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सूरा अल-गाफिर - Page: 5

Ghafir

(क्षमाशील)

४१

۞ وَيٰقَوْمِ مَا لِيْٓ اَدْعُوْكُمْ اِلَى النَّجٰوةِ وَتَدْعُوْنَنِيْٓ اِلَى النَّارِۗ ٤١

wayāqawmi
وَيَٰقَوْمِ
और ऐ मेरी क़ौम
مَا
क्या है
لِىٓ
मुझे
adʿūkum
أَدْعُوكُمْ
मैं बुलाता हूँ तुम्हें
ilā
إِلَى
तरफ़ निजात के
l-najati
ٱلنَّجَوٰةِ
तरफ़ निजात के
watadʿūnanī
وَتَدْعُونَنِىٓ
और तुम बुलाते हो मुझे
ilā
إِلَى
तरफ़ आग के
l-nāri
ٱلنَّارِ
तरफ़ आग के
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यह मेरे साथ क्या मामला है कि मैं तो तुम्हें मुक्ति की ओर बुलाता हूँ और तुम मुझे आग की ओर बुला रहे हो? ([४०] अल-गाफिर: 41)
Tafseer (तफ़सीर )
४२

تَدْعُوْنَنِيْ لِاَكْفُرَ بِاللّٰهِ وَاُشْرِكَ بِهٖ مَا لَيْسَ لِيْ بِهٖ عِلْمٌ وَّاَنَا۠ اَدْعُوْكُمْ اِلَى الْعَزِيْزِ الْغَفَّارِ ٤٢

tadʿūnanī
تَدْعُونَنِى
तुम बुलाते हो मुझे
li-akfura
لِأَكْفُرَ
कि मैं कुफ़्र करूँ
bil-lahi
بِٱللَّهِ
साथ अल्लाह के
wa-ush'rika
وَأُشْرِكَ
और मैं शरीक ठहराऊँ
bihi
بِهِۦ
साथ उसके
مَا
उसको जो
laysa
لَيْسَ
नहीं है
لِى
मुझे
bihi
بِهِۦ
उसका
ʿil'mun
عِلْمٌ
कोई इल्म
wa-anā
وَأَنَا۠
और मैं
adʿūkum
أَدْعُوكُمْ
मैं बुलाता हूँ तुम्हें
ilā
إِلَى
तरफ़
l-ʿazīzi
ٱلْعَزِيزِ
बहुत ज़बरदस्त के
l-ghafāri
ٱلْغَفَّٰرِ
बहुत बख़्शने वाले के
तुम मुझे बुला रहे हो कि मैं अल्लाह के साथ कुफ़्र करूँ और उसके साथ उसे साझी ठहराऊँ जिसका मुझे कोई ज्ञान नहीं, जबकि मैं तुम्हें बुला रहा हूँ उसकी ओर जो प्रभुत्वशाली, अत्यन्त क्षमाशील है ([४०] अल-गाफिर: 42)
Tafseer (तफ़सीर )
४३

لَا جَرَمَ اَنَّمَا تَدْعُوْنَنِيْٓ اِلَيْهِ لَيْسَ لَهٗ دَعْوَةٌ فِى الدُّنْيَا وَلَا فِى الْاٰخِرَةِ وَاَنَّ مَرَدَّنَآ اِلَى اللّٰهِ وَاَنَّ الْمُسْرِفِيْنَ هُمْ اَصْحٰبُ النَّارِ ٤٣

لَا
नहीं कोई शक
jarama
جَرَمَ
नहीं कोई शक
annamā
أَنَّمَا
बेशक
tadʿūnanī
تَدْعُونَنِىٓ
तुम बुलाते हो मुझे
ilayhi
إِلَيْهِ
जिसकी तरफ़
laysa
لَيْسَ
नहीं है
lahu
لَهُۥ
उसके लिए
daʿwatun
دَعْوَةٌ
कोई पुकारा जाना
فِى
दुनिया में
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَا
दुनिया में
walā
وَلَا
और ना
فِى
आख़िरत में
l-ākhirati
ٱلْءَاخِرَةِ
आख़िरत में
wa-anna
وَأَنَّ
और बेशक
maraddanā
مَرَدَّنَآ
पलटना हमारा
ilā
إِلَى
तरफ़ अल्लाह के है
l-lahi
ٱللَّهِ
तरफ़ अल्लाह के है
wa-anna
وَأَنَّ
और बेशक
l-mus'rifīna
ٱلْمُسْرِفِينَ
जो हद से बढ़ने वाले हैं
hum
هُمْ
वो ही हैं
aṣḥābu
أَصْحَٰبُ
साथी
l-nāri
ٱلنَّارِ
आग के
निस्संदेह तुम मुझे जिसकी ओर बुलाते हो उसके लिए न संसार में आमंत्रण है और न आख़िरत (परलोक) में और यह की हमें लौटना भी अल्लाह ही की ओर है और यह कि जो मर्यादाही है, वही आग (में पड़नेवाले) वाले है ([४०] अल-गाफिर: 43)
Tafseer (तफ़सीर )
४४

فَسَتَذْكُرُوْنَ مَآ اَقُوْلُ لَكُمْۗ وَاُفَوِّضُ اَمْرِيْٓ اِلَى اللّٰهِ ۗاِنَّ اللّٰهَ بَصِيْرٌ ۢبِالْعِبَادِ ٤٤

fasatadhkurūna
فَسَتَذْكُرُونَ
पस अनक़रीब तुम याद करोगे
مَآ
जो
aqūlu
أَقُولُ
मैं कह रहा हूँ
lakum
لَكُمْۚ
तुम्हें
wa-ufawwiḍu
وَأُفَوِّضُ
और मैं सुपुर्द करता हूँ
amrī
أَمْرِىٓ
मामला अपना
ilā
إِلَى
तरफ़ अल्लाह के
l-lahi
ٱللَّهِۚ
तरफ़ अल्लाह के
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
baṣīrun
بَصِيرٌۢ
ख़ूब देखने वाला है
bil-ʿibādi
بِٱلْعِبَادِ
बन्दों को
अतः शीघ्र ही तुम याद करोगे, जो कुछ मैं तुमसे कह रहा हूँ। मैं तो अपना मामला अल्लाह को सौंपता हूँ। निस्संदेह अल्लाह की दृष्टि सब बन्दों पर है ([४०] अल-गाफिर: 44)
Tafseer (तफ़सीर )
४५

فَوَقٰىهُ اللّٰهُ سَيِّاٰتِ مَا مَكَرُوْا وَحَاقَ بِاٰلِ فِرْعَوْنَ سُوْۤءُ الْعَذَابِۚ ٤٥

fawaqāhu
فَوَقَىٰهُ
पस बचा लिया उसे
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
sayyiāti
سَيِّـَٔاتِ
बुराइयों से
مَا
उसकी जो
makarū
مَكَرُوا۟ۖ
उन्होंने मकर किया
waḥāqa
وَحَاقَ
और घेर लिया
biāli
بِـَٔالِ
आले फ़िरऔन को
fir'ʿawna
فِرْعَوْنَ
आले फ़िरऔन को
sūu
سُوٓءُ
बुरे
l-ʿadhābi
ٱلْعَذَابِ
अज़ाब ने
अन्ततः जो चाल वे चल रहे थे, उसकी बुराइयों से अल्लाह ने उसे बचा लिया और फ़िरऔनियों को बुरी यातना ने आ घेरा; ([४०] अल-गाफिर: 45)
Tafseer (तफ़सीर )
४६

اَلنَّارُ يُعْرَضُوْنَ عَلَيْهَا غُدُوًّا وَّعَشِيًّا ۚوَيَوْمَ تَقُوْمُ السَّاعَةُ ۗ اَدْخِلُوْٓا اٰلَ فِرْعَوْنَ اَشَدَّ الْعَذَابِ ٤٦

al-nāru
ٱلنَّارُ
आग के
yuʿ'raḍūna
يُعْرَضُونَ
वो पेश किए जाते हैं
ʿalayhā
عَلَيْهَا
उस पर
ghuduwwan
غُدُوًّا
सुब्ह
waʿashiyyan
وَعَشِيًّاۖ
और शाम
wayawma
وَيَوْمَ
और जिस दिन
taqūmu
تَقُومُ
क़ायम होगी
l-sāʿatu
ٱلسَّاعَةُ
क़यामत
adkhilū
أَدْخِلُوٓا۟
(कहा जाएगा)कि दाख़िल करो
āla
ءَالَ
आले फ़िरऔन को
fir'ʿawna
فِرْعَوْنَ
आले फ़िरऔन को
ashadda
أَشَدَّ
शदीद तरीन
l-ʿadhābi
ٱلْعَذَابِ
अज़ाब में
अर्थात आग ने; जिसके सामने वे प्रातःकाल और सायंकाल पेश किए जाते है। और जिन दिन क़ियामत की घड़ी घटित होगी (कहा जाएगा), 'फ़िरऔन के लोगों को निकृष्ट तम यातना में प्रविष्टी कराओ!' ([४०] अल-गाफिर: 46)
Tafseer (तफ़सीर )
४७

وَاِذْ يَتَحَاۤجُّوْنَ فِى النَّارِ فَيَقُوْلُ الضُّعَفٰۤؤُ لِلَّذِيْنَ اسْتَكْبَرُوْٓا اِنَّا كُنَّا لَكُمْ تَبَعًا فَهَلْ اَنْتُمْ مُّغْنُوْنَ عَنَّا نَصِيْبًا مِّنَ النَّارِ ٤٧

wa-idh
وَإِذْ
और जब
yataḥājjūna
يَتَحَآجُّونَ
वो बाहम झाड़ेंगे
فِى
आग में
l-nāri
ٱلنَّارِ
आग में
fayaqūlu
فَيَقُولُ
तो कहेंगे
l-ḍuʿafāu
ٱلضُّعَفَٰٓؤُا۟
कमज़ोर लोग
lilladhīna
لِلَّذِينَ
उनसे जिन्होंने
is'takbarū
ٱسْتَكْبَرُوٓا۟
तकब्बुर किया था
innā
إِنَّا
बेशक हम
kunnā
كُنَّا
थे हम
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे
tabaʿan
تَبَعًا
ताबेअ/ पैरवी करने वाले
fahal
فَهَلْ
तो क्या
antum
أَنتُم
तुम
mugh'nūna
مُّغْنُونَ
दूर करने वाले हो
ʿannā
عَنَّا
हमसे
naṣīban
نَصِيبًا
कुछ हिस्सा
mina
مِّنَ
आग से
l-nāri
ٱلنَّارِ
आग से
और सोचो जबकि वे आग के भीतर एक-दूसरे से झगड़ रहे होंगे, तो कमज़ोर लोग उन लोगों से, जो बड़े बनते थे, कहेंगे, 'हम तो तुम्हारे पीछे चलनेवाले थे। अब क्या तुम हमपर से आग का कुछ भाग हटा सकते हो?' ([४०] अल-गाफिर: 47)
Tafseer (तफ़सीर )
४८

قَالَ الَّذِيْنَ اسْتَكْبَرُوْٓا اِنَّا كُلٌّ فِيْهَآ اِنَّ اللّٰهَ قَدْ حَكَمَ بَيْنَ الْعِبَادِ ٤٨

qāla
قَالَ
कहेंगे
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
is'takbarū
ٱسْتَكْبَرُوٓا۟
तकब्बुर किया था
innā
إِنَّا
बेशक हम
kullun
كُلٌّ
सब ही
fīhā
فِيهَآ
उस में हैं
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
qad
قَدْ
तहक़ीक़
ḥakama
حَكَمَ
फ़ैसला कर चुका है
bayna
بَيْنَ
दर्मियान
l-ʿibādi
ٱلْعِبَادِ
बन्दों के
वे लोग, जो बड़े बनते थे, कहेंगे, 'हममें से प्रत्येक इसी में पड़ा है। निश्चय ही अल्लाह बन्दों के बीच फ़ैसला कर चुका।' ([४०] अल-गाफिर: 48)
Tafseer (तफ़सीर )
४९

وَقَالَ الَّذِيْنَ فِى النَّارِ لِخَزَنَةِ جَهَنَّمَ ادْعُوْا رَبَّكُمْ يُخَفِّفْ عَنَّا يَوْمًا مِّنَ الْعَذَابِ ٤٩

waqāla
وَقَالَ
और कहेंगे
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
فِى
आग में (होंगे)
l-nāri
ٱلنَّارِ
आग में (होंगे)
likhazanati
لِخَزَنَةِ
दर्बानों से
jahannama
جَهَنَّمَ
जहन्नम के
id'ʿū
ٱدْعُوا۟
दुआ करो
rabbakum
رَبَّكُمْ
अपने रब से
yukhaffif
يُخَفِّفْ
वो हल्का कर दे
ʿannā
عَنَّا
हमसे
yawman
يَوْمًا
एक दिन
mina
مِّنَ
अज़ाब से
l-ʿadhābi
ٱلْعَذَابِ
अज़ाब से
जो लोग आग में होंगे वे जहन्नम के प्रहरियों से कहेंगे कि 'अपने रब को पुकारो कि वह हमपर से एक दिन यातना कुछ हल्की कर दे!' ([४०] अल-गाफिर: 49)
Tafseer (तफ़सीर )
५०

قَالُوْٓا اَوَلَمْ تَكُ تَأْتِيْكُمْ رُسُلُكُمْ بِالْبَيِّنٰتِ ۗقَالُوْا بَلٰىۗ قَالُوْا فَادْعُوْا ۚوَمَا دُعٰۤؤُا الْكٰفِرِيْنَ اِلَّا فِيْ ضَلٰلٍ ࣖ ٥٠

qālū
قَالُوٓا۟
वो कहेंगे
awalam
أَوَلَمْ
क्या भला नहीं
taku
تَكُ
थे
tatīkum
تَأْتِيكُمْ
आए तुम्हारे पास
rusulukum
رُسُلُكُم
रसूल तुम्हारे
bil-bayināti
بِٱلْبَيِّنَٰتِۖ
साथ वाज़ेह दलाइल के
qālū
قَالُوا۟
वो कहेंगे
balā
بَلَىٰۚ
क्यों नहीं
qālū
قَالُوا۟
वो कहेंगे
fa-id'ʿū
فَٱدْعُوا۟ۗ
पस तुम दुआ करो
wamā
وَمَا
और नहीं
duʿāu
دُعَٰٓؤُا۟
दुआ
l-kāfirīna
ٱلْكَٰفِرِينَ
काफ़िरों की
illā
إِلَّا
मगर
فِى
गुमराही में
ḍalālin
ضَلَٰلٍ
गुमराही में
वे कहेंगे, 'क्या तुम्हारे पास तुम्हारे रसूल खुले प्रमाण लेकर नहीं आते रहे?' कहेंगे, 'क्यों नहीं!' वे कहेंगे, 'फिर तो तुम्ही पुकारो।' किन्तु इनकार करनेवालों की पुकार तो बस भटककर ही रह जाती है ([४०] अल-गाफिर: 50)
Tafseer (तफ़सीर )