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सूरा आले इमरान - Page: 16

Ali 'Imran

(इमरान का घराना)

१५१

سَنُلْقِيْ فِيْ قُلُوْبِ الَّذِيْنَ كَفَرُوا الرُّعْبَ بِمَٓا اَشْرَكُوْا بِاللّٰهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهٖ سُلْطٰنًا ۚ وَمَأْوٰىهُمُ النَّارُ ۗ وَبِئْسَ مَثْوَى الظّٰلِمِيْنَ ١٥١

sanul'qī
سَنُلْقِى
अनक़रीब हम डाल देंगे
فِى
दिलों में
qulūbi
قُلُوبِ
दिलों में
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनके जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
l-ruʿ'ba
ٱلرُّعْبَ
रौब को
bimā
بِمَآ
बवजह उसके जो
ashrakū
أَشْرَكُوا۟
उन्होंने शरीक ठहराया
bil-lahi
بِٱللَّهِ
साथ अल्लाह के
مَا
उसको जो
lam
لَمْ
नहीं
yunazzil
يُنَزِّلْ
उसने नाज़िल की
bihi
بِهِۦ
जिसकी
sul'ṭānan
سُلْطَٰنًاۖ
कोई दलील
wamawāhumu
وَمَأْوَىٰهُمُ
और ठिकाना उनका
l-nāru
ٱلنَّارُۚ
आग है
wabi'sa
وَبِئْسَ
और कितना बुरा है
mathwā
مَثْوَى
ठिकाना
l-ẓālimīna
ٱلظَّٰلِمِينَ
ज़ालिमों का
हम शीघ्र ही इनकार करनेवालों के दिलों में धाक बिठा देंगे, इसलिए कि उन्होंने ऐसी चीज़ो को अल्लाह का साक्षी ठहराया है जिनसे साथ उसने कोई सनद नहीं उतारी, और उनका ठिकाना आग (जहन्नम) है। और अत्याचारियों का क्या ही बुरा ठिकाना है ([३] आले इमरान: 151)
Tafseer (तफ़सीर )
१५२

وَلَقَدْ صَدَقَكُمُ اللّٰهُ وَعْدَهٗٓ اِذْ تَحُسُّوْنَهُمْ بِاِذْنِهٖ ۚ حَتّٰىٓ اِذَا فَشِلْتُمْ وَتَنَازَعْتُمْ فِى الْاَمْرِ وَعَصَيْتُمْ مِّنْۢ بَعْدِ مَآ اَرٰىكُمْ مَّا تُحِبُّوْنَ ۗ مِنْكُمْ مَّنْ يُّرِيْدُ الدُّنْيَا وَمِنْكُمْ مَّنْ يُّرِيْدُ الْاٰخِرَةَ ۚ ثُمَّ صَرَفَكُمْ عَنْهُمْ لِيَبْتَلِيَكُمْ ۚ وَلَقَدْ عَفَا عَنْكُمْ ۗ وَاللّٰهُ ذُوْ فَضْلٍ عَلَى الْمُؤْمِنِيْنَ ١٥٢

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
ṣadaqakumu
صَدَقَكُمُ
सच्चा कर दिखाया तुमसे
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
waʿdahu
وَعْدَهُۥٓ
वादा अपना
idh
إِذْ
जब
taḥussūnahum
تَحُسُّونَهُم
तुम क़त्ल कर रहे थे उन्हें
bi-idh'nihi
بِإِذْنِهِۦۖ
उसके इज़्न से
ḥattā
حَتَّىٰٓ
यहाँ तक कि
idhā
إِذَا
जब
fashil'tum
فَشِلْتُمْ
बुज़दिली दिखाई तुमने
watanāzaʿtum
وَتَنَٰزَعْتُمْ
और झगड़ा किया तुमने
فِى
हुक्म के बारे में (रसूल के)
l-amri
ٱلْأَمْرِ
हुक्म के बारे में (रसूल के)
waʿaṣaytum
وَعَصَيْتُم
और नाफ़रमानी की तुमने
min
مِّنۢ
बाद उसके
baʿdi
بَعْدِ
बाद उसके
مَآ
जो
arākum
أَرَىٰكُم
उसने दिखाया तुम्हें
مَّا
वो जो
tuḥibbūna
تُحِبُّونَۚ
तुम पसंद करते हो
minkum
مِنكُم
तुम में से कोई है
man
مَّن
जो
yurīdu
يُرِيدُ
चाहता है
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَا
दुनिया को
waminkum
وَمِنكُم
और तुम में से कोई है
man
مَّن
जो
yurīdu
يُرِيدُ
चाहता है
l-ākhirata
ٱلْءَاخِرَةَۚ
आख़िरत को
thumma
ثُمَّ
फिर
ṣarafakum
صَرَفَكُمْ
उसने फेर दिया तुम्हें
ʿanhum
عَنْهُمْ
उनसे
liyabtaliyakum
لِيَبْتَلِيَكُمْۖ
ताकि वो आज़माए तुम्हें
walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
ʿafā
عَفَا
उसने दरगुज़र किया
ʿankum
عَنكُمْۗ
तुमसे
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
dhū
ذُو
फ़ज़ल वाला है
faḍlin
فَضْلٍ
फ़ज़ल वाला है
ʿalā
عَلَى
मोमिनों पर
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों पर
और अल्लाह ने तो तुम्हें अपना वादा सच्चा कर दिखाया, जबकि तुम उसकी अनुज्ञा से उन्हें क़त्ल कर रहे थे। यहाँ तक कि जब तुम स्वयं ढीले पड़ गए और काम में झगड़ा डाल दिया और अवज्ञा की, जबकि अल्लाह ने तुम्हें वह चीज़ दिखा दी थी जिसकी तुम्हें चाह थी। तुममें कुछ लोग दुनिया चाहते थे और कुछ आख़िरत के इच्छुक थे। फिर अल्लाह ने तुम्हें उनके मुक़ाबले से हटा दिया, ताकि वह तुम्हारी परीक्षा ले। फिर भी उसने तुम्हें क्षमा कर दिया, क्योंकि अल्लाह ईमानवालों के लिए बड़ा अनुग्राही है ([३] आले इमरान: 152)
Tafseer (तफ़सीर )
१५३

۞ اِذْ تُصْعِدُوْنَ وَلَا تَلْوٗنَ عَلٰٓى اَحَدٍ وَّالرَّسُوْلُ يَدْعُوْكُمْ فِيْٓ اُخْرٰىكُمْ فَاَثَابَكُمْ غَمًّا ۢبِغَمٍّ لِّكَيْلَا تَحْزَنُوْا عَلٰى مَا فَاتَكُمْ وَلَا مَآ اَصَابَكُمْ ۗ وَاللّٰهُ خَبِيْرٌ ۢبِمَا تَعْمَلُوْنَ ١٥٣

idh
إِذْ
जब
tuṣ'ʿidūna
تُصْعِدُونَ
तुम चढ़े जा रहे थे
walā
وَلَا
और ना
talwūna
تَلْوُۥنَ
तुम मुड़कर देखते थे
ʿalā
عَلَىٰٓ
किसी एक को
aḥadin
أَحَدٍ
किसी एक को
wal-rasūlu
وَٱلرَّسُولُ
और रसूल
yadʿūkum
يَدْعُوكُمْ
बुला रहे थे तुम्हें
فِىٓ
तुम्हारे पीछे से
ukh'rākum
أُخْرَىٰكُمْ
तुम्हारे पीछे से
fa-athābakum
فَأَثَٰبَكُمْ
तो उसने दिया तुम्हें
ghamman
غَمًّۢا
ग़म
bighammin
بِغَمٍّ
साथ ग़म के
likaylā
لِّكَيْلَا
ताकि ना
taḥzanū
تَحْزَنُوا۟
तुम रंज करो
ʿalā
عَلَىٰ
उस पर
مَا
जो
fātakum
فَاتَكُمْ
छिन गया तुम से
walā
وَلَا
और ना
مَآ
जो
aṣābakum
أَصَٰبَكُمْۗ
पहुँचा तुम्हें
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
khabīrun
خَبِيرٌۢ
ख़ूब ख़बर रखने वाला है
bimā
بِمَا
उसकी जो
taʿmalūna
تَعْمَلُونَ
तुम अमल करते हो
जब तुम लोग दूर भागे चले जा रहे थे और किसी को मुड़कर देखते तक न थे और रसूल तुम्हें पुकार रहा था, जबकि वह तुम्हारी दूसरी टुकड़ी के साथ था (जो भागी नहीं), तो अल्लाह ने तुम्हें शोक पर शोक दिया, ताकि तुम्हारे हाथ से कोई चीज़ निकल जाए या तुमपर कोई मुसीबत आए तो तुम शोकाकुल न हो। और जो कुछ भी तुम करते हो, अल्लाह उसकी भली-भाँति ख़बर रखता है ([३] आले इमरान: 153)
Tafseer (तफ़सीर )
१५४

ثُمَّ اَنْزَلَ عَلَيْكُمْ مِّنْۢ بَعْدِ الْغَمِّ اَمَنَةً نُّعَاسًا يَّغْشٰى طَۤاىِٕفَةً مِّنْكُمْ ۙ وَطَۤاىِٕفَةٌ قَدْ اَهَمَّتْهُمْ اَنْفُسُهُمْ يَظُنُّوْنَ بِاللّٰهِ غَيْرَ الْحَقِّ ظَنَّ الْجَاهِلِيَّةِ ۗ يَقُوْلُوْنَ هَلْ لَّنَا مِنَ الْاَمْرِ مِنْ شَيْءٍ ۗ قُلْ اِنَّ الْاَمْرَ كُلَّهٗ لِلّٰهِ ۗ يُخْفُوْنَ فِيْٓ اَنْفُسِهِمْ مَّا لَا يُبْدُوْنَ لَكَ ۗ يَقُوْلُوْنَ لَوْ كَانَ لَنَا مِنَ الْاَمْرِ شَيْءٌ مَّا قُتِلْنَا هٰهُنَا ۗ قُلْ لَّوْ كُنْتُمْ فِيْ بُيُوْتِكُمْ لَبَرَزَ الَّذِيْنَ كُتِبَ عَلَيْهِمُ الْقَتْلُ اِلٰى مَضَاجِعِهِمْ ۚ وَلِيَبْتَلِيَ اللّٰهُ مَا فِيْ صُدُوْرِكُمْ وَلِيُمَحِّصَ مَا فِيْ قُلُوْبِكُمْ ۗ وَاللّٰهُ عَلِيْمٌ ۢبِذَاتِ الصُّدُوْرِ ١٥٤

thumma
ثُمَّ
फिर
anzala
أَنزَلَ
उसने उतारा
ʿalaykum
عَلَيْكُم
तुम पर
min
مِّنۢ
बाद
baʿdi
بَعْدِ
बाद
l-ghami
ٱلْغَمِّ
ग़म के
amanatan
أَمَنَةً
अमन
nuʿāsan
نُّعَاسًا
एक ऊँघ
yaghshā
يَغْشَىٰ
ढाँप लिया उसने
ṭāifatan
طَآئِفَةً
एक गिरोह को
minkum
مِّنكُمْۖ
तुम में से
waṭāifatun
وَطَآئِفَةٌ
और एक गिरोह
qad
قَدْ
तहक़ीक़
ahammathum
أَهَمَّتْهُمْ
फ़िक्र में डाला उन्हें
anfusuhum
أَنفُسُهُمْ
उनके नफ़्सों ने
yaẓunnūna
يَظُنُّونَ
वो गुमान कर रहे थे
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह के बारे में
ghayra
غَيْرَ
नाहक़
l-ḥaqi
ٱلْحَقِّ
नाहक़
ẓanna
ظَنَّ
गुमान करना
l-jāhiliyati
ٱلْجَٰهِلِيَّةِۖ
जाहिलियत का
yaqūlūna
يَقُولُونَ
वो कह रहे थे
hal
هَل
क्या है
lanā
لَّنَا
हमारे लिए
mina
مِنَ
मामले में से
l-amri
ٱلْأَمْرِ
मामले में से
min
مِن
कोई चीज़
shayin
شَىْءٍۗ
कोई चीज़
qul
قُلْ
कह दीजिए
inna
إِنَّ
बेशक
l-amra
ٱلْأَمْرَ
मामला
kullahu
كُلَّهُۥ
सब का सब
lillahi
لِلَّهِۗ
अल्लाह ही के लिए है
yukh'fūna
يُخْفُونَ
वो छुपा रहे थे
فِىٓ
अपने नफ़्सों में
anfusihim
أَنفُسِهِم
अपने नफ़्सों में
مَّا
जो
لَا
नहीं वो ज़ाहिर कर रहे थे
yub'dūna
يُبْدُونَ
नहीं वो ज़ाहिर कर रहे थे
laka
لَكَۖ
आपके लिए
yaqūlūna
يَقُولُونَ
वो कह रहे थे
law
لَوْ
अगर
kāna
كَانَ
होता
lanā
لَنَا
हमारे लिए
mina
مِنَ
मामले में से
l-amri
ٱلْأَمْرِ
मामले में से
shayon
شَىْءٌ
कुछ भी
مَّا
ना
qutil'nā
قُتِلْنَا
क़त्ल किए जाते हम
hāhunā
هَٰهُنَاۗ
उस जगह
qul
قُل
कह दीजिए
law
لَّوْ
अगर
kuntum
كُنتُمْ
होते तुम
فِى
अपने घरों में
buyūtikum
بُيُوتِكُمْ
अपने घरों में
labaraza
لَبَرَزَ
अलबत्ता निकल पड़ते
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जो
kutiba
كُتِبَ
लिख दिया गया था
ʿalayhimu
عَلَيْهِمُ
जिन पर
l-qatlu
ٱلْقَتْلُ
क़त्ल होना
ilā
إِلَىٰ
तरफ़
maḍājiʿihim
مَضَاجِعِهِمْۖ
अपने (सोने) मौत के मक़ामात के
waliyabtaliya
وَلِيَبْتَلِىَ
और ताकि आज़मा ले
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
مَا
उसको जो
فِى
तुम्हारे सीनों में है
ṣudūrikum
صُدُورِكُمْ
तुम्हारे सीनों में है
waliyumaḥḥiṣa
وَلِيُمَحِّصَ
और ताकि वो ख़ालिस कर दे
مَا
उसको जो
فِى
तुम्हारे दिलों में है
qulūbikum
قُلُوبِكُمْۗ
तुम्हारे दिलों में है
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
ʿalīmun
عَلِيمٌۢ
ख़ूब जानने वाला है
bidhāti
بِذَاتِ
सीनों वाले (भेद)
l-ṣudūri
ٱلصُّدُورِ
सीनों वाले (भेद)
फिर इस शोक के पश्चात उसने तुमपर एक शान्ति उतारी - एक निद्रा, जो तुममें से कुछ लोगों को घेर रही थी और कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें अपने प्राणों की चिन्ता थी। वे अल्लाह के विषय में ऐसा ख़याल कर रहे थे, जो सत्य के सर्वथा प्रतिकूल, अज्ञान (काल) का ख़याल था। वे कहते थे, 'इन मामलों में क्या हमारा भी कुछ अधिकार है?' कह दो, 'मामले तो सबके सब अल्लाह के (हाथ में) हैं।' वे जो कुछ अपने दिलों में छिपाए रखते है, तुमपर ज़ाहिर नहीं करते। कहते है, 'यदि इस मामले में हमारा भी कुछ अधिकार होता तो हम यहाँ मारे न जाते।' कह दो, 'यदि तुम अपने घरों में भी होते, तो भी जिन लोगों का क़त्ल होना तय था, वे निकलकर अपने अन्तिम शयन-स्थलों कर पहुँचकर रहते।' और यह इसलिए भी था कि जो कुछ तुम्हारे सीनों में है, अल्लाह उसे परख ले और जो कुछ तुम्हारे दिलों में है उसे साफ़ कर दे। और अल्लाह दिलों का हाल भली-भाँति जानता है ([३] आले इमरान: 154)
Tafseer (तफ़सीर )
१५५

اِنَّ الَّذِيْنَ تَوَلَّوْا مِنْكُمْ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعٰنِۙ اِنَّمَا اسْتَزَلَّهُمُ الشَّيْطٰنُ بِبَعْضِ مَا كَسَبُوْا ۚ وَلَقَدْ عَفَا اللّٰهُ عَنْهُمْ ۗ اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ حَلِيْمٌ ࣖ ١٥٥

inna
إِنَّ
बेशक
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जो
tawallaw
تَوَلَّوْا۟
फिर गए
minkum
مِنكُمْ
तुम में से
yawma
يَوْمَ
जिस दिन
l-taqā
ٱلْتَقَى
आमने सामने हुईं
l-jamʿāni
ٱلْجَمْعَانِ
दो जमाअतें
innamā
إِنَّمَا
बेशक
is'tazallahumu
ٱسْتَزَلَّهُمُ
फुसलाया था उन्हें
l-shayṭānu
ٱلشَّيْطَٰنُ
शैतान ने
bibaʿḍi
بِبَعْضِ
बवजह बाज़ (आमाल) के
مَا
जो
kasabū
كَسَبُوا۟ۖ
उन्होंने कमाए
walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
ʿafā
عَفَا
दरगुज़र किया
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
ʿanhum
عَنْهُمْۗ
उनसे
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
ghafūrun
غَفُورٌ
बहुत बख़्शने वाला है
ḥalīmun
حَلِيمٌ
बहुत बुर्दबार है
तुममें से जो लोग दोनों गिरोहों की मुठभेड़ के दिन पीठ दिखा गए, उन्हें तो शैतान ही ने उनकी कुछ कमाई (कर्म) का कारण विचलित कर दिया था। और अल्लाह तो उन्हें क्षमा कर चुका है। निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमा करनेवाला, सहनशील है ([३] आले इमरान: 155)
Tafseer (तफ़सीर )
१५६

يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَكُوْنُوْا كَالَّذِيْنَ كَفَرُوْا وَقَالُوْا لِاِخْوَانِهِمْ اِذَا ضَرَبُوْا فِى الْاَرْضِ اَوْ كَانُوْا غُزًّى لَّوْ كَانُوْا عِنْدَنَا مَا مَاتُوْا وَمَا قُتِلُوْاۚ لِيَجْعَلَ اللّٰهُ ذٰلِكَ حَسْرَةً فِيْ قُلُوْبِهِمْ ۗ وَاللّٰهُ يُحْيٖ وَيُمِيْتُ ۗ وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ بَصِيْرٌ ١٥٦

yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
ऐ लोगो जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
ऐ लोगो जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए हो
لَا
ना तुम हो जाओ
takūnū
تَكُونُوا۟
ना तुम हो जाओ
ka-alladhīna
كَٱلَّذِينَ
उनकी तरह
kafarū
كَفَرُوا۟
जिन्होंने कुफ़्र किया
waqālū
وَقَالُوا۟
और उन्होंने कहा
li-ikh'wānihim
لِإِخْوَٰنِهِمْ
अपने भाईंयों को
idhā
إِذَا
जब
ḍarabū
ضَرَبُوا۟
वो चले फिरे
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
aw
أَوْ
या
kānū
كَانُوا۟
थे वो
ghuzzan
غُزًّى
ग़ाज़ी/लड़ने वाले
law
لَّوْ
अगर
kānū
كَانُوا۟
होते वो
ʿindanā
عِندَنَا
पास हमारे
مَا
ना
mātū
مَاتُوا۟
वो मरते
wamā
وَمَا
और ना
qutilū
قُتِلُوا۟
वो क़त्ल किए जाते
liyajʿala
لِيَجْعَلَ
ताकि बना दे
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
dhālika
ذَٰلِكَ
उसको
ḥasratan
حَسْرَةً
हसरत का सबब
فِى
उनके दिलों में
qulūbihim
قُلُوبِهِمْۗ
उनके दिलों में
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
yuḥ'yī
يُحْىِۦ
ज़िन्दा करता है
wayumītu
وَيُمِيتُۗ
और वो मौत देता है
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
bimā
بِمَا
उसे जो
taʿmalūna
تَعْمَلُونَ
तुम अमल करते हो
baṣīrun
بَصِيرٌ
ख़ूब देखने वाला है
ऐ ईमान लानेवालो! उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने इनकार किया और अपने भाईयों के विषय में, जबकि वे सफ़र में गए हों या युद्ध में हो (और उनकी वहाँ मृत्यु हो जाए तो) कहते है, 'यदि वे हमारे पास होते तो न मरते और न क़त्ल होते।' (ऐसी बातें तो इसलिए होती है) ताकि अल्लाह उनको उनके दिलों में घर करनेवाला पछतावा और सन्ताप बना दे। अल्लाह ही जीवन प्रदान करने और मृत्यु देनेवाला है। और तुम जो कुछ भी कर रहे हो वह अल्लाह की स्पष्ट में है ([३] आले इमरान: 156)
Tafseer (तफ़सीर )
१५७

وَلَىِٕنْ قُتِلْتُمْ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ اَوْ مُتُّمْ لَمَغْفِرَةٌ مِّنَ اللّٰهِ وَرَحْمَةٌ خَيْرٌ مِّمَّا يَجْمَعُوْنَ ١٥٧

wala-in
وَلَئِن
और अलबत्ता अगर
qutil'tum
قُتِلْتُمْ
क़त्ल किए जाओ तुम
فِى
अल्लाह के रास्ते में
sabīli
سَبِيلِ
अल्लाह के रास्ते में
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के रास्ते में
aw
أَوْ
या
muttum
مُتُّمْ
मर जाओ तुम
lamaghfiratun
لَمَغْفِرَةٌ
अलबत्ता बख़्शिश
mina
مِّنَ
अल्लाह की तरफ़ से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की तरफ़ से
waraḥmatun
وَرَحْمَةٌ
और रहमत
khayrun
خَيْرٌ
बहुत बेहतर है
mimmā
مِّمَّا
उससे जो
yajmaʿūna
يَجْمَعُونَ
वो जमा कर रहे हैं
और यदि तुम अल्लाह के मार्ग में मारे गए या मर गए, तो अल्लाह का क्षमादान और उसकी दयालुता तो उससे कहीं उत्तम है, जिसके बटोरने में वे लगे हुए है ([३] आले इमरान: 157)
Tafseer (तफ़सीर )
१५८

وَلَىِٕنْ مُّتُّمْ اَوْ قُتِلْتُمْ لَاِلَى اللّٰهِ تُحْشَرُوْنَ ١٥٨

wala-in
وَلَئِن
और अलबत्ता अगर
muttum
مُّتُّمْ
मर जाओ तुम
aw
أَوْ
या
qutil'tum
قُتِلْتُمْ
क़त्ल किए जाओ तुम
la-ilā
لَإِلَى
अलबत्ता तरफ़
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
tuḥ'sharūna
تُحْشَرُونَ
तुम इकट्ठे किए जाओगे
हाँ, यदि तुम मर गए या मारे गए, तो प्रत्येक दशा में तुम अल्लाह ही के पास इकट्ठा किए जाओगे ([३] आले इमरान: 158)
Tafseer (तफ़सीर )
१५९

فَبِمَا رَحْمَةٍ مِّنَ اللّٰهِ لِنْتَ لَهُمْ ۚ وَلَوْ كُنْتَ فَظًّا غَلِيْظَ الْقَلْبِ لَانْفَضُّوْا مِنْ حَوْلِكَ ۖ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمْ وَشَاوِرْهُمْ فِى الْاَمْرِۚ فَاِذَا عَزَمْتَ فَتَوَكَّلْ عَلَى اللّٰهِ ۗ اِنَّ اللّٰهَ يُحِبُّ الْمُتَوَكِّلِيْنَ ١٥٩

fabimā
فَبِمَا
फिर बवजह
raḥmatin
رَحْمَةٍ
रहमत के
mina
مِّنَ
अल्लाह की तरफ़ से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की तरफ़ से
linta
لِنتَ
नर्म हो गए आप
lahum
لَهُمْۖ
उनके लिए
walaw
وَلَوْ
और अगर
kunta
كُنتَ
होते आप
faẓẓan
فَظًّا
तुन्दख़ू
ghalīẓa
غَلِيظَ
सख़्त
l-qalbi
ٱلْقَلْبِ
दिल
la-infaḍḍū
لَٱنفَضُّوا۟
अलबत्ता वो मुन्तशिर हो जाते
min
مِنْ
आपके आस पास से
ḥawlika
حَوْلِكَۖ
आपके आस पास से
fa-uʿ'fu
فَٱعْفُ
पस दरगुज़र कीजिए
ʿanhum
عَنْهُمْ
उनसे
wa-is'taghfir
وَٱسْتَغْفِرْ
और बख़्शिश माँगिए
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
washāwir'hum
وَشَاوِرْهُمْ
और मशवरा कीजिए उनसे
فِى
मामले में
l-amri
ٱلْأَمْرِۖ
मामले में
fa-idhā
فَإِذَا
फिर जब
ʿazamta
عَزَمْتَ
पुख़्ता इरादा करें आप
fatawakkal
فَتَوَكَّلْ
तो तवक्कल कीजिए
ʿalā
عَلَى
अल्लाह पर
l-lahi
ٱللَّهِۚ
अल्लाह पर
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
yuḥibbu
يُحِبُّ
मोहब्बत रखता है
l-mutawakilīna
ٱلْمُتَوَكِّلِينَ
तवक्कल करने वालों से
(तुमने तो अपनी दयालुता से उन्हें क्षमा कर दिया) तो अल्लाह की ओर से ही बड़ी दयालुता है जिसके कारण तुम उनके लिए नर्म रहे हो, यदि कहीं तुम स्वभाव के क्रूर और कठोर हृदय होते तो ये सब तुम्हारे पास से छँट जाते। अतः उन्हें क्षमा कर दो और उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो। और मामलों में उनसे परामर्श कर लिया करो। फिर जब तुम्हारे संकल्प किसी सम्मति पर सुदृढ़ हो जाएँ तो अल्लाह पर भरोसा करो। निस्संदेह अल्लाह को वे लोग प्रिय है जो उसपर भरोसा करते है ([३] आले इमरान: 159)
Tafseer (तफ़सीर )
१६०

اِنْ يَّنْصُرْكُمُ اللّٰهُ فَلَا غَالِبَ لَكُمْ ۚ وَاِنْ يَّخْذُلْكُمْ فَمَنْ ذَا الَّذِيْ يَنْصُرُكُمْ مِّنْۢ بَعْدِهٖ ۗ وَعَلَى اللّٰهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُوْنَ ١٦٠

in
إِن
अगर
yanṣur'kumu
يَنصُرْكُمُ
मदद करे तुम्हारी
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
falā
فَلَا
तो नहीं
ghāliba
غَالِبَ
कोई ग़ालिब आने वाला
lakum
لَكُمْۖ
तुम पर
wa-in
وَإِن
और अगर
yakhdhul'kum
يَخْذُلْكُمْ
वो छोड़ दे तुम्हें
faman
فَمَن
तो कौन है
dhā
ذَا
वो जो
alladhī
ٱلَّذِى
वो जो
yanṣurukum
يَنصُرُكُم
मदद करेगा तुम्हारी
min
مِّنۢ
बाद उसके
baʿdihi
بَعْدِهِۦۗ
बाद उसके
waʿalā
وَعَلَى
और अल्लाह ही पर
l-lahi
ٱللَّهِ
और अल्लाह ही पर
falyatawakkali
فَلْيَتَوَكَّلِ
पस चाहिए कि तवक्कल किया करें
l-mu'minūna
ٱلْمُؤْمِنُونَ
ईमान वाले
यदि अल्लाह तुम्हारी सहायता करे, तो कोई तुमपर प्रभावी नहीं हो सकता। और यदि वह तुम्हें छोड़ दे, तो फिर कौन हो जो उसके पश्चात तुम्हारी सहायता कर सके। अतः ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिए ([३] आले इमरान: 160)
Tafseer (तफ़सीर )