन न करना और कह दो, 'अल्लाह ने जो किताब अवतरित की है, मैं उसपर ईमान लाया। मुझे तो आदेश हुआ है कि मैं तुम्हारे बीच न्याय करूँ। अल्लाह ही हमारा भी रब है और तुम्हारा भी। हमारे लिए हमारे कर्म है और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। हममें और तुममें कोई झगड़ा नहीं। अल्लाह हम सबको इकट्ठा करेगा और अन्ततः उसी की ओर जाना है।' ([४२] अश-शूरा: 15)Tafseer (तफ़सीर )
وَالَّذِيْنَ يُحَاۤجُّوْنَ فِى اللّٰهِ مِنْۢ بَعْدِ مَا اسْتُجِيْبَ لَهٗ حُجَّتُهُمْ دَاحِضَةٌ عِنْدَ رَبِّهِمْ وَعَلَيْهِمْ غَضَبٌ وَّلَهُمْ عَذَابٌ شَدِيْدٌ ١٦
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- yuḥājjūna
- يُحَآجُّونَ
- झगड़ते हैं
- fī
- فِى
- अल्लाह के बारे में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के बारे में
- min
- مِنۢ
- बाद उसके
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद उसके
- mā
- مَا
- जो
- us'tujība
- ٱسْتُجِيبَ
- क़ुबूल कर लिया गया
- lahu
- لَهُۥ
- उसी के लिए
- ḥujjatuhum
- حُجَّتُهُمْ
- हुज्जत /दलील उनकी
- dāḥiḍatun
- دَاحِضَةٌ
- ज़ायल होने वाली है
- ʿinda
- عِندَ
- नज़दीक
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- उनके रब के
- waʿalayhim
- وَعَلَيْهِمْ
- और उन पर
- ghaḍabun
- غَضَبٌ
- ग़ज़ब है
- walahum
- وَلَهُمْ
- और उनके लिए
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब है
- shadīdun
- شَدِيدٌ
- सख़्त
जो लोग अल्लाह के विषय में झगड़ते है, इसके पश्चात कि उसकी पुकार स्वीकार कर ली गई, उनका झगड़ना उनके रब की स्पष्ट में बिलकुल न ठहरनेवाला (असत्य) है। प्रकोप है उनपर और उनके लिए कड़ी यातना है ([४२] अश-शूरा: 16)Tafseer (तफ़सीर )
اَللّٰهُ الَّذِيْٓ اَنْزَلَ الْكِتٰبَ بِالْحَقِّ وَالْمِيْزَانَ ۗوَمَا يُدْرِيْكَ لَعَلَّ السَّاعَةَ قَرِيْبٌ ١٧
- al-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- alladhī
- ٱلَّذِىٓ
- वो है जिसने
- anzala
- أَنزَلَ
- नाज़िल किया
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब को
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّ
- साथ हक़ के
- wal-mīzāna
- وَٱلْمِيزَانَۗ
- और मीज़ान को
- wamā
- وَمَا
- और क्या चीज़
- yud'rīka
- يُدْرِيكَ
- बताए आपको
- laʿalla
- لَعَلَّ
- शायद कि
- l-sāʿata
- ٱلسَّاعَةَ
- क़यामत
- qarībun
- قَرِيبٌ
- क़रीब हो
वह अल्लाह ही है जिसने हक़ के साथ किताब और तुला अवतरित की। और तुम्हें क्या मालूम कदाचित क़ियामत की घड़ी निकट ही आ लगी हो ([४२] अश-शूरा: 17)Tafseer (तफ़सीर )
يَسْتَعْجِلُ بِهَا الَّذِيْنَ لَا يُؤْمِنُوْنَ بِهَاۚ وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مُشْفِقُوْنَ مِنْهَاۙ وَيَعْلَمُوْنَ اَنَّهَا الْحَقُّ ۗ اَلَآ اِنَّ الَّذِيْنَ يُمَارُوْنَ فِى السَّاعَةِ لَفِيْ ضَلٰلٍۢ بَعِيْدٍ ١٨
- yastaʿjilu
- يَسْتَعْجِلُ
- जल्दी माँगते है
- bihā
- بِهَا
- उसे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- lā
- لَا
- नहीं वो ईमान लाते
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- नहीं वो ईमान लाते
- bihā
- بِهَاۖ
- उस पर
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हैं
- mush'fiqūna
- مُشْفِقُونَ
- डरने वाले हैं
- min'hā
- مِنْهَا
- उससे
- wayaʿlamūna
- وَيَعْلَمُونَ
- और वो इल्म रखते हैं
- annahā
- أَنَّهَا
- कि बेशक वो
- l-ḥaqu
- ٱلْحَقُّۗ
- हक़ है
- alā
- أَلَآ
- ख़बरदार
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- yumārūna
- يُمَارُونَ
- झगड़ते हैं
- fī
- فِى
- क़यामत के बारे में
- l-sāʿati
- ٱلسَّاعَةِ
- क़यामत के बारे में
- lafī
- لَفِى
- अलबत्ता गुमराही में हैं
- ḍalālin
- ضَلَٰلٍۭ
- अलबत्ता गुमराही में हैं
- baʿīdin
- بَعِيدٍ
- दूर की
उसकी जल्दी वे लोग मचाते है जो उसपर ईमान नहीं रखते, किन्तु जो ईमान रखते है वे तो उससे डरते है और जानते है कि वह सत्य है। जान लो, जो लोग उस घड़ी के बारे में सन्देह डालनेवाली बहसें करते है, वे परले दरजे की गुमराही में पड़े हुए है ([४२] अश-शूरा: 18)Tafseer (तफ़सीर )
اَللّٰهُ لَطِيْفٌۢ بِعِبَادِهٖ يَرْزُقُ مَنْ يَّشَاۤءُ ۚوَهُوَ الْقَوِيُّ الْعَزِيْزُ ࣖ ١٩
- al-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- laṭīfun
- لَطِيفٌۢ
- बहुत महरबान है
- biʿibādihi
- بِعِبَادِهِۦ
- अपने बन्दों पर
- yarzuqu
- يَرْزُقُ
- वो रिज़्क़ देता है
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُۖ
- वो चाहता है
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो
- l-qawiyu
- ٱلْقَوِىُّ
- बहुत क़ुव्वत वाला है
- l-ʿazīzu
- ٱلْعَزِيزُ
- ख़ूब ग़लबे वाला है
अल्लाह अपने बन्दों पर अत्यन्त दयालु है। वह जिसे चाहता है रोज़ी देता है। वह शक्तिमान, अत्यन्त प्रभुत्वशाली है ([४२] अश-शूरा: 19)Tafseer (तफ़सीर )
مَنْ كَانَ يُرِيْدُ حَرْثَ الْاٰخِرَةِ نَزِدْ لَهٗ فِيْ حَرْثِهٖۚ وَمَنْ كَانَ يُرِيْدُ حَرْثَ الدُّنْيَا نُؤْتِهٖ مِنْهَاۙ وَمَا لَهٗ فِى الْاٰخِرَةِ مِنْ نَّصِيْبٍ ٢٠
- man
- مَن
- जो कोई
- kāna
- كَانَ
- है
- yurīdu
- يُرِيدُ
- चाहता
- ḥartha
- حَرْثَ
- खेती
- l-ākhirati
- ٱلْءَاخِرَةِ
- आख़िरत की
- nazid
- نَزِدْ
- हम ज़्यादा कर देंगे
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- fī
- فِى
- उसकी खेती में
- ḥarthihi
- حَرْثِهِۦۖ
- उसकी खेती में
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- kāna
- كَانَ
- है
- yurīdu
- يُرِيدُ
- चाहता
- ḥartha
- حَرْثَ
- खेती
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया की
- nu'tihi
- نُؤْتِهِۦ
- हम देते हैं उसे
- min'hā
- مِنْهَا
- उसमें से
- wamā
- وَمَا
- और नहीं होगा
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- fī
- فِى
- आख़िरत में
- l-ākhirati
- ٱلْءَاخِرَةِ
- आख़िरत में
- min
- مِن
- कोई हिस्सा
- naṣībin
- نَّصِيبٍ
- कोई हिस्सा
जो कोई आख़िरत की खेती चाहता है, हम उसके लिए उसकी खेती में बढ़ोत्तरी प्रदान करेंगे और जो कोई दुनिया की खेती चाहता है, हम उसमें से उसे कुछ दे देते है, किन्तु आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं ([४२] अश-शूरा: 20)Tafseer (तफ़सीर )