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सूरा आले इमरान - Page: 14

Ali 'Imran

(इमरान का घराना)

१३१

وَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِيْٓ اُعِدَّتْ لِلْكٰفِرِيْنَ ۚ ١٣١

wa-ittaqū
وَٱتَّقُوا۟
और बचो/डरो
l-nāra
ٱلنَّارَ
आग से
allatī
ٱلَّتِىٓ
वो जो
uʿiddat
أُعِدَّتْ
तैयार की गई है
lil'kāfirīna
لِلْكَٰفِرِينَ
काफ़िरों के लिए
और उस आग से बचो जो इनकार करनेवालों के लिए तैयार है ([३] आले इमरान: 131)
Tafseer (तफ़सीर )
१३२

وَاَطِيْعُوا اللّٰهَ وَالرَّسُوْلَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَۚ ١٣٢

wa-aṭīʿū
وَأَطِيعُوا۟
और इताअत करो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह की
wal-rasūla
وَٱلرَّسُولَ
और रसूल की
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tur'ḥamūna
تُرْحَمُونَ
तुम रहम किए जाओ
और अल्लाह और रसूल के आज्ञाकारी बनो, ताकि तुमपर दया की जाए ([३] आले इमरान: 132)
Tafseer (तफ़सीर )
१३३

۞ وَسَارِعُوْٓا اِلٰى مَغْفِرَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمٰوٰتُ وَالْاَرْضُۙ اُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِيْنَۙ ١٣٣

wasāriʿū
وَسَارِعُوٓا۟
और एक दूसरे से जल्दी करो
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ बख़्शिश के
maghfiratin
مَغْفِرَةٍ
तरफ़ बख़्शिश के
min
مِّن
अपने रब की तरफ़ से
rabbikum
رَّبِّكُمْ
अपने रब की तरफ़ से
wajannatin
وَجَنَّةٍ
और जन्नत के
ʿarḍuhā
عَرْضُهَا
चौड़ाई है जिसकी
l-samāwātu
ٱلسَّمَٰوَٰتُ
आसमान
wal-arḍu
وَٱلْأَرْضُ
और ज़मीन
uʿiddat
أُعِدَّتْ
वो तैयार की गई है
lil'muttaqīna
لِلْمُتَّقِينَ
मुत्तक़ी लोगों के लिए
और अपने रब की क्षमा और उस जन्नत की ओर बढ़ो, जिसका विस्तार आकाशों और धरती जैसा है। वह उन लोगों के लिए तैयार है जो डर रखते है ([३] आले इमरान: 133)
Tafseer (तफ़सीर )
१३४

الَّذِيْنَ يُنْفِقُوْنَ فِى السَّرَّۤاءِ وَالضَّرَّۤاءِ وَالْكَاظِمِيْنَ الْغَيْظَ وَالْعَافِيْنَ عَنِ النَّاسِۗ وَاللّٰهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِيْنَۚ ١٣٤

alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
yunfiqūna
يُنفِقُونَ
ख़र्च करते हैं
فِى
ख़ुशी में
l-sarāi
ٱلسَّرَّآءِ
ख़ुशी में
wal-ḍarāi
وَٱلضَّرَّآءِ
और तकलीफ़ में
wal-kāẓimīna
وَٱلْكَٰظِمِينَ
और ज़ब्त करने वाले हैं
l-ghayẓa
ٱلْغَيْظَ
सख़्त ग़ुस्से को
wal-ʿāfīna
وَٱلْعَافِينَ
और दरगुज़र करने वाले हैं
ʿani
عَنِ
लोगों से
l-nāsi
ٱلنَّاسِۗ
लोगों से
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
yuḥibbu
يُحِبُّ
मोहब्बत रखता है
l-muḥ'sinīna
ٱلْمُحْسِنِينَ
एहसान करने वालों से
वे लोग जो ख़ुशहाली और तंगी की प्रत्येक अवस्था में ख़र्च करते रहते है और क्रोध को रोकते है और लोगों को क्षमा करते है - और अल्लाह को भी ऐसे लोग प्रिय है, जो अच्छे से अच्छा कर्म करते है ([३] आले इमरान: 134)
Tafseer (तफ़सीर )
१३५

وَالَّذِيْنَ اِذَا فَعَلُوْا فَاحِشَةً اَوْ ظَلَمُوْٓا اَنْفُسَهُمْ ذَكَرُوا اللّٰهَ فَاسْتَغْفَرُوْا لِذُنُوْبِهِمْۗ وَمَنْ يَّغْفِرُ الذُّنُوْبَ اِلَّا اللّٰهُ ۗ وَلَمْ يُصِرُّوْا عَلٰى مَا فَعَلُوْا وَهُمْ يَعْلَمُوْنَ ١٣٥

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो लोग जो
idhā
إِذَا
जब
faʿalū
فَعَلُوا۟
करते हैं
fāḥishatan
فَٰحِشَةً
कोई बेहयाई
aw
أَوْ
या
ẓalamū
ظَلَمُوٓا۟
वो ज़ुल्म करते हैं
anfusahum
أَنفُسَهُمْ
अपने नफ़्सों पर
dhakarū
ذَكَرُوا۟
वो याद करते हैं
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह को
fa-is'taghfarū
فَٱسْتَغْفَرُوا۟
पस माफ़ी माँगते हैं
lidhunūbihim
لِذُنُوبِهِمْ
अपने गुनाहों के लिए
waman
وَمَن
और कौन है जो
yaghfiru
يَغْفِرُ
बख़्श दे
l-dhunūba
ٱلذُّنُوبَ
गुनाहों को
illā
إِلَّا
सिवाय
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह के
walam
وَلَمْ
और नहीं
yuṣirrū
يُصِرُّوا۟
वो इसरार करते
ʿalā
عَلَىٰ
ऊपर उसके
مَا
जो
faʿalū
فَعَلُوا۟
उन्होंने किया
wahum
وَهُمْ
जब कि वो
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
वो जानते हैं
और जिनका हाल यह है कि जब वे कोई खुला गुनाह कर बैठते है या अपने आप पर ज़ुल्म करते है तौ तत्काल अल्लाह उन्हें याद आ जाता है और वे अपने गुनाहों की क्षमा चाहने लगते हैं - और अल्लाह के अतिरिक्त कौन है, जो गुनाहों को क्षमा कर सके? और जानते-बूझते वे अपने किए पर अड़े नहीं रहते ([३] आले इमरान: 135)
Tafseer (तफ़सीर )
१३६

اُولٰۤىِٕكَ جَزَاۤؤُهُمْ مَّغْفِرَةٌ مِّنْ رَّبِّهِمْ وَجَنّٰتٌ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِيْنَ فِيْهَا ۗ وَنِعْمَ اَجْرُ الْعٰمِلِيْنَۗ ١٣٦

ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
jazāuhum
جَزَآؤُهُم
बदला उनका
maghfiratun
مَّغْفِرَةٌ
बख़्शिश है
min
مِّن
उनके रब की तरफ़ से
rabbihim
رَّبِّهِمْ
उनके रब की तरफ़ से
wajannātun
وَجَنَّٰتٌ
और बाग़ात हैं
tajrī
تَجْرِى
बहती हैं
min
مِن
उनके नीचे से
taḥtihā
تَحْتِهَا
उनके नीचे से
l-anhāru
ٱلْأَنْهَٰرُ
नहरें
khālidīna
خَٰلِدِينَ
हमेशा रहने वाले हैं
fīhā
فِيهَاۚ
उनमें
waniʿ'ma
وَنِعْمَ
और कितना अच्छा है
ajru
أَجْرُ
अजर
l-ʿāmilīna
ٱلْعَٰمِلِينَ
अमल करने वालों का
उनका बदला उनके रब की ओर से क्षमादान है और ऐसे बाग़ है जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। और क्या ही अच्छा बदला है अच्छे कर्म करनेवालों का ([३] आले इमरान: 136)
Tafseer (तफ़सीर )
१३७

قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلِكُمْ سُنَنٌۙ فَسِيْرُوْا فِى الْاَرْضِ فَانْظُرُوْا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذِّبِيْنَ ١٣٧

qad
قَدْ
तहक़ीक़
khalat
خَلَتْ
गुज़र चुके
min
مِن
तुम से पहले
qablikum
قَبْلِكُمْ
तुम से पहले
sunanun
سُنَنٌ
कई तरीक़े
fasīrū
فَسِيرُوا۟
तो चलो फिरो
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
fa-unẓurū
فَٱنظُرُوا۟
फिर देखो
kayfa
كَيْفَ
किस तरह
kāna
كَانَ
हुआ
ʿāqibatu
عَٰقِبَةُ
अन्जाम
l-mukadhibīna
ٱلْمُكَذِّبِينَ
झुठलाने वालों का
तुमसे पहले (धर्मविरोधियों के साथ अल्लाह की) रीति के कितने ही नमूने गुज़र चुके है, तो तुम धरती में चल-फिरकर देखो कि झुठलानेवालों का परिणाम हुआ है ([३] आले इमरान: 137)
Tafseer (तफ़सीर )
१३८

هٰذَا بَيَانٌ لِّلنَّاسِ وَهُدًى وَّمَوْعِظَةٌ لِّلْمُتَّقِيْنَ ١٣٨

hādhā
هَٰذَا
ये
bayānun
بَيَانٌ
एक बयान है
lilnnāsi
لِّلنَّاسِ
लोगों के लिए
wahudan
وَهُدًى
और हिदायत
wamawʿiẓatun
وَمَوْعِظَةٌ
और नसीहत है
lil'muttaqīna
لِّلْمُتَّقِينَ
मुत्तक़ी लोगों के लिए
यह लोगों के लिए स्पष्ट बयान और डर रखनेवालों के लिए मार्गदर्शन और उपदेश है ([३] आले इमरान: 138)
Tafseer (तफ़सीर )
१३९

وَلَا تَهِنُوْا وَلَا تَحْزَنُوْا وَاَنْتُمُ الْاَعْلَوْنَ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ١٣٩

walā
وَلَا
और ना
tahinū
تَهِنُوا۟
तुम कमज़ोर पड़ो
walā
وَلَا
और ना
taḥzanū
تَحْزَنُوا۟
तुम ग़म करो
wa-antumu
وَأَنتُمُ
और तुम ही
l-aʿlawna
ٱلْأَعْلَوْنَ
बुलन्द हो
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُم
हो तुम
mu'minīna
مُّؤْمِنِينَ
मोमिन
हताश न हो और दुखी न हो, यदि तुम ईमानवाले हो, तो तुम्हीं प्रभावी रहोगे ([३] आले इमरान: 139)
Tafseer (तफ़सीर )
१४०

اِنْ يَّمْسَسْكُمْ قَرْحٌ فَقَدْ مَسَّ الْقَوْمَ قَرْحٌ مِّثْلُهٗ ۗوَتِلْكَ الْاَيَّامُ نُدَاوِلُهَا بَيْنَ النَّاسِۚ وَلِيَعْلَمَ اللّٰهُ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَيَتَّخِذَ مِنْكُمْ شُهَدَاۤءَ ۗوَاللّٰهُ لَا يُحِبُّ الظّٰلِمِيْنَۙ ١٤٠

in
إِن
अगर
yamsaskum
يَمْسَسْكُمْ
पहुँचा तुम्हें
qarḥun
قَرْحٌ
कोई ज़ख़्म
faqad
فَقَدْ
तो तहक़ीक़
massa
مَسَّ
पहुँच चुका है
l-qawma
ٱلْقَوْمَ
उस क़ौम को
qarḥun
قَرْحٌ
ज़ख़्म
mith'luhu
مِّثْلُهُۥۚ
मानिन्द उसी के
watil'ka
وَتِلْكَ
और ये
l-ayāmu
ٱلْأَيَّامُ
दिन
nudāwiluhā
نُدَاوِلُهَا
हम फेरते रहते हैं उन्हें
bayna
بَيْنَ
दर्मियान
l-nāsi
ٱلنَّاسِ
लोगों के
waliyaʿlama
وَلِيَعْلَمَ
और ताकि जान ले
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनको जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
wayattakhidha
وَيَتَّخِذَ
और वो बना ले
minkum
مِنكُمْ
तुम में से
shuhadāa
شُهَدَآءَۗ
गवाह/शहीद
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
لَا
नहीं वो मोहब्बत रखता
yuḥibbu
يُحِبُّ
नहीं वो मोहब्बत रखता
l-ẓālimīna
ٱلظَّٰلِمِينَ
ज़ालिमों से
यदि तुम्हें आघात पहुँचे तो उन लोगों को भी ऐसा ही आघात पहुँच चुका है। ये युद्ध के दिन हैं, जिन्हें हम लोगों के बीच डालते ही रहते है और ऐसा इसलिए हुआ कि अल्लाह ईमानवालों को जान ले और तुममें से कुछ लोगों को गवाह बनाए - और अत्याचारी अल्लाह को प्रिय नहीं है ([३] आले इमरान: 140)
Tafseer (तफ़सीर )