وَكَيْفَ تَكْفُرُوْنَ وَاَنْتُمْ تُتْلٰى عَلَيْكُمْ اٰيٰتُ اللّٰهِ وَفِيْكُمْ رَسُوْلُهٗ ۗ وَمَنْ يَّعْتَصِمْ بِاللّٰهِ فَقَدْ هُدِيَ اِلٰى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيْمٍ ࣖ ١٠١
- wakayfa
- وَكَيْفَ
- और कैसे
- takfurūna
- تَكْفُرُونَ
- तुम कुफ़्र करते हो
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- हालाँकि तुम
- tut'lā
- تُتْلَىٰ
- पढ़ी जाती हैं
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- āyātu
- ءَايَٰتُ
- आयात
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- wafīkum
- وَفِيكُمْ
- और तुम में है
- rasūluhu
- رَسُولُهُۥۗ
- रसूल उसका
- waman
- وَمَن
- और जो
- yaʿtaṣim
- يَعْتَصِم
- थाम ले
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह को
- faqad
- فَقَدْ
- तो तहक़ीक़
- hudiya
- هُدِىَ
- वो हिदायत दे दिया गया
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ रास्ते
- ṣirāṭin
- صِرَٰطٍ
- तरफ़ रास्ते
- mus'taqīmin
- مُّسْتَقِيمٍ
- सीधे के
अब तुम इनकार कैसे कर सकते हो, जबकि तुम्हें अल्लाह की आयतें पढ़कर सुनाई जा रही है और उसका रसूल तुम्हारे बीच मौजूद है? जो कोई अल्लाह को मज़बूती से पकड़ ले, वह सीधे मार्ग पर आ गया ([३] आले इमरान: 101)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوا اتَّقُوا اللّٰهَ حَقَّ تُقٰىتِهٖ وَلَا تَمُوْتُنَّ اِلَّا وَاَنْتُمْ مُّسْلِمُوْنَ ١٠٢
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- ittaqū
- ٱتَّقُوا۟
- डरो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- ḥaqqa
- حَقَّ
- हक़ है (जैसे)
- tuqātihi
- تُقَاتِهِۦ
- उससे डरने का
- walā
- وَلَا
- और हरगिज़ ना तुम मरना
- tamūtunna
- تَمُوتُنَّ
- और हरगिज़ ना तुम मरना
- illā
- إِلَّا
- मगर
- wa-antum
- وَأَنتُم
- इस हाल में कि तुम
- mus'limūna
- مُّسْلِمُونَ
- मुसलमान हो
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो, जैसाकि उसका डर रखने का हक़ है। और तुम्हारी मृत्यु बस इस दशा में आए कि तुम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो ([३] आले इमरान: 102)Tafseer (तफ़सीर )
وَاعْتَصِمُوْا بِحَبْلِ اللّٰهِ جَمِيْعًا وَّلَا تَفَرَّقُوْا ۖوَاذْكُرُوْا نِعْمَتَ اللّٰهِ عَلَيْكُمْ اِذْ كُنْتُمْ اَعْدَاۤءً فَاَلَّفَ بَيْنَ قُلُوْبِكُمْ فَاَصْبَحْتُمْ بِنِعْمَتِهٖٓ اِخْوَانًاۚ وَكُنْتُمْ عَلٰى شَفَا حُفْرَةٍ مِّنَ النَّارِ فَاَنْقَذَكُمْ مِّنْهَا ۗ كَذٰلِكَ يُبَيِّنُ اللّٰهُ لَكُمْ اٰيٰتِهٖ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُوْنَ ١٠٣
- wa-iʿ'taṣimū
- وَٱعْتَصِمُوا۟
- और मज़बूती से पकड़ लो
- biḥabli
- بِحَبْلِ
- अल्लाह की रस्सी को
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की रस्सी को
- jamīʿan
- جَمِيعًا
- सबके सब
- walā
- وَلَا
- और ना
- tafarraqū
- تَفَرَّقُوا۟ۚ
- तुम फ़िरक़ा-फ़िरका बनो
- wa-udh'kurū
- وَٱذْكُرُوا۟
- और याद करो
- niʿ'mata
- نِعْمَتَ
- नेअमत को
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- अपने ऊपर
- idh
- إِذْ
- जब
- kuntum
- كُنتُمْ
- थे तुम
- aʿdāan
- أَعْدَآءً
- दुश्मन
- fa-allafa
- فَأَلَّفَ
- तो उसने उल्फ़त डाल दी
- bayna
- بَيْنَ
- दर्मियान
- qulūbikum
- قُلُوبِكُمْ
- तुम्हारे दिलों के
- fa-aṣbaḥtum
- فَأَصْبَحْتُم
- तो हो गए तुम
- biniʿ'matihi
- بِنِعْمَتِهِۦٓ
- उसकी नेअमत से
- ikh'wānan
- إِخْوَٰنًا
- भाई-भाई
- wakuntum
- وَكُنتُمْ
- और थे तुम
- ʿalā
- عَلَىٰ
- किनारे पर
- shafā
- شَفَا
- किनारे पर
- ḥuf'ratin
- حُفْرَةٍ
- गढ़े के
- mina
- مِّنَ
- आग के
- l-nāri
- ٱلنَّارِ
- आग के
- fa-anqadhakum
- فَأَنقَذَكُم
- तो उसने बचा लिया तुम्हें
- min'hā
- مِّنْهَاۗ
- उससे
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- yubayyinu
- يُبَيِّنُ
- वाज़ेह करता है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- āyātihi
- ءَايَٰتِهِۦ
- आयात अपनी
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tahtadūna
- تَهْتَدُونَ
- तुम हिदायत पाओ
और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और विभेद में न पड़ो। और अल्लाह की उस कृपा को याद करो जो तुमपर हुई। जब तुम आपस में एक-दूसरे के शत्रु थे तो उसने तुम्हारे दिलों को परस्पर जोड़ दिया और तुम उसकी कृपा से भाई-भाई बन गए। तुम आग के एक गड्ढे के किनारे खड़े थे, तो अल्लाह ने उससे तुम्हें बचा लिया। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयते खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम मार्ग पा लो ([३] आले इमरान: 103)Tafseer (तफ़सीर )
وَلْتَكُنْ مِّنْكُمْ اُمَّةٌ يَّدْعُوْنَ اِلَى الْخَيْرِ وَيَأْمُرُوْنَ بِالْمَعْرُوْفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ ۗ وَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ ١٠٤
- waltakun
- وَلْتَكُن
- और ज़रूर हो
- minkum
- مِّنكُمْ
- तुम में से
- ummatun
- أُمَّةٌ
- एक गिरोह (के लोग)
- yadʿūna
- يَدْعُونَ
- जो दावत दें
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ ख़ैर के
- l-khayri
- ٱلْخَيْرِ
- तरफ़ ख़ैर के
- wayamurūna
- وَيَأْمُرُونَ
- और जो हुक्म दें
- bil-maʿrūfi
- بِٱلْمَعْرُوفِ
- नेकी का
- wayanhawna
- وَيَنْهَوْنَ
- और जो रोकें
- ʿani
- عَنِ
- बुराई से
- l-munkari
- ٱلْمُنكَرِۚ
- बुराई से
- wa-ulāika
- وَأُو۟لَٰٓئِكَ
- और यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-muf'liḥūna
- ٱلْمُفْلِحُونَ
- जो फ़लाह पाने वाले हैं
और तुम्हें एक ऐसे समुदाय का रूप धारण कर लेना चाहिए जो नेकी की ओर बुलाए और भलाई का आदेश दे और बुराई से रोके। यही सफलता प्राप्त करनेवाले लोग है ([३] आले इमरान: 104)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا تَكُوْنُوْا كَالَّذِيْنَ تَفَرَّقُوْا وَاخْتَلَفُوْا مِنْۢ بَعْدِ مَا جَاۤءَهُمُ الْبَيِّنٰتُ ۗ وَاُولٰۤىِٕكَ لَهُمْ عَذَابٌ عَظِيْمٌ ۙ ١٠٥
- walā
- وَلَا
- और ना
- takūnū
- تَكُونُوا۟
- तुम हो जाना
- ka-alladhīna
- كَٱلَّذِينَ
- उनकी तरह जो
- tafarraqū
- تَفَرَّقُوا۟
- फ़िरक़ा-फ़िरक़ा बन गए
- wa-ikh'talafū
- وَٱخْتَلَفُوا۟
- और उन्होंने इख़्तिलाफ़ किया
- min
- مِنۢ
- बाद इसके
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद इसके
- mā
- مَا
- जो
- jāahumu
- جَآءَهُمُ
- आ गईं उनके पास
- l-bayinātu
- ٱلْبَيِّنَٰتُۚ
- वाज़ेह निशानियाँ
- wa-ulāika
- وَأُو۟لَٰٓئِكَ
- और यही लोग हैं
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब है
- ʿaẓīmun
- عَظِيمٌ
- बहुत बड़ा
तुम उन लोगों की तरह न हो जाना जो विभेद में पड़ गए, और इसके पश्चात कि उनके पास खुली निशानियाँ आ चुकी थी, वे विभेद में पड़ गए। ये वही लोग है, जिनके लिए बड़ी (घोर) यातना है। (यह यातना उस दिन होगी) ([३] आले इमरान: 105)Tafseer (तफ़सीर )
يَّوْمَ تَبْيَضُّ وُجُوْهٌ وَّتَسْوَدُّ وُجُوْهٌ ۚ فَاَمَّا الَّذِيْنَ اسْوَدَّتْ وُجُوْهُهُمْۗ اَ كَفَرْتُمْ بَعْدَ اِيْمَانِكُمْ فَذُوْقُوا الْعَذَابَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُوْنَ ١٠٦
- yawma
- يَوْمَ
- जिस दिन
- tabyaḍḍu
- تَبْيَضُّ
- रोशन होंगे
- wujūhun
- وُجُوهٌ
- कुछ चेहरे
- wataswaddu
- وَتَسْوَدُّ
- और स्याह होंगे
- wujūhun
- وُجُوهٌۚ
- कुछ चेहरे
- fa-ammā
- فَأَمَّا
- तो रहे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- is'waddat
- ٱسْوَدَّتْ
- स्याह होंगे
- wujūhuhum
- وُجُوهُهُمْ
- चेहरे जिनके
- akafartum
- أَكَفَرْتُم
- क्या कुफ़्र किया तुमने
- baʿda
- بَعْدَ
- बाद
- īmānikum
- إِيمَٰنِكُمْ
- अपने ईमान के
- fadhūqū
- فَذُوقُوا۟
- पस चखो
- l-ʿadhāba
- ٱلْعَذَابَ
- अज़ाब को
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- kuntum
- كُنتُمْ
- थे तुम
- takfurūna
- تَكْفُرُونَ
- तुम कुफ़्र करते
जिस दिन कितने ही चेहरे उज्ज्वल होंगे और कितने ही चेहरे काले पड़ जाएँगे, तो जिनके चेहेर काले पड़ गए होंगे (वे सदा यातना में ग्रस्त रहेंगे। खुली निशानियाँ आने का बाद जिन्होंने विभेद किया) उनसे कहा जाएगा, 'क्या तुमने ईमान के पश्चात इनकार की नीति अपनाई? तो लो अब उस इनकार के बदले में जो तुम करते रहे हो, यातना का मज़ा चखो।' ([३] आले इमरान: 106)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَمَّا الَّذِيْنَ ابْيَضَّتْ وُجُوْهُهُمْ فَفِيْ رَحْمَةِ اللّٰهِ ۗ هُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَ ١٠٧
- wa-ammā
- وَأَمَّا
- और रहे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- ib'yaḍḍat
- ٱبْيَضَّتْ
- सफ़ेद होंगे
- wujūhuhum
- وُجُوهُهُمْ
- चेहरे जिनके
- fafī
- فَفِى
- तो रहमत में होंगे
- raḥmati
- رَحْمَةِ
- तो रहमत में होंगे
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- hum
- هُمْ
- वो
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- khālidūna
- خَٰلِدُونَ
- हमेशा रहने वाले हैं
रहे वे लोग जिनके चेहरे उज्ज्वल होंगे, वे अल्लाह की दयालुता की छाया में होंगे। वे उसी में सदैव रहेंगे ([३] आले इमरान: 107)Tafseer (तफ़सीर )
تِلْكَ اٰيٰتُ اللّٰهِ نَتْلُوْهَا عَلَيْكَ بِالْحَقِّ ۗ وَمَا اللّٰهُ يُرِيْدُ ظُلْمًا لِّلْعٰلَمِيْنَ ١٠٨
- til'ka
- تِلْكَ
- ये
- āyātu
- ءَايَٰتُ
- आयात हैं
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- natlūhā
- نَتْلُوهَا
- हम पढ़ रहे हैं उन्हें
- ʿalayka
- عَلَيْكَ
- आप पर
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّۗ
- साथ हक़ के
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- yurīdu
- يُرِيدُ
- इरादा रखता
- ẓul'man
- ظُلْمًا
- किसी ज़ुल्म का
- lil'ʿālamīna
- لِّلْعَٰلَمِينَ
- जहान वालों के लिए
ये अल्लाह की आयतें है, जिन्हें हम हक़ के साथ तुम्हें सुना रहे है। अल्लाह संसारवालों पर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं करना चाहता ([३] आले इमरान: 108)Tafseer (तफ़सीर )
وَلِلّٰهِ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الْاَرْضِ ۗوَاِلَى اللّٰهِ تُرْجَعُ الْاُمُوْرُ ࣖ ١٠٩
- walillahi
- وَلِلَّهِ
- और अल्लाह ही के लिए है
- mā
- مَا
- जो कुछ
- fī
- فِى
- आसमानों में है
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों में है
- wamā
- وَمَا
- और जो कुछ
- fī
- فِى
- ज़मीन में है
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِۚ
- ज़मीन में है
- wa-ilā
- وَإِلَى
- और तरफ़ अल्लाह ही के
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- और तरफ़ अल्लाह ही के
- tur'jaʿu
- تُرْجَعُ
- लौटाए जाते हैं
- l-umūru
- ٱلْأُمُورُ
- सब काम
आकाशों और धरती मे जो कुछ है अल्लाह ही का है, और सारे मामले अल्लाह ही की ओर लौटाए जाते है ([३] आले इमरान: 109)Tafseer (तफ़सीर )
كُنْتُمْ خَيْرَ اُمَّةٍ اُخْرِجَتْ لِلنَّاسِ تَأْمُرُوْنَ بِالْمَعْرُوْفِ وَتَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَتُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ ۗ وَلَوْ اٰمَنَ اَهْلُ الْكِتٰبِ لَكَانَ خَيْرًا لَّهُمْ ۗ مِنْهُمُ الْمُؤْمِنُوْنَ وَاَكْثَرُهُمُ الْفٰسِقُوْنَ ١١٠
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- khayra
- خَيْرَ
- बेहतरीन
- ummatin
- أُمَّةٍ
- उम्मत
- ukh'rijat
- أُخْرِجَتْ
- निकाली गई हो
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- tamurūna
- تَأْمُرُونَ
- तुम हुक्म देते हो
- bil-maʿrūfi
- بِٱلْمَعْرُوفِ
- मारूफ़/अच्छाई का
- watanhawna
- وَتَنْهَوْنَ
- और तुम रोकते हो
- ʿani
- عَنِ
- मुन्कर/बुराई से
- l-munkari
- ٱلْمُنكَرِ
- मुन्कर/बुराई से
- watu'minūna
- وَتُؤْمِنُونَ
- और तुम ईमान लाते हो
- bil-lahi
- بِٱللَّهِۗ
- अल्लाह पर
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- āmana
- ءَامَنَ
- ईमान लाते
- ahlu
- أَهْلُ
- अहले किताब
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- अहले किताब
- lakāna
- لَكَانَ
- अलबत्ता होता
- khayran
- خَيْرًا
- बेहतर
- lahum
- لَّهُمۚ
- उनके लिए
- min'humu
- مِّنْهُمُ
- बाज़ उनके
- l-mu'minūna
- ٱلْمُؤْمِنُونَ
- मोमिन हैं
- wa-aktharuhumu
- وَأَكْثَرُهُمُ
- और अक्सर उनके
- l-fāsiqūna
- ٱلْفَٰسِقُونَ
- फ़ासिक़ है
तुम एक उत्तम समुदाय हो, जो लोगों के समक्ष लाया गया है। तुम नेकी का हुक्म देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो। और यदि किताबवाले भी ईमान लाते तो उनके लिए यह अच्छा होता। उनमें ईमानवाले भी हैं, किन्तु उनमें अधिकतर लोग अवज्ञाकारी ही हैं ([३] आले इमरान: 110)Tafseer (तफ़सीर )