وَمَا كَانَ لِنَبِيٍّ اَنْ يَّغُلَّ ۗوَمَنْ يَّغْلُلْ يَأْتِ بِمَا غَلَّ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ ۚ ثُمَّ تُوَفّٰى كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُوْنَ ١٦١
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- kāna
- كَانَ
- है
- linabiyyin
- لِنَبِىٍّ
- किसी नबी के लिए
- an
- أَن
- कि
- yaghulla
- يَغُلَّۚ
- वो ख़यानत करे
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yaghlul
- يَغْلُلْ
- ख़यानत करेगा
- yati
- يَأْتِ
- वो ले आएगा
- bimā
- بِمَا
- उसको जो
- ghalla
- غَلَّ
- उसने ख़यानत की
- yawma
- يَوْمَ
- दिन
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِۚ
- क़यामत के
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- tuwaffā
- تُوَفَّىٰ
- पूरा पूरा दिया जाएगा
- kullu
- كُلُّ
- हर
- nafsin
- نَفْسٍ
- नफ़्स को
- mā
- مَّا
- जो
- kasabat
- كَسَبَتْ
- उसने कमाया
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- lā
- لَا
- ना वो ज़ुल्म किए जाऐंगे
- yuẓ'lamūna
- يُظْلَمُونَ
- ना वो ज़ुल्म किए जाऐंगे
यह किसी नबी के लिए सम्भब नहीं कि वह दिल में कीना-कपट रखे, और जो कोई कीना-कपट रखेगा तो वह क़ियामत के दिन अपने द्वेष समेत हाज़िर होगा। और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी कमाई का पूरा-पूरा बदला दे दिया जाएँगा और उनपर कुछ भी ज़ुल्म न होगा ([३] आले इमरान: 161)Tafseer (तफ़सीर )
اَفَمَنِ اتَّبَعَ رِضْوَانَ اللّٰهِ كَمَنْۢ بَاۤءَ بِسَخَطٍ مِّنَ اللّٰهِ وَمَأْوٰىهُ جَهَنَّمُ ۗ وَبِئْسَ الْمَصِيْرُ ١٦٢
- afamani
- أَفَمَنِ
- क्या भला वो जो
- ittabaʿa
- ٱتَّبَعَ
- पैरवी करे
- riḍ'wāna
- رِضْوَٰنَ
- अल्लाह की रज़ा की
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की रज़ा की
- kaman
- كَمَنۢ
- उसकी तरह हो सकता है जो
- bāa
- بَآءَ
- पलटे
- bisakhaṭin
- بِسَخَطٍ
- साथ नाराज़गी के
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की तरफ़ से
- wamawāhu
- وَمَأْوَىٰهُ
- और ठिकाना उसका
- jahannamu
- جَهَنَّمُۚ
- जहन्नम हो
- wabi'sa
- وَبِئْسَ
- और कितनी बुरी है
- l-maṣīru
- ٱلْمَصِيرُ
- लौटने की जगह
भला क्या जो व्यक्ति अल्लाह की इच्छा पर चले वह उस जैसा हो सकता है जो अल्लाह के प्रकोप का भागी हो चुका हो और जिसका ठिकाना जहन्नम है? और वह क्या ही बुरा ठिकाना है ([३] आले इमरान: 162)Tafseer (तफ़सीर )
هُمْ دَرَجٰتٌ عِنْدَ اللّٰهِ ۗ وَاللّٰهُ بَصِيْرٌ ۢبِمَا يَعْمَلُوْنَ ١٦٣
- hum
- هُمْ
- वो
- darajātun
- دَرَجَٰتٌ
- दर्जों में हैं (मुख़्तलिफ़)
- ʿinda
- عِندَ
- अल्लाह के नज़दीक
- l-lahi
- ٱللَّهِۗ
- अल्लाह के नज़दीक
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- baṣīrun
- بَصِيرٌۢ
- ख़ूब देखने वाला है
- bimā
- بِمَا
- उसको जो
- yaʿmalūna
- يَعْمَلُونَ
- वो अमल करते हैं
अल्लाह के यहाँ उनके विभिन्न दर्जे है और जो कुछ वे कर रहे है, अल्लाह की स्पष्ट में है ([३] आले इमरान: 163)Tafseer (तफ़सीर )
لَقَدْ مَنَّ اللّٰهُ عَلَى الْمُؤْمِنِيْنَ اِذْ بَعَثَ فِيْهِمْ رَسُوْلًا مِّنْ اَنْفُسِهِمْ يَتْلُوْا عَلَيْهِمْ اٰيٰتِهٖ وَيُزَكِّيْهِمْ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتٰبَ وَالْحِكْمَةَۚ وَاِنْ كَانُوْا مِنْ قَبْلُ لَفِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ ١٦٤
- laqad
- لَقَدْ
- अलबत्ता तहक़ीक़
- manna
- مَنَّ
- एहसान किया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- ʿalā
- عَلَى
- मोमिनों पर
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिनों पर
- idh
- إِذْ
- जब
- baʿatha
- بَعَثَ
- उसने भेजा
- fīhim
- فِيهِمْ
- उन्ही में
- rasūlan
- رَسُولًا
- एक रसूल
- min
- مِّنْ
- उनके नफ़्सों में से
- anfusihim
- أَنفُسِهِمْ
- उनके नफ़्सों में से
- yatlū
- يَتْلُوا۟
- वो तिलावत करता है
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- āyātihi
- ءَايَٰتِهِۦ
- आयात उसकी
- wayuzakkīhim
- وَيُزَكِّيهِمْ
- और वो पाक करता है उन्हें
- wayuʿallimuhumu
- وَيُعَلِّمُهُمُ
- और वो सिखाता है उन्हें
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- wal-ḥik'mata
- وَٱلْحِكْمَةَ
- और हिकमत
- wa-in
- وَإِن
- और बेशक
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- min
- مِن
- इससे पहले
- qablu
- قَبْلُ
- इससे पहले
- lafī
- لَفِى
- अलबत्ता गुमराही में
- ḍalālin
- ضَلَٰلٍ
- अलबत्ता गुमराही में
- mubīnin
- مُّبِينٍ
- खुली/वाज़ेह
निस्संदेह अल्लाह ने ईमानवालों पर बड़ा उपकार किया, जबकि स्वयं उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठाया जो उन्हें आयतें सुनाता है और उन्हें निखारता है, और उन्हें किताब और हिक़मत (तत्वदर्शिता) का शिक्षा देता है, अन्यथा इससे पहले वे लोग खुली गुमराही में पड़े हुए थे ([३] आले इमरान: 164)Tafseer (तफ़सीर )
اَوَلَمَّآ اَصَابَتْكُمْ مُّصِيْبَةٌ قَدْ اَصَبْتُمْ مِّثْلَيْهَاۙ قُلْتُمْ اَنّٰى هٰذَا ۗ قُلْ هُوَ مِنْ عِنْدِ اَنْفُسِكُمْ ۗ اِنَّ اللّٰهَ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرٌ ١٦٥
- awalammā
- أَوَلَمَّآ
- क्या भला जब
- aṣābatkum
- أَصَٰبَتْكُم
- पहुँची तुम्हें
- muṣībatun
- مُّصِيبَةٌ
- एक मुसीबत
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- aṣabtum
- أَصَبْتُم
- पहुँचाई तुमने
- mith'layhā
- مِّثْلَيْهَا
- उससे दोगुनी
- qul'tum
- قُلْتُمْ
- कहा तुमने
- annā
- أَنَّىٰ
- कहाँ से (आई)
- hādhā
- هَٰذَاۖ
- ये
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- huwa
- هُوَ
- वो
- min
- مِنْ
- तुम्हारे नफ़्सों की जानिब से है
- ʿindi
- عِندِ
- तुम्हारे नफ़्सों की जानिब से है
- anfusikum
- أَنفُسِكُمْۗ
- तुम्हारे नफ़्सों की जानिब से है
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर
- kulli
- كُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ के
- qadīrun
- قَدِيرٌ
- ख़ूब क़ुदरत रखने वाला है
यह क्या कि जब तुम्हें एक मुसीबत पहुँची, जिसकी दोगुनी तुमने पहुँचाए, तो तुम कहने लगे कि, 'यह कहाँ से आ गई?' कह दो, 'यह तो तुम्हारी अपनी ओर से है, अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।' ([३] आले इमरान: 165)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَآ اَصَابَكُمْ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعٰنِ فَبِاِذْنِ اللّٰهِ وَلِيَعْلَمَ الْمُؤْمِنِيْنَۙ ١٦٦
- wamā
- وَمَآ
- और जो कुछ
- aṣābakum
- أَصَٰبَكُمْ
- पहुँचा तुम्हें
- yawma
- يَوْمَ
- जिस दिन
- l-taqā
- ٱلْتَقَى
- आमने सामने हुईं
- l-jamʿāni
- ٱلْجَمْعَانِ
- दो जमाअतें
- fabi-idh'ni
- فَبِإِذْنِ
- पस अल्लाह के इज़्न से था
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- पस अल्लाह के इज़्न से था
- waliyaʿlama
- وَلِيَعْلَمَ
- और ताकि वो जान ले
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिनों को
और दोनों गिरोह की मुठभेड़ के दिन जो कुछ तुम्हारे सामने आया वह अल्लाह ही की अनुज्ञा से आया और इसलिए कि वह जान ले कि ईमानवाले कौन है ([३] आले इमरान: 166)Tafseer (तफ़सीर )
وَلِيَعْلَمَ الَّذِيْنَ نَافَقُوْا ۖوَقِيْلَ لَهُمْ تَعَالَوْا قَاتِلُوْا فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ اَوِ ادْفَعُوْا ۗ قَالُوْا لَوْ نَعْلَمُ قِتَالًا لَّاتَّبَعْنٰكُمْ ۗ هُمْ لِلْكُفْرِ يَوْمَىِٕذٍ اَقْرَبُ مِنْهُمْ لِلْاِيْمَانِ ۚ يَقُوْلُوْنَ بِاَفْوَاهِهِمْ مَّا لَيْسَ فِيْ قُلُوْبِهِمْ ۗ وَاللّٰهُ اَعْلَمُ بِمَا يَكْتُمُوْنَۚ ١٦٧
- waliyaʿlama
- وَلِيَعْلَمَ
- और ताकि वो जान ले
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनको जिन्होंने
- nāfaqū
- نَافَقُوا۟ۚ
- मुनाफ़िक़त की
- waqīla
- وَقِيلَ
- और कहा गया
- lahum
- لَهُمْ
- उन्हें
- taʿālaw
- تَعَالَوْا۟
- आओ
- qātilū
- قَٰتِلُوا۟
- जंग करो
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते में
- awi
- أَوِ
- या
- id'faʿū
- ٱدْفَعُوا۟ۖ
- दिफ़ा करो
- qālū
- قَالُوا۟
- उन्होंने कहा
- law
- لَوْ
- अगर
- naʿlamu
- نَعْلَمُ
- हम जानते होते
- qitālan
- قِتَالًا
- जंग करना
- la-ittabaʿnākum
- لَّٱتَّبَعْنَٰكُمْۗ
- ज़रूर पैरवी करते हम तुम्हारी
- hum
- هُمْ
- वो
- lil'kuf'ri
- لِلْكُفْرِ
- कुफ़्र के
- yawma-idhin
- يَوْمَئِذٍ
- उस दिन
- aqrabu
- أَقْرَبُ
- ज़्यादा क़रीब थे
- min'hum
- مِنْهُمْ
- उनसे
- lil'īmāni
- لِلْإِيمَٰنِۚ
- बनिस्बत ईमान के
- yaqūlūna
- يَقُولُونَ
- वो कह रहे थे
- bi-afwāhihim
- بِأَفْوَٰهِهِم
- अपने मुँहों से
- mā
- مَّا
- वो जो
- laysa
- لَيْسَ
- नहीं था
- fī
- فِى
- उनके दिलों में
- qulūbihim
- قُلُوبِهِمْۗ
- उनके दिलों में
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- aʿlamu
- أَعْلَمُ
- ज़्यादा जानता है
- bimā
- بِمَا
- उसको जो
- yaktumūna
- يَكْتُمُونَ
- वो छुपाते थे
और इसलिए कि वह कपटाचारियों को भी जान ले जिनसे कहा गया कि 'आओ, अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो या दुश्मनों को हटाओ।' उन्होंने कहा, 'यदि हम जानते कि लड़ाई होगी तो हम अवश्य तुम्हारे साथ हो लेते।' उस दिन वे ईमान की अपेक्षा अधर्म के अधिक निकट थे। वे अपने मुँह से वे बातें कहते है, जो उनके दिलों में नहीं होती। और जो कुछ वे छिपाते है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है ([३] आले इमरान: 167)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَّذِيْنَ قَالُوْا لِاِخْوَانِهِمْ وَقَعَدُوْا لَوْ اَطَاعُوْنَا مَا قُتِلُوْا ۗ قُلْ فَادْرَءُوْا عَنْ اَنْفُسِكُمُ الْمَوْتَ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ١٦٨
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- qālū
- قَالُوا۟
- कहा
- li-ikh'wānihim
- لِإِخْوَٰنِهِمْ
- अपने भाईंयों को
- waqaʿadū
- وَقَعَدُوا۟
- और वो ख़ुद बैठ गए
- law
- لَوْ
- अगर
- aṭāʿūnā
- أَطَاعُونَا
- वो इताअत करते हमारी
- mā
- مَا
- ना
- qutilū
- قُتِلُوا۟ۗ
- वो क़त्ल किए जाते
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- fa-id'raū
- فَٱدْرَءُوا۟
- पस दूर करो
- ʿan
- عَنْ
- अपने नफ़्सों से
- anfusikumu
- أَنفُسِكُمُ
- अपने नफ़्सों से
- l-mawta
- ٱلْمَوْتَ
- मौत को
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- ṣādiqīna
- صَٰدِقِينَ
- सच्चे
ये वही लोग है जो स्वयं तो बैठे रहे और अपने भाइयों के विषय में कहने लगे, 'यदि वे हमारी बात मान लेते तो मारे न जाते।' कह तो, 'अच्छा, यदि तुम सच्चे हो, तो अब तुम अपने ऊपर से मृत्यु को टाल देना।' ([३] आले इमरान: 168)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا تَحْسَبَنَّ الَّذِيْنَ قُتِلُوْا فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ اَمْوَاتًا ۗ بَلْ اَحْيَاۤءٌ عِنْدَ رَبِّهِمْ يُرْزَقُوْنَۙ ١٦٩
- walā
- وَلَا
- और ना
- taḥsabanna
- تَحْسَبَنَّ
- आप हरगिज़ गुमान करें
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनको जो
- qutilū
- قُتِلُوا۟
- क़त्ल कर दिए गए
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते में
- amwātan
- أَمْوَٰتًۢاۚ
- मुर्दे
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- aḥyāon
- أَحْيَآءٌ
- ज़िन्दा हैं
- ʿinda
- عِندَ
- पास
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- अपने रब के
- yur'zaqūna
- يُرْزَقُونَ
- वो रिज़्क दिए जाते हैं
तुम उन लोगों को जो अल्लाह के मार्ग में मारे गए है, मुर्दा न समझो, बल्कि वे अपने रब के पास जीवित हैं, रोज़ी पा रहे हैं ([३] आले इमरान: 169)Tafseer (तफ़सीर )
فَرِحِيْنَ بِمَآ اٰتٰىهُمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖۙ وَيَسْتَبْشِرُوْنَ بِالَّذِيْنَ لَمْ يَلْحَقُوْا بِهِمْ مِّنْ خَلْفِهِمْ ۙ اَلَّا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُوْنَۘ ١٧٠
- fariḥīna
- فَرِحِينَ
- ख़ुश हैं
- bimā
- بِمَآ
- उस पर जो
- ātāhumu
- ءَاتَىٰهُمُ
- अता किया उन्हें
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- min
- مِن
- अपने फ़ज़ल से
- faḍlihi
- فَضْلِهِۦ
- अपने फ़ज़ल से
- wayastabshirūna
- وَيَسْتَبْشِرُونَ
- और वो ख़ुश होते हैं
- bi-alladhīna
- بِٱلَّذِينَ
- उनके बारे में
- lam
- لَمْ
- नहीं
- yalḥaqū
- يَلْحَقُوا۟
- वो मिले
- bihim
- بِهِم
- उन्हें
- min
- مِّنْ
- उनके पीछे से
- khalfihim
- خَلْفِهِمْ
- उनके पीछे से
- allā
- أَلَّا
- कि ना
- khawfun
- خَوْفٌ
- कोई ख़ौफ़ होगा
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- walā
- وَلَا
- और ना
- hum
- هُمْ
- वो
- yaḥzanūna
- يَحْزَنُونَ
- वो ग़मगीन होंगे
अल्लाह ने अपनी उदार कृपा से जो कुछ उन्हें प्रदान किया है, वे उसपर बहुत प्रसन्न है और उन लोगों के लिए भी ख़ुश हो रहे है जो उनके पीछे रह गए है, अभी उनसे मिले नहीं है कि उन्हें भी न कोई भय होगा और न वे दुखी होंगे ([३] आले इमरान: 170)Tafseer (तफ़सीर )