۞ يَسْتَبْشِرُوْنَ بِنِعْمَةٍ مِّنَ اللّٰهِ وَفَضْلٍۗ وَاَنَّ اللّٰهَ لَا يُضِيْعُ اَجْرَ الْمُؤْمِنِيْنَ ࣖ ١٧١
- yastabshirūna
- يَسْتَبْشِرُونَ
- वो ख़ुश होते हैं
- biniʿ'matin
- بِنِعْمَةٍ
- नेअमत पर
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की तरफ़ से
- wafaḍlin
- وَفَضْلٍ
- और फ़ज़ल पर
- wa-anna
- وَأَنَّ
- और बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं वो ज़ाया करता
- yuḍīʿu
- يُضِيعُ
- नहीं वो ज़ाया करता
- ajra
- أَجْرَ
- अजर
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- ईमान वालों का
वे अल्लाह के अनुग्रह और उसकी उदार कृपा से प्रसन्न हो रहे है और इससे कि अल्लाह ईमानवालों का बदला नष्ट नहीं करता ([३] आले इमरान: 171)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَّذِيْنَ اسْتَجَابُوْا لِلّٰهِ وَالرَّسُوْلِ مِنْۢ بَعْدِ مَآ اَصَابَهُمُ الْقَرْحُ ۖ لِلَّذِيْنَ اَحْسَنُوْا مِنْهُمْ وَاتَّقَوْا اَجْرٌ عَظِيْمٌۚ ١٧٢
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- is'tajābū
- ٱسْتَجَابُوا۟
- हुक्म माना
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह का
- wal-rasūli
- وَٱلرَّسُولِ
- और रसूल का
- min
- مِنۢ
- बाद इसके
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद इसके
- mā
- مَآ
- जो
- aṣābahumu
- أَصَابَهُمُ
- पहुँचा उन्हें
- l-qarḥu
- ٱلْقَرْحُۚ
- ज़ख़्म
- lilladhīna
- لِلَّذِينَ
- उनके लिए जिन्होंने
- aḥsanū
- أَحْسَنُوا۟
- एहसान किया
- min'hum
- مِنْهُمْ
- उनमें से
- wa-ittaqaw
- وَٱتَّقَوْا۟
- और तक़वा किया
- ajrun
- أَجْرٌ
- अजर है
- ʿaẓīmun
- عَظِيمٌ
- बहुत बड़ा
जिन लोगों ने अल्लाह और रसूल की पुकार को स्वीकार किया, इसके पश्चात कि उन्हें आघात पहुँच चुका था। इन सत्कर्मी और (अल्लाह का) डर रखनेवालों के लिए बड़ा प्रतिदान है ([३] आले इमरान: 172)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَّذِيْنَ قَالَ لَهُمُ النَّاسُ اِنَّ النَّاسَ قَدْ جَمَعُوْا لَكُمْ فَاخْشَوْهُمْ فَزَادَهُمْ اِيْمَانًاۖ وَّقَالُوْا حَسْبُنَا اللّٰهُ وَنِعْمَ الْوَكِيْلُ ١٧٣
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- qāla
- قَالَ
- कहा
- lahumu
- لَهُمُ
- उन्हें
- l-nāsu
- ٱلنَّاسُ
- लोगों ने
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-nāsa
- ٱلنَّاسَ
- लोग
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- jamaʿū
- جَمَعُوا۟
- जमा हो गए हैं
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- fa-ikh'shawhum
- فَٱخْشَوْهُمْ
- पस डरो उनसे
- fazādahum
- فَزَادَهُمْ
- पस उसने बढ़ा दिया उन्हें
- īmānan
- إِيمَٰنًا
- ईमान में
- waqālū
- وَقَالُوا۟
- और उन्होंने कहा
- ḥasbunā
- حَسْبُنَا
- काफ़ी है हमें
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- waniʿ'ma
- وَنِعْمَ
- और कितना अच्छा है
- l-wakīlu
- ٱلْوَكِيلُ
- कारसाज़
ये वही लोग है जिनसे लोगों ने कहा, 'तुम्हारे विरुद्ध लोग इकट्ठा हो गए है, अतः उनसे डरो।' तो इस चीज़ ने उनके ईमान को और बढ़ा दिया। और उन्होंने कहा, 'हमारे लिए तो बस अल्लाह काफ़ी है और वही सबसे अच्छा कार्य-साधक है।' ([३] आले इमरान: 173)Tafseer (तफ़सीर )
فَانْقَلَبُوْا بِنِعْمَةٍ مِّنَ اللّٰهِ وَفَضْلٍ لَّمْ يَمْسَسْهُمْ سُوْۤءٌۙ وَّاتَّبَعُوْا رِضْوَانَ اللّٰهِ ۗ وَاللّٰهُ ذُوْ فَضْلٍ عَظِيْمٍ ١٧٤
- fa-inqalabū
- فَٱنقَلَبُوا۟
- पस वो पलट आए
- biniʿ'matin
- بِنِعْمَةٍ
- साथ नेअमत के
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की तरफ़ से
- wafaḍlin
- وَفَضْلٍ
- और फ़ज़ल के
- lam
- لَّمْ
- नहीं
- yamsashum
- يَمْسَسْهُمْ
- छुआ उन्हें
- sūon
- سُوٓءٌ
- किसी बुराई (तकलीफ़) ने
- wa-ittabaʿū
- وَٱتَّبَعُوا۟
- और उन्होंने पैरवी की
- riḍ'wāna
- رِضْوَٰنَ
- अल्लाह की रज़ा की
- l-lahi
- ٱللَّهِۗ
- अल्लाह की रज़ा की
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- dhū
- ذُو
- फ़ज़ल वाला है
- faḍlin
- فَضْلٍ
- फ़ज़ल वाला है
- ʿaẓīmin
- عَظِيمٍ
- बहुत बड़े
तो वे अल्लाह को ओर से प्राप्त होनेवाली नेमत और उदार कृपा के साथ लौटे। उन्हें कोई तकलीफ़ छू भी नहीं सकी और वे अल्लाह की इच्छा पर चले भी, और अल्लाह बड़ी ही उदार कृपावाला है ([३] आले इमरान: 174)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّمَا ذٰلِكُمُ الشَّيْطٰنُ يُخَوِّفُ اَوْلِيَاۤءَهٗۖ فَلَا تَخَافُوْهُمْ وَخَافُوْنِ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ١٧٥
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- dhālikumu
- ذَٰلِكُمُ
- ये
- l-shayṭānu
- ٱلشَّيْطَٰنُ
- शैतान है
- yukhawwifu
- يُخَوِّفُ
- जो डराता है
- awliyāahu
- أَوْلِيَآءَهُۥ
- अपने दोस्तों को
- falā
- فَلَا
- तो ना
- takhāfūhum
- تَخَافُوهُمْ
- तुम डरो उनसे
- wakhāfūni
- وَخَافُونِ
- और डरो मुझसे
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُم
- हो तुम
- mu'minīna
- مُّؤْمِنِينَ
- ईमान लाने वाले
वह तो शैतान है जो अपने मित्रों को डराता है। अतः तुम उनसे न डरो, बल्कि मुझी से डरो, यदि तुम ईमानवाले हो ([३] आले इमरान: 175)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا يَحْزُنْكَ الَّذِيْنَ يُسَارِعُوْنَ فِى الْكُفْرِۚ اِنَّهُمْ لَنْ يَّضُرُّوا اللّٰهَ شَيْـًٔا ۗ يُرِيْدُ اللّٰهُ اَلَّا يَجْعَلَ لَهُمْ حَظًّا فِى الْاٰخِرَةِ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيْمٌۚ ١٧٦
- walā
- وَلَا
- और ना
- yaḥzunka
- يَحْزُنكَ
- ग़मगीन करें आपको
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- yusāriʿūna
- يُسَٰرِعُونَ
- जल्दी करते हैं
- fī
- فِى
- कुफ़्र में
- l-kuf'ri
- ٱلْكُفْرِۚ
- कुफ़्र में
- innahum
- إِنَّهُمْ
- बेशक वो
- lan
- لَن
- हरगिज़ नहीं
- yaḍurrū
- يَضُرُّوا۟
- वो नुक़सान दे सकते
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह को
- shayan
- شَيْـًٔاۗ
- कुछ भी
- yurīdu
- يُرِيدُ
- चाहता है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- allā
- أَلَّا
- कि ना
- yajʿala
- يَجْعَلَ
- वो रखे
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- ḥaẓẓan
- حَظًّا
- कोई हिस्सा
- fī
- فِى
- आख़िरत में
- l-ākhirati
- ٱلْءَاخِرَةِۖ
- आख़िरत में
- walahum
- وَلَهُمْ
- और उनके लिए
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब है
- ʿaẓīmun
- عَظِيمٌ
- बहुत बड़ा
जो लोग अधर्म और इनकार में जल्दी दिखाते है, उनके कारण तुम दुखी न हो। वे अल्लाह का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। अल्लाह चाहता है कि उनके लिए आख़िरत में कोई हिस्सा न रखे, उनके लिए तो बड़ी यातना है ([३] आले इमरान: 176)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ اشْتَرَوُا الْكُفْرَ بِالْاِيْمَانِ لَنْ يَّضُرُّوا اللّٰهَ شَيْـًٔاۚ وَلَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ ١٧٧
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- ish'tarawū
- ٱشْتَرَوُا۟
- ख़रीद लिया
- l-kuf'ra
- ٱلْكُفْرَ
- कुफ़्र को
- bil-īmāni
- بِٱلْإِيمَٰنِ
- बदले ईमान के
- lan
- لَن
- हरगिज़ नहीं
- yaḍurrū
- يَضُرُّوا۟
- वो नुक़सान दे सकते
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह को
- shayan
- شَيْـًٔا
- कुछ भी
- walahum
- وَلَهُمْ
- और उनके लिए
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब है
- alīmun
- أَلِيمٌ
- दर्दनाक
जो लोग ईमान की क़ीमत पर इनकार और अधर्म के ग्राहक हुए, वे अल्लाह का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते, उनके लिए तो दुखद यातना है ([३] आले इमरान: 177)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا يَحْسَبَنَّ الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اَنَّمَا نُمْلِيْ لَهُمْ خَيْرٌ لِّاَنْفُسِهِمْ ۗ اِنَّمَا نُمْلِيْ لَهُمْ لِيَزْدَادُوْٓا اِثْمًا ۚ وَلَهُمْ عَذَابٌ مُّهِيْنٌ ١٧٨
- walā
- وَلَا
- और ना
- yaḥsabanna
- يَحْسَبَنَّ
- हरगिज़ गुमान करें
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوٓا۟
- कुफ़्र किया
- annamā
- أَنَّمَا
- बेशक जो
- num'lī
- نُمْلِى
- हम ढील दे रहे हैं
- lahum
- لَهُمْ
- उन्हें
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर है
- li-anfusihim
- لِّأَنفُسِهِمْۚ
- उनके नफ़्सों के लिए
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- num'lī
- نُمْلِى
- हम ढील दे रहे हैं
- lahum
- لَهُمْ
- उन्हें
- liyazdādū
- لِيَزْدَادُوٓا۟
- ताकि वो बढ़ जाऐं
- ith'man
- إِثْمًاۚ
- गुनाह में
- walahum
- وَلَهُمْ
- और उनके लिए
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब है
- muhīnun
- مُّهِينٌ
- रुस्वा करने वाला
और यह ढ़ील जो हम उन्हें दिए जाते है, इसे अधर्मी लोग अपने लिए अच्छा न समझे। यह ढील तो हम उन्हें सिर्फ़ इसलिए दे रहे है कि वे गुनाहों में और अधिक बढ़ जाएँ, और उनके लिए तो अत्यन्त अपमानजनक यातना है ([३] आले इमरान: 178)Tafseer (तफ़सीर )
مَا كَانَ اللّٰهُ لِيَذَرَ الْمُؤْمِنِيْنَ عَلٰى مَآ اَنْتُمْ عَلَيْهِ حَتّٰى يَمِيْزَ الْخَبِيْثَ مِنَ الطَّيِّبِ ۗ وَمَا كَانَ اللّٰهُ لِيُطْلِعَكُمْ عَلَى الْغَيْبِ وَلٰكِنَّ اللّٰهَ يَجْتَبِيْ مِنْ رُّسُلِهٖ مَنْ يَّشَاۤءُ ۖ فَاٰمِنُوْا بِاللّٰهِ وَرُسُلِهٖ ۚ وَاِنْ تُؤْمِنُوْا وَتَتَّقُوْا فَلَكُمْ اَجْرٌ عَظِيْمٌ ١٧٩
- mā
- مَّا
- नहीं
- kāna
- كَانَ
- है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- liyadhara
- لِيَذَرَ
- कि वो छोड़ दे
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिनों को
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर उसके
- mā
- مَآ
- जो हो
- antum
- أَنتُمْ
- तुम
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- जिस पर
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- yamīza
- يَمِيزَ
- वो छाँट दे
- l-khabītha
- ٱلْخَبِيثَ
- नापाक को
- mina
- مِنَ
- पाक से
- l-ṭayibi
- ٱلطَّيِّبِۗ
- पाक से
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- kāna
- كَانَ
- है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- liyuṭ'liʿakum
- لِيُطْلِعَكُمْ
- कि वो आगाह करे तुम्हें
- ʿalā
- عَلَى
- ग़ैब पर
- l-ghaybi
- ٱلْغَيْبِ
- ग़ैब पर
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yajtabī
- يَجْتَبِى
- चुन लेता है
- min
- مِن
- अपने रसूलों में से
- rusulihi
- رُّسُلِهِۦ
- अपने रसूलों में से
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُۖ
- वो चाहता है
- faāminū
- فَـَٔامِنُوا۟
- पस ईमान लाओ
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- warusulihi
- وَرُسُلِهِۦۚ
- और उसके रसूलों पर
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- tu'minū
- تُؤْمِنُوا۟
- तुम ईमान लाओगे
- watattaqū
- وَتَتَّقُوا۟
- और तुम तक़वा करोगे
- falakum
- فَلَكُمْ
- तो तुम्हारे लिए
- ajrun
- أَجْرٌ
- अजर है
- ʿaẓīmun
- عَظِيمٌ
- बहुत बड़ा
अल्लाह ईमानवालों को इस दशा में नहीं रहने देगा, जिसमें तुम हो। यह तो उस समय तक की बात है जबतक कि वह अपवित्र को पवित्र से पृथक नहीं कर देता। और अल्लाह ऐसा नहीं है कि वह तुम्हें परोक्ष की सूचना दे दे। किन्तु अल्लाह इस काम के लिए जिसको चाहता है चुन लेता है, और वे उसके रसूल होते है। अतः अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ। और यदि तुम ईमान लाओगे और (अल्लाह का) डर रखोगे तो तुमको बड़ा प्रतिदान मिलेगा ([३] आले इमरान: 179)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا يَحْسَبَنَّ الَّذِيْنَ يَبْخَلُوْنَ بِمَآ اٰتٰىهُمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖ هُوَ خَيْرًا لَّهُمْ ۗ بَلْ هُوَ شَرٌّ لَّهُمْ ۗ سَيُطَوَّقُوْنَ مَا بَخِلُوْا بِهٖ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ ۗ وَلِلّٰهِ مِيْرَاثُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِيْرٌ ࣖ ١٨٠
- walā
- وَلَا
- और ना
- yaḥsabanna
- يَحْسَبَنَّ
- हरगिज़ गुमान करें
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- yabkhalūna
- يَبْخَلُونَ
- बुख़्ल करते हैं
- bimā
- بِمَآ
- साथ उसके जो
- ātāhumu
- ءَاتَىٰهُمُ
- अता किया उन्हें
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- min
- مِن
- अपने फ़ज़ल से
- faḍlihi
- فَضْلِهِۦ
- अपने फ़ज़ल से
- huwa
- هُوَ
- वो
- khayran
- خَيْرًا
- बेहतर है
- lahum
- لَّهُمۖ
- उनके लिए
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- huwa
- هُوَ
- वो
- sharrun
- شَرٌّ
- बुरा है
- lahum
- لَّهُمْۖ
- उनके लिए
- sayuṭawwaqūna
- سَيُطَوَّقُونَ
- अनक़रीब वो तौक़ पहनाए जाऐंगे
- mā
- مَا
- उसका जो
- bakhilū
- بَخِلُوا۟
- उन्होंने बुख़्ल किया
- bihi
- بِهِۦ
- जिसका
- yawma
- يَوْمَ
- दिन
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِۗ
- क़यामत के
- walillahi
- وَلِلَّهِ
- और अल्लाह ही के लिए है
- mīrāthu
- مِيرَٰثُ
- मीरास
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों की
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِۗ
- और ज़मीन की
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- bimā
- بِمَا
- उससे जो
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते हो
- khabīrun
- خَبِيرٌ
- ख़ूब बाख़बर है
जो लोग उस चीज़ में कृपणता से काम लेते है, जो अल्लाह ने अपनी उदार कृपा से उन्हें प्रदान की है, वे यह न समझे कि यह उनके हित में अच्छा है, बल्कि यह उनके लिए बुरा है। जिस चीज़ में उन्होंने कृपणता से काम लिया होगा, वही आगे कियामत के दिन उनके गले का तौक़ बन जाएगा। और ये आकाश और धरती अंत में अल्लाह ही के लिए रह जाएँगे। तुम जो कुछ भी करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है ([३] आले इमरान: 180)Tafseer (तफ़सीर )