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सूरा आले इमरान - Page: 17

Ali 'Imran

(इमरान का घराना)

१६१

وَمَا كَانَ لِنَبِيٍّ اَنْ يَّغُلَّ ۗوَمَنْ يَّغْلُلْ يَأْتِ بِمَا غَلَّ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ ۚ ثُمَّ تُوَفّٰى كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُوْنَ ١٦١

wamā
وَمَا
और नहीं
kāna
كَانَ
है
linabiyyin
لِنَبِىٍّ
किसी नबी के लिए
an
أَن
कि
yaghulla
يَغُلَّۚ
वो ख़यानत करे
waman
وَمَن
और जो कोई
yaghlul
يَغْلُلْ
ख़यानत करेगा
yati
يَأْتِ
वो ले आएगा
bimā
بِمَا
उसको जो
ghalla
غَلَّ
उसने ख़यानत की
yawma
يَوْمَ
दिन
l-qiyāmati
ٱلْقِيَٰمَةِۚ
क़यामत के
thumma
ثُمَّ
फिर
tuwaffā
تُوَفَّىٰ
पूरा पूरा दिया जाएगा
kullu
كُلُّ
हर
nafsin
نَفْسٍ
नफ़्स को
مَّا
जो
kasabat
كَسَبَتْ
उसने कमाया
wahum
وَهُمْ
और वो
لَا
ना वो ज़ुल्म किए जाऐंगे
yuẓ'lamūna
يُظْلَمُونَ
ना वो ज़ुल्म किए जाऐंगे
यह किसी नबी के लिए सम्भब नहीं कि वह दिल में कीना-कपट रखे, और जो कोई कीना-कपट रखेगा तो वह क़ियामत के दिन अपने द्वेष समेत हाज़िर होगा। और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी कमाई का पूरा-पूरा बदला दे दिया जाएँगा और उनपर कुछ भी ज़ुल्म न होगा ([३] आले इमरान: 161)
Tafseer (तफ़सीर )
१६२

اَفَمَنِ اتَّبَعَ رِضْوَانَ اللّٰهِ كَمَنْۢ بَاۤءَ بِسَخَطٍ مِّنَ اللّٰهِ وَمَأْوٰىهُ جَهَنَّمُ ۗ وَبِئْسَ الْمَصِيْرُ ١٦٢

afamani
أَفَمَنِ
क्या भला वो जो
ittabaʿa
ٱتَّبَعَ
पैरवी करे
riḍ'wāna
رِضْوَٰنَ
अल्लाह की रज़ा की
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की रज़ा की
kaman
كَمَنۢ
उसकी तरह हो सकता है जो
bāa
بَآءَ
पलटे
bisakhaṭin
بِسَخَطٍ
साथ नाराज़गी के
mina
مِّنَ
अल्लाह की तरफ़ से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की तरफ़ से
wamawāhu
وَمَأْوَىٰهُ
और ठिकाना उसका
jahannamu
جَهَنَّمُۚ
जहन्नम हो
wabi'sa
وَبِئْسَ
और कितनी बुरी है
l-maṣīru
ٱلْمَصِيرُ
लौटने की जगह
भला क्या जो व्यक्ति अल्लाह की इच्छा पर चले वह उस जैसा हो सकता है जो अल्लाह के प्रकोप का भागी हो चुका हो और जिसका ठिकाना जहन्नम है? और वह क्या ही बुरा ठिकाना है ([३] आले इमरान: 162)
Tafseer (तफ़सीर )
१६३

هُمْ دَرَجٰتٌ عِنْدَ اللّٰهِ ۗ وَاللّٰهُ بَصِيْرٌ ۢبِمَا يَعْمَلُوْنَ ١٦٣

hum
هُمْ
वो
darajātun
دَرَجَٰتٌ
दर्जों में हैं (मुख़्तलिफ़)
ʿinda
عِندَ
अल्लाह के नज़दीक
l-lahi
ٱللَّهِۗ
अल्लाह के नज़दीक
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
baṣīrun
بَصِيرٌۢ
ख़ूब देखने वाला है
bimā
بِمَا
उसको जो
yaʿmalūna
يَعْمَلُونَ
वो अमल करते हैं
अल्लाह के यहाँ उनके विभिन्न दर्जे है और जो कुछ वे कर रहे है, अल्लाह की स्पष्ट में है ([३] आले इमरान: 163)
Tafseer (तफ़सीर )
१६४

لَقَدْ مَنَّ اللّٰهُ عَلَى الْمُؤْمِنِيْنَ اِذْ بَعَثَ فِيْهِمْ رَسُوْلًا مِّنْ اَنْفُسِهِمْ يَتْلُوْا عَلَيْهِمْ اٰيٰتِهٖ وَيُزَكِّيْهِمْ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتٰبَ وَالْحِكْمَةَۚ وَاِنْ كَانُوْا مِنْ قَبْلُ لَفِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ ١٦٤

laqad
لَقَدْ
अलबत्ता तहक़ीक़
manna
مَنَّ
एहसान किया
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
ʿalā
عَلَى
मोमिनों पर
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों पर
idh
إِذْ
जब
baʿatha
بَعَثَ
उसने भेजा
fīhim
فِيهِمْ
उन्ही में
rasūlan
رَسُولًا
एक रसूल
min
مِّنْ
उनके नफ़्सों में से
anfusihim
أَنفُسِهِمْ
उनके नफ़्सों में से
yatlū
يَتْلُوا۟
वो तिलावत करता है
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
āyātihi
ءَايَٰتِهِۦ
आयात उसकी
wayuzakkīhim
وَيُزَكِّيهِمْ
और वो पाक करता है उन्हें
wayuʿallimuhumu
وَيُعَلِّمُهُمُ
और वो सिखाता है उन्हें
l-kitāba
ٱلْكِتَٰبَ
किताब
wal-ḥik'mata
وَٱلْحِكْمَةَ
और हिकमत
wa-in
وَإِن
और बेशक
kānū
كَانُوا۟
थे वो
min
مِن
इससे पहले
qablu
قَبْلُ
इससे पहले
lafī
لَفِى
अलबत्ता गुमराही में
ḍalālin
ضَلَٰلٍ
अलबत्ता गुमराही में
mubīnin
مُّبِينٍ
खुली/वाज़ेह
निस्संदेह अल्लाह ने ईमानवालों पर बड़ा उपकार किया, जबकि स्वयं उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठाया जो उन्हें आयतें सुनाता है और उन्हें निखारता है, और उन्हें किताब और हिक़मत (तत्वदर्शिता) का शिक्षा देता है, अन्यथा इससे पहले वे लोग खुली गुमराही में पड़े हुए थे ([३] आले इमरान: 164)
Tafseer (तफ़सीर )
१६५

اَوَلَمَّآ اَصَابَتْكُمْ مُّصِيْبَةٌ قَدْ اَصَبْتُمْ مِّثْلَيْهَاۙ قُلْتُمْ اَنّٰى هٰذَا ۗ قُلْ هُوَ مِنْ عِنْدِ اَنْفُسِكُمْ ۗ اِنَّ اللّٰهَ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرٌ ١٦٥

awalammā
أَوَلَمَّآ
क्या भला जब
aṣābatkum
أَصَٰبَتْكُم
पहुँची तुम्हें
muṣībatun
مُّصِيبَةٌ
एक मुसीबत
qad
قَدْ
तहक़ीक़
aṣabtum
أَصَبْتُم
पहुँचाई तुमने
mith'layhā
مِّثْلَيْهَا
उससे दोगुनी
qul'tum
قُلْتُمْ
कहा तुमने
annā
أَنَّىٰ
कहाँ से (आई)
hādhā
هَٰذَاۖ
ये
qul
قُلْ
कह दीजिए
huwa
هُوَ
वो
min
مِنْ
तुम्हारे नफ़्सों की जानिब से है
ʿindi
عِندِ
तुम्हारे नफ़्सों की जानिब से है
anfusikum
أَنفُسِكُمْۗ
तुम्हारे नफ़्सों की जानिब से है
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
ʿalā
عَلَىٰ
ऊपर
kulli
كُلِّ
हर
shayin
شَىْءٍ
चीज़ के
qadīrun
قَدِيرٌ
ख़ूब क़ुदरत रखने वाला है
यह क्या कि जब तुम्हें एक मुसीबत पहुँची, जिसकी दोगुनी तुमने पहुँचाए, तो तुम कहने लगे कि, 'यह कहाँ से आ गई?' कह दो, 'यह तो तुम्हारी अपनी ओर से है, अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।' ([३] आले इमरान: 165)
Tafseer (तफ़सीर )
१६६

وَمَآ اَصَابَكُمْ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعٰنِ فَبِاِذْنِ اللّٰهِ وَلِيَعْلَمَ الْمُؤْمِنِيْنَۙ ١٦٦

wamā
وَمَآ
और जो कुछ
aṣābakum
أَصَٰبَكُمْ
पहुँचा तुम्हें
yawma
يَوْمَ
जिस दिन
l-taqā
ٱلْتَقَى
आमने सामने हुईं
l-jamʿāni
ٱلْجَمْعَانِ
दो जमाअतें
fabi-idh'ni
فَبِإِذْنِ
पस अल्लाह के इज़्न से था
l-lahi
ٱللَّهِ
पस अल्लाह के इज़्न से था
waliyaʿlama
وَلِيَعْلَمَ
और ताकि वो जान ले
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों को
और दोनों गिरोह की मुठभेड़ के दिन जो कुछ तुम्हारे सामने आया वह अल्लाह ही की अनुज्ञा से आया और इसलिए कि वह जान ले कि ईमानवाले कौन है ([३] आले इमरान: 166)
Tafseer (तफ़सीर )
१६७

وَلِيَعْلَمَ الَّذِيْنَ نَافَقُوْا ۖوَقِيْلَ لَهُمْ تَعَالَوْا قَاتِلُوْا فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ اَوِ ادْفَعُوْا ۗ قَالُوْا لَوْ نَعْلَمُ قِتَالًا لَّاتَّبَعْنٰكُمْ ۗ هُمْ لِلْكُفْرِ يَوْمَىِٕذٍ اَقْرَبُ مِنْهُمْ لِلْاِيْمَانِ ۚ يَقُوْلُوْنَ بِاَفْوَاهِهِمْ مَّا لَيْسَ فِيْ قُلُوْبِهِمْ ۗ وَاللّٰهُ اَعْلَمُ بِمَا يَكْتُمُوْنَۚ ١٦٧

waliyaʿlama
وَلِيَعْلَمَ
और ताकि वो जान ले
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनको जिन्होंने
nāfaqū
نَافَقُوا۟ۚ
मुनाफ़िक़त की
waqīla
وَقِيلَ
और कहा गया
lahum
لَهُمْ
उन्हें
taʿālaw
تَعَالَوْا۟
आओ
qātilū
قَٰتِلُوا۟
जंग करो
فِى
अल्लाह के रास्ते में
sabīli
سَبِيلِ
अल्लाह के रास्ते में
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के रास्ते में
awi
أَوِ
या
id'faʿū
ٱدْفَعُوا۟ۖ
दिफ़ा करो
qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
law
لَوْ
अगर
naʿlamu
نَعْلَمُ
हम जानते होते
qitālan
قِتَالًا
जंग करना
la-ittabaʿnākum
لَّٱتَّبَعْنَٰكُمْۗ
ज़रूर पैरवी करते हम तुम्हारी
hum
هُمْ
वो
lil'kuf'ri
لِلْكُفْرِ
कुफ़्र के
yawma-idhin
يَوْمَئِذٍ
उस दिन
aqrabu
أَقْرَبُ
ज़्यादा क़रीब थे
min'hum
مِنْهُمْ
उनसे
lil'īmāni
لِلْإِيمَٰنِۚ
बनिस्बत ईमान के
yaqūlūna
يَقُولُونَ
वो कह रहे थे
bi-afwāhihim
بِأَفْوَٰهِهِم
अपने मुँहों से
مَّا
वो जो
laysa
لَيْسَ
नहीं था
فِى
उनके दिलों में
qulūbihim
قُلُوبِهِمْۗ
उनके दिलों में
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
aʿlamu
أَعْلَمُ
ज़्यादा जानता है
bimā
بِمَا
उसको जो
yaktumūna
يَكْتُمُونَ
वो छुपाते थे
और इसलिए कि वह कपटाचारियों को भी जान ले जिनसे कहा गया कि 'आओ, अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो या दुश्मनों को हटाओ।' उन्होंने कहा, 'यदि हम जानते कि लड़ाई होगी तो हम अवश्य तुम्हारे साथ हो लेते।' उस दिन वे ईमान की अपेक्षा अधर्म के अधिक निकट थे। वे अपने मुँह से वे बातें कहते है, जो उनके दिलों में नहीं होती। और जो कुछ वे छिपाते है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है ([३] आले इमरान: 167)
Tafseer (तफ़सीर )
१६८

اَلَّذِيْنَ قَالُوْا لِاِخْوَانِهِمْ وَقَعَدُوْا لَوْ اَطَاعُوْنَا مَا قُتِلُوْا ۗ قُلْ فَادْرَءُوْا عَنْ اَنْفُسِكُمُ الْمَوْتَ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ١٦٨

alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
qālū
قَالُوا۟
कहा
li-ikh'wānihim
لِإِخْوَٰنِهِمْ
अपने भाईंयों को
waqaʿadū
وَقَعَدُوا۟
और वो ख़ुद बैठ गए
law
لَوْ
अगर
aṭāʿūnā
أَطَاعُونَا
वो इताअत करते हमारी
مَا
ना
qutilū
قُتِلُوا۟ۗ
वो क़त्ल किए जाते
qul
قُلْ
कह दीजिए
fa-id'raū
فَٱدْرَءُوا۟
पस दूर करो
ʿan
عَنْ
अपने नफ़्सों से
anfusikumu
أَنفُسِكُمُ
अपने नफ़्सों से
l-mawta
ٱلْمَوْتَ
मौत को
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
ṣādiqīna
صَٰدِقِينَ
सच्चे
ये वही लोग है जो स्वयं तो बैठे रहे और अपने भाइयों के विषय में कहने लगे, 'यदि वे हमारी बात मान लेते तो मारे न जाते।' कह तो, 'अच्छा, यदि तुम सच्चे हो, तो अब तुम अपने ऊपर से मृत्यु को टाल देना।' ([३] आले इमरान: 168)
Tafseer (तफ़सीर )
१६९

وَلَا تَحْسَبَنَّ الَّذِيْنَ قُتِلُوْا فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ اَمْوَاتًا ۗ بَلْ اَحْيَاۤءٌ عِنْدَ رَبِّهِمْ يُرْزَقُوْنَۙ ١٦٩

walā
وَلَا
और ना
taḥsabanna
تَحْسَبَنَّ
आप हरगिज़ गुमान करें
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनको जो
qutilū
قُتِلُوا۟
क़त्ल कर दिए गए
فِى
अल्लाह के रास्ते में
sabīli
سَبِيلِ
अल्लाह के रास्ते में
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के रास्ते में
amwātan
أَمْوَٰتًۢاۚ
मुर्दे
bal
بَلْ
बल्कि
aḥyāon
أَحْيَآءٌ
ज़िन्दा हैं
ʿinda
عِندَ
पास
rabbihim
رَبِّهِمْ
अपने रब के
yur'zaqūna
يُرْزَقُونَ
वो रिज़्क दिए जाते हैं
तुम उन लोगों को जो अल्लाह के मार्ग में मारे गए है, मुर्दा न समझो, बल्कि वे अपने रब के पास जीवित हैं, रोज़ी पा रहे हैं ([३] आले इमरान: 169)
Tafseer (तफ़सीर )
१७०

فَرِحِيْنَ بِمَآ اٰتٰىهُمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖۙ وَيَسْتَبْشِرُوْنَ بِالَّذِيْنَ لَمْ يَلْحَقُوْا بِهِمْ مِّنْ خَلْفِهِمْ ۙ اَلَّا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُوْنَۘ ١٧٠

fariḥīna
فَرِحِينَ
ख़ुश हैं
bimā
بِمَآ
उस पर जो
ātāhumu
ءَاتَىٰهُمُ
अता किया उन्हें
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
min
مِن
अपने फ़ज़ल से
faḍlihi
فَضْلِهِۦ
अपने फ़ज़ल से
wayastabshirūna
وَيَسْتَبْشِرُونَ
और वो ख़ुश होते हैं
bi-alladhīna
بِٱلَّذِينَ
उनके बारे में
lam
لَمْ
नहीं
yalḥaqū
يَلْحَقُوا۟
वो मिले
bihim
بِهِم
उन्हें
min
مِّنْ
उनके पीछे से
khalfihim
خَلْفِهِمْ
उनके पीछे से
allā
أَلَّا
कि ना
khawfun
خَوْفٌ
कोई ख़ौफ़ होगा
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
walā
وَلَا
और ना
hum
هُمْ
वो
yaḥzanūna
يَحْزَنُونَ
वो ग़मगीन होंगे
अल्लाह ने अपनी उदार कृपा से जो कुछ उन्हें प्रदान किया है, वे उसपर बहुत प्रसन्न है और उन लोगों के लिए भी ख़ुश हो रहे है जो उनके पीछे रह गए है, अभी उनसे मिले नहीं है कि उन्हें भी न कोई भय होगा और न वे दुखी होंगे ([३] आले इमरान: 170)
Tafseer (तफ़सीर )