قَالُوْا رَبَّنَآ اَمَتَّنَا اثْنَتَيْنِ وَاَحْيَيْتَنَا اثْنَتَيْنِ فَاعْتَرَفْنَا بِذُنُوْبِنَا فَهَلْ اِلٰى خُرُوْجٍ مِّنْ سَبِيْلٍ ١١
- qālū
- قَالُوا۟
- वो कहेंगे
- rabbanā
- رَبَّنَآ
- ऐ हमारे रब
- amattanā
- أَمَتَّنَا
- मौत दी तू ने हमें
- ith'natayni
- ٱثْنَتَيْنِ
- दो बार
- wa-aḥyaytanā
- وَأَحْيَيْتَنَا
- और ज़िन्दगी बख़्शी तू ने हमें
- ith'natayni
- ٱثْنَتَيْنِ
- दो बार
- fa-iʿ'tarafnā
- فَٱعْتَرَفْنَا
- तो एतराफ़ कर लिया हमने
- bidhunūbinā
- بِذُنُوبِنَا
- अपने गुनाहों का
- fahal
- فَهَلْ
- तो क्या है
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ निकलने के
- khurūjin
- خُرُوجٍ
- तरफ़ निकलने के
- min
- مِّن
- कोई रास्ता
- sabīlin
- سَبِيلٍ
- कोई रास्ता
वे कहेंगे, 'ऐ हमारे रब! तूने हमें दो बार मृत रखा और दो बार जीवन प्रदान किया। अब हमने अपने गुनाहों को स्वीकार किया, तो क्या अब (यहाँ से) निकलने का भी कोई मार्ग है?' ([४०] अल-गाफिर: 11)Tafseer (तफ़सीर )
ذٰلِكُمْ بِاَنَّهٗٓ اِذَا دُعِيَ اللّٰهُ وَحْدَهٗ كَفَرْتُمْۚ وَاِنْ يُّشْرَكْ بِهٖ تُؤْمِنُوْا ۗفَالْحُكْمُ لِلّٰهِ الْعَلِيِّ الْكَبِيْرِ ١٢
- dhālikum
- ذَٰلِكُم
- ये तुम्हारा(अंजाम)
- bi-annahu
- بِأَنَّهُۥٓ
- इस लिए कि
- idhā
- إِذَا
- जब
- duʿiya
- دُعِىَ
- पुकारा जाता
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- waḥdahu
- وَحْدَهُۥ
- अकेले उसी को
- kafartum
- كَفَرْتُمْۖ
- इन्कार करते थे तुम
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- yush'rak
- يُشْرَكْ
- शरीक ठहराया जाता
- bihi
- بِهِۦ
- साथ उसके
- tu'minū
- تُؤْمِنُوا۟ۚ
- तो तुम मान जाते
- fal-ḥuk'mu
- فَٱلْحُكْمُ
- पस फ़ैसला
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह ही के लिए है
- l-ʿaliyi
- ٱلْعَلِىِّ
- जो बहुत बुलन्द है
- l-kabīri
- ٱلْكَبِيرِ
- बहुत बड़ा है
वह (बुरा परिणाम) तो इसलिए सामने आएगा कि जब अकेला अल्लाह को पुकारा जाता है तो तुम इनकार करते हो। किन्तु यदि उसके साथ साझी ठहराया जाए तो तुम मान लेते हो। तो अब फ़ैसला तो अल्लाह ही के हाथ में है, जो सर्वोच्च बड़ा महान है। - ([४०] अल-गाफिर: 12)Tafseer (तफ़सीर )
هُوَ الَّذِيْ يُرِيْكُمْ اٰيٰتِهٖ وَيُنَزِّلُ لَكُمْ مِّنَ السَّمَاۤءِ رِزْقًا ۗوَمَا يَتَذَكَّرُ اِلَّا مَنْ يُّنِيْبُ ١٣
- huwa
- هُوَ
- वो ही है
- alladhī
- ٱلَّذِى
- जो
- yurīkum
- يُرِيكُمْ
- दिखाता है तुम्हें
- āyātihi
- ءَايَٰتِهِۦ
- निशानियाँ अपनी
- wayunazzilu
- وَيُنَزِّلُ
- और उतारता है
- lakum
- لَكُم
- तुम्हारे लिए
- mina
- مِّنَ
- आसमान से
- l-samāi
- ٱلسَّمَآءِ
- आसमान से
- riz'qan
- رِزْقًاۚ
- रिज़्क़
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- yatadhakkaru
- يَتَذَكَّرُ
- नसीहत पकड़ता
- illā
- إِلَّا
- मगर
- man
- مَن
- वो जो
- yunību
- يُنِيبُ
- वो रुजूअ करता है
वही है जो तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है और तुम्हारे लिए आकाश से रोज़ी उतारता है, किन्तु याददिहानी तो बस वही हासिल करता है जो (उसकी ओर) रुजू करे ([४०] अल-गाफिर: 13)Tafseer (तफ़सीर )
فَادْعُوا اللّٰهَ مُخْلِصِيْنَ لَهُ الدِّيْنَ وَلَوْ كَرِهَ الْكٰفِرُوْنَ ١٤
- fa-id'ʿū
- فَٱدْعُوا۟
- पस पुकारो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह को
- mukh'liṣīna
- مُخْلِصِينَ
- ख़ालिस करने वाले हो कर
- lahu
- لَهُ
- उसी के लिए
- l-dīna
- ٱلدِّينَ
- दीन को
- walaw
- وَلَوْ
- और अगरचे
- kariha
- كَرِهَ
- नापसंद करें
- l-kāfirūna
- ٱلْكَٰفِرُونَ
- काफ़िर
अतः तुम अल्लाह ही को, धर्म को उसी के लिए विशुद्ध करते हुए, पुकारो, यद्यपि इनकार करनेवालों को अप्रिय ही लगे। - ([४०] अल-गाफिर: 14)Tafseer (तफ़सीर )
رَفِيْعُ الدَّرَجٰتِ ذُو الْعَرْشِۚ يُلْقِى الرُّوْحَ مِنْ اَمْرِهٖ عَلٰى مَنْ يَّشَاۤءُ مِنْ عِبَادِهٖ لِيُنْذِرَ يَوْمَ التَّلَاقِۙ ١٥
- rafīʿu
- رَفِيعُ
- बुलन्द
- l-darajāti
- ٱلدَّرَجَٰتِ
- दर्जों वाला है
- dhū
- ذُو
- अर्श वाला है
- l-ʿarshi
- ٱلْعَرْشِ
- अर्श वाला है
- yul'qī
- يُلْقِى
- वो डालता है
- l-rūḥa
- ٱلرُّوحَ
- वही को
- min
- مِنْ
- अपने हुक्म से
- amrihi
- أَمْرِهِۦ
- अपने हुक्म से
- ʿalā
- عَلَىٰ
- जिस पर
- man
- مَن
- जिस पर
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- min
- مِنْ
- अपने बन्दों में से
- ʿibādihi
- عِبَادِهِۦ
- अपने बन्दों में से
- liyundhira
- لِيُنذِرَ
- ताकि वो डराए
- yawma
- يَوْمَ
- दिन से
- l-talāqi
- ٱلتَّلَاقِ
- मुलाक़ात के
वह ऊँचे दर्जोवाला, सिंहासनवाला है, अपने बन्दों में से जिसपर चाहता है, अपने हुक्म में से जिसपर चाहता है, अपने हुक्म से रूह उतारता है, ताकि वह मुलाक़ात के दिन से सावधान कर दे ([४०] अल-गाफिर: 15)Tafseer (तफ़सीर )
يَوْمَ هُمْ بَارِزُوْنَ ۚ لَا يَخْفٰى عَلَى اللّٰهِ مِنْهُمْ شَيْءٌ ۗلِمَنِ الْمُلْكُ الْيَوْمَ ۗ لِلّٰهِ الْوَاحِدِ الْقَهَّارِ ١٦
- yawma
- يَوْمَ
- जिस दिन
- hum
- هُم
- वो
- bārizūna
- بَٰرِزُونَۖ
- ज़ाहिर होंगे
- lā
- لَا
- ना
- yakhfā
- يَخْفَىٰ
- छुपी होगी
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- min'hum
- مِنْهُمْ
- उन की
- shayon
- شَىْءٌۚ
- कोई चीज़
- limani
- لِّمَنِ
- किस के लिए है
- l-mul'ku
- ٱلْمُلْكُ
- बादशाहत
- l-yawma
- ٱلْيَوْمَۖ
- आज के दिन
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह ही के लिए है
- l-wāḥidi
- ٱلْوَٰحِدِ
- जो एक है
- l-qahāri
- ٱلْقَهَّارِ
- सब पर ग़ालिब है
जिस दिन वे खुले रूप में सामने उपस्थित होंगे, उनकी कोई चीज़ अल्लाह से छिपी न रहेगी, 'आज किसकी बादशाही है?' 'अल्लाह की, जो अकेला सबपर क़ाबू रखनेवाला है।' ([४०] अल-गाफिर: 16)Tafseer (तफ़सीर )
اَلْيَوْمَ تُجْزٰى كُلُّ نَفْسٍۢ بِمَا كَسَبَتْ ۗ لَا ظُلْمَ الْيَوْمَ ۗاِنَّ اللّٰهَ سَرِيْعُ الْحِسَابِ ١٧
- al-yawma
- ٱلْيَوْمَ
- आज के दिन
- tuj'zā
- تُجْزَىٰ
- बदला दिया जाएगा
- kullu
- كُلُّ
- हर
- nafsin
- نَفْسٍۭ
- नफ़्स को
- bimā
- بِمَا
- उसका जो
- kasabat
- كَسَبَتْۚ
- उसने कमाई की
- lā
- لَا
- नहीं कोई ज़ुल्म होगा
- ẓul'ma
- ظُلْمَ
- नहीं कोई ज़ुल्म होगा
- l-yawma
- ٱلْيَوْمَۚ
- आज के दिन
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- sarīʿu
- سَرِيعُ
- जल्द लेने वाला है
- l-ḥisābi
- ٱلْحِسَابِ
- हिसाब
आज प्रत्येक व्यक्ति को उसकी कमाई का बदला दिया जाएगा। आज कोई ज़ुल्म न होगा। निश्चय ही अल्लाह हिसाब लेने में बहुत तेज है ([४०] अल-गाफिर: 17)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَنْذِرْهُمْ يَوْمَ الْاٰزِفَةِ اِذِ الْقُلُوْبُ لَدَى الْحَنَاجِرِ كَاظِمِيْنَ ەۗ مَا لِلظّٰلِمِيْنَ مِنْ حَمِيْمٍ وَّلَا شَفِيْعٍ يُّطَاعُۗ ١٨
- wa-andhir'hum
- وَأَنذِرْهُمْ
- और आप डराऐं उन्हें
- yawma
- يَوْمَ
- उस दिन से
- l-āzifati
- ٱلْءَازِفَةِ
- जो क़रीब आ लगा है
- idhi
- إِذِ
- जब
- l-qulūbu
- ٱلْقُلُوبُ
- दिल
- ladā
- لَدَى
- क़रीब(होंगे)
- l-ḥanājiri
- ٱلْحَنَاجِرِ
- हलक़ के
- kāẓimīna
- كَٰظِمِينَۚ
- ग़म से भरे हुए
- mā
- مَا
- नहीं
- lilẓẓālimīna
- لِلظَّٰلِمِينَ
- ज़ालिमों के लिए
- min
- مِنْ
- कोई गहरा दोस्त
- ḥamīmin
- حَمِيمٍ
- कोई गहरा दोस्त
- walā
- وَلَا
- और ना
- shafīʿin
- شَفِيعٍ
- कोई सिफ़ारिशी
- yuṭāʿu
- يُطَاعُ
- जिस की बात मानी जाए
(उन्हें अल्लाह की ओर बुलाओ) और उन्हें निकट आ जानेवाले (क़ियामत के) दिन से सावधान कर दो, जबकि उर (हृदय) कंठ को आ लगे होंगे और वे दबा रहे होंगे। ज़ालिमों का न कोई घनिष्ट मित्र होगा और न ऐसा सिफ़ारिशी जिसकी बात मानी जाए ([४०] अल-गाफिर: 18)Tafseer (तफ़सीर )
يَعْلَمُ خَاۤىِٕنَةَ الْاَعْيُنِ وَمَا تُخْفِى الصُّدُوْرُ ١٩
- yaʿlamu
- يَعْلَمُ
- वो जानता है
- khāinata
- خَآئِنَةَ
- ख़यानत
- l-aʿyuni
- ٱلْأَعْيُنِ
- आँखों की
- wamā
- وَمَا
- और जो कुछ
- tukh'fī
- تُخْفِى
- छुपाते हैं
- l-ṣudūru
- ٱلصُّدُورُ
- सीने
वह निगाहों की चोरी तक को जानता है और उसे भी जो सीने छिपा रहे होते है ([४०] अल-गाफिर: 19)Tafseer (तफ़सीर )
وَاللّٰهُ يَقْضِيْ بِالْحَقِّ ۗوَالَّذِيْنَ يَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِهٖ لَا يَقْضُوْنَ بِشَيْءٍ ۗاِنَّ اللّٰهَ هُوَ السَّمِيْعُ الْبَصِيْرُ ࣖ ٢٠
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yaqḍī
- يَقْضِى
- वो फ़ैसला करता है
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّۖ
- साथ हक़ के
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और जिन्हें
- yadʿūna
- يَدْعُونَ
- वो पुकारते हैं
- min
- مِن
- उसके सिवा
- dūnihi
- دُونِهِۦ
- उसके सिवा
- lā
- لَا
- नहीं वो फ़ैसला करते
- yaqḍūna
- يَقْضُونَ
- नहीं वो फ़ैसला करते
- bishayin
- بِشَىْءٍۗ
- किसी चीज़ का
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- huwa
- هُوَ
- वो ही है
- l-samīʿu
- ٱلسَّمِيعُ
- ख़ूब सुनने वाला
- l-baṣīru
- ٱلْبَصِيرُ
- ख़ूब देखने वाला
अल्लाह ठीक-ठीक फ़ैसला कर देगा। रहे वे लोग जिन्हें वे अल्लाह को छोड़कर पुकारते हैं, वे किसी चीज़ का भी फ़ैसला करनेवाले नहीं। निस्संदेह अल्लाह ही है जो सुनता, देखता है ([४०] अल-गाफिर: 20)Tafseer (तफ़सीर )