وَاِذْ غَدَوْتَ مِنْ اَهْلِكَ تُبَوِّئُ الْمُؤْمِنِيْنَ مَقَاعِدَ لِلْقِتَالِ ۗ وَاللّٰهُ سَمِيْعٌ عَلِيْمٌۙ ١٢١
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- ghadawta
- غَدَوْتَ
- सुबह सवेरे निकले आप
- min
- مِنْ
- अपने घर वालों से
- ahlika
- أَهْلِكَ
- अपने घर वालों से
- tubawwi-u
- تُبَوِّئُ
- आप मुतय्यन (तैनात) कर रहे थे
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिनों को
- maqāʿida
- مَقَٰعِدَ
- ठिकानों/मोर्चों पर
- lil'qitāli
- لِلْقِتَالِۗ
- जंग के लिए
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- samīʿun
- سَمِيعٌ
- ख़ूब सुनने वाला है
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
याद करो जब तुम सवेरे अपने घर से निकलकर ईमानवालों को युद्ध के मोर्चों पर लगा रहे थे। - अल्लाह तो सब कुछ सुनता, जानता है ([३] आले इमरान: 121)Tafseer (तफ़सीर )
اِذْ هَمَّتْ طَّۤاىِٕفَتٰنِ مِنْكُمْ اَنْ تَفْشَلَاۙ وَاللّٰهُ وَلِيُّهُمَا ۗ وَعَلَى اللّٰهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُوْنَ ١٢٢
- idh
- إِذْ
- जब
- hammat
- هَمَّت
- इरादा किया
- ṭāifatāni
- طَّآئِفَتَانِ
- दो गिरोहों ने
- minkum
- مِنكُمْ
- तुम में से
- an
- أَن
- कि
- tafshalā
- تَفْشَلَا
- वो दोनों बुज़दिली दिखाऐं
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- waliyyuhumā
- وَلِيُّهُمَاۗ
- मददगार था उन दोनों का
- waʿalā
- وَعَلَى
- और अल्लाह ही पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- और अल्लाह ही पर
- falyatawakkali
- فَلْيَتَوَكَّلِ
- पस चाहिए कि तवक्कल करें
- l-mu'minūna
- ٱلْمُؤْمِنُونَ
- ईमान वाले
जब तुम्हारे दो गिरोहों ने साहस छोड़ देना चाहा, जबकि अल्लाह उनका संरक्षक मौजूद था - और ईमानवालों को तो अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए ([३] आले इमरान: 122)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ نَصَرَكُمُ اللّٰهُ بِبَدْرٍ وَّاَنْتُمْ اَذِلَّةٌ ۚ فَاتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ١٢٣
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- naṣarakumu
- نَصَرَكُمُ
- मदद की तुम्हारी
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- bibadrin
- بِبَدْرٍ
- बदर में
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- हालाँकि तुम
- adhillatun
- أَذِلَّةٌۖ
- कमज़ोर थे
- fa-ittaqū
- فَٱتَّقُوا۟
- पस डरो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tashkurūna
- تَشْكُرُونَ
- तुम शुक्र अदा करो
और बद्र में अल्लाह तुम्हारी सहायता कर भी चुका था, जबकि तुम बहुत कमज़ोर हालत में थे। अतः अल्लाह ही का डर रखो, ताकि तुम कृतज्ञ बनो ([३] आले इमरान: 123)Tafseer (तफ़सीर )
اِذْ تَقُوْلُ لِلْمُؤْمِنِيْنَ اَلَنْ يَّكْفِيَكُمْ اَنْ يُّمِدَّكُمْ رَبُّكُمْ بِثَلٰثَةِ اٰلَافٍ مِّنَ الْمَلٰۤىِٕكَةِ مُنْزَلِيْنَۗ ١٢٤
- idh
- إِذْ
- जब
- taqūlu
- تَقُولُ
- आप कह रहे थे
- lil'mu'minīna
- لِلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिनों को
- alan
- أَلَن
- क्या नहीं
- yakfiyakum
- يَكْفِيَكُمْ
- काफ़ी होगा तुम्हें
- an
- أَن
- कि
- yumiddakum
- يُمِدَّكُمْ
- मदद करे तुम्हारी
- rabbukum
- رَبُّكُم
- रब तुम्हारा
- bithalāthati
- بِثَلَٰثَةِ
- साथ तीन
- ālāfin
- ءَالَٰفٍ
- हज़ार
- mina
- مِّنَ
- फ़रिश्तों के
- l-malāikati
- ٱلْمَلَٰٓئِكَةِ
- फ़रिश्तों के
- munzalīna
- مُنزَلِينَ
- उतारे हुए
जब तुम ईमानवालों से कह रहे थे, 'क्या यह तुम्हारे लिए काफ़ी नही हैं कि तुम्हारा रब तीन हज़ार फ़रिश्ते उतारकर तुम्हारी सहायता करे?' ([३] आले इमरान: 124)Tafseer (तफ़सीर )
بَلٰٓى ۙاِنْ تَصْبِرُوْا وَتَتَّقُوْا وَيَأْتُوْكُمْ مِّنْ فَوْرِهِمْ هٰذَا يُمْدِدْكُمْ رَبُّكُمْ بِخَمْسَةِ اٰلَافٍ مِّنَ الْمَلٰۤىِٕكَةِ مُسَوِّمِيْنَ ١٢٥
- balā
- بَلَىٰٓۚ
- क्यों नहीं/बल्कि
- in
- إِن
- अगर
- taṣbirū
- تَصْبِرُوا۟
- तुम सब्र करोगे
- watattaqū
- وَتَتَّقُوا۟
- और तुम तक़वा करोगे
- wayatūkum
- وَيَأْتُوكُم
- और वो आऐं तुम्हारे पास
- min
- مِّن
- अपने जोश से
- fawrihim
- فَوْرِهِمْ
- अपने जोश से
- hādhā
- هَٰذَا
- इस तरह
- yum'did'kum
- يُمْدِدْكُمْ
- मदद करेगा तुम्हारी
- rabbukum
- رَبُّكُم
- रब तुम्हारा
- bikhamsati
- بِخَمْسَةِ
- साथ पाँच
- ālāfin
- ءَالَٰفٍ
- हज़ार
- mina
- مِّنَ
- फ़रिश्तों के
- l-malāikati
- ٱلْمَلَٰٓئِكَةِ
- फ़रिश्तों के
- musawwimīna
- مُسَوِّمِينَ
- निशान लगाने वाले
हाँ, क्यों नहीं। यदि तुम धैर्य से काम लो और डर रखो, फिर शत्रु सहसा तुमपर चढ़ आएँ, उसी क्षण तुम्हारा रब पाँच हज़ार विध्वंशकारी फ़रिश्तों से तुम्हारी सहायता करेगा ([३] आले इमरान: 125)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا جَعَلَهُ اللّٰهُ اِلَّا بُشْرٰى لَكُمْ وَلِتَطْمَىِٕنَّ قُلُوْبُكُمْ بِهٖ ۗ وَمَا النَّصْرُ اِلَّا مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ الْعَزِيْزِ الْحَكِيْمِۙ ١٢٦
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- jaʿalahu
- جَعَلَهُ
- बनाया उसे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- illā
- إِلَّا
- मगर
- bush'rā
- بُشْرَىٰ
- ख़ुशख़बरी
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- walitaṭma-inna
- وَلِتَطْمَئِنَّ
- और ताकि मुत्मईन हो जाऐं
- qulūbukum
- قُلُوبُكُم
- दिल तुम्हारे
- bihi
- بِهِۦۗ
- साथ इसके
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- l-naṣru
- ٱلنَّصْرُ
- मदद
- illā
- إِلَّا
- मगर
- min
- مِنْ
- अल्लाह के पास से
- ʿindi
- عِندِ
- अल्लाह के पास से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के पास से
- l-ʿazīzi
- ٱلْعَزِيزِ
- जो बहुत ज़बरदस्त है
- l-ḥakīmi
- ٱلْحَكِيمِ
- बहुत हिकमत वाला है
अल्लाह ने तो इसे तुम्हारे लिए बस एक शुभ-सूचना बनाया और इसलिए कि तुम्हारे दिल सन्तुष्ट हो जाएँ - सहायता तो बस अल्लाह ही के यहाँ से आती है जो अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ([३] आले इमरान: 126)Tafseer (तफ़सीर )
لِيَقْطَعَ طَرَفًا مِّنَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اَوْ يَكْبِتَهُمْ فَيَنْقَلِبُوْا خَاۤىِٕبِيْنَ ١٢٧
- liyaqṭaʿa
- لِيَقْطَعَ
- ताकि वो काट दे
- ṭarafan
- طَرَفًا
- एक हिस्सा
- mina
- مِّنَ
- उनका जिन्होंने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनका जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوٓا۟
- कुफ़्र किया
- aw
- أَوْ
- या
- yakbitahum
- يَكْبِتَهُمْ
- वो ज़लील कर दे उन्हें
- fayanqalibū
- فَيَنقَلِبُوا۟
- तो वो लौट जाऐं
- khāibīna
- خَآئِبِينَ
- नामुराद (हो कर)
ताकि इनकार करनेवालों के एक हिस्से को काट डाले या उन्हें बुरी पराजित और अपमानित कर दे कि वे असफल होकर लौटें ([३] आले इमरान: 127)Tafseer (तफ़सीर )
لَيْسَ لَكَ مِنَ الْاَمْرِ شَيْءٌ اَوْ يَتُوْبَ عَلَيْهِمْ اَوْ يُعَذِّبَهُمْ فَاِنَّهُمْ ظٰلِمُوْنَ ١٢٨
- laysa
- لَيْسَ
- नहीं है
- laka
- لَكَ
- आपके लिए
- mina
- مِنَ
- मामला में से
- l-amri
- ٱلْأَمْرِ
- मामला में से
- shayon
- شَىْءٌ
- कुछ भी
- aw
- أَوْ
- ख़्वाह
- yatūba
- يَتُوبَ
- वो मेहरबान हो जाए
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- aw
- أَوْ
- या
- yuʿadhibahum
- يُعَذِّبَهُمْ
- वो अज़ाब दे उन्हें
- fa-innahum
- فَإِنَّهُمْ
- तो बेशक वो
- ẓālimūna
- ظَٰلِمُونَ
- ज़ालिम हैं
तुम्हें इस मामले में कोई अधिकार नहीं - चाहे वह उसकी तौबा क़बूल करे या उन्हें यातना दे, क्योंकि वे अत्याचारी है ([३] आले इमरान: 128)Tafseer (तफ़सीर )
وَلِلّٰهِ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الْاَرْضِۗ يَغْفِرُ لِمَنْ يَّشَاۤءُ وَيُعَذِّبُ مَنْ يَّشَاۤءُ ۗ وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ࣖ ١٢٩
- walillahi
- وَلِلَّهِ
- और अल्लाह ही के लिए है
- mā
- مَا
- जो कुछ
- fī
- فِى
- आसमानों में है
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों में है
- wamā
- وَمَا
- और जो कुछ
- fī
- فِى
- ज़मीन में है
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِۚ
- ज़मीन में है
- yaghfiru
- يَغْفِرُ
- वो बख़्श देता है
- liman
- لِمَن
- जिसके लिए
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- wayuʿadhibu
- وَيُعَذِّبُ
- और वो अज़ाब देता है
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُۚ
- वो चाहता है
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ghafūrun
- غَفُورٌ
- बहुत बख़्शने वाला है
- raḥīmun
- رَّحِيمٌ
- निहायत रहम करने वाला है
आकाशों और धरती में जो कुछ भी है, अल्लाह ही का है। वह जिसे चाहे क्षमा कर दे और जिसे चाहे यातना दे। और अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है ([३] आले इमरान: 129)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَأْكُلُوا الرِّبٰوٓا اَضْعَافًا مُّضٰعَفَةً ۖوَّاتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَۚ ١٣٠
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- lā
- لَا
- ना तुम खाओ
- takulū
- تَأْكُلُوا۟
- ना तुम खाओ
- l-riba
- ٱلرِّبَوٰٓا۟
- सूद
- aḍʿāfan
- أَضْعَٰفًا
- कई गुना
- muḍāʿafatan
- مُّضَٰعَفَةًۖ
- बढ़ा चढ़ा कर
- wa-ittaqū
- وَٱتَّقُوا۟
- और डरो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tuf'liḥūna
- تُفْلِحُونَ
- तुम फ़लाह पा जाओ
ऐ ईमान लानेवालो! बढ़ोत्तरी के ध्येय से ब्याज न खाओ, जो कई गुना अधिक हो सकता है। और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो ([३] आले इमरान: 130)Tafseer (तफ़सीर )