يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا خُذُوْا حِذْرَكُمْ فَانْفِرُوْا ثُبَاتٍ اَوِ انْفِرُوْا جَمِيْعًا ٧١
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगों जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगों जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- khudhū
- خُذُوا۟
- पकड़ो
- ḥidh'rakum
- حِذْرَكُمْ
- बचाव (हथियार) अपना
- fa-infirū
- فَٱنفِرُوا۟
- फिर निकलो
- thubātin
- ثُبَاتٍ
- छोटे दस्तों में
- awi
- أَوِ
- या
- infirū
- ٱنفِرُوا۟
- निकलो
- jamīʿan
- جَمِيعًا
- सब इकट्ठे
ऐ ईमान लानेवालो! अपने बचाव की साम्रगी (हथियार आदि) सँभालो। फिर या तो अलग-अलग टुकड़ियों में निकलो या इकट्ठे होकर निकलो ([४] अन-निसा: 71)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِنَّ مِنْكُمْ لَمَنْ لَّيُبَطِّئَنَّۚ فَاِنْ اَصَابَتْكُمْ مُّصِيْبَةٌ قَالَ قَدْ اَنْعَمَ اللّٰهُ عَلَيَّ اِذْ لَمْ اَكُنْ مَّعَهُمْ شَهِيْدًا ٧٢
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- minkum
- مِنكُمْ
- तुम में से
- laman
- لَمَن
- अलबत्ता वो है जो
- layubaṭṭi-anna
- لَّيُبَطِّئَنَّ
- ज़रूर देर लगाता है
- fa-in
- فَإِنْ
- फिर अगर
- aṣābatkum
- أَصَٰبَتْكُم
- पहुँचे तुम्हें
- muṣībatun
- مُّصِيبَةٌ
- कोई मुसीबत
- qāla
- قَالَ
- वो कहता है
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- anʿama
- أَنْعَمَ
- इनाम किया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- ʿalayya
- عَلَىَّ
- मुझ पर
- idh
- إِذْ
- जब कि
- lam
- لَمْ
- ना
- akun
- أَكُن
- था मैं
- maʿahum
- مَّعَهُمْ
- साथ उनके
- shahīdan
- شَهِيدًا
- हाज़िर / मौजूद
तुमसे से कोई ऐसा भी है जो ढीला पड़ जाता है, फिर यदि तुमपर कोई मुसीबत आए तो कहने लगता है कि अल्लाह ने मुझपर कृपा की कि मैं इन लोगों के साथ न गया ([४] अन-निसा: 72)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَىِٕنْ اَصَابَكُمْ فَضْلٌ مِّنَ اللّٰهِ لَيَقُوْلَنَّ كَاَنْ لَّمْ تَكُنْۢ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهٗ مَوَدَّةٌ يّٰلَيْتَنِيْ كُنْتُ مَعَهُمْ فَاَفُوْزَ فَوْزًا عَظِيْمًا ٧٣
- wala-in
- وَلَئِنْ
- और अलबत्ता अगर
- aṣābakum
- أَصَٰبَكُمْ
- पहुँचे तुम्हें
- faḍlun
- فَضْلٌ
- कोई फ़ज़ल
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की तरफ़ से
- layaqūlanna
- لَيَقُولَنَّ
- अलबत्ता वो ज़रूर कहेगा
- ka-an
- كَأَن
- गोया कि
- lam
- لَّمْ
- ना
- takun
- تَكُنۢ
- थी
- baynakum
- بَيْنَكُمْ
- दर्मियान तुम्हारे
- wabaynahu
- وَبَيْنَهُۥ
- और दर्मियान उसके
- mawaddatun
- مَوَدَّةٌ
- कोई मोहब्बत
- yālaytanī
- يَٰلَيْتَنِى
- हाय अफ़सोस मुझ पर
- kuntu
- كُنتُ
- होता मैं
- maʿahum
- مَعَهُمْ
- साथ उनके
- fa-afūza
- فَأَفُوزَ
- तो मैं कामयाबी पाता
- fawzan
- فَوْزًا
- कामयाबी
- ʿaẓīman
- عَظِيمًا
- बहुत बड़ी
परन्तु यदि अल्लाह की ओर से तुमपर कोई उदार अनुग्रह हो तो वह इस प्रकार से जैसे तुम्हारे और उनके बीच प्रेम का कोई सम्बन्ध ही नहीं, कहता है, 'क्या ही अच्छा होता कि मैं भी उनके साथ होता, तो बड़ी सफलता प्राप्त करता।' ([४] अन-निसा: 73)Tafseer (तफ़सीर )
۞ فَلْيُقَاتِلْ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ الَّذِيْنَ يَشْرُوْنَ الْحَيٰوةَ الدُّنْيَا بِالْاٰخِرَةِ ۗ وَمَنْ يُّقَاتِلْ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ فَيُقْتَلْ اَوْ يَغْلِبْ فَسَوْفَ نُؤْتِيْهِ اَجْرًا عَظِيْمًا ٧٤
- falyuqātil
- فَلْيُقَٰتِلْ
- पस चाहिए कि जंग करें
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते में
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- yashrūna
- يَشْرُونَ
- बेच देते हैं
- l-ḥayata
- ٱلْحَيَوٰةَ
- ज़िन्दगी
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया की
- bil-ākhirati
- بِٱلْءَاخِرَةِۚ
- बदले आख़िरत के
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yuqātil
- يُقَٰتِلْ
- जंग करे
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते में
- fayuq'tal
- فَيُقْتَلْ
- फिर वो क़त्ल कर दिया जाए
- aw
- أَوْ
- या
- yaghlib
- يَغْلِبْ
- वो ग़ालिब आ जाए
- fasawfa
- فَسَوْفَ
- पस अनक़रीब
- nu'tīhi
- نُؤْتِيهِ
- हम देंगे उसे
- ajran
- أَجْرًا
- अजर
- ʿaẓīman
- عَظِيمًا
- बहुत बड़ा
तो जो लोग आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन का सौदा करें, तो उन्हें चाहिए कि अल्लाह के मार्ग में लड़े। जो अल्लाह के मार्ग में लड़ेगी, चाहे वह मारा जाए या विजयी रहे, उसे हम शीघ्र ही बड़ा बदला प्रदान करेंगे ([४] अन-निसा: 74)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا لَكُمْ لَا تُقَاتِلُوْنَ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ وَالْمُسْتَضْعَفِيْنَ مِنَ الرِّجَالِ وَالنِّسَاۤءِ وَالْوِلْدَانِ الَّذِيْنَ يَقُوْلُوْنَ رَبَّنَآ اَخْرِجْنَا مِنْ هٰذِهِ الْقَرْيَةِ الظَّالِمِ اَهْلُهَاۚ وَاجْعَلْ لَّنَا مِنْ لَّدُنْكَ وَلِيًّاۚ وَاجْعَلْ لَّنَا مِنْ لَّدُنْكَ نَصِيْرًا ٧٥
- wamā
- وَمَا
- और क्या है
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हें
- lā
- لَا
- नहीं तुम जंग करते
- tuqātilūna
- تُقَٰتِلُونَ
- नहीं तुम जंग करते
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते में
- wal-mus'taḍʿafīna
- وَٱلْمُسْتَضْعَفِينَ
- हालाँकि जो कमज़ोर हैं
- mina
- مِنَ
- मर्दों में से
- l-rijāli
- ٱلرِّجَالِ
- मर्दों में से
- wal-nisāi
- وَٱلنِّسَآءِ
- और औरतों
- wal-wil'dāni
- وَٱلْوِلْدَٰنِ
- और बच्चों (में से)
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- yaqūlūna
- يَقُولُونَ
- कहते हैं
- rabbanā
- رَبَّنَآ
- ऐ हमारे रब
- akhrij'nā
- أَخْرِجْنَا
- निकाल हमें
- min
- مِنْ
- इस बस्ती से
- hādhihi
- هَٰذِهِ
- इस बस्ती से
- l-qaryati
- ٱلْقَرْيَةِ
- इस बस्ती से
- l-ẓālimi
- ٱلظَّالِمِ
- ज़ालिम हैं
- ahluhā
- أَهْلُهَا
- रहने वाले इसके
- wa-ij'ʿal
- وَٱجْعَل
- और बना दे
- lanā
- لَّنَا
- हमारे लिए
- min
- مِن
- अपने पास से
- ladunka
- لَّدُنكَ
- अपने पास से
- waliyyan
- وَلِيًّا
- कोई हिमायती
- wa-ij'ʿal
- وَٱجْعَل
- और बना दे
- lanā
- لَّنَا
- हमारे लिए
- min
- مِن
- अपने पास से
- ladunka
- لَّدُنكَ
- अपने पास से
- naṣīran
- نَصِيرًا
- कोई मददगार
तुम्हें क्या हुआ है कि अल्लाह के मार्ग में और उन कमज़ोर पुरुषों, औरतों और बच्चों के लिए युद्ध न करो, जो प्रार्थनाएँ करते है कि 'हमारे रब! तू हमें इस बस्ती से निकाल, जिसके लोग अत्याचारी है। और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई समर्थक नियुक्त कर और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई सहायक नियुक्त कर।' ([४] अन-निसा: 75)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا يُقَاتِلُوْنَ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ ۚ وَالَّذِيْنَ كَفَرُوْا يُقَاتِلُوْنَ فِيْ سَبِيْلِ الطَّاغُوْتِ فَقَاتِلُوْٓا اَوْلِيَاۤءَ الشَّيْطٰنِ ۚ اِنَّ كَيْدَ الشَّيْطٰنِ كَانَ ضَعِيْفًا ۚ ࣖ ٧٦
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- yuqātilūna
- يُقَٰتِلُونَ
- वो जंग करते हैं
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- अल्लाह के रास्ते में
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- yuqātilūna
- يُقَٰتِلُونَ
- वो जंग करते हैं
- fī
- فِى
- ताग़ूत के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- ताग़ूत के रास्ते में
- l-ṭāghūti
- ٱلطَّٰغُوتِ
- ताग़ूत के रास्ते में
- faqātilū
- فَقَٰتِلُوٓا۟
- पस जंग करो
- awliyāa
- أَوْلِيَآءَ
- दोस्तों से
- l-shayṭāni
- ٱلشَّيْطَٰنِۖ
- शैतान के
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- kayda
- كَيْدَ
- चाल
- l-shayṭāni
- ٱلشَّيْطَٰنِ
- शैतान की
- kāna
- كَانَ
- है
- ḍaʿīfan
- ضَعِيفًا
- बहुत कमज़ोर
ईमान लानेवाले तो अल्लाह के मार्ग में युद्ध करते है और अधर्मी लोग ताग़ूत (बढ़े हुए सरकश) के मार्ग में युद्ध करते है। अतः तुम शैतान के मित्रों से लड़ो। निश्चय ही, शैतान की चाल बहुत कमज़ोर होती है ([४] अन-निसा: 76)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَمْ تَرَ اِلَى الَّذِيْنَ قِيْلَ لَهُمْ كُفُّوْٓا اَيْدِيَكُمْ وَاَقِيْمُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتُوا الزَّكٰوةَۚ فَلَمَّا كُتِبَ عَلَيْهِمُ الْقِتَالُ اِذَا فَرِيْقٌ مِّنْهُمْ يَخْشَوْنَ النَّاسَ كَخَشْيَةِ اللّٰهِ اَوْ اَشَدَّ خَشْيَةً ۚ وَقَالُوْا رَبَّنَا لِمَ كَتَبْتَ عَلَيْنَا الْقِتَالَۚ لَوْلَآ اَخَّرْتَنَآ اِلٰٓى اَجَلٍ قَرِيْبٍۗ قُلْ مَتَاعُ الدُّنْيَا قَلِيْلٌۚ وَالْاٰخِرَةُ خَيْرٌ لِّمَنِ اتَّقٰىۗ وَلَا تُظْلَمُوْنَ فَتِيْلًا ٧٧
- alam
- أَلَمْ
- क्या नहीं
- tara
- تَرَ
- आपने देखा
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ उनके
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- तरफ़ उनके
- qīla
- قِيلَ
- कहा गया
- lahum
- لَهُمْ
- जिन्हें
- kuffū
- كُفُّوٓا۟
- रोके रखो
- aydiyakum
- أَيْدِيَكُمْ
- अपने हाथों को
- wa-aqīmū
- وَأَقِيمُوا۟
- और क़ायम करो
- l-ṣalata
- ٱلصَّلَوٰةَ
- नमाज़
- waātū
- وَءَاتُوا۟
- और अदा करो
- l-zakata
- ٱلزَّكَوٰةَ
- ज़कात
- falammā
- فَلَمَّا
- तो जब
- kutiba
- كُتِبَ
- फ़र्ज़ किया गया
- ʿalayhimu
- عَلَيْهِمُ
- उन पर
- l-qitālu
- ٱلْقِتَالُ
- जंग करना
- idhā
- إِذَا
- तब
- farīqun
- فَرِيقٌ
- एक गिरोह (के लोग)
- min'hum
- مِّنْهُمْ
- उनमें से
- yakhshawna
- يَخْشَوْنَ
- वो डर रहे थे
- l-nāsa
- ٱلنَّاسَ
- लोगों से
- kakhashyati
- كَخَشْيَةِ
- जैसा डरना
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह से
- aw
- أَوْ
- या
- ashadda
- أَشَدَّ
- ज़्यादा शदीद
- khashyatan
- خَشْيَةًۚ
- डरना
- waqālū
- وَقَالُوا۟
- और उन्होंने कहा
- rabbanā
- رَبَّنَا
- ऐ हमारे रब
- lima
- لِمَ
- क्यों
- katabta
- كَتَبْتَ
- फ़र्ज़ किया तूने
- ʿalaynā
- عَلَيْنَا
- हम पर
- l-qitāla
- ٱلْقِتَالَ
- जंग करना
- lawlā
- لَوْلَآ
- क्यों ना
- akhartanā
- أَخَّرْتَنَآ
- तूने मोहलत दी हमें
- ilā
- إِلَىٰٓ
- एक मुद्दत तक
- ajalin
- أَجَلٍ
- एक मुद्दत तक
- qarībin
- قَرِيبٍۗ
- क़रीब की
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- matāʿu
- مَتَٰعُ
- फ़ायदा
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया का
- qalīlun
- قَلِيلٌ
- बहुत थोड़ा है
- wal-ākhiratu
- وَٱلْءَاخِرَةُ
- और आख़िरत
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर है
- limani
- لِّمَنِ
- उसके लिए जो
- ittaqā
- ٱتَّقَىٰ
- तक़वा करे
- walā
- وَلَا
- और ना
- tuẓ'lamūna
- تُظْلَمُونَ
- तुम ज़ुल्म किए जाओगे
- fatīlan
- فَتِيلًا
- धागे बराबर
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिनसे कहा गया था कि अपने हाथ रोके रखो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो? फिर जब उन्हें युद्ध का आदेश दिया गया तो क्या देखते है कि उनमें से कुछ लोगों का हाल यह है कि वे लोगों से ऐसा डरने लगे जैसे अल्लाह का डर हो या यह डर उससे भी बढ़कर हो। कहने लगे, 'हमारे रब! तूने हमपर युद्ध क्यों अनिवार्य कर दिया? क्यों न थोड़ी मुहलत हमें और दी?' कह दो, 'दुनिया की पूँजी बहुत थोड़ी है, जबकि आख़िरत उस व्यक्ति के अधिक अच्छी है जो अल्लाह का डर रखता हो और तुम्हारे साथ तनिक भी अन्याय न किया जाएगा। ([४] अन-निसा: 77)Tafseer (तफ़सीर )
اَيْنَمَا تَكُوْنُوْا يُدْرِكْكُّمُ الْمَوْتُ وَلَوْ كُنْتُمْ فِيْ بُرُوْجٍ مُّشَيَّدَةٍ ۗ وَاِنْ تُصِبْهُمْ حَسَنَةٌ يَّقُوْلُوْا هٰذِهٖ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ ۚ وَاِنْ تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ يَّقُوْلُوْا هٰذِهٖ مِنْ عِنْدِكَ ۗ قُلْ كُلٌّ مِّنْ عِنْدِ اللّٰهِ ۗ فَمَالِ هٰٓؤُلَاۤءِ الْقَوْمِ لَا يَكَادُوْنَ يَفْقَهُوْنَ حَدِيْثًا ٧٨
- aynamā
- أَيْنَمَا
- जहाँ कहीं
- takūnū
- تَكُونُوا۟
- तुम होगे
- yud'rikkumu
- يُدْرِككُّمُ
- पा लेगी तुम्हें
- l-mawtu
- ٱلْمَوْتُ
- मौत
- walaw
- وَلَوْ
- और अगरचे
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- fī
- فِى
- क़िलों में
- burūjin
- بُرُوجٍ
- क़िलों में
- mushayyadatin
- مُّشَيَّدَةٍۗ
- मज़बूत
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- tuṣib'hum
- تُصِبْهُمْ
- पहुँचती है उन्हें
- ḥasanatun
- حَسَنَةٌ
- कोई भलाई
- yaqūlū
- يَقُولُوا۟
- वो कहते हैं
- hādhihi
- هَٰذِهِۦ
- ये
- min
- مِنْ
- अल्लाह की तरफ़ से है
- ʿindi
- عِندِ
- अल्लाह की तरफ़ से है
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- अल्लाह की तरफ़ से है
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- tuṣib'hum
- تُصِبْهُمْ
- पहुँचती है उन्हें
- sayyi-atun
- سَيِّئَةٌ
- कोई बुराई
- yaqūlū
- يَقُولُوا۟
- वो कहते हैं
- hādhihi
- هَٰذِهِۦ
- ये
- min
- مِنْ
- आपकी तरफ़ से है
- ʿindika
- عِندِكَۚ
- आपकी तरफ़ से है
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- kullun
- كُلٌّ
- सब कुछ
- min
- مِّنْ
- अल्लाह की तरफ़ से है
- ʿindi
- عِندِ
- अल्लाह की तरफ़ से है
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- अल्लाह की तरफ़ से है
- famāli
- فَمَالِ
- तो क्या है वास्ते
- hāulāi
- هَٰٓؤُلَآءِ
- उस
- l-qawmi
- ٱلْقَوْمِ
- क़ौम के
- lā
- لَا
- नहीं वो क़रीब होते
- yakādūna
- يَكَادُونَ
- नहीं वो क़रीब होते
- yafqahūna
- يَفْقَهُونَ
- कि वो समझें
- ḥadīthan
- حَدِيثًا
- बात को
'तुम जहाँ कहीं भी होंगे, मृत्यु तो तुम्हें आकर रहेगी; चाहे तुम मज़बूत बुर्जों (क़िलों) में ही (क्यों न) हो।' यदि उन्हें कोई अच्छी हालत पेश आती है तो कहते है, 'यह तो अल्लाह के पास से है।' परन्तु यदि उन्हें कोई बुरी हालत पेश आती है तो कहते है, 'यह तुम्हारे कारण है।' कह दो, 'हरेक चीज़ अल्लाह के पास से है।' आख़िर इन लोगों को क्या हो गया कि ये ऐसे नहीं लगते कि कोई बात समझ सकें? ([४] अन-निसा: 78)Tafseer (तफ़सीर )
مَآ اَصَابَكَ مِنْ حَسَنَةٍ فَمِنَ اللّٰهِ ۖ وَمَآ اَصَابَكَ مِنْ سَيِّئَةٍ فَمِنْ نَّفْسِكَ ۗ وَاَرْسَلْنٰكَ لِلنَّاسِ رَسُوْلًا ۗ وَكَفٰى بِاللّٰهِ شَهِيْدًا ٧٩
- mā
- مَّآ
- जो भी
- aṣābaka
- أَصَابَكَ
- पहुँचती है तुझको
- min
- مِنْ
- कोई भलाई
- ḥasanatin
- حَسَنَةٍ
- कोई भलाई
- famina
- فَمِنَ
- तो अल्लाह की तरफ़ से है
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- तो अल्लाह की तरफ़ से है
- wamā
- وَمَآ
- और जो भी
- aṣābaka
- أَصَابَكَ
- पहुँचती है तुझको
- min
- مِن
- कोई बुराई
- sayyi-atin
- سَيِّئَةٍ
- कोई बुराई
- famin
- فَمِن
- तो तुम्हारे नफ़्स की तरफ़ से है
- nafsika
- نَّفْسِكَۚ
- तो तुम्हारे नफ़्स की तरफ़ से है
- wa-arsalnāka
- وَأَرْسَلْنَٰكَ
- और भेजा हमने आपको
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- rasūlan
- رَسُولًاۚ
- रसूल बनाकर
- wakafā
- وَكَفَىٰ
- और काफ़ी है
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह
- shahīdan
- شَهِيدًا
- गवाह
तुम्हें जो भी भलाई प्राप्त' होती है, वह अल्लाह को ओर से है और जो बुरी हालत तुम्हें पेश आ जाती है तो वह तुम्हारे अपने ही कारण पेश आती है। हमने तुम्हें लोगों के लिए रसूल बनाकर भेजा है और (इसपर) अल्लाह का गवाह होना काफ़ी है ([४] अन-निसा: 79)Tafseer (तफ़सीर )
مَنْ يُّطِعِ الرَّسُوْلَ فَقَدْ اَطَاعَ اللّٰهَ ۚ وَمَنْ تَوَلّٰى فَمَآ اَرْسَلْنٰكَ عَلَيْهِمْ حَفِيْظًا ۗ ٨٠
- man
- مَّن
- जिसने
- yuṭiʿi
- يُطِعِ
- इताअत की
- l-rasūla
- ٱلرَّسُولَ
- रसूल की
- faqad
- فَقَدْ
- पस तहक़ीक़
- aṭāʿa
- أَطَاعَ
- उसने इताअत की
- l-laha
- ٱللَّهَۖ
- अल्लाह की
- waman
- وَمَن
- और जिसने
- tawallā
- تَوَلَّىٰ
- मुँह मोड़ा
- famā
- فَمَآ
- तो नहीं
- arsalnāka
- أَرْسَلْنَٰكَ
- भेजा हमने आपको
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- ḥafīẓan
- حَفِيظًا
- निगरान
जिसने रसूल की आज्ञा का पालन किया, उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया और जिसने मुँह मोड़ा तो हमने तुम्हें ऐसे लोगों पर कोई रखवाला बनाकर तो नहीं भेजा है ([४] अन-निसा: 80)Tafseer (तफ़सीर )