८१
اِلٰى يَوْمِ الْوَقْتِ الْمَعْلُوْمِ ٨١
- ilā
- إِلَىٰ
- उस दिन तक
- yawmi
- يَوْمِ
- उस दिन तक
- l-waqti
- ٱلْوَقْتِ
- जिसका वक़्त
- l-maʿlūmi
- ٱلْمَعْلُومِ
- मालूम है
ज्ञात समय तक मुहलत है।' ([३८] स’आद: 81)Tafseer (तफ़सीर )
८२
قَالَ فَبِعِزَّتِكَ لَاُغْوِيَنَّهُمْ اَجْمَعِيْنَۙ ٨٢
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- fabiʿizzatika
- فَبِعِزَّتِكَ
- पस क़सम है तेरी इज़्ज़त की
- la-ugh'wiyannahum
- لَأُغْوِيَنَّهُمْ
- अलबत्ता मैं ज़रूर गुमराह कर दूँगा उन्हें
- ajmaʿīna
- أَجْمَعِينَ
- सब के सब को
उसने कहा, 'तेरे प्रताप की सौगन्ध! मैं अवश्य उन सबको बहकाकर रहूँगा, ([३८] स’आद: 82)Tafseer (तफ़सीर )
८३
اِلَّا عِبَادَكَ مِنْهُمُ الْمُخْلَصِيْنَ ٨٣
- illā
- إِلَّا
- सिवाए
- ʿibādaka
- عِبَادَكَ
- तेरे बन्दों के
- min'humu
- مِنْهُمُ
- उनमें से
- l-mukh'laṣīna
- ٱلْمُخْلَصِينَ
- जो ख़ालिस किए हुए हैं
सिवाय उनमें से तेरे उन बन्दों के, जो चुने हुए है।' ([३८] स’आद: 83)Tafseer (तफ़सीर )
८४
قَالَ فَالْحَقُّۖ وَالْحَقَّ اَقُوْلُۚ ٨٤
- qāla
- قَالَ
- फ़रमाया
- fal-ḥaqu
- فَٱلْحَقُّ
- पस हक़ है
- wal-ḥaqa
- وَٱلْحَقَّ
- और हक़ ही
- aqūlu
- أَقُولُ
- मैं कहता हूँ
कहा, 'तो यह सत्य है और मैं सत्य ही कहता हूँ ([३८] स’आद: 84)Tafseer (तफ़सीर )
८५
لَاَمْلَئَنَّ جَهَنَّمَ مِنْكَ وَمِمَّنْ تَبِعَكَ مِنْهُمْ اَجْمَعِيْنَ ٨٥
- la-amla-anna
- لَأَمْلَأَنَّ
- अलबत्ता मैं ज़रूर भर दूँगा
- jahannama
- جَهَنَّمَ
- जहन्नम को
- minka
- مِنكَ
- तुझसे
- wamimman
- وَمِمَّن
- और उनसे जो
- tabiʿaka
- تَبِعَكَ
- पैरवी करेंगे तेरी
- min'hum
- مِنْهُمْ
- उनमें से
- ajmaʿīna
- أَجْمَعِينَ
- सब के सब से
कि मैं जहन्नम को तुझसे और उन सबसे भर दूँगा, जिन्होंने उनमें से तेरा अनुसरण किया होगा।' ([३८] स’आद: 85)Tafseer (तफ़सीर )
८६
قُلْ مَآ اَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ اَجْرٍ وَّمَآ اَنَا۠ مِنَ الْمُتَكَلِّفِيْنَ ٨٦
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- mā
- مَآ
- नहीं
- asalukum
- أَسْـَٔلُكُمْ
- मैं माँगता तुमसे
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- इस पर
- min
- مِنْ
- कोई अजर
- ajrin
- أَجْرٍ
- कोई अजर
- wamā
- وَمَآ
- और नहीं हूँ
- anā
- أَنَا۠
- मैं
- mina
- مِنَ
- तकल्लुफ़ करने वालों में से
- l-mutakalifīna
- ٱلْمُتَكَلِّفِينَ
- तकल्लुफ़ करने वालों में से
कह दो, 'मैं इसपर तुमसे कोई पारिश्रमिक नहीं माँगता और न मैं बनानट करनेवालों में से हूँ।' ([३८] स’आद: 86)Tafseer (तफ़सीर )
८७
اِنْ هُوَ اِلَّا ذِكْرٌ لِّلْعٰلَمِيْنَ ٨٧
- in
- إِنْ
- नहीं है
- huwa
- هُوَ
- वो
- illā
- إِلَّا
- मगर
- dhik'run
- ذِكْرٌ
- एक नसीहत
- lil'ʿālamīna
- لِّلْعَٰلَمِينَ
- तमाम जहान वालों के लिए
वह तो एक अनुस्मृति है सारे संसारवालों के लिए ([३८] स’आद: 87)Tafseer (तफ़सीर )
८८
وَلَتَعْلَمُنَّ نَبَاَهٗ بَعْدَ حِيْنٍ ࣖ ٨٨
- walataʿlamunna
- وَلَتَعْلَمُنَّ
- और अलबत्ता तुम ज़रूर जान लोगे
- naba-ahu
- نَبَأَهُۥ
- ख़बर उसकी
- baʿda
- بَعْدَ
- बाद
- ḥīnin
- حِينٍۭ
- एक वक़्त के
और थोड़ी ही अवधि के पश्चात उसकी दी हुई ख़बर तुम्हे मालूम हो जाएगी ([३८] स’आद: 88)Tafseer (तफ़सीर )