كَدَأْبِ اٰلِ فِرْعَوْنَۙ وَالَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْۗ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَاۚ فَاَخَذَهُمُ اللّٰهُ بِذُنُوْبِهِمْ ۗ وَاللّٰهُ شَدِيْدُ الْعِقَابِ ١١
- kadabi
- كَدَأْبِ
- मानिन्द हालत
- āli
- ءَالِ
- आले फ़िरऔन की
- fir'ʿawna
- فِرْعَوْنَ
- आले फ़िरऔन की
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- min
- مِن
- उनसे पहले थे
- qablihim
- قَبْلِهِمْۚ
- उनसे पहले थे
- kadhabū
- كَذَّبُوا۟
- उन्होंने झुठलाया
- biāyātinā
- بِـَٔايَٰتِنَا
- हमारी आयात को
- fa-akhadhahumu
- فَأَخَذَهُمُ
- तो पकड़ लिया उन्हें
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- bidhunūbihim
- بِذُنُوبِهِمْۗ
- बवजह उनके गुनाहों के
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- shadīdu
- شَدِيدُ
- सख़्त
- l-ʿiqābi
- ٱلْعِقَابِ
- सज़ा वाला है
जैसे फ़िरऔन के लोगों और उनसे पहले के लोगों का हाल हुआ। उन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया तो अल्लाह ने उन्हें उनके गुनाहों पर पकड़ लिया। और अल्लाह कठोर दंड देनेवाला है ([३] आले इमरान: 11)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ لِّلَّذِيْنَ كَفَرُوْا سَتُغْلَبُوْنَ وَتُحْشَرُوْنَ اِلٰى جَهَنَّمَ ۗ وَبِئْسَ الْمِهَادُ ١٢
- qul
- قُل
- कह दीजिए
- lilladhīna
- لِّلَّذِينَ
- उनको जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- satugh'labūna
- سَتُغْلَبُونَ
- अनक़रीब तुम मग़लूब किए जाओगे
- watuḥ'sharūna
- وَتُحْشَرُونَ
- और तुम इकट्ठे किए जाओगे
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ जहन्नम के
- jahannama
- جَهَنَّمَۚ
- तरफ़ जहन्नम के
- wabi'sa
- وَبِئْسَ
- और कितना बुरा है
- l-mihādu
- ٱلْمِهَادُ
- ठिकाना
इनकार करनेवालों से कह दो, 'शीघ्र ही तुम पराभूत होगे और जहन्नम की ओर हाँके जाओगं। और वह क्या ही बुरा ठिकाना है।' ([३] आले इमरान: 12)Tafseer (तफ़सीर )
قَدْ كَانَ لَكُمْ اٰيَةٌ فِيْ فِئَتَيْنِ الْتَقَتَا ۗفِئَةٌ تُقَاتِلُ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ وَاُخْرٰى كَافِرَةٌ يَّرَوْنَهُمْ مِّثْلَيْهِمْ رَأْيَ الْعَيْنِ ۗوَاللّٰهُ يُؤَيِّدُ بِنَصْرِهٖ مَنْ يَّشَاۤءُ ۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَعِبْرَةً لِّاُولِى الْاَبْصَارِ ١٣
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- kāna
- كَانَ
- है
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- āyatun
- ءَايَةٌ
- एक निशानी
- fī
- فِى
- दो गिरोहों में
- fi-atayni
- فِئَتَيْنِ
- दो गिरोहों में
- l-taqatā
- ٱلْتَقَتَاۖ
- जो आमने सामने हुए
- fi-atun
- فِئَةٌ
- एक गिरोह
- tuqātilu
- تُقَٰتِلُ
- वो लड़ रहा था
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते में
- wa-ukh'rā
- وَأُخْرَىٰ
- और दूसरा
- kāfiratun
- كَافِرَةٌ
- काफ़िर था
- yarawnahum
- يَرَوْنَهُم
- वो देख रहे थे उन्हें
- mith'layhim
- مِّثْلَيْهِمْ
- दोगुना अपने से
- raya
- رَأْىَ
- देखना
- l-ʿayni
- ٱلْعَيْنِۚ
- आँख का
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yu-ayyidu
- يُؤَيِّدُ
- ताईद करता है
- binaṣrihi
- بِنَصْرِهِۦ
- अपनी मदद से
- man
- مَن
- जिसकी
- yashāu
- يَشَآءُۗ
- वो चाहता है
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- fī
- فِى
- उसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- उसमें
- laʿib'ratan
- لَعِبْرَةً
- अलबत्ता इबरत है
- li-ulī
- لِّأُو۟لِى
- अहले बसीरत के लिए
- l-abṣāri
- ٱلْأَبْصَٰرِ
- अहले बसीरत के लिए
तुम्हारे लिए उन दोनों गिरोहों में एक निशानी है जो (बद्र की) लड़ाई में एक-दूसरे के मुक़ाबिल हुए। एक गिरोह अल्लाह के मार्ग में लड़ रहा था, जबकि दूसरा विधर्मी था। ये अपनी आँखों देख रहे थे कि वे उनसे दुगने है। अल्लाह अपनी सहायता से जिसे चाहता है, शक्ति प्रदान करता है। दृष्टिवान लोगों के लिए इसमें बड़ी शिक्षा-सामग्री है ([३] आले इमरान: 13)Tafseer (तफ़सीर )
زُيِّنَ لِلنَّاسِ حُبُّ الشَّهَوٰتِ مِنَ النِّسَاۤءِ وَالْبَنِيْنَ وَالْقَنَاطِيْرِ الْمُقَنْطَرَةِ مِنَ الذَّهَبِ وَالْفِضَّةِ وَالْخَيْلِ الْمُسَوَّمَةِ وَالْاَنْعَامِ وَالْحَرْثِ ۗ ذٰلِكَ مَتَاعُ الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا ۗوَاللّٰهُ عِنْدَهٗ حُسْنُ الْمَاٰبِ ١٤
- zuyyina
- زُيِّنَ
- मुज़य्यन कर दी गई
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- ḥubbu
- حُبُّ
- मोहब्बत
- l-shahawāti
- ٱلشَّهَوَٰتِ
- ख़्वाहिशात की
- mina
- مِنَ
- औरतों से
- l-nisāi
- ٱلنِّسَآءِ
- औरतों से
- wal-banīna
- وَٱلْبَنِينَ
- और बेटों से
- wal-qanāṭīri
- وَٱلْقَنَٰطِيرِ
- और ख़जानों से
- l-muqanṭarati
- ٱلْمُقَنطَرَةِ
- जो इकट्ठे किए गए
- mina
- مِنَ
- सोने से
- l-dhahabi
- ٱلذَّهَبِ
- सोने से
- wal-fiḍati
- وَٱلْفِضَّةِ
- और चाँदी से
- wal-khayli
- وَٱلْخَيْلِ
- और घोड़े
- l-musawamati
- ٱلْمُسَوَّمَةِ
- निशान लगे हुए हैं
- wal-anʿāmi
- وَٱلْأَنْعَٰمِ
- और मवेशी जानवर
- wal-ḥarthi
- وَٱلْحَرْثِۗ
- और खेती से
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- matāʿu
- مَتَٰعُ
- सामान है
- l-ḥayati
- ٱلْحَيَوٰةِ
- ज़िन्दगी का
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَاۖ
- दुनिया की
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ʿindahu
- عِندَهُۥ
- पास उसके
- ḥus'nu
- حُسْنُ
- अच्छा
- l-maābi
- ٱلْمَـَٔابِ
- ठिकाना है
मनुष्यों को चाहत की चीजों से प्रेम शोभायमान प्रतीत होता है कि वे स्त्रिमयाँ, बेटे, सोने-चाँदी के ढेर और निशान लगे (चुने हुए) घोड़े हैं और चौपाए और खेती। यह सब सांसारिक जीवन की सामग्री है और अल्लाह के पास ही अच्छा ठिकाना है ([३] आले इमरान: 14)Tafseer (तफ़सीर )
۞ قُلْ اَؤُنَبِّئُكُمْ بِخَيْرٍ مِّنْ ذٰلِكُمْ ۗ لِلَّذِيْنَ اتَّقَوْا عِنْدَ رَبِّهِمْ جَنّٰتٌ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِيْنَ فِيْهَا وَاَزْوَاجٌ مُّطَهَّرَةٌ وَّرِضْوَانٌ مِّنَ اللّٰهِ ۗ وَاللّٰهُ بَصِيْرٌۢ بِالْعِبَادِۚ ١٥
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- a-unabbi-ukum
- أَؤُنَبِّئُكُم
- क्या मैं ख़बर दूँ तुम्हें
- bikhayrin
- بِخَيْرٍ
- बेहतर की
- min
- مِّن
- इससे
- dhālikum
- ذَٰلِكُمْۚ
- इससे
- lilladhīna
- لِلَّذِينَ
- उनके लिए जिन्होंने
- ittaqaw
- ٱتَّقَوْا۟
- तक़वा किया
- ʿinda
- عِندَ
- उनके रब के पास
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- उनके रब के पास
- jannātun
- جَنَّٰتٌ
- बाग़ात हैं
- tajrī
- تَجْرِى
- बहती हैं
- min
- مِن
- उसके नीचे से
- taḥtihā
- تَحْتِهَا
- उसके नीचे से
- l-anhāru
- ٱلْأَنْهَٰرُ
- नहरें
- khālidīna
- خَٰلِدِينَ
- हमेशा रहने वाले हैं
- fīhā
- فِيهَا
- उनमें
- wa-azwājun
- وَأَزْوَٰجٌ
- और बीवियाँ
- muṭahharatun
- مُّطَهَّرَةٌ
- पाकीज़ा
- wariḍ'wānun
- وَرِضْوَٰنٌ
- और रज़ामन्दी
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِۗ
- अल्लाह की तरफ़ से
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- baṣīrun
- بَصِيرٌۢ
- ख़ूब देखने वाला है
- bil-ʿibādi
- بِٱلْعِبَادِ
- बन्दों को
कहो, 'क्या मैं तुम्हें इनसे उत्तम चीज का पता दूँ?' जो लोग अल्लाह का डर रखेंगे उनके लिए उनके रब के पास बाग़ है, जिनके नीचे नहरें बह रहीं होगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। वहाँ पाक-साफ़ जोड़े होंगे और अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त होगी। और अल्लाह अपने बन्दों पर नज़र रखता है ([३] आले इमरान: 15)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَّذِيْنَ يَقُوْلُوْنَ رَبَّنَآ اِنَّنَآ اٰمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوْبَنَا وَقِنَا عَذَابَ النَّارِۚ ١٦
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- yaqūlūna
- يَقُولُونَ
- कहते हैं
- rabbanā
- رَبَّنَآ
- ऐ हमारे रब
- innanā
- إِنَّنَآ
- बेशक हम
- āmannā
- ءَامَنَّا
- ईमान लाए हम
- fa-igh'fir
- فَٱغْفِرْ
- पस बख़्श दे
- lanā
- لَنَا
- पस बख़्श दे
- dhunūbanā
- ذُنُوبَنَا
- हमारे गुनाहों को
- waqinā
- وَقِنَا
- और बचा हमें
- ʿadhāba
- عَذَابَ
- अज़ाब से
- l-nāri
- ٱلنَّارِ
- आग के
ये वे लोग है जो कहते है, 'हमारे रब हम ईमान लाए है। अतः हमारे गुनाहों को क्षमा कर दे और हमें आग (जहन्नम) की यातना से बचा ले।' ([३] आले इमरान: 16)Tafseer (तफ़सीर )
اَلصّٰبِرِيْنَ وَالصّٰدِقِيْنَ وَالْقٰنِتِيْنَ وَالْمُنْفِقِيْنَ وَالْمُسْتَغْفِرِيْنَ بِالْاَسْحَارِ ١٧
- al-ṣābirīna
- ٱلصَّٰبِرِينَ
- सब्र करने वाले
- wal-ṣādiqīna
- وَٱلصَّٰدِقِينَ
- और सच्चे
- wal-qānitīna
- وَٱلْقَٰنِتِينَ
- और इताअत गुज़ार
- wal-munfiqīna
- وَٱلْمُنفِقِينَ
- और ख़र्च करने वाले
- wal-mus'taghfirīna
- وَٱلْمُسْتَغْفِرِينَ
- और इस्तग़फ़ार करने वाले
- bil-asḥāri
- بِٱلْأَسْحَارِ
- सहरी के वक़्त
ये लोग धैर्य से काम लेनेवाले, सत्यवान और अत्यन्त आज्ञाकारी है, ये ((अल्लाह के मार्ग में) खर्च करते और रात की अंतिम घड़ियों में क्षमा की प्रार्थनाएँ करते हैं ([३] आले इमरान: 17)Tafseer (तफ़सीर )
شَهِدَ اللّٰهُ اَنَّهٗ لَآ اِلٰهَ اِلَّا هُوَۙ وَالْمَلٰۤىِٕكَةُ وَاُولُوا الْعِلْمِ قَاۤىِٕمًاۢ بِالْقِسْطِۗ لَآ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ الْعَزِيْزُ الْحَكِيْمُ ١٨
- shahida
- شَهِدَ
- गवाही दी
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- annahu
- أَنَّهُۥ
- कि बेशक वो
- lā
- لَآ
- नहीं
- ilāha
- إِلَٰهَ
- कोई इलाह (बरहक़)
- illā
- إِلَّا
- मगर
- huwa
- هُوَ
- वो ही
- wal-malāikatu
- وَٱلْمَلَٰٓئِكَةُ
- और फ़रिश्तों ने
- wa-ulū
- وَأُو۟لُوا۟
- और इल्म वालों ने
- l-ʿil'mi
- ٱلْعِلْمِ
- और इल्म वालों ने
- qāiman
- قَآئِمًۢا
- क़ायम है (इस हाल में कि वो)
- bil-qis'ṭi
- بِٱلْقِسْطِۚ
- इन्साफ़ पर
- lā
- لَآ
- नहीं
- ilāha
- إِلَٰهَ
- कोई इलाह (बरहक़)
- illā
- إِلَّا
- मगर
- huwa
- هُوَ
- वो ही
- l-ʿazīzu
- ٱلْعَزِيزُ
- बहुत ज़बरदस्त है
- l-ḥakīmu
- ٱلْحَكِيمُ
- ख़ूब हिकमत वाला है
अल्लाह ने गवाही दी कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं; और फ़रिश्तों ने और उन लोगों ने भी जो न्याय और संतुलन स्थापित करनेवाली एक सत्ता को जानते है। उस प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी के सिवा कोई पूज्य नहीं ([३] आले इमरान: 18)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الدِّيْنَ عِنْدَ اللّٰهِ الْاِسْلَامُ ۗ وَمَا اخْتَلَفَ الَّذِيْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ اِلَّا مِنْۢ بَعْدِ مَا جَاۤءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًاۢ بَيْنَهُمْ ۗوَمَنْ يَّكْفُرْ بِاٰيٰتِ اللّٰهِ فَاِنَّ اللّٰهَ سَرِيْعُ الْحِسَابِ ١٩
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-dīna
- ٱلدِّينَ
- दीन
- ʿinda
- عِندَ
- अल्लाह के नज़दीक
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के नज़दीक
- l-is'lāmu
- ٱلْإِسْلَٰمُۗ
- इस्लाम है
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- ikh'talafa
- ٱخْتَلَفَ
- इख़्तिलाफ़ किया
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन्होंने जो
- ūtū
- أُوتُوا۟
- दिए गए
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- illā
- إِلَّا
- मगर
- min
- مِنۢ
- बाद उसके
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद उसके
- mā
- مَا
- जो
- jāahumu
- جَآءَهُمُ
- आ गया उनके पास
- l-ʿil'mu
- ٱلْعِلْمُ
- इल्म
- baghyan
- بَغْيًۢا
- बवजह ज़िद के
- baynahum
- بَيْنَهُمْۗ
- आपस में
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yakfur
- يَكْفُرْ
- कुफ़्र करे
- biāyāti
- بِـَٔايَٰتِ
- साथ आयात के
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- sarīʿu
- سَرِيعُ
- जल्द लेने वाला है
- l-ḥisābi
- ٱلْحِسَابِ
- हिसाब
दीन (धर्म) तो अल्लाह की स्पष्ट में इस्लाम ही है। जिन्हें किताब दी गई थी, उन्होंने तो इसमें इसके पश्चात विभेद किया कि ज्ञान उनके पास आ चुका था। ऐसा उन्होंने परस्पर दुराग्रह के कारण किया। जो अल्लाह की आयतों का इनकार करेगा तो अल्लाह भी जल्द हिसाब लेनेवाला है ([३] आले इमरान: 19)Tafseer (तफ़सीर )
فَاِنْ حَاۤجُّوْكَ فَقُلْ اَسْلَمْتُ وَجْهِيَ لِلّٰهِ وَمَنِ اتَّبَعَنِ ۗوَقُلْ لِّلَّذِيْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ وَالْاُمِّيّٖنَ ءَاَسْلَمْتُمْ ۗ فَاِنْ اَسْلَمُوْا فَقَدِ اهْتَدَوْا ۚ وَاِنْ تَوَلَّوْا فَاِنَّمَا عَلَيْكَ الْبَلٰغُ ۗ وَاللّٰهُ بَصِيْرٌۢ بِالْعِبَادِ ࣖ ٢٠
- fa-in
- فَإِنْ
- फिर अगर
- ḥājjūka
- حَآجُّوكَ
- वो झगड़ा करें आपसे
- faqul
- فَقُلْ
- तो कह दीजिए
- aslamtu
- أَسْلَمْتُ
- मैंने सुपुर्द कर दिया
- wajhiya
- وَجْهِىَ
- चेहरा अपना
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह के लिए
- wamani
- وَمَنِ
- और जिसने
- ittabaʿani
- ٱتَّبَعَنِۗ
- इत्तिबा किया मेरा
- waqul
- وَقُل
- और कह दीजिए
- lilladhīna
- لِّلَّذِينَ
- उनको जो
- ūtū
- أُوتُوا۟
- दिए गए
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- wal-umiyīna
- وَٱلْأُمِّيِّۦنَ
- और उम्मियों/अनपढ़ों को
- a-aslamtum
- ءَأَسْلَمْتُمْۚ
- क्या इस्लाम लाए तुम
- fa-in
- فَإِنْ
- फिर अगर
- aslamū
- أَسْلَمُوا۟
- वो इस्लाम ले आऐं
- faqadi
- فَقَدِ
- तो तहक़ीक़
- ih'tadaw
- ٱهْتَدَوا۟ۖ
- वो हिदायत पा गए
- wa-in
- وَّإِن
- और अगर
- tawallaw
- تَوَلَّوْا۟
- वो मुँह मोड़ जाऐं
- fa-innamā
- فَإِنَّمَا
- तो बेशक
- ʿalayka
- عَلَيْكَ
- आप पर है
- l-balāghu
- ٱلْبَلَٰغُۗ
- पहुँचा देना
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- baṣīrun
- بَصِيرٌۢ
- ख़ूब देखने वाला है
- bil-ʿibādi
- بِٱلْعِبَادِ
- बन्दों को
अब यदि वे तुमसे झगड़े तो कह दो, 'मैंने और मेरे अनुयायियों ने तो अपने आपको अल्लाह के हवाले कर दिया हैं।' और जिन्हें किताब मिली थी और जिनके पास किताब नहीं है, उनसे कहो, 'क्या तुम भी इस्लाम को अपनाते हो?' यदि वे इस्लाम को अंगीकार कर लें तो सीधा मार्ग पर गए। और यदि मुँह मोड़े तो तुमपर केवल (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है। और अल्लाह स्वयं बन्दों को देख रहा है ([३] आले इमरान: 20)Tafseer (तफ़सीर )