५१
وَاِذَآ اَنْعَمْنَا عَلَى الْاِنْسَانِ اَعْرَضَ وَنَاٰ بِجَانِبِهٖۚ وَاِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ فَذُوْ دُعَاۤءٍ عَرِيْضٍ ٥١
- wa-idhā
- وَإِذَآ
- और जब
- anʿamnā
- أَنْعَمْنَا
- इनआम करते हैं हम
- ʿalā
- عَلَى
- इन्सान पर
- l-insāni
- ٱلْإِنسَٰنِ
- इन्सान पर
- aʿraḍa
- أَعْرَضَ
- वो ऐराज़ करता है
- wanaā
- وَنَـَٔا
- और वो फेर लेता है
- bijānibihi
- بِجَانِبِهِۦ
- पहलू अपना
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- massahu
- مَسَّهُ
- पहुँचती है उसे
- l-sharu
- ٱلشَّرُّ
- तक्लीफ़
- fadhū
- فَذُو
- तो दुआ करने वाला हो जाता है
- duʿāin
- دُعَآءٍ
- तो दुआ करने वाला हो जाता है
- ʿarīḍin
- عَرِيضٍ
- लम्बी चौड़ी
जब हम मनुष्य पर अनुकम्पा करते है तो वह ध्यान में नहीं लाता और अपना पहलू फेर लेता है। किन्तु जब उसे तकलीफ़ छू जाती है, तो वह लम्बी-चौड़ी प्रार्थनाएँ करने लगता है ([४१] फुसिलत: 51)Tafseer (तफ़सीर )
५२
قُلْ اَرَءَيْتُمْ اِنْ كَانَ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ ثُمَّ كَفَرْتُمْ بِهٖ مَنْ اَضَلُّ مِمَّنْ هُوَ فِيْ شِقَاقٍۢ بَعِيْدٍ ٥٢
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- ara-aytum
- أَرَءَيْتُمْ
- क्या ग़ौर किया तुमने
- in
- إِن
- अगर
- kāna
- كَانَ
- है वो
- min
- مِنْ
- अल्लाह की तरफ़ से
- ʿindi
- عِندِ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की तरफ़ से
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- kafartum
- كَفَرْتُم
- कुफ़्र किया तुमने
- bihi
- بِهِۦ
- उसका
- man
- مَنْ
- कौन
- aḍallu
- أَضَلُّ
- ज़्यादा भटका हुआ है
- mimman
- مِمَّنْ
- उससे जो
- huwa
- هُوَ
- वो
- fī
- فِى
- मुख़ालफ़त में है
- shiqāqin
- شِقَاقٍۭ
- मुख़ालफ़त में है
- baʿīdin
- بَعِيدٍ
- बहुत दूर की
कह दो, 'क्या तुमने विचार किया, यदि वह (क़ुरआन) अल्लाह की ओर सो ही हुआ और तुमने उसका इनकार किया तो उससे बढ़कर भटका हुआ और कौन होगा जो विरोध में बहुत दूर जा पड़ा हो?' ([४१] फुसिलत: 52)Tafseer (तफ़सीर )
५३
سَنُرِيْهِمْ اٰيٰتِنَا فِى الْاٰفَاقِ وَفِيْٓ اَنْفُسِهِمْ حَتّٰى يَتَبَيَّنَ لَهُمْ اَنَّهُ الْحَقُّۗ اَوَلَمْ يَكْفِ بِرَبِّكَ اَنَّهٗ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيْدٌ ٥٣
- sanurīhim
- سَنُرِيهِمْ
- अनक़रीब हम दिखाएँगे उन्हे
- āyātinā
- ءَايَٰتِنَا
- निशानियाँ अपनी
- fī
- فِى
- आफ़ाक़ / अतराफ़ में
- l-āfāqi
- ٱلْءَافَاقِ
- आफ़ाक़ / अतराफ़ में
- wafī
- وَفِىٓ
- और उनके नफ़्सों में
- anfusihim
- أَنفُسِهِمْ
- और उनके नफ़्सों में
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- yatabayyana
- يَتَبَيَّنَ
- वाज़ेह हो जाएगा
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- annahu
- أَنَّهُ
- कि बेशक वो
- l-ḥaqu
- ٱلْحَقُّۗ
- हक़ है
- awalam
- أَوَلَمْ
- क्या भला नहीं
- yakfi
- يَكْفِ
- काफ़ी
- birabbika
- بِرَبِّكَ
- आपका रब (उस पर)
- annahu
- أَنَّهُۥ
- कि बेशक वो
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर
- kulli
- كُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ के
- shahīdun
- شَهِيدٌ
- ख़ूब गवाह है
शीघ्र ही हम उन्हें अपनी निशानियाँ वाह्य क्षेत्रों में दिखाएँगे और स्वयं उनके अपने भीतर भी, यहाँ तक कि उनपर स्पष्टा हो जाएगा कि वह (क़ुरआन) सत्य है। क्या तुम्हारा रब इस दृष्टि, से काफ़ी नहीं कि वह हर चीज़ का साक्षी है ([४१] फुसिलत: 53)Tafseer (तफ़सीर )
५४
اَلَآ اِنَّهُمْ فِيْ مِرْيَةٍ مِّنْ لِّقَاۤءِ رَبِّهِمْ ۗ اَلَآ اِنَّهٗ بِكُلِّ شَيْءٍ مُّحِيْطٌ ࣖ ٥٤
- alā
- أَلَآ
- ख़बरदार
- innahum
- إِنَّهُمْ
- बेशक वो
- fī
- فِى
- शक में हैं
- mir'yatin
- مِرْيَةٍ
- शक में हैं
- min
- مِّن
- मुलाक़ात से
- liqāi
- لِّقَآءِ
- मुलाक़ात से
- rabbihim
- رَبِّهِمْۗ
- अपने रब की
- alā
- أَلَآ
- ख़बरदार
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- bikulli
- بِكُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ का
- muḥīṭun
- مُّحِيطٌۢ
- एहाता करने वाला है
जान लो कि वे लोग अपने रब से मिलन के बारे में संदेह में पड़े हुए है। जान लो कि निश्चय ही वह हर चीज़ को अपने घेरे में लिए हुए है ([४१] फुसिलत: 54)Tafseer (तफ़सीर )