۞ مُنِيْبِيْنَ اِلَيْهِ وَاتَّقُوْهُ وَاَقِيْمُوا الصَّلٰوةَ وَلَا تَكُوْنُوْا مِنَ الْمُشْرِكِيْنَۙ ٣١
- munībīna
- مُنِيبِينَ
- रुजूअ करने वाले (बनो)
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ उसके
- wa-ittaqūhu
- وَٱتَّقُوهُ
- और डरो उससे
- wa-aqīmū
- وَأَقِيمُوا۟
- और क़ायम करो
- l-ṣalata
- ٱلصَّلَوٰةَ
- नमाज़
- walā
- وَلَا
- और ना
- takūnū
- تَكُونُوا۟
- तुम हो जाओ
- mina
- مِنَ
- मुशरिकों में से
- l-mush'rikīna
- ٱلْمُشْرِكِينَ
- मुशरिकों में से
उसकी ओर रुजू करनेवाले (प्रवृत्त होनेवाले) रहो। और उसका डर रखो और नमाज़ का आयोजन करो और (अल्लाह का) साझी ठहरानेवालों में से न होना, ([३०] अर-रूम: 31)Tafseer (तफ़सीर )
مِنَ الَّذِيْنَ فَرَّقُوْا دِيْنَهُمْ وَكَانُوْا شِيَعًا ۗ كُلُّ حِزْبٍۢ بِمَا لَدَيْهِمْ فَرِحُوْنَ ٣٢
- mina
- مِنَ
- उन लोगों में से जिन्होंने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों में से जिन्होंने
- farraqū
- فَرَّقُوا۟
- फ़िरक़ा-फ़िरक़ा कर दिया
- dīnahum
- دِينَهُمْ
- अपने दीन को
- wakānū
- وَكَانُوا۟
- और हो गए वो
- shiyaʿan
- شِيَعًاۖ
- गिरोह-गिरोह
- kullu
- كُلُّ
- हर
- ḥiz'bin
- حِزْبٍۭ
- गिरोह (के लोग)
- bimā
- بِمَا
- उस पर जो
- ladayhim
- لَدَيْهِمْ
- उनके पास है
- fariḥūna
- فَرِحُونَ
- ख़ुश हैं
उन लोगों में से जिन्होंने अपनी दीन (धर्म) को टुकड़े-टुकड़े कर डाला और गिरोहों में बँट गए। हर गिरोह के पास जो कुछ है, उसी में मग्न है ([३०] अर-रूम: 32)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا مَسَّ النَّاسَ ضُرٌّ دَعَوْا رَبَّهُمْ مُّنِيْبِيْنَ اِلَيْهِ ثُمَّ اِذَآ اَذَاقَهُمْ مِّنْهُ رَحْمَةً اِذَا فَرِيْقٌ مِّنْهُمْ بِرَبِّهِمْ يُشْرِكُوْنَۙ ٣٣
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- massa
- مَسَّ
- पहुँचती है
- l-nāsa
- ٱلنَّاسَ
- लोगों को
- ḍurrun
- ضُرٌّ
- कोई तक्लीफ़
- daʿaw
- دَعَوْا۟
- वो पुकारते हैं
- rabbahum
- رَبَّهُم
- अपने रब को
- munībīna
- مُّنِيبِينَ
- रुजूअ करने वाले बन कर
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ उसके
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- idhā
- إِذَآ
- जब
- adhāqahum
- أَذَاقَهُم
- वो चखाता है उन्हें
- min'hu
- مِّنْهُ
- अपनी तरफ़ से
- raḥmatan
- رَحْمَةً
- रहमत
- idhā
- إِذَا
- यकायक
- farīqun
- فَرِيقٌ
- एक गिरोह (के लोग)
- min'hum
- مِّنْهُم
- उनमें से
- birabbihim
- بِرَبِّهِمْ
- अपने रब के साथ
- yush'rikūna
- يُشْرِكُونَ
- वो शरीक ठहराते हैं
और जब लोगों को कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो वे अपने रब को, उसकी ओर रुजू (प्रवृत) होकर पुकारते है। फिर जब वह उन्हें अपनी दयालुता का रसास्वादन करा देता है, तो क्या देखते है कि उनमें से कुछ लोग अपने रब का साझी ठहराने लगे; ([३०] अर-रूम: 33)Tafseer (तफ़सीर )
لِيَكْفُرُوْا بِمَآ اٰتَيْنٰهُمْۗ فَتَمَتَّعُوْاۗ فَسَوْفَ تَعْلَمُوْنَ ٣٤
- liyakfurū
- لِيَكْفُرُوا۟
- ताकि वो नाशुक्री करें
- bimā
- بِمَآ
- उसकी जो
- ātaynāhum
- ءَاتَيْنَٰهُمْۚ
- अता किया हमने उन्हें
- fatamattaʿū
- فَتَمَتَّعُوا۟
- तो फ़ायदा उठा लो
- fasawfa
- فَسَوْفَ
- पस अनक़रीब
- taʿlamūna
- تَعْلَمُونَ
- तुम जान लोगे
ताकि इस प्रकार वे उसके प्रति अकृतज्ञता दिखलाएँ जो कुछ हमने उन्हें दिया है। 'अच्छा तो मज़े उड़ा लो, शीघ्र ही तुम जान लोगे।' ([३०] अर-रूम: 34)Tafseer (तफ़सीर )
اَمْ اَنْزَلْنَا عَلَيْهِمْ سُلْطٰنًا فَهُوَ يَتَكَلَّمُ بِمَا كَانُوْا بِهٖ يُشْرِكُوْنَ ٣٥
- am
- أَمْ
- या
- anzalnā
- أَنزَلْنَا
- उतारी हमने
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- sul'ṭānan
- سُلْطَٰنًا
- कोई दलील
- fahuwa
- فَهُوَ
- तो वो
- yatakallamu
- يَتَكَلَّمُ
- वो बताती है
- bimā
- بِمَا
- उनको वो जो
- kānū
- كَانُوا۟
- हैं वो
- bihi
- بِهِۦ
- साथ जिसके
- yush'rikūna
- يُشْرِكُونَ
- वो शरीक ठहराते
(क्या उनके देवताओं ने उनकी सहायता की थी) या हमने उनपर ऐसा कोई प्रमाण उतारा है कि वह उसके हक़ में बोलता हो, जो वे उसके साथ साझी ठहराते है ([३०] अर-रूम: 35)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَآ اَذَقْنَا النَّاسَ رَحْمَةً فَرِحُوْا بِهَاۗ وَاِنْ تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ ۢبِمَا قَدَّمَتْ اَيْدِيْهِمْ اِذَا هُمْ يَقْنَطُوْنَ ٣٦
- wa-idhā
- وَإِذَآ
- और जब
- adhaqnā
- أَذَقْنَا
- चखाते हैं हम
- l-nāsa
- ٱلنَّاسَ
- लोगों को
- raḥmatan
- رَحْمَةً
- कोई रहमत
- fariḥū
- فَرِحُوا۟
- वो ख़ुश होते हैं
- bihā
- بِهَاۖ
- उस पर
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- tuṣib'hum
- تُصِبْهُمْ
- पहुँचती है उन्हें
- sayyi-atun
- سَيِّئَةٌۢ
- कोई बुराई
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- qaddamat
- قَدَّمَتْ
- आगे भेजा
- aydīhim
- أَيْدِيهِمْ
- उनके हाथों ने
- idhā
- إِذَا
- यकायक
- hum
- هُمْ
- वो
- yaqnaṭūna
- يَقْنَطُونَ
- वो मायूस हो जाते हैं
और जब हम लोगों को दयालुता का रसास्वादन कराते है तो वे उसपर इतराने लगते है; परन्तु जो कुछ उनके हाथों ने आगे भेजा है यदि उसके कारण उनपर कोई विपत्ति आ जाए, तो क्या देखते है कि वे निराश हो रहे है ([३०] अर-रूम: 36)Tafseer (तफ़सीर )
اَوَلَمْ يَرَوْا اَنَّ اللّٰهَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَّشَاۤءُ وَيَقْدِرُۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يُّؤْمِنُوْنَ ٣٧
- awalam
- أَوَلَمْ
- क्या भला नहीं
- yaraw
- يَرَوْا۟
- उन्होंने देखा
- anna
- أَنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yabsuṭu
- يَبْسُطُ
- वो फैलाता है
- l-riz'qa
- ٱلرِّزْقَ
- रिज़्क़
- liman
- لِمَن
- जिसके लिए
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- wayaqdiru
- وَيَقْدِرُۚ
- और वो तंग करता है
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- fī
- فِى
- इसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसमें
- laāyātin
- لَءَايَٰتٍ
- अलबत्ता निशानियाँ हैं
- liqawmin
- لِّقَوْمٍ
- उन लोगों के लिए
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- जो ईमान लाते हैं
क्या उन्होंने विचार नहीं किया कि अल्लाह जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है नपी-तुली कर देता है? निस्संदेह इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है, जो ईमान लाएँ ([३०] अर-रूम: 37)Tafseer (तफ़सीर )
فَاٰتِ ذَا الْقُرْبٰى حَقَّهٗ وَالْمِسْكِيْنَ وَابْنَ السَّبِيْلِۗ ذٰلِكَ خَيْرٌ لِّلَّذِيْنَ يُرِيْدُوْنَ وَجْهَ اللّٰهِ ۖوَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ ٣٨
- faāti
- فَـَٔاتِ
- पस आप दीजिए
- dhā
- ذَا
- क़राबतदार को
- l-qur'bā
- ٱلْقُرْبَىٰ
- क़राबतदार को
- ḥaqqahu
- حَقَّهُۥ
- हक़ उसका
- wal-mis'kīna
- وَٱلْمِسْكِينَ
- और मिसकीन
- wa-ib'na
- وَٱبْنَ
- और मुसाफ़िर को
- l-sabīli
- ٱلسَّبِيلِۚ
- और मुसाफ़िर को
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर है
- lilladhīna
- لِّلَّذِينَ
- उनके लिए जो
- yurīdūna
- يُرِيدُونَ
- चाहते हैं
- wajha
- وَجْهَ
- चेहरा
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- अल्लाह का
- wa-ulāika
- وَأُو۟لَٰٓئِكَ
- और यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-muf'liḥūna
- ٱلْمُفْلِحُونَ
- जो फ़लाह पाने वाले हैं
अतः नातेदार को उसका हक़ दो और मुहताज और मुसाफ़िर को भी। यह अच्छा है उनके लिए जो अल्लाह की प्रसन्नता के इच्छुक हों और वही सफल है ([३०] अर-रूम: 38)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَآ اٰتَيْتُمْ مِّنْ رِّبًا لِّيَرْبُوَا۠ فِيْٓ اَمْوَالِ النَّاسِ فَلَا يَرْبُوْا عِنْدَ اللّٰهِ ۚوَمَآ اٰتَيْتُمْ مِّنْ زَكٰوةٍ تُرِيْدُوْنَ وَجْهَ اللّٰهِ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُضْعِفُوْنَ ٣٩
- wamā
- وَمَآ
- और जो कुछ
- ātaytum
- ءَاتَيْتُم
- देते हो तुम
- min
- مِّن
- सूद में से
- riban
- رِّبًا
- सूद में से
- liyarbuwā
- لِّيَرْبُوَا۟
- ताकि वो बढ़ जाए
- fī
- فِىٓ
- मालों में
- amwāli
- أَمْوَٰلِ
- मालों में
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोगों के
- falā
- فَلَا
- पस नहीं
- yarbū
- يَرْبُوا۟
- वो बढ़ता
- ʿinda
- عِندَ
- अल्लाह के यहाँ
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- अल्लाह के यहाँ
- wamā
- وَمَآ
- और जो कुछ
- ātaytum
- ءَاتَيْتُم
- देते हो तुम
- min
- مِّن
- ज़कात में से
- zakatin
- زَكَوٰةٍ
- ज़कात में से
- turīdūna
- تُرِيدُونَ
- तुम चाहते हो
- wajha
- وَجْهَ
- चेहरा
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- fa-ulāika
- فَأُو۟لَٰٓئِكَ
- तो यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-muḍ'ʿifūna
- ٱلْمُضْعِفُونَ
- जो दो गुना करने वाले हैं
तुम जो कुछ ब्याज पर देते हो, ताकि वह लोगों के मालों में सम्मिलित होकर बढ़ जाए, तो वह अल्लाह के यहाँ नहीं बढ़ता। किन्तु जो ज़कात तुमने अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए दी, तो ऐसे ही लोग (अल्लाह के यहाँ) अपना माल बढ़ाते है ([३०] अर-रूम: 39)Tafseer (तफ़सीर )
اَللّٰهُ الَّذِيْ خَلَقَكُمْ ثُمَّ رَزَقَكُمْ ثُمَّ يُمِيْتُكُمْ ثُمَّ يُحْيِيْكُمْۗ هَلْ مِنْ شُرَكَاۤىِٕكُمْ مَّنْ يَّفْعَلُ مِنْ ذٰلِكُمْ مِّنْ شَيْءٍۗ سُبْحٰنَهٗ وَتَعٰلٰى عَمَّا يُشْرِكُوْنَ ࣖ ٤٠
- al-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो है जिसने
- khalaqakum
- خَلَقَكُمْ
- पैदा किया तुम्हें
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- razaqakum
- رَزَقَكُمْ
- उसने रिज़्क़ दिया तुम्हें
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- yumītukum
- يُمِيتُكُمْ
- वो मौत देगा तुम्हें
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- yuḥ'yīkum
- يُحْيِيكُمْۖ
- वो ज़िन्दा करेगा तुम्हें
- hal
- هَلْ
- क्या है
- min
- مِن
- तुम्हारे शरीकों में से कोई
- shurakāikum
- شُرَكَآئِكُم
- तुम्हारे शरीकों में से कोई
- man
- مَّن
- जो
- yafʿalu
- يَفْعَلُ
- करे
- min
- مِن
- इसमें से
- dhālikum
- ذَٰلِكُم
- इसमें से
- min
- مِّن
- कोई चीज़
- shayin
- شَىْءٍۚ
- कोई चीज़
- sub'ḥānahu
- سُبْحَٰنَهُۥ
- पाक है वो
- wataʿālā
- وَتَعَٰلَىٰ
- और वो बुलन्दतर है
- ʿammā
- عَمَّا
- उससे जो
- yush'rikūna
- يُشْرِكُونَ
- वो शरीक ठहराते हैं
अल्लाह ही है जिसने तुम्हें पैदा किया, फिर तुम्हें रोज़ी दी; फिर वह तुम्हें मृत्यु देता है; फिर तुम्हें जीवित करेगा। क्या तुम्हारे ठहराए हुए साझीदारों में भी कोई है, जो इन कामों में से कुछ कर सके? महान और उच्च है वह उसमें जो साझी वे ठहराते है ([३०] अर-रूम: 40)Tafseer (तफ़सीर )