७१
يُّصْلِحْ لَكُمْ اَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوْبَكُمْۗ وَمَنْ يُّطِعِ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ فَقَدْ فَازَ فَوْزًا عَظِيْمًا ٧١
- yuṣ'liḥ
- يُصْلِحْ
- वो इस्लाह कर देगा
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- aʿmālakum
- أَعْمَٰلَكُمْ
- तुम्हारे आमाल की
- wayaghfir
- وَيَغْفِرْ
- और वो बख़्श देगा
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- dhunūbakum
- ذُنُوبَكُمْۗ
- तुम्हारे गुनाहों को
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yuṭiʿi
- يُطِعِ
- इताअत करेगा
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह की
- warasūlahu
- وَرَسُولَهُۥ
- और उसके रसूल की
- faqad
- فَقَدْ
- तो तहक़ीक़
- fāza
- فَازَ
- वो कामयाब हुआ
- fawzan
- فَوْزًا
- कामयाब होना
- ʿaẓīman
- عَظِيمًا
- बहुत बड़ा
वह तुम्हारे कर्मों को सँवार देगा और तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा। और जो अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करे, उसने बड़ी सफलता प्राप्त॥ कर ली है ([३३] अल-अह्जाब: 71)Tafseer (तफ़सीर )
७२
اِنَّا عَرَضْنَا الْاَمَانَةَ عَلَى السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَالْجِبَالِ فَاَبَيْنَ اَنْ يَّحْمِلْنَهَا وَاَشْفَقْنَ مِنْهَا وَحَمَلَهَا الْاِنْسَانُۗ اِنَّهٗ كَانَ ظَلُوْمًا جَهُوْلًاۙ ٧٢
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- ʿaraḍnā
- عَرَضْنَا
- पेश किया हमने
- l-amānata
- ٱلْأَمَانَةَ
- अमानत को
- ʿalā
- عَلَى
- आसमानों पर
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों पर
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِ
- और ज़मीन पर
- wal-jibāli
- وَٱلْجِبَالِ
- और पहाड़ों पर
- fa-abayna
- فَأَبَيْنَ
- तो उन्होंने इन्कार कर दिया
- an
- أَن
- कि
- yaḥmil'nahā
- يَحْمِلْنَهَا
- वो उठाऐं उसे
- wa-ashfaqna
- وَأَشْفَقْنَ
- और वो डर गए
- min'hā
- مِنْهَا
- उससे
- waḥamalahā
- وَحَمَلَهَا
- और उठा लिया उसे
- l-insānu
- ٱلْإِنسَٰنُۖ
- इन्सान ने
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- kāna
- كَانَ
- है
- ẓalūman
- ظَلُومًا
- बहुत ज़ालिम
- jahūlan
- جَهُولًا
- बहुत जाहिल
हमने अमानत को आकाशों और धरती और पर्वतों के समक्ष प्रस्तुत किया, किन्तु उन्होंने उसके उठाने से इनकार कर दिया और उससे डर गए। लेकिन मनुष्य ने उसे उठा लिया। निश्चय ही वह बड़ी ज़ालिम, आवेश के वशीभूत हो जानेवाला है ([३३] अल-अह्जाब: 72)Tafseer (तफ़सीर )
७३
لِّيُعَذِّبَ اللّٰهُ الْمُنٰفِقِيْنَ وَالْمُنٰفِقَتِ وَالْمُشْرِكِيْنَ وَالْمُشْرِكٰتِ وَيَتُوْبَ اللّٰهُ عَلَى الْمُؤْمِنِيْنَ وَالْمُؤْمِنٰتِۗ وَكَانَ اللّٰهُ غَفُوْرًا رَّحِيْمًا ࣖ ٧٣
- liyuʿadhiba
- لِّيُعَذِّبَ
- ताकि अज़ाब दे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- l-munāfiqīna
- ٱلْمُنَٰفِقِينَ
- मुनाफ़िक़ मर्दों
- wal-munāfiqāti
- وَٱلْمُنَٰفِقَٰتِ
- और मुनाफ़िक़ औरतों को
- wal-mush'rikīna
- وَٱلْمُشْرِكِينَ
- और मुशरिक मर्दों को
- wal-mush'rikāti
- وَٱلْمُشْرِكَٰتِ
- और मुशरिक औरतों को
- wayatūba
- وَيَتُوبَ
- और मेहरबान हो जाए
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- ʿalā
- عَلَى
- मोमिन मर्दों पर
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिन मर्दों पर
- wal-mu'mināti
- وَٱلْمُؤْمِنَٰتِۗ
- और मोमिन औरतों पर
- wakāna
- وَكَانَ
- और है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- ghafūran
- غَفُورًا
- बहुत बख़्शने वाला
- raḥīman
- رَّحِيمًۢا
- निहायत रहम करने वाला
ताकि अल्लाह कपटाचारी पुरुषों और कपटाचारी स्त्रियों और बहुदेववादी पुरुषों और बहुदेववादी स्त्रियों को यातना दे, और ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों पर अल्लाह कृपा-स्पष्ट करे। वास्तव में अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है ([३३] अल-अह्जाब: 73)Tafseer (तफ़सीर )