سَنُلْقِيْ فِيْ قُلُوْبِ الَّذِيْنَ كَفَرُوا الرُّعْبَ بِمَٓا اَشْرَكُوْا بِاللّٰهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهٖ سُلْطٰنًا ۚ وَمَأْوٰىهُمُ النَّارُ ۗ وَبِئْسَ مَثْوَى الظّٰلِمِيْنَ ١٥١
- sanul'qī
- سَنُلْقِى
- अनक़रीब हम डाल देंगे
- fī
- فِى
- दिलों में
- qulūbi
- قُلُوبِ
- दिलों में
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनके जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- l-ruʿ'ba
- ٱلرُّعْبَ
- रौब को
- bimā
- بِمَآ
- बवजह उसके जो
- ashrakū
- أَشْرَكُوا۟
- उन्होंने शरीक ठहराया
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- साथ अल्लाह के
- mā
- مَا
- उसको जो
- lam
- لَمْ
- नहीं
- yunazzil
- يُنَزِّلْ
- उसने नाज़िल की
- bihi
- بِهِۦ
- जिसकी
- sul'ṭānan
- سُلْطَٰنًاۖ
- कोई दलील
- wamawāhumu
- وَمَأْوَىٰهُمُ
- और ठिकाना उनका
- l-nāru
- ٱلنَّارُۚ
- आग है
- wabi'sa
- وَبِئْسَ
- और कितना बुरा है
- mathwā
- مَثْوَى
- ठिकाना
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- ज़ालिमों का
हम शीघ्र ही इनकार करनेवालों के दिलों में धाक बिठा देंगे, इसलिए कि उन्होंने ऐसी चीज़ो को अल्लाह का साक्षी ठहराया है जिनसे साथ उसने कोई सनद नहीं उतारी, और उनका ठिकाना आग (जहन्नम) है। और अत्याचारियों का क्या ही बुरा ठिकाना है ([३] आले इमरान: 151)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ صَدَقَكُمُ اللّٰهُ وَعْدَهٗٓ اِذْ تَحُسُّوْنَهُمْ بِاِذْنِهٖ ۚ حَتّٰىٓ اِذَا فَشِلْتُمْ وَتَنَازَعْتُمْ فِى الْاَمْرِ وَعَصَيْتُمْ مِّنْۢ بَعْدِ مَآ اَرٰىكُمْ مَّا تُحِبُّوْنَ ۗ مِنْكُمْ مَّنْ يُّرِيْدُ الدُّنْيَا وَمِنْكُمْ مَّنْ يُّرِيْدُ الْاٰخِرَةَ ۚ ثُمَّ صَرَفَكُمْ عَنْهُمْ لِيَبْتَلِيَكُمْ ۚ وَلَقَدْ عَفَا عَنْكُمْ ۗ وَاللّٰهُ ذُوْ فَضْلٍ عَلَى الْمُؤْمِنِيْنَ ١٥٢
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- ṣadaqakumu
- صَدَقَكُمُ
- सच्चा कर दिखाया तुमसे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- waʿdahu
- وَعْدَهُۥٓ
- वादा अपना
- idh
- إِذْ
- जब
- taḥussūnahum
- تَحُسُّونَهُم
- तुम क़त्ल कर रहे थे उन्हें
- bi-idh'nihi
- بِإِذْنِهِۦۖ
- उसके इज़्न से
- ḥattā
- حَتَّىٰٓ
- यहाँ तक कि
- idhā
- إِذَا
- जब
- fashil'tum
- فَشِلْتُمْ
- बुज़दिली दिखाई तुमने
- watanāzaʿtum
- وَتَنَٰزَعْتُمْ
- और झगड़ा किया तुमने
- fī
- فِى
- हुक्म के बारे में (रसूल के)
- l-amri
- ٱلْأَمْرِ
- हुक्म के बारे में (रसूल के)
- waʿaṣaytum
- وَعَصَيْتُم
- और नाफ़रमानी की तुमने
- min
- مِّنۢ
- बाद उसके
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद उसके
- mā
- مَآ
- जो
- arākum
- أَرَىٰكُم
- उसने दिखाया तुम्हें
- mā
- مَّا
- वो जो
- tuḥibbūna
- تُحِبُّونَۚ
- तुम पसंद करते हो
- minkum
- مِنكُم
- तुम में से कोई है
- man
- مَّن
- जो
- yurīdu
- يُرِيدُ
- चाहता है
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया को
- waminkum
- وَمِنكُم
- और तुम में से कोई है
- man
- مَّن
- जो
- yurīdu
- يُرِيدُ
- चाहता है
- l-ākhirata
- ٱلْءَاخِرَةَۚ
- आख़िरत को
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- ṣarafakum
- صَرَفَكُمْ
- उसने फेर दिया तुम्हें
- ʿanhum
- عَنْهُمْ
- उनसे
- liyabtaliyakum
- لِيَبْتَلِيَكُمْۖ
- ताकि वो आज़माए तुम्हें
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- ʿafā
- عَفَا
- उसने दरगुज़र किया
- ʿankum
- عَنكُمْۗ
- तुमसे
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- dhū
- ذُو
- फ़ज़ल वाला है
- faḍlin
- فَضْلٍ
- फ़ज़ल वाला है
- ʿalā
- عَلَى
- मोमिनों पर
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिनों पर
और अल्लाह ने तो तुम्हें अपना वादा सच्चा कर दिखाया, जबकि तुम उसकी अनुज्ञा से उन्हें क़त्ल कर रहे थे। यहाँ तक कि जब तुम स्वयं ढीले पड़ गए और काम में झगड़ा डाल दिया और अवज्ञा की, जबकि अल्लाह ने तुम्हें वह चीज़ दिखा दी थी जिसकी तुम्हें चाह थी। तुममें कुछ लोग दुनिया चाहते थे और कुछ आख़िरत के इच्छुक थे। फिर अल्लाह ने तुम्हें उनके मुक़ाबले से हटा दिया, ताकि वह तुम्हारी परीक्षा ले। फिर भी उसने तुम्हें क्षमा कर दिया, क्योंकि अल्लाह ईमानवालों के लिए बड़ा अनुग्राही है ([३] आले इमरान: 152)Tafseer (तफ़सीर )
۞ اِذْ تُصْعِدُوْنَ وَلَا تَلْوٗنَ عَلٰٓى اَحَدٍ وَّالرَّسُوْلُ يَدْعُوْكُمْ فِيْٓ اُخْرٰىكُمْ فَاَثَابَكُمْ غَمًّا ۢبِغَمٍّ لِّكَيْلَا تَحْزَنُوْا عَلٰى مَا فَاتَكُمْ وَلَا مَآ اَصَابَكُمْ ۗ وَاللّٰهُ خَبِيْرٌ ۢبِمَا تَعْمَلُوْنَ ١٥٣
- idh
- إِذْ
- जब
- tuṣ'ʿidūna
- تُصْعِدُونَ
- तुम चढ़े जा रहे थे
- walā
- وَلَا
- और ना
- talwūna
- تَلْوُۥنَ
- तुम मुड़कर देखते थे
- ʿalā
- عَلَىٰٓ
- किसी एक को
- aḥadin
- أَحَدٍ
- किसी एक को
- wal-rasūlu
- وَٱلرَّسُولُ
- और रसूल
- yadʿūkum
- يَدْعُوكُمْ
- बुला रहे थे तुम्हें
- fī
- فِىٓ
- तुम्हारे पीछे से
- ukh'rākum
- أُخْرَىٰكُمْ
- तुम्हारे पीछे से
- fa-athābakum
- فَأَثَٰبَكُمْ
- तो उसने दिया तुम्हें
- ghamman
- غَمًّۢا
- ग़म
- bighammin
- بِغَمٍّ
- साथ ग़म के
- likaylā
- لِّكَيْلَا
- ताकि ना
- taḥzanū
- تَحْزَنُوا۟
- तुम रंज करो
- ʿalā
- عَلَىٰ
- उस पर
- mā
- مَا
- जो
- fātakum
- فَاتَكُمْ
- छिन गया तुम से
- walā
- وَلَا
- और ना
- mā
- مَآ
- जो
- aṣābakum
- أَصَٰبَكُمْۗ
- पहुँचा तुम्हें
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- khabīrun
- خَبِيرٌۢ
- ख़ूब ख़बर रखने वाला है
- bimā
- بِمَا
- उसकी जो
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते हो
जब तुम लोग दूर भागे चले जा रहे थे और किसी को मुड़कर देखते तक न थे और रसूल तुम्हें पुकार रहा था, जबकि वह तुम्हारी दूसरी टुकड़ी के साथ था (जो भागी नहीं), तो अल्लाह ने तुम्हें शोक पर शोक दिया, ताकि तुम्हारे हाथ से कोई चीज़ निकल जाए या तुमपर कोई मुसीबत आए तो तुम शोकाकुल न हो। और जो कुछ भी तुम करते हो, अल्लाह उसकी भली-भाँति ख़बर रखता है ([३] आले इमरान: 153)Tafseer (तफ़सीर )
ثُمَّ اَنْزَلَ عَلَيْكُمْ مِّنْۢ بَعْدِ الْغَمِّ اَمَنَةً نُّعَاسًا يَّغْشٰى طَۤاىِٕفَةً مِّنْكُمْ ۙ وَطَۤاىِٕفَةٌ قَدْ اَهَمَّتْهُمْ اَنْفُسُهُمْ يَظُنُّوْنَ بِاللّٰهِ غَيْرَ الْحَقِّ ظَنَّ الْجَاهِلِيَّةِ ۗ يَقُوْلُوْنَ هَلْ لَّنَا مِنَ الْاَمْرِ مِنْ شَيْءٍ ۗ قُلْ اِنَّ الْاَمْرَ كُلَّهٗ لِلّٰهِ ۗ يُخْفُوْنَ فِيْٓ اَنْفُسِهِمْ مَّا لَا يُبْدُوْنَ لَكَ ۗ يَقُوْلُوْنَ لَوْ كَانَ لَنَا مِنَ الْاَمْرِ شَيْءٌ مَّا قُتِلْنَا هٰهُنَا ۗ قُلْ لَّوْ كُنْتُمْ فِيْ بُيُوْتِكُمْ لَبَرَزَ الَّذِيْنَ كُتِبَ عَلَيْهِمُ الْقَتْلُ اِلٰى مَضَاجِعِهِمْ ۚ وَلِيَبْتَلِيَ اللّٰهُ مَا فِيْ صُدُوْرِكُمْ وَلِيُمَحِّصَ مَا فِيْ قُلُوْبِكُمْ ۗ وَاللّٰهُ عَلِيْمٌ ۢبِذَاتِ الصُّدُوْرِ ١٥٤
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- anzala
- أَنزَلَ
- उसने उतारा
- ʿalaykum
- عَلَيْكُم
- तुम पर
- min
- مِّنۢ
- बाद
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद
- l-ghami
- ٱلْغَمِّ
- ग़म के
- amanatan
- أَمَنَةً
- अमन
- nuʿāsan
- نُّعَاسًا
- एक ऊँघ
- yaghshā
- يَغْشَىٰ
- ढाँप लिया उसने
- ṭāifatan
- طَآئِفَةً
- एक गिरोह को
- minkum
- مِّنكُمْۖ
- तुम में से
- waṭāifatun
- وَطَآئِفَةٌ
- और एक गिरोह
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- ahammathum
- أَهَمَّتْهُمْ
- फ़िक्र में डाला उन्हें
- anfusuhum
- أَنفُسُهُمْ
- उनके नफ़्सों ने
- yaẓunnūna
- يَظُنُّونَ
- वो गुमान कर रहे थे
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह के बारे में
- ghayra
- غَيْرَ
- नाहक़
- l-ḥaqi
- ٱلْحَقِّ
- नाहक़
- ẓanna
- ظَنَّ
- गुमान करना
- l-jāhiliyati
- ٱلْجَٰهِلِيَّةِۖ
- जाहिलियत का
- yaqūlūna
- يَقُولُونَ
- वो कह रहे थे
- hal
- هَل
- क्या है
- lanā
- لَّنَا
- हमारे लिए
- mina
- مِنَ
- मामले में से
- l-amri
- ٱلْأَمْرِ
- मामले में से
- min
- مِن
- कोई चीज़
- shayin
- شَىْءٍۗ
- कोई चीज़
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-amra
- ٱلْأَمْرَ
- मामला
- kullahu
- كُلَّهُۥ
- सब का सब
- lillahi
- لِلَّهِۗ
- अल्लाह ही के लिए है
- yukh'fūna
- يُخْفُونَ
- वो छुपा रहे थे
- fī
- فِىٓ
- अपने नफ़्सों में
- anfusihim
- أَنفُسِهِم
- अपने नफ़्सों में
- mā
- مَّا
- जो
- lā
- لَا
- नहीं वो ज़ाहिर कर रहे थे
- yub'dūna
- يُبْدُونَ
- नहीं वो ज़ाहिर कर रहे थे
- laka
- لَكَۖ
- आपके लिए
- yaqūlūna
- يَقُولُونَ
- वो कह रहे थे
- law
- لَوْ
- अगर
- kāna
- كَانَ
- होता
- lanā
- لَنَا
- हमारे लिए
- mina
- مِنَ
- मामले में से
- l-amri
- ٱلْأَمْرِ
- मामले में से
- shayon
- شَىْءٌ
- कुछ भी
- mā
- مَّا
- ना
- qutil'nā
- قُتِلْنَا
- क़त्ल किए जाते हम
- hāhunā
- هَٰهُنَاۗ
- उस जगह
- qul
- قُل
- कह दीजिए
- law
- لَّوْ
- अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- होते तुम
- fī
- فِى
- अपने घरों में
- buyūtikum
- بُيُوتِكُمْ
- अपने घरों में
- labaraza
- لَبَرَزَ
- अलबत्ता निकल पड़ते
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- kutiba
- كُتِبَ
- लिख दिया गया था
- ʿalayhimu
- عَلَيْهِمُ
- जिन पर
- l-qatlu
- ٱلْقَتْلُ
- क़त्ल होना
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़
- maḍājiʿihim
- مَضَاجِعِهِمْۖ
- अपने (सोने) मौत के मक़ामात के
- waliyabtaliya
- وَلِيَبْتَلِىَ
- और ताकि आज़मा ले
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- mā
- مَا
- उसको जो
- fī
- فِى
- तुम्हारे सीनों में है
- ṣudūrikum
- صُدُورِكُمْ
- तुम्हारे सीनों में है
- waliyumaḥḥiṣa
- وَلِيُمَحِّصَ
- और ताकि वो ख़ालिस कर दे
- mā
- مَا
- उसको जो
- fī
- فِى
- तुम्हारे दिलों में है
- qulūbikum
- قُلُوبِكُمْۗ
- तुम्हारे दिलों में है
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ʿalīmun
- عَلِيمٌۢ
- ख़ूब जानने वाला है
- bidhāti
- بِذَاتِ
- सीनों वाले (भेद)
- l-ṣudūri
- ٱلصُّدُورِ
- सीनों वाले (भेद)
फिर इस शोक के पश्चात उसने तुमपर एक शान्ति उतारी - एक निद्रा, जो तुममें से कुछ लोगों को घेर रही थी और कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें अपने प्राणों की चिन्ता थी। वे अल्लाह के विषय में ऐसा ख़याल कर रहे थे, जो सत्य के सर्वथा प्रतिकूल, अज्ञान (काल) का ख़याल था। वे कहते थे, 'इन मामलों में क्या हमारा भी कुछ अधिकार है?' कह दो, 'मामले तो सबके सब अल्लाह के (हाथ में) हैं।' वे जो कुछ अपने दिलों में छिपाए रखते है, तुमपर ज़ाहिर नहीं करते। कहते है, 'यदि इस मामले में हमारा भी कुछ अधिकार होता तो हम यहाँ मारे न जाते।' कह दो, 'यदि तुम अपने घरों में भी होते, तो भी जिन लोगों का क़त्ल होना तय था, वे निकलकर अपने अन्तिम शयन-स्थलों कर पहुँचकर रहते।' और यह इसलिए भी था कि जो कुछ तुम्हारे सीनों में है, अल्लाह उसे परख ले और जो कुछ तुम्हारे दिलों में है उसे साफ़ कर दे। और अल्लाह दिलों का हाल भली-भाँति जानता है ([३] आले इमरान: 154)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ تَوَلَّوْا مِنْكُمْ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعٰنِۙ اِنَّمَا اسْتَزَلَّهُمُ الشَّيْطٰنُ بِبَعْضِ مَا كَسَبُوْا ۚ وَلَقَدْ عَفَا اللّٰهُ عَنْهُمْ ۗ اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ حَلِيْمٌ ࣖ ١٥٥
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- tawallaw
- تَوَلَّوْا۟
- फिर गए
- minkum
- مِنكُمْ
- तुम में से
- yawma
- يَوْمَ
- जिस दिन
- l-taqā
- ٱلْتَقَى
- आमने सामने हुईं
- l-jamʿāni
- ٱلْجَمْعَانِ
- दो जमाअतें
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- is'tazallahumu
- ٱسْتَزَلَّهُمُ
- फुसलाया था उन्हें
- l-shayṭānu
- ٱلشَّيْطَٰنُ
- शैतान ने
- bibaʿḍi
- بِبَعْضِ
- बवजह बाज़ (आमाल) के
- mā
- مَا
- जो
- kasabū
- كَسَبُوا۟ۖ
- उन्होंने कमाए
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- ʿafā
- عَفَا
- दरगुज़र किया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- ʿanhum
- عَنْهُمْۗ
- उनसे
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- ghafūrun
- غَفُورٌ
- बहुत बख़्शने वाला है
- ḥalīmun
- حَلِيمٌ
- बहुत बुर्दबार है
तुममें से जो लोग दोनों गिरोहों की मुठभेड़ के दिन पीठ दिखा गए, उन्हें तो शैतान ही ने उनकी कुछ कमाई (कर्म) का कारण विचलित कर दिया था। और अल्लाह तो उन्हें क्षमा कर चुका है। निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमा करनेवाला, सहनशील है ([३] आले इमरान: 155)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَكُوْنُوْا كَالَّذِيْنَ كَفَرُوْا وَقَالُوْا لِاِخْوَانِهِمْ اِذَا ضَرَبُوْا فِى الْاَرْضِ اَوْ كَانُوْا غُزًّى لَّوْ كَانُوْا عِنْدَنَا مَا مَاتُوْا وَمَا قُتِلُوْاۚ لِيَجْعَلَ اللّٰهُ ذٰلِكَ حَسْرَةً فِيْ قُلُوْبِهِمْ ۗ وَاللّٰهُ يُحْيٖ وَيُمِيْتُ ۗ وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ بَصِيْرٌ ١٥٦
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- lā
- لَا
- ना तुम हो जाओ
- takūnū
- تَكُونُوا۟
- ना तुम हो जाओ
- ka-alladhīna
- كَٱلَّذِينَ
- उनकी तरह
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- जिन्होंने कुफ़्र किया
- waqālū
- وَقَالُوا۟
- और उन्होंने कहा
- li-ikh'wānihim
- لِإِخْوَٰنِهِمْ
- अपने भाईंयों को
- idhā
- إِذَا
- जब
- ḍarabū
- ضَرَبُوا۟
- वो चले फिरे
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- aw
- أَوْ
- या
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- ghuzzan
- غُزًّى
- ग़ाज़ी/लड़ने वाले
- law
- لَّوْ
- अगर
- kānū
- كَانُوا۟
- होते वो
- ʿindanā
- عِندَنَا
- पास हमारे
- mā
- مَا
- ना
- mātū
- مَاتُوا۟
- वो मरते
- wamā
- وَمَا
- और ना
- qutilū
- قُتِلُوا۟
- वो क़त्ल किए जाते
- liyajʿala
- لِيَجْعَلَ
- ताकि बना दे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- उसको
- ḥasratan
- حَسْرَةً
- हसरत का सबब
- fī
- فِى
- उनके दिलों में
- qulūbihim
- قُلُوبِهِمْۗ
- उनके दिलों में
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yuḥ'yī
- يُحْىِۦ
- ज़िन्दा करता है
- wayumītu
- وَيُمِيتُۗ
- और वो मौत देता है
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- bimā
- بِمَا
- उसे जो
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते हो
- baṣīrun
- بَصِيرٌ
- ख़ूब देखने वाला है
ऐ ईमान लानेवालो! उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने इनकार किया और अपने भाईयों के विषय में, जबकि वे सफ़र में गए हों या युद्ध में हो (और उनकी वहाँ मृत्यु हो जाए तो) कहते है, 'यदि वे हमारे पास होते तो न मरते और न क़त्ल होते।' (ऐसी बातें तो इसलिए होती है) ताकि अल्लाह उनको उनके दिलों में घर करनेवाला पछतावा और सन्ताप बना दे। अल्लाह ही जीवन प्रदान करने और मृत्यु देनेवाला है। और तुम जो कुछ भी कर रहे हो वह अल्लाह की स्पष्ट में है ([३] आले इमरान: 156)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَىِٕنْ قُتِلْتُمْ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ اَوْ مُتُّمْ لَمَغْفِرَةٌ مِّنَ اللّٰهِ وَرَحْمَةٌ خَيْرٌ مِّمَّا يَجْمَعُوْنَ ١٥٧
- wala-in
- وَلَئِن
- और अलबत्ता अगर
- qutil'tum
- قُتِلْتُمْ
- क़त्ल किए जाओ तुम
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते में
- aw
- أَوْ
- या
- muttum
- مُتُّمْ
- मर जाओ तुम
- lamaghfiratun
- لَمَغْفِرَةٌ
- अलबत्ता बख़्शिश
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की तरफ़ से
- waraḥmatun
- وَرَحْمَةٌ
- और रहमत
- khayrun
- خَيْرٌ
- बहुत बेहतर है
- mimmā
- مِّمَّا
- उससे जो
- yajmaʿūna
- يَجْمَعُونَ
- वो जमा कर रहे हैं
और यदि तुम अल्लाह के मार्ग में मारे गए या मर गए, तो अल्लाह का क्षमादान और उसकी दयालुता तो उससे कहीं उत्तम है, जिसके बटोरने में वे लगे हुए है ([३] आले इमरान: 157)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَىِٕنْ مُّتُّمْ اَوْ قُتِلْتُمْ لَاِلَى اللّٰهِ تُحْشَرُوْنَ ١٥٨
- wala-in
- وَلَئِن
- और अलबत्ता अगर
- muttum
- مُّتُّمْ
- मर जाओ तुम
- aw
- أَوْ
- या
- qutil'tum
- قُتِلْتُمْ
- क़त्ल किए जाओ तुम
- la-ilā
- لَإِلَى
- अलबत्ता तरफ़
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- tuḥ'sharūna
- تُحْشَرُونَ
- तुम इकट्ठे किए जाओगे
हाँ, यदि तुम मर गए या मारे गए, तो प्रत्येक दशा में तुम अल्लाह ही के पास इकट्ठा किए जाओगे ([३] आले इमरान: 158)Tafseer (तफ़सीर )
فَبِمَا رَحْمَةٍ مِّنَ اللّٰهِ لِنْتَ لَهُمْ ۚ وَلَوْ كُنْتَ فَظًّا غَلِيْظَ الْقَلْبِ لَانْفَضُّوْا مِنْ حَوْلِكَ ۖ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمْ وَشَاوِرْهُمْ فِى الْاَمْرِۚ فَاِذَا عَزَمْتَ فَتَوَكَّلْ عَلَى اللّٰهِ ۗ اِنَّ اللّٰهَ يُحِبُّ الْمُتَوَكِّلِيْنَ ١٥٩
- fabimā
- فَبِمَا
- फिर बवजह
- raḥmatin
- رَحْمَةٍ
- रहमत के
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की तरफ़ से
- linta
- لِنتَ
- नर्म हो गए आप
- lahum
- لَهُمْۖ
- उनके लिए
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- kunta
- كُنتَ
- होते आप
- faẓẓan
- فَظًّا
- तुन्दख़ू
- ghalīẓa
- غَلِيظَ
- सख़्त
- l-qalbi
- ٱلْقَلْبِ
- दिल
- la-infaḍḍū
- لَٱنفَضُّوا۟
- अलबत्ता वो मुन्तशिर हो जाते
- min
- مِنْ
- आपके आस पास से
- ḥawlika
- حَوْلِكَۖ
- आपके आस पास से
- fa-uʿ'fu
- فَٱعْفُ
- पस दरगुज़र कीजिए
- ʿanhum
- عَنْهُمْ
- उनसे
- wa-is'taghfir
- وَٱسْتَغْفِرْ
- और बख़्शिश माँगिए
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- washāwir'hum
- وَشَاوِرْهُمْ
- और मशवरा कीजिए उनसे
- fī
- فِى
- मामले में
- l-amri
- ٱلْأَمْرِۖ
- मामले में
- fa-idhā
- فَإِذَا
- फिर जब
- ʿazamta
- عَزَمْتَ
- पुख़्ता इरादा करें आप
- fatawakkal
- فَتَوَكَّلْ
- तो तवक्कल कीजिए
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِۚ
- अल्लाह पर
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yuḥibbu
- يُحِبُّ
- मोहब्बत रखता है
- l-mutawakilīna
- ٱلْمُتَوَكِّلِينَ
- तवक्कल करने वालों से
(तुमने तो अपनी दयालुता से उन्हें क्षमा कर दिया) तो अल्लाह की ओर से ही बड़ी दयालुता है जिसके कारण तुम उनके लिए नर्म रहे हो, यदि कहीं तुम स्वभाव के क्रूर और कठोर हृदय होते तो ये सब तुम्हारे पास से छँट जाते। अतः उन्हें क्षमा कर दो और उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो। और मामलों में उनसे परामर्श कर लिया करो। फिर जब तुम्हारे संकल्प किसी सम्मति पर सुदृढ़ हो जाएँ तो अल्लाह पर भरोसा करो। निस्संदेह अल्लाह को वे लोग प्रिय है जो उसपर भरोसा करते है ([३] आले इमरान: 159)Tafseer (तफ़सीर )
اِنْ يَّنْصُرْكُمُ اللّٰهُ فَلَا غَالِبَ لَكُمْ ۚ وَاِنْ يَّخْذُلْكُمْ فَمَنْ ذَا الَّذِيْ يَنْصُرُكُمْ مِّنْۢ بَعْدِهٖ ۗ وَعَلَى اللّٰهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُوْنَ ١٦٠
- in
- إِن
- अगर
- yanṣur'kumu
- يَنصُرْكُمُ
- मदद करे तुम्हारी
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- falā
- فَلَا
- तो नहीं
- ghāliba
- غَالِبَ
- कोई ग़ालिब आने वाला
- lakum
- لَكُمْۖ
- तुम पर
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- yakhdhul'kum
- يَخْذُلْكُمْ
- वो छोड़ दे तुम्हें
- faman
- فَمَن
- तो कौन है
- dhā
- ذَا
- वो जो
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो जो
- yanṣurukum
- يَنصُرُكُم
- मदद करेगा तुम्हारी
- min
- مِّنۢ
- बाद उसके
- baʿdihi
- بَعْدِهِۦۗ
- बाद उसके
- waʿalā
- وَعَلَى
- और अल्लाह ही पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- और अल्लाह ही पर
- falyatawakkali
- فَلْيَتَوَكَّلِ
- पस चाहिए कि तवक्कल किया करें
- l-mu'minūna
- ٱلْمُؤْمِنُونَ
- ईमान वाले
यदि अल्लाह तुम्हारी सहायता करे, तो कोई तुमपर प्रभावी नहीं हो सकता। और यदि वह तुम्हें छोड़ दे, तो फिर कौन हो जो उसके पश्चात तुम्हारी सहायता कर सके। अतः ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिए ([३] आले इमरान: 160)Tafseer (तफ़सीर )