اِنَّا لَنَنْصُرُ رُسُلَنَا وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا فِى الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا وَيَوْمَ يَقُوْمُ الْاَشْهَادُۙ ٥١
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- lananṣuru
- لَنَنصُرُ
- अलबत्ता हम मदद करते हैं
- rusulanā
- رُسُلَنَا
- अपने रसूलों की
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और उनकी जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हैं
- fī
- فِى
- ज़िन्दगी में
- l-ḥayati
- ٱلْحَيَوٰةِ
- ज़िन्दगी में
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया की
- wayawma
- وَيَوْمَ
- और जिस दिन
- yaqūmu
- يَقُومُ
- खड़े होंगे
- l-ashhādu
- ٱلْأَشْهَٰدُ
- गवाह
निश्चय ही हम अपने रसूलों की और उन लोगों की जो ईमान लाए अवश्य सहायता करते है, सांसारिक जीवन में भी और उस दिन भी, जबकि गवाह खड़े होंगे ([४०] अल-गाफिर: 51)Tafseer (तफ़सीर )
يَوْمَ لَا يَنْفَعُ الظّٰلِمِيْنَ مَعْذِرَتُهُمْ وَلَهُمُ اللَّعْنَةُ وَلَهُمْ سُوْۤءُ الدَّارِ ٥٢
- yawma
- يَوْمَ
- जिस दिन
- lā
- لَا
- ना नफ़ा देगी
- yanfaʿu
- يَنفَعُ
- ना नफ़ा देगी
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- ज़ालिमों को
- maʿdhiratuhum
- مَعْذِرَتُهُمْۖ
- माज़रत उनकी
- walahumu
- وَلَهُمُ
- और उनके लिए है
- l-laʿnatu
- ٱللَّعْنَةُ
- लाअनत
- walahum
- وَلَهُمْ
- और उनके लिए है
- sūu
- سُوٓءُ
- बदतरीन
- l-dāri
- ٱلدَّارِ
- घर
जिस दिन ज़ालिमों को उनका उज्र (सफ़ाई पेश करना) कुछ भी लाभ न पहुँचाएगा, बल्कि उनके लिए तो लानत है और उनके लिए बुरा घर है ([४०] अल-गाफिर: 52)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْاٰتَيْنَا مُوْسٰى الْهُدٰى وَاَوْرَثْنَا بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ الْكِتٰبَۙ ٥٣
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- ātaynā
- ءَاتَيْنَا
- दी हमने
- mūsā
- مُوسَى
- मूसा को
- l-hudā
- ٱلْهُدَىٰ
- हिदायत
- wa-awrathnā
- وَأَوْرَثْنَا
- और वारिस बनाया हमने
- banī
- بَنِىٓ
- बनी इस्राईल को
- is'rāīla
- إِسْرَٰٓءِيلَ
- बनी इस्राईल को
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब का
मूसा को भी हम मार्ग दिखा चुके है, और इसराईल की सन्तान को हमने किताब का उत्ताराधिकारी बनाया, ([४०] अल-गाफिर: 53)Tafseer (तफ़सीर )
هُدًى وَّذِكْرٰى لِاُولِى الْاَلْبَابِ ٥٤
- hudan
- هُدًى
- जो हिदायत
- wadhik'rā
- وَذِكْرَىٰ
- और नसीहत थी
- li-ulī
- لِأُو۟لِى
- अक़्ल वालों के लिए
- l-albābi
- ٱلْأَلْبَٰبِ
- अक़्ल वालों के लिए
जो बुद्धि और समझवालों के लिए मार्गदर्शन और अनुस्मृति थी ([४०] अल-गाफिर: 54)Tafseer (तफ़सीर )
فَاصْبِرْ اِنَّ وَعْدَ اللّٰهِ حَقٌّ وَّاسْتَغْفِرْ لِذَنْۢبِكَ وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ بِالْعَشِيِّ وَالْاِبْكَارِ ٥٥
- fa-iṣ'bir
- فَٱصْبِرْ
- पस सब्र कीजिए
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- waʿda
- وَعْدَ
- वादा
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- ḥaqqun
- حَقٌّ
- सच्चा है
- wa-is'taghfir
- وَٱسْتَغْفِرْ
- और बख़्शिश तलब कीजिए
- lidhanbika
- لِذَنۢبِكَ
- अपने गुनाह की
- wasabbiḥ
- وَسَبِّحْ
- और तस्बीह कीजिए
- biḥamdi
- بِحَمْدِ
- साथ हम्द के
- rabbika
- رَبِّكَ
- अपने रब की
- bil-ʿashiyi
- بِٱلْعَشِىِّ
- शाम के वक़्त
- wal-ib'kāri
- وَٱلْإِبْكَٰرِ
- और सुब्ह के वक़्त
अतः धैर्य से काम लो। निश्चय ही अल्लाह का वादा सच्चा है और अपने क़सूर की क्षमा चाहो और संध्या समय और प्रातः की घड़ियों में अपने रब की प्रशंसा की तसबीह करो ([४०] अल-गाफिर: 55)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ يُجَادِلُوْنَ فِيْٓ اٰيٰتِ اللّٰهِ بِغَيْرِ سُلْطٰنٍ اَتٰىهُمْ ۙاِنْ فِيْ صُدُوْرِهِمْ اِلَّا كِبْرٌ مَّا هُمْ بِبَالِغِيْهِۚ فَاسْتَعِذْ بِاللّٰهِ ۗاِنَّهٗ هُوَ السَّمِيْعُ الْبَصِيْرُ ٥٦
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- yujādilūna
- يُجَٰدِلُونَ
- झगड़ते हैं
- fī
- فِىٓ
- आयात में
- āyāti
- ءَايَٰتِ
- आयात में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- bighayri
- بِغَيْرِ
- बग़ैर
- sul'ṭānin
- سُلْطَٰنٍ
- किसी दलील के
- atāhum
- أَتَىٰهُمْۙ
- जो आई हो उनके पास
- in
- إِن
- नहीं
- fī
- فِى
- उनके सीनों में
- ṣudūrihim
- صُدُورِهِمْ
- उनके सीनों में
- illā
- إِلَّا
- मगर
- kib'run
- كِبْرٌ
- बड़ाई
- mā
- مَّا
- नहीं
- hum
- هُم
- वो
- bibālighīhi
- بِبَٰلِغِيهِۚ
- पहुँचने वाले उसे
- fa-is'taʿidh
- فَٱسْتَعِذْ
- पस पनाह तलब कीजिए
- bil-lahi
- بِٱللَّهِۖ
- अल्लाह की
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- huwa
- هُوَ
- वो ही है
- l-samīʿu
- ٱلسَّمِيعُ
- ख़ूब सुनने वाला
- l-baṣīru
- ٱلْبَصِيرُ
- ख़ूब देखने वाला
जो लोग बिना किसी ऐसे प्रमाण के जो उनके पास आया हो अल्लाह की आयतों में झगड़ते है उनके सीनों में केवल अहंकार है जिसतक वे पहुँचनेवाले नहीं। अतः अल्लाह की शरण लो। निश्चय ही वह सुनता, देखता है ([४०] अल-गाफिर: 56)Tafseer (तफ़सीर )
لَخَلْقُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ اَكْبَرُ مِنْ خَلْقِ النَّاسِ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُوْنَ ٥٧
- lakhalqu
- لَخَلْقُ
- यक़ीनन पैदा करना
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِ
- और ज़मीन का
- akbaru
- أَكْبَرُ
- ज़्यादा बड़ा है
- min
- مِنْ
- पैदा करने से
- khalqi
- خَلْقِ
- पैदा करने से
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- इन्सानों के
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- akthara
- أَكْثَرَ
- अक्सर
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोग
- lā
- لَا
- नहीं वो इल्म रखते
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- नहीं वो इल्म रखते
निस्संदेह, आकाशों और धरती को पैदा करना लोगों को पैदा करने की अपेक्षा अधिक बड़ा (कठिन) काम है। किन्तु अधिकतर लोग नहीं जानते ([४०] अल-गाफिर: 57)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا يَسْتَوِى الْاَعْمٰى وَالْبَصِيْرُ ەۙ وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ وَلَا الْمُسِيْۤئُ ۗقَلِيْلًا مَّا تَتَذَكَّرُوْنَ ٥٨
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- yastawī
- يَسْتَوِى
- बराबर हो सकते
- l-aʿmā
- ٱلْأَعْمَىٰ
- अंधा
- wal-baṣīru
- وَٱلْبَصِيرُ
- और देखने वाला
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- waʿamilū
- وَعَمِلُوا۟
- और उन्होंने अमल किए
- l-ṣāliḥāti
- ٱلصَّٰلِحَٰتِ
- नेक
- walā
- وَلَا
- और ना
- l-musīu
- ٱلْمُسِىٓءُۚ
- बदकार
- qalīlan
- قَلِيلًا
- कितना कम
- mā
- مَّا
- तुम नसीहत पकड़ते हो
- tatadhakkarūna
- تَتَذَكَّرُونَ
- तुम नसीहत पकड़ते हो
अंधा और आँखोंवाला बराबर नहीं होते, और वे लोग भी परस्पर बराबर नहीं होते जिन्होंने ईमान लाकर अच्छे कर्म किए, और न बुरे कर्म करनेवाले ही परस्पर बराबर हो सकते है। तुम होश से काम थोड़े ही लेते हो! ([४०] अल-गाफिर: 58)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ السَّاعَةَ لَاٰتِيَةٌ لَّا رَيْبَ فِيْهَا ۖوَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يُؤْمِنُوْنَ ٥٩
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-sāʿata
- ٱلسَّاعَةَ
- क़यामत
- laātiyatun
- لَءَاتِيَةٌ
- अलबत्ता आने वाली है
- lā
- لَّا
- नहीं कोई शक
- rayba
- رَيْبَ
- नहीं कोई शक
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- akthara
- أَكْثَرَ
- अक्सर
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोग
- lā
- لَا
- नहीं वो ईमान रखते
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- नहीं वो ईमान रखते
निश्चय ही क़ियामत की घड़ी आनेवाली है, इसमें कोई सन्देह नहीं। किन्तु अधिकतर लोग मानते नही ([४०] अल-गाफिर: 59)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَالَ رَبُّكُمُ ادْعُوْنِيْٓ اَسْتَجِبْ لَكُمْ ۗاِنَّ الَّذِيْنَ يَسْتَكْبِرُوْنَ عَنْ عِبَادَتِيْ سَيَدْخُلُوْنَ جَهَنَّمَ دَاخِرِيْنَ ࣖࣖࣖ ٦٠
- waqāla
- وَقَالَ
- और कहा
- rabbukumu
- رَبُّكُمُ
- तुम्हारे रब ने
- id'ʿūnī
- ٱدْعُونِىٓ
- दुआ करो मुझसे
- astajib
- أَسْتَجِبْ
- मैं क़ुबूल करूँगा
- lakum
- لَكُمْۚ
- तुम्हारे लिए
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- yastakbirūna
- يَسْتَكْبِرُونَ
- तकब्बुर करते है
- ʿan
- عَنْ
- मेरी इबादत से
- ʿibādatī
- عِبَادَتِى
- मेरी इबादत से
- sayadkhulūna
- سَيَدْخُلُونَ
- अनक़रीब वो दाख़िल होंगे
- jahannama
- جَهَنَّمَ
- जहन्नम में
- dākhirīna
- دَاخِرِينَ
- ज़लील व ख़्वार हो कर
तुम्हारे रब ने कहा कि 'तुम मुझे पुकारो, मैं तुम्हारी प्रार्थनाएँ स्वीकार करूँगा।' जो लोग मेरी बन्दगी के मामले में घमंड से काम लेते है निश्चय ही वे शीघ्र ही अपमानित होकर जहन्नम में प्रवेश करेंगे ([४०] अल-गाफिर: 60)Tafseer (तफ़सीर )