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सूरा अज-ज़ुमर - Page: 6

Az-Zumar

(The Troops, Throngs)

५१

فَاَصَابَهُمْ سَيِّاٰتُ مَا كَسَبُوْا ۗوَالَّذِيْنَ ظَلَمُوْا مِنْ هٰٓؤُلَاۤءِ سَيُصِيْبُهُمْ سَيِّاٰتُ مَا كَسَبُوْا ۙوَمَا هُمْ بِمُعْجِزِيْنَ ٥١

fa-aṣābahum
فَأَصَابَهُمْ
तो पहुँचीं उन्हें
sayyiātu
سَيِّـَٔاتُ
बुराइयाँ
مَا
उन (आमाल)की जो
kasabū
كَسَبُوا۟ۚ
उन्होंने कमाए
wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जिन्होंने
ẓalamū
ظَلَمُوا۟
ज़ुल्म किया
min
مِنْ
उन लोगों में से
hāulāi
هَٰٓؤُلَآءِ
उन लोगों में से
sayuṣībuhum
سَيُصِيبُهُمْ
अनक़रीब पहुँचेंगी उन्हें
sayyiātu
سَيِّـَٔاتُ
बुराइयाँ
مَا
उन (आमाल)की जो
kasabū
كَسَبُوا۟
उन्होंने कमाए
wamā
وَمَا
और नहीं हैं
hum
هُم
वो
bimuʿ'jizīna
بِمُعْجِزِينَ
आजिज़ करने वाले
फिर जो कुछ उन्होंने कमाया, उसकी बुराइयाँ उनपर आ पड़ी और इनमें से भी जिन लोगों ने ज़ुल्म किया, उनपर भी जो कुछ उन्होंने कमाया उसकी बुराइयाँ जल्द ही आ पड़ेगी। और वे काबू से बाहर निकलनेवाले नहीं ([३९] अज-ज़ुमर: 51)
Tafseer (तफ़सीर )
५२

اَوَلَمْ يَعْلَمُوْٓا اَنَّ اللّٰهَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَّشَاۤءُ وَيَقْدِرُ ۗاِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يُّؤْمِنُوْنَ ࣖ ٥٢

awalam
أَوَلَمْ
क्या भला नहीं
yaʿlamū
يَعْلَمُوٓا۟
उन्होंने जाना
anna
أَنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
yabsuṭu
يَبْسُطُ
वो कुशादा करता है
l-riz'qa
ٱلرِّزْقَ
रिज़्क़
liman
لِمَن
जिसके लिए
yashāu
يَشَآءُ
वो चाहता है
wayaqdiru
وَيَقْدِرُۚ
और वो तंग कर देता है
inna
إِنَّ
बेशक
فِى
इसमें
dhālika
ذَٰلِكَ
इसमें
laāyātin
لَءَايَٰتٍ
अलबत्ता निशानियाँ हैं
liqawmin
لِّقَوْمٍ
उन लोगों के लिए
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
जो ईमान लाते हैं
क्या उन्हें मालूम नहीं कि अल्लाह जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है नपी-तुली कर देता है? निस्संदेह इसमें उन लोगों के लिए बड़ी निशानियाँ है जो ईमान लाएँ ([३९] अज-ज़ुमर: 52)
Tafseer (तफ़सीर )
५३

۞ قُلْ يٰعِبَادِيَ الَّذِيْنَ اَسْرَفُوْا عَلٰٓى اَنْفُسِهِمْ لَا تَقْنَطُوْا مِنْ رَّحْمَةِ اللّٰهِ ۗاِنَّ اللّٰهَ يَغْفِرُ الذُّنُوْبَ جَمِيْعًا ۗاِنَّهٗ هُوَ الْغَفُوْرُ الرَّحِيْمُ ٥٣

qul
قُلْ
कह दीजिए
yāʿibādiya
يَٰعِبَادِىَ
ऐ मेरे बन्दो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
asrafū
أَسْرَفُوا۟
ज़्यादती की
ʿalā
عَلَىٰٓ
अपने नफ़्सों पर
anfusihim
أَنفُسِهِمْ
अपने नफ़्सों पर
لَا
ना तुम मायूस हो
taqnaṭū
تَقْنَطُوا۟
ना तुम मायूस हो
min
مِن
रहमत से
raḥmati
رَّحْمَةِ
रहमत से
l-lahi
ٱللَّهِۚ
अल्लाह की
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
yaghfiru
يَغْفِرُ
वो बख़्श देता है
l-dhunūba
ٱلذُّنُوبَ
गुनाहों को
jamīʿan
جَمِيعًاۚ
सब के सब को
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
huwa
هُوَ
वो ही है
l-ghafūru
ٱلْغَفُورُ
बहुत बख़्शने वाला
l-raḥīmu
ٱلرَّحِيمُ
निहायत रहम करने वाला
कह दो, 'ऐ मेरे बन्दो, जिन्होंने अपने आप पर ज्यादती की है, अल्लाह की दयालुता से निराश न हो। निस्संदेह अल्लाह सारे ही गुनाहों का क्षमा कर देता है। निश्चय ही वह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है ([३९] अज-ज़ुमर: 53)
Tafseer (तफ़सीर )
५४

وَاَنِيْبُوْٓا اِلٰى رَبِّكُمْ وَاَسْلِمُوْا لَهٗ مِنْ قَبْلِ اَنْ يَّأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنْصَرُوْنَ ٥٤

wa-anībū
وَأَنِيبُوٓا۟
और रुजूअ करो
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ अपने रब के
rabbikum
رَبِّكُمْ
तरफ़ अपने रब के
wa-aslimū
وَأَسْلِمُوا۟
और फ़रमाबरदार बन जाओ
lahu
لَهُۥ
उसके लिए
min
مِن
इससे पहले
qabli
قَبْلِ
इससे पहले
an
أَن
कि
yatiyakumu
يَأْتِيَكُمُ
आ जाए तुम्हारे पास
l-ʿadhābu
ٱلْعَذَابُ
अज़ाब
thumma
ثُمَّ
फिर
لَا
ना तुम मदद किए जाओ
tunṣarūna
تُنصَرُونَ
ना तुम मदद किए जाओ
रुजू हो अपने रब की ओर और उसके आज्ञाकारी बन जाओ, इससे पहले कि तुमपर यातना आ जाए। फिर तुम्हारी सहायता न की जाएगी ([३९] अज-ज़ुमर: 54)
Tafseer (तफ़सीर )
५५

وَاتَّبِعُوْٓا اَحْسَنَ مَآ اُنْزِلَ اِلَيْكُمْ مِّنْ رَّبِّكُمْ مِّنْ قَبْلِ اَنْ يَّأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ بَغْتَةً وَّاَنْتُمْ لَا تَشْعُرُوْنَ ۙ ٥٥

wa-ittabiʿū
وَٱتَّبِعُوٓا۟
और पैरवी करो
aḥsana
أَحْسَنَ
बेहतरीन की
مَآ
जो
unzila
أُنزِلَ
नाज़िल किया गया
ilaykum
إِلَيْكُم
तरफ़ तुम्हारे
min
مِّن
तुम्हारे रब की तरफ़ से
rabbikum
رَّبِّكُم
तुम्हारे रब की तरफ़ से
min
مِّن
इससे पहले
qabli
قَبْلِ
इससे पहले
an
أَن
कि
yatiyakumu
يَأْتِيَكُمُ
आ जाए तुम्हारे पास
l-ʿadhābu
ٱلْعَذَابُ
अज़ाब
baghtatan
بَغْتَةً
अचानक
wa-antum
وَأَنتُمْ
और तुम
لَا
ना तुम शऊर रखते हो
tashʿurūna
تَشْعُرُونَ
ना तुम शऊर रखते हो
और अनुसर्ण करो उस सर्वोत्तम चीज़ का जो तुम्हारे रब की ओर से अवतरित हुई है, इससे पहले कि तुम पर अचानक यातना आ जाए और तुम्हें पता भी न हो।' ([३९] अज-ज़ुमर: 55)
Tafseer (तफ़सीर )
५६

اَنْ تَقُوْلَ نَفْسٌ يّٰحَسْرَتٰى عَلٰى مَا فَرَّطْتُّ فِيْ جَنْۢبِ اللّٰهِ وَاِنْ كُنْتُ لَمِنَ السَّاخِرِيْنَۙ ٥٦

an
أَن
(ऐसा ना हो) कि
taqūla
تَقُولَ
कहे
nafsun
نَفْسٌ
कोई नफ़्स
yāḥasratā
يَٰحَسْرَتَىٰ
ऐ हसरत
ʿalā
عَلَىٰ
उस पर जो
مَا
उस पर जो
farraṭtu
فَرَّطتُ
कमी/ कोताही की मैं ने
فِى
हक़ में
janbi
جَنۢبِ
हक़ में
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
wa-in
وَإِن
और बेशक
kuntu
كُنتُ
था मैं
lamina
لَمِنَ
अलबत्ता मज़ाक़ उड़ाने वालों में से
l-sākhirīna
ٱلسَّٰخِرِينَ
अलबत्ता मज़ाक़ उड़ाने वालों में से
कहीं ऐसा न हो कि कोई व्यक्ति कहने लगे, 'हाय, अफ़सोस उसपर! जो कोताही अल्लाह के हक़ में मैंने की। और मैं तो परिहास करनेवालों मं ही सम्मिलित रहा।' ([३९] अज-ज़ुमर: 56)
Tafseer (तफ़सीर )
५७

اَوْ تَقُوْلَ لَوْ اَنَّ اللّٰهَ هَدٰىنِيْ لَكُنْتُ مِنَ الْمُتَّقِيْنَ ۙ ٥٧

aw
أَوْ
या
taqūla
تَقُولَ
वो कहे
law
لَوْ
काश
anna
أَنَّ
ये कि
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
hadānī
هَدَىٰنِى
हिदायत देता मुझे
lakuntu
لَكُنتُ
अलबत्ता होता मैं
mina
مِنَ
मुत्तक़ी लोगों में से
l-mutaqīna
ٱلْمُتَّقِينَ
मुत्तक़ी लोगों में से
या, कहने लगे कि 'यदि अल्लाह मुझे मार्ग दिखाता तो अवश्य ही मैं डर रखनेवालों में से होता।' ([३९] अज-ज़ुमर: 57)
Tafseer (तफ़सीर )
५८

اَوْ تَقُوْلَ حِيْنَ تَرَى الْعَذَابَ لَوْ اَنَّ لِيْ كَرَّةً فَاَكُوْنَ مِنَ الْمُحْسِنِيْنَ ٥٨

aw
أَوْ
या
taqūla
تَقُولَ
वो कहे
ḥīna
حِينَ
जिस वक़्त
tarā
تَرَى
वो देखे
l-ʿadhāba
ٱلْعَذَابَ
अज़ाब
law
لَوْ
काश
anna
أَنَّ
ये कि (हो)
لِى
मेरे लिए
karratan
كَرَّةً
एक बार पलटना
fa-akūna
فَأَكُونَ
तो मैं हो जाऊँ
mina
مِنَ
नेकोकारों में से
l-muḥ'sinīna
ٱلْمُحْسِنِينَ
नेकोकारों में से
या, जब वह यातना देखे तो कहने लगे, 'काश! मुझे एक बार फिर लौटकर जाना हो, तो मैं उत्तमकारों में सम्मिलित हो जाऊँ।' ([३९] अज-ज़ुमर: 58)
Tafseer (तफ़सीर )
५९

بَلٰى قَدْ جَاۤءَتْكَ اٰيٰتِيْ فَكَذَّبْتَ بِهَا وَاسْتَكْبَرْتَ وَكُنْتَ مِنَ الْكٰفِرِيْنَ ٥٩

balā
بَلَىٰ
क्यों नहीं
qad
قَدْ
तहक़ीक़
jāatka
جَآءَتْكَ
आईं तेरे पास
āyātī
ءَايَٰتِى
आयात मेरी
fakadhabta
فَكَذَّبْتَ
तो झुठला दिया तू ने
bihā
بِهَا
उन्हें
wa-is'takbarta
وَٱسْتَكْبَرْتَ
और तकब्बुर किया तू ने
wakunta
وَكُنتَ
और था तू
mina
مِنَ
काफ़िरों में से
l-kāfirīna
ٱلْكَٰفِرِينَ
काफ़िरों में से
'क्यों नहीं, मेरी आयतें तेरे पास आ चुकी थीं, किन्तु तूने उनको झूठलाया और घमंड किया और इनकार करनेवालों में सम्मिलित रहा ([३९] अज-ज़ुमर: 59)
Tafseer (तफ़सीर )
६०

وَيَوْمَ الْقِيٰمَةِ تَرَى الَّذِيْنَ كَذَبُوْا عَلَى اللّٰهِ وُجُوْهُهُمْ مُّسْوَدَّةٌ ۗ اَلَيْسَ فِيْ جَهَنَّمَ مَثْوًى لِّلْمُتَكَبِّرِيْنَ ٦٠

wayawma
وَيَوْمَ
और दिन
l-qiyāmati
ٱلْقِيَٰمَةِ
क़यामत के
tarā
تَرَى
आप देखेंगे
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनको जिन्होंने
kadhabū
كَذَبُوا۟
झूठ बोला
ʿalā
عَلَى
अल्लाह पर
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह पर
wujūhuhum
وُجُوهُهُم
चेहरे उनके
mus'waddatun
مُّسْوَدَّةٌۚ
सयाह होंगे
alaysa
أَلَيْسَ
क्या नहीं है
فِى
जहन्नम में
jahannama
جَهَنَّمَ
जहन्नम में
mathwan
مَثْوًى
कोई ठिकाना
lil'mutakabbirīna
لِّلْمُتَكَبِّرِينَ
तकब्बुर करने वालों के लिए
और क़ियामत के दिन तुम उन लोगों को देखोगे जिन्होंने अल्लाह पर झूठ घड़कर थोपा है कि उनके चेहरे स्याह है। क्या अहंकारियों का ठिकाना जहन्नम में नहीं हैं?' ([३९] अज-ज़ुमर: 60)
Tafseer (तफ़सीर )