فَكَيْفَ اِذَا جِئْنَا مِنْ كُلِّ اُمَّةٍۢ بِشَهِيْدٍ وَّجِئْنَا بِكَ عَلٰى هٰٓؤُلَاۤءِ شَهِيْدًاۗ ٤١
- fakayfa
- فَكَيْفَ
- फिर क्या हाल होगा
- idhā
- إِذَا
- जब
- ji'nā
- جِئْنَا
- लाऐंगे हम
- min
- مِن
- हर उम्मत से
- kulli
- كُلِّ
- हर उम्मत से
- ummatin
- أُمَّةٍۭ
- हर उम्मत से
- bishahīdin
- بِشَهِيدٍ
- एक गवाह
- waji'nā
- وَجِئْنَا
- और लाऐंगे हम
- bika
- بِكَ
- आपको
- ʿalā
- عَلَىٰ
- उन सब पर
- hāulāi
- هَٰٓؤُلَآءِ
- उन सब पर
- shahīdan
- شَهِيدًا
- गवाह
फिर क्या हाल होगा जब हम प्रत्येक समुदाय में से एक गवाह लाएँगे और स्वयं तुम्हें इन लोगों के मुक़ाबले में गवाह बनाकर पेश करेंगे? ([४] अन-निसा: 41)Tafseer (तफ़सीर )
يَوْمَىِٕذٍ يَّوَدُّ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا وَعَصَوُا الرَّسُوْلَ لَوْ تُسَوّٰى بِهِمُ الْاَرْضُۗ وَلَا يَكْتُمُوْنَ اللّٰهَ حَدِيْثًا ࣖ ٤٢
- yawma-idhin
- يَوْمَئِذٍ
- जिस दिन
- yawaddu
- يَوَدُّ
- चाहेंगे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- waʿaṣawū
- وَعَصَوُا۟
- और नाफ़रमानी की
- l-rasūla
- ٱلرَّسُولَ
- रसूल की
- law
- لَوْ
- काश
- tusawwā
- تُسَوَّىٰ
- बराबर कर दी जाए
- bihimu
- بِهِمُ
- उन पर
- l-arḍu
- ٱلْأَرْضُ
- ज़मीन
- walā
- وَلَا
- और ना
- yaktumūna
- يَكْتُمُونَ
- वो छुपा सकेंगे
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- ḥadīthan
- حَدِيثًا
- कोई बात
उस दिन वे लोग जिन्होंने इनकार किया होगा और रसूल की अवज्ञा की होगी, यही चाहेंगे कि किसी तरह धरती में समोकर उसे बराबर कर दिया जाए। वे अल्लाह से कोई बात भी न छिपा सकेंगे ([४] अन-निसा: 42)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَقْرَبُوا الصَّلٰوةَ وَاَنْتُمْ سُكَارٰى حَتّٰى تَعْلَمُوْا مَا تَقُوْلُوْنَ وَلَا جُنُبًا اِلَّا عَابِرِيْ سَبِيْلٍ حَتّٰى تَغْتَسِلُوْا ۗوَاِنْ كُنْتُمْ مَّرْضٰٓى اَوْ عَلٰى سَفَرٍ اَوْ جَاۤءَ اَحَدٌ مِّنْكُمْ مِّنَ الْغَاۤىِٕطِ اَوْ لٰمَسْتُمُ النِّسَاۤءَ فَلَمْ تَجِدُوْا مَاۤءً فَتَيَمَّمُوْا صَعِيْدًا طَيِّبًا فَامْسَحُوْا بِوُجُوْهِكُمْ وَاَيْدِيْكُمْ ۗ اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَفُوًّا غَفُوْرًا ٤٣
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- lā
- لَا
- ना तुम क़रीब जाओ
- taqrabū
- تَقْرَبُوا۟
- ना तुम क़रीब जाओ
- l-ṣalata
- ٱلصَّلَوٰةَ
- नमाज़ के
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- जबकि तुम
- sukārā
- سُكَٰرَىٰ
- नशे में हो
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- taʿlamū
- تَعْلَمُوا۟
- तुम जान लो
- mā
- مَا
- जो
- taqūlūna
- تَقُولُونَ
- तुम कहते हो
- walā
- وَلَا
- और ना
- junuban
- جُنُبًا
- हालते जनाबत में
- illā
- إِلَّا
- मगर
- ʿābirī
- عَابِرِى
- उबूर करने वाले हो
- sabīlin
- سَبِيلٍ
- रास्ते को
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- taghtasilū
- تَغْتَسِلُوا۟ۚ
- तुम ग़ुस्ल कर लो
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- kuntum
- كُنتُم
- हो तुम
- marḍā
- مَّرْضَىٰٓ
- मरीज़
- aw
- أَوْ
- या
- ʿalā
- عَلَىٰ
- सफ़र पर
- safarin
- سَفَرٍ
- सफ़र पर
- aw
- أَوْ
- या
- jāa
- جَآءَ
- आया
- aḥadun
- أَحَدٌ
- कोई एक
- minkum
- مِّنكُم
- तुम में से
- mina
- مِّنَ
- क़ज़ा-ए- हाजत से
- l-ghāiṭi
- ٱلْغَآئِطِ
- क़ज़ा-ए- हाजत से
- aw
- أَوْ
- या
- lāmastumu
- لَٰمَسْتُمُ
- छुआ हो तुमने
- l-nisāa
- ٱلنِّسَآءَ
- औरतों को
- falam
- فَلَمْ
- फिर ना
- tajidū
- تَجِدُوا۟
- तुम पाओ
- māan
- مَآءً
- पानी
- fatayammamū
- فَتَيَمَّمُوا۟
- तो तयम्मुम करो
- ṣaʿīdan
- صَعِيدًا
- मिट्टी
- ṭayyiban
- طَيِّبًا
- पाक से
- fa-im'saḥū
- فَٱمْسَحُوا۟
- फिर मसह करो
- biwujūhikum
- بِوُجُوهِكُمْ
- अपने चेहरों का
- wa-aydīkum
- وَأَيْدِيكُمْۗ
- और अपने हाथों का
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- kāna
- كَانَ
- है
- ʿafuwwan
- عَفُوًّا
- बहुत माफ़ करने वाला
- ghafūran
- غَفُورًا
- बहुत बख़्शने वाला
ऐ ईमान लानेवालो! नशे की दशा में नमाज़ में व्यस्त न हो, जब तक कि तुम यह न जानने लगो कि तुम क्या कह रहे हो। और इसी प्रकार नापाकी की दशा में भी (नमाज़ में व्यस्त न हो), जब तक कि तुम स्नान न कर लो, सिवाय इसके कि तुम सफ़र में हो। और यदि तुम बीमार हो या सफ़र में हो, या तुममें से कोई शौच करके आए या तुमने स्त्रियों को हाथ लगाया हो, फिर तुम्हें पानी न मिले, तो पाक मिट्टी से काम लो और उसपर हाथ मारकर अपने चहरे और हाथों पर मलो। निस्संदेह अल्लाह नर्मी से काम लेनेवाला, अत्यन्त क्षमाशील है ([४] अन-निसा: 43)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَمْ تَرَ اِلَى الَّذِيْنَ اُوْتُوْا نَصِيْبًا مِّنَ الْكِتٰبِ يَشْتَرُوْنَ الضَّلٰلَةَ وَيُرِيْدُوْنَ اَنْ تَضِلُّوا السَّبِيْلَۗ ٤٤
- alam
- أَلَمْ
- क्या नहीं
- tara
- تَرَ
- आपने देखा
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ उनके जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- तरफ़ उनके जो
- ūtū
- أُوتُوا۟
- दिए गए
- naṣīban
- نَصِيبًا
- एक हिस्सा
- mina
- مِّنَ
- किताब में से
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- किताब में से
- yashtarūna
- يَشْتَرُونَ
- वो ख़रीदते हैं
- l-ḍalālata
- ٱلضَّلَٰلَةَ
- गुमराही को
- wayurīdūna
- وَيُرِيدُونَ
- और वो चाहते है
- an
- أَن
- कि
- taḍillū
- تَضِلُّوا۟
- तुम भटक जाओ
- l-sabīla
- ٱلسَّبِيلَ
- रास्ते से
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें सौभाग्य प्रदान हुआ था अर्थात किताब दी गई थी? वे पथभ्रष्टता के खरीदार बने हुए है और चाहते है कि तुम भी रास्ते से भटक जाओ ([४] अन-निसा: 44)Tafseer (तफ़सीर )
وَاللّٰهُ اَعْلَمُ بِاَعْدَاۤىِٕكُمْ ۗوَكَفٰى بِاللّٰهِ وَلِيًّا ۙوَّكَفٰى بِاللّٰهِ نَصِيْرًا ٤٥
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- aʿlamu
- أَعْلَمُ
- ज़्यादा जानता है
- bi-aʿdāikum
- بِأَعْدَآئِكُمْۚ
- तुम्हारे दुश्मनों को
- wakafā
- وَكَفَىٰ
- और काफ़ी है
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह
- waliyyan
- وَلِيًّا
- दोस्त
- wakafā
- وَكَفَىٰ
- और काफ़ी है
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह
- naṣīran
- نَصِيرًا
- मददगार
अल्लाह तुम्हारे शत्रुओं को भली-भाँति जानता है। अल्लाह एक संरक्षक के रूप में काफ़ी है और अल्लाह एक सहायक के रूप में भी काफ़ी है ([४] अन-निसा: 45)Tafseer (तफ़सीर )
مِنَ الَّذِيْنَ هَادُوْا يُحَرِّفُوْنَ الْكَلِمَ عَنْ مَّوَاضِعِهٖ وَيَقُوْلُوْنَ سَمِعْنَا وَعَصَيْنَا وَاسْمَعْ غَيْرَ مُسْمَعٍ وَّرَاعِنَا لَيًّاۢ بِاَلْسِنَتِهِمْ وَطَعْنًا فِى الدِّيْنِۗ وَلَوْ اَنَّهُمْ قَالُوْا سَمِعْنَا وَاَطَعْنَا وَاسْمَعْ وَانْظُرْنَا لَكَانَ خَيْرًا لَّهُمْ وَاَقْوَمَۙ وَلٰكِنْ لَّعَنَهُمُ اللّٰهُ بِكُفْرِهِمْ فَلَا يُؤْمِنُوْنَ اِلَّا قَلِيْلًا ٤٦
- mina
- مِّنَ
- उन लोगों में से जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों में से जो
- hādū
- هَادُوا۟
- यहूदी बन गए
- yuḥarrifūna
- يُحَرِّفُونَ
- वो तब्दील कर देते हैं
- l-kalima
- ٱلْكَلِمَ
- अलफ़ाज़ को
- ʿan
- عَن
- उनकी जगहों से
- mawāḍiʿihi
- مَّوَاضِعِهِۦ
- उनकी जगहों से
- wayaqūlūna
- وَيَقُولُونَ
- और वो कहते हैं
- samiʿ'nā
- سَمِعْنَا
- सुना हमने
- waʿaṣaynā
- وَعَصَيْنَا
- और नाफ़रमानी की हमने
- wa-is'maʿ
- وَٱسْمَعْ
- और सुनो तुम
- ghayra
- غَيْرَ
- ना सुनवाए जाओ
- mus'maʿin
- مُسْمَعٍ
- ना सुनवाए जाओ
- warāʿinā
- وَرَٰعِنَا
- और राइना (कहते हैं)
- layyan
- لَيًّۢا
- मोड़ते हुए
- bi-alsinatihim
- بِأَلْسِنَتِهِمْ
- अपनी ज़बानों को
- waṭaʿnan
- وَطَعْنًا
- और ऐब लगाने के लिए
- fī
- فِى
- दीन में
- l-dīni
- ٱلدِّينِۚ
- दीन में
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- annahum
- أَنَّهُمْ
- बेशक वो
- qālū
- قَالُوا۟
- वो कहते
- samiʿ'nā
- سَمِعْنَا
- सुना हमने
- wa-aṭaʿnā
- وَأَطَعْنَا
- और इताअत की हमने
- wa-is'maʿ
- وَٱسْمَعْ
- और सुनिए
- wa-unẓur'nā
- وَٱنظُرْنَا
- और देखिए हमें
- lakāna
- لَكَانَ
- अलबत्ता होता
- khayran
- خَيْرًا
- बेहतर
- lahum
- لَّهُمْ
- उनके लिए
- wa-aqwama
- وَأَقْوَمَ
- और ज़्यादा दुरुस्त
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- laʿanahumu
- لَّعَنَهُمُ
- लानत की उन पर
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- bikuf'rihim
- بِكُفْرِهِمْ
- बवजह उनके कुफ़्र के
- falā
- فَلَا
- तो नहीं
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- वो ईमान लाते
- illā
- إِلَّا
- मगर
- qalīlan
- قَلِيلًا
- बहुत थोड़ा
वे लोग जो यहूदी बन गए, वे शब्दों को उनके स्थानों से दूसरी ओर फेर देते है और कहते हैं, 'समि'अना व 'असैना' (हमने सुना, लेकिन हम मानते नही); और 'इसम'अ ग़ै-र मुसम'इन' (सुनो हालाँकि तुम सुनने के योग्य नहीं हो और 'राइना' (हमारी ओर ध्यान दो) - यह वे अपनी ज़बानों को तोड़-मरोड़कर और दीन पर चोटें करते हुए कहते है। और यदि वे कहते, 'समिअ'ना व अ-त'अना' (हमने सुना और माना) और 'इसम'अ' (सुनो) और 'उनज़ुरना' (हमारी ओर निगाह करो) तो यह उनके लिए अच्छा और अधिक ठीक होता। किन्तु उनपर तो उनके इनकार के कारण अल्लाह की फिटकार पड़ी हुई है। फिर वे ईमान थोड़े ही लाते है ([४] अन-निसा: 46)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ اٰمِنُوْا بِمَا نَزَّلْنَا مُصَدِّقًا لِّمَا مَعَكُمْ مِّنْ قَبْلِ اَنْ نَّطْمِسَ وُجُوْهًا فَنَرُدَّهَا عَلٰٓى اَدْبَارِهَآ اَوْ نَلْعَنَهُمْ كَمَا لَعَنَّآ اَصْحٰبَ السَّبْتِ ۗ وَكَانَ اَمْرُ اللّٰهِ مَفْعُوْلًا ٤٧
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- ūtū
- أُوتُوا۟
- दिए गए हो
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- āminū
- ءَامِنُوا۟
- ईमान लाओ
- bimā
- بِمَا
- उस पर जो
- nazzalnā
- نَزَّلْنَا
- नाज़िल किया हमने
- muṣaddiqan
- مُصَدِّقًا
- तसदीक़ करने वाला है
- limā
- لِّمَا
- उसकी जो
- maʿakum
- مَعَكُم
- तुम्हारे पास है
- min
- مِّن
- इससे पहले
- qabli
- قَبْلِ
- इससे पहले
- an
- أَن
- कि
- naṭmisa
- نَّطْمِسَ
- हम मिटा दें
- wujūhan
- وُجُوهًا
- चेहरों को
- fanaruddahā
- فَنَرُدَّهَا
- फिर हम फेर दें उन्हें
- ʿalā
- عَلَىٰٓ
- उनकी पुश्तों पर
- adbārihā
- أَدْبَارِهَآ
- उनकी पुश्तों पर
- aw
- أَوْ
- या
- nalʿanahum
- نَلْعَنَهُمْ
- हम लानत करें उन पर
- kamā
- كَمَا
- जैसा कि
- laʿannā
- لَعَنَّآ
- लानत की हमने
- aṣḥāba
- أَصْحَٰبَ
- सब्त (हफ़्ता) वालों पर
- l-sabti
- ٱلسَّبْتِۚ
- सब्त (हफ़्ता) वालों पर
- wakāna
- وَكَانَ
- और है
- amru
- أَمْرُ
- हुक्म
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- mafʿūlan
- مَفْعُولًا
- होकर रहने वाला
ऐ लोगों! जिन्हें किताब दी गई, उस चीज को मानो जो हमने उतारी है, जो उसकी पुष्टि में है, जो स्वयं तुम्हारे पास है, इससे पहले कि हम चेहरों की रूपरेखा को मिटाकर रख दें और उन्हें उनके पीछ की ओर फेर दें या उनपर लानत करें, जिस प्रकार हमने सब्तवालों पर लानत की थी। और अल्लाह का आदेश तो लागू होकर ही रहता है ([४] अन-निसा: 47)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ اللّٰهَ لَا يَغْفِرُ اَنْ يُّشْرَكَ بِهٖ وَيَغْفِرُ مَا دُوْنَ ذٰلِكَ لِمَنْ يَّشَاۤءُ ۚ وَمَنْ يُّشْرِكْ بِاللّٰهِ فَقَدِ افْتَرٰٓى اِثْمًا عَظِيْمًا ٤٨
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं बख़्शेगा
- yaghfiru
- يَغْفِرُ
- नहीं बख़्शेगा
- an
- أَن
- कि
- yush'raka
- يُشْرَكَ
- शिर्क किया जाए
- bihi
- بِهِۦ
- साथ उसके
- wayaghfiru
- وَيَغْفِرُ
- और वो बख़्श देगा
- mā
- مَا
- जो
- dūna
- دُونَ
- अलावा है
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- उसके
- liman
- لِمَن
- जिसके लिए
- yashāu
- يَشَآءُۚ
- वो चाहेगा
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yush'rik
- يُشْرِكْ
- शिर्क करेगा
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- साथ अल्लाह के
- faqadi
- فَقَدِ
- तो तहक़ीक़
- if'tarā
- ٱفْتَرَىٰٓ
- उसने गढ़ लिया
- ith'man
- إِثْمًا
- गुनाह
- ʿaẓīman
- عَظِيمًا
- बहुत बड़ा
अल्लाह इसके क्षमा नहीं करेगा कि उसका साझी ठहराया जाए। किन्तु उससे नीचे दर्जे के अपराध को जिसके लिए चाहेगा, क्षमा कर देगा और जिस किसी ने अल्लाह का साझी ठहराया, तो उसने एक बड़ा झूठ घड़ लिया ([४] अन-निसा: 48)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَمْ تَرَ اِلَى الَّذِيْنَ يُزَكُّوْنَ اَنْفُسَهُمْ ۗ بَلِ اللّٰهُ يُزَكِّيْ مَنْ يَّشَاۤءُ وَلَا يُظْلَمُوْنَ فَتِيْلًا ٤٩
- alam
- أَلَمْ
- क्या नहीं
- tara
- تَرَ
- आपने देखा
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ उनके जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- तरफ़ उनके जो
- yuzakkūna
- يُزَكُّونَ
- पाक क़रार देते हैं
- anfusahum
- أَنفُسَهُمۚ
- अपने नफ़्सों को
- bali
- بَلِ
- बल्कि
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- yuzakkī
- يُزَكِّى
- पाक करता है
- man
- مَن
- जिसको
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- walā
- وَلَا
- और ना
- yuẓ'lamūna
- يُظْلَمُونَ
- वो ज़ुल्म किए जाऐंगे
- fatīlan
- فَتِيلًا
- धागे बराबर
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो अपने को पूर्ण एवं शिष्ट होने का दावा करते हैं? (कोई यूँ ही शिष्ट नहीं हुआ करता) बल्कि अल्लाह ही जिसे चाहता है, पूर्णता एवं शिष्टता प्रदान करता है। और उनके साथ तनिक भी अत्याचार नहीं किया जाता ([४] अन-निसा: 49)Tafseer (तफ़सीर )
اُنْظُرْ كَيْفَ يَفْتَرُوْنَ عَلَى اللّٰهِ الْكَذِبَۗ وَكَفٰى بِهٖٓ اِثْمًا مُّبِيْنًا ࣖ ٥٠
- unẓur
- ٱنظُرْ
- देखो
- kayfa
- كَيْفَ
- किस तरह
- yaftarūna
- يَفْتَرُونَ
- वो गढ़ते हैं
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- l-kadhiba
- ٱلْكَذِبَۖ
- झूठ
- wakafā
- وَكَفَىٰ
- और काफ़ी है
- bihi
- بِهِۦٓ
- उसका
- ith'man
- إِثْمًا
- गुनाह होना
- mubīnan
- مُّبِينًا
- खुल्लम-खुला
देखो तो सही, वे अल्लाह पर कैसा झूठ मढ़ते हैं? खुले गुनाह के लिए तो यही पर्याप्त है ([४] अन-निसा: 50)Tafseer (तफ़सीर )