اَلَمْ يَرَوْا كَمْ اَهْلَكْنَا قَبْلَهُمْ مِّنَ الْقُرُوْنِ اَنَّهُمْ اِلَيْهِمْ لَا يَرْجِعُوْنَ ٣١
- alam
- أَلَمْ
- क्या नहीं
- yaraw
- يَرَوْا۟
- उन्होंने देखा
- kam
- كَمْ
- कितने ही
- ahlaknā
- أَهْلَكْنَا
- हलाक कर दिए हमने
- qablahum
- قَبْلَهُم
- उनसे पहले
- mina
- مِّنَ
- उम्मतों में से(लोग)
- l-qurūni
- ٱلْقُرُونِ
- उम्मतों में से(लोग)
- annahum
- أَنَّهُمْ
- बेशक वो
- ilayhim
- إِلَيْهِمْ
- तरफ़ उनके
- lā
- لَا
- नहीं वो लौटेंगे
- yarjiʿūna
- يَرْجِعُونَ
- नहीं वो लौटेंगे
क्या उन्होंने नहीं देखा कि उनसे पहले कितनी ही नस्लों को हमने विनष्ट किया कि वे उनकी ओर पलटकर नहीं आएँगे? ([३६] यासीन: 31)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِنْ كُلٌّ لَّمَّا جَمِيْعٌ لَّدَيْنَا مُحْضَرُوْنَ ࣖ ٣٢
- wa-in
- وَإِن
- और नहीं
- kullun
- كُلٌّ
- वो सब
- lammā
- لَّمَّا
- मगर
- jamīʿun
- جَمِيعٌ
- सब के सब
- ladaynā
- لَّدَيْنَا
- हमारे ही पास
- muḥ'ḍarūna
- مُحْضَرُونَ
- हाज़िर किए जाऐंगे
और जितने भी है, सबके सब हमारे ही सामने उपस्थित किए जाएँगे ([३६] यासीन: 32)Tafseer (तफ़सीर )
وَاٰيَةٌ لَّهُمُ الْاَرْضُ الْمَيْتَةُ ۖاَحْيَيْنٰهَا وَاَخْرَجْنَا مِنْهَا حَبًّا فَمِنْهُ يَأْكُلُوْنَ ٣٣
- waāyatun
- وَءَايَةٌ
- और एक निशानी है
- lahumu
- لَّهُمُ
- उनके लिए
- l-arḍu
- ٱلْأَرْضُ
- ज़मीन
- l-maytatu
- ٱلْمَيْتَةُ
- मुर्दा
- aḥyaynāhā
- أَحْيَيْنَٰهَا
- ज़िन्दा किया हमने उसे
- wa-akhrajnā
- وَأَخْرَجْنَا
- और निकाला हमने
- min'hā
- مِنْهَا
- उससे
- ḥabban
- حَبًّا
- ग़ल्ला
- famin'hu
- فَمِنْهُ
- तो उससे
- yakulūna
- يَأْكُلُونَ
- वो खाते हैं
और एक निशानी उनके लिए मृत भूमि है। हमने उसे जीवित किया और उससे अनाज निकाला, तो वे खाते है ([३६] यासीन: 33)Tafseer (तफ़सीर )
وَجَعَلْنَا فِيْهَا جَنّٰتٍ مِّنْ نَّخِيْلٍ وَّاَعْنَابٍ وَّفَجَّرْنَا فِيْهَا مِنَ الْعُيُوْنِۙ ٣٤
- wajaʿalnā
- وَجَعَلْنَا
- और बनाए हमने
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- jannātin
- جَنَّٰتٍ
- बाग़ात
- min
- مِّن
- खजूरों के
- nakhīlin
- نَّخِيلٍ
- खजूरों के
- wa-aʿnābin
- وَأَعْنَٰبٍ
- और अंगूरों के
- wafajjarnā
- وَفَجَّرْنَا
- और जारी किए हमने
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- mina
- مِنَ
- चश्मे
- l-ʿuyūni
- ٱلْعُيُونِ
- चश्मे
और हमने उसमें खजूरों और अंगूरों के बाग लगाए और उसमें स्रोत प्रवाहित किए; ([३६] यासीन: 34)Tafseer (तफ़सीर )
لِيَأْكُلُوْا مِنْ ثَمَرِهٖۙ وَمَا عَمِلَتْهُ اَيْدِيْهِمْ ۗ اَفَلَا يَشْكُرُوْنَ ٣٥
- liyakulū
- لِيَأْكُلُوا۟
- ताकि वो खाऐं
- min
- مِن
- उसके फल से
- thamarihi
- ثَمَرِهِۦ
- उसके फल से
- wamā
- وَمَا
- हालाँकि नहीं
- ʿamilathu
- عَمِلَتْهُ
- बनाया उसे
- aydīhim
- أَيْدِيهِمْۖ
- उनके हाथों ने
- afalā
- أَفَلَا
- क्या फिर नहीं
- yashkurūna
- يَشْكُرُونَ
- वो शुक्र अदा करते
ताकि वे उसके फल खाएँ - हालाँकि यह सब कुछ उनके हाथों का बनाया हुआ नहीं है। - तो क्या वे आभार नहीं प्रकट करते? ([३६] यासीन: 35)Tafseer (तफ़सीर )
سُبْحٰنَ الَّذِيْ خَلَقَ الْاَزْوَاجَ كُلَّهَا مِمَّا تُنْۢبِتُ الْاَرْضُ وَمِنْ اَنْفُسِهِمْ وَمِمَّا لَا يَعْلَمُوْنَ ٣٦
- sub'ḥāna
- سُبْحَٰنَ
- पाक है
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो जिसने
- khalaqa
- خَلَقَ
- पैदा किए
- l-azwāja
- ٱلْأَزْوَٰجَ
- जोड़े
- kullahā
- كُلَّهَا
- सब के सब
- mimmā
- مِمَّا
- उसमें से जो
- tunbitu
- تُنۢبِتُ
- उगाती है
- l-arḍu
- ٱلْأَرْضُ
- ज़मीन
- wamin
- وَمِنْ
- और उनके अपने नफ़्सों में से
- anfusihim
- أَنفُسِهِمْ
- और उनके अपने नफ़्सों में से
- wamimmā
- وَمِمَّا
- और उसमें से जो
- lā
- لَا
- नहीं वो जानते
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- नहीं वो जानते
महिमावान है वह जिसने सबके जोड़े पैदा किए धरती जो चीजें उगाती है उनमें से भी और स्वयं उनकी अपनी जाति में से भी और उन चीज़ो में से भी जिनको वे नहीं जानते ([३६] यासीन: 36)Tafseer (तफ़सीर )
وَاٰيَةٌ لَّهُمُ الَّيْلُ ۖنَسْلَخُ مِنْهُ النَّهَارَ فَاِذَا هُمْ مُّظْلِمُوْنَۙ ٣٧
- waāyatun
- وَءَايَةٌ
- और एक निशानी
- lahumu
- لَّهُمُ
- उनके लिए
- al-laylu
- ٱلَّيْلُ
- रात है
- naslakhu
- نَسْلَخُ
- हम खींच लेते हैं
- min'hu
- مِنْهُ
- उससे
- l-nahāra
- ٱلنَّهَارَ
- दिन को
- fa-idhā
- فَإِذَا
- तो यकायक
- hum
- هُم
- वो
- muẓ'limūna
- مُّظْلِمُونَ
- अंधेरे में हो जाते हैं
और एक निशानी उनके लिए रात है। हम उसपर से दिन को खींच लेते है। फिर क्या देखते है कि वे अँधेरे में रह गए ([३६] यासीन: 37)Tafseer (तफ़सीर )
وَالشَّمْسُ تَجْرِيْ لِمُسْتَقَرٍّ لَّهَا ۗذٰلِكَ تَقْدِيْرُ الْعَزِيْزِ الْعَلِيْمِۗ ٣٨
- wal-shamsu
- وَٱلشَّمْسُ
- और सूरज
- tajrī
- تَجْرِى
- वो चल रहा है
- limus'taqarrin
- لِمُسْتَقَرٍّ
- ठिकाने के लिए
- lahā
- لَّهَاۚ
- अपने
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- taqdīru
- تَقْدِيرُ
- अंदाज़ा है
- l-ʿazīzi
- ٱلْعَزِيزِ
- बहुत ज़बरदस्त का
- l-ʿalīmi
- ٱلْعَلِيمِ
- ख़ूब इल्म वाले का
और सूर्य अपने नियत ठिकाने के लिए चला जा रहा है। यह बाँधा हुआ हिसाब है प्रभुत्वशाली, ज्ञानवान का ([३६] यासीन: 38)Tafseer (तफ़सीर )
وَالْقَمَرَ قَدَّرْنٰهُ مَنَازِلَ حَتّٰى عَادَ كَالْعُرْجُوْنِ الْقَدِيْمِ ٣٩
- wal-qamara
- وَٱلْقَمَرَ
- और चाँद
- qaddarnāhu
- قَدَّرْنَٰهُ
- मुक़र्रर कीं हमने उसकी
- manāzila
- مَنَازِلَ
- मंज़िलें
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- ʿāda
- عَادَ
- वो दोबारा हो जाता है
- kal-ʿur'jūni
- كَٱلْعُرْجُونِ
- खजूर की सूखी शाख़ की तरह
- l-qadīmi
- ٱلْقَدِيمِ
- जो पुरानी हो
और रहा चन्द्रमा, तो उसकी नियति हमने मंज़िलों के क्रम में रखी, यहाँ तक कि वह फिर खजूर की पूरानी टेढ़ी टहनी के सदृश हो जाता है ([३६] यासीन: 39)Tafseer (तफ़सीर )
لَا الشَّمْسُ يَنْۢبَغِيْ لَهَآ اَنْ تُدْرِكَ الْقَمَرَ وَلَا الَّيْلُ سَابِقُ النَّهَارِ ۗوَكُلٌّ فِيْ فَلَكٍ يَّسْبَحُوْنَ ٤٠
- lā
- لَا
- ना सूरज
- l-shamsu
- ٱلشَّمْسُ
- ना सूरज
- yanbaghī
- يَنۢبَغِى
- लायक़ है
- lahā
- لَهَآ
- उसके लिए
- an
- أَن
- कि
- tud'rika
- تُدْرِكَ
- वो जा पकड़े
- l-qamara
- ٱلْقَمَرَ
- चाँद को
- walā
- وَلَا
- और ना
- al-laylu
- ٱلَّيْلُ
- रात
- sābiqu
- سَابِقُ
- सबक़त ले जाने वाली हैं
- l-nahāri
- ٱلنَّهَارِۚ
- दिन से
- wakullun
- وَكُلٌّ
- और सब के सब
- fī
- فِى
- एक मदार में
- falakin
- فَلَكٍ
- एक मदार में
- yasbaḥūna
- يَسْبَحُونَ
- वो तैर रहे हैं
न सूर्य ही से हो सकता है कि चाँद को जा पकड़े और न रात दिन से आगे बढ़ सकती है। सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं ([३६] यासीन: 40)Tafseer (तफ़सीर )