اِنَّآ اَنْزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتٰبَ لِلنَّاسِ بِالْحَقِّۚ فَمَنِ اهْتَدٰى فَلِنَفْسِهٖۚ وَمَنْ ضَلَّ فَاِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا ۚوَمَآ اَنْتَ عَلَيْهِمْ بِوَكِيْلٍ ࣖ ٤١
- innā
- إِنَّآ
- बेशक हम
- anzalnā
- أَنزَلْنَا
- नाज़िल की हमने
- ʿalayka
- عَلَيْكَ
- आप पर
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّۖ
- साथ हक़ के
- famani
- فَمَنِ
- तो जो
- ih'tadā
- ٱهْتَدَىٰ
- हिदायत पा जाए
- falinafsihi
- فَلِنَفْسِهِۦۖ
- तो उसके अपने ही लिए है
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- ḍalla
- ضَلَّ
- भटके
- fa-innamā
- فَإِنَّمَا
- तो बेशक
- yaḍillu
- يَضِلُّ
- वो भटकता है
- ʿalayhā
- عَلَيْهَاۖ
- अपने ख़िलाफ़
- wamā
- وَمَآ
- और नहीं
- anta
- أَنتَ
- आप
- ʿalayhim
- عَلَيْهِم
- उन पर
- biwakīlin
- بِوَكِيلٍ
- कोई ज़िम्मेदार
निश्चय ही हमने लोगों के लिए हक़ के साथ तुमपर किताब अवतरित की है। अतः जिसने सीधा मार्ग ग्रहण किया तो अपने ही लिए, और जो भटका, तो वह भटककर अपने ही को हानि पहुँचाता है। तुम उनके ज़िम्मेदार नहीं हो ([३९] अज-ज़ुमर: 41)Tafseer (तफ़सीर )
اَللّٰهُ يَتَوَفَّى الْاَنْفُسَ حِيْنَ مَوْتِهَا وَالَّتِيْ لَمْ تَمُتْ فِيْ مَنَامِهَا ۚ فَيُمْسِكُ الَّتِي قَضٰى عَلَيْهَا الْمَوْتَ وَيُرْسِلُ الْاُخْرٰىٓ اِلٰٓى اَجَلٍ مُّسَمًّىۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يَّتَفَكَّرُوْنَ ٤٢
- al-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- yatawaffā
- يَتَوَفَّى
- वो फ़ौत करता है
- l-anfusa
- ٱلْأَنفُسَ
- जानों को
- ḥīna
- حِينَ
- वक़्त पर
- mawtihā
- مَوْتِهَا
- उनकी मौत के
- wa-allatī
- وَٱلَّتِى
- और वो जो
- lam
- لَمْ
- ना
- tamut
- تَمُتْ
- वो मरें
- fī
- فِى
- अपनी नींद में
- manāmihā
- مَنَامِهَاۖ
- अपनी नींद में
- fayum'siku
- فَيُمْسِكُ
- पस वो रोक लेता है
- allatī
- ٱلَّتِى
- उसको
- qaḍā
- قَضَىٰ
- उसने फ़ैसला किया
- ʿalayhā
- عَلَيْهَا
- जिस पर
- l-mawta
- ٱلْمَوْتَ
- मौत का
- wayur'silu
- وَيُرْسِلُ
- और वो भेज देता है
- l-ukh'rā
- ٱلْأُخْرَىٰٓ
- दूसरी (रूहों )को
- ilā
- إِلَىٰٓ
- एक वक़्त तक
- ajalin
- أَجَلٍ
- एक वक़्त तक
- musamman
- مُّسَمًّىۚ
- जो मुक़र्रर है
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- fī
- فِى
- उसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- उसमें
- laāyātin
- لَءَايَٰتٍ
- अलबत्ता निशानियाँ हैं
- liqawmin
- لِّقَوْمٍ
- उन लोगों के लिए
- yatafakkarūna
- يَتَفَكَّرُونَ
- जो ग़ौर व फ़िक्र करते है
अल्लाह ही प्राणों को उनकी मृत्यु के समय ग्रस्त कर लेता है और जिसकी मृत्यु नहीं आई उसे उसकी निद्रा की अवस्था में (ग्रस्त कर लेता है) । फिर जिसकी मृत्यु का फ़ैसला कर दिया है उसे रोक रखता है। और दूसरों को एक नियत समय तक के लिए छोड़ देता है। निश्चय ही इसमें कितनी ही निशानियाँ है सोच-विचार करनेवालों के लिए ([३९] अज-ज़ुमर: 42)Tafseer (तफ़सीर )
اَمِ اتَّخَذُوْا مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ شُفَعَاۤءَۗ قُلْ اَوَلَوْ كَانُوْا لَا يَمْلِكُوْنَ شَيْـًٔا وَّلَا يَعْقِلُوْنَ ٤٣
- ami
- أَمِ
- क्या
- ittakhadhū
- ٱتَّخَذُوا۟
- उन्होंने बना रखे हैं
- min
- مِن
- सिवाए
- dūni
- دُونِ
- सिवाए
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- shufaʿāa
- شُفَعَآءَۚ
- कुछ सिफ़ारिशी
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- awalaw
- أَوَلَوْ
- क्या भला अगर
- kānū
- كَانُوا۟
- हों वो
- lā
- لَا
- ना वो मिल्कियत रखते
- yamlikūna
- يَمْلِكُونَ
- ना वो मिल्कियत रखते
- shayan
- شَيْـًٔا
- किसी चीज़ की
- walā
- وَلَا
- और ना
- yaʿqilūna
- يَعْقِلُونَ
- वो अक़्ल रखते
(क्या उनके उपास्य प्रभुता में साझीदार है) या उन्होंने अल्लाह से हटकर दूसरों को सिफ़ारिशी बना रखा है? कहो, 'क्या यद्यपि वे किसी चीज़ का अधिकार न रखते हों और न कुछ समझते ही हो तब भी?' ([३९] अज-ज़ुमर: 43)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ لِّلّٰهِ الشَّفَاعَةُ جَمِيْعًا ۗ لَهٗ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ ثُمَّ اِلَيْهِ تُرْجَعُوْنَ ٤٤
- qul
- قُل
- कह दीजिए
- lillahi
- لِّلَّهِ
- अल्लाह ही के लिए है
- l-shafāʿatu
- ٱلشَّفَٰعَةُ
- शफ़ाअत/ सिफ़ारिश
- jamīʿan
- جَمِيعًاۖ
- सारी की सारी
- lahu
- لَّهُۥ
- उसी के लिए है
- mul'ku
- مُلْكُ
- बादशाहत
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِۖ
- और ज़मीन की
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ उसी के
- tur'jaʿūna
- تُرْجَعُونَ
- तुम लौटाए जाओगे
कहो, 'सिफ़ारिश तो सारी की सारी अल्लाह के अधिकार में है। आकाशों और धरती की बादशाही उसी की है। फिर उसी की ओर तुम लौटाए जाओगे।' ([३९] अज-ज़ुमर: 44)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا ذُكِرَ اللّٰهُ وَحْدَهُ اشْمَـَٔزَّتْ قُلُوْبُ الَّذِيْنَ لَا يُؤْمِنُوْنَ بِالْاٰخِرَةِۚ وَاِذَا ذُكِرَ الَّذِيْنَ مِنْ دُوْنِهٖٓ اِذَا هُمْ يَسْتَبْشِرُوْنَ ٤٥
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- dhukira
- ذُكِرَ
- ज़िक्र किया जाता है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह का
- waḥdahu
- وَحْدَهُ
- अकेले उसी का
- ish'ma-azzat
- ٱشْمَأَزَّتْ
- नफ़रत करते हैं
- qulūbu
- قُلُوبُ
- दिल
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों के जो
- lā
- لَا
- नहीं वो ईमान लाते
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- नहीं वो ईमान लाते
- bil-ākhirati
- بِٱلْءَاخِرَةِۖ
- आख़िरत पर
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- dhukira
- ذُكِرَ
- ज़िक्र किया जाता है
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनका जो
- min
- مِن
- उसके अलावा हैं
- dūnihi
- دُونِهِۦٓ
- उसके अलावा हैं
- idhā
- إِذَا
- यकायक
- hum
- هُمْ
- वो
- yastabshirūna
- يَسْتَبْشِرُونَ
- वो ख़ुश हो जाते हैं
अकेले अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है तो जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते उनके दिल भिंचने लगते है, किन्तु जब उसके सिवा दूसरों का ज़िक्र होता है तो क्या देखते है कि वे खुशी से खिले जा रहे है ([३९] अज-ज़ुमर: 45)Tafseer (तफ़सीर )
قُلِ اللهم فَاطِرَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ عٰلِمَ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ اَنْتَ تَحْكُمُ بَيْنَ عِبَادِكَ فِيْ مَا كَانُوْا فِيْهِ يَخْتَلِفُوْنَ ٤٦
- quli
- قُلِ
- कह दीजिए
- l-lahuma
- ٱللَّهُمَّ
- ऐ अल्लाह
- fāṭira
- فَاطِرَ
- ऐ पैदा करने वाले
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِ
- और ज़मीन के
- ʿālima
- عَٰلِمَ
- ऐ जानने वाले
- l-ghaybi
- ٱلْغَيْبِ
- ग़ैब
- wal-shahādati
- وَٱلشَّهَٰدَةِ
- और हाज़िर के
- anta
- أَنتَ
- तू ही
- taḥkumu
- تَحْكُمُ
- तू फ़ैसला करेगा
- bayna
- بَيْنَ
- दर्मियान
- ʿibādika
- عِبَادِكَ
- अपने बन्दों के
- fī
- فِى
- उसमें जो
- mā
- مَا
- उसमें जो
- kānū
- كَانُوا۟
- हैं वो
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- yakhtalifūna
- يَخْتَلِفُونَ
- वो इख़्तिलाफ़ करते
कहो, 'ऐ अल्लाह, आकाशो और धरती को पैदा करनेवाले; परोक्ष और प्रत्यक्ष के जाननेवाले! तू ही अपने बन्दों के बीच उस चीज़ का फ़ैसला करेगा, जिसमें वे विभेद कर रहे है।' ([३९] अज-ज़ुमर: 46)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَوْ اَنَّ لِلَّذِيْنَ ظَلَمُوْا مَا فِى الْاَرْضِ جَمِيْعًا وَّمِثْلَهٗ مَعَهٗ لَافْتَدَوْا بِهٖ مِنْ سُوْۤءِ الْعَذَابِ يَوْمَ الْقِيٰمَةِۗ وَبَدَا لَهُمْ مِّنَ اللّٰهِ مَا لَمْ يَكُوْنُوْا يَحْتَسِبُوْنَ ٤٧
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- anna
- أَنَّ
- बेशक हो
- lilladhīna
- لِلَّذِينَ
- उनके लिए जिन्होंने
- ẓalamū
- ظَلَمُوا۟
- ज़ुल्म किया
- mā
- مَا
- जो कुछ
- fī
- فِى
- ज़मीन में है
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में है
- jamīʿan
- جَمِيعًا
- सब का सब
- wamith'lahu
- وَمِثْلَهُۥ
- और उसकी मानिन्द
- maʿahu
- مَعَهُۥ
- साथ उसके
- la-if'tadaw
- لَٱفْتَدَوْا۟
- अलबत्ता वे फ़िदये में दे दें
- bihi
- بِهِۦ
- उसे
- min
- مِن
- (बचने के लिए) बुरे अज़ाब से
- sūi
- سُوٓءِ
- (बचने के लिए) बुरे अज़ाब से
- l-ʿadhābi
- ٱلْعَذَابِ
- (बचने के लिए) बुरे अज़ाब से
- yawma
- يَوْمَ
- दिन
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِۚ
- क़यामत के
- wabadā
- وَبَدَا
- और ज़ाहिर हो जाएगा
- lahum
- لَهُم
- उनके लिए
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की तरफ़ से
- mā
- مَا
- जो
- lam
- لَمْ
- ना
- yakūnū
- يَكُونُوا۟
- थे वो
- yaḥtasibūna
- يَحْتَسِبُونَ
- वो गुमान रखते
जिन लोगों ने ज़ुल्म किया यदि उनके पास वह सब कुछ हो जो धरती में है और उसके साथ उतना ही और भी, तो वे क़ियामत के दिन बुरी यातना से बचने के लिए वह सब फ़िदया (प्राण-मुक्ति के बदले) में दे डाले। बात यह है कि अल्लाह की ओर से उनके सामने वह कुछ आ जाएगा जिसका वे गुमान तक न करते थे ([३९] अज-ज़ुमर: 47)Tafseer (तफ़सीर )
وَبَدَا لَهُمْ سَيِّاٰتُ مَا كَسَبُوْا وَحَاقَ بِهِمْ مَّا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ ٤٨
- wabadā
- وَبَدَا
- और ज़ाहिर हो जाऐंगी
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- sayyiātu
- سَيِّـَٔاتُ
- बुराइयाँ
- mā
- مَا
- उन (आमाल)की जो
- kasabū
- كَسَبُوا۟
- उन्होंने कमाए
- waḥāqa
- وَحَاقَ
- और घेर लेगा
- bihim
- بِهِم
- उन्हें
- mā
- مَّا
- वो जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- bihi
- بِهِۦ
- उसका
- yastahziūna
- يَسْتَهْزِءُونَ
- वो मज़ाक़ उड़ाते
और जो कुछ उन्होंने कमाया उसकी बुराइयाँ उनपर प्रकट हो जाएँगी। और वही चीज़ उन्हें घेर लेगी जिसकी वे हँसी उड़ाया करते थे ([३९] अज-ज़ुमर: 48)Tafseer (तफ़सीर )
فَاِذَا مَسَّ الْاِنْسَانَ ضُرٌّ دَعَانَاۖ ثُمَّ اِذَا خَوَّلْنٰهُ نِعْمَةً مِّنَّاۙ قَالَ اِنَّمَآ اُوْتِيْتُهٗ عَلٰى عِلْمٍ ۗبَلْ هِيَ فِتْنَةٌ وَّلٰكِنَّ اَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَ ٤٩
- fa-idhā
- فَإِذَا
- फिर जब
- massa
- مَسَّ
- पहुँचता है
- l-insāna
- ٱلْإِنسَٰنَ
- इन्सान को
- ḍurrun
- ضُرٌّ
- कोई नुक़्सान
- daʿānā
- دَعَانَا
- वो पुकारता है हमें
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- idhā
- إِذَا
- जब
- khawwalnāhu
- خَوَّلْنَٰهُ
- हम अता करते हैं उसे
- niʿ'matan
- نِعْمَةً
- कोई नेअमत
- minnā
- مِّنَّا
- अपने पास से
- qāla
- قَالَ
- वो कहता है
- innamā
- إِنَّمَآ
- बेशक
- ūtītuhu
- أُوتِيتُهُۥ
- दिया गया हूँ मैं उसे
- ʿalā
- عَلَىٰ
- इल्म की बिना पर
- ʿil'min
- عِلْمٍۭۚ
- इल्म की बिना पर
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- hiya
- هِىَ
- वो
- fit'natun
- فِتْنَةٌ
- एक फ़ितना है
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- aktharahum
- أَكْثَرَهُمْ
- अक्सर उनके
- lā
- لَا
- नहीं वो इल्म रखते
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- नहीं वो इल्म रखते
अतः जब मनुष्य को कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो वह हमें पुकारने लगता है, फिर जब हमारी ओर से उसपर कोई अनुकम्पा होती है तो कहता है, 'यह तो मुझे ज्ञान के कारण प्राप्त हुआ।' नहीं, बल्कि यह तो एक परीक्षा है, किन्तु उनमें से अधिकतर जानते नहीं ([३९] अज-ज़ुमर: 49)Tafseer (तफ़सीर )
قَدْ قَالَهَا الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ فَمَآ اَغْنٰى عَنْهُمْ مَّا كَانُوْا يَكْسِبُوْنَ ٥٠
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- qālahā
- قَالَهَا
- कहा था उसे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों ने जो
- min
- مِن
- उनसे पहले थे
- qablihim
- قَبْلِهِمْ
- उनसे पहले थे
- famā
- فَمَآ
- तो ना
- aghnā
- أَغْنَىٰ
- काम आया
- ʿanhum
- عَنْهُم
- उनके
- mā
- مَّا
- जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yaksibūna
- يَكْسِبُونَ
- वो कमाई करते
यही बात वे लोग भी कह चुके है, जो उनसे पहले गुज़रे है। किन्तु जो कुछ कमाई वे करते है, वह उनके कुछ काम न आई ([३९] अज-ज़ुमर: 50)Tafseer (तफ़सीर )