وَاٰيَةٌ لَّهُمْ اَنَّا حَمَلْنَا ذُرِّيَّتَهُمْ فِى الْفُلْكِ الْمَشْحُوْنِۙ ٤١
- waāyatun
- وَءَايَةٌ
- और एक निशानी है
- lahum
- لَّهُمْ
- उनके लिए
- annā
- أَنَّا
- बेशक हम
- ḥamalnā
- حَمَلْنَا
- सवार किया हमने
- dhurriyyatahum
- ذُرِّيَّتَهُمْ
- उनकी औलाद को
- fī
- فِى
- कश्ती में
- l-ful'ki
- ٱلْفُلْكِ
- कश्ती में
- l-mashḥūni
- ٱلْمَشْحُونِ
- भरी हुई
और एक निशानी उनके लिए यह है कि हमने उनके अनुवर्तियों को भरी हुई नौका में सवार किया ([३६] यासीन: 41)Tafseer (तफ़सीर )
وَخَلَقْنَا لَهُمْ مِّنْ مِّثْلِهٖ مَا يَرْكَبُوْنَ ٤٢
- wakhalaqnā
- وَخَلَقْنَا
- और पैदा कीं हमने
- lahum
- لَهُم
- उनके लिए
- min
- مِّن
- उस जैसी (चीज़ों ) से
- mith'lihi
- مِّثْلِهِۦ
- उस जैसी (चीज़ों ) से
- mā
- مَا
- जिन पर
- yarkabūna
- يَرْكَبُونَ
- वो सवार होते हैं
और उनके लिए उसी के सदृश और भी ऐसी चीज़े पैदा की, जिनपर वे सवार होते है ([३६] यासीन: 42)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِنْ نَّشَأْ نُغْرِقْهُمْ فَلَا صَرِيْخَ لَهُمْ وَلَاهُمْ يُنْقَذُوْنَۙ ٤٣
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- nasha
- نَّشَأْ
- हम चाहें
- nugh'riq'hum
- نُغْرِقْهُمْ
- हम ग़र्क़ कर दें उन्हें
- falā
- فَلَا
- तो नहीं
- ṣarīkha
- صَرِيخَ
- कोई फ़रियाद रस
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- walā
- وَلَا
- और ना
- hum
- هُمْ
- वो
- yunqadhūna
- يُنقَذُونَ
- वो बचाए जा सकेंगे
और यदि हम चाहें तो उन्हें डूबो दें। फिर न तो उनकी कोई चीख-पुकार हो और न उन्हें बचाया जा सके ([३६] यासीन: 43)Tafseer (तफ़सीर )
اِلَّا رَحْمَةً مِّنَّا وَمَتَاعًا اِلٰى حِيْنٍ ٤٤
- illā
- إِلَّا
- सिवाए
- raḥmatan
- رَحْمَةً
- रहमत के
- minnā
- مِّنَّا
- हमारी तरफ़ से
- wamatāʿan
- وَمَتَٰعًا
- और फ़ायदा देना
- ilā
- إِلَىٰ
- एक मुद्दत तक
- ḥīnin
- حِينٍ
- एक मुद्दत तक
यह तो बस हमारी दयालुता और एक नियत समय तक की सुख-सामग्री है ([३६] यासीन: 44)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا قِيْلَ لَهُمُ اتَّقُوْا مَا بَيْنَ اَيْدِيْكُمْ وَمَا خَلْفَكُمْ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ ٤٥
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- qīla
- قِيلَ
- कहा जाता है
- lahumu
- لَهُمُ
- उन्हें
- ittaqū
- ٱتَّقُوا۟
- डरो
- mā
- مَا
- उससे जो
- bayna
- بَيْنَ
- तुम्हारे सामने है
- aydīkum
- أَيْدِيكُمْ
- तुम्हारे सामने है
- wamā
- وَمَا
- और जो
- khalfakum
- خَلْفَكُمْ
- तुम्हारे पीछे है
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tur'ḥamūna
- تُرْحَمُونَ
- तुम रहम किए जाओ
और जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज़ का डर रखो, जो तुम्हारे आगे है और जो तुम्हारे पीछे है, ताकि तुमपर दया कि जाए! (तो चुप्पी साझ लेते है) ([३६] यासीन: 45)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا تَأْتِيْهِمْ مِّنْ اٰيَةٍ مِّنْ اٰيٰتِ رَبِّهِمْ اِلَّا كَانُوْا عَنْهَا مُعْرِضِيْنَ ٤٦
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- tatīhim
- تَأْتِيهِم
- आती उनके पास
- min
- مِّنْ
- कोई निशानी
- āyatin
- ءَايَةٍ
- कोई निशानी
- min
- مِّنْ
- निशानियों में से
- āyāti
- ءَايَٰتِ
- निशानियों में से
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- उनके रब की
- illā
- إِلَّا
- मगर
- kānū
- كَانُوا۟
- होते हैं वो
- ʿanhā
- عَنْهَا
- उससे
- muʿ'riḍīna
- مُعْرِضِينَ
- ऐराज़ करने वाले
उनके पास उनके रब की आयतों में से जो आयत भी आती है, वे उससे कतराते ही है ([३६] यासीन: 46)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا قِيْلَ لَهُمْ اَنْفِقُوْا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللّٰهُ ۙقَالَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اَنُطْعِمُ مَنْ لَّوْ يَشَاۤءُ اللّٰهُ اَطْعَمَهٗٓ ۖاِنْ اَنْتُمْ اِلَّا فِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ ٤٧
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- qīla
- قِيلَ
- कहा जाता है
- lahum
- لَهُمْ
- उन्हें
- anfiqū
- أَنفِقُوا۟
- ख़र्च करो
- mimmā
- مِمَّا
- उसमें से जो
- razaqakumu
- رَزَقَكُمُ
- रिज़्क़ दिया तुम्हें
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- qāla
- قَالَ
- कहते हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- lilladhīna
- لِلَّذِينَ
- उनसे जो
- āmanū
- ءَامَنُوٓا۟
- ईमान लाए
- anuṭ'ʿimu
- أَنُطْعِمُ
- क्या हम खिलाऐं
- man
- مَن
- उसको जिसे
- law
- لَّوْ
- अगर
- yashāu
- يَشَآءُ
- चाहता
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- aṭʿamahu
- أَطْعَمَهُۥٓ
- वो खिला देता उसे
- in
- إِنْ
- नहीं
- antum
- أَنتُمْ
- तुम
- illā
- إِلَّا
- मगर
- fī
- فِى
- गुमराही में
- ḍalālin
- ضَلَٰلٍ
- गुमराही में
- mubīnin
- مُّبِينٍ
- खुली-खुली
और जब उनसे कहा जाता है कि 'अल्लाह ने जो कुछ रोज़ी तुम्हें दी है उनमें से ख़र्च करो।' तो जिन लोगों ने इनकार किया है, वे उन लोगों से, जो ईमान लाए है, कहते है, 'क्या हम उसको खाना खिलाएँ जिसे .दि अल्लाह चाहता तो स्वयं खिला देता? तुम तो बस खुली गुमराही में पड़े हो।' ([३६] यासीन: 47)Tafseer (तफ़सीर )
وَيَقُوْلُوْنَ مَتٰى هٰذَا الْوَعْدُ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ٤٨
- wayaqūlūna
- وَيَقُولُونَ
- और वो कहते हैं
- matā
- مَتَىٰ
- कब होगा
- hādhā
- هَٰذَا
- ये
- l-waʿdu
- ٱلْوَعْدُ
- वादा
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- ṣādiqīna
- صَٰدِقِينَ
- सच्चे
और वे कहते है कि 'यह वादा कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?' ([३६] यासीन: 48)Tafseer (तफ़सीर )
مَا يَنْظُرُوْنَ اِلَّا صَيْحَةً وَّاحِدَةً تَأْخُذُهُمْ وَهُمْ يَخِصِّمُوْنَ ٤٩
- mā
- مَا
- नहीं
- yanẓurūna
- يَنظُرُونَ
- वो इन्तिज़ार कर रहे
- illā
- إِلَّا
- मगर
- ṣayḥatan
- صَيْحَةً
- चिंघाड़ का
- wāḥidatan
- وَٰحِدَةً
- एक ही
- takhudhuhum
- تَأْخُذُهُمْ
- वो पकड़ लेगी उन्हें
- wahum
- وَهُمْ
- जब कि वो
- yakhiṣṣimūna
- يَخِصِّمُونَ
- वो झगड़ रहे होंगे
वे तो बस एक प्रचंड चीत्कार की प्रतीक्षा में है, जो उन्हें आ पकड़ेगी, जबकि वे झगड़ते होंगे ([३६] यासीन: 49)Tafseer (तफ़सीर )
فَلَا يَسْتَطِيْعُوْنَ تَوْصِيَةً وَّلَآ اِلٰٓى اَهْلِهِمْ يَرْجِعُوْنَ ࣖ ٥٠
- falā
- فَلَا
- पस ना
- yastaṭīʿūna
- يَسْتَطِيعُونَ
- वो इस्तिताअत रखते होंगे
- tawṣiyatan
- تَوْصِيَةً
- वसीयत करने की
- walā
- وَلَآ
- और ना
- ilā
- إِلَىٰٓ
- तरफ़ अपने घर वालों के
- ahlihim
- أَهْلِهِمْ
- तरफ़ अपने घर वालों के
- yarjiʿūna
- يَرْجِعُونَ
- वो पलट सकेंगे
फिर न तो वे कोई वसीयत कर पाएँगे और न अपने घरवालों की ओर लौट ही सकेंगे ([३६] यासीन: 50)Tafseer (तफ़सीर )