اتَّبِعُوْا مَنْ لَّا يَسْـَٔلُكُمْ اَجْرًا وَّهُمْ مُّهْتَدُوْنَ ۔ ٢١
- ittabiʿū
- ٱتَّبِعُوا۟
- पैरवी करो
- man
- مَن
- इनकी जो
- lā
- لَّا
- नहीं सवाल करते तुमसे
- yasalukum
- يَسْـَٔلُكُمْ
- नहीं सवाल करते तुमसे
- ajran
- أَجْرًا
- किसी अजर का
- wahum
- وَهُم
- जब कि वो
- muh'tadūna
- مُّهْتَدُونَ
- हिदायत याफ़्ता हैं
उसका अनुवर्तन करो जो तुमसे कोई बदला नहीं माँगते और वे सीधे मार्ग पर है ([३६] यासीन: 21)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا لِيَ لَآ اَعْبُدُ الَّذِيْ فَطَرَنِيْ وَاِلَيْهِ تُرْجَعُوْنَ ٢٢
- wamā
- وَمَا
- और क्या है
- liya
- لِىَ
- मुझे
- lā
- لَآ
- कि ना मैं इबादत करूँ
- aʿbudu
- أَعْبُدُ
- कि ना मैं इबादत करूँ
- alladhī
- ٱلَّذِى
- उसकी जिसने
- faṭaranī
- فَطَرَنِى
- पैदा किया मुझे
- wa-ilayhi
- وَإِلَيْهِ
- और तरफ़ उसी के
- tur'jaʿūna
- تُرْجَعُونَ
- तुम लौटाए जाओगे
'और मुझे क्या हुआ है कि मैं उसकी बन्दगी न करूँ, जिसने मुझे पैदा किया और उसी की ओर तुम्हें लौटकर जाना है? ([३६] यासीन: 22)Tafseer (तफ़सीर )
ءَاَتَّخِذُ مِنْ دُوْنِهٖٓ اٰلِهَةً اِنْ يُّرِدْنِ الرَّحْمٰنُ بِضُرٍّ لَّا تُغْنِ عَنِّيْ شَفَاعَتُهُمْ شَيْـًٔا وَّلَا يُنْقِذُوْنِۚ ٢٣
- a-attakhidhu
- ءَأَتَّخِذُ
- क्या मैं बना लूँ
- min
- مِن
- उसके सिवा से
- dūnihi
- دُونِهِۦٓ
- उसके सिवा से
- ālihatan
- ءَالِهَةً
- कुछ इलाह
- in
- إِن
- अगर
- yurid'ni
- يُرِدْنِ
- इरादा करे मेरे साथ
- l-raḥmānu
- ٱلرَّحْمَٰنُ
- रहमान
- biḍurrin
- بِضُرٍّ
- किसी नुक़सान का
- lā
- لَّا
- ना काम आएगी
- tugh'ni
- تُغْنِ
- ना काम आएगी
- ʿannī
- عَنِّى
- मुझे
- shafāʿatuhum
- شَفَٰعَتُهُمْ
- शफ़ाअत उनकी
- shayan
- شَيْـًٔا
- कुछ भी
- walā
- وَلَا
- और ना
- yunqidhūni
- يُنقِذُونِ
- वो बचा सकेंगे मुझे
'क्या मैं उससे इतर दूसरे उपास्य बना लूँ? यदि रहमान मुझे कोई तकलीफ़ पहुँचाना चाहे तो उनकी सिफ़ारिश मेरे कुछ काम नहीं आ सकती और न वे मुझे छुडा ही सकते है ([३६] यासीन: 23)Tafseer (तफ़सीर )
اِنِّيْٓ اِذًا لَّفِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ ٢٤
- innī
- إِنِّىٓ
- बेशक मैं
- idhan
- إِذًا
- तब
- lafī
- لَّفِى
- अलबत्ता गुमराही में हूँगा
- ḍalālin
- ضَلَٰلٍ
- अलबत्ता गुमराही में हूँगा
- mubīnin
- مُّبِينٍ
- खुली-खुली
'तब तो मैं अवश्य स्पष्ट गुमराही में पड़ जाऊँगा ([३६] यासीन: 24)Tafseer (तफ़सीर )
اِنِّيْٓ اٰمَنْتُ بِرَبِّكُمْ فَاسْمَعُوْنِۗ ٢٥
- innī
- إِنِّىٓ
- बेशक मैं
- āmantu
- ءَامَنتُ
- ईमान लाया मैं
- birabbikum
- بِرَبِّكُمْ
- तुम्हारे रब पर
- fa-is'maʿūni
- فَٱسْمَعُونِ
- पस सुनो मुझे
'मैं तो तुम्हारे रब पर ईमान ले आया, अतः मेरी सुनो!' ([३६] यासीन: 25)Tafseer (तफ़सीर )
قِيْلَ ادْخُلِ الْجَنَّةَ ۗقَالَ يٰلَيْتَ قَوْمِيْ يَعْلَمُوْنَۙ ٢٦
- qīla
- قِيلَ
- कहा गया
- ud'khuli
- ٱدْخُلِ
- दाख़िल हो जाओ
- l-janata
- ٱلْجَنَّةَۖ
- जन्नत में
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- yālayta
- يَٰلَيْتَ
- ऐ काश
- qawmī
- قَوْمِى
- मेरी क़ौम (के लोग)
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- वो जान लेते
कहा गया, 'प्रवेश करो जन्नत में!' उसने कहा, 'ऐ काश! मेरी क़ौम के लोग जानते ([३६] यासीन: 26)Tafseer (तफ़सीर )
بِمَا غَفَرَ لِيْ رَبِّيْ وَجَعَلَنِيْ مِنَ الْمُكْرَمِيْنَ ٢٧
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- ghafara
- غَفَرَ
- बख़्श दिया मुझे
- lī
- لِى
- बख़्श दिया मुझे
- rabbī
- رَبِّى
- मेरे रब ने
- wajaʿalanī
- وَجَعَلَنِى
- और उसने बना दिया मुझे
- mina
- مِنَ
- बाइज़्ज़त लोगों में से
- l-muk'ramīna
- ٱلْمُكْرَمِينَ
- बाइज़्ज़त लोगों में से
कि मेरे रब ने मुझे क्षमा कर दिया और मुझे प्रतिष्ठित लोगों में सम्मिलित कर दिया।' ([३६] यासीन: 27)Tafseer (तफ़सीर )
۞ وَمَآ اَنْزَلْنَا عَلٰى قَوْمِهٖ مِنْۢ بَعْدِهٖ مِنْ جُنْدٍ مِّنَ السَّمَاۤءِ وَمَا كُنَّا مُنْزِلِيْنَ ٢٨
- wamā
- وَمَآ
- और नहीं
- anzalnā
- أَنزَلْنَا
- उतारा हमने
- ʿalā
- عَلَىٰ
- उसकी क़ौम पर
- qawmihi
- قَوْمِهِۦ
- उसकी क़ौम पर
- min
- مِنۢ
- उसके बाद
- baʿdihi
- بَعْدِهِۦ
- उसके बाद
- min
- مِن
- कोई लश्कर
- jundin
- جُندٍ
- कोई लश्कर
- mina
- مِّنَ
- आसमान से
- l-samāi
- ٱلسَّمَآءِ
- आसमान से
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kunnā
- كُنَّا
- थे हम
- munzilīna
- مُنزِلِينَ
- उतारने वाले
उसके पश्चात उसकी क़ौम पर हमने आकाश से कोई सेना नहीं उतारी और हम इस तरह उतारा नहीं करते ([३६] यासीन: 28)Tafseer (तफ़सीर )
اِنْ كَانَتْ اِلَّا صَيْحَةً وَّاحِدَةً فَاِذَا هُمْ خَامِدُوْنَ ٢٩
- in
- إِن
- ना
- kānat
- كَانَتْ
- थी वो
- illā
- إِلَّا
- मगर
- ṣayḥatan
- صَيْحَةً
- चिंघाड़
- wāḥidatan
- وَٰحِدَةً
- एक ही
- fa-idhā
- فَإِذَا
- तो यकायक
- hum
- هُمْ
- वो
- khāmidūna
- خَٰمِدُونَ
- सब बुझ कर रह गए
वह तो केवल एक प्रचंड चीत्कार थी। तो सहसा क्या देखते है कि वे बुझकर रह गए ([३६] यासीन: 29)Tafseer (तफ़सीर )
يٰحَسْرَةً عَلَى الْعِبَادِۚ مَا يَأْتِيْهِمْ مِّنْ رَّسُوْلٍ اِلَّا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ ٣٠
- yāḥasratan
- يَٰحَسْرَةً
- हाय अफ़सोस
- ʿalā
- عَلَى
- बन्दों पर
- l-ʿibādi
- ٱلْعِبَادِۚ
- बन्दों पर
- mā
- مَا
- नहीं
- yatīhim
- يَأْتِيهِم
- आया उनके पास
- min
- مِّن
- कोई रसूल
- rasūlin
- رَّسُولٍ
- कोई रसूल
- illā
- إِلَّا
- मगर
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- bihi
- بِهِۦ
- उसका
- yastahziūna
- يَسْتَهْزِءُونَ
- वो मज़ाक़ उड़ाते
ऐ अफ़सोस बन्दो पर! जो रसूल भी उनके पास आया, वे उसका परिहास ही करते रहे ([३६] यासीन: 30)Tafseer (तफ़सीर )