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सूरा अन-निसा - Page: 7

An-Nisa

(औरत)

६१

وَاِذَا قِيْلَ لَهُمْ تَعَالَوْا اِلٰى مَآ اَنْزَلَ اللّٰهُ وَاِلَى الرَّسُوْلِ رَاَيْتَ الْمُنٰفِقِيْنَ يَصُدُّوْنَ عَنْكَ صُدُوْدًاۚ ٦١

wa-idhā
وَإِذَا
और जब
qīla
قِيلَ
कहा जाता है
lahum
لَهُمْ
उन्हें
taʿālaw
تَعَالَوْا۟
आओ
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ उसके जो
مَآ
तरफ़ उसके जो
anzala
أَنزَلَ
नाज़िल किया
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
wa-ilā
وَإِلَى
और तरफ़ रसूल के
l-rasūli
ٱلرَّسُولِ
और तरफ़ रसूल के
ra-ayta
رَأَيْتَ
आप देखते हैं
l-munāfiqīna
ٱلْمُنَٰفِقِينَ
मुनाफ़िक़ों को
yaṣuddūna
يَصُدُّونَ
वो रुकते हैं
ʿanka
عَنكَ
आप से
ṣudūdan
صُدُودًا
रुक जाना
और जब उनसे कहा जाता है कि आओ उस चीज़ की ओर जो अल्लाह ने उतारी है और आओ रसूल की ओरस तो तुम मुनाफ़िको (कपटाचारियों) को देखते हो कि वे तुमसे कतराकर रह जाते है ([४] अन-निसा: 61)
Tafseer (तफ़सीर )
६२

فَكَيْفَ اِذَآ اَصَابَتْهُمْ مُّصِيْبَةٌ ۢبِمَا قَدَّمَتْ اَيْدِيْهِمْ ثُمَّ جَاۤءُوْكَ يَحْلِفُوْنَ بِاللّٰهِ ۖاِنْ اَرَدْنَآ اِلَّآ اِحْسَانًا وَّتَوْفِيْقًا ٦٢

fakayfa
فَكَيْفَ
तो क्या होता है
idhā
إِذَآ
जब
aṣābathum
أَصَٰبَتْهُم
पहुँचती है उन्हें
muṣībatun
مُّصِيبَةٌۢ
कोई मुसीबत
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
qaddamat
قَدَّمَتْ
आगे भेजा
aydīhim
أَيْدِيهِمْ
उनके हाथों ने
thumma
ثُمَّ
फिर
jāūka
جَآءُوكَ
वो आ जाते हैं आपके पास
yaḥlifūna
يَحْلِفُونَ
क़समें खाते हैं
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह की
in
إِنْ
नहीं
aradnā
أَرَدْنَآ
इरादा किया हमने
illā
إِلَّآ
मगर
iḥ'sānan
إِحْسَٰنًا
एहसान
watawfīqan
وَتَوْفِيقًا
और मुवाफ़िक़त का
फिर कैसी बात होगी कि जब उनकी अपनी करतूतों के कारण उनपर बड़ी मुसीबत आ पडेगी। फिर वे तुम्हारे पास अल्लाह की क़समें खाते हुए आते है कि हम तो केवल भलाई और बनाव चाहते थे? ([४] अन-निसा: 62)
Tafseer (तफ़सीर )
६३

اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ يَعْلَمُ اللّٰهُ مَا فِيْ قُلُوْبِهِمْ فَاَعْرِضْ عَنْهُمْ وَعِظْهُمْ وَقُلْ لَّهُمْ فِيْٓ اَنْفُسِهِمْ قَوْلًا ۢ بَلِيْغًا ٦٣

ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जो
yaʿlamu
يَعْلَمُ
जानता है
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
مَا
उसको जो
فِى
उनके दिलों में है
qulūbihim
قُلُوبِهِمْ
उनके दिलों में है
fa-aʿriḍ
فَأَعْرِضْ
पस आप ऐराज़ कीजिए
ʿanhum
عَنْهُمْ
उनसे
waʿiẓ'hum
وَعِظْهُمْ
और नसीहत कीजिए उन्हें
waqul
وَقُل
और कह दीजिए
lahum
لَّهُمْ
उन्हें
فِىٓ
उनके दिलों में
anfusihim
أَنفُسِهِمْ
उनके दिलों में
qawlan
قَوْلًۢا
बात
balīghan
بَلِيغًا
पहुँचने वाली / पुर असर
ये वे लोग है जिनके दिलों की बात अल्लाह भली-भाँति जानता है; तो तुम उन्हें जाने दो और उन्हें समझओ और उनसे उनके विषय में वह बात कहो जो प्रभावकारी हो ([४] अन-निसा: 63)
Tafseer (तफ़सीर )
६४

وَمَآ اَرْسَلْنَا مِنْ رَّسُوْلٍ اِلَّا لِيُطَاعَ بِاِذْنِ اللّٰهِ ۗوَلَوْ اَنَّهُمْ اِذْ ظَّلَمُوْٓا اَنْفُسَهُمْ جَاۤءُوْكَ فَاسْتَغْفَرُوا اللّٰهَ وَاسْتَغْفَرَ لَهُمُ الرَّسُوْلُ لَوَجَدُوا اللّٰهَ تَوَّابًا رَّحِيْمًا ٦٤

wamā
وَمَآ
और नहीं
arsalnā
أَرْسَلْنَا
भेजा हमने
min
مِن
कोई रसूल
rasūlin
رَّسُولٍ
कोई रसूल
illā
إِلَّا
मगर
liyuṭāʿa
لِيُطَاعَ
ताकि वो इताअत किया जाए
bi-idh'ni
بِإِذْنِ
अल्लाह के इज़्न से
l-lahi
ٱللَّهِۚ
अल्लाह के इज़्न से
walaw
وَلَوْ
और अगर
annahum
أَنَّهُمْ
बेशक वो
idh
إِذ
जब
ẓalamū
ظَّلَمُوٓا۟
उन्होंने ज़ुल्म किया
anfusahum
أَنفُسَهُمْ
अपने नफ़्सों पर
jāūka
جَآءُوكَ
वो आ जाते हैं आपके पास
fa-is'taghfarū
فَٱسْتَغْفَرُوا۟
फिर वो बख़्शिश माँगते
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
wa-is'taghfara
وَٱسْتَغْفَرَ
और बख़्शिश माँगते
lahumu
لَهُمُ
उनके लिए
l-rasūlu
ٱلرَّسُولُ
रसूल
lawajadū
لَوَجَدُوا۟
अलबत्ता वो पाते
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह को
tawwāban
تَوَّابًا
बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला
raḥīman
رَّحِيمًا
निहायत रहम करने वाला
हमने जो रसूल भी भेजा, इसलिए भेजा कि अल्लाह की अनुमति से उसकी आज्ञा का पालन किया जाए। और यदि यह उस समय, जबकि इन्होंने स्वयं अपने ऊपर ज़ुल्म किया था, तुम्हारे पास आ जाते और अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करता तो निश्चय ही वे अल्लाह को अत्यन्त क्षमाशील और दयावान पाते ([४] अन-निसा: 64)
Tafseer (तफ़सीर )
६५

فَلَا وَرَبِّكَ لَا يُؤْمِنُوْنَ حَتّٰى يُحَكِّمُوْكَ فِيْمَا شَجَرَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ لَا يَجِدُوْا فِيْٓ اَنْفُسِهِمْ حَرَجًا مِّمَّا قَضَيْتَ وَيُسَلِّمُوْا تَسْلِيْمًا ٦٥

falā
فَلَا
पस नहीं
warabbika
وَرَبِّكَ
क़सम है आपके रब की
لَا
नहीं वो मोमिन हो सकते
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
नहीं वो मोमिन हो सकते
ḥattā
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
yuḥakkimūka
يُحَكِّمُوكَ
वो मुन्सिफ़ बनाऐं आपको
fīmā
فِيمَا
उस मामले में जो
shajara
شَجَرَ
इख़्तिलाफ़ हुआ
baynahum
بَيْنَهُمْ
दर्मियान उनके
thumma
ثُمَّ
फिर
لَا
ना वो पाऐं
yajidū
يَجِدُوا۟
ना वो पाऐं
فِىٓ
अपने नफ़्सों में
anfusihim
أَنفُسِهِمْ
अपने नफ़्सों में
ḥarajan
حَرَجًا
कोई तंगी
mimmā
مِّمَّا
उससे जो
qaḍayta
قَضَيْتَ
फैसला करें आप
wayusallimū
وَيُسَلِّمُوا۟
और वो तसलीम कर लें
taslīman
تَسْلِيمًا
पूरी तरह तसलीम करना
तो तुम्हें तुम्हारे रब की कसम! ये ईमानवाले नहीं हो सकते जब तक कि अपने आपस के झगड़ो में ये तुमसे फ़ैसला न कराएँ। फिर जो फ़ैसला तुम कर दो, उसपर ये अपने दिलों में कोई तंगी न पाएँ और पूरी तरह मान ले ([४] अन-निसा: 65)
Tafseer (तफ़सीर )
६६

وَلَوْ اَنَّا كَتَبْنَا عَلَيْهِمْ اَنِ اقْتُلُوْٓا اَنْفُسَكُمْ اَوِ اخْرُجُوْا مِنْ دِيَارِكُمْ مَّا فَعَلُوْهُ اِلَّا قَلِيْلٌ مِّنْهُمْ ۗوَلَوْ اَنَّهُمْ فَعَلُوْا مَا يُوْعَظُوْنَ بِهٖ لَكَانَ خَيْرًا لَّهُمْ وَاَشَدَّ تَثْبِيْتًاۙ ٦٦

walaw
وَلَوْ
और अगर
annā
أَنَّا
बेशक हम
katabnā
كَتَبْنَا
लिख देते हम
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
ani
أَنِ
कि
uq'tulū
ٱقْتُلُوٓا۟
क़त्ल करो
anfusakum
أَنفُسَكُمْ
अपने नफ़्सों को
awi
أَوِ
या
ukh'rujū
ٱخْرُجُوا۟
निकल जाओ
min
مِن
अपने घरों से
diyārikum
دِيَٰرِكُم
अपने घरों से
مَّا
ना
faʿalūhu
فَعَلُوهُ
वो करते उसे
illā
إِلَّا
मगर
qalīlun
قَلِيلٌ
थोड़े
min'hum
مِّنْهُمْۖ
उनमें से
walaw
وَلَوْ
और अगर
annahum
أَنَّهُمْ
बेशक वो
faʿalū
فَعَلُوا۟
करते
مَا
जो
yūʿaẓūna
يُوعَظُونَ
वो नसीहत किए जाते हैं
bihi
بِهِۦ
जिसकी
lakāna
لَكَانَ
अलबत्ता होता
khayran
خَيْرًا
बेहतर
lahum
لَّهُمْ
उनके लिए
wa-ashadda
وَأَشَدَّ
और ज़्यादा शदीद
tathbītan
تَثْبِيتًا
साबित क़दमी में
और यदि कहीं हमने उन्हें आदेश दिया होता कि 'अपनों को क़त्ल करो या अपने घरों से निकल जाओ।' तो उनमें से थोड़े ही ऐसा करते। हालाँकि जो नसीहत उन्हें दी जाती है, अगर वे उसे व्यवहार में लाते तो यह बात उनके लिए अच्छी होती और ज़्यादा ज़माव पैदा करनेवाली होती ([४] अन-निसा: 66)
Tafseer (तफ़सीर )
६७

وَّاِذًا لَّاٰ تَيْنٰهُمْ مِّنْ لَّدُنَّآ اَجْرًا عَظِيْمًاۙ ٦٧

wa-idhan
وَإِذًا
और तब
laātaynāhum
لَّءَاتَيْنَٰهُم
अलबत्ता देते हम उन्हें
min
مِّن
अपने पास से
ladunnā
لَّدُنَّآ
अपने पास से
ajran
أَجْرًا
अजर
ʿaẓīman
عَظِيمًا
बहुत बड़ा
और उस समय हम उन्हें अपनी ओर से निश्चय ही बड़ा बदला प्रदान करते ([४] अन-निसा: 67)
Tafseer (तफ़सीर )
६८

وَّلَهَدَيْنٰهُمْ صِرَاطًا مُّسْتَقِيْمًا ٦٨

walahadaynāhum
وَلَهَدَيْنَٰهُمْ
और अलबत्ता हिदायत देते हम उन्हें
ṣirāṭan
صِرَٰطًا
रास्ते
mus'taqīman
مُّسْتَقِيمًا
सीधे की
और उन्हें सीधे मार्ग पर लगा देते ([४] अन-निसा: 68)
Tafseer (तफ़सीर )
६९

وَمَنْ يُّطِعِ اللّٰهَ وَالرَّسُوْلَ فَاُولٰۤىِٕكَ مَعَ الَّذِيْنَ اَنْعَمَ اللّٰهُ عَلَيْهِمْ مِّنَ النَّبِيّٖنَ وَالصِّدِّيْقِيْنَ وَالشُّهَدَاۤءِ وَالصّٰلِحِيْنَ ۚ وَحَسُنَ اُولٰۤىِٕكَ رَفِيْقًا ٦٩

waman
وَمَن
और जो कोई
yuṭiʿi
يُطِعِ
इताअत करेगा
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह की
wal-rasūla
وَٱلرَّسُولَ
और रसूल की
fa-ulāika
فَأُو۟لَٰٓئِكَ
तो यही लोग
maʿa
مَعَ
साथ होंगे
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन लोगों के
anʿama
أَنْعَمَ
इनाम किया
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
ʿalayhim
عَلَيْهِم
जिन पर
mina
مِّنَ
नबियों में से
l-nabiyīna
ٱلنَّبِيِّۦنَ
नबियों में से
wal-ṣidīqīna
وَٱلصِّدِّيقِينَ
और सिद्दीक़ीन
wal-shuhadāi
وَٱلشُّهَدَآءِ
और शोहदा
wal-ṣāliḥīna
وَٱلصَّٰلِحِينَۚ
और सालिहीन में से
waḥasuna
وَحَسُنَ
और कितने अच्छे हैं
ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
ये लोग
rafīqan
رَفِيقًا
बतौर साथी के
जो अल्लाह और रसूल की आज्ञा का पालन करता है, तो ऐसे ही लोग उन लोगों के साथ है जिनपर अल्लाह की कृपा स्पष्ट रही है - वे नबी, सिद्दीक़, शहीद और अच्छे लोग है। और वे कितने अच्छे साथी है ([४] अन-निसा: 69)
Tafseer (तफ़सीर )
७०

ذٰلِكَ الْفَضْلُ مِنَ اللّٰهِ ۗوَكَفٰى بِاللّٰهِ عَلِيْمًا ࣖ ٧٠

dhālika
ذَٰلِكَ
ये
l-faḍlu
ٱلْفَضْلُ
फ़ज़ल है
mina
مِنَ
अल्लाह की तरफ़ से
l-lahi
ٱللَّهِۚ
अल्लाह की तरफ़ से
wakafā
وَكَفَىٰ
और काफ़ी है
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह
ʿalīman
عَلِيمًا
बहुत इल्म वाला
यह अल्लाह का उदार अनुग्रह है। और काफ़ी है अल्लाह, इस हाल में कि वह भली-भाँति जानता है ([४] अन-निसा: 70)
Tafseer (तफ़सीर )