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सूरा आले इमरान - Page: 7

Ali 'Imran

(इमरान का घराना)

६१

فَمَنْ حَاۤجَّكَ فِيْهِ مِنْۢ بَعْدِ مَا جَاۤءَكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْا نَدْعُ اَبْنَاۤءَنَا وَاَبْنَاۤءَكُمْ وَنِسَاۤءَنَا وَنِسَاۤءَكُمْ وَاَنْفُسَنَا وَاَنْفُسَكُمْۗ ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَلْ لَّعْنَتَ اللّٰهِ عَلَى الْكٰذِبِيْنَ ٦١

faman
فَمَنْ
तो जो कोई
ḥājjaka
حَآجَّكَ
झगड़ा करे आपसे
fīhi
فِيهِ
उसमें
min
مِنۢ
बाद उसके
baʿdi
بَعْدِ
बाद उसके
مَا
जो
jāaka
جَآءَكَ
आ गया आपके पास
mina
مِنَ
इल्म में से
l-ʿil'mi
ٱلْعِلْمِ
इल्म में से
faqul
فَقُلْ
तो कह दीजिए
taʿālaw
تَعَالَوْا۟
आओ
nadʿu
نَدْعُ
हम बुलाते हैं
abnāanā
أَبْنَآءَنَا
अपने बेटों को
wa-abnāakum
وَأَبْنَآءَكُمْ
और तुम्हारे बेटों को
wanisāanā
وَنِسَآءَنَا
और अपनी औरतों को
wanisāakum
وَنِسَآءَكُمْ
और तुम्हारी औरतों को
wa-anfusanā
وَأَنفُسَنَا
और हम ख़ुद
wa-anfusakum
وَأَنفُسَكُمْ
और तुम ख़ुद
thumma
ثُمَّ
फिर
nabtahil
نَبْتَهِلْ
हम गिड़-गिड़ा कर दुआ करें
fanajʿal
فَنَجْعَل
फिर हम करें
laʿnata
لَّعْنَتَ
लानत
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की
ʿalā
عَلَى
झूठों पर
l-kādhibīna
ٱلْكَٰذِبِينَ
झूठों पर
अब इसके पश्चात कि तुम्हारे पास ज्ञान आ चुका है, कोई तुमसे इस विषय में कुतर्क करे तो कह दो, 'आओ, हम अपने बेटों को बुला लें और तुम भी अपने बेटों को बुला लो, और हम अपनी स्त्रियों को बुला लें और तुम भी अपनी स्त्रियों को बुला लो, और हम अपने को और तुम अपने को ले आओ, फिर मिलकर प्रार्थना करें और झूठों पर अल्लाह की लानत भेजे।' ([३] आले इमरान: 61)
Tafseer (तफ़सीर )
६२

اِنَّ هٰذَا لَهُوَ الْقَصَصُ الْحَقُّ ۚ وَمَا مِنْ اِلٰهٍ اِلَّا اللّٰهُ ۗوَاِنَّ اللّٰهَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الْحَكِيْمُ ٦٢

inna
إِنَّ
बेशक
hādhā
هَٰذَا
ये
lahuwa
لَهُوَ
अलबत्ता वो
l-qaṣaṣu
ٱلْقَصَصُ
क़िस्से हैं
l-ḥaqu
ٱلْحَقُّۚ
जो सच्चे हैं
wamā
وَمَا
और नहीं
min
مِنْ
कोई इलाह (बरहक़)
ilāhin
إِلَٰهٍ
कोई इलाह (बरहक़)
illā
إِلَّا
सिवाय
l-lahu
ٱللَّهُۚ
अल्लाह के
wa-inna
وَإِنَّ
और बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
lahuwa
لَهُوَ
अलबत्ता वो
l-ʿazīzu
ٱلْعَزِيزُ
बहुत ज़बरदस्त है
l-ḥakīmu
ٱلْحَكِيمُ
ख़ूब हिकमत वाला है
निस्संदेह यही सच्चा बयान है और अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं। और अल्लाह ही प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ([३] आले इमरान: 62)
Tafseer (तफ़सीर )
६३

فَاِنْ تَوَلَّوْا فَاِنَّ اللّٰهَ عَلِيْمٌ ۢبِالْمُفْسِدِيْنَ ࣖ ٦٣

fa-in
فَإِن
फिर अगर
tawallaw
تَوَلَّوْا۟
वो मुँह फेर जाऐं
fa-inna
فَإِنَّ
तो बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
ʿalīmun
عَلِيمٌۢ
ख़ूब जानने वाला है
bil-muf'sidīna
بِٱلْمُفْسِدِينَ
फ़साद करने वालों को
फिर यदि वे लोग मुँह मोड़े तो अल्लाह फ़सादियों को भली-भाँति जानता है ([३] आले इमरान: 63)
Tafseer (तफ़सीर )
६४

قُلْ يٰٓاَهْلَ الْكِتٰبِ تَعَالَوْا اِلٰى كَلِمَةٍ سَوَاۤءٍۢ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ اَلَّا نَعْبُدَ اِلَّا اللّٰهَ وَلَا نُشْرِكَ بِهٖ شَيْـًٔا وَّلَا يَتَّخِذَ بَعْضُنَا بَعْضًا اَرْبَابًا مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ ۗ فَاِنْ تَوَلَّوْا فَقُوْلُوا اشْهَدُوْا بِاَنَّا مُسْلِمُوْنَ ٦٤

qul
قُلْ
कह दीजिए
yāahla
يَٰٓأَهْلَ
ऐ अहले किताब
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِ
ऐ अहले किताब
taʿālaw
تَعَالَوْا۟
आओ
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ एक कलमा के
kalimatin
كَلِمَةٍ
तरफ़ एक कलमा के
sawāin
سَوَآءٍۭ
जो बराबर है
baynanā
بَيْنَنَا
हमारे दर्मियान
wabaynakum
وَبَيْنَكُمْ
और तुम्हारे दर्मियान
allā
أَلَّا
कि ना
naʿbuda
نَعْبُدَ
हम इबादत करें
illā
إِلَّا
मगर
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह की
walā
وَلَا
और ना
nush'rika
نُشْرِكَ
हम शरीक करें
bihi
بِهِۦ
साथ उसके
shayan
شَيْـًٔا
किसी चीज़ को
walā
وَلَا
और ना
yattakhidha
يَتَّخِذَ
बनाए
baʿḍunā
بَعْضُنَا
बाज़ तुम्हारा
baʿḍan
بَعْضًا
बाज़ को
arbāban
أَرْبَابًا
रब (मुख़्तलिफ़)
min
مِّن
सिवाय
dūni
دُونِ
सिवाय
l-lahi
ٱللَّهِۚ
अल्लाह के
fa-in
فَإِن
फिर अगर
tawallaw
تَوَلَّوْا۟
वो मुँह फेर जाऐं
faqūlū
فَقُولُوا۟
तो कह दो
ish'hadū
ٱشْهَدُوا۟
गवाह रहो
bi-annā
بِأَنَّا
कि बेशक हम तो
mus'limūna
مُسْلِمُونَ
फ़रमाबरदार हैं
कहो, 'ऐ किताबवालो! आओ एक ऐसी बात की ओर जिसे हमारे और तुम्हारे बीच समान मान्यता प्राप्त है; यह कि हम अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करें और न उसके साथ किसी चीज़ को साझी ठहराएँ और न परस्पर हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह से हटकर रब बनाए।' फिर यदि वे मुँह मोड़े तो कह दो, 'गवाह रहो, हम तो मुस्लिम (आज्ञाकारी) है।' ([३] आले इमरान: 64)
Tafseer (तफ़सीर )
६५

يٰٓاَهْلَ الْكِتٰبِ لِمَ تُحَاۤجُّوْنَ فِيْٓ اِبْرٰهِيْمَ وَمَآ اُنْزِلَتِ التَّوْرٰىةُ وَالْاِنْجِيْلُ اِلَّا مِنْۢ بَعْدِهٖۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ٦٥

yāahla
يَٰٓأَهْلَ
ऐ अहले किताब
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِ
ऐ अहले किताब
lima
لِمَ
क्यों
tuḥājjūna
تُحَآجُّونَ
तुम झगड़ा करते हो
فِىٓ
इब्राहीम के बारे में
ib'rāhīma
إِبْرَٰهِيمَ
इब्राहीम के बारे में
wamā
وَمَآ
हालाँकि नहीं
unzilati
أُنزِلَتِ
उतारी गई
l-tawrātu
ٱلتَّوْرَىٰةُ
तौरात
wal-injīlu
وَٱلْإِنجِيلُ
और इन्जील
illā
إِلَّا
मगर
min
مِنۢ
बाद उसके
baʿdihi
بَعْدِهِۦٓۚ
बाद उसके
afalā
أَفَلَا
क्या भला नहीं
taʿqilūna
تَعْقِلُونَ
तुम अक़्ल रखते
'ऐ किताबवालो! तुम इबराहीम के विषय में हमसे क्यों झगड़ते हो? जबकि तौरात और इंजील तो उसके पश्चात उतारी गई है, तो क्या तुम समझ से काम नहीं लेते? ([३] आले इमरान: 65)
Tafseer (तफ़सीर )
६६

هٰٓاَنْتُمْ هٰٓؤُلَاۤءِ حَاجَجْتُمْ فِيْمَا لَكُمْ بِهٖ عِلْمٌ فَلِمَ تُحَاۤجُّوْنَ فِيْمَا لَيْسَ لَكُمْ بِهٖ عِلْمٌ ۗ وَاللّٰهُ يَعْلَمُ واَنْتُمْ لَا تَعْلَمُوْنَ ٦٦

hāantum
هَٰٓأَنتُمْ
हाँ तुम
hāulāi
هَٰٓؤُلَآءِ
वो लोग हो
ḥājajtum
حَٰجَجْتُمْ
झगड़ा किया तुमने
fīmā
فِيمَا
उस मामले में जो है
lakum
لَكُم
तुम्हारे लिए
bihi
بِهِۦ
जिसका
ʿil'mun
عِلْمٌ
कुछ इल्म
falima
فَلِمَ
तो क्यों
tuḥājjūna
تُحَآجُّونَ
तुम झगड़ते हो
fīmā
فِيمَا
उस मामले में जो
laysa
لَيْسَ
नहीं है
lakum
لَكُم
तुम्हारे लिए
bihi
بِهِۦ
जिसका
ʿil'mun
عِلْمٌۚ
कोई इल्म
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
yaʿlamu
يَعْلَمُ
जानता है
wa-antum
وَأَنتُمْ
और तुम
لَا
नहीं तुम जानते
taʿlamūna
تَعْلَمُونَ
नहीं तुम जानते
'ये तुम लोग हो कि उसके विषय में वाद-विवाद कर चुके जिसका तुम्हें कुछ ज्ञान था। अब उसके विषय में क्यों वाद-विवाद करते हो, जिसके विषय में तुम्हें कुछ भी ज्ञान नहीं? अल्लाह जानता है, तुम नहीं जानते' ([३] आले इमरान: 66)
Tafseer (तफ़सीर )
६७

مَاكَانَ اِبْرٰهِيْمُ يَهُوْدِيًّا وَّلَا نَصْرَانِيًّا وَّلٰكِنْ كَانَ حَنِيْفًا مُّسْلِمًاۗ وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِيْنَ ٦٧

مَا
ना
kāna
كَانَ
था
ib'rāhīmu
إِبْرَٰهِيمُ
इब्राहीम
yahūdiyyan
يَهُودِيًّا
यहूदी
walā
وَلَا
और ना
naṣrāniyyan
نَصْرَانِيًّا
नस्रानी
walākin
وَلَٰكِن
और लेकिन
kāna
كَانَ
था वो
ḥanīfan
حَنِيفًا
यकसू
mus'liman
مُّسْلِمًا
मुसलमान
wamā
وَمَا
और ना
kāna
كَانَ
था वो
mina
مِنَ
मुशरिकों में से
l-mush'rikīna
ٱلْمُشْرِكِينَ
मुशरिकों में से
इबराहीम न यहूदी था और न ईसाई, बल्कि वह तो एक ओर को होकर रहनेवाला मुस्लिम (आज्ञाकारी) था। वह कदापि मुशरिकों में से न था ([३] आले इमरान: 67)
Tafseer (तफ़सीर )
६८

اِنَّ اَوْلَى النَّاسِ بِاِبْرٰهِيْمَ لَلَّذِيْنَ اتَّبَعُوْهُ وَهٰذَا النَّبِيُّ وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا ۗ وَاللّٰهُ وَلِيُّ الْمُؤْمِنِيْنَ ٦٨

inna
إِنَّ
बेशक
awlā
أَوْلَى
क़रीबतर
l-nāsi
ٱلنَّاسِ
लोगों में से
bi-ib'rāhīma
بِإِبْرَٰهِيمَ
इब्राहीम के
lalladhīna
لَلَّذِينَ
अलबत्ता वो हैं जिन्होंने
ittabaʿūhu
ٱتَّبَعُوهُ
पैरवी की उसकी
wahādhā
وَهَٰذَا
और ये
l-nabiyu
ٱلنَّبِىُّ
नबी
wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जो
āmanū
ءَامَنُوا۟ۗ
ईमान लाए
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
waliyyu
وَلِىُّ
दोस्त है
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों का
निस्संदेह इबराहीम से सबसे अधिक निकटता का सम्बन्ध रखनेवाले वे लोग है जिन्होंने उसका अनुसरण किया, और यह नबी और ईमानवाले लोग। और अल्लाह ईमानवालों को समर्थक एवं सहायक है ([३] आले इमरान: 68)
Tafseer (तफ़सीर )
६९

وَدَّتْ طَّاۤىِٕفَةٌ مِّنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ لَوْ يُضِلُّوْنَكُمْۗ وَمَا يُضِلُّوْنَ اِلَّآ اَنْفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُوْنَ ٦٩

waddat
وَدَّت
चाहा
ṭāifatun
طَّآئِفَةٌ
एक गिरोह ने
min
مِّنْ
अहले किताब में से
ahli
أَهْلِ
अहले किताब में से
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِ
अहले किताब में से
law
لَوْ
काश
yuḍillūnakum
يُضِلُّونَكُمْ
वो गुमराह कर दें तुम्हें
wamā
وَمَا
और नहीं
yuḍillūna
يُضِلُّونَ
वो गुमराह करते
illā
إِلَّآ
मगर
anfusahum
أَنفُسَهُمْ
अपने नफ़्सों को
wamā
وَمَا
और नहीं
yashʿurūna
يَشْعُرُونَ
वो शऊर रखते
किताबवालों में से एक गिरोह के लोगों की कामना है कि काश! वे तुम्हें पथभ्रष्ट कर सकें, जबकि वे केवल अपने-आपकों पथभ्रष्ट कर रहे है! किन्तु उन्हें इसका एहसास नहीं ([३] आले इमरान: 69)
Tafseer (तफ़सीर )
७०

يٰٓاَهْلَ الْكِتٰبِ لِمَ تَكْفُرُوْنَ بِاٰيٰتِ اللّٰهِ وَاَنْتُمْ تَشْهَدُوْنَ ٧٠

yāahla
يَٰٓأَهْلَ
ऐ अहले किताब
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِ
ऐ अहले किताब
lima
لِمَ
क्यों
takfurūna
تَكْفُرُونَ
तुम कुफ़्र करते हो
biāyāti
بِـَٔايَٰتِ
अल्लाह की आयात का
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की आयात का
wa-antum
وَأَنتُمْ
हालाँकि तुम
tashhadūna
تَشْهَدُونَ
तुम गवाह हो
ऐ किताबवालों! तुम अल्लाह की आयतों का इनकार क्यों करते हो, जबकि तुम स्वयं गवाह हो? ([३] आले इमरान: 70)
Tafseer (तफ़सीर )