قَالَ رَبِّ اجْعَلْ لِّيْٓ اٰيَةً ۗ قَالَ اٰيَتُكَ اَلَّا تُكَلِّمَ النَّاسَ ثَلٰثَةَ اَيَّامٍ اِلَّا رَمْزًا ۗ وَاذْكُرْ رَّبَّكَ كَثِيْرًا وَّسَبِّحْ بِالْعَشِيِّ وَالْاِبْكَارِ ࣖ ٤١
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- ij'ʿal
- ٱجْعَل
- बना
- lī
- لِّىٓ
- मेरे लिए
- āyatan
- ءَايَةًۖ
- कोई निशानी
- qāla
- قَالَ
- कहा
- āyatuka
- ءَايَتُكَ
- निशानी तेरी
- allā
- أَلَّا
- ये है कि नहीं
- tukallima
- تُكَلِّمَ
- तुम कलाम करोगे
- l-nāsa
- ٱلنَّاسَ
- लोगों से
- thalāthata
- ثَلَٰثَةَ
- तीन
- ayyāmin
- أَيَّامٍ
- दिन
- illā
- إِلَّا
- मगर
- ramzan
- رَمْزًاۗ
- इशारे से
- wa-udh'kur
- وَٱذْكُر
- और तुम याद करो
- rabbaka
- رَّبَّكَ
- अपने रब को
- kathīran
- كَثِيرًا
- बहुत ज़्यादा
- wasabbiḥ
- وَسَبِّحْ
- और तस्बीह करो
- bil-ʿashiyi
- بِٱلْعَشِىِّ
- शाम के वक़्त
- wal-ib'kāri
- وَٱلْإِبْكَٰرِ
- और सुबह के वक़्त
उसने कहा, 'मेरे रब! मेरे लिए कोई आदेश निश्चित कर दे।' कहा, 'तुम्हारे लिए आदेश यह है कि तुम लोगों से तीन दिन तक संकेत के सिवा कोई बातचीत न करो। अपने रब को बहुत अधिक याद करो और सायंकाल और प्रातः समय उसकी तसबीह (महिमागान) करते रहो।' ([३] आले इमरान: 41)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذْ قَالَتِ الْمَلٰۤىِٕكَةُ يٰمَرْيَمُ اِنَّ اللّٰهَ اصْطَفٰىكِ وَطَهَّرَكِ وَاصْطَفٰىكِ عَلٰى نِسَاۤءِ الْعٰلَمِيْنَ ٤٢
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- qālati
- قَالَتِ
- कहा
- l-malāikatu
- ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ
- फ़रिश्तों ने
- yāmaryamu
- يَٰمَرْيَمُ
- ऐ मरियम
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह ने
- iṣ'ṭafāki
- ٱصْطَفَىٰكِ
- चुन लिया तुझे
- waṭahharaki
- وَطَهَّرَكِ
- और पाक किया तुझे
- wa-iṣ'ṭafāki
- وَٱصْطَفَىٰكِ
- और चुन लिया तुझे
- ʿalā
- عَلَىٰ
- औरतों पर
- nisāi
- نِسَآءِ
- औरतों पर
- l-ʿālamīna
- ٱلْعَٰلَمِينَ
- तमाम जहान की
और जब फ़रिश्तों ने कहा, 'ऐ मरयम! अल्लाह ने तुझे चुन लिया और तुझे पवित्रता प्रदान की और तुझे संसार की स्त्रियों के मुक़ाबले मं चुन लिया ([३] आले इमरान: 42)Tafseer (तफ़सीर )
يٰمَرْيَمُ اقْنُتِيْ لِرَبِّكِ وَاسْجُدِيْ وَارْكَعِيْ مَعَ الرَّاكِعِيْنَ ٤٣
- yāmaryamu
- يَٰمَرْيَمُ
- ऐ मरियम
- uq'nutī
- ٱقْنُتِى
- हमेशा इताअत कर
- lirabbiki
- لِرَبِّكِ
- अपने रब की
- wa-us'judī
- وَٱسْجُدِى
- और सजदा कर
- wa-ir'kaʿī
- وَٱرْكَعِى
- और रुकू कर
- maʿa
- مَعَ
- साथ रुकू करने वालों के
- l-rākiʿīna
- ٱلرَّٰكِعِينَ
- साथ रुकू करने वालों के
'ऐ मरयम! पूरी निष्ठा के साथ अपने रब की आज्ञा का पालन करती रह, और सजदा कर और झुकनेवालों के साथ तू भी झूकती रह।' ([३] आले इमरान: 43)Tafseer (तफ़सीर )
ذٰلِكَ مِنْ اَنْۢبَاۤءِ الْغَيْبِ نُوْحِيْهِ اِلَيْكَ ۗوَمَا كُنْتَ لَدَيْهِمْ اِذْ يُلْقُوْنَ اَقْلَامَهُمْ اَيُّهُمْ يَكْفُلُ مَرْيَمَۖ وَمَا كُنْتَ لَدَيْهِمْ اِذْ يَخْتَصِمُوْنَ ٤٤
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- min
- مِنْ
- कुछ ख़बरें हैं
- anbāi
- أَنۢبَآءِ
- कुछ ख़बरें हैं
- l-ghaybi
- ٱلْغَيْبِ
- ग़ैब की
- nūḥīhi
- نُوحِيهِ
- हम वही करते हैं उसे
- ilayka
- إِلَيْكَۚ
- तरफ़ आपके
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kunta
- كُنتَ
- थे आप
- ladayhim
- لَدَيْهِمْ
- पास उनके
- idh
- إِذْ
- जब
- yul'qūna
- يُلْقُونَ
- वो डाल रहे थे
- aqlāmahum
- أَقْلَٰمَهُمْ
- क़लमें अपनी
- ayyuhum
- أَيُّهُمْ
- कौन उनमें से
- yakfulu
- يَكْفُلُ
- किफ़ालत करेगा
- maryama
- مَرْيَمَ
- मरियम की
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kunta
- كُنتَ
- थे आप
- ladayhim
- لَدَيْهِمْ
- पास उनके
- idh
- إِذْ
- जब
- yakhtaṣimūna
- يَخْتَصِمُونَ
- वो झगड़ रहे थे
यह परोक्ष की सूचनाओं में से है, जिसकी वह्य हम तुम्हारी ओर कर रहे है। तुम तो उस समय उनके पास नहीं थे, जब वे अपनी क़लमों को फेंक रहे थ कि उनमें कौन मरयम का संरक्षक बने और न उनके समय थे, जब वे आपस में झगड़ रहे थे ([३] आले इमरान: 44)Tafseer (तफ़सीर )
اِذْ قَالَتِ الْمَلٰۤىِٕكَةُ يٰمَرْيَمُ اِنَّ اللّٰهَ يُبَشِّرُكِ بِكَلِمَةٍ مِّنْهُۖ اسْمُهُ الْمَسِيْحُ عِيْسَى ابْنُ مَرْيَمَ وَجِيْهًا فِى الدُّنْيَا وَالْاٰخِرَةِ وَمِنَ الْمُقَرَّبِيْنَۙ ٤٥
- idh
- إِذْ
- जब
- qālati
- قَالَتِ
- कहा
- l-malāikatu
- ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ
- फ़रिश्तों ने
- yāmaryamu
- يَٰمَرْيَمُ
- ऐ मरियम
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yubashiruki
- يُبَشِّرُكِ
- ख़ुशख़बरी देता है तुझे
- bikalimatin
- بِكَلِمَةٍ
- एक कलमे की
- min'hu
- مِّنْهُ
- अपनी तरफ़ से
- us'muhu
- ٱسْمُهُ
- नाम उसका होगा
- l-masīḥu
- ٱلْمَسِيحُ
- मसीह
- ʿīsā
- عِيسَى
- ईसा इब्ने मरियम
- ub'nu
- ٱبْنُ
- ईसा इब्ने मरियम
- maryama
- مَرْيَمَ
- ईसा इब्ने मरियम
- wajīhan
- وَجِيهًا
- बहुत मर्तबे वाला
- fī
- فِى
- दुनिया में
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया में
- wal-ākhirati
- وَٱلْءَاخِرَةِ
- और आख़िरत में
- wamina
- وَمِنَ
- और मुक़र्रब बन्दों में से होगा
- l-muqarabīna
- ٱلْمُقَرَّبِينَ
- और मुक़र्रब बन्दों में से होगा
ओर याद करो जब फ़रिश्तों ने कहा, 'ऐ मरयम! अल्लाह तुझे अपने एक कलिमे (बात) की शुभ-सूचना देता है, जिसका नाम मसीह, मरयम का बेटा, ईसा होगा। वह दुनिया और आख़िरत मे आबरूवाला होगा और अल्लाह के निकटवर्ती लोगों में से होगा ([३] आले इमरान: 45)Tafseer (तफ़सीर )
وَيُكَلِّمُ النَّاسَ فِى الْمَهْدِ وَكَهْلًا وَّمِنَ الصّٰلِحِيْنَ ٤٦
- wayukallimu
- وَيُكَلِّمُ
- और वो कलाम करेगा
- l-nāsa
- ٱلنَّاسَ
- लोगों से
- fī
- فِى
- पँघोड़े में
- l-mahdi
- ٱلْمَهْدِ
- पँघोड़े में
- wakahlan
- وَكَهْلًا
- और पुख़्ता उम्र में
- wamina
- وَمِنَ
- और सालेह लोगों में से होगा
- l-ṣāliḥīna
- ٱلصَّٰلِحِينَ
- और सालेह लोगों में से होगा
वह लोगों से पालने में भी बात करेगा और बड़ी आयु को पहुँचकर भी। और वह नेक व्यक्ति होगा। - ([३] आले इमरान: 46)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَتْ رَبِّ اَنّٰى يَكُوْنُ لِيْ وَلَدٌ وَّلَمْ يَمْسَسْنِيْ بَشَرٌ ۗ قَالَ كَذٰلِكِ اللّٰهُ يَخْلُقُ مَا يَشَاۤءُ ۗاِذَا قَضٰٓى اَمْرًا فَاِنَّمَا يَقُوْلُ لَهٗ كُنْ فَيَكُوْنُ ٤٧
- qālat
- قَالَتْ
- उसने कहा
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- annā
- أَنَّىٰ
- किस तरह
- yakūnu
- يَكُونُ
- होगा
- lī
- لِى
- मेरे लिए
- waladun
- وَلَدٌ
- कोई बच्चा
- walam
- وَلَمْ
- हालाँकि नहीं
- yamsasnī
- يَمْسَسْنِى
- छुआ मुझे
- basharun
- بَشَرٌۖ
- किसी इन्सान ने
- qāla
- قَالَ
- फ़रमाया
- kadhāliki
- كَذَٰلِكِ
- इसी तरह
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- yakhluqu
- يَخْلُقُ
- पैदा करता है
- mā
- مَا
- जो
- yashāu
- يَشَآءُۚ
- वो चाहता है
- idhā
- إِذَا
- जब
- qaḍā
- قَضَىٰٓ
- वो फ़ैसला कर लेता है
- amran
- أَمْرًا
- किसी काम का
- fa-innamā
- فَإِنَّمَا
- तो बेशक
- yaqūlu
- يَقُولُ
- वो कहता है
- lahu
- لَهُۥ
- उसे
- kun
- كُن
- हो जा
- fayakūnu
- فَيَكُونُ
- तो वो हो जाता है
वह बोली, 'मेरे रब! मेरे यहाँ लड़का कहाँ से होगा, जबकि मुझे किसी आदमी ने छुआ तक नहीं?' कहा, 'ऐसा ही होगा, अल्लाह जो चाहता है, पैदा करता है। जब वह किसी कार्य का निर्णय करता है तो उसको बस यही कहता है 'हो जा' तो वह हो जाता है ([३] आले इमरान: 47)Tafseer (तफ़सीर )
وَيُعَلِّمُهُ الْكِتٰبَ وَالْحِكْمَةَ وَالتَّوْرٰىةَ وَالْاِنْجِيْلَۚ ٤٨
- wayuʿallimuhu
- وَيُعَلِّمُهُ
- और वो तालीम देगा उसे
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- wal-ḥik'mata
- وَٱلْحِكْمَةَ
- और हिकमत
- wal-tawrāta
- وَٱلتَّوْرَىٰةَ
- और तौरात
- wal-injīla
- وَٱلْإِنجِيلَ
- और इन्जील की
'और उसको किताब, हिकमत, तौरात और इंजील का भी ज्ञान देगा ([३] आले इमरान: 48)Tafseer (तफ़सीर )
وَرَسُوْلًا اِلٰى بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ ەۙ اَنِّيْ قَدْ جِئْتُكُمْ بِاٰيَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ ۙاَنِّيْٓ اَخْلُقُ لَكُمْ مِّنَ الطِّيْنِ كَهَيْـَٔةِ الطَّيْرِ فَاَنْفُخُ فِيْهِ فَيَكُوْنُ طَيْرًاۢ بِاِذْنِ اللّٰهِ ۚوَاُبْرِئُ الْاَكْمَهَ وَالْاَبْرَصَ وَاُحْيِ الْمَوْتٰى بِاِذْنِ اللّٰهِ ۚوَاُنَبِّئُكُمْ بِمَا تَأْكُلُوْنَ وَمَا تَدَّخِرُوْنَ ۙفِيْ بُيُوْتِكُمْ ۗاِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً لَّكُمْ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِيْنَۚ ٤٩
- warasūlan
- وَرَسُولًا
- और रसूल होगा
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़
- banī
- بَنِىٓ
- बनी इस्राईल के
- is'rāīla
- إِسْرَٰٓءِيلَ
- बनी इस्राईल के
- annī
- أَنِّى
- बेशक मैं
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- ji'tukum
- جِئْتُكُم
- मैं लाया हूँ तुम्हारे पास
- biāyatin
- بِـَٔايَةٍ
- एक निशानी
- min
- مِّن
- तुम्हारे रब की तरफ़ से
- rabbikum
- رَّبِّكُمْۖ
- तुम्हारे रब की तरफ़ से
- annī
- أَنِّىٓ
- बेशक मैं
- akhluqu
- أَخْلُقُ
- मैं बना देता हूँ
- lakum
- لَكُم
- तुम्हारे लिए
- mina
- مِّنَ
- मिट्टी से
- l-ṭīni
- ٱلطِّينِ
- मिट्टी से
- kahayati
- كَهَيْـَٔةِ
- मानिन्द शक्ल
- l-ṭayri
- ٱلطَّيْرِ
- परिन्दे की
- fa-anfukhu
- فَأَنفُخُ
- फिर मैं फूँख मारता हूँ
- fīhi
- فِيهِ
- उस में
- fayakūnu
- فَيَكُونُ
- तो वो हो जाता है
- ṭayran
- طَيْرًۢا
- एक परिन्दा
- bi-idh'ni
- بِإِذْنِ
- अल्लाह के इज़्न से
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- अल्लाह के इज़्न से
- wa-ub'ri-u
- وَأُبْرِئُ
- और मैं अच्छा कर देता हूँ
- l-akmaha
- ٱلْأَكْمَهَ
- पैदाइशी अन्धे को
- wal-abraṣa
- وَٱلْأَبْرَصَ
- और बरस वाले को
- wa-uḥ'yī
- وَأُحْىِ
- और मैं ज़िन्दा कर देता हूँ
- l-mawtā
- ٱلْمَوْتَىٰ
- मुर्दों को
- bi-idh'ni
- بِإِذْنِ
- अल्लाह के इज़्न से
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- अल्लाह के इज़्न से
- wa-unabbi-ukum
- وَأُنَبِّئُكُم
- और मैं ख़बर देता हूँ तुम्हें
- bimā
- بِمَا
- उसकी जो
- takulūna
- تَأْكُلُونَ
- तुम खाते हो
- wamā
- وَمَا
- और जो
- taddakhirūna
- تَدَّخِرُونَ
- तुम ज़ख़ीरा करते हो
- fī
- فِى
- अपने घरों में
- buyūtikum
- بُيُوتِكُمْۚ
- अपने घरों में
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- fī
- فِى
- इसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसमें
- laāyatan
- لَءَايَةً
- अलबत्ता एक निशानी है
- lakum
- لَّكُمْ
- तुम्हारे लिए
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُم
- हो तुम
- mu'minīna
- مُّؤْمِنِينَ
- ईमान लाने वाले
'और उसे इसराईल की संतान की ओर रसूल बनाकर भेजेगा। (वह कहेगा) कि मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक निशाली लेकर आया हूँ कि मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से पक्षी के रूप जैसी आकृति बनाता हूँ, फिर उसमें फूँक मारता हूँ, तो वह अल्लाह के आदेश से उड़ने लगती है। और मैं अल्लाह के आदेश से अंधे और कोढ़ी को अच्छा कर देता हूँ और मुर्दे को जीवित कर देता हूँ। और मैं तुम्हें बता देता हूँ जो कुछ तुम खाते हो और जो कुछ अपने घरों में इकट्ठा करके रखते हो। निस्संदेह इसमें तुम्हारे लिए एक निशानी है, यदि तुम माननेवाले हो ([३] आले इमरान: 49)Tafseer (तफ़सीर )
وَمُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيَّ مِنَ التَّوْرٰىةِ وَلِاُحِلَّ لَكُمْ بَعْضَ الَّذِيْ حُرِّمَ عَلَيْكُمْ وَجِئْتُكُمْ بِاٰيَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْۗ فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِ ٥٠
- wamuṣaddiqan
- وَمُصَدِّقًا
- और तसदीक़ करने वाला हूँ
- limā
- لِّمَا
- उसकी जो
- bayna
- بَيْنَ
- मेरे सामने है
- yadayya
- يَدَىَّ
- मेरे सामने है
- mina
- مِنَ
- तौरात में से
- l-tawrāti
- ٱلتَّوْرَىٰةِ
- तौरात में से
- wali-uḥilla
- وَلِأُحِلَّ
- और ताकि मैं हलाल कर दूँ
- lakum
- لَكُم
- तुम्हारे लिए
- baʿḍa
- بَعْضَ
- बाज़
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो चीज़ जो
- ḥurrima
- حُرِّمَ
- हराम की गई
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْۚ
- तुम पर
- waji'tukum
- وَجِئْتُكُم
- और लाया हूँ मैं तुम्हारे पास
- biāyatin
- بِـَٔايَةٍ
- एक निशानी
- min
- مِّن
- तुम्हारे रब की तरफ़ से
- rabbikum
- رَّبِّكُمْ
- तुम्हारे रब की तरफ़ से
- fa-ittaqū
- فَٱتَّقُوا۟
- पस डरो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- wa-aṭīʿūni
- وَأَطِيعُونِ
- और इताअत करो मेरी
'और मैं तौरात की, जो मेरे आगे है, पुष्टि करता हूँ और इसलिए आया हूँ कि तुम्हारे लिए कुछ उन चीज़ों को हलाल कर दूँ जो तुम्हारे लिए हराम थी। और मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक निशानी लेकर आया हूँ। अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो ([३] आले इमरान: 50)Tafseer (तफ़सीर )