يٰٓاَهْلَ الْكِتٰبِ لِمَ تَلْبِسُوْنَ الْحَقَّ بِالْبَاطِلِ وَتَكْتُمُوْنَ الْحَقَّ وَاَنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ ࣖ ٧١
- yāahla
- يَٰٓأَهْلَ
- ऐ अहले किताब
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- ऐ अहले किताब
- lima
- لِمَ
- क्यों
- talbisūna
- تَلْبِسُونَ
- तुम गुड-मुड करते हो
- l-ḥaqa
- ٱلْحَقَّ
- हक़ को
- bil-bāṭili
- بِٱلْبَٰطِلِ
- बातिल से
- wataktumūna
- وَتَكْتُمُونَ
- और तुम छुपाते हो
- l-ḥaqa
- ٱلْحَقَّ
- हक़ को
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- हालाँकि तुम
- taʿlamūna
- تَعْلَمُونَ
- तुम जानते हो
ऐ किताबवालो! सत्य को असत्य के साथ क्यों गड्ड-मड्ड करते और जानते-बूझते हुए सत्य को छिपाते हो? ([३] आले इमरान: 71)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَالَتْ طَّاۤىِٕفَةٌ مِّنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ اٰمِنُوْا بِالَّذِيْٓ اُنْزِلَ عَلَى الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَجْهَ النَّهَارِ وَاكْفُرُوْٓا اٰخِرَهٗ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُوْنَۚ ٧٢
- waqālat
- وَقَالَت
- और कहा
- ṭāifatun
- طَّآئِفَةٌ
- एक गिरोह ने
- min
- مِّنْ
- अहले किताब में से
- ahli
- أَهْلِ
- अहले किताब में से
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- अहले किताब में से
- āminū
- ءَامِنُوا۟
- ईमान ले आओ
- bi-alladhī
- بِٱلَّذِىٓ
- उस चीज़ पर जो
- unzila
- أُنزِلَ
- नाज़िल की गई
- ʿalā
- عَلَى
- उन पर जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन पर जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- wajha
- وَجْهَ
- अव्वल (वक़्त)
- l-nahāri
- ٱلنَّهَارِ
- दिन के
- wa-uk'furū
- وَٱكْفُرُوٓا۟
- और इन्कार कर दो
- ākhirahu
- ءَاخِرَهُۥ
- उसके आख़िर में
- laʿallahum
- لَعَلَّهُمْ
- ताकि वो
- yarjiʿūna
- يَرْجِعُونَ
- वो लौट आऐं
किताबवालों में से एक गिरोह कहता है, 'ईमानवालो पर जो कुछ उतरा है, उस पर प्रातःकाल ईमान लाओ और संध्या समय उसका इनकार कर दो, ताकि वे फिर जाएँ ([३] आले इमरान: 72)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا تُؤْمِنُوْٓا اِلَّا لِمَنْ تَبِعَ دِيْنَكُمْ ۗ قُلْ اِنَّ الْهُدٰى هُدَى اللّٰهِ ۙ اَنْ يُّؤْتٰىٓ اَحَدٌ مِّثْلَ مَآ اُوْتِيْتُمْ اَوْ يُحَاۤجُّوْكُمْ عِنْدَ رَبِّكُمْ ۗ قُلْ اِنَّ الْفَضْلَ بِيَدِ اللّٰهِ ۚ يُؤْتِيْهِ مَنْ يَّشَاۤءُ ۗوَاللّٰهُ وَاسِعٌ عَلِيْمٌ ۚ ٧٣
- walā
- وَلَا
- और ना
- tu'minū
- تُؤْمِنُوٓا۟
- तुम मानो
- illā
- إِلَّا
- मगर
- liman
- لِمَن
- उसकी जो
- tabiʿa
- تَبِعَ
- पैरवी करे
- dīnakum
- دِينَكُمْ
- तुम्हारे दीन की
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-hudā
- ٱلْهُدَىٰ
- हिदायत
- hudā
- هُدَى
- हिदायत है
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- an
- أَن
- कि
- yu'tā
- يُؤْتَىٰٓ
- दिया जाए
- aḥadun
- أَحَدٌ
- कोई एक
- mith'la
- مِّثْلَ
- मानिन्द
- mā
- مَآ
- उसके जो
- ūtītum
- أُوتِيتُمْ
- दिए गए तुम
- aw
- أَوْ
- या (ये कि)
- yuḥājjūkum
- يُحَآجُّوكُمْ
- वो झगड़ा करेंगे तुमसे
- ʿinda
- عِندَ
- पास
- rabbikum
- رَبِّكُمْۗ
- तुम्हारे रब के
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-faḍla
- ٱلْفَضْلَ
- फ़ज़ल
- biyadi
- بِيَدِ
- हाथ में है
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- yu'tīhi
- يُؤْتِيهِ
- वो देता है उसे
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُۗ
- वो चाहता है
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- wāsiʿun
- وَٰسِعٌ
- वुसअत वाला है
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब इल्म वाला है
'और तुम अपने धर्म के अनुयायियों के अतिरिक्त किसी पर विश्वास न करो। कह दो, वास्तविक मार्गदर्शन तो अल्लाह का मार्गदर्शन है - कि कहीं जो चीज़ तुम्हें प्राप्त हो जाए, या वे तुम्हारे रब के सामने तुम्हारे ख़िलाफ़ हुज्जत कर सकें।' कह दो, 'बढ़-चढ़कर प्रदान करना तो अल्लाह के हाथ में है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। और अल्लाह बड़ी समाईवाला, सब कुछ जाननेवाला है ([३] आले इमरान: 73)Tafseer (तफ़सीर )
يَخْتَصُّ بِرَحْمَتِهٖ مَنْ يَّشَاۤءُ ۗوَاللّٰهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيْمِ ٧٤
- yakhtaṣṣu
- يَخْتَصُّ
- वो ख़ास कर लेता है
- biraḥmatihi
- بِرَحْمَتِهِۦ
- साथ अपनी रहमत के
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُۗ
- वो चाहता है
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- dhū
- ذُو
- फ़ज़ल वाला है
- l-faḍli
- ٱلْفَضْلِ
- फ़ज़ल वाला है
- l-ʿaẓīmi
- ٱلْعَظِيمِ
- बहुत बड़े
'वह जिसे चाहता है अपनी रहमत (दयालुता) के लिए ख़ास कर लेता है। और अल्लाह बड़ी उदारता दर्शानेवाला है।' ([३] आले इमरान: 74)Tafseer (तफ़सीर )
۞ وَمِنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ مَنْ اِنْ تَأْمَنْهُ بِقِنْطَارٍ يُّؤَدِّهٖٓ اِلَيْكَۚ وَمِنْهُمْ مَّنْ اِنْ تَأْمَنْهُ بِدِيْنَارٍ لَّا يُؤَدِّهٖٓ اِلَيْكَ اِلَّا مَا دُمْتَ عَلَيْهِ قَاۤىِٕمًا ۗ ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ قَالُوْا لَيْسَ عَلَيْنَا فِى الْاُمِّيّٖنَ سَبِيْلٌۚ وَيَقُوْلُوْنَ عَلَى اللّٰهِ الْكَذِبَ وَهُمْ يَعْلَمُوْنَ ٧٥
- wamin
- وَمِنْ
- और अहले किताब में से कोई है
- ahli
- أَهْلِ
- और अहले किताब में से कोई है
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- और अहले किताब में से कोई है
- man
- مَنْ
- जो
- in
- إِن
- अगर
- tamanhu
- تَأْمَنْهُ
- आप अमानत दें उसे
- biqinṭārin
- بِقِنطَارٍ
- एक ख़ज़ाना
- yu-addihi
- يُؤَدِّهِۦٓ
- वो अदा कर देगा उसे
- ilayka
- إِلَيْكَ
- तरफ़ आप के
- wamin'hum
- وَمِنْهُم
- और कोई वो है
- man
- مَّنْ
- जो
- in
- إِن
- अगर
- tamanhu
- تَأْمَنْهُ
- आप अमानत दें उसे
- bidīnārin
- بِدِينَارٍ
- एक दीनार
- lā
- لَّا
- नहीं वो अदा करेगा उसे
- yu-addihi
- يُؤَدِّهِۦٓ
- नहीं वो अदा करेगा उसे
- ilayka
- إِلَيْكَ
- तरफ़ आपके
- illā
- إِلَّا
- मगर
- mā
- مَا
- जब तक आप रहें
- dum'ta
- دُمْتَ
- जब तक आप रहें
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उस पर
- qāiman
- قَآئِمًاۗ
- क़ायम/खड़े
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- bi-annahum
- بِأَنَّهُمْ
- बवजह उसके कि वो
- qālū
- قَالُوا۟
- वो कहते हैं
- laysa
- لَيْسَ
- नहीं है
- ʿalaynā
- عَلَيْنَا
- हम पर
- fī
- فِى
- उम्मियों के बारे में
- l-umiyīna
- ٱلْأُمِّيِّۦنَ
- उम्मियों के बारे में
- sabīlun
- سَبِيلٌ
- कोई रास्ता (मुआख़ज़ा)
- wayaqūlūna
- وَيَقُولُونَ
- और वो कहते हैं
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- l-kadhiba
- ٱلْكَذِبَ
- झूठ
- wahum
- وَهُمْ
- हालाँकि वो
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- वो जानते हैं
और किताबवालों में कोई तो ऐसा है कि यदि तुम उसके पास धन-दौलच का एक ढेर भी अमानत रख दो तो वह उसे तुम्हें लौटा देगा। और उनमें कोई ऐसा है कि यदि तुम एक दीनार भी उसकी अमानत में रखों, तो जब तक कि तुम उसके सिर पर सवार न हो, वह उसे तुम्हें अदा नहीं करेगा। यह इसलिए कि वे कहते है, 'उन लोगों के विषय में जो किताबवाले नहीं हैं हमारी कोई पकड़ नहीं।' और वे जानते-बूझते अल्लाह पर झूठ मढ़ते है ([३] आले इमरान: 75)Tafseer (तफ़सीर )
بَلٰى مَنْ اَوْفٰى بِعَهْدِهٖ وَاتَّقٰى فَاِنَّ اللّٰهَ يُحِبُّ الْمُتَّقِيْنَ ٧٦
- balā
- بَلَىٰ
- क्यों नहीं
- man
- مَنْ
- जिसने
- awfā
- أَوْفَىٰ
- पूरा किया
- biʿahdihi
- بِعَهْدِهِۦ
- अपने अहद को
- wa-ittaqā
- وَٱتَّقَىٰ
- और तक़वा किया
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yuḥibbu
- يُحِبُّ
- मोहब्बत रखता है
- l-mutaqīna
- ٱلْمُتَّقِينَ
- मुत्तक़ी लोगों से
क्यों नहीं, जो कोई अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेगा और डर रखेगा, तो अल्लाह भी डर रखनेवालों से प्रेम करता है ([३] आले इमरान: 76)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ يَشْتَرُوْنَ بِعَهْدِ اللّٰهِ وَاَيْمَانِهِمْ ثَمَنًا قَلِيْلًا اُولٰۤىِٕكَ لَا خَلَاقَ لَهُمْ فِى الْاٰخِرَةِ وَلَا يُكَلِّمُهُمُ اللّٰهُ وَلَا يَنْظُرُ اِلَيْهِمْ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ وَلَا يُزَكِّيْهِمْ ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ ٧٧
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- yashtarūna
- يَشْتَرُونَ
- लेते हैं
- biʿahdi
- بِعَهْدِ
- बदले अल्लाह के अहद के
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- बदले अल्लाह के अहद के
- wa-aymānihim
- وَأَيْمَٰنِهِمْ
- और अपनी क़समों के
- thamanan
- ثَمَنًا
- क़ीमत
- qalīlan
- قَلِيلًا
- थोड़ी
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- lā
- لَا
- नहीं कोई हिस्सा
- khalāqa
- خَلَٰقَ
- नहीं कोई हिस्सा
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- fī
- فِى
- आख़िरत में
- l-ākhirati
- ٱلْءَاخِرَةِ
- आख़िरत में
- walā
- وَلَا
- और ना
- yukallimuhumu
- يُكَلِّمُهُمُ
- कलाम करेगा उनसे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- walā
- وَلَا
- और ना
- yanẓuru
- يَنظُرُ
- वो देखेगा
- ilayhim
- إِلَيْهِمْ
- तरफ़ उनके
- yawma
- يَوْمَ
- दिन
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِ
- क़यामत के
- walā
- وَلَا
- और ना
- yuzakkīhim
- يُزَكِّيهِمْ
- वो पाक करेगा उन्हें
- walahum
- وَلَهُمْ
- और उनके लिए
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब है
- alīmun
- أَلِيمٌ
- दर्दनाक
रहे वे लोग जो अल्लाह की प्रतिज्ञा और अपनी क़समों का थोड़े मूल्य पर सौदा करते हैं, उनका आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं। अल्लाह न तो उनसे बात करेगा और न क़ियामत के दिन उनकी ओर देखेगा, और न ही उन्हें निखारेगा। उनके लिए तो दुखद यातना है ([३] आले इमरान: 77)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِنَّ مِنْهُمْ لَفَرِيْقًا يَّلْوٗنَ اَلْسِنَتَهُمْ بِالْكِتٰبِ لِتَحْسَبُوْهُ مِنَ الْكِتٰبِ وَمَا هُوَ مِنَ الْكِتٰبِۚ وَيَقُوْلُوْنَ هُوَ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ وَمَا هُوَ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ ۚ وَيَقُوْلُوْنَ عَلَى اللّٰهِ الْكَذِبَ وَهُمْ يَعْلَمُوْنَ ٧٨
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- min'hum
- مِنْهُمْ
- उनमें से
- lafarīqan
- لَفَرِيقًا
- अलबत्ता एक गिरोह (के लोग) हैं
- yalwūna
- يَلْوُۥنَ
- जो मोड़ते हैं
- alsinatahum
- أَلْسِنَتَهُم
- अपनी ज़बानों को
- bil-kitābi
- بِٱلْكِتَٰبِ
- साथ किताब के
- litaḥsabūhu
- لِتَحْسَبُوهُ
- ताकि तुम समझो उसे
- mina
- مِنَ
- किताब में से
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- किताब में से
- wamā
- وَمَا
- हालाँकि नहीं
- huwa
- هُوَ
- वो
- mina
- مِنَ
- किताब में से
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- किताब में से
- wayaqūlūna
- وَيَقُولُونَ
- और वो कहते हैं
- huwa
- هُوَ
- वो
- min
- مِنْ
- अल्लाह के पास से है
- ʿindi
- عِندِ
- अल्लाह के पास से है
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के पास से है
- wamā
- وَمَا
- हालाँकि नहीं
- huwa
- هُوَ
- वो
- min
- مِنْ
- अल्लाह के पास से
- ʿindi
- عِندِ
- अल्लाह के पास से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के पास से
- wayaqūlūna
- وَيَقُولُونَ
- और वो कहते हैं
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- l-kadhiba
- ٱلْكَذِبَ
- झूठ
- wahum
- وَهُمْ
- हालाँकि वो
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- वो जानते हैं
उनमें कुछ लोग ऐसे है जो किताब पढ़ते हुए अपनी ज़बानों का इस प्रकार उलट-फेर करते है कि तुम समझों कि वह किताब ही में से है, जबकि वह किताब में से नहीं होता। और वे कहते है, 'यह अल्लाह की ओर से है।' जबकि वह अल्लाह की ओर से नहीं होता। और वे जानते-बूझते झूठ गढ़कर अल्लाह पर थोपते है ([३] आले इमरान: 78)Tafseer (तफ़सीर )
مَا كَانَ لِبَشَرٍ اَنْ يُّؤْتِيَهُ اللّٰهُ الْكِتٰبَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ ثُمَّ يَقُوْلَ لِلنَّاسِ كُوْنُوْا عِبَادًا لِّيْ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ وَلٰكِنْ كُوْنُوْا رَبَّانِيّٖنَ بِمَا كُنْتُمْ تُعَلِّمُوْنَ الْكِتٰبَ وَبِمَا كُنْتُمْ تَدْرُسُوْنَ ۙ ٧٩
- mā
- مَا
- नहीं
- kāna
- كَانَ
- है
- libasharin
- لِبَشَرٍ
- किसी बशर के लिए
- an
- أَن
- कि
- yu'tiyahu
- يُؤْتِيَهُ
- दे उसे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- wal-ḥuk'ma
- وَٱلْحُكْمَ
- और हिकमत
- wal-nubuwata
- وَٱلنُّبُوَّةَ
- और नबुव्वत
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- yaqūla
- يَقُولَ
- वो कहे
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- लोगों से
- kūnū
- كُونُوا۟
- हो जाओ
- ʿibādan
- عِبَادًا
- बन्दे
- lī
- لِّى
- मेरे
- min
- مِن
- सिवाय
- dūni
- دُونِ
- सिवाय
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- kūnū
- كُونُوا۟
- हो जाओ
- rabbāniyyīna
- رَبَّٰنِيِّۦنَ
- रब वाले
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- tuʿallimūna
- تُعَلِّمُونَ
- तुम तालीम देते
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब की
- wabimā
- وَبِمَا
- और बवजह उसके जो
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- tadrusūna
- تَدْرُسُونَ
- तुम पढ़ते
किसी मनुष्य के लिए यह सम्भव न था कि अल्लाह उसे किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) और पैग़म्बरी प्रदान करे और वह लोगों से कहने लगे, 'तुम अल्लाह को छोड़कर मेरे उपासक बनो।' बल्कि वह तो यही कहेगा कि, 'तुम रबवाले बनो, इसलिए कि तुम किताब की शिक्षा देते हो और इसलिए कि तुम स्वयं भी पढ़ते हो।' ([३] आले इमरान: 79)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا يَأْمُرَكُمْ اَنْ تَتَّخِذُوا الْمَلٰۤىِٕكَةَ وَالنَّبِيّٖنَ اَرْبَابًا ۗ اَيَأْمُرُكُمْ بِالْكُفْرِ بَعْدَ اِذْ اَنْتُمْ مُّسْلِمُوْنَ ࣖ ٨٠
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- yamurakum
- يَأْمُرَكُمْ
- वो हुक्म देता तुम्हें
- an
- أَن
- कि
- tattakhidhū
- تَتَّخِذُوا۟
- तुम बना लो
- l-malāikata
- ٱلْمَلَٰٓئِكَةَ
- फ़रिश्तों को
- wal-nabiyīna
- وَٱلنَّبِيِّۦنَ
- और नबियों को
- arbāban
- أَرْبَابًاۗ
- रब (मुख़्तलिफ़)
- ayamurukum
- أَيَأْمُرُكُم
- क्या वो हुक्म देगा तुम्हें
- bil-kuf'ri
- بِٱلْكُفْرِ
- कुफ़्र का
- baʿda
- بَعْدَ
- बाद उसके
- idh
- إِذْ
- जब
- antum
- أَنتُم
- तुम
- mus'limūna
- مُّسْلِمُونَ
- मुसलमान हो
और न वह तुम्हें इस बात का हुक्म देगा कि तुम फ़रिश्तों और नबियों को अपना रब बना लो। क्या वह तुम्हें अधर्म का हुक्म देगा, जबकि तुम (उसके) आज्ञाकारी हो? ([३] आले इमरान: 80)Tafseer (तफ़सीर )