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सूरा आले इमरान - Page: 8

Ali 'Imran

(इमरान का घराना)

७१

يٰٓاَهْلَ الْكِتٰبِ لِمَ تَلْبِسُوْنَ الْحَقَّ بِالْبَاطِلِ وَتَكْتُمُوْنَ الْحَقَّ وَاَنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ ࣖ ٧١

yāahla
يَٰٓأَهْلَ
ऐ अहले किताब
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِ
ऐ अहले किताब
lima
لِمَ
क्यों
talbisūna
تَلْبِسُونَ
तुम गुड-मुड करते हो
l-ḥaqa
ٱلْحَقَّ
हक़ को
bil-bāṭili
بِٱلْبَٰطِلِ
बातिल से
wataktumūna
وَتَكْتُمُونَ
और तुम छुपाते हो
l-ḥaqa
ٱلْحَقَّ
हक़ को
wa-antum
وَأَنتُمْ
हालाँकि तुम
taʿlamūna
تَعْلَمُونَ
तुम जानते हो
ऐ किताबवालो! सत्य को असत्य के साथ क्यों गड्ड-मड्ड करते और जानते-बूझते हुए सत्य को छिपाते हो? ([३] आले इमरान: 71)
Tafseer (तफ़सीर )
७२

وَقَالَتْ طَّاۤىِٕفَةٌ مِّنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ اٰمِنُوْا بِالَّذِيْٓ اُنْزِلَ عَلَى الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَجْهَ النَّهَارِ وَاكْفُرُوْٓا اٰخِرَهٗ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُوْنَۚ ٧٢

waqālat
وَقَالَت
और कहा
ṭāifatun
طَّآئِفَةٌ
एक गिरोह ने
min
مِّنْ
अहले किताब में से
ahli
أَهْلِ
अहले किताब में से
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِ
अहले किताब में से
āminū
ءَامِنُوا۟
ईमान ले आओ
bi-alladhī
بِٱلَّذِىٓ
उस चीज़ पर जो
unzila
أُنزِلَ
नाज़िल की गई
ʿalā
عَلَى
उन पर जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन पर जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
wajha
وَجْهَ
अव्वल (वक़्त)
l-nahāri
ٱلنَّهَارِ
दिन के
wa-uk'furū
وَٱكْفُرُوٓا۟
और इन्कार कर दो
ākhirahu
ءَاخِرَهُۥ
उसके आख़िर में
laʿallahum
لَعَلَّهُمْ
ताकि वो
yarjiʿūna
يَرْجِعُونَ
वो लौट आऐं
किताबवालों में से एक गिरोह कहता है, 'ईमानवालो पर जो कुछ उतरा है, उस पर प्रातःकाल ईमान लाओ और संध्या समय उसका इनकार कर दो, ताकि वे फिर जाएँ ([३] आले इमरान: 72)
Tafseer (तफ़सीर )
७३

وَلَا تُؤْمِنُوْٓا اِلَّا لِمَنْ تَبِعَ دِيْنَكُمْ ۗ قُلْ اِنَّ الْهُدٰى هُدَى اللّٰهِ ۙ اَنْ يُّؤْتٰىٓ اَحَدٌ مِّثْلَ مَآ اُوْتِيْتُمْ اَوْ يُحَاۤجُّوْكُمْ عِنْدَ رَبِّكُمْ ۗ قُلْ اِنَّ الْفَضْلَ بِيَدِ اللّٰهِ ۚ يُؤْتِيْهِ مَنْ يَّشَاۤءُ ۗوَاللّٰهُ وَاسِعٌ عَلِيْمٌ ۚ ٧٣

walā
وَلَا
और ना
tu'minū
تُؤْمِنُوٓا۟
तुम मानो
illā
إِلَّا
मगर
liman
لِمَن
उसकी जो
tabiʿa
تَبِعَ
पैरवी करे
dīnakum
دِينَكُمْ
तुम्हारे दीन की
qul
قُلْ
कह दीजिए
inna
إِنَّ
बेशक
l-hudā
ٱلْهُدَىٰ
हिदायत
hudā
هُدَى
हिदायत है
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की
an
أَن
कि
yu'tā
يُؤْتَىٰٓ
दिया जाए
aḥadun
أَحَدٌ
कोई एक
mith'la
مِّثْلَ
मानिन्द
مَآ
उसके जो
ūtītum
أُوتِيتُمْ
दिए गए तुम
aw
أَوْ
या (ये कि)
yuḥājjūkum
يُحَآجُّوكُمْ
वो झगड़ा करेंगे तुमसे
ʿinda
عِندَ
पास
rabbikum
رَبِّكُمْۗ
तुम्हारे रब के
qul
قُلْ
कह दीजिए
inna
إِنَّ
बेशक
l-faḍla
ٱلْفَضْلَ
फ़ज़ल
biyadi
بِيَدِ
हाथ में है
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
yu'tīhi
يُؤْتِيهِ
वो देता है उसे
man
مَن
जिसे
yashāu
يَشَآءُۗ
वो चाहता है
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
wāsiʿun
وَٰسِعٌ
वुसअत वाला है
ʿalīmun
عَلِيمٌ
ख़ूब इल्म वाला है
'और तुम अपने धर्म के अनुयायियों के अतिरिक्त किसी पर विश्वास न करो। कह दो, वास्तविक मार्गदर्शन तो अल्लाह का मार्गदर्शन है - कि कहीं जो चीज़ तुम्हें प्राप्त हो जाए, या वे तुम्हारे रब के सामने तुम्हारे ख़िलाफ़ हुज्जत कर सकें।' कह दो, 'बढ़-चढ़कर प्रदान करना तो अल्लाह के हाथ में है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। और अल्लाह बड़ी समाईवाला, सब कुछ जाननेवाला है ([३] आले इमरान: 73)
Tafseer (तफ़सीर )
७४

يَخْتَصُّ بِرَحْمَتِهٖ مَنْ يَّشَاۤءُ ۗوَاللّٰهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيْمِ ٧٤

yakhtaṣṣu
يَخْتَصُّ
वो ख़ास कर लेता है
biraḥmatihi
بِرَحْمَتِهِۦ
साथ अपनी रहमत के
man
مَن
जिसे
yashāu
يَشَآءُۗ
वो चाहता है
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
dhū
ذُو
फ़ज़ल वाला है
l-faḍli
ٱلْفَضْلِ
फ़ज़ल वाला है
l-ʿaẓīmi
ٱلْعَظِيمِ
बहुत बड़े
'वह जिसे चाहता है अपनी रहमत (दयालुता) के लिए ख़ास कर लेता है। और अल्लाह बड़ी उदारता दर्शानेवाला है।' ([३] आले इमरान: 74)
Tafseer (तफ़सीर )
७५

۞ وَمِنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ مَنْ اِنْ تَأْمَنْهُ بِقِنْطَارٍ يُّؤَدِّهٖٓ اِلَيْكَۚ وَمِنْهُمْ مَّنْ اِنْ تَأْمَنْهُ بِدِيْنَارٍ لَّا يُؤَدِّهٖٓ اِلَيْكَ اِلَّا مَا دُمْتَ عَلَيْهِ قَاۤىِٕمًا ۗ ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ قَالُوْا لَيْسَ عَلَيْنَا فِى الْاُمِّيّٖنَ سَبِيْلٌۚ وَيَقُوْلُوْنَ عَلَى اللّٰهِ الْكَذِبَ وَهُمْ يَعْلَمُوْنَ ٧٥

wamin
وَمِنْ
और अहले किताब में से कोई है
ahli
أَهْلِ
और अहले किताब में से कोई है
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِ
और अहले किताब में से कोई है
man
مَنْ
जो
in
إِن
अगर
tamanhu
تَأْمَنْهُ
आप अमानत दें उसे
biqinṭārin
بِقِنطَارٍ
एक ख़ज़ाना
yu-addihi
يُؤَدِّهِۦٓ
वो अदा कर देगा उसे
ilayka
إِلَيْكَ
तरफ़ आप के
wamin'hum
وَمِنْهُم
और कोई वो है
man
مَّنْ
जो
in
إِن
अगर
tamanhu
تَأْمَنْهُ
आप अमानत दें उसे
bidīnārin
بِدِينَارٍ
एक दीनार
لَّا
नहीं वो अदा करेगा उसे
yu-addihi
يُؤَدِّهِۦٓ
नहीं वो अदा करेगा उसे
ilayka
إِلَيْكَ
तरफ़ आपके
illā
إِلَّا
मगर
مَا
जब तक आप रहें
dum'ta
دُمْتَ
जब तक आप रहें
ʿalayhi
عَلَيْهِ
उस पर
qāiman
قَآئِمًاۗ
क़ायम/खड़े
dhālika
ذَٰلِكَ
ये
bi-annahum
بِأَنَّهُمْ
बवजह उसके कि वो
qālū
قَالُوا۟
वो कहते हैं
laysa
لَيْسَ
नहीं है
ʿalaynā
عَلَيْنَا
हम पर
فِى
उम्मियों के बारे में
l-umiyīna
ٱلْأُمِّيِّۦنَ
उम्मियों के बारे में
sabīlun
سَبِيلٌ
कोई रास्ता (मुआख़ज़ा)
wayaqūlūna
وَيَقُولُونَ
और वो कहते हैं
ʿalā
عَلَى
अल्लाह पर
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह पर
l-kadhiba
ٱلْكَذِبَ
झूठ
wahum
وَهُمْ
हालाँकि वो
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
वो जानते हैं
और किताबवालों में कोई तो ऐसा है कि यदि तुम उसके पास धन-दौलच का एक ढेर भी अमानत रख दो तो वह उसे तुम्हें लौटा देगा। और उनमें कोई ऐसा है कि यदि तुम एक दीनार भी उसकी अमानत में रखों, तो जब तक कि तुम उसके सिर पर सवार न हो, वह उसे तुम्हें अदा नहीं करेगा। यह इसलिए कि वे कहते है, 'उन लोगों के विषय में जो किताबवाले नहीं हैं हमारी कोई पकड़ नहीं।' और वे जानते-बूझते अल्लाह पर झूठ मढ़ते है ([३] आले इमरान: 75)
Tafseer (तफ़सीर )
७६

بَلٰى مَنْ اَوْفٰى بِعَهْدِهٖ وَاتَّقٰى فَاِنَّ اللّٰهَ يُحِبُّ الْمُتَّقِيْنَ ٧٦

balā
بَلَىٰ
क्यों नहीं
man
مَنْ
जिसने
awfā
أَوْفَىٰ
पूरा किया
biʿahdihi
بِعَهْدِهِۦ
अपने अहद को
wa-ittaqā
وَٱتَّقَىٰ
और तक़वा किया
fa-inna
فَإِنَّ
तो बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
yuḥibbu
يُحِبُّ
मोहब्बत रखता है
l-mutaqīna
ٱلْمُتَّقِينَ
मुत्तक़ी लोगों से
क्यों नहीं, जो कोई अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेगा और डर रखेगा, तो अल्लाह भी डर रखनेवालों से प्रेम करता है ([३] आले इमरान: 76)
Tafseer (तफ़सीर )
७७

اِنَّ الَّذِيْنَ يَشْتَرُوْنَ بِعَهْدِ اللّٰهِ وَاَيْمَانِهِمْ ثَمَنًا قَلِيْلًا اُولٰۤىِٕكَ لَا خَلَاقَ لَهُمْ فِى الْاٰخِرَةِ وَلَا يُكَلِّمُهُمُ اللّٰهُ وَلَا يَنْظُرُ اِلَيْهِمْ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ وَلَا يُزَكِّيْهِمْ ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ ٧٧

inna
إِنَّ
बेशक
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
yashtarūna
يَشْتَرُونَ
लेते हैं
biʿahdi
بِعَهْدِ
बदले अल्लाह के अहद के
l-lahi
ٱللَّهِ
बदले अल्लाह के अहद के
wa-aymānihim
وَأَيْمَٰنِهِمْ
और अपनी क़समों के
thamanan
ثَمَنًا
क़ीमत
qalīlan
قَلِيلًا
थोड़ी
ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
لَا
नहीं कोई हिस्सा
khalāqa
خَلَٰقَ
नहीं कोई हिस्सा
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
فِى
आख़िरत में
l-ākhirati
ٱلْءَاخِرَةِ
आख़िरत में
walā
وَلَا
और ना
yukallimuhumu
يُكَلِّمُهُمُ
कलाम करेगा उनसे
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
walā
وَلَا
और ना
yanẓuru
يَنظُرُ
वो देखेगा
ilayhim
إِلَيْهِمْ
तरफ़ उनके
yawma
يَوْمَ
दिन
l-qiyāmati
ٱلْقِيَٰمَةِ
क़यामत के
walā
وَلَا
और ना
yuzakkīhim
يُزَكِّيهِمْ
वो पाक करेगा उन्हें
walahum
وَلَهُمْ
और उनके लिए
ʿadhābun
عَذَابٌ
अज़ाब है
alīmun
أَلِيمٌ
दर्दनाक
रहे वे लोग जो अल्लाह की प्रतिज्ञा और अपनी क़समों का थोड़े मूल्य पर सौदा करते हैं, उनका आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं। अल्लाह न तो उनसे बात करेगा और न क़ियामत के दिन उनकी ओर देखेगा, और न ही उन्हें निखारेगा। उनके लिए तो दुखद यातना है ([३] आले इमरान: 77)
Tafseer (तफ़सीर )
७८

وَاِنَّ مِنْهُمْ لَفَرِيْقًا يَّلْوٗنَ اَلْسِنَتَهُمْ بِالْكِتٰبِ لِتَحْسَبُوْهُ مِنَ الْكِتٰبِ وَمَا هُوَ مِنَ الْكِتٰبِۚ وَيَقُوْلُوْنَ هُوَ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ وَمَا هُوَ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ ۚ وَيَقُوْلُوْنَ عَلَى اللّٰهِ الْكَذِبَ وَهُمْ يَعْلَمُوْنَ ٧٨

wa-inna
وَإِنَّ
और बेशक
min'hum
مِنْهُمْ
उनमें से
lafarīqan
لَفَرِيقًا
अलबत्ता एक गिरोह (के लोग) हैं
yalwūna
يَلْوُۥنَ
जो मोड़ते हैं
alsinatahum
أَلْسِنَتَهُم
अपनी ज़बानों को
bil-kitābi
بِٱلْكِتَٰبِ
साथ किताब के
litaḥsabūhu
لِتَحْسَبُوهُ
ताकि तुम समझो उसे
mina
مِنَ
किताब में से
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِ
किताब में से
wamā
وَمَا
हालाँकि नहीं
huwa
هُوَ
वो
mina
مِنَ
किताब में से
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِ
किताब में से
wayaqūlūna
وَيَقُولُونَ
और वो कहते हैं
huwa
هُوَ
वो
min
مِنْ
अल्लाह के पास से है
ʿindi
عِندِ
अल्लाह के पास से है
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के पास से है
wamā
وَمَا
हालाँकि नहीं
huwa
هُوَ
वो
min
مِنْ
अल्लाह के पास से
ʿindi
عِندِ
अल्लाह के पास से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के पास से
wayaqūlūna
وَيَقُولُونَ
और वो कहते हैं
ʿalā
عَلَى
अल्लाह पर
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह पर
l-kadhiba
ٱلْكَذِبَ
झूठ
wahum
وَهُمْ
हालाँकि वो
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
वो जानते हैं
उनमें कुछ लोग ऐसे है जो किताब पढ़ते हुए अपनी ज़बानों का इस प्रकार उलट-फेर करते है कि तुम समझों कि वह किताब ही में से है, जबकि वह किताब में से नहीं होता। और वे कहते है, 'यह अल्लाह की ओर से है।' जबकि वह अल्लाह की ओर से नहीं होता। और वे जानते-बूझते झूठ गढ़कर अल्लाह पर थोपते है ([३] आले इमरान: 78)
Tafseer (तफ़सीर )
७९

مَا كَانَ لِبَشَرٍ اَنْ يُّؤْتِيَهُ اللّٰهُ الْكِتٰبَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ ثُمَّ يَقُوْلَ لِلنَّاسِ كُوْنُوْا عِبَادًا لِّيْ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ وَلٰكِنْ كُوْنُوْا رَبَّانِيّٖنَ بِمَا كُنْتُمْ تُعَلِّمُوْنَ الْكِتٰبَ وَبِمَا كُنْتُمْ تَدْرُسُوْنَ ۙ ٧٩

مَا
नहीं
kāna
كَانَ
है
libasharin
لِبَشَرٍ
किसी बशर के लिए
an
أَن
कि
yu'tiyahu
يُؤْتِيَهُ
दे उसे
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
l-kitāba
ٱلْكِتَٰبَ
किताब
wal-ḥuk'ma
وَٱلْحُكْمَ
और हिकमत
wal-nubuwata
وَٱلنُّبُوَّةَ
और नबुव्वत
thumma
ثُمَّ
फिर
yaqūla
يَقُولَ
वो कहे
lilnnāsi
لِلنَّاسِ
लोगों से
kūnū
كُونُوا۟
हो जाओ
ʿibādan
عِبَادًا
बन्दे
لِّى
मेरे
min
مِن
सिवाय
dūni
دُونِ
सिवाय
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
walākin
وَلَٰكِن
और लेकिन
kūnū
كُونُوا۟
हो जाओ
rabbāniyyīna
رَبَّٰنِيِّۦنَ
रब वाले
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
tuʿallimūna
تُعَلِّمُونَ
तुम तालीम देते
l-kitāba
ٱلْكِتَٰبَ
किताब की
wabimā
وَبِمَا
और बवजह उसके जो
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
tadrusūna
تَدْرُسُونَ
तुम पढ़ते
किसी मनुष्य के लिए यह सम्भव न था कि अल्लाह उसे किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) और पैग़म्बरी प्रदान करे और वह लोगों से कहने लगे, 'तुम अल्लाह को छोड़कर मेरे उपासक बनो।' बल्कि वह तो यही कहेगा कि, 'तुम रबवाले बनो, इसलिए कि तुम किताब की शिक्षा देते हो और इसलिए कि तुम स्वयं भी पढ़ते हो।' ([३] आले इमरान: 79)
Tafseer (तफ़सीर )
८०

وَلَا يَأْمُرَكُمْ اَنْ تَتَّخِذُوا الْمَلٰۤىِٕكَةَ وَالنَّبِيّٖنَ اَرْبَابًا ۗ اَيَأْمُرُكُمْ بِالْكُفْرِ بَعْدَ اِذْ اَنْتُمْ مُّسْلِمُوْنَ ࣖ ٨٠

walā
وَلَا
और नहीं
yamurakum
يَأْمُرَكُمْ
वो हुक्म देता तुम्हें
an
أَن
कि
tattakhidhū
تَتَّخِذُوا۟
तुम बना लो
l-malāikata
ٱلْمَلَٰٓئِكَةَ
फ़रिश्तों को
wal-nabiyīna
وَٱلنَّبِيِّۦنَ
और नबियों को
arbāban
أَرْبَابًاۗ
रब (मुख़्तलिफ़)
ayamurukum
أَيَأْمُرُكُم
क्या वो हुक्म देगा तुम्हें
bil-kuf'ri
بِٱلْكُفْرِ
कुफ़्र का
baʿda
بَعْدَ
बाद उसके
idh
إِذْ
जब
antum
أَنتُم
तुम
mus'limūna
مُّسْلِمُونَ
मुसलमान हो
और न वह तुम्हें इस बात का हुक्म देगा कि तुम फ़रिश्तों और नबियों को अपना रब बना लो। क्या वह तुम्हें अधर्म का हुक्म देगा, जबकि तुम (उसके) आज्ञाकारी हो? ([३] आले इमरान: 80)
Tafseer (तफ़सीर )