اَنِ اعْمَلْ سٰبِغٰتٍ وَّقَدِّرْ فِى السَّرْدِ وَاعْمَلُوْا صَالِحًاۗ اِنِّيْ بِمَا تَعْمَلُوْنَ بَصِيْرٌ ١١
- ani
- أَنِ
- कि
- iʿ'mal
- ٱعْمَلْ
- बनाओ
- sābighātin
- سَٰبِغَٰتٍ
- कुशादह ज़रहें
- waqaddir
- وَقَدِّرْ
- और अंदाज़े पर रखो
- fī
- فِى
- हल्क़े में
- l-sardi
- ٱلسَّرْدِۖ
- हल्क़े में
- wa-iʿ'malū
- وَٱعْمَلُوا۟
- और अमल करो
- ṣāliḥan
- صَٰلِحًاۖ
- नेक
- innī
- إِنِّى
- बेशक मैं
- bimā
- بِمَا
- उसे जो
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते हो
- baṣīrun
- بَصِيرٌ
- ख़ूब देखने वाला हूँ
कि 'पूरी कवचें बना और कड़ियों को ठीक अंदाज़ें से जोड।' - और तुम अच्छा कर्म करो। निस्संदेह जो कुछ तुम करते हो उसे मैं देखता हूँ ([३४] सबा: 11)Tafseer (तफ़सीर )
وَلِسُلَيْمٰنَ الرِّيْحَ غُدُوُّهَا شَهْرٌ وَّرَوَاحُهَا شَهْرٌۚ وَاَسَلْنَا لَهٗ عَيْنَ الْقِطْرِۗ وَمِنَ الْجِنِّ مَنْ يَّعْمَلُ بَيْنَ يَدَيْهِ بِاِذْنِ رَبِّهٖۗ وَمَنْ يَّزِغْ مِنْهُمْ عَنْ اَمْرِنَا نُذِقْهُ مِنْ عَذَابِ السَّعِيْرِ ١٢
- walisulaymāna
- وَلِسُلَيْمَٰنَ
- और सुलैमान के लिए
- l-rīḥa
- ٱلرِّيحَ
- हवा को(मुसख़्खर किया)
- ghuduwwuhā
- غُدُوُّهَا
- सुबह का चलना उसका
- shahrun
- شَهْرٌ
- एक माह का
- warawāḥuhā
- وَرَوَاحُهَا
- और शाम का चलना उसका
- shahrun
- شَهْرٌۖ
- एक माह का
- wa-asalnā
- وَأَسَلْنَا
- और बहा दिया हमने
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- ʿayna
- عَيْنَ
- चश्मा
- l-qiṭ'ri
- ٱلْقِطْرِۖ
- पिघले हुए ताँबे का
- wamina
- وَمِنَ
- और जिन्नों में से
- l-jini
- ٱلْجِنِّ
- और जिन्नों में से
- man
- مَن
- जो
- yaʿmalu
- يَعْمَلُ
- काम करते थे
- bayna
- بَيْنَ
- उसके सामने
- yadayhi
- يَدَيْهِ
- उसके सामने
- bi-idh'ni
- بِإِذْنِ
- इज़्न से
- rabbihi
- رَبِّهِۦۖ
- उसके रब के
- waman
- وَمَن
- और जो
- yazigh
- يَزِغْ
- सरकशी करता
- min'hum
- مِنْهُمْ
- उनमें से
- ʿan
- عَنْ
- हमारे हुक्म से
- amrinā
- أَمْرِنَا
- हमारे हुक्म से
- nudhiq'hu
- نُذِقْهُ
- हम चखाते उसे
- min
- مِنْ
- अज़ाब से
- ʿadhābi
- عَذَابِ
- अज़ाब से
- l-saʿīri
- ٱلسَّعِيرِ
- भड़कती हुई आग के
और सुलैमान के लिए वायु को वशीभुत कर दिया था। प्रातः समय उसका चलना एक महीने की राह तक और सायंकाल को उसका चलना एक महीने की राह तक - और हमने उसके लिए पिघले हुए ताँबे का स्रोत बहा दिया - और जिन्नों में से भी कुछ को (उसके वशीभूत कर दिया था,) जो अपने रब की अनुज्ञा से उसके आगे काम करते थे। (हमारा आदेशा था,) 'उनमें से जो हमारे हुक्म से फिरेगा उसे हम भडकती आग का मज़ा चखाएँगे।' ([३४] सबा: 12)Tafseer (तफ़सीर )
يَعْمَلُوْنَ لَهٗ مَا يَشَاۤءُ مِنْ مَّحَارِيْبَ وَتَمَاثِيْلَ وَجِفَانٍ كَالْجَوَابِ وَقُدُوْرٍ رّٰسِيٰتٍۗ اِعْمَلُوْٓا اٰلَ دَاوٗدَ شُكْرًا ۗوَقَلِيْلٌ مِّنْ عِبَادِيَ الشَّكُوْرُ ١٣
- yaʿmalūna
- يَعْمَلُونَ
- वो बनाते
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- mā
- مَا
- जो
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता
- min
- مِن
- बड़ी-बड़ी इमारतें
- maḥārība
- مَّحَٰرِيبَ
- बड़ी-बड़ी इमारतें
- watamāthīla
- وَتَمَٰثِيلَ
- और मुजस्समे
- wajifānin
- وَجِفَانٍ
- और लगन
- kal-jawābi
- كَٱلْجَوَابِ
- हौज़ की तरह
- waqudūrin
- وَقُدُورٍ
- और देगें
- rāsiyātin
- رَّاسِيَٰتٍۚ
- गड़ी हुईं
- iʿ'malū
- ٱعْمَلُوٓا۟
- अमल करो
- āla
- ءَالَ
- ऐ आले दाऊद
- dāwūda
- دَاوُۥدَ
- ऐ आले दाऊद
- shuk'ran
- شُكْرًاۚ
- शुक्र करने के लिए
- waqalīlun
- وَقَلِيلٌ
- और कम ही हैं
- min
- مِّنْ
- मेरे बन्दों में से
- ʿibādiya
- عِبَادِىَ
- मेरे बन्दों में से
- l-shakūru
- ٱلشَّكُورُ
- शुक्र गुज़ार
वे उसके लिए बनाते, जो कुछ वह चाहता - बड़े-बड़े भवन, प्रतिमाएँ, बड़े हौज़ जैसे थाल और जमी रहनेवाली देगें - 'ऐ दाऊद के लोगों! कर्म करो, कृतज्ञता दिखाने रूप में। मेरे बन्दों में कृतज्ञ थोड़े ही हैं।' ([३४] सबा: 13)Tafseer (तफ़सीर )
فَلَمَّا قَضَيْنَا عَلَيْهِ الْمَوْتَ مَا دَلَّهُمْ عَلٰى مَوْتِهٖٓ اِلَّا دَاۤبَّةُ الْاَرْضِ تَأْكُلُ مِنْسَاَتَهٗ ۚفَلَمَّا خَرَّ تَبَيَّنَتِ الْجِنُّ اَنْ لَّوْ كَانُوْا يَعْلَمُوْنَ الْغَيْبَ مَا لَبِثُوْا فِى الْعَذَابِ الْمُهِيْنِۗ ١٤
- falammā
- فَلَمَّا
- फिर जब
- qaḍaynā
- قَضَيْنَا
- मुक़र्रर किया हमने
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उस पर
- l-mawta
- ٱلْمَوْتَ
- मौत को
- mā
- مَا
- ना
- dallahum
- دَلَّهُمْ
- ख़बर दी उनको
- ʿalā
- عَلَىٰ
- उसकी मौत की
- mawtihi
- مَوْتِهِۦٓ
- उसकी मौत की
- illā
- إِلَّا
- मगर
- dābbatu
- دَآبَّةُ
- कीड़े ने
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन के
- takulu
- تَأْكُلُ
- वो खाता रहा
- minsa-atahu
- مِنسَأَتَهُۥۖ
- उसका असा
- falammā
- فَلَمَّا
- फिर जब
- kharra
- خَرَّ
- वो गिर पड़ा
- tabayyanati
- تَبَيَّنَتِ
- वाज़ेह हो गया
- l-jinu
- ٱلْجِنُّ
- जिन्नों पर
- an
- أَن
- कि
- law
- لَّوْ
- अगर
- kānū
- كَانُوا۟
- होते वो
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- वो इल्म रखते
- l-ghayba
- ٱلْغَيْبَ
- ग़ैब का
- mā
- مَا
- ना
- labithū
- لَبِثُوا۟
- वो रहते
- fī
- فِى
- अज़ाब में
- l-ʿadhābi
- ٱلْعَذَابِ
- अज़ाब में
- l-muhīni
- ٱلْمُهِينِ
- रुस्वाकुन
फिर जब हमने उसके लिए मौत का फ़ैसला लागू किया तो फिर उन जिन्नों को उसकी मौत का पता बस भूमि के उस कीड़े ने दिया जो उसकी लाठी को खा रहा था। फिर जब वह गिर पड़ा, तब जिन्नों पर प्रकट हुआ कि यदि वे परोक्ष के जाननेवाले होते तो इस अपमानजनक यातना में पड़े न रहते ([३४] सबा: 14)Tafseer (तफ़सीर )
لَقَدْ كَانَ لِسَبَاٍ فِيْ مَسْكَنِهِمْ اٰيَةٌ ۚجَنَّتٰنِ عَنْ يَّمِيْنٍ وَّشِمَالٍ ەۗ كُلُوْا مِنْ رِّزْقِ رَبِّكُمْ وَاشْكُرُوْا لَهٗ ۗبَلْدَةٌ طَيِّبَةٌ وَّرَبٌّ غَفُوْرٌ ١٥
- laqad
- لَقَدْ
- अलबत्ता तहक़ीक़
- kāna
- كَانَ
- थी
- lisaba-in
- لِسَبَإٍ
- सबा के लिए
- fī
- فِى
- उनके घरों में
- maskanihim
- مَسْكَنِهِمْ
- उनके घरों में
- āyatun
- ءَايَةٌۖ
- एक निशानी
- jannatāni
- جَنَّتَانِ
- दो बाग़
- ʿan
- عَن
- दाऐं तरफ़
- yamīnin
- يَمِينٍ
- दाऐं तरफ़
- washimālin
- وَشِمَالٍۖ
- और बाऐं तरफ़
- kulū
- كُلُوا۟
- खाओ
- min
- مِن
- रिज़्क़ में से
- riz'qi
- رِّزْقِ
- रिज़्क़ में से
- rabbikum
- رَبِّكُمْ
- अपने रब के
- wa-ush'kurū
- وَٱشْكُرُوا۟
- और शुक्र करो
- lahu
- لَهُۥۚ
- उसका
- baldatun
- بَلْدَةٌ
- शहर है
- ṭayyibatun
- طَيِّبَةٌ
- पाकीज़ा
- warabbun
- وَرَبٌّ
- और रब है
- ghafūrun
- غَفُورٌ
- ख़ूब बख़्शने वाला
सबा के लिए उनके निवास-स्थान ही में एक निशानी थी - दाएँ और बाएँ दो बाग, 'खाओ अपने रब की रोज़ी, और उसके प्रति आभार प्रकट करो। भूमि भी अच्छी-सी और रब भी क्षमाशील।' ([३४] सबा: 15)Tafseer (तफ़सीर )
فَاَعْرَضُوْا فَاَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ سَيْلَ الْعَرِمِ وَبَدَّلْنٰهُمْ بِجَنَّتَيْهِمْ جَنَّتَيْنِ ذَوَاتَيْ اُكُلٍ خَمْطٍ وَّاَثْلٍ وَّشَيْءٍ مِّنْ سِدْرٍ قَلِيْلٍ ١٦
- fa-aʿraḍū
- فَأَعْرَضُوا۟
- फिर वो मुँह मोड़ गए
- fa-arsalnā
- فَأَرْسَلْنَا
- तो भेजा हमने
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- sayla
- سَيْلَ
- सैलाब
- l-ʿarimi
- ٱلْعَرِمِ
- बँद तोड़
- wabaddalnāhum
- وَبَدَّلْنَٰهُم
- और बदल कर दिए हमने उन्हें
- bijannatayhim
- بِجَنَّتَيْهِمْ
- बदले उनके दो बाग़ों के
- jannatayni
- جَنَّتَيْنِ
- दो बाग़
- dhawātay
- ذَوَاتَىْ
- बदमज़ह फलों वाले
- ukulin
- أُكُلٍ
- बदमज़ह फलों वाले
- khamṭin
- خَمْطٍ
- बदमज़ह फलों वाले
- wa-athlin
- وَأَثْلٍ
- और झाओ के दरख़्त
- washayin
- وَشَىْءٍ
- और कुछ
- min
- مِّن
- बेरी के दरख़्त
- sid'rin
- سِدْرٍ
- बेरी के दरख़्त
- qalīlin
- قَلِيلٍ
- थोड़े से
किन्तु वे ध्यान में न लाए तो हमने उनपर बँध-तोड़ बाढ़ भेज दी और उनके दोनों बाग़ों के बदले में उन्हें दो दूसरे बाग़ दिए, जिनमें कड़वे-कसैले फल और झाड़ थे, और कुछ थोड़ी-सी झड़-बेरियाँ ([३४] सबा: 16)Tafseer (तफ़सीर )
ذٰلِكَ جَزَيْنٰهُمْ بِمَا كَفَرُوْاۗ وَهَلْ نُجٰزِيْٓ اِلَّا الْكَفُوْرَ ١٧
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- jazaynāhum
- جَزَيْنَٰهُم
- बदला दिया हमने उन्हें
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- kafarū
- كَفَرُوا۟ۖ
- उन्होंने नाशुक्री की
- wahal
- وَهَلْ
- और नहीं
- nujāzī
- نُجَٰزِىٓ
- हम बदला/सज़ा देते
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-kafūra
- ٱلْكَفُورَ
- सख़्त नाशुक्रे को
यह बदला हमने उन्हें इसलिए दिया कि उन्होंने कृतध्नता दिखाई। ऐसा बदला तो हम कृतध्न लोगों को ही देते है ([३४] सबा: 17)Tafseer (तफ़सीर )
وَجَعَلْنَا بَيْنَهُمْ وَبَيْنَ الْقُرَى الَّتِيْ بٰرَكْنَا فِيْهَا قُرًى ظَاهِرَةً وَّقَدَّرْنَا فِيْهَا السَّيْرَۗ سِيْرُوْا فِيْهَا لَيَالِيَ وَاَيَّامًا اٰمِنِيْنَ ١٨
- wajaʿalnā
- وَجَعَلْنَا
- और बनाईं थीं हमने
- baynahum
- بَيْنَهُمْ
- दर्मियान उनके
- wabayna
- وَبَيْنَ
- और दर्मियान
- l-qurā
- ٱلْقُرَى
- उन बस्तियों के
- allatī
- ٱلَّتِى
- वो जो
- bāraknā
- بَٰرَكْنَا
- बरकत दी हमने
- fīhā
- فِيهَا
- जिन में
- quran
- قُرًى
- बस्तियाँ
- ẓāhiratan
- ظَٰهِرَةً
- ज़ाहिर/नुमायाँ
- waqaddarnā
- وَقَدَّرْنَا
- और अंदाज़े पर रखी हमने
- fīhā
- فِيهَا
- उनमें
- l-sayra
- ٱلسَّيْرَۖ
- मसाफ़त
- sīrū
- سِيرُوا۟
- चले फिरो
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- layāliya
- لَيَالِىَ
- रातों को
- wa-ayyāman
- وَأَيَّامًا
- और दिनों को
- āminīna
- ءَامِنِينَ
- अमन से रहने वाले
और हमने उनके और उन बस्तियों के बीच जिनमें हमने बरकत रखी थी प्रत्यक्ष बस्तियाँ बसाई और उनमें सफ़र की मंज़िलें ख़ास अंदाज़े पर रखीं, 'उनमें रात-दिन निश्चिन्त होकर चलो फिरो!' ([३४] सबा: 18)Tafseer (तफ़सीर )
فَقَالُوْا رَبَّنَا بٰعِدْ بَيْنَ اَسْفَارِنَا وَظَلَمُوْٓا اَنْفُسَهُمْ فَجَعَلْنٰهُمْ اَحَادِيْثَ وَمَزَّقْنٰهُمْ كُلَّ مُمَزَّقٍۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّكُلِّ صَبَّارٍ شَكُوْرٍ ١٩
- faqālū
- فَقَالُوا۟
- तो उन्होंने कहा
- rabbanā
- رَبَّنَا
- ऐ हमारे रब
- bāʿid
- بَٰعِدْ
- दूरी पैदा कर दे
- bayna
- بَيْنَ
- दर्मियान
- asfārinā
- أَسْفَارِنَا
- हमारे सफ़रों के
- waẓalamū
- وَظَلَمُوٓا۟
- और उन्होंने ज़ुल्म किया
- anfusahum
- أَنفُسَهُمْ
- अपनी जानों पर
- fajaʿalnāhum
- فَجَعَلْنَٰهُمْ
- तो बना दिया हमने उन्हें
- aḥādītha
- أَحَادِيثَ
- बातें/अफ़साने
- wamazzaqnāhum
- وَمَزَّقْنَٰهُمْ
- और रेज़ा-रेज़ा कर दिया हमने उन्हें
- kulla
- كُلَّ
- हर तरह
- mumazzaqin
- مُمَزَّقٍۚ
- रेज़ा-रेज़ा करना
- inna
- إِنَّ
- यक़ीनन
- fī
- فِى
- इसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसमें
- laāyātin
- لَءَايَٰتٍ
- अलबत्ता निशानियाँ हैं
- likulli
- لِّكُلِّ
- वास्ते हर
- ṣabbārin
- صَبَّارٍ
- बहुत सब्र करने वाले
- shakūrin
- شَكُورٍ
- शुक्र गुज़ार के
किन्तु उन्होंने कहा, 'ऐ हमारे रब! हमारी यात्राओं में दूरी कर दे।' उन्होंने स्वयं अपने ही ऊपर ज़ुल्म किया। अन्ततः हम उन्हें (अतीत की) कहानियाँ बनाकर रहे, औऱ उन्हें बिल्कुल छिन्न-भिन्न कर डाला। निश्चय ही इसमें निशानियाँ है प्रत्येक बड़े धैर्यवान, कृतज्ञ के लिए ([३४] सबा: 19)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ صَدَّقَ عَلَيْهِمْ اِبْلِيْسُ ظَنَّهٗ فَاتَّبَعُوْهُ اِلَّا فَرِيْقًا مِّنَ الْمُؤْمِنِيْنَ ٢٠
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक
- ṣaddaqa
- صَدَّقَ
- सच कर दिखाया
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- ib'līsu
- إِبْلِيسُ
- इब्लीस ने
- ẓannahu
- ظَنَّهُۥ
- गुमान अपना
- fa-ittabaʿūhu
- فَٱتَّبَعُوهُ
- तो उन्होंने पैरवी की उसकी
- illā
- إِلَّا
- सिवाए
- farīqan
- فَرِيقًا
- एक गिरोह के
- mina
- مِّنَ
- मोमिनों में से
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिनों में से
इबलीस ने उनके विषय में अपना गुमान सत्य पाया और ईमानवालो के एक गिरोह के सिवा उन्होंने उसी का अनुसरण किया ([३४] सबा: 20)Tafseer (तफ़सीर )