مَثَلُ الَّذِيْنَ اتَّخَذُوْا مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ اَوْلِيَاۤءَ كَمَثَلِ الْعَنْكَبُوْتِۚ اِتَّخَذَتْ بَيْتًاۗ وَاِنَّ اَوْهَنَ الْبُيُوْتِ لَبَيْتُ الْعَنْكَبُوْتِۘ لَوْ كَانُوْا يَعْلَمُوْنَ ٤١
- mathalu
- مَثَلُ
- मिसाल
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनकी जिन्होंने
- ittakhadhū
- ٱتَّخَذُوا۟
- बना लिए
- min
- مِن
- सिवाए
- dūni
- دُونِ
- सिवाए
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- awliyāa
- أَوْلِيَآءَ
- कुछ वली/ दोस्त
- kamathali
- كَمَثَلِ
- मानिन्द मिसाल
- l-ʿankabūti
- ٱلْعَنكَبُوتِ
- एक मकड़ी के है
- ittakhadhat
- ٱتَّخَذَتْ
- जिसने बना लिया
- baytan
- بَيْتًاۖ
- एक घर
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- awhana
- أَوْهَنَ
- सब से कमज़ोर
- l-buyūti
- ٱلْبُيُوتِ
- घरों में
- labaytu
- لَبَيْتُ
- अलबत्ता घर है
- l-ʿankabūti
- ٱلْعَنكَبُوتِۖ
- मकड़ी का
- law
- لَوْ
- काश कि
- kānū
- كَانُوا۟
- होते वो
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- वो इल्म रखते
जिन लोगों ने अल्लाह से हटकर अपने दूसरे संरक्षक बना लिए है उनकी मिसाल मकड़ी जैसी है, जिसने अपना एक घर बनाया, और यह सच है कि सब घरों से कमज़ोर घर मकड़ी का घर ही होता है। क्या ही अच्छा होता कि वे जानते! ([२९] अल-अनकबूत: 41)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ اللّٰهَ يَعْلَمُ مَا يَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِهٖ مِنْ شَيْءٍۗ وَهُوَ الْعَزِيْزُ الْحَكِيْمُ ٤٢
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yaʿlamu
- يَعْلَمُ
- वो जानता है
- mā
- مَا
- जिसे
- yadʿūna
- يَدْعُونَ
- वो पुकारते हैं
- min
- مِن
- उसके सिवा
- dūnihi
- دُونِهِۦ
- उसके सिवा
- min
- مِن
- किसी भी चीज़ को
- shayin
- شَىْءٍۚ
- किसी भी चीज़ को
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो ही है
- l-ʿazīzu
- ٱلْعَزِيزُ
- बहुत ज़बरदस्त
- l-ḥakīmu
- ٱلْحَكِيمُ
- ख़ूब हिकमत वाला
निस्संदेह अल्लाह उन चीज़ों को भली-भाँति जानता है, जिन्हें ये उससे हटकर पुकारते है। वह तो अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ([२९] अल-अनकबूत: 42)Tafseer (तफ़सीर )
وَتِلْكَ الْاَمْثَالُ نَضْرِبُهَا لِلنَّاسِۚ وَمَا يَعْقِلُهَآ اِلَّا الْعَالِمُوْنَ ٤٣
- watil'ka
- وَتِلْكَ
- और ये
- l-amthālu
- ٱلْأَمْثَٰلُ
- मिसालें हैं
- naḍribuhā
- نَضْرِبُهَا
- हम बयान करते हैं उन्हें
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِۖ
- लोगों के लिए
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- yaʿqiluhā
- يَعْقِلُهَآ
- समझते उन्हें
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-ʿālimūna
- ٱلْعَٰلِمُونَ
- इल्म रखने वाले
ये मिसालें हम लोगों के लिए पेश करते है, परन्तु इनको ज्ञानवान ही समझते है ([२९] अल-अनकबूत: 43)Tafseer (तफ़सीर )
خَلَقَ اللّٰهُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ بِالْحَقِّۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً لِّلْمُؤْمِنِيْنَ ࣖ ۔ ٤٤
- khalaqa
- خَلَقَ
- पैदा किया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों को
- wal-arḍa
- وَٱلْأَرْضَ
- और ज़मीन को
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّۚ
- साथ हक़ के
- inna
- إِنَّ
- यक़ीनन
- fī
- فِى
- इसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसमें
- laāyatan
- لَءَايَةً
- अलबत्ता एक निशानी है
- lil'mu'minīna
- لِّلْمُؤْمِنِينَ
- ईमान लाने वालों के लिए
अल्लाह ने आकाशों और धरती को सत्य के साथ पैदा किया। निश्चय ही इसमें ईमानवालों के लिए एक बड़ी निशानी है ([२९] अल-अनकबूत: 44)Tafseer (तफ़सीर )
اُتْلُ مَآ اُوْحِيَ اِلَيْكَ مِنَ الْكِتٰبِ وَاَقِمِ الصَّلٰوةَۗ اِنَّ الصَّلٰوةَ تَنْهٰى عَنِ الْفَحْشَاۤءِ وَالْمُنْكَرِ ۗوَلَذِكْرُ اللّٰهِ اَكْبَرُ ۗوَاللّٰهُ يَعْلَمُ مَا تَصْنَعُوْنَ ٤٥
- ut'lu
- ٱتْلُ
- तिलावत कीजिए
- mā
- مَآ
- जो
- ūḥiya
- أُوحِىَ
- वही किया गया
- ilayka
- إِلَيْكَ
- आपकी तरफ़
- mina
- مِنَ
- किताब में से
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- किताब में से
- wa-aqimi
- وَأَقِمِ
- और क़ायम कीजिए
- l-ṣalata
- ٱلصَّلَوٰةَۖ
- नमाज़
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-ṣalata
- ٱلصَّلَوٰةَ
- नमाज़
- tanhā
- تَنْهَىٰ
- रोकती है
- ʿani
- عَنِ
- बेहयाई से
- l-faḥshāi
- ٱلْفَحْشَآءِ
- बेहयाई से
- wal-munkari
- وَٱلْمُنكَرِۗ
- और बुराई से
- waladhik'ru
- وَلَذِكْرُ
- और अलबत्ता ज़िक्र
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- akbaru
- أَكْبَرُۗ
- सबसे बड़ा है
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yaʿlamu
- يَعْلَمُ
- वो जानता है
- mā
- مَا
- जो कुछ
- taṣnaʿūna
- تَصْنَعُونَ
- तुम करते हो
उस किताब को पढ़ो जो तुम्हारी ओर प्रकाशना के द्वारा भेजी गई है, और नमाज़ का आयोजन करो। निस्संदेह नमाज़ अश्लीलता और बुराई से रोकती है। और अल्लाह का याद करना तो बहुत बड़ी चीज़ है। अल्लाह जानता है जो कुछ तुम रचते और बनाते हो ([२९] अल-अनकबूत: 45)Tafseer (तफ़सीर )
۞ وَلَا تُجَادِلُوْٓا اَهْلَ الْكِتٰبِ اِلَّا بِالَّتِيْ هِيَ اَحْسَنُۖ اِلَّا الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا مِنْهُمْ وَقُوْلُوْٓا اٰمَنَّا بِالَّذِيْٓ اُنْزِلَ اِلَيْنَا وَاُنْزِلَ اِلَيْكُمْ وَاِلٰهُنَا وَاِلٰهُكُمْ وَاحِدٌ وَّنَحْنُ لَهٗ مُسْلِمُوْنَ ٤٦
- walā
- وَلَا
- और ना
- tujādilū
- تُجَٰدِلُوٓا۟
- तुम झगड़ा करो
- ahla
- أَهْلَ
- अहले किताब से
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- अहले किताब से
- illā
- إِلَّا
- मगर
- bi-allatī
- بِٱلَّتِى
- उस तरीक़े से जो
- hiya
- هِىَ
- वो
- aḥsanu
- أَحْسَنُ
- सबसे अच्छा है
- illā
- إِلَّا
- सिवाए
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनके जिन्होंने
- ẓalamū
- ظَلَمُوا۟
- ज़ुल्म किया
- min'hum
- مِنْهُمْۖ
- उनमें से
- waqūlū
- وَقُولُوٓا۟
- और कहो
- āmannā
- ءَامَنَّا
- ईमान लाए हम
- bi-alladhī
- بِٱلَّذِىٓ
- उस पर जो
- unzila
- أُنزِلَ
- नाज़िल किया गया
- ilaynā
- إِلَيْنَا
- हमारी तरफ़
- wa-unzila
- وَأُنزِلَ
- और नाज़िल किया गया
- ilaykum
- إِلَيْكُمْ
- तुम्हारी तरफ़
- wa-ilāhunā
- وَإِلَٰهُنَا
- और इलाह हमारा
- wa-ilāhukum
- وَإِلَٰهُكُمْ
- और इलाह तुम्हारा
- wāḥidun
- وَٰحِدٌ
- एक ही है
- wanaḥnu
- وَنَحْنُ
- और हम
- lahu
- لَهُۥ
- उसी के
- mus'limūna
- مُسْلِمُونَ
- फ़रमाबरदार हैं
और किताबवालों से बस उत्तम रीति ही से वाद-विवाद करो - रहे वे लोग जो उनमें ज़ालिम हैं, उनकी बात दूसरी है - और कहो - 'हम ईमान लाए उस चीज़ पर जो अवतरित हुई और तुम्हारी ओर भी अवतरित हुई। और हमारा पूज्य और तुम्हारा पूज्य अकेला ही है और हम उसी के आज्ञाकारी है।' ([२९] अल-अनकबूत: 46)Tafseer (तफ़सीर )
وَكَذٰلِكَ اَنْزَلْنَآ اِلَيْكَ الْكِتٰبَۗ فَالَّذِيْنَ اٰتَيْنٰهُمُ الْكِتٰبَ يُؤْمِنُوْنَ بِهٖۚ وَمِنْ هٰٓؤُلَاۤءِ مَنْ يُّؤْمِنُ بِهٖۗ وَمَا يَجْحَدُ بِاٰيٰتِنَآ اِلَّا الْكٰفِرُوْنَ ٤٧
- wakadhālika
- وَكَذَٰلِكَ
- और इसी तरह
- anzalnā
- أَنزَلْنَآ
- नाज़िल की हमने
- ilayka
- إِلَيْكَ
- तरफ़ आपके
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَۚ
- किताब
- fa-alladhīna
- فَٱلَّذِينَ
- पस वो लोग जो
- ātaynāhumu
- ءَاتَيْنَٰهُمُ
- दी हमने उन्हें
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- वो ईमान लाते हैं
- bihi
- بِهِۦۖ
- उस पर
- wamin
- وَمِنْ
- और उनमें से भी हैं
- hāulāi
- هَٰٓؤُلَآءِ
- और उनमें से भी हैं
- man
- مَن
- जो
- yu'minu
- يُؤْمِنُ
- ईमान लाते हैं
- bihi
- بِهِۦۚ
- इस पर
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- yajḥadu
- يَجْحَدُ
- इन्कार करते
- biāyātinā
- بِـَٔايَٰتِنَآ
- हमारी आयात का
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-kāfirūna
- ٱلْكَٰفِرُونَ
- जो काफ़िर हैं
इसी प्रकार हमने तुम्हारी ओर किताब अवतरित की है, तो जिन्हें हमने किताब प्रदान की है वे उसपर ईमान लाएँगे। उनमें से कुछ उसपर ईमान ला भी रहे है। हमारी आयतों का इनकार तो केवल न माननेवाले ही करते है ([२९] अल-अनकबूत: 47)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا كُنْتَ تَتْلُوْا مِنْ قَبْلِهٖ مِنْ كِتٰبٍ وَّلَا تَخُطُّهٗ بِيَمِيْنِكَ اِذًا لَّارْتَابَ الْمُبْطِلُوْنَ ٤٨
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kunta
- كُنتَ
- थे आप
- tatlū
- تَتْلُوا۟
- आप पढ़ते
- min
- مِن
- इससे पहले
- qablihi
- قَبْلِهِۦ
- इससे पहले
- min
- مِن
- कोई किताब
- kitābin
- كِتَٰبٍ
- कोई किताब
- walā
- وَلَا
- और ना
- takhuṭṭuhu
- تَخُطُّهُۥ
- आप लिखते थे उसे
- biyamīnika
- بِيَمِينِكَۖ
- अपने दाऐं हाथ से
- idhan
- إِذًا
- तब
- la-ir'tāba
- لَّٱرْتَابَ
- अलबत्ता शक में पड़ जाते
- l-mub'ṭilūna
- ٱلْمُبْطِلُونَ
- बातिल परस्त
इससे पहले तुम न कोई किताब पढ़ते थे और न उसे अपने हाथ से लिखते ही थे। ऐसा होता तो ये मिथ्यावादी सन्देह में पड़ सकते थे ([२९] अल-अनकबूत: 48)Tafseer (तफ़सीर )
بَلْ هُوَ اٰيٰتٌۢ بَيِّنٰتٌ فِيْ صُدُوْرِ الَّذِيْنَ اُوْتُوا الْعِلْمَۗ وَمَا يَجْحَدُ بِاٰيٰتِنَآ اِلَّا الظّٰلِمُوْنَ ٤٩
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- huwa
- هُوَ
- वो
- āyātun
- ءَايَٰتٌۢ
- आयात हैं
- bayyinātun
- بَيِّنَٰتٌ
- वाज़ेह
- fī
- فِى
- सीनों में
- ṣudūri
- صُدُورِ
- सीनों में
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों के जो
- ūtū
- أُوتُوا۟
- दिए गए
- l-ʿil'ma
- ٱلْعِلْمَۚ
- इल्म
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- yajḥadu
- يَجْحَدُ
- इन्कार करते
- biāyātinā
- بِـَٔايَٰتِنَآ
- हमारी आयात का
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-ẓālimūna
- ٱلظَّٰلِمُونَ
- जो ज़ालिम हैं
नहीं, बल्कि वे तो उन लोगों के सीनों में विद्यमान खुली निशानियाँ है, जिन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ है। हमारी आयतों का इनकार तो केवल ज़ालिम ही करते है ([२९] अल-अनकबूत: 49)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَالُوْا لَوْلَآ اُنْزِلَ عَلَيْهِ اٰيٰتٌ مِّنْ رَّبِّهٖ ۗ قُلْ اِنَّمَا الْاٰيٰتُ عِنْدَ اللّٰهِ ۗوَاِنَّمَآ اَنَا۠ نَذِيْرٌ مُّبِيْنٌ ٥٠
- waqālū
- وَقَالُوا۟
- और उन्होंने कहा
- lawlā
- لَوْلَآ
- क्यों नहीं
- unzila
- أُنزِلَ
- उतारी गईं
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उस पर
- āyātun
- ءَايَٰتٌ
- निशानियाँ
- min
- مِّن
- उसके रब की तरफ़ से
- rabbihi
- رَّبِّهِۦۖ
- उसके रब की तरफ़ से
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- l-āyātu
- ٱلْءَايَٰتُ
- निशानियाँ
- ʿinda
- عِندَ
- पास हैं
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- wa-innamā
- وَإِنَّمَآ
- और बेशक
- anā
- أَنَا۠
- मैं तो
- nadhīrun
- نَذِيرٌ
- डराने वाला हूँ
- mubīnun
- مُّبِينٌ
- खुल्लम-खुल्ला
उनका कहना है कि 'उसपर उसके रब की ओर से निशानियाँ क्यों नहीं अवतरित हुई?' कह दो, 'निशानियाँ तो अल्लाह ही के पास है। मैं तो केवल स्पष्ट रूप से सचेत करनेवाला हूँ।' ([२९] अल-अनकबूत: 50)Tafseer (तफ़सीर )