وَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِيْٓ اُعِدَّتْ لِلْكٰفِرِيْنَ ۚ ١٣١
- wa-ittaqū
- وَٱتَّقُوا۟
- और बचो/डरो
- l-nāra
- ٱلنَّارَ
- आग से
- allatī
- ٱلَّتِىٓ
- वो जो
- uʿiddat
- أُعِدَّتْ
- तैयार की गई है
- lil'kāfirīna
- لِلْكَٰفِرِينَ
- काफ़िरों के लिए
और उस आग से बचो जो इनकार करनेवालों के लिए तैयार है ([३] आले इमरान: 131)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَطِيْعُوا اللّٰهَ وَالرَّسُوْلَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَۚ ١٣٢
- wa-aṭīʿū
- وَأَطِيعُوا۟
- और इताअत करो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह की
- wal-rasūla
- وَٱلرَّسُولَ
- और रसूल की
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tur'ḥamūna
- تُرْحَمُونَ
- तुम रहम किए जाओ
और अल्लाह और रसूल के आज्ञाकारी बनो, ताकि तुमपर दया की जाए ([३] आले इमरान: 132)Tafseer (तफ़सीर )
۞ وَسَارِعُوْٓا اِلٰى مَغْفِرَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمٰوٰتُ وَالْاَرْضُۙ اُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِيْنَۙ ١٣٣
- wasāriʿū
- وَسَارِعُوٓا۟
- और एक दूसरे से जल्दी करो
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ बख़्शिश के
- maghfiratin
- مَغْفِرَةٍ
- तरफ़ बख़्शिश के
- min
- مِّن
- अपने रब की तरफ़ से
- rabbikum
- رَّبِّكُمْ
- अपने रब की तरफ़ से
- wajannatin
- وَجَنَّةٍ
- और जन्नत के
- ʿarḍuhā
- عَرْضُهَا
- चौड़ाई है जिसकी
- l-samāwātu
- ٱلسَّمَٰوَٰتُ
- आसमान
- wal-arḍu
- وَٱلْأَرْضُ
- और ज़मीन
- uʿiddat
- أُعِدَّتْ
- वो तैयार की गई है
- lil'muttaqīna
- لِلْمُتَّقِينَ
- मुत्तक़ी लोगों के लिए
और अपने रब की क्षमा और उस जन्नत की ओर बढ़ो, जिसका विस्तार आकाशों और धरती जैसा है। वह उन लोगों के लिए तैयार है जो डर रखते है ([३] आले इमरान: 133)Tafseer (तफ़सीर )
الَّذِيْنَ يُنْفِقُوْنَ فِى السَّرَّۤاءِ وَالضَّرَّۤاءِ وَالْكَاظِمِيْنَ الْغَيْظَ وَالْعَافِيْنَ عَنِ النَّاسِۗ وَاللّٰهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِيْنَۚ ١٣٤
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- yunfiqūna
- يُنفِقُونَ
- ख़र्च करते हैं
- fī
- فِى
- ख़ुशी में
- l-sarāi
- ٱلسَّرَّآءِ
- ख़ुशी में
- wal-ḍarāi
- وَٱلضَّرَّآءِ
- और तकलीफ़ में
- wal-kāẓimīna
- وَٱلْكَٰظِمِينَ
- और ज़ब्त करने वाले हैं
- l-ghayẓa
- ٱلْغَيْظَ
- सख़्त ग़ुस्से को
- wal-ʿāfīna
- وَٱلْعَافِينَ
- और दरगुज़र करने वाले हैं
- ʿani
- عَنِ
- लोगों से
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِۗ
- लोगों से
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yuḥibbu
- يُحِبُّ
- मोहब्बत रखता है
- l-muḥ'sinīna
- ٱلْمُحْسِنِينَ
- एहसान करने वालों से
वे लोग जो ख़ुशहाली और तंगी की प्रत्येक अवस्था में ख़र्च करते रहते है और क्रोध को रोकते है और लोगों को क्षमा करते है - और अल्लाह को भी ऐसे लोग प्रिय है, जो अच्छे से अच्छा कर्म करते है ([३] आले इमरान: 134)Tafseer (तफ़सीर )
وَالَّذِيْنَ اِذَا فَعَلُوْا فَاحِشَةً اَوْ ظَلَمُوْٓا اَنْفُسَهُمْ ذَكَرُوا اللّٰهَ فَاسْتَغْفَرُوْا لِذُنُوْبِهِمْۗ وَمَنْ يَّغْفِرُ الذُّنُوْبَ اِلَّا اللّٰهُ ۗ وَلَمْ يُصِرُّوْا عَلٰى مَا فَعَلُوْا وَهُمْ يَعْلَمُوْنَ ١٣٥
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो लोग जो
- idhā
- إِذَا
- जब
- faʿalū
- فَعَلُوا۟
- करते हैं
- fāḥishatan
- فَٰحِشَةً
- कोई बेहयाई
- aw
- أَوْ
- या
- ẓalamū
- ظَلَمُوٓا۟
- वो ज़ुल्म करते हैं
- anfusahum
- أَنفُسَهُمْ
- अपने नफ़्सों पर
- dhakarū
- ذَكَرُوا۟
- वो याद करते हैं
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह को
- fa-is'taghfarū
- فَٱسْتَغْفَرُوا۟
- पस माफ़ी माँगते हैं
- lidhunūbihim
- لِذُنُوبِهِمْ
- अपने गुनाहों के लिए
- waman
- وَمَن
- और कौन है जो
- yaghfiru
- يَغْفِرُ
- बख़्श दे
- l-dhunūba
- ٱلذُّنُوبَ
- गुनाहों को
- illā
- إِلَّا
- सिवाय
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह के
- walam
- وَلَمْ
- और नहीं
- yuṣirrū
- يُصِرُّوا۟
- वो इसरार करते
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर उसके
- mā
- مَا
- जो
- faʿalū
- فَعَلُوا۟
- उन्होंने किया
- wahum
- وَهُمْ
- जब कि वो
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- वो जानते हैं
और जिनका हाल यह है कि जब वे कोई खुला गुनाह कर बैठते है या अपने आप पर ज़ुल्म करते है तौ तत्काल अल्लाह उन्हें याद आ जाता है और वे अपने गुनाहों की क्षमा चाहने लगते हैं - और अल्लाह के अतिरिक्त कौन है, जो गुनाहों को क्षमा कर सके? और जानते-बूझते वे अपने किए पर अड़े नहीं रहते ([३] आले इमरान: 135)Tafseer (तफ़सीर )
اُولٰۤىِٕكَ جَزَاۤؤُهُمْ مَّغْفِرَةٌ مِّنْ رَّبِّهِمْ وَجَنّٰتٌ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِيْنَ فِيْهَا ۗ وَنِعْمَ اَجْرُ الْعٰمِلِيْنَۗ ١٣٦
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- jazāuhum
- جَزَآؤُهُم
- बदला उनका
- maghfiratun
- مَّغْفِرَةٌ
- बख़्शिश है
- min
- مِّن
- उनके रब की तरफ़ से
- rabbihim
- رَّبِّهِمْ
- उनके रब की तरफ़ से
- wajannātun
- وَجَنَّٰتٌ
- और बाग़ात हैं
- tajrī
- تَجْرِى
- बहती हैं
- min
- مِن
- उनके नीचे से
- taḥtihā
- تَحْتِهَا
- उनके नीचे से
- l-anhāru
- ٱلْأَنْهَٰرُ
- नहरें
- khālidīna
- خَٰلِدِينَ
- हमेशा रहने वाले हैं
- fīhā
- فِيهَاۚ
- उनमें
- waniʿ'ma
- وَنِعْمَ
- और कितना अच्छा है
- ajru
- أَجْرُ
- अजर
- l-ʿāmilīna
- ٱلْعَٰمِلِينَ
- अमल करने वालों का
उनका बदला उनके रब की ओर से क्षमादान है और ऐसे बाग़ है जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। और क्या ही अच्छा बदला है अच्छे कर्म करनेवालों का ([३] आले इमरान: 136)Tafseer (तफ़सीर )
قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلِكُمْ سُنَنٌۙ فَسِيْرُوْا فِى الْاَرْضِ فَانْظُرُوْا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذِّبِيْنَ ١٣٧
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- khalat
- خَلَتْ
- गुज़र चुके
- min
- مِن
- तुम से पहले
- qablikum
- قَبْلِكُمْ
- तुम से पहले
- sunanun
- سُنَنٌ
- कई तरीक़े
- fasīrū
- فَسِيرُوا۟
- तो चलो फिरो
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- fa-unẓurū
- فَٱنظُرُوا۟
- फिर देखो
- kayfa
- كَيْفَ
- किस तरह
- kāna
- كَانَ
- हुआ
- ʿāqibatu
- عَٰقِبَةُ
- अन्जाम
- l-mukadhibīna
- ٱلْمُكَذِّبِينَ
- झुठलाने वालों का
तुमसे पहले (धर्मविरोधियों के साथ अल्लाह की) रीति के कितने ही नमूने गुज़र चुके है, तो तुम धरती में चल-फिरकर देखो कि झुठलानेवालों का परिणाम हुआ है ([३] आले इमरान: 137)Tafseer (तफ़सीर )
هٰذَا بَيَانٌ لِّلنَّاسِ وَهُدًى وَّمَوْعِظَةٌ لِّلْمُتَّقِيْنَ ١٣٨
- hādhā
- هَٰذَا
- ये
- bayānun
- بَيَانٌ
- एक बयान है
- lilnnāsi
- لِّلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- wahudan
- وَهُدًى
- और हिदायत
- wamawʿiẓatun
- وَمَوْعِظَةٌ
- और नसीहत है
- lil'muttaqīna
- لِّلْمُتَّقِينَ
- मुत्तक़ी लोगों के लिए
यह लोगों के लिए स्पष्ट बयान और डर रखनेवालों के लिए मार्गदर्शन और उपदेश है ([३] आले इमरान: 138)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا تَهِنُوْا وَلَا تَحْزَنُوْا وَاَنْتُمُ الْاَعْلَوْنَ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ١٣٩
- walā
- وَلَا
- और ना
- tahinū
- تَهِنُوا۟
- तुम कमज़ोर पड़ो
- walā
- وَلَا
- और ना
- taḥzanū
- تَحْزَنُوا۟
- तुम ग़म करो
- wa-antumu
- وَأَنتُمُ
- और तुम ही
- l-aʿlawna
- ٱلْأَعْلَوْنَ
- बुलन्द हो
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُم
- हो तुम
- mu'minīna
- مُّؤْمِنِينَ
- मोमिन
हताश न हो और दुखी न हो, यदि तुम ईमानवाले हो, तो तुम्हीं प्रभावी रहोगे ([३] आले इमरान: 139)Tafseer (तफ़सीर )
اِنْ يَّمْسَسْكُمْ قَرْحٌ فَقَدْ مَسَّ الْقَوْمَ قَرْحٌ مِّثْلُهٗ ۗوَتِلْكَ الْاَيَّامُ نُدَاوِلُهَا بَيْنَ النَّاسِۚ وَلِيَعْلَمَ اللّٰهُ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَيَتَّخِذَ مِنْكُمْ شُهَدَاۤءَ ۗوَاللّٰهُ لَا يُحِبُّ الظّٰلِمِيْنَۙ ١٤٠
- in
- إِن
- अगर
- yamsaskum
- يَمْسَسْكُمْ
- पहुँचा तुम्हें
- qarḥun
- قَرْحٌ
- कोई ज़ख़्म
- faqad
- فَقَدْ
- तो तहक़ीक़
- massa
- مَسَّ
- पहुँच चुका है
- l-qawma
- ٱلْقَوْمَ
- उस क़ौम को
- qarḥun
- قَرْحٌ
- ज़ख़्म
- mith'luhu
- مِّثْلُهُۥۚ
- मानिन्द उसी के
- watil'ka
- وَتِلْكَ
- और ये
- l-ayāmu
- ٱلْأَيَّامُ
- दिन
- nudāwiluhā
- نُدَاوِلُهَا
- हम फेरते रहते हैं उन्हें
- bayna
- بَيْنَ
- दर्मियान
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोगों के
- waliyaʿlama
- وَلِيَعْلَمَ
- और ताकि जान ले
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनको जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- wayattakhidha
- وَيَتَّخِذَ
- और वो बना ले
- minkum
- مِنكُمْ
- तुम में से
- shuhadāa
- شُهَدَآءَۗ
- गवाह/शहीद
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं वो मोहब्बत रखता
- yuḥibbu
- يُحِبُّ
- नहीं वो मोहब्बत रखता
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- ज़ालिमों से
यदि तुम्हें आघात पहुँचे तो उन लोगों को भी ऐसा ही आघात पहुँच चुका है। ये युद्ध के दिन हैं, जिन्हें हम लोगों के बीच डालते ही रहते है और ऐसा इसलिए हुआ कि अल्लाह ईमानवालों को जान ले और तुममें से कुछ लोगों को गवाह बनाए - और अत्याचारी अल्लाह को प्रिय नहीं है ([३] आले इमरान: 140)Tafseer (तफ़सीर )