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सूरा यासीन - Page: 3

Ya-Sin

(या-सीन)

२१

اتَّبِعُوْا مَنْ لَّا يَسْـَٔلُكُمْ اَجْرًا وَّهُمْ مُّهْتَدُوْنَ ۔ ٢١

ittabiʿū
ٱتَّبِعُوا۟
पैरवी करो
man
مَن
इनकी जो
لَّا
नहीं सवाल करते तुमसे
yasalukum
يَسْـَٔلُكُمْ
नहीं सवाल करते तुमसे
ajran
أَجْرًا
किसी अजर का
wahum
وَهُم
जब कि वो
muh'tadūna
مُّهْتَدُونَ
हिदायत याफ़्ता हैं
उसका अनुवर्तन करो जो तुमसे कोई बदला नहीं माँगते और वे सीधे मार्ग पर है ([३६] यासीन: 21)
Tafseer (तफ़सीर )
२२

وَمَا لِيَ لَآ اَعْبُدُ الَّذِيْ فَطَرَنِيْ وَاِلَيْهِ تُرْجَعُوْنَ ٢٢

wamā
وَمَا
और क्या है
liya
لِىَ
मुझे
لَآ
कि ना मैं इबादत करूँ
aʿbudu
أَعْبُدُ
कि ना मैं इबादत करूँ
alladhī
ٱلَّذِى
उसकी जिसने
faṭaranī
فَطَرَنِى
पैदा किया मुझे
wa-ilayhi
وَإِلَيْهِ
और तरफ़ उसी के
tur'jaʿūna
تُرْجَعُونَ
तुम लौटाए जाओगे
'और मुझे क्या हुआ है कि मैं उसकी बन्दगी न करूँ, जिसने मुझे पैदा किया और उसी की ओर तुम्हें लौटकर जाना है? ([३६] यासीन: 22)
Tafseer (तफ़सीर )
२३

ءَاَتَّخِذُ مِنْ دُوْنِهٖٓ اٰلِهَةً اِنْ يُّرِدْنِ الرَّحْمٰنُ بِضُرٍّ لَّا تُغْنِ عَنِّيْ شَفَاعَتُهُمْ شَيْـًٔا وَّلَا يُنْقِذُوْنِۚ ٢٣

a-attakhidhu
ءَأَتَّخِذُ
क्या मैं बना लूँ
min
مِن
उसके सिवा से
dūnihi
دُونِهِۦٓ
उसके सिवा से
ālihatan
ءَالِهَةً
कुछ इलाह
in
إِن
अगर
yurid'ni
يُرِدْنِ
इरादा करे मेरे साथ
l-raḥmānu
ٱلرَّحْمَٰنُ
रहमान
biḍurrin
بِضُرٍّ
किसी नुक़सान का
لَّا
ना काम आएगी
tugh'ni
تُغْنِ
ना काम आएगी
ʿannī
عَنِّى
मुझे
shafāʿatuhum
شَفَٰعَتُهُمْ
शफ़ाअत उनकी
shayan
شَيْـًٔا
कुछ भी
walā
وَلَا
और ना
yunqidhūni
يُنقِذُونِ
वो बचा सकेंगे मुझे
'क्या मैं उससे इतर दूसरे उपास्य बना लूँ? यदि रहमान मुझे कोई तकलीफ़ पहुँचाना चाहे तो उनकी सिफ़ारिश मेरे कुछ काम नहीं आ सकती और न वे मुझे छुडा ही सकते है ([३६] यासीन: 23)
Tafseer (तफ़सीर )
२४

اِنِّيْٓ اِذًا لَّفِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ ٢٤

innī
إِنِّىٓ
बेशक मैं
idhan
إِذًا
तब
lafī
لَّفِى
अलबत्ता गुमराही में हूँगा
ḍalālin
ضَلَٰلٍ
अलबत्ता गुमराही में हूँगा
mubīnin
مُّبِينٍ
खुली-खुली
'तब तो मैं अवश्य स्पष्ट गुमराही में पड़ जाऊँगा ([३६] यासीन: 24)
Tafseer (तफ़सीर )
२५

اِنِّيْٓ اٰمَنْتُ بِرَبِّكُمْ فَاسْمَعُوْنِۗ ٢٥

innī
إِنِّىٓ
बेशक मैं
āmantu
ءَامَنتُ
ईमान लाया मैं
birabbikum
بِرَبِّكُمْ
तुम्हारे रब पर
fa-is'maʿūni
فَٱسْمَعُونِ
पस सुनो मुझे
'मैं तो तुम्हारे रब पर ईमान ले आया, अतः मेरी सुनो!' ([३६] यासीन: 25)
Tafseer (तफ़सीर )
२६

قِيْلَ ادْخُلِ الْجَنَّةَ ۗقَالَ يٰلَيْتَ قَوْمِيْ يَعْلَمُوْنَۙ ٢٦

qīla
قِيلَ
कहा गया
ud'khuli
ٱدْخُلِ
दाख़िल हो जाओ
l-janata
ٱلْجَنَّةَۖ
जन्नत में
qāla
قَالَ
उसने कहा
yālayta
يَٰلَيْتَ
ऐ काश
qawmī
قَوْمِى
मेरी क़ौम (के लोग)
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
वो जान लेते
कहा गया, 'प्रवेश करो जन्नत में!' उसने कहा, 'ऐ काश! मेरी क़ौम के लोग जानते ([३६] यासीन: 26)
Tafseer (तफ़सीर )
२७

بِمَا غَفَرَ لِيْ رَبِّيْ وَجَعَلَنِيْ مِنَ الْمُكْرَمِيْنَ ٢٧

bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
ghafara
غَفَرَ
बख़्श दिया मुझे
لِى
बख़्श दिया मुझे
rabbī
رَبِّى
मेरे रब ने
wajaʿalanī
وَجَعَلَنِى
और उसने बना दिया मुझे
mina
مِنَ
बाइज़्ज़त लोगों में से
l-muk'ramīna
ٱلْمُكْرَمِينَ
बाइज़्ज़त लोगों में से
कि मेरे रब ने मुझे क्षमा कर दिया और मुझे प्रतिष्ठित लोगों में सम्मिलित कर दिया।' ([३६] यासीन: 27)
Tafseer (तफ़सीर )
२८

۞ وَمَآ اَنْزَلْنَا عَلٰى قَوْمِهٖ مِنْۢ بَعْدِهٖ مِنْ جُنْدٍ مِّنَ السَّمَاۤءِ وَمَا كُنَّا مُنْزِلِيْنَ ٢٨

wamā
وَمَآ
और नहीं
anzalnā
أَنزَلْنَا
उतारा हमने
ʿalā
عَلَىٰ
उसकी क़ौम पर
qawmihi
قَوْمِهِۦ
उसकी क़ौम पर
min
مِنۢ
उसके बाद
baʿdihi
بَعْدِهِۦ
उसके बाद
min
مِن
कोई लश्कर
jundin
جُندٍ
कोई लश्कर
mina
مِّنَ
आसमान से
l-samāi
ٱلسَّمَآءِ
आसमान से
wamā
وَمَا
और ना
kunnā
كُنَّا
थे हम
munzilīna
مُنزِلِينَ
उतारने वाले
उसके पश्चात उसकी क़ौम पर हमने आकाश से कोई सेना नहीं उतारी और हम इस तरह उतारा नहीं करते ([३६] यासीन: 28)
Tafseer (तफ़सीर )
२९

اِنْ كَانَتْ اِلَّا صَيْحَةً وَّاحِدَةً فَاِذَا هُمْ خَامِدُوْنَ ٢٩

in
إِن
ना
kānat
كَانَتْ
थी वो
illā
إِلَّا
मगर
ṣayḥatan
صَيْحَةً
चिंघाड़
wāḥidatan
وَٰحِدَةً
एक ही
fa-idhā
فَإِذَا
तो यकायक
hum
هُمْ
वो
khāmidūna
خَٰمِدُونَ
सब बुझ कर रह गए
वह तो केवल एक प्रचंड चीत्कार थी। तो सहसा क्या देखते है कि वे बुझकर रह गए ([३६] यासीन: 29)
Tafseer (तफ़सीर )
३०

يٰحَسْرَةً عَلَى الْعِبَادِۚ مَا يَأْتِيْهِمْ مِّنْ رَّسُوْلٍ اِلَّا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ ٣٠

yāḥasratan
يَٰحَسْرَةً
हाय अफ़सोस
ʿalā
عَلَى
बन्दों पर
l-ʿibādi
ٱلْعِبَادِۚ
बन्दों पर
مَا
नहीं
yatīhim
يَأْتِيهِم
आया उनके पास
min
مِّن
कोई रसूल
rasūlin
رَّسُولٍ
कोई रसूल
illā
إِلَّا
मगर
kānū
كَانُوا۟
थे वो
bihi
بِهِۦ
उसका
yastahziūna
يَسْتَهْزِءُونَ
वो मज़ाक़ उड़ाते
ऐ अफ़सोस बन्दो पर! जो रसूल भी उनके पास आया, वे उसका परिहास ही करते रहे ([३६] यासीन: 30)
Tafseer (तफ़सीर )