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सूरा यासीन - Page: 7

Ya-Sin

(या-सीन)

६१

وَاَنِ اعْبُدُوْنِيْ ۗهٰذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيْمٌ ٦١

wa-ani
وَأَنِ
और ये कि
uʿ'budūnī
ٱعْبُدُونِىۚ
इबादत करो मेरी
hādhā
هَٰذَا
ये
ṣirāṭun
صِرَٰطٌ
रास्ता है
mus'taqīmun
مُّسْتَقِيمٌ
सीधा
और यह कि मेरी बन्दगी करो? यही सीधा मार्ग है ([३६] यासीन: 61)
Tafseer (तफ़सीर )
६२

وَلَقَدْ اَضَلَّ مِنْكُمْ جِبِلًّا كَثِيْرًا ۗاَفَلَمْ تَكُوْنُوْا تَعْقِلُوْنَ ٦٢

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
aḍalla
أَضَلَّ
उसने गुमराह कर दिया
minkum
مِنكُمْ
तुम में से
jibillan
جِبِلًّا
मख़्लूक़ को
kathīran
كَثِيرًاۖ
बहुत सी
afalam
أَفَلَمْ
क्या फिर नहीं
takūnū
تَكُونُوا۟
थे तुम
taʿqilūna
تَعْقِلُونَ
तुम अक़्ल से काम लेते
उसने तो तुममें से बहुत-से गिरोहों को पथभ्रष्ट कर दिया। तो क्या तुम बुद्धि नहीं रखते थे? ([३६] यासीन: 62)
Tafseer (तफ़सीर )
६३

هٰذِهٖ جَهَنَّمُ الَّتِيْ كُنْتُمْ تُوْعَدُوْنَ ٦٣

hādhihi
هَٰذِهِۦ
ये है
jahannamu
جَهَنَّمُ
जहन्नम
allatī
ٱلَّتِى
वो जो
kuntum
كُنتُمْ
थे तुम
tūʿadūna
تُوعَدُونَ
तुम वादा किए जाते
यह वही जहन्नम है जिसकी तुम्हें धमकी दी जाती रही है ([३६] यासीन: 63)
Tafseer (तफ़सीर )
६४

اِصْلَوْهَا الْيَوْمَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُوْنَ ٦٤

iṣ'lawhā
ٱصْلَوْهَا
दाख़िल हो जाओ इसमें
l-yawma
ٱلْيَوْمَ
आज के दिन
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kuntum
كُنتُمْ
थे तुम
takfurūna
تَكْفُرُونَ
तुम कुफ़्र करते
जो इनकार तुम करते रहे हो, उसके बदले में आज इसमें प्रविष्ट हो जाओ।' ([३६] यासीन: 64)
Tafseer (तफ़सीर )
६५

اَلْيَوْمَ نَخْتِمُ عَلٰٓى اَفْوَاهِهِمْ وَتُكَلِّمُنَآ اَيْدِيْهِمْ وَتَشْهَدُ اَرْجُلُهُمْ بِمَا كَانُوْا يَكْسِبُوْنَ ٦٥

al-yawma
ٱلْيَوْمَ
आज
nakhtimu
نَخْتِمُ
हम मोहर लगा देंगे
ʿalā
عَلَىٰٓ
उनके मुँहों पर
afwāhihim
أَفْوَٰهِهِمْ
उनके मुँहों पर
watukallimunā
وَتُكَلِّمُنَآ
और कलाम करेंगे हमसे
aydīhim
أَيْدِيهِمْ
हाथ उनके
watashhadu
وَتَشْهَدُ
और गवाही देंगे
arjuluhum
أَرْجُلُهُم
पाँव उनके
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yaksibūna
يَكْسِبُونَ
वो कमाई करते
आज हम उनके मुँह पर मुहर लगा देंगे और उनके हाथ हमसे बोलेंगे और जो कुछ वे कमाते रहे है, उनके पाँव उसकी गवाही देंगे ([३६] यासीन: 65)
Tafseer (तफ़सीर )
६६

وَلَوْ نَشَاۤءُ لَطَمَسْنَا عَلٰٓى اَعْيُنِهِمْ فَاسْتَبَقُوا الصِّرَاطَ فَاَنّٰى يُبْصِرُوْنَ ٦٦

walaw
وَلَوْ
और अगर
nashāu
نَشَآءُ
हम चाहें
laṭamasnā
لَطَمَسْنَا
अलबत्ता हम मिटा दें
ʿalā
عَلَىٰٓ
उनकी आँखों को
aʿyunihim
أَعْيُنِهِمْ
उनकी आँखों को
fa-is'tabaqū
فَٱسْتَبَقُوا۟
पस वो दौड़ें
l-ṣirāṭa
ٱلصِّرَٰطَ
रास्ते (की तरफ़)
fa-annā
فَأَنَّىٰ
तो कैसे
yub'ṣirūna
يُبْصِرُونَ
वो देख सकेंगे
यदि हम चाहें तो उनकी आँखें मेट दें क्योंकि वे (अपने रूढ़) मार्ग की और लपके हुए है। फिर उन्हें सुझाई कहाँ से देगा? ([३६] यासीन: 66)
Tafseer (तफ़सीर )
६७

وَلَوْ نَشَاۤءُ لَمَسَخْنٰهُمْ عَلٰى مَكَانَتِهِمْ فَمَا اسْتَطَاعُوْا مُضِيًّا وَّلَا يَرْجِعُوْنَ ࣖ ٦٧

walaw
وَلَوْ
और अगर
nashāu
نَشَآءُ
हम चाहें
lamasakhnāhum
لَمَسَخْنَٰهُمْ
अलबत्ता मसख़ कर दें हम उन्हें
ʿalā
عَلَىٰ
उनकी जगहों पर
makānatihim
مَكَانَتِهِمْ
उनकी जगहों पर
famā
فَمَا
तो ना
is'taṭāʿū
ٱسْتَطَٰعُوا۟
वो इस्तिताअत रखते होंगे
muḍiyyan
مُضِيًّا
चलने की
walā
وَلَا
और ना
yarjiʿūna
يَرْجِعُونَ
वो पलट सकेंगे
यदि हम चाहें तो उनकी जगह पर ही उनके रूप बिगाड़कर रख दें क्योंकि वे सत्य की ओर न चल सके और वे (गुमराही से) बाज़ नहीं आते। ([३६] यासीन: 67)
Tafseer (तफ़सीर )
६८

وَمَنْ نُّعَمِّرْهُ نُنَكِّسْهُ فِى الْخَلْقِۗ اَفَلَا يَعْقِلُوْنَ ٦٨

waman
وَمَن
और वो जो
nuʿammir'hu
نُّعَمِّرْهُ
हम उमर देते हैं उसे
nunakkis'hu
نُنَكِّسْهُ
हम उलटा देते हैं उसे
فِى
साख़्त में
l-khalqi
ٱلْخَلْقِۖ
साख़्त में
afalā
أَفَلَا
क्या भला नहीं
yaʿqilūna
يَعْقِلُونَ
वो अक़्ल रखते
जिसको हम दीर्धायु देते है, उसको उसकी संरचना में उल्टा फेर देते है। तो क्या वे बुद्धि से काम नहीं लेते? ([३६] यासीन: 68)
Tafseer (तफ़सीर )
६९

وَمَا عَلَّمْنٰهُ الشِّعْرَ وَمَا يَنْۢبَغِيْ لَهٗ ۗاِنْ هُوَ اِلَّا ذِكْرٌ وَّقُرْاٰنٌ مُّبِيْنٌ ۙ ٦٩

wamā
وَمَا
और नहीं
ʿallamnāhu
عَلَّمْنَٰهُ
सिखाया हमने उसे
l-shiʿ'ra
ٱلشِّعْرَ
शेअर
wamā
وَمَا
और नहीं
yanbaghī
يَنۢبَغِى
वो ज़ेब देता
lahu
لَهُۥٓۚ
उसे
in
إِنْ
नहीं है
huwa
هُوَ
वो
illā
إِلَّا
मगर
dhik'run
ذِكْرٌ
एक नसीहत
waqur'ānun
وَقُرْءَانٌ
और क़ुरआन
mubīnun
مُّبِينٌ
वाज़ेह
हमने उस (नबी) को कविता नहीं सिखाई और न वह उसके लिए शोभनीय है। वह तो केवल अनुस्मृति और स्पष्ट क़ुरआन है; ([३६] यासीन: 69)
Tafseer (तफ़सीर )
७०

لِّيُنْذِرَ مَنْ كَانَ حَيًّا وَّيَحِقَّ الْقَوْلُ عَلَى الْكٰفِرِيْنَ ٧٠

liyundhira
لِّيُنذِرَ
ताकि वो डराए
man
مَن
उसे जो
kāna
كَانَ
है
ḥayyan
حَيًّا
ज़िन्दा
wayaḥiqqa
وَيَحِقَّ
और साबित हो जाए
l-qawlu
ٱلْقَوْلُ
बात
ʿalā
عَلَى
काफ़िरों पर
l-kāfirīna
ٱلْكَٰفِرِينَ
काफ़िरों पर
ताकि वह उसे सचेत कर दे जो जीवन्त हो और इनकार करनेवालों पर (यातना की) बात स्थापित हो जाए ([३६] यासीन: 70)
Tafseer (तफ़सीर )