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सूरा स’आद - Page: 4

Sad

(The Letter Sad)

३१

اِذْ عُرِضَ عَلَيْهِ بِالْعَشِيِّ الصّٰفِنٰتُ الْجِيَادُۙ ٣١

idh
إِذْ
जब
ʿuriḍa
عُرِضَ
पेश किए गए
ʿalayhi
عَلَيْهِ
उस पर
bil-ʿashiyi
بِٱلْعَشِىِّ
शाम के वक़्त
l-ṣāfinātu
ٱلصَّٰفِنَٰتُ
असील घोड़े
l-jiyādu
ٱلْجِيَادُ
उम्दा
याद करो, जबकि सन्ध्या समय उसके सामने सधे हुए द्रुतगामी घोड़े हाज़िर किए गए ([३८] स’आद: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

فَقَالَ اِنِّيْٓ اَحْبَبْتُ حُبَّ الْخَيْرِ عَنْ ذِكْرِ رَبِّيْۚ حَتّٰى تَوَارَتْ بِالْحِجَابِۗ ٣٢

faqāla
فَقَالَ
तो उसने कहा
innī
إِنِّىٓ
बेशक मैं
aḥbabtu
أَحْبَبْتُ
महबूब रखा मैं ने
ḥubba
حُبَّ
मुहब्बत को
l-khayri
ٱلْخَيْرِ
माल की
ʿan
عَن
याद की वजह से
dhik'ri
ذِكْرِ
याद की वजह से
rabbī
رَبِّى
अपने रब की
ḥattā
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
tawārat
تَوَارَتْ
वो छुप गए
bil-ḥijābi
بِٱلْحِجَابِ
परदे में
तो उसने कहा, 'मैंने इनके प्रति प्रेम अपने रब की याद के कारण अपनाया है।' यहाँ तक कि वे (घोड़े) ओट में छिप गए ([३८] स’आद: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

رُدُّوْهَا عَلَيَّ ۚفَطَفِقَ مَسْحًا ۢبِالسُّوْقِ وَالْاَعْنَاقِ ٣٣

ruddūhā
رُدُّوهَا
फेर लाओ उन्हें
ʿalayya
عَلَىَّۖ
मुझ पर
faṭafiqa
فَطَفِقَ
तो लगा
masḥan
مَسْحًۢا
हाथ फेरने
bil-sūqi
بِٱلسُّوقِ
पिंडलियों पर
wal-aʿnāqi
وَٱلْأَعْنَاقِ
और गर्दनों पर
'उन्हें मेरे पास वापस लाओ!' फिर वह उनकी पिंडलियों और गरदनों पर हाथ फेरने लगा ([३८] स’आद: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

وَلَقَدْ فَتَنَّا سُلَيْمٰنَ وَاَلْقَيْنَا عَلٰى كُرْسِيِّهٖ جَسَدًا ثُمَّ اَنَابَ ٣٤

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक
fatannā
فَتَنَّا
आज़माया हमने
sulaymāna
سُلَيْمَٰنَ
सुलैमान को
wa-alqaynā
وَأَلْقَيْنَا
और डाल दिया हमने
ʿalā
عَلَىٰ
उसकी कुर्सी पर
kur'siyyihi
كُرْسِيِّهِۦ
उसकी कुर्सी पर
jasadan
جَسَدًا
एक जिस्म
thumma
ثُمَّ
फिर
anāba
أَنَابَ
उसने रुजूअ कर लिया
निश्चय ही हमने सुलैमान को भी परीक्षा में डाला। और हमने उसके तख़्त पर एक धड़ डाल दिया। फिर वह रुजू हुआ ([३८] स’आद: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

قَالَ رَبِّ اغْفِرْ لِيْ وَهَبْ لِيْ مُلْكًا لَّا يَنْۢبَغِيْ لِاَحَدٍ مِّنْۢ بَعْدِيْۚ اِنَّكَ اَنْتَ الْوَهَّابُ ٣٥

qāla
قَالَ
उसने कहा
rabbi
رَبِّ
ऐ मेरे रब
igh'fir
ٱغْفِرْ
बख़्श दे
لِى
मुझे
wahab
وَهَبْ
और अता कर
لِى
मुझे
mul'kan
مُلْكًا
ऐसी बादशाहत
لَّا
ना हासिल हो
yanbaghī
يَنۢبَغِى
ना हासिल हो
li-aḥadin
لِأَحَدٍ
किसी एक को
min
مِّنۢ
मेरे बाद
baʿdī
بَعْدِىٓۖ
मेरे बाद
innaka
إِنَّكَ
बेशक
anta
أَنتَ
तू ही है
l-wahābu
ٱلْوَهَّابُ
बहुत अता करने वाला
उसने कहा, 'ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और मुझे वह राज्य प्रदान कर, जो मेरे पश्चात किसी के लिए शोभनीय न हो। निश्चय ही तू बड़ा दाता है।' ([३८] स’आद: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

فَسَخَّرْنَا لَهُ الرِّيْحَ تَجْرِيْ بِاَمْرِهٖ رُخَاۤءً حَيْثُ اَصَابَۙ ٣٦

fasakharnā
فَسَخَّرْنَا
तो मुसख़्खर किया हमने
lahu
لَهُ
उसके लिए
l-rīḥa
ٱلرِّيحَ
हवा को
tajrī
تَجْرِى
जो चलती थी
bi-amrihi
بِأَمْرِهِۦ
उसके हुक्म से
rukhāan
رُخَآءً
नर्मी से
ḥaythu
حَيْثُ
जहाँ
aṣāba
أَصَابَ
वो पहुँचना चाहता
तब हमने वायु को उसके लिए वशीभूत कर दिया, जो उसके आदेश से, जहाँ वह पहुँचना चाहता, सरलतापूर्वक चलती थी ([३८] स’आद: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

وَالشَّيٰطِيْنَ كُلَّ بَنَّاۤءٍ وَّغَوَّاصٍۙ ٣٧

wal-shayāṭīna
وَٱلشَّيَٰطِينَ
और सरकश जिन्नों को
kulla
كُلَّ
हर तरह के
bannāin
بَنَّآءٍ
मेअमार
waghawwāṣin
وَغَوَّاصٍ
और ग़ोता ख़ोर
और शैतानों को भी (वशीभुत कर दिया), प्रत्येक निर्माता और ग़ोताख़ोर को ([३८] स’आद: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

وَّاٰخَرِيْنَ مُقَرَّنِيْنَ فِى الْاَصْفَادِ ٣٨

waākharīna
وَءَاخَرِينَ
और कुछ दूसरे
muqarranīna
مُقَرَّنِينَ
जकड़े हुए
فِى
बेड़ियों में
l-aṣfādi
ٱلْأَصْفَادِ
बेड़ियों में
और दूसरों को भी जो ज़जीरों में जकड़े हुए रहत ([३८] स’आद: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

هٰذَا عَطَاۤؤُنَا فَامْنُنْ اَوْ اَمْسِكْ بِغَيْرِ حِسَابٍ ٣٩

hādhā
هَٰذَا
ये है
ʿaṭāunā
عَطَآؤُنَا
बख़्शिश हमारी
fa-um'nun
فَٱمْنُنْ
पस एहसान करो
aw
أَوْ
या
amsik
أَمْسِكْ
रोक लो
bighayri
بِغَيْرِ
बग़ैर
ḥisābin
حِسَابٍ
हिसाब के
'यह हमारी बेहिसाब देन है। अब एहसान करो या रोको।' ([३८] स’आद: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

وَاِنَّ لَهٗ عِنْدَنَا لَزُلْفٰى وَحُسْنَ مَاٰبٍ ࣖ ٤٠

wa-inna
وَإِنَّ
और बेशक
lahu
لَهُۥ
उसके लिए
ʿindanā
عِندَنَا
हमारे पास
lazul'fā
لَزُلْفَىٰ
अलबत्ता तक़र्रुब है
waḥus'na
وَحُسْنَ
और बेहतरीन
maābin
مَـَٔابٍ
ठिकाना है
और निश्चय ही हमारे यहाँ उसके लिए अनिवार्यतः समीप्य और उत्तम ठिकाना है ([३८] स’आद: 40)
Tafseer (तफ़सीर )