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सूरा अल-अनकबूत - Page: 7

Al-'Ankabut

(मकड़ी)

६१

وَلَىِٕنْ سَاَلْتَهُمْ مَّنْ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ لَيَقُوْلُنَّ اللّٰهُ ۗفَاَنّٰى يُؤْفَكُوْنَ ٦١

wala-in
وَلَئِن
और अलबत्ता अगर
sa-altahum
سَأَلْتَهُم
पूछें आप उनसे
man
مَّنْ
किस ने
khalaqa
خَلَقَ
पैदा किया
l-samāwāti
ٱلسَّمَٰوَٰتِ
आसमानों
wal-arḍa
وَٱلْأَرْضَ
और ज़मीन को
wasakhara
وَسَخَّرَ
और उसने मुसख़्ख़र किया
l-shamsa
ٱلشَّمْسَ
सूरज
wal-qamara
وَٱلْقَمَرَ
और चाँद को
layaqūlunna
لَيَقُولُنَّ
अलबत्ता वो ज़रूर कहेंगे
l-lahu
ٱللَّهُۖ
अल्लाह ने
fa-annā
فَأَنَّىٰ
तो कहाँ से
yu'fakūna
يُؤْفَكُونَ
वो फेरे जाते हैं
और यदि तुम उनसे पूछो कि 'किसने आकाशों और धरती को पैदा किया और सूर्य और चन्द्रमा को काम में लगाया?' तो वे बोल पड़ेगे, 'अल्लाह ने!' फिर वे किधर उलटे फिरे जाते है? ([२९] अल-अनकबूत: 61)
Tafseer (तफ़सीर )
६२

اَللّٰهُ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَّشَاۤءُ مِنْ عِبَادِهٖ وَيَقْدِرُ لَهٗ ۗاِنَّ اللّٰهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيْمٌ ٦٢

al-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
yabsuṭu
يَبْسُطُ
वो फैलाता देता है
l-riz'qa
ٱلرِّزْقَ
रिज़्क़ को
liman
لِمَن
जिसके लिए
yashāu
يَشَآءُ
वो चाहता है
min
مِنْ
अपने बन्दों में से
ʿibādihi
عِبَادِهِۦ
अपने बन्दों में से
wayaqdiru
وَيَقْدِرُ
और वो तंग कर देता है
lahu
لَهُۥٓۚ
उसके लिए
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
bikulli
بِكُلِّ
हर
shayin
شَىْءٍ
चीज़ को
ʿalīmun
عَلِيمٌ
ख़ूब जानने वाला है
अल्लाह अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है आजीविका विस्तीर्ण कर देता है और जिसके लिए चाहता है नपी-तुली कर देता है। निस्संदेह अल्लाह हरेक चीज़ को भली-भाँति जानता है ([२९] अल-अनकबूत: 62)
Tafseer (तफ़सीर )
६३

وَلَىِٕنْ سَاَلْتَهُمْ مَّنْ نَّزَّلَ مِنَ السَّمَاۤءِ مَاۤءً فَاَحْيَا بِهِ الْاَرْضَ مِنْۢ بَعْدِ مَوْتِهَا لَيَقُوْلُنَّ اللّٰهُ ۙقُلِ الْحَمْدُ لِلّٰهِ ۗبَلْ اَكْثَرُهُمْ لَا يَعْقِلُوْنَ ࣖ ٦٣

wala-in
وَلَئِن
और अलबत्ता अगर
sa-altahum
سَأَلْتَهُم
पूछें आप उनसे
man
مَّن
किसने
nazzala
نَّزَّلَ
नाज़िल किया
mina
مِنَ
आसमान से
l-samāi
ٱلسَّمَآءِ
आसमान से
māan
مَآءً
पानी
fa-aḥyā
فَأَحْيَا
फिर उसने ज़िन्दा किया
bihi
بِهِ
साथ उसके
l-arḍa
ٱلْأَرْضَ
ज़मीन को
min
مِنۢ
बाद
baʿdi
بَعْدِ
बाद
mawtihā
مَوْتِهَا
उसकी मौत के
layaqūlunna
لَيَقُولُنَّ
अलबत्ता वो ज़रूर कहेंगे
l-lahu
ٱللَّهُۚ
अल्लाह ने
quli
قُلِ
कह दीजिए
l-ḥamdu
ٱلْحَمْدُ
सब तारीफ़
lillahi
لِلَّهِۚ
अल्लाह के लिए है
bal
بَلْ
बल्कि
aktharuhum
أَكْثَرُهُمْ
अक्सर उनके
لَا
नहीं वो अक़्ल रखते
yaʿqilūna
يَعْقِلُونَ
नहीं वो अक़्ल रखते
और यदि तुम उनसे पूछो कि 'किसने आकाश से पानी बरसाया; फिर उसके द्वारा धरती को उसके मुर्दा हो जाने के पश्चात जीवित किया?' तो वे बोल पड़ेंगे, 'अल्लाह ने!' कहो, 'सारी प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है।' किन्तु उनमें से अधिकतर बुद्धि से काम नहीं लेते ([२९] अल-अनकबूत: 63)
Tafseer (तफ़सीर )
६४

وَمَا هٰذِهِ الْحَيٰوةُ الدُّنْيَآ اِلَّا لَهْوٌ وَّلَعِبٌۗ وَاِنَّ الدَّارَ الْاٰخِرَةَ لَهِيَ الْحَيَوَانُۘ لَوْ كَانُوْا يَعْلَمُوْنَ ٦٤

wamā
وَمَا
और नहीं
hādhihi
هَٰذِهِ
ये
l-ḥayatu
ٱلْحَيَوٰةُ
ज़िन्दगी
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَآ
दुनिया की
illā
إِلَّا
मगर
lahwun
لَهْوٌ
शुग़ल
walaʿibun
وَلَعِبٌۚ
और खेल
wa-inna
وَإِنَّ
और बेशक
l-dāra
ٱلدَّارَ
घर
l-ākhirata
ٱلْءَاخِرَةَ
आख़िरत का
lahiya
لَهِىَ
अलबत्ता वो ही
l-ḥayawānu
ٱلْحَيَوَانُۚ
ज़िन्दगी है
law
لَوْ
काश
kānū
كَانُوا۟
होते वो
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
वो इल्म रखते
और यह सांसारिक जीवन तो केवल दिल का बहलावा और खेल है। निस्संदेह पश्चात्वर्ती घर (का जीवन) ही वास्तविक जीवन है। क्या ही अच्छा होता कि वे जानते! ([२९] अल-अनकबूत: 64)
Tafseer (तफ़सीर )
६५

فَاِذَا رَكِبُوْا فِى الْفُلْكِ دَعَوُا اللّٰهَ مُخْلِصِيْنَ لَهُ الدِّيْنَ ەۚ فَلَمَّا نَجّٰىهُمْ اِلَى الْبَرِّ اِذَا هُمْ يُشْرِكُوْنَۙ ٦٥

fa-idhā
فَإِذَا
फिर जब
rakibū
رَكِبُوا۟
वो सवार होते हैं
فِى
कश्ती में
l-ful'ki
ٱلْفُلْكِ
कश्ती में
daʿawū
دَعَوُا۟
वो पुकारते हैं
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह को
mukh'liṣīna
مُخْلِصِينَ
ख़ालिस करने वाले हो कर
lahu
لَهُ
उसके लिए
l-dīna
ٱلدِّينَ
दीन को
falammā
فَلَمَّا
तो जब
najjāhum
نَجَّىٰهُمْ
वो निजात देता है उन्हें
ilā
إِلَى
तरफ़ ख़ुश्की के
l-bari
ٱلْبَرِّ
तरफ़ ख़ुश्की के
idhā
إِذَا
यकायक
hum
هُمْ
वो
yush'rikūna
يُشْرِكُونَ
वो शिर्क करने लगते हैं
जब वे नौका में सवार होते है तो वे अल्लाह को उसके दीन (आज्ञापालन) के लिए निष्ठा वान होकर पुकारते है। किन्तु जब वह उन्हें बचाकर शु्ष्क भूमि तक ले आता है तो क्या देखते है कि वे लगे (अल्लाह का साथ) साझी ठहराने ([२९] अल-अनकबूत: 65)
Tafseer (तफ़सीर )
६६

لِيَكْفُرُوْا بِمَآ اٰتَيْنٰهُمْۙ وَلِيَتَمَتَّعُوْاۗ فَسَوْفَ يَعْلَمُوْنَ ٦٦

liyakfurū
لِيَكْفُرُوا۟
ताकि वो नाशुक्री करें
bimā
بِمَآ
उसकी जो
ātaynāhum
ءَاتَيْنَٰهُمْ
दिया हमने उन्हें
waliyatamattaʿū
وَلِيَتَمَتَّعُوا۟ۖ
और ताकि वो फ़ायदा उठा लें
fasawfa
فَسَوْفَ
पस अनक़रीब
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
वो जान लेंगे
ताकि जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसके प्रति वे इस तरह कृतघ्नता दिखाएँ, और ताकि इस तरह से मज़े उड़ा ले। अच्छा तो वे शीघ्र ही जान लेंगे ([२९] अल-अनकबूत: 66)
Tafseer (तफ़सीर )
६७

اَوَلَمْ يَرَوْا اَنَّا جَعَلْنَا حَرَمًا اٰمِنًا وَّيُتَخَطَّفُ النَّاسُ مِنْ حَوْلِهِمْۗ اَفَبِالْبَاطِلِ يُؤْمِنُوْنَ وَبِنِعْمَةِ اللّٰهِ يَكْفُرُوْنَ ٦٧

awalam
أَوَلَمْ
क्या भला नहीं
yaraw
يَرَوْا۟
उन्होंने देखा
annā
أَنَّا
बेशक हम
jaʿalnā
جَعَلْنَا
बनाया हमने
ḥaraman
حَرَمًا
हरम को
āminan
ءَامِنًا
अमन वाला
wayutakhaṭṭafu
وَيُتَخَطَّفُ
और उचक लिए जाते हैं
l-nāsu
ٱلنَّاسُ
लोग
min
مِنْ
उनके इर्द-गिर्द से
ḥawlihim
حَوْلِهِمْۚ
उनके इर्द-गिर्द से
afabil-bāṭili
أَفَبِٱلْبَٰطِلِ
क्या फिर बातिल पर
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
वो ईमान लाते हैं
wabiniʿ'mati
وَبِنِعْمَةِ
और नेअमत का
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की
yakfurūna
يَكْفُرُونَ
वो इन्कार करते हैं
क्या उन्होंने देखा नही कि हमने एक शान्तिमय हरम बनाया, हालाँकि उनके आसपास से लोग उचक लिए जाते है, तो क्या फिर भी वे असत्य पर ईमान रखते है और अल्लाह की अनुकम्पा के प्रति कृतघ्नता दिखलाते है? ([२९] अल-अनकबूत: 67)
Tafseer (तफ़सीर )
६८

وَمَنْ اَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرٰى عَلَى اللّٰهِ كَذِبًا اَوْ كَذَّبَ بِالْحَقِّ لَمَّا جَاۤءَهٗ ۗ اَلَيْسَ فِيْ جَهَنَّمَ مَثْوًى لِّلْكٰفِرِيْنَ ٦٨

waman
وَمَنْ
और कौन
aẓlamu
أَظْلَمُ
बड़ा ज़ालिम है
mimmani
مِمَّنِ
उससे जो
if'tarā
ٱفْتَرَىٰ
गढ़ ले
ʿalā
عَلَى
अल्लाह पर
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह पर
kadhiban
كَذِبًا
झूठ
aw
أَوْ
या
kadhaba
كَذَّبَ
वो झुठलाए
bil-ḥaqi
بِٱلْحَقِّ
हक़ को
lammā
لَمَّا
जब कि
jāahu
جَآءَهُۥٓۚ
वो आ जाए उसके पास
alaysa
أَلَيْسَ
क्या नहीं है
فِى
जहन्नम में
jahannama
جَهَنَّمَ
जहन्नम में
mathwan
مَثْوًى
ठिकाना
lil'kāfirīna
لِّلْكَٰفِرِينَ
काफ़िरों के लिए
उस व्यक्ति से बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर थोपकर झूठ घड़े या सत्य को झुठलाए, जबकि वह उसके पास आ चुका हो? क्या इनकार करनेवालों का ठौर-ठिकाना जहन्नम नें नहीं होगा? ([२९] अल-अनकबूत: 68)
Tafseer (तफ़सीर )
६९

وَالَّذِيْنَ جَاهَدُوْا فِيْنَا لَنَهْدِيَنَّهُمْ سُبُلَنَاۗ وَاِنَّ اللّٰهَ لَمَعَ الْمُحْسِنِيْنَ ࣖ ٦٩

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जिन्होंने
jāhadū
جَٰهَدُوا۟
जद्दो जहद की
fīnā
فِينَا
हमारी (राह) में
lanahdiyannahum
لَنَهْدِيَنَّهُمْ
अलबत्ता हम ज़रूर हिदायत देंगे उन्हें
subulanā
سُبُلَنَاۚ
अपने रास्तों की
wa-inna
وَإِنَّ
और बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
lamaʿa
لَمَعَ
अलबत्ता साथ है
l-muḥ'sinīna
ٱلْمُحْسِنِينَ
एहसान करने वालों के
रहे वे लोग जिन्होंने हमारे मार्ग में मिलकर प्रयास किया, हम उन्हें अवश्य अपने मार्ग दिखाएँगे। निस्संदेह अल्लाह सुकर्मियों के साथ है ([२९] अल-अनकबूत: 69)
Tafseer (तफ़सीर )