اِنَّ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا وَمَاتُوْا وَهُمْ كُفَّارٌ فَلَنْ يُّقْبَلَ مِنْ اَحَدِهِمْ مِّلْءُ الْاَرْضِ ذَهَبًا وَّلَوِ افْتَدٰى بِهٖۗ اُولٰۤىِٕكَ لَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ وَّمَا لَهُمْ مِّنْ نّٰصِرِيْنَ ࣖ ۔ ٩١
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- wamātū
- وَمَاتُوا۟
- और मर गए
- wahum
- وَهُمْ
- इस हाल में कि वो
- kuffārun
- كُفَّارٌ
- काफ़िर थे
- falan
- فَلَن
- तो हरगिज़ ना
- yuq'bala
- يُقْبَلَ
- क़ुबूल किया जाएगा
- min
- مِنْ
- उनमें से किसी एक से
- aḥadihim
- أَحَدِهِم
- उनमें से किसी एक से
- mil'u
- مِّلْءُ
- ज़मीन भर
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन भर
- dhahaban
- ذَهَبًا
- सोना
- walawi
- وَلَوِ
- और अगरचे
- if'tadā
- ٱفْتَدَىٰ
- वो फ़िदया दे
- bihi
- بِهِۦٓۗ
- उसका
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब है
- alīmun
- أَلِيمٌ
- दर्दनाक
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- lahum
- لَهُم
- उनके लिए
- min
- مِّن
- मददगारों में से कोई
- nāṣirīna
- نَّٰصِرِينَ
- मददगारों में से कोई
निस्संदेह जिन लोगों ने इनकार किया और इनकार ही की दशा में मरे, तो उनमें किसी से धरती के बराबर सोना भी, यदि उसने प्राण-मुक्ति के लिए दिया हो, कदापि स्वीकार नहीं किया जाएगा। ऐसे लोगों के लिए दुखद यातना है और उनका कोई सहायक न होगा ([३] आले इमरान: 91)Tafseer (तफ़सीर )
لَنْ تَنَالُوا الْبِرَّ حَتّٰى تُنْفِقُوْا مِمَّا تُحِبُّوْنَ ۗوَمَا تُنْفِقُوْا مِنْ شَيْءٍ فَاِنَّ اللّٰهَ بِهٖ عَلِيْمٌ ٩٢
- lan
- لَن
- हरगिज़ नहीं
- tanālū
- تَنَالُوا۟
- तुम पा सकते
- l-bira
- ٱلْبِرَّ
- नेकी को
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- tunfiqū
- تُنفِقُوا۟
- तुम ख़र्च करो
- mimmā
- مِمَّا
- उसमें से जो
- tuḥibbūna
- تُحِبُّونَۚ
- तुम पसंद करते हो
- wamā
- وَمَا
- और जो
- tunfiqū
- تُنفِقُوا۟
- तुम ख़र्च करोगे
- min
- مِن
- कोई चीज़
- shayin
- شَىْءٍ
- कोई चीज़
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- bihi
- بِهِۦ
- उसे
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
तुम नेकी और वफ़ादारी के दर्जे को नहीं पहुँच सकते, जब तक कि उन चीज़ो को (अल्लाह के मार्ग में) ख़र्च न करो, जो तुम्हें प्रिय है। और जो चीज़ भी तुम ख़र्च करोगे, निश्चय ही अल्लाह को उसका ज्ञान होगा ([३] आले इमरान: 92)Tafseer (तफ़सीर )
۞ كُلُّ الطَّعَامِ كَانَ حِلًّا لِّبَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ اِلَّا مَا حَرَّمَ اِسْرَاۤءِيْلُ عَلٰى نَفْسِهٖ مِنْ قَبْلِ اَنْ تُنَزَّلَ التَّوْرٰىةُ ۗ قُلْ فَأْتُوْا بِالتَّوْرٰىةِ فَاتْلُوْهَآ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ٩٣
- kullu
- كُلُّ
- हर
- l-ṭaʿāmi
- ٱلطَّعَامِ
- खाना
- kāna
- كَانَ
- था
- ḥillan
- حِلًّا
- हलाल
- libanī
- لِّبَنِىٓ
- बनी इस्राईल के लिए
- is'rāīla
- إِسْرَٰٓءِيلَ
- बनी इस्राईल के लिए
- illā
- إِلَّا
- मगर
- mā
- مَا
- जो
- ḥarrama
- حَرَّمَ
- हराम किया
- is'rāīlu
- إِسْرَٰٓءِيلُ
- इस्राईल ने
- ʿalā
- عَلَىٰ
- अपने नफ़्स पर
- nafsihi
- نَفْسِهِۦ
- अपने नफ़्स पर
- min
- مِن
- इससे पहले
- qabli
- قَبْلِ
- इससे पहले
- an
- أَن
- कि
- tunazzala
- تُنَزَّلَ
- नाज़िल की जाती
- l-tawrātu
- ٱلتَّوْرَىٰةُۗ
- तौरात
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- fatū
- فَأْتُوا۟
- पस ले आओ
- bil-tawrāti
- بِٱلتَّوْرَىٰةِ
- तौरात को
- fa-it'lūhā
- فَٱتْلُوهَآ
- फिर पढ़ो उसे
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- ṣādiqīna
- صَٰدِقِينَ
- सच्चे
खाने की सारी चीज़े इसराईल की संतान के लिए हलाल थी, सिवाय उन चीज़ों के जिन्हें तौरात के उतरने से पहले इसराईल ने स्वयं अपने हराम कर लिया था। कहो, 'यदि तुम सच्चे हो तो तौरात लाओ और उसे पढ़ो।' ([३] आले इमरान: 93)Tafseer (तफ़सीर )
فَمَنِ افْتَرٰى عَلَى اللّٰهِ الْكَذِبَ مِنْۢ بَعْدِ ذٰلِكَ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ ٩٤
- famani
- فَمَنِ
- तो जो कोई
- if'tarā
- ٱفْتَرَىٰ
- गढ़ ले
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- l-kadhiba
- ٱلْكَذِبَ
- झूठ
- min
- مِنۢ
- बाद
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसके
- fa-ulāika
- فَأُو۟لَٰٓئِكَ
- तो यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-ẓālimūna
- ٱلظَّٰلِمُونَ
- जो ज़ालिम हैं
अब इसके पश्चात भी जो व्यक्ति झूठी बातें अल्लाह से जोड़े, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी है ([३] आले इमरान: 94)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ صَدَقَ اللّٰهُ ۗ فَاتَّبِعُوْا مِلَّةَ اِبْرٰهِيْمَ حَنِيْفًاۗ وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِيْنَ ٩٥
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- ṣadaqa
- صَدَقَ
- सच फ़रमाया
- l-lahu
- ٱللَّهُۗ
- अल्लाह ने
- fa-ittabiʿū
- فَٱتَّبِعُوا۟
- तो पैरवी करो
- millata
- مِلَّةَ
- मिल्लते
- ib'rāhīma
- إِبْرَٰهِيمَ
- इब्राहीम की
- ḥanīfan
- حَنِيفًا
- जो यकसू था
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kāna
- كَانَ
- था वो
- mina
- مِنَ
- मुशरिकीन में से
- l-mush'rikīna
- ٱلْمُشْرِكِينَ
- मुशरिकीन में से
कहो, 'अल्लाह ने सच कहा है; अतः इबराहीम के तरीक़े का अनुसरण करो, जो हर ओर से कटकर एक का हो गया था और मुशरिकों में से न था ([३] आले इमरान: 95)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ اَوَّلَ بَيْتٍ وُّضِعَ لِلنَّاسِ لَلَّذِيْ بِبَكَّةَ مُبٰرَكًا وَّهُدًى لِّلْعٰلَمِيْنَۚ ٩٦
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- awwala
- أَوَّلَ
- पहला
- baytin
- بَيْتٍ
- घर
- wuḍiʿa
- وُضِعَ
- जो बनाया गया
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- lalladhī
- لَلَّذِى
- यकीनन वही है जो
- bibakkata
- بِبَكَّةَ
- मक्का में है
- mubārakan
- مُبَارَكًا
- मुबारक/बाबरकत
- wahudan
- وَهُدًى
- और हिदायत है
- lil'ʿālamīna
- لِّلْعَٰلَمِينَ
- तमाम जहानों के लिए
'निस्ंसदेह इबादत के लिए पहला घर जो 'मानव के लिए' बनाया गया वहीं है जो मक्का में है, बरकतवाला और सर्वथा मार्गदर्शन, संसारवालों के लिए ([३] आले इमरान: 96)Tafseer (तफ़सीर )
فِيْهِ اٰيٰتٌۢ بَيِّنٰتٌ مَّقَامُ اِبْرٰهِيْمَ ەۚ وَمَنْ دَخَلَهٗ كَانَ اٰمِنًا ۗ وَلِلّٰهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ اِلَيْهِ سَبِيْلًا ۗ وَمَنْ كَفَرَ فَاِنَّ اللّٰهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعٰلَمِيْنَ ٩٧
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- āyātun
- ءَايَٰتٌۢ
- निशानियाँ हैं
- bayyinātun
- بَيِّنَٰتٌ
- वाज़ेह
- maqāmu
- مَّقَامُ
- मक़ामे
- ib'rāhīma
- إِبْرَٰهِيمَۖ
- इब्राहीम है
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- dakhalahu
- دَخَلَهُۥ
- दाख़िल हुआ उसमें
- kāna
- كَانَ
- वो हो गया
- āminan
- ءَامِنًاۗ
- अमन वाला
- walillahi
- وَلِلَّهِ
- और अल्लाह ही के लिए
- ʿalā
- عَلَى
- ऊपर
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोगों के
- ḥijju
- حِجُّ
- हज करना है
- l-bayti
- ٱلْبَيْتِ
- बैतुल्लाह का
- mani
- مَنِ
- जो कोई
- is'taṭāʿa
- ٱسْتَطَاعَ
- इस्तिताअत रखता हो
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ इसके
- sabīlan
- سَبِيلًاۚ
- रास्ते की
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- kafara
- كَفَرَ
- कुफ़्र करे
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- ghaniyyun
- غَنِىٌّ
- बहुत बेनियाज़ है
- ʿani
- عَنِ
- तमाम जहानों से
- l-ʿālamīna
- ٱلْعَٰلَمِينَ
- तमाम जहानों से
'उसमें स्पष्ट निशानियाँ है, वह इबराहीम का स्थल है। और जिसने उसमें प्रवेश किया, वह निश्चिन्त हो गया। लोगों पर अल्लाह का हक़ है कि जिसको वहाँ तक पहुँचने की सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज करे, और जिसने इनकार किया तो (इस इनकार से अल्लाह का कुछ नहीं बिगड़ता) अल्लाह तो सारे संसार से निरपेक्ष है।' ([३] आले इमरान: 97)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ يٰٓاَهْلَ الْكِتٰبِ لِمَ تَكْفُرُوْنَ بِاٰيٰتِ اللّٰهِ وَاللّٰهُ شَهِيْدٌ عَلٰى مَا تَعْمَلُوْنَ ٩٨
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- yāahla
- يَٰٓأَهْلَ
- ऐ अहले किताब
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- ऐ अहले किताब
- lima
- لِمَ
- क्यों
- takfurūna
- تَكْفُرُونَ
- तुम कुफ़्र करते हो
- biāyāti
- بِـَٔايَٰتِ
- अल्लाह की आयात का
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की आयात का
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- shahīdun
- شَهِيدٌ
- ख़ूब गवाह है
- ʿalā
- عَلَىٰ
- उस पर
- mā
- مَا
- जो
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते हो
कहो, 'ऐ किताबवालों! तुम अल्लाह की आयतों का इनकार क्यों करते हो, जबकि जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह की दृष्टिअ में है?' ([३] आले इमरान: 98)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ يٰٓاَهْلَ الْكِتٰبِ لِمَ تَصُدُّوْنَ عَنْ سَبِيْلِ اللّٰهِ مَنْ اٰمَنَ تَبْغُوْنَهَا عِوَجًا وَّاَنْتُمْ شُهَدَاۤءُ ۗ وَمَا اللّٰهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُوْنَ ٩٩
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- yāahla
- يَٰٓأَهْلَ
- ऐ अहले किताब
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- ऐ अहले किताब
- lima
- لِمَ
- क्यों
- taṣuddūna
- تَصُدُّونَ
- तुम रोकते /फेरते हो
- ʿan
- عَن
- अल्लाह के रास्ते से
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते से
- man
- مَنْ
- उसे जो
- āmana
- ءَامَنَ
- ईमान लाया
- tabghūnahā
- تَبْغُونَهَا
- तुम तलाश करते हो उसमें
- ʿiwajan
- عِوَجًا
- टेढ़ापन/कजी
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- हालाँकि तुम
- shuhadāu
- شُهَدَآءُۗ
- गवाह हो
- wamā
- وَمَا
- और नहीं है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- bighāfilin
- بِغَٰفِلٍ
- ग़ाफ़िल
- ʿammā
- عَمَّا
- उससे जो
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते हो
कहो, 'ऐ किताबवालो! तुम ईमान लानेवालों को अल्लाह के मार्ग से क्यो रोकते हो, तुम्हें उसमें किसी टेढ़ की तलाश रहती है, जबकि तुम भली-भाँति वास्तविकता से अवगत हो और जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है।' ([३] आले इमरान: 99)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اِنْ تُطِيْعُوْا فَرِيْقًا مِّنَ الَّذِيْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ يَرُدُّوْكُمْ بَعْدَ اِيْمَانِكُمْ كٰفِرِيْنَ ١٠٠
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوٓا۟
- जो ईमान लाए हो
- in
- إِن
- अगर
- tuṭīʿū
- تُطِيعُوا۟
- तुम इताअत करोगे
- farīqan
- فَرِيقًا
- एक गिरोह की
- mina
- مِّنَ
- उनमें से जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनमें से जो
- ūtū
- أُوتُوا۟
- दिए गए
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- yaruddūkum
- يَرُدُّوكُم
- वो फेर देंगे तुम्हें
- baʿda
- بَعْدَ
- बाद
- īmānikum
- إِيمَٰنِكُمْ
- तुम्हारे ईमान के
- kāfirīna
- كَٰفِرِينَ
- काफ़िर (बनाकर)
ऐ ईमान लानेवालो! यदि तुमने उनके किसी गिरोह की बात माल ली, जिन्हें किताब मिली थी, तो वे तुम्हारे ईमान लाने के पश्चात फिर तुम्हें अधर्मी बना देंगे ([३] आले इमरान: 100)Tafseer (तफ़सीर )