لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِيْ رَسُوْلِ اللّٰهِ اُسْوَةٌ حَسَنَةٌ لِّمَنْ كَانَ يَرْجُوا اللّٰهَ وَالْيَوْمَ الْاٰخِرَ وَذَكَرَ اللّٰهَ كَثِيْرًاۗ ٢١
- laqad
- لَّقَدْ
- अलबत्ता तहक़ीक़
- kāna
- كَانَ
- है
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- fī
- فِى
- अल्लाह के रसूल में
- rasūli
- رَسُولِ
- अल्लाह के रसूल में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रसूल में
- us'watun
- أُسْوَةٌ
- नमूना
- ḥasanatun
- حَسَنَةٌ
- अच्छा
- liman
- لِّمَن
- उसके लिए जो
- kāna
- كَانَ
- हो
- yarjū
- يَرْجُوا۟
- उम्मीद रखता
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह की
- wal-yawma
- وَٱلْيَوْمَ
- और आख़िरी दिन की
- l-ākhira
- ٱلْءَاخِرَ
- और आख़िरी दिन की
- wadhakara
- وَذَكَرَ
- और वो याद करे
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह को
- kathīran
- كَثِيرًا
- कसरत से
निस्संदेह तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में एक उत्तम आदर्श है अर्थात उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह और अन्तिम दिन की आशा रखता हो और अल्लाह को अधिक याद करे ([३३] अल-अह्जाब: 21)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَمَّا رَاَ الْمُؤْمِنُوْنَ الْاَحْزَابَۙ قَالُوْا هٰذَا مَا وَعَدَنَا اللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗ وَصَدَقَ اللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗ ۖوَمَا زَادَهُمْ اِلَّآ اِيْمَانًا وَّتَسْلِيْمًاۗ ٢٢
- walammā
- وَلَمَّا
- और जब
- raā
- رَءَا
- देखा
- l-mu'minūna
- ٱلْمُؤْمِنُونَ
- मोमिनों ने
- l-aḥzāba
- ٱلْأَحْزَابَ
- गिरोहों को
- qālū
- قَالُوا۟
- वो कहने लगे
- hādhā
- هَٰذَا
- ये है
- mā
- مَا
- वो ही जो
- waʿadanā
- وَعَدَنَا
- वादा किया हमसे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- warasūluhu
- وَرَسُولُهُۥ
- और उसके रसूल ने
- waṣadaqa
- وَصَدَقَ
- और सच फ़रमाया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- warasūluhu
- وَرَسُولُهُۥۚ
- और उसके रसूल ने
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- zādahum
- زَادَهُمْ
- उसने ज़्यादा किया उन्हें
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- īmānan
- إِيمَٰنًا
- ईमान
- wataslīman
- وَتَسْلِيمًا
- और सुपुर्दगी में
और जब ईमानवालों ने सैन्य दलों को देखा तो वे पुकार उठे, 'यह तो वही चीज़ है, जिसका अल्लाह और उसके रसूल ने हमसे वादा किया था। और अल्लाह और उसके रसूल ने सच कहा था।' इस चीज़ ने उनके ईमान और आज्ञाकारिता ही को बढ़ाया ([३३] अल-अह्जाब: 22)Tafseer (तफ़सीर )
مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ رِجَالٌ صَدَقُوْا مَا عَاهَدُوا اللّٰهَ عَلَيْهِ ۚ فَمِنْهُمْ مَّنْ قَضٰى نَحْبَهٗۙ وَمِنْهُمْ مَّنْ يَّنْتَظِرُ ۖوَمَا بَدَّلُوْا تَبْدِيْلًاۙ ٢٣
- mina
- مِّنَ
- मोमिनों में से
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिनों में से
- rijālun
- رِجَالٌ
- कुछ मर्द हैं
- ṣadaqū
- صَدَقُوا۟
- जिन्होंने सच्चा कर दिया
- mā
- مَا
- जो
- ʿāhadū
- عَٰهَدُوا۟
- उन्होंने अहद किया था
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- ʿalayhi
- عَلَيْهِۖ
- जिस पर
- famin'hum
- فَمِنْهُم
- तो उनमें से वो है
- man
- مَّن
- जो
- qaḍā
- قَضَىٰ
- पूरी कर चुका
- naḥbahu
- نَحْبَهُۥ
- नज़र अपनी
- wamin'hum
- وَمِنْهُم
- और उनमें से कोई है
- man
- مَّن
- जो
- yantaẓiru
- يَنتَظِرُۖ
- मुन्तज़िर है
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- baddalū
- بَدَّلُوا۟
- उन्होंने तब्दीली की
- tabdīlan
- تَبْدِيلًا
- तब्दीली करना
ईमानवालों के रूप में ऐसे पुरुष मौजूद है कि जो प्रतिज्ञा उन्होंने अल्लाह से की थी उसे उन्होंने सच्चा कर दिखाया। फिर उनमें से कुछ तो अपना प्रण पूरा कर चुके और उनमें से कुछ प्रतीक्षा में है। और उन्होंने अपनी बात तनिक भी नहीं बदली ([३३] अल-अह्जाब: 23)Tafseer (तफ़सीर )
لِيَجْزِيَ اللّٰهُ الصّٰدِقِيْنَ بِصِدْقِهِمْ وَيُعَذِّبَ الْمُنٰفِقِيْنَ اِنْ شَاۤءَ اَوْ يَتُوْبَ عَلَيْهِمْ ۗاِنَّ اللّٰهَ كَانَ غَفُوْرًا رَّحِيْمًاۚ ٢٤
- liyajziya
- لِّيَجْزِىَ
- ताकि बदला दे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- l-ṣādiqīna
- ٱلصَّٰدِقِينَ
- सच्चों को
- biṣid'qihim
- بِصِدْقِهِمْ
- उनकी सच्चाई का
- wayuʿadhiba
- وَيُعَذِّبَ
- और वो अज़ाब दे
- l-munāfiqīna
- ٱلْمُنَٰفِقِينَ
- मुनाफ़िक़ों को
- in
- إِن
- अगर
- shāa
- شَآءَ
- वो चाहे
- aw
- أَوْ
- या
- yatūba
- يَتُوبَ
- वो मेहरबान होजाए
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْۚ
- उन पर
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- kāna
- كَانَ
- है
- ghafūran
- غَفُورًا
- बहुत बख़्शने वाला
- raḥīman
- رَّحِيمًا
- निहायत रहम करने वाला
ताकि इसके परिणामस्वरूप अल्लाह सच्चों को उनकी सच्चाई का बदला दे और कपटाचारियों को चाहे तो यातना दे या उनकी तौबा क़बूल करे। निश्चय ही अल्लाह बड़ी क्षमाशील, दयावान है ([३३] अल-अह्जाब: 24)Tafseer (तफ़सीर )
وَرَدَّ اللّٰهُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا بِغَيْظِهِمْ لَمْ يَنَالُوْا خَيْرًا ۗوَكَفَى اللّٰهُ الْمُؤْمِنِيْنَ الْقِتَالَ ۗوَكَانَ اللّٰهُ قَوِيًّا عَزِيْزًاۚ ٢٥
- waradda
- وَرَدَّ
- और फेर दिया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनको जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- bighayẓihim
- بِغَيْظِهِمْ
- साथ उनके ग़ुस्से के
- lam
- لَمْ
- नहीं
- yanālū
- يَنَالُوا۟
- उन्होंने पाई
- khayran
- خَيْرًاۚ
- कोई भलाई
- wakafā
- وَكَفَى
- और काफ़ी हो गया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिनों को
- l-qitāla
- ٱلْقِتَالَۚ
- जंग में
- wakāna
- وَكَانَ
- और है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- qawiyyan
- قَوِيًّا
- बहुत क़ुव्वत वाला
- ʿazīzan
- عَزِيزًا
- बहुत ज़बरदस्त
अल्लाह ने इनकार करनेवालों को उनके अपने क्रोध के साथ फेर दिया। वे कोई भलाई प्राप्त न कर सके। अल्लाह ने मोमिनों को युद्ध करने से बचा लिया। अल्लाह तो है ही बड़ा शक्तिवान, प्रभुत्वशाली ([३३] अल-अह्जाब: 25)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَنْزَلَ الَّذِيْنَ ظَاهَرُوْهُمْ مِّنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ مِنْ صَيَاصِيْهِمْ وَقَذَفَ فِيْ قُلُوْبِهِمُ الرُّعْبَ فَرِيْقًا تَقْتُلُوْنَ وَتَأْسِرُوْنَ فَرِيْقًاۚ ٢٦
- wa-anzala
- وَأَنزَلَ
- और उसने उतारा
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनको जिन्होंने
- ẓāharūhum
- ظَٰهَرُوهُم
- मदद की उनकी
- min
- مِّنْ
- अहले किताब में से
- ahli
- أَهْلِ
- अहले किताब में से
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- अहले किताब में से
- min
- مِن
- उनके क़िलों से
- ṣayāṣīhim
- صَيَاصِيهِمْ
- उनके क़िलों से
- waqadhafa
- وَقَذَفَ
- और उसने डाल दिया
- fī
- فِى
- उनके दिलों में
- qulūbihimu
- قُلُوبِهِمُ
- उनके दिलों में
- l-ruʿ'ba
- ٱلرُّعْبَ
- रोब
- farīqan
- فَرِيقًا
- एक गिरोह को
- taqtulūna
- تَقْتُلُونَ
- तुम क़त्ल कर रहे थे
- watasirūna
- وَتَأْسِرُونَ
- और तुम क़ैद कर रहे थे
- farīqan
- فَرِيقًا
- एक गिरोह को
और किताबवालों में सो जिन लोगों ने उसकी सहायता की थी, उन्हें उनकी गढ़ियों से उतार लाया। और उनके दिलों में धाक बिठा दी कि तुम एक गिरोह को जान से मारने लगे और एक गिरोह को बन्दी बनाने लगे ([३३] अल-अह्जाब: 26)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَوْرَثَكُمْ اَرْضَهُمْ وَدِيَارَهُمْ وَاَمْوَالَهُمْ وَاَرْضًا لَّمْ تَطَـُٔوْهَا ۗوَكَانَ اللّٰهُ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرًا ࣖ ٢٧
- wa-awrathakum
- وَأَوْرَثَكُمْ
- और उसने वारिस बनादिया तुम्हें
- arḍahum
- أَرْضَهُمْ
- उनकी ज़मीन का
- wadiyārahum
- وَدِيَٰرَهُمْ
- और उनके घरों का
- wa-amwālahum
- وَأَمْوَٰلَهُمْ
- और उनके मालों का
- wa-arḍan
- وَأَرْضًا
- और ज़मीन का
- lam
- لَّمْ
- नहीं
- taṭaūhā
- تَطَـُٔوهَاۚ
- तुम ने पामाला किया जिसे
- wakāna
- وَكَانَ
- और है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर
- kulli
- كُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ के
- qadīran
- قَدِيرًا
- ख़ूब क़ुदरत रखने वाला
और उसने तुम्हें उनके भू-भाग और उनके घरों और उनके मालों का वारिस बना दिया और उस भू-भाग का भी जिसे तुमने पददलित नहीं किया। वास्तव में अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है ([३३] अल-अह्जाब: 27)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا النَّبِيُّ قُلْ لِّاَزْوَاجِكَ اِنْ كُنْتُنَّ تُرِدْنَ الْحَيٰوةَ الدُّنْيَا وَزِيْنَتَهَا فَتَعَالَيْنَ اُمَتِّعْكُنَّ وَاُسَرِّحْكُنَّ سَرَاحًا جَمِيْلًا ٢٨
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ नबी
- l-nabiyu
- ٱلنَّبِىُّ
- ऐ नबी
- qul
- قُل
- कह दीजिए
- li-azwājika
- لِّأَزْوَٰجِكَ
- अपनी बीवियों से
- in
- إِن
- अगर
- kuntunna
- كُنتُنَّ
- हो तुम
- turid'na
- تُرِدْنَ
- तुम चाहती
- l-ḥayata
- ٱلْحَيَوٰةَ
- ज़िन्दगी
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया की
- wazīnatahā
- وَزِينَتَهَا
- और ज़ीनत उसकी
- fataʿālayna
- فَتَعَالَيْنَ
- तो आओ
- umattiʿ'kunna
- أُمَتِّعْكُنَّ
- मैं कुछ सामान दे दूँ तुम्हें
- wa-usarriḥ'kunna
- وَأُسَرِّحْكُنَّ
- और मैं रुख़्सत कर दूँ तुम्हें
- sarāḥan
- سَرَاحًا
- रुख़्सत करना
- jamīlan
- جَمِيلًا
- अच्छे तरीक़े से
ऐ नबी! अपनी पत्नि यों से कह दो कि 'यदि तुम सांसारिक जीवन और उसकी शोभा चाहती हो तो आओ, मैं तुम्हें कुछ दे-दिलाकर भली रीति से विदा कर दूँ ([३३] अल-अह्जाब: 28)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِنْ كُنْتُنَّ تُرِدْنَ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ وَالدَّارَ الْاٰخِرَةَ فَاِنَّ اللّٰهَ اَعَدَّ لِلْمُحْسِنٰتِ مِنْكُنَّ اَجْرًا عَظِيْمًا ٢٩
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- kuntunna
- كُنتُنَّ
- हो तुम
- turid'na
- تُرِدْنَ
- तुम चाहती
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह को
- warasūlahu
- وَرَسُولَهُۥ
- और उसके रसूल को
- wal-dāra
- وَٱلدَّارَ
- और घर को
- l-ākhirata
- ٱلْءَاخِرَةَ
- आख़िरत के
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह ने
- aʿadda
- أَعَدَّ
- तैयार कर रखा है
- lil'muḥ'sināti
- لِلْمُحْسِنَٰتِ
- नेकी करने वालों के लिए
- minkunna
- مِنكُنَّ
- तुम में से
- ajran
- أَجْرًا
- अजर
- ʿaẓīman
- عَظِيمًا
- बहुत बड़ा
'किन्तु यदि तुम अल्लाह और उसके रसूल और आख़िरत के घर को चाहती हो तो निश्चय ही अल्लाह ने तुममे से उत्तमकार स्त्रियों के लिए बड़ा प्रतिदान रख छोड़ा है।' ([३३] अल-अह्जाब: 29)Tafseer (तफ़सीर )
يٰنِسَاۤءَ النَّبِيِّ مَنْ يَّأْتِ مِنْكُنَّ بِفَاحِشَةٍ مُّبَيِّنَةٍ يُّضٰعَفْ لَهَا الْعَذَابُ ضِعْفَيْنِۗ وَكَانَ ذٰلِكَ عَلَى اللّٰهِ يَسِيْرًا ۔ ٣٠
- yānisāa
- يَٰنِسَآءَ
- ऐ नबी की बीवियो
- l-nabiyi
- ٱلنَّبِىِّ
- ऐ नबी की बीवियो
- man
- مَن
- जो कोई
- yati
- يَأْتِ
- आएगी
- minkunna
- مِنكُنَّ
- तुम में से
- bifāḥishatin
- بِفَٰحِشَةٍ
- बेहयाई को
- mubayyinatin
- مُّبَيِّنَةٍ
- खुली
- yuḍāʿaf
- يُضَٰعَفْ
- बढ़ा दिया जाएगा
- lahā
- لَهَا
- उसके लिए
- l-ʿadhābu
- ٱلْعَذَابُ
- अज़ाब
- ḍiʿ'fayni
- ضِعْفَيْنِۚ
- दोगुना
- wakāna
- وَكَانَ
- और है
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- yasīran
- يَسِيرًا
- बहुत आसान
ऐ नबी की स्त्रियों! तुममें से जो कोई प्रत्यक्ष अनुचित कर्म करे तो उसके लिए दोहरी यातना होगी। और यह अल्लाह के लिए बहुत सरल है ([३३] अल-अह्जाब: 30)Tafseer (तफ़सीर )