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सूरा यासीन - Page: 5

Ya-Sin

(या-सीन)

४१

وَاٰيَةٌ لَّهُمْ اَنَّا حَمَلْنَا ذُرِّيَّتَهُمْ فِى الْفُلْكِ الْمَشْحُوْنِۙ ٤١

waāyatun
وَءَايَةٌ
और एक निशानी है
lahum
لَّهُمْ
उनके लिए
annā
أَنَّا
बेशक हम
ḥamalnā
حَمَلْنَا
सवार किया हमने
dhurriyyatahum
ذُرِّيَّتَهُمْ
उनकी औलाद को
فِى
कश्ती में
l-ful'ki
ٱلْفُلْكِ
कश्ती में
l-mashḥūni
ٱلْمَشْحُونِ
भरी हुई
और एक निशानी उनके लिए यह है कि हमने उनके अनुवर्तियों को भरी हुई नौका में सवार किया ([३६] यासीन: 41)
Tafseer (तफ़सीर )
४२

وَخَلَقْنَا لَهُمْ مِّنْ مِّثْلِهٖ مَا يَرْكَبُوْنَ ٤٢

wakhalaqnā
وَخَلَقْنَا
और पैदा कीं हमने
lahum
لَهُم
उनके लिए
min
مِّن
उस जैसी (चीज़ों ) से
mith'lihi
مِّثْلِهِۦ
उस जैसी (चीज़ों ) से
مَا
जिन पर
yarkabūna
يَرْكَبُونَ
वो सवार होते हैं
और उनके लिए उसी के सदृश और भी ऐसी चीज़े पैदा की, जिनपर वे सवार होते है ([३६] यासीन: 42)
Tafseer (तफ़सीर )
४३

وَاِنْ نَّشَأْ نُغْرِقْهُمْ فَلَا صَرِيْخَ لَهُمْ وَلَاهُمْ يُنْقَذُوْنَۙ ٤٣

wa-in
وَإِن
और अगर
nasha
نَّشَأْ
हम चाहें
nugh'riq'hum
نُغْرِقْهُمْ
हम ग़र्क़ कर दें उन्हें
falā
فَلَا
तो नहीं
ṣarīkha
صَرِيخَ
कोई फ़रियाद रस
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
walā
وَلَا
और ना
hum
هُمْ
वो
yunqadhūna
يُنقَذُونَ
वो बचाए जा सकेंगे
और यदि हम चाहें तो उन्हें डूबो दें। फिर न तो उनकी कोई चीख-पुकार हो और न उन्हें बचाया जा सके ([३६] यासीन: 43)
Tafseer (तफ़सीर )
४४

اِلَّا رَحْمَةً مِّنَّا وَمَتَاعًا اِلٰى حِيْنٍ ٤٤

illā
إِلَّا
सिवाए
raḥmatan
رَحْمَةً
रहमत के
minnā
مِّنَّا
हमारी तरफ़ से
wamatāʿan
وَمَتَٰعًا
और फ़ायदा देना
ilā
إِلَىٰ
एक मुद्दत तक
ḥīnin
حِينٍ
एक मुद्दत तक
यह तो बस हमारी दयालुता और एक नियत समय तक की सुख-सामग्री है ([३६] यासीन: 44)
Tafseer (तफ़सीर )
४५

وَاِذَا قِيْلَ لَهُمُ اتَّقُوْا مَا بَيْنَ اَيْدِيْكُمْ وَمَا خَلْفَكُمْ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ ٤٥

wa-idhā
وَإِذَا
और जब
qīla
قِيلَ
कहा जाता है
lahumu
لَهُمُ
उन्हें
ittaqū
ٱتَّقُوا۟
डरो
مَا
उससे जो
bayna
بَيْنَ
तुम्हारे सामने है
aydīkum
أَيْدِيكُمْ
तुम्हारे सामने है
wamā
وَمَا
और जो
khalfakum
خَلْفَكُمْ
तुम्हारे पीछे है
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tur'ḥamūna
تُرْحَمُونَ
तुम रहम किए जाओ
और जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज़ का डर रखो, जो तुम्हारे आगे है और जो तुम्हारे पीछे है, ताकि तुमपर दया कि जाए! (तो चुप्पी साझ लेते है) ([३६] यासीन: 45)
Tafseer (तफ़सीर )
४६

وَمَا تَأْتِيْهِمْ مِّنْ اٰيَةٍ مِّنْ اٰيٰتِ رَبِّهِمْ اِلَّا كَانُوْا عَنْهَا مُعْرِضِيْنَ ٤٦

wamā
وَمَا
और नहीं
tatīhim
تَأْتِيهِم
आती उनके पास
min
مِّنْ
कोई निशानी
āyatin
ءَايَةٍ
कोई निशानी
min
مِّنْ
निशानियों में से
āyāti
ءَايَٰتِ
निशानियों में से
rabbihim
رَبِّهِمْ
उनके रब की
illā
إِلَّا
मगर
kānū
كَانُوا۟
होते हैं वो
ʿanhā
عَنْهَا
उससे
muʿ'riḍīna
مُعْرِضِينَ
ऐराज़ करने वाले
उनके पास उनके रब की आयतों में से जो आयत भी आती है, वे उससे कतराते ही है ([३६] यासीन: 46)
Tafseer (तफ़सीर )
४७

وَاِذَا قِيْلَ لَهُمْ اَنْفِقُوْا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللّٰهُ ۙقَالَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اَنُطْعِمُ مَنْ لَّوْ يَشَاۤءُ اللّٰهُ اَطْعَمَهٗٓ ۖاِنْ اَنْتُمْ اِلَّا فِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ ٤٧

wa-idhā
وَإِذَا
और जब
qīla
قِيلَ
कहा जाता है
lahum
لَهُمْ
उन्हें
anfiqū
أَنفِقُوا۟
ख़र्च करो
mimmā
مِمَّا
उसमें से जो
razaqakumu
رَزَقَكُمُ
रिज़्क़ दिया तुम्हें
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
qāla
قَالَ
कहते हैं
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
lilladhīna
لِلَّذِينَ
उनसे जो
āmanū
ءَامَنُوٓا۟
ईमान लाए
anuṭ'ʿimu
أَنُطْعِمُ
क्या हम खिलाऐं
man
مَن
उसको जिसे
law
لَّوْ
अगर
yashāu
يَشَآءُ
चाहता
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
aṭʿamahu
أَطْعَمَهُۥٓ
वो खिला देता उसे
in
إِنْ
नहीं
antum
أَنتُمْ
तुम
illā
إِلَّا
मगर
فِى
गुमराही में
ḍalālin
ضَلَٰلٍ
गुमराही में
mubīnin
مُّبِينٍ
खुली-खुली
और जब उनसे कहा जाता है कि 'अल्लाह ने जो कुछ रोज़ी तुम्हें दी है उनमें से ख़र्च करो।' तो जिन लोगों ने इनकार किया है, वे उन लोगों से, जो ईमान लाए है, कहते है, 'क्या हम उसको खाना खिलाएँ जिसे .दि अल्लाह चाहता तो स्वयं खिला देता? तुम तो बस खुली गुमराही में पड़े हो।' ([३६] यासीन: 47)
Tafseer (तफ़सीर )
४८

وَيَقُوْلُوْنَ مَتٰى هٰذَا الْوَعْدُ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ٤٨

wayaqūlūna
وَيَقُولُونَ
और वो कहते हैं
matā
مَتَىٰ
कब होगा
hādhā
هَٰذَا
ये
l-waʿdu
ٱلْوَعْدُ
वादा
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
ṣādiqīna
صَٰدِقِينَ
सच्चे
और वे कहते है कि 'यह वादा कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?' ([३६] यासीन: 48)
Tafseer (तफ़सीर )
४९

مَا يَنْظُرُوْنَ اِلَّا صَيْحَةً وَّاحِدَةً تَأْخُذُهُمْ وَهُمْ يَخِصِّمُوْنَ ٤٩

مَا
नहीं
yanẓurūna
يَنظُرُونَ
वो इन्तिज़ार कर रहे
illā
إِلَّا
मगर
ṣayḥatan
صَيْحَةً
चिंघाड़ का
wāḥidatan
وَٰحِدَةً
एक ही
takhudhuhum
تَأْخُذُهُمْ
वो पकड़ लेगी उन्हें
wahum
وَهُمْ
जब कि वो
yakhiṣṣimūna
يَخِصِّمُونَ
वो झगड़ रहे होंगे
वे तो बस एक प्रचंड चीत्कार की प्रतीक्षा में है, जो उन्हें आ पकड़ेगी, जबकि वे झगड़ते होंगे ([३६] यासीन: 49)
Tafseer (तफ़सीर )
५०

فَلَا يَسْتَطِيْعُوْنَ تَوْصِيَةً وَّلَآ اِلٰٓى اَهْلِهِمْ يَرْجِعُوْنَ ࣖ ٥٠

falā
فَلَا
पस ना
yastaṭīʿūna
يَسْتَطِيعُونَ
वो इस्तिताअत रखते होंगे
tawṣiyatan
تَوْصِيَةً
वसीयत करने की
walā
وَلَآ
और ना
ilā
إِلَىٰٓ
तरफ़ अपने घर वालों के
ahlihim
أَهْلِهِمْ
तरफ़ अपने घर वालों के
yarjiʿūna
يَرْجِعُونَ
वो पलट सकेंगे
फिर न तो वे कोई वसीयत कर पाएँगे और न अपने घरवालों की ओर लौट ही सकेंगे ([३६] यासीन: 50)
Tafseer (तफ़सीर )