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सूरा अल-अनकबूत - Page: 4

Al-'Ankabut

(मकड़ी)

३१

وَلَمَّا جَاۤءَتْ رُسُلُنَآ اِبْرٰهِيْمَ بِالْبُشْرٰىۙ قَالُوْٓا اِنَّا مُهْلِكُوْٓا اَهْلِ هٰذِهِ الْقَرْيَةِ ۚاِنَّ اَهْلَهَا كَانُوْا ظٰلِمِيْنَ ۚ ٣١

walammā
وَلَمَّا
और जब
jāat
جَآءَتْ
आए
rusulunā
رُسُلُنَآ
भेजे हुए(फ़रिश्ते)हमारे
ib'rāhīma
إِبْرَٰهِيمَ
इब्राहीम के पास
bil-bush'rā
بِٱلْبُشْرَىٰ
ख़ुशख़बरी लेकर
qālū
قَالُوٓا۟
उन्होंने कहा
innā
إِنَّا
बेशक हम
muh'likū
مُهْلِكُوٓا۟
हलाक करने वाले हैं
ahli
أَهْلِ
रहने वालों को
hādhihi
هَٰذِهِ
इस
l-qaryati
ٱلْقَرْيَةِۖ
बस्ती के
inna
إِنَّ
बेशक
ahlahā
أَهْلَهَا
इसके रहने वाले
kānū
كَانُوا۟
हैं वो
ẓālimīna
ظَٰلِمِينَ
ज़ालिम
हमारे भेजे हुए जब इबराहीम के पास शुभ सूचना लेकर आए तो उन्होंने कहा, 'हम इस बस्ती के लोगों को विनष्ट करनेवाले है। निस्संदेह इस बस्ती के लोग ज़ालिम है।' ([२९] अल-अनकबूत: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

قَالَ اِنَّ فِيْهَا لُوْطًا ۗقَالُوْا نَحْنُ اَعْلَمُ بِمَنْ فِيْهَا ۖ لَنُنَجِّيَنَّهٗ وَاَهْلَهٗٓ اِلَّا امْرَاَتَهٗ كَانَتْ مِنَ الْغٰبِرِيْنَ ٣٢

qāla
قَالَ
इब्राहीम ने कहा
inna
إِنَّ
बेशक
fīhā
فِيهَا
इसमें
lūṭan
لُوطًاۚ
लूत है
qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
naḥnu
نَحْنُ
हम
aʿlamu
أَعْلَمُ
ज़्यादा जानते हैं
biman
بِمَن
उसे जो
fīhā
فِيهَاۖ
इस में है
lanunajjiyannahu
لَنُنَجِّيَنَّهُۥ
अलबत्ता हम ज़रूर निजात देंगे उसे
wa-ahlahu
وَأَهْلَهُۥٓ
और उसके घर वालों को
illā
إِلَّا
सिवाए
im'ra-atahu
ٱمْرَأَتَهُۥ
उसकी बीवी के
kānat
كَانَتْ
है वो
mina
مِنَ
पीछे रहने वालों में से
l-ghābirīna
ٱلْغَٰبِرِينَ
पीछे रहने वालों में से
उसने कहाँ, 'वहाँ तो लूत मौजूद है।' वे बोले, 'जो कोई भी वहाँ है, हम भली-भाँति जानते है। हम उसको और उसके घरवालों को बचा लेंगे, सिवाय उसकी स्त्री के। वह पीछे रह जानेवालों में से है।' ([२९] अल-अनकबूत: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

وَلَمَّآ اَنْ جَاۤءَتْ رُسُلُنَا لُوْطًا سِيْۤءَ بِهِمْ وَضَاقَ بِهِمْ ذَرْعًا وَّقَالُوْا لَا تَخَفْ وَلَا تَحْزَنْ ۗاِنَّا مُنَجُّوْكَ وَاَهْلَكَ اِلَّا امْرَاَتَكَ كَانَتْ مِنَ الْغٰبِرِيْنَ ٣٣

walammā
وَلَمَّآ
और जब
an
أَن
ये कि
jāat
جَآءَتْ
आ गए
rusulunā
رُسُلُنَا
भेजे हुए(फ़रिश्ते)हमारे
lūṭan
لُوطًا
लूत के पास
sīa
سِىٓءَ
वो परेशान हुआ
bihim
بِهِمْ
उनसे
waḍāqa
وَضَاقَ
और वो तंग हुआ
bihim
بِهِمْ
उनसे
dharʿan
ذَرْعًا
दिल में
waqālū
وَقَالُوا۟
और उन्होंने कहा
لَا
ना तुम डरो
takhaf
تَخَفْ
ना तुम डरो
walā
وَلَا
और ना
taḥzan
تَحْزَنْۖ
तुम ग़म करो
innā
إِنَّا
बेशक हम
munajjūka
مُنَجُّوكَ
निजात देने वाले हैं तुझे
wa-ahlaka
وَأَهْلَكَ
और तेरे घर वालों को
illā
إِلَّا
सिवाए
im'ra-ataka
ٱمْرَأَتَكَ
तेरी बीवी के
kānat
كَانَتْ
है वो
mina
مِنَ
पीछे रहने वालों में से
l-ghābirīna
ٱلْغَٰبِرِينَ
पीछे रहने वालों में से
जब यह हुआ कि हमारे भेजे हुए लूत के पास आए तो उनका आना उसे नागवार हुआ और उनके प्रति दिल को तंग पाया। किन्तु उन्होंने कहा, 'डरो मत और न शोकाकुल हो। हम तुम्हें और तुम्हारे घरवालों को बचा लेंगे सिवाय तुम्हारी स्त्री के। वह पीछे रह जानेवालों में से है ([२९] अल-अनकबूत: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

اِنَّا مُنْزِلُوْنَ عَلٰٓى اَهْلِ هٰذِهِ الْقَرْيَةِ رِجْزًا مِّنَ السَّمَاۤءِ بِمَا كَانُوْا يَفْسُقُوْنَ ٣٤

innā
إِنَّا
बेशक हम
munzilūna
مُنزِلُونَ
नाज़िल करने वाले हैं
ʿalā
عَلَىٰٓ
ऊपर
ahli
أَهْلِ
रहने वालों के
hādhihi
هَٰذِهِ
इस
l-qaryati
ٱلْقَرْيَةِ
बस्ती के
rij'zan
رِجْزًا
एक अज़ाब
mina
مِّنَ
आसमान से
l-samāi
ٱلسَّمَآءِ
आसमान से
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yafsuqūna
يَفْسُقُونَ
वो नाफ़रमानी करते
निश्चय ही हम इस बस्ती के लोगों पर आकाश से एक यातना उतारनेवाले है, इस कारण कि वे बन्दगी की सीमा से निकलते रहे है।' ([२९] अल-अनकबूत: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

وَلَقَدْ تَّرَكْنَا مِنْهَآ اٰيَةً ۢ بَيِّنَةً لِّقَوْمٍ يَّعْقِلُوْنَ ٣٥

walaqad
وَلَقَد
और अलबत्ता तहक़ीक़
taraknā
تَّرَكْنَا
छोड़ दी हमने
min'hā
مِنْهَآ
इसमें
āyatan
ءَايَةًۢ
एक निशानी
bayyinatan
بَيِّنَةً
खुली
liqawmin
لِّقَوْمٍ
उन लोगों के लिए
yaʿqilūna
يَعْقِلُونَ
जो अक़्ल रखते हैं
और हमने उस बस्ती से प्राप्त होनेवाली एक खुली निशानी उन लोगों के लिए छोड़ दी है, जो बुद्धि से काम लेना चाहे ([२९] अल-अनकबूत: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

وَاِلٰى مَدْيَنَ اَخَاهُمْ شُعَيْبًاۙ فَقَالَ يٰقَوْمِ اعْبُدُوا اللّٰهَ وَارْجُوا الْيَوْمَ الْاٰخِرَ وَلَا تَعْثَوْا فِى الْاَرْضِ مُفْسِدِيْنَ ۖ ٣٦

wa-ilā
وَإِلَىٰ
और तरफ़
madyana
مَدْيَنَ
मदयन के
akhāhum
أَخَاهُمْ
उनके भाई
shuʿayban
شُعَيْبًا
शुऐब को(भेजा)
faqāla
فَقَالَ
तो उसने कहा
yāqawmi
يَٰقَوْمِ
ऐ मेरी क़ौम
uʿ'budū
ٱعْبُدُوا۟
इबादत करो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह की
wa-ir'jū
وَٱرْجُوا۟
और उम्मीद रखो
l-yawma
ٱلْيَوْمَ
आख़िरी दिन की
l-ākhira
ٱلْءَاخِرَ
आख़िरी दिन की
walā
وَلَا
और ना
taʿthaw
تَعْثَوْا۟
तुम फ़साद करो
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
muf'sidīna
مُفْسِدِينَ
मुफ़सिद बन कर
और मदयन की ओर उनके भाई शुऐब को भेजा। उसने कहा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगो, अल्लाह की बन्दगी करो। और अंतिम दिन की आशा रखो और धरती में बिगाड़ फैलाते मत फिरो।' ([२९] अल-अनकबूत: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

فَكَذَّبُوْهُ فَاَخَذَتْهُمُ الرَّجْفَةُ فَاَصْبَحُوْا فِيْ دَارِهِمْ جٰثِمِيْنَ ۙ ٣٧

fakadhabūhu
فَكَذَّبُوهُ
तो उन्होंने झुठला दिया उसे
fa-akhadhathumu
فَأَخَذَتْهُمُ
तो पकड़ लिया उन्हें
l-rajfatu
ٱلرَّجْفَةُ
एक ज़लज़ले ने
fa-aṣbaḥū
فَأَصْبَحُوا۟
तो सुबह की उन्होंने
فِى
अपने घरों में
dārihim
دَارِهِمْ
अपने घरों में
jāthimīna
جَٰثِمِينَ
घुटनों के बल गिरने वाले
किन्तु उन्होंने उसे झुठला दिया। अन्ततः भूकम्प ने उन्हें आ लिया। और वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए ([२९] अल-अनकबूत: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

وَعَادًا وَّثَمُوْدَا۟ وَقَدْ تَّبَيَّنَ لَكُمْ مِّنْ مَّسٰكِنِهِمْۗ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطٰنُ اَعْمَالَهُمْ فَصَدَّهُمْ عَنِ السَّبِيْلِ وَكَانُوْا مُسْتَبْصِرِيْنَ ۙ ٣٨

waʿādan
وَعَادًا
और आद
wathamūdā
وَثَمُودَا۟
और समूद को (हलाक किया)
waqad
وَقَد
और तहक़ीक़
tabayyana
تَّبَيَّنَ
वाज़ेह हो गई (हालत)
lakum
لَكُم
तुम पर
min
مِّن
उनके घरों से
masākinihim
مَّسَٰكِنِهِمْۖ
उनके घरों से
wazayyana
وَزَيَّنَ
और मुज़य्यन कर दिए
lahumu
لَهُمُ
उनके लिए
l-shayṭānu
ٱلشَّيْطَٰنُ
शैतान ने
aʿmālahum
أَعْمَٰلَهُمْ
आमाल उनके
faṣaddahum
فَصَدَّهُمْ
तो उसने रोक दिया उन्हें
ʿani
عَنِ
रास्ते से
l-sabīli
ٱلسَّبِيلِ
रास्ते से
wakānū
وَكَانُوا۟
और थे वो
mus'tabṣirīna
مُسْتَبْصِرِينَ
बहुत देखने वाले / समझदार
और आद और समूद को भी हमने विनष्ट किया। और उनके घरों और बस्तियों के अवशेषों से तुमपर स्पष्ट हो चुका है। शैतान ने उनके कर्मों को उनके लिए सुहाना बना दिया और उन्हें संमार्ग से रोक दिया। यद्यपि वे बड़े तीक्ष्ण स्पष्ट वाले थे ([२९] अल-अनकबूत: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

وَقَارُوْنَ وَفِرْعَوْنَ وَهَامٰنَۗ وَلَقَدْ جَاۤءَهُمْ مُّوْسٰى بِالْبَيِّنٰتِ فَاسْتَكْبَرُوْا فِى الْاَرْضِ وَمَا كَانُوْا سَابِقِيْنَ ۚ ٣٩

waqārūna
وَقَٰرُونَ
और क़ारून
wafir'ʿawna
وَفِرْعَوْنَ
और फ़िरऔन
wahāmāna
وَهَٰمَٰنَۖ
और हामान
walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
jāahum
جَآءَهُم
आए उनके पास
mūsā
مُّوسَىٰ
मूसा
bil-bayināti
بِٱلْبَيِّنَٰتِ
साथ वाज़ेह निशानियों के
fa-is'takbarū
فَٱسْتَكْبَرُوا۟
तो उन्होंने तकब्बुर किया
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
wamā
وَمَا
और ना
kānū
كَانُوا۟
थे वो
sābiqīna
سَٰبِقِينَ
भाग जाने वाले (हमसे)
और क़ारून और फ़िरऔन और हामान को हमने विनष्ट किया। मूसा उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आया। किन्तु उन्होंने धरती में घमंड किया, हालाँकि वे हमसे निकल जानेवाले न थे ([२९] अल-अनकबूत: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

فَكُلًّا اَخَذْنَا بِذَنْۢبِهٖۙ فَمِنْهُمْ مَّنْ اَرْسَلْنَا عَلَيْهِ حَاصِبًا ۚوَمِنْهُمْ مَّنْ اَخَذَتْهُ الصَّيْحَةُ ۚوَمِنْهُمْ مَّنْ خَسَفْنَا بِهِ الْاَرْضَۚ وَمِنْهُمْ مَّنْ اَغْرَقْنَاۚ وَمَا كَانَ اللّٰهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلٰكِنْ كَانُوْٓا اَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُوْنَ ٤٠

fakullan
فَكُلًّا
तो हर एक को
akhadhnā
أَخَذْنَا
पकड़ लिया हमने
bidhanbihi
بِذَنۢبِهِۦۖ
बवजह उसके गुनाह के
famin'hum
فَمِنْهُم
तो उनमें से कोई है
man
مَّنْ
जो
arsalnā
أَرْسَلْنَا
भेजी हमने
ʿalayhi
عَلَيْهِ
जिस पर
ḥāṣiban
حَاصِبًا
पत्थरों की आँधी
wamin'hum
وَمِنْهُم
और उनमें से कोई है
man
مَّنْ
जो
akhadhathu
أَخَذَتْهُ
पकड़ लिया उसको
l-ṣayḥatu
ٱلصَّيْحَةُ
चिंघाड़ ने
wamin'hum
وَمِنْهُم
और उनमें से कोई है
man
مَّنْ
जो
khasafnā
خَسَفْنَا
धँसा दिया हमने
bihi
بِهِ
साथ उसके
l-arḍa
ٱلْأَرْضَ
ज़मीन को
wamin'hum
وَمِنْهُم
और उनमें से कोई है
man
مَّنْ
जिसे
aghraqnā
أَغْرَقْنَاۚ
ग़र्क़ कर दिया हमने
wamā
وَمَا
और नहीं
kāna
كَانَ
है
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
liyaẓlimahum
لِيَظْلِمَهُمْ
कि वो ज़ुल्म करे उन पर
walākin
وَلَٰكِن
और लेकिन
kānū
كَانُوٓا۟
थे वो
anfusahum
أَنفُسَهُمْ
अपनी ही जानों पर
yaẓlimūna
يَظْلِمُونَ
वो ज़ुल्म करते
अन्ततः हमने हरेक को उसके अपने गुनाह के कारण पकड़ लिया। फिर उनमें से कुछ पर तो हमने पथराव करनेवाली वायु भेजी और उनमें से कुछ को एक प्रचंड चीत्कार न आ लिया। और उनमें से कुछ को हमने धरती में धँसा दिया। और उनमें से कुछ को हमने डूबो दिया। अल्लाह तो ऐसा न था कि उनपर ज़ुल्म करता, किन्तु वे स्वयं अपने आपपर ज़ुल्म कर रहे थे ([२९] अल-अनकबूत: 40)
Tafseer (तफ़सीर )