१४१
فَسَاهَمَ فَكَانَ مِنَ الْمُدْحَضِيْنَۚ ١٤١
- fasāhama
- فَسَاهَمَ
- तो क़ुरअ डाला
- fakāna
- فَكَانَ
- फिर वो हो गया
- mina
- مِنَ
- हार जाने वालों में से
- l-mud'ḥaḍīna
- ٱلْمُدْحَضِينَ
- हार जाने वालों में से
फिर पर्ची डालने में शामिल हुआ और उसमें मात खाई ([३७] अस-सफ्फात: 141)Tafseer (तफ़सीर )
१४२
فَالْتَقَمَهُ الْحُوْتُ وَهُوَ مُلِيْمٌ ١٤٢
- fal-taqamahu
- فَٱلْتَقَمَهُ
- तो लुक़्मा बना लिया उसका
- l-ḥūtu
- ٱلْحُوتُ
- मछली ने
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो
- mulīmun
- مُلِيمٌ
- मलामत ज़दा था
फिर उसे मछली ने निगल लिया और वह निन्दनीय दशा में ग्रस्त हो गया था। ([३७] अस-सफ्फात: 142)Tafseer (तफ़सीर )
१४३
فَلَوْلَآ اَنَّهٗ كَانَ مِنَ الْمُسَبِّحِيْنَ ۙ ١٤٣
- falawlā
- فَلَوْلَآ
- फिर अगर ना
- annahu
- أَنَّهُۥ
- ये कि
- kāna
- كَانَ
- होता वो
- mina
- مِنَ
- तस्बीह करने वालों में से
- l-musabiḥīna
- ٱلْمُسَبِّحِينَ
- तस्बीह करने वालों में से
अब यदि वह तसबीह करनेवाला न होता ([३७] अस-सफ्फात: 143)Tafseer (तफ़सीर )
१४४
لَلَبِثَ فِيْ بَطْنِهٖٓ اِلٰى يَوْمِ يُبْعَثُوْنَۚ ١٤٤
- lalabitha
- لَلَبِثَ
- अलबत्ता वो ठहरा रहता
- fī
- فِى
- उसके पेट में
- baṭnihi
- بَطْنِهِۦٓ
- उसके पेट में
- ilā
- إِلَىٰ
- उस दिन तक
- yawmi
- يَوْمِ
- उस दिन तक
- yub'ʿathūna
- يُبْعَثُونَ
- (जब) वो दोबारा उठाए जाऐंगे
तो उसी के भीतर उस दिन तक पड़ा रह जाता, जबकि लोग उठाए जाएँगे। ([३७] अस-सफ्फात: 144)Tafseer (तफ़सीर )
१४५
فَنَبَذْنٰهُ بِالْعَرَاۤءِ وَهُوَ سَقِيْمٌ ۚ ١٤٥
- fanabadhnāhu
- فَنَبَذْنَٰهُ
- तो हमने फेंक दिया उसे
- bil-ʿarāi
- بِٱلْعَرَآءِ
- चटियल मैदान में
- wahuwa
- وَهُوَ
- इस हाल में कि वो
- saqīmun
- سَقِيمٌ
- बीमार था
अन्ततः हमने उसे इस दशा में कि वह निढ़ाल था, साफ़ मैदान में डाल दिया। ([३७] अस-सफ्फात: 145)Tafseer (तफ़सीर )
१४६
وَاَنْۢبَتْنَا عَلَيْهِ شَجَرَةً مِّنْ يَّقْطِيْنٍۚ ١٤٦
- wa-anbatnā
- وَأَنۢبَتْنَا
- और उगाया हमने
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उस पर
- shajaratan
- شَجَرَةً
- एक पौदा
- min
- مِّن
- कद्दू की बेल का
- yaqṭīnin
- يَقْطِينٍ
- कद्दू की बेल का
हमने उसपर बेलदार वृक्ष उगाया था ([३७] अस-सफ्फात: 146)Tafseer (तफ़सीर )
१४७
وَاَرْسَلْنٰهُ اِلٰى مِائَةِ اَلْفٍ اَوْ يَزِيْدُوْنَۚ ١٤٧
- wa-arsalnāhu
- وَأَرْسَلْنَٰهُ
- और भेजा हमने उसे
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ सौ हज़ार (एक लाख) के
- mi-ati
- مِا۟ئَةِ
- तरफ़ सौ हज़ार (एक लाख) के
- alfin
- أَلْفٍ
- तरफ़ सौ हज़ार (एक लाख) के
- aw
- أَوْ
- बल्कि
- yazīdūna
- يَزِيدُونَ
- वो ज़्यादा होंगे
और हमने उसे एक लाख या उससे अधिक (लोगों) की ओर भेजा ([३७] अस-सफ्फात: 147)Tafseer (तफ़सीर )
१४८
فَاٰمَنُوْا فَمَتَّعْنٰهُمْ اِلٰى حِيْنٍ ١٤٨
- faāmanū
- فَـَٔامَنُوا۟
- तो वो ईमान ले आए
- famattaʿnāhum
- فَمَتَّعْنَٰهُمْ
- तो हमने फ़ायदा दिया उन्हें
- ilā
- إِلَىٰ
- एक वक़्त तक
- ḥīnin
- حِينٍ
- एक वक़्त तक
फिर वे ईमान लाए तो हमने उन्हें एक अवधि कर सुख भोगने का अवसर दिया। ([३७] अस-सफ्फात: 148)Tafseer (तफ़सीर )
१४९
فَاسْتَفْتِهِمْ اَلِرَبِّكَ الْبَنَاتُ وَلَهُمُ الْبَنُوْنَۚ ١٤٩
- fa-is'taftihim
- فَٱسْتَفْتِهِمْ
- पस पूछो उनसे
- alirabbika
- أَلِرَبِّكَ
- क्या आपके रब के लिए हैं
- l-banātu
- ٱلْبَنَاتُ
- बेटियाँ
- walahumu
- وَلَهُمُ
- और उनके लिए हैं
- l-banūna
- ٱلْبَنُونَ
- बेटे
अब उनसे पूछो, 'क्या तुम्हारे रब के लिए तो बेटियाँ हों और उनके अपने लिए बेटे? ([३७] अस-सफ्फात: 149)Tafseer (तफ़सीर )
१५०
اَمْ خَلَقْنَا الْمَلٰۤىِٕكَةَ اِنَاثًا وَّهُمْ شَاهِدُوْنَ ١٥٠
- am
- أَمْ
- या
- khalaqnā
- خَلَقْنَا
- बनाया हमने
- l-malāikata
- ٱلْمَلَٰٓئِكَةَ
- फ़रिश्तों को
- ināthan
- إِنَٰثًا
- औरतें
- wahum
- وَهُمْ
- जब कि वो
- shāhidūna
- شَٰهِدُونَ
- हाज़िर थे
क्या हमने फ़रिश्तों को औरतें बनाया और यह उनकी आँखों देखी बात हैं?' ([३७] अस-सफ्फात: 150)Tafseer (तफ़सीर )