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सूरा अल-अनकबूत - Page: 5

Al-'Ankabut

(मकड़ी)

४१

مَثَلُ الَّذِيْنَ اتَّخَذُوْا مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ اَوْلِيَاۤءَ كَمَثَلِ الْعَنْكَبُوْتِۚ اِتَّخَذَتْ بَيْتًاۗ وَاِنَّ اَوْهَنَ الْبُيُوْتِ لَبَيْتُ الْعَنْكَبُوْتِۘ لَوْ كَانُوْا يَعْلَمُوْنَ ٤١

mathalu
مَثَلُ
मिसाल
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनकी जिन्होंने
ittakhadhū
ٱتَّخَذُوا۟
बना लिए
min
مِن
सिवाए
dūni
دُونِ
सिवाए
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
awliyāa
أَوْلِيَآءَ
कुछ वली/ दोस्त
kamathali
كَمَثَلِ
मानिन्द मिसाल
l-ʿankabūti
ٱلْعَنكَبُوتِ
एक मकड़ी के है
ittakhadhat
ٱتَّخَذَتْ
जिसने बना लिया
baytan
بَيْتًاۖ
एक घर
wa-inna
وَإِنَّ
और बेशक
awhana
أَوْهَنَ
सब से कमज़ोर
l-buyūti
ٱلْبُيُوتِ
घरों में
labaytu
لَبَيْتُ
अलबत्ता घर है
l-ʿankabūti
ٱلْعَنكَبُوتِۖ
मकड़ी का
law
لَوْ
काश कि
kānū
كَانُوا۟
होते वो
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
वो इल्म रखते
जिन लोगों ने अल्लाह से हटकर अपने दूसरे संरक्षक बना लिए है उनकी मिसाल मकड़ी जैसी है, जिसने अपना एक घर बनाया, और यह सच है कि सब घरों से कमज़ोर घर मकड़ी का घर ही होता है। क्या ही अच्छा होता कि वे जानते! ([२९] अल-अनकबूत: 41)
Tafseer (तफ़सीर )
४२

اِنَّ اللّٰهَ يَعْلَمُ مَا يَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِهٖ مِنْ شَيْءٍۗ وَهُوَ الْعَزِيْزُ الْحَكِيْمُ ٤٢

inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
yaʿlamu
يَعْلَمُ
वो जानता है
مَا
जिसे
yadʿūna
يَدْعُونَ
वो पुकारते हैं
min
مِن
उसके सिवा
dūnihi
دُونِهِۦ
उसके सिवा
min
مِن
किसी भी चीज़ को
shayin
شَىْءٍۚ
किसी भी चीज़ को
wahuwa
وَهُوَ
और वो ही है
l-ʿazīzu
ٱلْعَزِيزُ
बहुत ज़बरदस्त
l-ḥakīmu
ٱلْحَكِيمُ
ख़ूब हिकमत वाला
निस्संदेह अल्लाह उन चीज़ों को भली-भाँति जानता है, जिन्हें ये उससे हटकर पुकारते है। वह तो अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ([२९] अल-अनकबूत: 42)
Tafseer (तफ़सीर )
४३

وَتِلْكَ الْاَمْثَالُ نَضْرِبُهَا لِلنَّاسِۚ وَمَا يَعْقِلُهَآ اِلَّا الْعَالِمُوْنَ ٤٣

watil'ka
وَتِلْكَ
और ये
l-amthālu
ٱلْأَمْثَٰلُ
मिसालें हैं
naḍribuhā
نَضْرِبُهَا
हम बयान करते हैं उन्हें
lilnnāsi
لِلنَّاسِۖ
लोगों के लिए
wamā
وَمَا
और नहीं
yaʿqiluhā
يَعْقِلُهَآ
समझते उन्हें
illā
إِلَّا
मगर
l-ʿālimūna
ٱلْعَٰلِمُونَ
इल्म रखने वाले
ये मिसालें हम लोगों के लिए पेश करते है, परन्तु इनको ज्ञानवान ही समझते है ([२९] अल-अनकबूत: 43)
Tafseer (तफ़सीर )
४४

خَلَقَ اللّٰهُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ بِالْحَقِّۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً لِّلْمُؤْمِنِيْنَ ࣖ ۔ ٤٤

khalaqa
خَلَقَ
पैदा किया
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
l-samāwāti
ٱلسَّمَٰوَٰتِ
आसमानों को
wal-arḍa
وَٱلْأَرْضَ
और ज़मीन को
bil-ḥaqi
بِٱلْحَقِّۚ
साथ हक़ के
inna
إِنَّ
यक़ीनन
فِى
इसमें
dhālika
ذَٰلِكَ
इसमें
laāyatan
لَءَايَةً
अलबत्ता एक निशानी है
lil'mu'minīna
لِّلْمُؤْمِنِينَ
ईमान लाने वालों के लिए
अल्लाह ने आकाशों और धरती को सत्य के साथ पैदा किया। निश्चय ही इसमें ईमानवालों के लिए एक बड़ी निशानी है ([२९] अल-अनकबूत: 44)
Tafseer (तफ़सीर )
४५

اُتْلُ مَآ اُوْحِيَ اِلَيْكَ مِنَ الْكِتٰبِ وَاَقِمِ الصَّلٰوةَۗ اِنَّ الصَّلٰوةَ تَنْهٰى عَنِ الْفَحْشَاۤءِ وَالْمُنْكَرِ ۗوَلَذِكْرُ اللّٰهِ اَكْبَرُ ۗوَاللّٰهُ يَعْلَمُ مَا تَصْنَعُوْنَ ٤٥

ut'lu
ٱتْلُ
तिलावत कीजिए
مَآ
जो
ūḥiya
أُوحِىَ
वही किया गया
ilayka
إِلَيْكَ
आपकी तरफ़
mina
مِنَ
किताब में से
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِ
किताब में से
wa-aqimi
وَأَقِمِ
और क़ायम कीजिए
l-ṣalata
ٱلصَّلَوٰةَۖ
नमाज़
inna
إِنَّ
बेशक
l-ṣalata
ٱلصَّلَوٰةَ
नमाज़
tanhā
تَنْهَىٰ
रोकती है
ʿani
عَنِ
बेहयाई से
l-faḥshāi
ٱلْفَحْشَآءِ
बेहयाई से
wal-munkari
وَٱلْمُنكَرِۗ
और बुराई से
waladhik'ru
وَلَذِكْرُ
और अलबत्ता ज़िक्र
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह का
akbaru
أَكْبَرُۗ
सबसे बड़ा है
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
yaʿlamu
يَعْلَمُ
वो जानता है
مَا
जो कुछ
taṣnaʿūna
تَصْنَعُونَ
तुम करते हो
उस किताब को पढ़ो जो तुम्हारी ओर प्रकाशना के द्वारा भेजी गई है, और नमाज़ का आयोजन करो। निस्संदेह नमाज़ अश्लीलता और बुराई से रोकती है। और अल्लाह का याद करना तो बहुत बड़ी चीज़ है। अल्लाह जानता है जो कुछ तुम रचते और बनाते हो ([२९] अल-अनकबूत: 45)
Tafseer (तफ़सीर )
४६

۞ وَلَا تُجَادِلُوْٓا اَهْلَ الْكِتٰبِ اِلَّا بِالَّتِيْ هِيَ اَحْسَنُۖ اِلَّا الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا مِنْهُمْ وَقُوْلُوْٓا اٰمَنَّا بِالَّذِيْٓ اُنْزِلَ اِلَيْنَا وَاُنْزِلَ اِلَيْكُمْ وَاِلٰهُنَا وَاِلٰهُكُمْ وَاحِدٌ وَّنَحْنُ لَهٗ مُسْلِمُوْنَ ٤٦

walā
وَلَا
और ना
tujādilū
تُجَٰدِلُوٓا۟
तुम झगड़ा करो
ahla
أَهْلَ
अहले किताब से
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِ
अहले किताब से
illā
إِلَّا
मगर
bi-allatī
بِٱلَّتِى
उस तरीक़े से जो
hiya
هِىَ
वो
aḥsanu
أَحْسَنُ
सबसे अच्छा है
illā
إِلَّا
सिवाए
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनके जिन्होंने
ẓalamū
ظَلَمُوا۟
ज़ुल्म किया
min'hum
مِنْهُمْۖ
उनमें से
waqūlū
وَقُولُوٓا۟
और कहो
āmannā
ءَامَنَّا
ईमान लाए हम
bi-alladhī
بِٱلَّذِىٓ
उस पर जो
unzila
أُنزِلَ
नाज़िल किया गया
ilaynā
إِلَيْنَا
हमारी तरफ़
wa-unzila
وَأُنزِلَ
और नाज़िल किया गया
ilaykum
إِلَيْكُمْ
तुम्हारी तरफ़
wa-ilāhunā
وَإِلَٰهُنَا
और इलाह हमारा
wa-ilāhukum
وَإِلَٰهُكُمْ
और इलाह तुम्हारा
wāḥidun
وَٰحِدٌ
एक ही है
wanaḥnu
وَنَحْنُ
और हम
lahu
لَهُۥ
उसी के
mus'limūna
مُسْلِمُونَ
फ़रमाबरदार हैं
और किताबवालों से बस उत्तम रीति ही से वाद-विवाद करो - रहे वे लोग जो उनमें ज़ालिम हैं, उनकी बात दूसरी है - और कहो - 'हम ईमान लाए उस चीज़ पर जो अवतरित हुई और तुम्हारी ओर भी अवतरित हुई। और हमारा पूज्य और तुम्हारा पूज्य अकेला ही है और हम उसी के आज्ञाकारी है।' ([२९] अल-अनकबूत: 46)
Tafseer (तफ़सीर )
४७

وَكَذٰلِكَ اَنْزَلْنَآ اِلَيْكَ الْكِتٰبَۗ فَالَّذِيْنَ اٰتَيْنٰهُمُ الْكِتٰبَ يُؤْمِنُوْنَ بِهٖۚ وَمِنْ هٰٓؤُلَاۤءِ مَنْ يُّؤْمِنُ بِهٖۗ وَمَا يَجْحَدُ بِاٰيٰتِنَآ اِلَّا الْكٰفِرُوْنَ ٤٧

wakadhālika
وَكَذَٰلِكَ
और इसी तरह
anzalnā
أَنزَلْنَآ
नाज़िल की हमने
ilayka
إِلَيْكَ
तरफ़ आपके
l-kitāba
ٱلْكِتَٰبَۚ
किताब
fa-alladhīna
فَٱلَّذِينَ
पस वो लोग जो
ātaynāhumu
ءَاتَيْنَٰهُمُ
दी हमने उन्हें
l-kitāba
ٱلْكِتَٰبَ
किताब
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
वो ईमान लाते हैं
bihi
بِهِۦۖ
उस पर
wamin
وَمِنْ
और उनमें से भी हैं
hāulāi
هَٰٓؤُلَآءِ
और उनमें से भी हैं
man
مَن
जो
yu'minu
يُؤْمِنُ
ईमान लाते हैं
bihi
بِهِۦۚ
इस पर
wamā
وَمَا
और नहीं
yajḥadu
يَجْحَدُ
इन्कार करते
biāyātinā
بِـَٔايَٰتِنَآ
हमारी आयात का
illā
إِلَّا
मगर
l-kāfirūna
ٱلْكَٰفِرُونَ
जो काफ़िर हैं
इसी प्रकार हमने तुम्हारी ओर किताब अवतरित की है, तो जिन्हें हमने किताब प्रदान की है वे उसपर ईमान लाएँगे। उनमें से कुछ उसपर ईमान ला भी रहे है। हमारी आयतों का इनकार तो केवल न माननेवाले ही करते है ([२९] अल-अनकबूत: 47)
Tafseer (तफ़सीर )
४८

وَمَا كُنْتَ تَتْلُوْا مِنْ قَبْلِهٖ مِنْ كِتٰبٍ وَّلَا تَخُطُّهٗ بِيَمِيْنِكَ اِذًا لَّارْتَابَ الْمُبْطِلُوْنَ ٤٨

wamā
وَمَا
और ना
kunta
كُنتَ
थे आप
tatlū
تَتْلُوا۟
आप पढ़ते
min
مِن
इससे पहले
qablihi
قَبْلِهِۦ
इससे पहले
min
مِن
कोई किताब
kitābin
كِتَٰبٍ
कोई किताब
walā
وَلَا
और ना
takhuṭṭuhu
تَخُطُّهُۥ
आप लिखते थे उसे
biyamīnika
بِيَمِينِكَۖ
अपने दाऐं हाथ से
idhan
إِذًا
तब
la-ir'tāba
لَّٱرْتَابَ
अलबत्ता शक में पड़ जाते
l-mub'ṭilūna
ٱلْمُبْطِلُونَ
बातिल परस्त
इससे पहले तुम न कोई किताब पढ़ते थे और न उसे अपने हाथ से लिखते ही थे। ऐसा होता तो ये मिथ्यावादी सन्देह में पड़ सकते थे ([२९] अल-अनकबूत: 48)
Tafseer (तफ़सीर )
४९

بَلْ هُوَ اٰيٰتٌۢ بَيِّنٰتٌ فِيْ صُدُوْرِ الَّذِيْنَ اُوْتُوا الْعِلْمَۗ وَمَا يَجْحَدُ بِاٰيٰتِنَآ اِلَّا الظّٰلِمُوْنَ ٤٩

bal
بَلْ
बल्कि
huwa
هُوَ
वो
āyātun
ءَايَٰتٌۢ
आयात हैं
bayyinātun
بَيِّنَٰتٌ
वाज़ेह
فِى
सीनों में
ṣudūri
صُدُورِ
सीनों में
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन लोगों के जो
ūtū
أُوتُوا۟
दिए गए
l-ʿil'ma
ٱلْعِلْمَۚ
इल्म
wamā
وَمَا
और नहीं
yajḥadu
يَجْحَدُ
इन्कार करते
biāyātinā
بِـَٔايَٰتِنَآ
हमारी आयात का
illā
إِلَّا
मगर
l-ẓālimūna
ٱلظَّٰلِمُونَ
जो ज़ालिम हैं
नहीं, बल्कि वे तो उन लोगों के सीनों में विद्यमान खुली निशानियाँ है, जिन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ है। हमारी आयतों का इनकार तो केवल ज़ालिम ही करते है ([२९] अल-अनकबूत: 49)
Tafseer (तफ़सीर )
५०

وَقَالُوْا لَوْلَآ اُنْزِلَ عَلَيْهِ اٰيٰتٌ مِّنْ رَّبِّهٖ ۗ قُلْ اِنَّمَا الْاٰيٰتُ عِنْدَ اللّٰهِ ۗوَاِنَّمَآ اَنَا۠ نَذِيْرٌ مُّبِيْنٌ ٥٠

waqālū
وَقَالُوا۟
और उन्होंने कहा
lawlā
لَوْلَآ
क्यों नहीं
unzila
أُنزِلَ
उतारी गईं
ʿalayhi
عَلَيْهِ
उस पर
āyātun
ءَايَٰتٌ
निशानियाँ
min
مِّن
उसके रब की तरफ़ से
rabbihi
رَّبِّهِۦۖ
उसके रब की तरफ़ से
qul
قُلْ
कह दीजिए
innamā
إِنَّمَا
बेशक
l-āyātu
ٱلْءَايَٰتُ
निशानियाँ
ʿinda
عِندَ
पास हैं
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
wa-innamā
وَإِنَّمَآ
और बेशक
anā
أَنَا۠
मैं तो
nadhīrun
نَذِيرٌ
डराने वाला हूँ
mubīnun
مُّبِينٌ
खुल्लम-खुल्ला
उनका कहना है कि 'उसपर उसके रब की ओर से निशानियाँ क्यों नहीं अवतरित हुई?' कह दो, 'निशानियाँ तो अल्लाह ही के पास है। मैं तो केवल स्पष्ट रूप से सचेत करनेवाला हूँ।' ([२९] अल-अनकबूत: 50)
Tafseer (तफ़सीर )