وَاذْكُرْ عَبْدَنَآ اَيُّوْبَۘ اِذْ نَادٰى رَبَّهٗٓ اَنِّيْ مَسَّنِيَ الشَّيْطٰنُ بِنُصْبٍ وَّعَذَابٍۗ ٤١
- wa-udh'kur
- وَٱذْكُرْ
- और ज़िक्र कीजिए
- ʿabdanā
- عَبْدَنَآ
- हमारे बन्दे
- ayyūba
- أَيُّوبَ
- अय्यूब का
- idh
- إِذْ
- जब
- nādā
- نَادَىٰ
- उसने पुकारा
- rabbahu
- رَبَّهُۥٓ
- अपने रब को
- annī
- أَنِّى
- बेशक मुझे
- massaniya
- مَسَّنِىَ
- पहुँचाई मुझे
- l-shayṭānu
- ٱلشَّيْطَٰنُ
- शैतान ने
- binuṣ'bin
- بِنُصْبٍ
- तकलीफ़
- waʿadhābin
- وَعَذَابٍ
- और अज़ाब
हमारे बन्दे अय्यूब को भी याद करो, जब उसने अपने रब को पुकारा कि 'शैतान ने मुझे दुख और पीड़ा पहुँचा रखी है।' ([३८] स’आद: 41)Tafseer (तफ़सीर )
اُرْكُضْ بِرِجْلِكَۚ هٰذَا مُغْتَسَلٌۢ بَارِدٌ وَّشَرَابٌ ٤٢
- ur'kuḍ
- ٱرْكُضْ
- मार
- birij'lika
- بِرِجْلِكَۖ
- पाँव अपना
- hādhā
- هَٰذَا
- ये
- mugh'tasalun
- مُغْتَسَلٌۢ
- नहाने का पानी है
- bāridun
- بَارِدٌ
- ठंडा
- washarābun
- وَشَرَابٌ
- और पीने का पानी
'अपना पाँव (धरती पर) मार, यह है ठंडा (पानी) नहाने को और पीने को।' ([३८] स’आद: 42)Tafseer (तफ़सीर )
وَوَهَبْنَا لَهٗٓ اَهْلَهٗ وَمِثْلَهُمْ مَّعَهُمْ رَحْمَةً مِّنَّا وَذِكْرٰى لِاُولِى الْاَلْبَابِ ٤٣
- wawahabnā
- وَوَهَبْنَا
- और अता किए हमने
- lahu
- لَهُۥٓ
- उसे
- ahlahu
- أَهْلَهُۥ
- उसके घर वाले
- wamith'lahum
- وَمِثْلَهُم
- और मानिन्द उनके
- maʿahum
- مَّعَهُمْ
- साथ उनके
- raḥmatan
- رَحْمَةً
- बतौरे रहमत
- minnā
- مِّنَّا
- हमारी तरफ़ से
- wadhik'rā
- وَذِكْرَىٰ
- और एक नसीहत
- li-ulī
- لِأُو۟لِى
- अक़्ल वालों के लिए
- l-albābi
- ٱلْأَلْبَٰبِ
- अक़्ल वालों के लिए
और हमने उसे उसके परिजन दिए और उनके साथ वैसे ही और भी; अपनी ओर से दयालुता के रूप में और बुद्धि और समझ रखनेवालों के लिए शिक्षा के रूप में। ([३८] स’आद: 43)Tafseer (तफ़सीर )
وَخُذْ بِيَدِكَ ضِغْثًا فَاضْرِبْ بِّهٖ وَلَا تَحْنَثْ ۗاِنَّا وَجَدْنٰهُ صَابِرًا ۗنِعْمَ الْعَبْدُ ۗاِنَّهٗٓ اَوَّابٌ ٤٤
- wakhudh
- وَخُذْ
- और ले ले
- biyadika
- بِيَدِكَ
- अपने हाथ से
- ḍigh'than
- ضِغْثًا
- तिनकों का एक मुठ्ठा
- fa-iḍ'rib
- فَٱضْرِب
- फिर मार
- bihi
- بِّهِۦ
- साथ उसके
- walā
- وَلَا
- और ना
- taḥnath
- تَحْنَثْۗ
- तू क़सम तोड़
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- wajadnāhu
- وَجَدْنَٰهُ
- पाया हमने उसे
- ṣābiran
- صَابِرًاۚ
- साबिर
- niʿ'ma
- نِّعْمَ
- कितना अच्छा
- l-ʿabdu
- ٱلْعَبْدُۖ
- बन्दा
- innahu
- إِنَّهُۥٓ
- बेशक वो
- awwābun
- أَوَّابٌ
- बहुत रुजूअ करने वाला था
'और अपने हाथ में तिनकों का एक मुट्ठा ले और उससे मार और अपनी क़सम न तोड़।' निश्चय ही हमने उसे धैर्यवान पाया, क्या ही अच्छा बन्दा! निस्संदेह वह बड़ा ही रुजू रहनेवाला था ([३८] स’आद: 44)Tafseer (तफ़सीर )
وَاذْكُرْ عِبٰدَنَآ اِبْرٰهِيْمَ وَاِسْحٰقَ وَيَعْقُوْبَ اُولِى الْاَيْدِيْ وَالْاَبْصَارِ ٤٥
- wa-udh'kur
- وَٱذْكُرْ
- और ज़िक्र करो
- ʿibādanā
- عِبَٰدَنَآ
- हमारे बन्दों
- ib'rāhīma
- إِبْرَٰهِيمَ
- इब्राहीम
- wa-is'ḥāqa
- وَإِسْحَٰقَ
- और इस्हाक़
- wayaʿqūba
- وَيَعْقُوبَ
- और याक़ूब का
- ulī
- أُو۟لِى
- जो हाथों वाले
- l-aydī
- ٱلْأَيْدِى
- जो हाथों वाले
- wal-abṣāri
- وَٱلْأَبْصَٰرِ
- और आँखों वाले थे
हमारे बन्दों, इबराहीम और इसहाक़ और याक़ूब को भी याद करो, जो हाथों (शक्ति) और निगाहोंवाले (ज्ञान-चक्षुवाले) थे ([३८] स’आद: 45)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّآ اَخْلَصْنٰهُمْ بِخَالِصَةٍ ذِكْرَى الدَّارِۚ ٤٦
- innā
- إِنَّآ
- बेशक हम
- akhlaṣnāhum
- أَخْلَصْنَٰهُم
- ख़ालिस कर लिया था हमने उन्हें
- bikhāliṣatin
- بِخَالِصَةٍ
- साथ ख़ास सिफ़त के
- dhik'rā
- ذِكْرَى
- (जो) याद थी
- l-dāri
- ٱلدَّارِ
- असल घर की
निस्संदेह हमने उन्हें एक विशिष्ट बात के लिए चुन लिया था और वह वास्तविक घर (आख़िरत) की याद थी ([३८] स’आद: 46)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِنَّهُمْ عِنْدَنَا لَمِنَ الْمُصْطَفَيْنَ الْاَخْيَارِۗ ٤٧
- wa-innahum
- وَإِنَّهُمْ
- और बेशक वो
- ʿindanā
- عِندَنَا
- हमारे नज़दीक
- lamina
- لَمِنَ
- अलबत्ता चुने हुओं में से थे
- l-muṣ'ṭafayna
- ٱلْمُصْطَفَيْنَ
- अलबत्ता चुने हुओं में से थे
- l-akhyāri
- ٱلْأَخْيَارِ
- जो नेक थे
और निश्चय ही वे हमारे यहाँ चुने हुए नेक लोगों में से है ([३८] स’आद: 47)Tafseer (तफ़सीर )
وَاذْكُرْ اِسْمٰعِيْلَ وَالْيَسَعَ وَذَا الْكِفْلِ ۗوَكُلٌّ مِّنَ الْاَخْيَارِۗ ٤٨
- wa-udh'kur
- وَٱذْكُرْ
- और ज़िक्र कीजिए
- is'māʿīla
- إِسْمَٰعِيلَ
- इस्माईल
- wal-yasaʿa
- وَٱلْيَسَعَ
- और यसा
- wadhā
- وَذَا
- और जुलकिफ़्ल का
- l-kif'li
- ٱلْكِفْلِۖ
- और जुलकिफ़्ल का
- wakullun
- وَكُلٌّ
- और वो सब
- mina
- مِّنَ
- नेक लोगों में से थे
- l-akhyāri
- ٱلْأَخْيَارِ
- नेक लोगों में से थे
इसमाईल और अल-यसअ और ज़ुलकिफ़्ल को भी याद करो। इनमें से प्रत्येक ही अच्छा रहा है ([३८] स’आद: 48)Tafseer (तफ़सीर )
هٰذَا ذِكْرٌ ۗوَاِنَّ لِلْمُتَّقِيْنَ لَحُسْنَ مَاٰبٍۙ ٤٩
- hādhā
- هَٰذَا
- ये
- dhik'run
- ذِكْرٌۚ
- एक ज़िक्र है
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- lil'muttaqīna
- لِلْمُتَّقِينَ
- मुत्तक़ी लोगों के लिए
- laḥus'na
- لَحُسْنَ
- अलबत्ता अच्छा है
- maābin
- مَـَٔابٍ
- ठिकाना
यह एक अनुस्मृति है। और निश्चय ही डर रखनेवालों के लिए अच्छा ठिकाना है ([३८] स’आद: 49)Tafseer (तफ़सीर )
جَنّٰتِ عَدْنٍ مُّفَتَّحَةً لَّهُمُ الْاَبْوَابُۚ ٥٠
- jannāti
- جَنَّٰتِ
- बाग़ात
- ʿadnin
- عَدْنٍ
- हमेशगी के
- mufattaḥatan
- مُّفَتَّحَةً
- खुले होंगे
- lahumu
- لَّهُمُ
- उनके लिए
- l-abwābu
- ٱلْأَبْوَٰبُ
- दरवाज़े
सदैव रहने के बाग़ है, जिनके द्वार उनके लिए खुले होंगे ([३८] स’आद: 50)Tafseer (तफ़सीर )