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सूरा अस-सजदा - Page: 2

As-Sajdah

(The Prostration, Worship, Adoration)

११

۞ قُلْ يَتَوَفّٰىكُمْ مَّلَكُ الْمَوْتِ الَّذِيْ وُكِّلَ بِكُمْ ثُمَّ اِلٰى رَبِّكُمْ تُرْجَعُوْنَ ࣖ ١١

qul
قُلْ
कह दीजिए
yatawaffākum
يَتَوَفَّىٰكُم
फ़ौत करेगा तुम्हें
malaku
مَّلَكُ
फ़रिश्ता
l-mawti
ٱلْمَوْتِ
मौत का
alladhī
ٱلَّذِى
वो जो
wukkila
وُكِّلَ
मुक़र्रर किया गया
bikum
بِكُمْ
तुम पर
thumma
ثُمَّ
फिर
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ अपने रब के
rabbikum
رَبِّكُمْ
तरफ़ अपने रब के
tur'jaʿūna
تُرْجَعُونَ
तुम लौटाए जाओगे
कहो, 'मृत्यु का फ़रिश्ता जो तुमपर नियुक्त है, वह तुम्हें पूर्ण रूप से अपने क़ब्जे में ले लेता है। फिर तुम अपने रब की ओर वापस होंगे।' ([३२] अस-सजदा: 11)
Tafseer (तफ़सीर )
१२

وَلَوْ تَرٰىٓ اِذِ الْمُجْرِمُوْنَ نَاكِسُوْا رُءُوْسِهِمْ عِنْدَ رَبِّهِمْۗ رَبَّنَآ اَبْصَرْنَا وَسَمِعْنَا فَارْجِعْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا اِنَّا مُوْقِنُوْنَ ١٢

walaw
وَلَوْ
और काश
tarā
تَرَىٰٓ
आप देखें
idhi
إِذِ
जब
l-muj'rimūna
ٱلْمُجْرِمُونَ
मुजरिम
nākisū
نَاكِسُوا۟
झुकाए हुए होंगे
ruūsihim
رُءُوسِهِمْ
अपने सरों को
ʿinda
عِندَ
अपने रब के पास (कहेंगे)
rabbihim
رَبِّهِمْ
अपने रब के पास (कहेंगे)
rabbanā
رَبَّنَآ
ऐ हमारे रब
abṣarnā
أَبْصَرْنَا
देख लिया हमनें
wasamiʿ'nā
وَسَمِعْنَا
और सुन लिया हमनें
fa-ir'jiʿ'nā
فَٱرْجِعْنَا
पस लौटा दे हमें
naʿmal
نَعْمَلْ
हम अमल करेंगे
ṣāliḥan
صَٰلِحًا
नेक
innā
إِنَّا
बेशक हम
mūqinūna
مُوقِنُونَ
यक़ीन करने वाले हैं
और यदि कहीं तुम देखते जब वे अपराधी अपने रब के सामने अपने सिर झुकाए होंगे कि 'हमारे रब! हमने देख लिया और सुन लिया। अब हमें वापस भेज दे, ताकि हम अच्छे कर्म करें। निस्संदेह अब हमें विश्वास हो गया।' ([३२] अस-सजदा: 12)
Tafseer (तफ़सीर )
१३

وَلَوْ شِئْنَا لَاٰتَيْنَا كُلَّ نَفْسٍ هُدٰىهَا وَلٰكِنْ حَقَّ الْقَوْلُ مِنِّيْ لَاَمْلَـَٔنَّ جَهَنَّمَ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ اَجْمَعِيْنَ ١٣

walaw
وَلَوْ
और अगर
shi'nā
شِئْنَا
चाहते हम
laātaynā
لَءَاتَيْنَا
अलबत्ता दे देते हम
kulla
كُلَّ
हर
nafsin
نَفْسٍ
नफ़्स को
hudāhā
هُدَىٰهَا
हिदायत उसकी
walākin
وَلَٰكِنْ
और लेकिन
ḥaqqa
حَقَّ
सच होगई
l-qawlu
ٱلْقَوْلُ
बात
minnī
مِنِّى
मेरी तरफ़ से
la-amla-anna
لَأَمْلَأَنَّ
अलबत्ता मैं ज़रूर भर दूँगा
jahannama
جَهَنَّمَ
जहन्नम को
mina
مِنَ
जिन्नों से
l-jinati
ٱلْجِنَّةِ
जिन्नों से
wal-nāsi
وَٱلنَّاسِ
और इन्सानों से
ajmaʿīna
أَجْمَعِينَ
सब के सब से
यदि हम चाहते तो प्रत्येक व्यक्ति को उसका अपना संमार्ग दिखा देते, तिन्तु मेरी ओर से बात सत्यापित हो चुकी है कि 'मैं जहन्नम को जिन्नों और मनुष्यों, सबसे भरकर रहूँगा।' ([३२] अस-सजदा: 13)
Tafseer (तफ़सीर )
१४

فَذُوْقُوْا بِمَا نَسِيْتُمْ لِقَاۤءَ يَوْمِكُمْ هٰذَاۚ اِنَّا نَسِيْنٰكُمْ وَذُوْقُوْا عَذَابَ الْخُلْدِ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ ١٤

fadhūqū
فَذُوقُوا۟
तो चखो
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
nasītum
نَسِيتُمْ
भूल गए तुम
liqāa
لِقَآءَ
मुलाक़ात को
yawmikum
يَوْمِكُمْ
अपने इस दिन की
hādhā
هَٰذَآ
अपने इस दिन की
innā
إِنَّا
बेशक हमने
nasīnākum
نَسِينَٰكُمْۖ
भुला दिया हमने तुम्हें
wadhūqū
وَذُوقُوا۟
और चखो
ʿadhāba
عَذَابَ
अज़ाब
l-khul'di
ٱلْخُلْدِ
हमेशगी का
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kuntum
كُنتُمْ
थे तुम
taʿmalūna
تَعْمَلُونَ
तुम अमल करते
अतः अब चखो मज़ा, इसका कि तुमने अपने इस दिन के मिलन को भुलाए रखा। तो हमने भी तुम्हें भुला दिया। शाश्वत यातना का रसास्वादन करो, उसके बदले में जो तुम करते रहे हो ([३२] अस-सजदा: 14)
Tafseer (तफ़सीर )
१५

اِنَّمَا يُؤْمِنُ بِاٰيٰتِنَا الَّذِيْنَ اِذَا ذُكِّرُوْا بِهَا خَرُّوْا سُجَّدًا وَّسَبَّحُوْا بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَهُمْ لَا يَسْتَكْبِرُوْنَ ۩ ١٥

innamā
إِنَّمَا
बेशक
yu'minu
يُؤْمِنُ
ईमान लाते हैं
biāyātinā
بِـَٔايَٰتِنَا
हमारी आयात पर
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग
idhā
إِذَا
जब
dhukkirū
ذُكِّرُوا۟
वो नसीहत किए जाते हैं
bihā
بِهَا
साथ उनके
kharrū
خَرُّوا۟
वो गिर पड़ते हैं
sujjadan
سُجَّدًا
सजदा करते हुए
wasabbaḥū
وَسَبَّحُوا۟
और वो तस्बीह करते हैं
biḥamdi
بِحَمْدِ
साथ हम्द के
rabbihim
رَبِّهِمْ
अपने रब की
wahum
وَهُمْ
और वो
لَا
नहीं वो तकब्बुर करते
yastakbirūna
يَسْتَكْبِرُونَ۩
नहीं वो तकब्बुर करते
हमारी आयतों पर जो बस वही लोग ईमान लाते है, जिन्हें उनके द्वारा जब याद दिलाया जाता है तो सजदे में गिर पड़ते है और अपने रब का गुणगान करते है और घमंड नहीं करते ([३२] अस-सजदा: 15)
Tafseer (तफ़सीर )
१६

تَتَجَافٰى جُنُوْبُهُمْ عَنِ الْمَضَاجِعِ يَدْعُوْنَ رَبَّهُمْ خَوْفًا وَّطَمَعًاۖ وَّمِمَّا رَزَقْنٰهُمْ يُنْفِقُوْنَ ١٦

tatajāfā
تَتَجَافَىٰ
अलग रहते हैं
junūbuhum
جُنُوبُهُمْ
पहलू उनके
ʿani
عَنِ
बिस्तरों से
l-maḍājiʿi
ٱلْمَضَاجِعِ
बिस्तरों से
yadʿūna
يَدْعُونَ
वो पुकारते हैं
rabbahum
رَبَّهُمْ
अपने रब को
khawfan
خَوْفًا
ख़ौफ़
waṭamaʿan
وَطَمَعًا
और उम्मीद से
wamimmā
وَمِمَّا
और उसमें से जो
razaqnāhum
رَزَقْنَٰهُمْ
रिज़्क़ दिया हमने उन्हें
yunfiqūna
يُنفِقُونَ
वो ख़र्च करते हैं
उनके पहलू बिस्तरों से अलग रहते है कि वे अपने रब को भय और लालसा के साथ पुकारते है, और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते है ([३२] अस-सजदा: 16)
Tafseer (तफ़सीर )
१७

فَلَا تَعْلَمُ نَفْسٌ مَّآ اُخْفِيَ لَهُمْ مِّنْ قُرَّةِ اَعْيُنٍۚ جَزَاۤءًۢ بِمَا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ ١٧

falā
فَلَا
पस नहीं
taʿlamu
تَعْلَمُ
जानता
nafsun
نَفْسٌ
कोई नफ़्स
مَّآ
जो कुछ
ukh'fiya
أُخْفِىَ
छुपाया गया है
lahum
لَهُم
उनके लिए
min
مِّن
ठंडक से
qurrati
قُرَّةِ
ठंडक से
aʿyunin
أَعْيُنٍ
आँखों की
jazāan
جَزَآءًۢ
बदला है
bimā
بِمَا
उसका जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yaʿmalūna
يَعْمَلُونَ
वो अमल करते
फिर कोई प्राणी नहीं जानता आँखों की जो ठंडक उसके लिए छिपा रखी गई है उसके बदले में देने के ध्येय से जो वे करते रहे होंगे ([३२] अस-सजदा: 17)
Tafseer (तफ़सीर )
१८

اَفَمَنْ كَانَ مُؤْمِنًا كَمَنْ كَانَ فَاسِقًاۗ لَا يَسْتَوٗنَ ١٨

afaman
أَفَمَن
क्या भला वो जो
kāna
كَانَ
है
mu'minan
مُؤْمِنًا
मोमिन
kaman
كَمَن
मानिन्द उसके
kāna
كَانَ
हो सकता है
fāsiqan
فَاسِقًاۚ
जो फ़ासिक़ है
لَّا
नहीं वो बराबर हो सकते
yastawūna
يَسْتَوُۥنَ
नहीं वो बराबर हो सकते
भला जो व्यक्ति ईमानवाला हो वह उस व्यक्ति जैसा हो सकता है जो अवज्ञाकारी हो? वे बराबर नहीं हो सकते ([३२] अस-सजदा: 18)
Tafseer (तफ़सीर )
१९

اَمَّا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ فَلَهُمْ جَنّٰتُ الْمَأْوٰىۖ نُزُلًا ۢبِمَا كَانُوْا يَعْمَلُوْنَ ١٩

ammā
أَمَّا
रहे
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
waʿamilū
وَعَمِلُوا۟
और उन्होंने अमल किए
l-ṣāliḥāti
ٱلصَّٰلِحَٰتِ
नेक
falahum
فَلَهُمْ
तो उनके लिए
jannātu
جَنَّٰتُ
बाग़ात हैं
l-mawā
ٱلْمَأْوَىٰ
रहने के
nuzulan
نُزُلًۢا
महमानी होगी
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yaʿmalūna
يَعْمَلُونَ
वो अमल करते
रहे वे लोग जा ईमान लाए और उन्हें अच्छे कर्म किए, उनके लिए जो कर्म वे करते रहे उसके बदले में आतिथ्य स्वरूप रहने के बाग़ है ([३२] अस-सजदा: 19)
Tafseer (तफ़सीर )
२०

وَاَمَّا الَّذِيْنَ فَسَقُوْا فَمَأْوٰىهُمُ النَّارُ كُلَّمَآ اَرَادُوْٓا اَنْ يَّخْرُجُوْا مِنْهَآ اُعِيْدُوْا فِيْهَا وَقِيْلَ لَهُمْ ذُوْقُوْا عَذَابَ النَّارِ الَّذِيْ كُنْتُمْ بِهٖ تُكَذِّبُوْنَ ٢٠

wa-ammā
وَأَمَّا
और रहे वो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
जिन्होंने
fasaqū
فَسَقُوا۟
नाफ़रमानी की
famawāhumu
فَمَأْوَىٰهُمُ
पस ठिकाना उनका
l-nāru
ٱلنَّارُۖ
आग है
kullamā
كُلَّمَآ
जब कभी
arādū
أَرَادُوٓا۟
वो इरादा करेंगे
an
أَن
कि
yakhrujū
يَخْرُجُوا۟
वो निकल आऐं
min'hā
مِنْهَآ
उससे
uʿīdū
أُعِيدُوا۟
वो लौटा दिए जाऐंगे
fīhā
فِيهَا
उसी में
waqīla
وَقِيلَ
और कह दिया जाएगा
lahum
لَهُمْ
उन्हें
dhūqū
ذُوقُوا۟
चखो
ʿadhāba
عَذَابَ
अज़ाब
l-nāri
ٱلنَّارِ
आग का
alladhī
ٱلَّذِى
वो जो
kuntum
كُنتُم
थे तुम
bihi
بِهِۦ
जिसे
tukadhibūna
تُكَذِّبُونَ
तुम झुटलाते
रहे वे लोग जिन्होंने सीमा का उल्लंघन किया, उनका ठिकाना आग है। जब कभी भी वे चाहेंगे कि उससे निकल जाएँ तो उसी में लौटा दिए जाएँगे और उनसे कहा जाएगा, 'चखो उस आग की यातना का मज़ा, जिसे तुम झूठ समझते थे।' ([३२] अस-सजदा: 20)
Tafseer (तफ़सीर )