८१
وَيُرِيْكُمْ اٰيٰتِهٖۖ فَاَيَّ اٰيٰتِ اللّٰهِ تُنْكِرُوْنَ ٨١
- wayurīkum
- وَيُرِيكُمْ
- और वो दिखाता है तुम्हें
- āyātihi
- ءَايَٰتِهِۦ
- निशानियाँ अपनी
- fa-ayya
- فَأَىَّ
- पस कौन सी
- āyāti
- ءَايَٰتِ
- अल्लाह की निशानियों का
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की निशानियों का
- tunkirūna
- تُنكِرُونَ
- तुम इन्कार करोगे
और वह तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है। आख़िर तुम अल्लाह की कौन-सी निशानी को नहीं पहचानते? ([४०] अल-गाफिर: 81)Tafseer (तफ़सीर )
८२
اَفَلَمْ يَسِيْرُوْا فِى الْاَرْضِ فَيَنْظُرُوْا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۗ كَانُوْٓا اَكْثَرَ مِنْهُمْ وَاَشَدَّ قُوَّةً وَّاٰثَارًا فِى الْاَرْضِ فَمَآ اَغْنٰى عَنْهُمْ مَّا كَانُوْا يَكْسِبُوْنَ ٨٢
- afalam
- أَفَلَمْ
- क्या भला नहीं
- yasīrū
- يَسِيرُوا۟
- वो चले फिरे
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- fayanẓurū
- فَيَنظُرُوا۟
- तो वो देखते
- kayfa
- كَيْفَ
- कैसा
- kāna
- كَانَ
- हुआ
- ʿāqibatu
- عَٰقِبَةُ
- अंजाम
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों का जो
- min
- مِن
- उनसे पहले थे
- qablihim
- قَبْلِهِمْۚ
- उनसे पहले थे
- kānū
- كَانُوٓا۟
- थे वो
- akthara
- أَكْثَرَ
- अक्सर
- min'hum
- مِنْهُمْ
- उनसे
- wa-ashadda
- وَأَشَدَّ
- और ज़्यादा शदीद
- quwwatan
- قُوَّةً
- क़ुव्वत में
- waāthāran
- وَءَاثَارًا
- और आसार में
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- famā
- فَمَآ
- पस ना
- aghnā
- أَغْنَىٰ
- काम आया
- ʿanhum
- عَنْهُم
- उन्हें
- mā
- مَّا
- जो कुछ
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yaksibūna
- يَكْسِبُونَ
- वो कमाई करते
फिर क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उन लोगों का कैसा परिणाम हुआ, जो उनसे पहले गुज़र चुके है। वे उनसे अधिक थे और शक्ति और अपनी छोड़ी हुई निशानियों की दृष्टि से भी बढ़-चढ़कर थे। किन्तु जो कुछ वे कमाते थे, वह उनके कुछ भी काम न आया ([४०] अल-गाफिर: 82)Tafseer (तफ़सीर )
८३
فَلَمَّا جَاۤءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنٰتِ فَرِحُوْا بِمَا عِنْدَهُمْ مِّنَ الْعِلْمِ وَحَاقَ بِهِمْ مَّا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ ٨٣
- falammā
- فَلَمَّا
- तो जब
- jāathum
- جَآءَتْهُمْ
- आए उनके पास
- rusuluhum
- رُسُلُهُم
- रसूल उनके
- bil-bayināti
- بِٱلْبَيِّنَٰتِ
- साथ वाज़ेह दलाइल के
- fariḥū
- فَرِحُوا۟
- तो वो ख़ुश हुए
- bimā
- بِمَا
- उस पर जो
- ʿindahum
- عِندَهُم
- उनके पास था
- mina
- مِّنَ
- इल्म में से
- l-ʿil'mi
- ٱلْعِلْمِ
- इल्म में से
- waḥāqa
- وَحَاقَ
- और घेर लिया
- bihim
- بِهِم
- उन्हें
- mā
- مَّا
- उसने जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- bihi
- بِهِۦ
- जिसका
- yastahziūna
- يَسْتَهْزِءُونَ
- वो मज़ाक़ उड़ाते
फिर जब उनके रसूल उनके पास स्पष्ट प्रमाणों के साथ आए तो जो ज्ञान उनके अपने पास था वे उसी पर मग्न होते रहे और उनको उसी चीज़ ने आ घेरा जिसका वे परिहास करते थे ([४०] अल-गाफिर: 83)Tafseer (तफ़सीर )
८४
فَلَمَّا رَاَوْا بَأْسَنَاۗ قَالُوْٓا اٰمَنَّا بِاللّٰهِ وَحْدَهٗ وَكَفَرْنَا بِمَا كُنَّا بِهٖ مُشْرِكِيْنَ ٨٤
- falammā
- فَلَمَّا
- फिर जब
- ra-aw
- رَأَوْا۟
- उन्होंने देखा
- basanā
- بَأْسَنَا
- अज़ाब हमारा
- qālū
- قَالُوٓا۟
- उन्होंने कहा
- āmannā
- ءَامَنَّا
- ईमान लाए हम
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- waḥdahu
- وَحْدَهُۥ
- अकेले उसी पर
- wakafarnā
- وَكَفَرْنَا
- और इन्कार किया हमने
- bimā
- بِمَا
- उनका जिन्हें
- kunnā
- كُنَّا
- थे हम
- bihi
- بِهِۦ
- साथ उसके
- mush'rikīna
- مُشْرِكِينَ
- शरीक करते
फिर जब उन्होंने हमारी यातना देखी तो कहने लगे, 'हम ईमान लाए अल्लाह पर जो अकेला है और उसका इनकार किया जिसे हम उसका साझी ठहराते थे।' ([४०] अल-गाफिर: 84)Tafseer (तफ़सीर )
८५
فَلَمْ يَكُ يَنْفَعُهُمْ اِيْمَانُهُمْ لَمَّا رَاَوْا بَأْسَنَا ۗسُنَّتَ اللّٰهِ الَّتِيْ قَدْ خَلَتْ فِيْ عِبَادِهِۚ وَخَسِرَ هُنَالِكَ الْكٰفِرُوْنَ ࣖ ٨٥
- falam
- فَلَمْ
- पस ना
- yaku
- يَكُ
- था
- yanfaʿuhum
- يَنفَعُهُمْ
- कि नफ़ा देता उन्हें
- īmānuhum
- إِيمَٰنُهُمْ
- ईमान उनका
- lammā
- لَمَّا
- जब
- ra-aw
- رَأَوْا۟
- उन्होंने देखा
- basanā
- بَأْسَنَاۖ
- अज़ाब हमारा
- sunnata
- سُنَّتَ
- तरीक़ा है
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- allatī
- ٱلَّتِى
- वो जो
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- khalat
- خَلَتْ
- गुज़र चुका
- fī
- فِى
- उसके बन्दों में
- ʿibādihi
- عِبَادِهِۦۖ
- उसके बन्दों में
- wakhasira
- وَخَسِرَ
- और ख़सारे में पड़ गए
- hunālika
- هُنَالِكَ
- उस वक़्त
- l-kāfirūna
- ٱلْكَٰفِرُونَ
- काफ़िर
किन्तु उनका ईमान उनको कुछ भी लाभ नहीं पहुँचा सकता था जबकि उन्होंने हमारी यातना को देख लिया - यही अल्लाह की रीति है, जो उसके बन्दों में पहले से चली आई है - और उस समय इनकार करनेवाले घाटे में पड़कर रहे ([४०] अल-गाफिर: 85)Tafseer (तफ़सीर )