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सूरा आले इमरान - Page: 13

Ali 'Imran

(इमरान का घराना)

१२१

وَاِذْ غَدَوْتَ مِنْ اَهْلِكَ تُبَوِّئُ الْمُؤْمِنِيْنَ مَقَاعِدَ لِلْقِتَالِ ۗ وَاللّٰهُ سَمِيْعٌ عَلِيْمٌۙ ١٢١

wa-idh
وَإِذْ
और जब
ghadawta
غَدَوْتَ
सुबह सवेरे निकले आप
min
مِنْ
अपने घर वालों से
ahlika
أَهْلِكَ
अपने घर वालों से
tubawwi-u
تُبَوِّئُ
आप मुतय्यन (तैनात) कर रहे थे
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों को
maqāʿida
مَقَٰعِدَ
ठिकानों/मोर्चों पर
lil'qitāli
لِلْقِتَالِۗ
जंग के लिए
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
samīʿun
سَمِيعٌ
ख़ूब सुनने वाला है
ʿalīmun
عَلِيمٌ
ख़ूब जानने वाला है
याद करो जब तुम सवेरे अपने घर से निकलकर ईमानवालों को युद्ध के मोर्चों पर लगा रहे थे। - अल्लाह तो सब कुछ सुनता, जानता है ([३] आले इमरान: 121)
Tafseer (तफ़सीर )
१२२

اِذْ هَمَّتْ طَّۤاىِٕفَتٰنِ مِنْكُمْ اَنْ تَفْشَلَاۙ وَاللّٰهُ وَلِيُّهُمَا ۗ وَعَلَى اللّٰهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُوْنَ ١٢٢

idh
إِذْ
जब
hammat
هَمَّت
इरादा किया
ṭāifatāni
طَّآئِفَتَانِ
दो गिरोहों ने
minkum
مِنكُمْ
तुम में से
an
أَن
कि
tafshalā
تَفْشَلَا
वो दोनों बुज़दिली दिखाऐं
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
waliyyuhumā
وَلِيُّهُمَاۗ
मददगार था उन दोनों का
waʿalā
وَعَلَى
और अल्लाह ही पर
l-lahi
ٱللَّهِ
और अल्लाह ही पर
falyatawakkali
فَلْيَتَوَكَّلِ
पस चाहिए कि तवक्कल करें
l-mu'minūna
ٱلْمُؤْمِنُونَ
ईमान वाले
जब तुम्हारे दो गिरोहों ने साहस छोड़ देना चाहा, जबकि अल्लाह उनका संरक्षक मौजूद था - और ईमानवालों को तो अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए ([३] आले इमरान: 122)
Tafseer (तफ़सीर )
१२३

وَلَقَدْ نَصَرَكُمُ اللّٰهُ بِبَدْرٍ وَّاَنْتُمْ اَذِلَّةٌ ۚ فَاتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ١٢٣

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
naṣarakumu
نَصَرَكُمُ
मदद की तुम्हारी
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
bibadrin
بِبَدْرٍ
बदर में
wa-antum
وَأَنتُمْ
हालाँकि तुम
adhillatun
أَذِلَّةٌۖ
कमज़ोर थे
fa-ittaqū
فَٱتَّقُوا۟
पस डरो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tashkurūna
تَشْكُرُونَ
तुम शुक्र अदा करो
और बद्र में अल्लाह तुम्हारी सहायता कर भी चुका था, जबकि तुम बहुत कमज़ोर हालत में थे। अतः अल्लाह ही का डर रखो, ताकि तुम कृतज्ञ बनो ([३] आले इमरान: 123)
Tafseer (तफ़सीर )
१२४

اِذْ تَقُوْلُ لِلْمُؤْمِنِيْنَ اَلَنْ يَّكْفِيَكُمْ اَنْ يُّمِدَّكُمْ رَبُّكُمْ بِثَلٰثَةِ اٰلَافٍ مِّنَ الْمَلٰۤىِٕكَةِ مُنْزَلِيْنَۗ ١٢٤

idh
إِذْ
जब
taqūlu
تَقُولُ
आप कह रहे थे
lil'mu'minīna
لِلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों को
alan
أَلَن
क्या नहीं
yakfiyakum
يَكْفِيَكُمْ
काफ़ी होगा तुम्हें
an
أَن
कि
yumiddakum
يُمِدَّكُمْ
मदद करे तुम्हारी
rabbukum
رَبُّكُم
रब तुम्हारा
bithalāthati
بِثَلَٰثَةِ
साथ तीन
ālāfin
ءَالَٰفٍ
हज़ार
mina
مِّنَ
फ़रिश्तों के
l-malāikati
ٱلْمَلَٰٓئِكَةِ
फ़रिश्तों के
munzalīna
مُنزَلِينَ
उतारे हुए
जब तुम ईमानवालों से कह रहे थे, 'क्या यह तुम्हारे लिए काफ़ी नही हैं कि तुम्हारा रब तीन हज़ार फ़रिश्ते उतारकर तुम्हारी सहायता करे?' ([३] आले इमरान: 124)
Tafseer (तफ़सीर )
१२५

بَلٰٓى ۙاِنْ تَصْبِرُوْا وَتَتَّقُوْا وَيَأْتُوْكُمْ مِّنْ فَوْرِهِمْ هٰذَا يُمْدِدْكُمْ رَبُّكُمْ بِخَمْسَةِ اٰلَافٍ مِّنَ الْمَلٰۤىِٕكَةِ مُسَوِّمِيْنَ ١٢٥

balā
بَلَىٰٓۚ
क्यों नहीं/बल्कि
in
إِن
अगर
taṣbirū
تَصْبِرُوا۟
तुम सब्र करोगे
watattaqū
وَتَتَّقُوا۟
और तुम तक़वा करोगे
wayatūkum
وَيَأْتُوكُم
और वो आऐं तुम्हारे पास
min
مِّن
अपने जोश से
fawrihim
فَوْرِهِمْ
अपने जोश से
hādhā
هَٰذَا
इस तरह
yum'did'kum
يُمْدِدْكُمْ
मदद करेगा तुम्हारी
rabbukum
رَبُّكُم
रब तुम्हारा
bikhamsati
بِخَمْسَةِ
साथ पाँच
ālāfin
ءَالَٰفٍ
हज़ार
mina
مِّنَ
फ़रिश्तों के
l-malāikati
ٱلْمَلَٰٓئِكَةِ
फ़रिश्तों के
musawwimīna
مُسَوِّمِينَ
निशान लगाने वाले
हाँ, क्यों नहीं। यदि तुम धैर्य से काम लो और डर रखो, फिर शत्रु सहसा तुमपर चढ़ आएँ, उसी क्षण तुम्हारा रब पाँच हज़ार विध्वंशकारी फ़रिश्तों से तुम्हारी सहायता करेगा ([३] आले इमरान: 125)
Tafseer (तफ़सीर )
१२६

وَمَا جَعَلَهُ اللّٰهُ اِلَّا بُشْرٰى لَكُمْ وَلِتَطْمَىِٕنَّ قُلُوْبُكُمْ بِهٖ ۗ وَمَا النَّصْرُ اِلَّا مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ الْعَزِيْزِ الْحَكِيْمِۙ ١٢٦

wamā
وَمَا
और नहीं
jaʿalahu
جَعَلَهُ
बनाया उसे
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
illā
إِلَّا
मगर
bush'rā
بُشْرَىٰ
ख़ुशख़बरी
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
walitaṭma-inna
وَلِتَطْمَئِنَّ
और ताकि मुत्मईन हो जाऐं
qulūbukum
قُلُوبُكُم
दिल तुम्हारे
bihi
بِهِۦۗ
साथ इसके
wamā
وَمَا
और नहीं
l-naṣru
ٱلنَّصْرُ
मदद
illā
إِلَّا
मगर
min
مِنْ
अल्लाह के पास से
ʿindi
عِندِ
अल्लाह के पास से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के पास से
l-ʿazīzi
ٱلْعَزِيزِ
जो बहुत ज़बरदस्त है
l-ḥakīmi
ٱلْحَكِيمِ
बहुत हिकमत वाला है
अल्लाह ने तो इसे तुम्हारे लिए बस एक शुभ-सूचना बनाया और इसलिए कि तुम्हारे दिल सन्तुष्ट हो जाएँ - सहायता तो बस अल्लाह ही के यहाँ से आती है जो अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ([३] आले इमरान: 126)
Tafseer (तफ़सीर )
१२७

لِيَقْطَعَ طَرَفًا مِّنَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اَوْ يَكْبِتَهُمْ فَيَنْقَلِبُوْا خَاۤىِٕبِيْنَ ١٢٧

liyaqṭaʿa
لِيَقْطَعَ
ताकि वो काट दे
ṭarafan
طَرَفًا
एक हिस्सा
mina
مِّنَ
उनका जिन्होंने
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनका जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوٓا۟
कुफ़्र किया
aw
أَوْ
या
yakbitahum
يَكْبِتَهُمْ
वो ज़लील कर दे उन्हें
fayanqalibū
فَيَنقَلِبُوا۟
तो वो लौट जाऐं
khāibīna
خَآئِبِينَ
नामुराद (हो कर)
ताकि इनकार करनेवालों के एक हिस्से को काट डाले या उन्हें बुरी पराजित और अपमानित कर दे कि वे असफल होकर लौटें ([३] आले इमरान: 127)
Tafseer (तफ़सीर )
१२८

لَيْسَ لَكَ مِنَ الْاَمْرِ شَيْءٌ اَوْ يَتُوْبَ عَلَيْهِمْ اَوْ يُعَذِّبَهُمْ فَاِنَّهُمْ ظٰلِمُوْنَ ١٢٨

laysa
لَيْسَ
नहीं है
laka
لَكَ
आपके लिए
mina
مِنَ
मामला में से
l-amri
ٱلْأَمْرِ
मामला में से
shayon
شَىْءٌ
कुछ भी
aw
أَوْ
ख़्वाह
yatūba
يَتُوبَ
वो मेहरबान हो जाए
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
aw
أَوْ
या
yuʿadhibahum
يُعَذِّبَهُمْ
वो अज़ाब दे उन्हें
fa-innahum
فَإِنَّهُمْ
तो बेशक वो
ẓālimūna
ظَٰلِمُونَ
ज़ालिम हैं
तुम्हें इस मामले में कोई अधिकार नहीं - चाहे वह उसकी तौबा क़बूल करे या उन्हें यातना दे, क्योंकि वे अत्याचारी है ([३] आले इमरान: 128)
Tafseer (तफ़सीर )
१२९

وَلِلّٰهِ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الْاَرْضِۗ يَغْفِرُ لِمَنْ يَّشَاۤءُ وَيُعَذِّبُ مَنْ يَّشَاۤءُ ۗ وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ࣖ ١٢٩

walillahi
وَلِلَّهِ
और अल्लाह ही के लिए है
مَا
जो कुछ
فِى
आसमानों में है
l-samāwāti
ٱلسَّمَٰوَٰتِ
आसमानों में है
wamā
وَمَا
और जो कुछ
فِى
ज़मीन में है
l-arḍi
ٱلْأَرْضِۚ
ज़मीन में है
yaghfiru
يَغْفِرُ
वो बख़्श देता है
liman
لِمَن
जिसके लिए
yashāu
يَشَآءُ
वो चाहता है
wayuʿadhibu
وَيُعَذِّبُ
और वो अज़ाब देता है
man
مَن
जिसे
yashāu
يَشَآءُۚ
वो चाहता है
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
ghafūrun
غَفُورٌ
बहुत बख़्शने वाला है
raḥīmun
رَّحِيمٌ
निहायत रहम करने वाला है
आकाशों और धरती में जो कुछ भी है, अल्लाह ही का है। वह जिसे चाहे क्षमा कर दे और जिसे चाहे यातना दे। और अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है ([३] आले इमरान: 129)
Tafseer (तफ़सीर )
१३०

يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَأْكُلُوا الرِّبٰوٓا اَضْعَافًا مُّضٰعَفَةً ۖوَّاتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَۚ ١٣٠

yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
ऐ लोगो जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
ऐ लोगो जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए हो
لَا
ना तुम खाओ
takulū
تَأْكُلُوا۟
ना तुम खाओ
l-riba
ٱلرِّبَوٰٓا۟
सूद
aḍʿāfan
أَضْعَٰفًا
कई गुना
muḍāʿafatan
مُّضَٰعَفَةًۖ
बढ़ा चढ़ा कर
wa-ittaqū
وَٱتَّقُوا۟
और डरो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tuf'liḥūna
تُفْلِحُونَ
तुम फ़लाह पा जाओ
ऐ ईमान लानेवालो! बढ़ोत्तरी के ध्येय से ब्याज न खाओ, जो कई गुना अधिक हो सकता है। और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो ([३] आले इमरान: 130)
Tafseer (तफ़सीर )