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सूरा यासीन - Page: 2

Ya-Sin

(या-सीन)

११

اِنَّمَا تُنْذِرُ مَنِ اتَّبَعَ الذِّكْرَ وَخَشِيَ الرَّحْمٰنَ بِالْغَيْبِۚ فَبَشِّرْهُ بِمَغْفِرَةٍ وَّاَجْرٍ كَرِيْمٍ ١١

innamā
إِنَّمَا
बेशक
tundhiru
تُنذِرُ
आप तो डरा सकते हैं
mani
مَنِ
उसे जो
ittabaʿa
ٱتَّبَعَ
पैरवी करे
l-dhik'ra
ٱلذِّكْرَ
नसीहत की
wakhashiya
وَخَشِىَ
और वो डरता हो
l-raḥmāna
ٱلرَّحْمَٰنَ
रहमान से
bil-ghaybi
بِٱلْغَيْبِۖ
ग़ाएबाना
fabashir'hu
فَبَشِّرْهُ
पस ख़ुशख़बरी दे दीजिए उसे
bimaghfiratin
بِمَغْفِرَةٍ
बख़्शिश की
wa-ajrin
وَأَجْرٍ
और अजर की
karīmin
كَرِيمٍ
इज़्ज़त वाले
तुम तो बस सावधान कर रहे हो। जो कोई अनुस्मृति का अनुसरण करे और परोक्ष में रहते हुए रहमान से डरे, अतः क्षमा और प्रतिष्ठामय बदले की शुभ सूचना दे दो ([३६] यासीन: 11)
Tafseer (तफ़सीर )
१२

اِنَّا نَحْنُ نُحْيِ الْمَوْتٰى وَنَكْتُبُ مَا قَدَّمُوْا وَاٰثَارَهُمْۗ وَكُلَّ شَيْءٍ اَحْصَيْنٰهُ فِيْٓ اِمَامٍ مُّبِيْنٍ ࣖ ١٢

innā
إِنَّا
बेशक हम
naḥnu
نَحْنُ
हम ही
nuḥ'yī
نُحْىِ
हम ज़िन्दा करेंगे
l-mawtā
ٱلْمَوْتَىٰ
मुर्दों को
wanaktubu
وَنَكْتُبُ
और हम लिख रहे हैं
مَا
जो
qaddamū
قَدَّمُوا۟
उन्होंने आगे भेजा
waāthārahum
وَءَاثَٰرَهُمْۚ
और उनके आसार को
wakulla
وَكُلَّ
और हर
shayin
شَىْءٍ
चीज़ को
aḥṣaynāhu
أَحْصَيْنَٰهُ
शुमार कर रखा है हमने उसे
فِىٓ
एक किताब में
imāmin
إِمَامٍ
एक किताब में
mubīnin
مُّبِينٍ
जो वाज़ेह है
निस्संदेह हम मुर्दों को जीवित करेंगे और हम लिखेंगे जो कुछ उन्होंने आगे के लिए भेजा और उनके चिन्हों को (जो पीछे रहा) । हर चीज़ हमने एक स्पष्ट किताब में गिन रखी है ([३६] यासीन: 12)
Tafseer (तफ़सीर )
१३

وَاضْرِبْ لَهُمْ مَّثَلًا اَصْحٰبَ الْقَرْيَةِۘ اِذْ جَاۤءَهَا الْمُرْسَلُوْنَۚ ١٣

wa-iḍ'rib
وَٱضْرِبْ
और बयान करो
lahum
لَهُم
उनके लिए
mathalan
مَّثَلًا
एक मिसाल
aṣḥāba
أَصْحَٰبَ
बस्ती वालों की
l-qaryati
ٱلْقَرْيَةِ
बस्ती वालों की
idh
إِذْ
जब
jāahā
جَآءَهَا
आए उनके पास
l-mur'salūna
ٱلْمُرْسَلُونَ
रसूल
उनके लिए बस्तीवालों की एक मिसाल पेश करो, जबकि वहाँ भेजे हुए दूत आए ([३६] यासीन: 13)
Tafseer (तफ़सीर )
१४

اِذْ اَرْسَلْنَآ اِلَيْهِمُ اثْنَيْنِ فَكَذَّبُوْهُمَا فَعَزَّزْنَا بِثَالِثٍ فَقَالُوْٓا اِنَّآ اِلَيْكُمْ مُّرْسَلُوْنَ ١٤

idh
إِذْ
जब
arsalnā
أَرْسَلْنَآ
भेजा हमने
ilayhimu
إِلَيْهِمُ
तरफ़ उनके
ith'nayni
ٱثْنَيْنِ
दो को
fakadhabūhumā
فَكَذَّبُوهُمَا
तो उन्होंने झुठला दिया उन दोनों को
faʿazzaznā
فَعَزَّزْنَا
तो क़ुव्वत दी हमने
bithālithin
بِثَالِثٍ
साथ तीसरे के
faqālū
فَقَالُوٓا۟
तो उन्होंने कहा
innā
إِنَّآ
बेशक हम
ilaykum
إِلَيْكُم
तरफ़ तुम्हारे
mur'salūna
مُّرْسَلُونَ
भेजे हुए हैं
जबकि हमने उनकी ओर दो दूत भेजे, तो उन्होंने झुठला दिया। तब हमने तीसरे के द्वारा शक्ति पहुँचाई, तो उन्होंने कहा, 'हम तुम्हारी ओर भेजे गए हैं।' ([३६] यासीन: 14)
Tafseer (तफ़सीर )
१५

قَالُوْا مَآ اَنْتُمْ اِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُنَاۙ وَمَآ اَنْزَلَ الرَّحْمٰنُ مِنْ شَيْءٍۙ اِنْ اَنْتُمْ اِلَّا تَكْذِبُوْنَ ١٥

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
مَآ
नहीं हो
antum
أَنتُمْ
तुम
illā
إِلَّا
मगर
basharun
بَشَرٌ
एक इन्सान
mith'lunā
مِّثْلُنَا
हमारी तरह
wamā
وَمَآ
और नहीं
anzala
أَنزَلَ
नाज़िल की
l-raḥmānu
ٱلرَّحْمَٰنُ
रहमान ने
min
مِن
कोई चीज़
shayin
شَىْءٍ
कोई चीज़
in
إِنْ
नहीं
antum
أَنتُمْ
तुम
illā
إِلَّا
मगर
takdhibūna
تَكْذِبُونَ
तुम झूठ बोलते हो
वे बोले, 'तुम तो बस हमारे ही जैसे मनुष्य हो। रहमान ने तो कोई भी चीज़ अवतरित नहीं की है। तुम केवल झूठ बोलते हो।' ([३६] यासीन: 15)
Tafseer (तफ़सीर )
१६

قَالُوْا رَبُّنَا يَعْلَمُ اِنَّآ اِلَيْكُمْ لَمُرْسَلُوْنَ ١٦

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
rabbunā
رَبُّنَا
रब हमारा
yaʿlamu
يَعْلَمُ
वो जानता है
innā
إِنَّآ
बेशक हम
ilaykum
إِلَيْكُمْ
तरफ़ तुम्हारे
lamur'salūna
لَمُرْسَلُونَ
अलबत्ता भेजे हुए हैं
उन्होंने कहा, 'हमारा रब जानता है कि हम निश्चय ही तुम्हारी ओर भेजे गए है ([३६] यासीन: 16)
Tafseer (तफ़सीर )
१७

وَمَا عَلَيْنَآ اِلَّا الْبَلٰغُ الْمُبِيْنُ ١٧

wamā
وَمَا
और नहीं
ʿalaynā
عَلَيْنَآ
हम पर
illā
إِلَّا
मगर
l-balāghu
ٱلْبَلَٰغُ
पहुँचा देना
l-mubīnu
ٱلْمُبِينُ
खुल्लम-खुल्ला
औऱ हमारी ज़िम्मेदारी तो केवल स्पष्ट रूप से संदेश पहुँचा देने की हैं।' ([३६] यासीन: 17)
Tafseer (तफ़सीर )
१८

قَالُوْٓا اِنَّا تَطَيَّرْنَا بِكُمْۚ لَىِٕنْ لَّمْ تَنْتَهُوْا لَنَرْجُمَنَّكُمْ وَلَيَمَسَّنَّكُمْ مِّنَّا عَذَابٌ اَلِيْمٌ ١٨

qālū
قَالُوٓا۟
उन्होंने कहा
innā
إِنَّا
बेशक हम
taṭayyarnā
تَطَيَّرْنَا
मनहूस समझा है हमने
bikum
بِكُمْۖ
तुम्हें
la-in
لَئِن
अलबत्ता अगर
lam
لَّمْ
ना
tantahū
تَنتَهُوا۟
तुम बाज़ आए
lanarjumannakum
لَنَرْجُمَنَّكُمْ
अलबत्ता हम ज़रूर संगसार कर देंगे तुम्हें
walayamassannakum
وَلَيَمَسَّنَّكُم
और अलबत्ता ज़रूर छुएगा तुम्हें
minnā
مِّنَّا
हमारी तरफ़ से
ʿadhābun
عَذَابٌ
अज़ाब
alīmun
أَلِيمٌ
दर्दनाक
वे बोले, 'हम तो तुम्हें अपशकुन समझते है, यदि तुम बाज न आए तो हम तुम्हें पथराव करके मार डालेंगे और तुम्हें अवश्य हमारी ओर से दुखद यातना पहुँचेगी।' ([३६] यासीन: 18)
Tafseer (तफ़सीर )
१९

قَالُوْا طَاۤىِٕرُكُمْ مَّعَكُمْۗ اَىِٕنْ ذُكِّرْتُمْۗ بَلْ اَنْتُمْ قَوْمٌ مُّسْرِفُوْنَ ١٩

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
ṭāirukum
طَٰٓئِرُكُم
नहूसत तुम्हारी
maʿakum
مَّعَكُمْۚ
साथ है तुम्हारे
a-in
أَئِن
क्या (इस लिए कि)
dhukkir'tum
ذُكِّرْتُمۚ
नसीहत किए गए तुम
bal
بَلْ
बल्कि
antum
أَنتُمْ
तुम
qawmun
قَوْمٌ
लोग हो
mus'rifūna
مُّسْرِفُونَ
हद से बढ़े हुए
उन्होंने कहा, 'तुम्हारा अवशकुन तो तुम्हारे अपने ही साथ है। क्या यदि तुम्हें याददिहानी कराई जाए (तो यह कोई क्रुद्ध होने की बात है)? नहीं, बल्कि तुम मर्यादाहीन लोग हो।' ([३६] यासीन: 19)
Tafseer (तफ़सीर )
२०

وَجَاۤءَ مِنْ اَقْصَا الْمَدِيْنَةِ رَجُلٌ يَّسْعٰى قَالَ يٰقَوْمِ اتَّبِعُوا الْمُرْسَلِيْنَۙ ٢٠

wajāa
وَجَآءَ
और आया
min
مِنْ
परले किनारे से
aqṣā
أَقْصَا
परले किनारे से
l-madīnati
ٱلْمَدِينَةِ
शहर के
rajulun
رَجُلٌ
एक शख़्स
yasʿā
يَسْعَىٰ
दौड़ता हुआ
qāla
قَالَ
बोला
yāqawmi
يَٰقَوْمِ
ऐ मेरी क़ौम
ittabiʿū
ٱتَّبِعُوا۟
पैरवी करो
l-mur'salīna
ٱلْمُرْسَلِينَ
इन रसूलों की
इतने में नगर के दूरवर्ती सिरे से एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया। उसने कहा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगो! उनका अनुवर्तन करो, जो भेजे गए है। ([३६] यासीन: 20)
Tafseer (तफ़सीर )