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पवित्र कुरान सूरा आले इमरान आयत १५९

Qur'an Surah Ali 'Imran Verse 159

आले इमरान [३]: १५९ ~ कुरान अनुवाद शब्द द्वारा शब्द - तफ़सीर

فَبِمَا رَحْمَةٍ مِّنَ اللّٰهِ لِنْتَ لَهُمْ ۚ وَلَوْ كُنْتَ فَظًّا غَلِيْظَ الْقَلْبِ لَانْفَضُّوْا مِنْ حَوْلِكَ ۖ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمْ وَشَاوِرْهُمْ فِى الْاَمْرِۚ فَاِذَا عَزَمْتَ فَتَوَكَّلْ عَلَى اللّٰهِ ۗ اِنَّ اللّٰهَ يُحِبُّ الْمُتَوَكِّلِيْنَ (آل عمران : ٣)

fabimā
فَبِمَا
So because
फिर बवजह
raḥmatin
رَحْمَةٍ
(of) Mercy
रहमत के
mina
مِّنَ
from
अल्लाह की तरफ़ से
l-lahi
ٱللَّهِ
Allah
अल्लाह की तरफ़ से
linta
لِنتَ
you dealt gently
नर्म हो गए आप
lahum
لَهُمْۖ
with them
उनके लिए
walaw
وَلَوْ
And if
और अगर
kunta
كُنتَ
you had been
होते आप
faẓẓan
فَظًّا
rude
तुन्दख़ू
ghalīẓa
غَلِيظَ
(and) harsh
सख़्त
l-qalbi
ٱلْقَلْبِ
(at) [the] heart
दिल
la-infaḍḍū
لَٱنفَضُّوا۟
surely they (would have) dispersed
अलबत्ता वो मुन्तशिर हो जाते
min
مِنْ
from
आपके आस पास से
ḥawlika
حَوْلِكَۖ
around you
आपके आस पास से
fa-uʿ'fu
فَٱعْفُ
Then pardon
पस दरगुज़र कीजिए
ʿanhum
عَنْهُمْ
[from] them
उनसे
wa-is'taghfir
وَٱسْتَغْفِرْ
and ask forgiveness
और बख़्शिश माँगिए
lahum
لَهُمْ
for them
उनके लिए
washāwir'hum
وَشَاوِرْهُمْ
and consult them
और मशवरा कीजिए उनसे
فِى
in
मामले में
l-amri
ٱلْأَمْرِۖ
the matter
मामले में
fa-idhā
فَإِذَا
Then when
फिर जब
ʿazamta
عَزَمْتَ
you have decided
पुख़्ता इरादा करें आप
fatawakkal
فَتَوَكَّلْ
then put trust
तो तवक्कल कीजिए
ʿalā
عَلَى
on
अल्लाह पर
l-lahi
ٱللَّهِۚ
Allah
अल्लाह पर
inna
إِنَّ
Indeed
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
Allah
अल्लाह
yuḥibbu
يُحِبُّ
loves
मोहब्बत रखता है
l-mutawakilīna
ٱلْمُتَوَكِّلِينَ
the ones who put trust (in Him)
तवक्कल करने वालों से

Transliteration:

Fabimaa rahmatim minal laahi linta lahum wa law kunta fazzan ghaleezal qalbi lanfaddoo min hawlika fafu 'anhum wastaghfir lahum wa shaawirhum fil amri fa izaa 'azamta fatawakkal 'alal laah; innallaaha yuhibbul mutawak kileen (QS. ʾĀl ʿImrān:159)

English Sahih International:

So by mercy from Allah, [O Muhammad], you were lenient with them. And if you had been rude [in speech] and harsh in heart, they would have disbanded from about you. So pardon them and ask forgiveness for them and consult them in the matter. And when you have decided, then rely upon Allah. Indeed, Allah loves those who rely [upon Him]. (QS. Ali 'Imran, Ayah १५९)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

(तुमने तो अपनी दयालुता से उन्हें क्षमा कर दिया) तो अल्लाह की ओर से ही बड़ी दयालुता है जिसके कारण तुम उनके लिए नर्म रहे हो, यदि कहीं तुम स्वभाव के क्रूर और कठोर हृदय होते तो ये सब तुम्हारे पास से छँट जाते। अतः उन्हें क्षमा कर दो और उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो। और मामलों में उनसे परामर्श कर लिया करो। फिर जब तुम्हारे संकल्प किसी सम्मति पर सुदृढ़ हो जाएँ तो अल्लाह पर भरोसा करो। निस्संदेह अल्लाह को वे लोग प्रिय है जो उसपर भरोसा करते है (आले इमरान, आयत १५९)

Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

(तो ऐ रसूल ये भी) ख़ुदा की एक मेहरबानी है कि तुम (सा) नरमदिल (सरदार) उनको मिला और तुम अगर बदमिज़ाज और सख्त दिल होते तब तो ये लोग (ख़ुदा जाने कब के) तुम्हारे गिर्द से तितर बितर हो गए होते पस (अब भी) तुम उनसे दरगुज़र करो और उनके लिए मग़फेरत की दुआ मॉगो और (साबिक़ दस्तूरे ज़ाहिरा) उनसे काम काज में मशवरा कर लिया करो (मगर) इस पर भी जब किसी काम को ठान लो तो ख़ुदा ही पर भरोसा रखो (क्योंकि जो लोग ख़ुदा पर भरोसा रखते हैं ख़ुदा उनको ज़रूर दोस्त रखता है

Azizul-Haqq Al-Umary

अल्लाह की दया के कारण ही आप उनके लिए[1] कोमल (सुशील) हो गये और यदि आप अक्खड़ तथा कड़े दिल के होते, तो वे आपके पास से बिखर जाते। अतः, उन्हें क्षमा कर दो और उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो तथा उनसे भी मामले में प्रामर्श करो, फिर जब कोई दृढ़ संकल्प ले लो, तो अल्लाह पर भरोसा करो। निःसंदेह, अल्लाह भरोसा रखने वालों से प्रेम करता है।