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सूरा अल-अनकबूत - Page: 6

Al-'Ankabut

(मकड़ी)

५१

اَوَلَمْ يَكْفِهِمْ اَنَّآ اَنْزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتٰبَ يُتْلٰى عَلَيْهِمْ ۗاِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَرَحْمَةً وَّذِكْرٰى لِقَوْمٍ يُّؤْمِنُوْنَ ࣖ ٥١

awalam
أَوَلَمْ
क्या भला नहीं
yakfihim
يَكْفِهِمْ
काफ़ी उन्हें
annā
أَنَّآ
बेशक हम
anzalnā
أَنزَلْنَا
नाज़िल की हमने
ʿalayka
عَلَيْكَ
आप पर
l-kitāba
ٱلْكِتَٰبَ
किताब
yut'lā
يُتْلَىٰ
जो पढ़ी जाती है
ʿalayhim
عَلَيْهِمْۚ
उन पर
inna
إِنَّ
बेशक
فِى
इस में
dhālika
ذَٰلِكَ
इस में
laraḥmatan
لَرَحْمَةً
अलबत्ता रहमत
wadhik'rā
وَذِكْرَىٰ
और नसीहत है
liqawmin
لِقَوْمٍ
उन लोगों के लिए
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
जो ईमान लाते हैं
क्या उनके लिए यह पर्याप्त नहीं कि हमने तुमपर किताब अवतरित की, जो उन्हें पढ़कर सुनाई जाती है? निस्संदेह उसमें उन लोगों के लिए दयालुता है और अनुस्मृति है जो ईमान लाएँ ([२९] अल-अनकबूत: 51)
Tafseer (तफ़सीर )
५२

قُلْ كَفٰى بِاللّٰهِ بَيْنِيْ وَبَيْنَكُمْ شَهِيْدًاۚ يَعْلَمُ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا بِالْبَاطِلِ وَكَفَرُوْا بِاللّٰهِ اُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْخٰسِرُوْنَ ٥٢

qul
قُلْ
कह दीजिए
kafā
كَفَىٰ
काफ़ी है
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह
baynī
بَيْنِى
दर्मियान मेरे
wabaynakum
وَبَيْنَكُمْ
और दर्मियान तुम्हारे
shahīdan
شَهِيدًاۖ
गवाह
yaʿlamu
يَعْلَمُ
वो जानता है
مَا
जो कुछ
فِى
आसमानों में
l-samāwāti
ٱلسَّمَٰوَٰتِ
आसमानों में
wal-arḍi
وَٱلْأَرْضِۗ
और ज़मीन में है
wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो लोग जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
bil-bāṭili
بِٱلْبَٰطِلِ
बातिल पर
wakafarū
وَكَفَرُوا۟
और उन्होंने कुफ़्र किया
bil-lahi
بِٱللَّهِ
साथ अल्लाह के
ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
humu
هُمُ
वो
l-khāsirūna
ٱلْخَٰسِرُونَ
जो ख़सारा पाने वाले हैं
कह दो, 'मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह गवाह के रूप में काफ़ी है।' वह जानता है जो कुछ आकाशों और धरती में है। जो लोग असत्य पर ईमान लाए और अल्लाह का इनकार किया वही है जो घाटे में है ([२९] अल-अनकबूत: 52)
Tafseer (तफ़सीर )
५३

وَيَسْتَعْجِلُوْنَكَ بِالْعَذَابِۗ وَلَوْلَآ اَجَلٌ مُّسَمًّى لَّجَاۤءَهُمُ الْعَذَابُۗ وَلَيَأْتِيَنَّهُمْ بَغْتَةً وَّهُمْ لَا يَشْعُرُوْنَ ٥٣

wayastaʿjilūnaka
وَيَسْتَعْجِلُونَكَ
और वो जल्दी माँगते हैं आपसे
bil-ʿadhābi
بِٱلْعَذَابِۚ
अज़ाब
walawlā
وَلَوْلَآ
और अगर ना होती
ajalun
أَجَلٌ
मुद्दत
musamman
مُّسَمًّى
मुक़र्रर
lajāahumu
لَّجَآءَهُمُ
अलबत्ता आ जाता उनके पास
l-ʿadhābu
ٱلْعَذَابُ
अज़ाब
walayatiyannahum
وَلَيَأْتِيَنَّهُم
और अलबत्ता वो ज़रूर आएगा उनके पास
baghtatan
بَغْتَةً
अचानक
wahum
وَهُمْ
इस हाल में कि
لَا
वो शऊर ना रखते होंगे
yashʿurūna
يَشْعُرُونَ
वो शऊर ना रखते होंगे
वे तुमसे यातना के लिए जल्दी मचा रहे है। यदि इसका एक नियत समय न होता तो उनपर अवश्य ही यातना आ जाती। वह तो अचानक उनपर आकर रहेगी कि उन्हें ख़बर भी न होगी ([२९] अल-अनकबूत: 53)
Tafseer (तफ़सीर )
५४

يَسْتَعْجِلُوْنَكَ بِالْعَذَابِۗ وَاِنَّ جَهَنَّمَ لَمُحِيْطَةٌ ۢ بِالْكٰفِرِيْنَۙ ٥٤

yastaʿjilūnaka
يَسْتَعْجِلُونَكَ
वो जल्दी माँगते हैं आपसे
bil-ʿadhābi
بِٱلْعَذَابِ
अज़ाब
wa-inna
وَإِنَّ
और बेशक
jahannama
جَهَنَّمَ
जहन्नम
lamuḥīṭatun
لَمُحِيطَةٌۢ
अलबत्ता घेरने वाली है
bil-kāfirīna
بِٱلْكَٰفِرِينَ
काफ़िरों को
वे तुमसे यातना के लिए जल्दी मचा रहे है, हालाँकि जहन्नम इनकार करनेवालों को अपने घेरे में लिए हुए है ([२९] अल-अनकबूत: 54)
Tafseer (तफ़सीर )
५५

يَوْمَ يَغْشٰىهُمُ الْعَذَابُ مِنْ فَوْقِهِمْ وَمِنْ تَحْتِ اَرْجُلِهِمْ وَيَقُوْلُ ذُوْقُوْا مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ ٥٥

yawma
يَوْمَ
जिस दिन
yaghshāhumu
يَغْشَىٰهُمُ
ढाँप लेगा उन्हें
l-ʿadhābu
ٱلْعَذَابُ
अज़ाब
min
مِن
उनके ऊपर से
fawqihim
فَوْقِهِمْ
उनके ऊपर से
wamin
وَمِن
और नीचे से
taḥti
تَحْتِ
और नीचे से
arjulihim
أَرْجُلِهِمْ
उनके पाँव के
wayaqūlu
وَيَقُولُ
और वो फ़रमाएगा
dhūqū
ذُوقُوا۟
चखो
مَا
जो
kuntum
كُنتُمْ
थे तुम
taʿmalūna
تَعْمَلُونَ
तुम अमल करते
जिस दिन यातना उन्हें उनके ऊपर से ढाँक लेगी और उनके पाँव के नीचे से भी, और वह कहेगा, 'चखो उसका मज़ा जो कुछ तुम करते रहे हो!' ([२९] अल-अनकबूत: 55)
Tafseer (तफ़सीर )
५६

يٰعِبَادِيَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اِنَّ اَرْضِيْ وَاسِعَةٌ فَاِيَّايَ فَاعْبُدُوْنِ ٥٦

yāʿibādiya
يَٰعِبَادِىَ
ऐ मेरे बन्दों
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जो
āmanū
ءَامَنُوٓا۟
ईमान लाए हो
inna
إِنَّ
बेशक
arḍī
أَرْضِى
मेरी ज़मीन
wāsiʿatun
وَٰسِعَةٌ
वसीअ है
fa-iyyāya
فَإِيَّٰىَ
पस सिर्फ़ मेरी ही
fa-uʿ'budūni
فَٱعْبُدُونِ
पस तुम इबादत करो मेरी
ऐ मेरे बन्दों, जो ईमान लाए हो! निस्संदेह मेरी धरती विशाल है। अतः तुम मेरी ही बन्दगी करो ([२९] अल-अनकबूत: 56)
Tafseer (तफ़सीर )
५७

كُلُّ نَفْسٍ ذَاۤىِٕقَةُ الْمَوْتِۗ ثُمَّ اِلَيْنَا تُرْجَعُوْنَ ٥٧

kullu
كُلُّ
हर
nafsin
نَفْسٍ
नफ़्स
dhāiqatu
ذَآئِقَةُ
चखने वाला है
l-mawti
ٱلْمَوْتِۖ
मौत को
thumma
ثُمَّ
फिर
ilaynā
إِلَيْنَا
तरफ़ हमारे ही
tur'jaʿūna
تُرْجَعُونَ
तुम सब लौटाए जाओगे
प्रत्येक जीव को मृत्यु का स्वाद चखना है। फिर तुम हमारी ओर वापस लौटोगे ([२९] अल-अनकबूत: 57)
Tafseer (तफ़सीर )
५८

وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ لَنُبَوِّئَنَّهُمْ مِّنَ الْجَنَّةِ غُرَفًا تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِيْنَ فِيْهَاۗ نِعْمَ اَجْرُ الْعٰمِلِيْنَۖ ٥٨

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
waʿamilū
وَعَمِلُوا۟
और उन्होंने अमल किए
l-ṣāliḥāti
ٱلصَّٰلِحَٰتِ
नेक
lanubawwi-annahum
لَنُبَوِّئَنَّهُم
अलबत्ता हम ज़रूर ठिकाना देंगे उन्हें
mina
مِّنَ
जन्नत के
l-janati
ٱلْجَنَّةِ
जन्नत के
ghurafan
غُرَفًا
बालाख़ाने
tajrī
تَجْرِى
बहती होंगी
min
مِن
उनके नीचे से
taḥtihā
تَحْتِهَا
उनके नीचे से
l-anhāru
ٱلْأَنْهَٰرُ
नहरें
khālidīna
خَٰلِدِينَ
हमेशा रहने वाले हैं
fīhā
فِيهَاۚ
उनमें
niʿ'ma
نِعْمَ
कितना अच्छा है
ajru
أَجْرُ
अजर
l-ʿāmilīna
ٱلْعَٰمِلِينَ
अमल करने वालों का
जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें हम जन्नत की ऊपरी मंज़िल के कक्षों में जगह देंगे, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। वे उसमें सदैव रहेंगे। क्या ही अच्छा प्रतिदान है कर्म करनेवालों का! ([२९] अल-अनकबूत: 58)
Tafseer (तफ़सीर )
५९

الَّذِيْنَ صَبَرُوْا وَعَلٰى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُوْنَ ٥٩

alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
ṣabarū
صَبَرُوا۟
सब्र किया
waʿalā
وَعَلَىٰ
और अपने रब पर ही
rabbihim
رَبِّهِمْ
और अपने रब पर ही
yatawakkalūna
يَتَوَكَّلُونَ
वो तवक्कल करते हैं
जिन्होंने धैर्य से काम लिया और जो अपने रब पर भरोसा रखते है ([२९] अल-अनकबूत: 59)
Tafseer (तफ़सीर )
६०

وَكَاَيِّنْ مِّنْ دَاۤبَّةٍ لَّا تَحْمِلُ رِزْقَهَاۖ اللّٰهُ يَرْزُقُهَا وَاِيَّاكُمْ وَهُوَ السَّمِيْعُ الْعَلِيْمُ ٦٠

waka-ayyin
وَكَأَيِّن
और कितने ही
min
مِّن
जानदार हैं
dābbatin
دَآبَّةٍ
जानदार हैं
لَّا
नहीं वो उठाते
taḥmilu
تَحْمِلُ
नहीं वो उठाते
riz'qahā
رِزْقَهَا
रिज़्क़ अपना
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
yarzuquhā
يَرْزُقُهَا
रिज़्क़ देता है उन्हें
wa-iyyākum
وَإِيَّاكُمْۚ
और तुम्हें भी
wahuwa
وَهُوَ
और वो ही है
l-samīʿu
ٱلسَّمِيعُ
ख़ूब सुनने वाला
l-ʿalīmu
ٱلْعَلِيمُ
ख़ूब जानने वाला
कितने ही चलनेवाले जीवधारी है, जो अपनी रोज़ी उठाए नहीं फिरते। अल्लाह ही उन्हें रोज़ी देता है और तुम्हें भी! वह सब कुछ सुनता, जानता है ([२९] अल-अनकबूत: 60)
Tafseer (तफ़सीर )