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सूरा अल-अनकबूत - Page: 3

Al-'Ankabut

(मकड़ी)

२१

يُعَذِّبُ مَنْ يَّشَاۤءُ وَيَرْحَمُ مَنْ يَّشَاۤءُ ۚوَاِلَيْهِ تُقْلَبُوْنَ ٢١

yuʿadhibu
يُعَذِّبُ
वो अज़ाब देता है
man
مَن
जिसे
yashāu
يَشَآءُ
वो चाहता है
wayarḥamu
وَيَرْحَمُ
और वो रहम करता है
man
مَن
जिस पर
yashāu
يَشَآءُۖ
वो चाहता है
wa-ilayhi
وَإِلَيْهِ
और उसी की तरफ़
tuq'labūna
تُقْلَبُونَ
तुम लौटाए जाओगे
वह जिसे चाहे यातना दे और जिसपर चाहे दया करे। और उसी की ओर तुम्हें पलटकर जाना है।' ([२९] अल-अनकबूत: 21)
Tafseer (तफ़सीर )
२२

وَمَآ اَنْتُمْ بِمُعْجِزِيْنَ فِى الْاَرْضِ وَلَا فِى السَّمَاۤءِ ۖوَمَا لَكُمْ مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ مِنْ وَّلِيٍّ وَّلَا نَصِيْرٍ ࣖ ٢٢

wamā
وَمَآ
और नहीं
antum
أَنتُم
तुम
bimuʿ'jizīna
بِمُعْجِزِينَ
आजिज़ करने वाले
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
walā
وَلَا
और ना
فِى
आसमान में
l-samāi
ٱلسَّمَآءِۖ
आसमान में
wamā
وَمَا
और नहीं
lakum
لَكُم
तुम्हारे लिए
min
مِّن
सिवाए
dūni
دُونِ
सिवाए
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
min
مِن
कोई दोस्त
waliyyin
وَلِىٍّ
कोई दोस्त
walā
وَلَا
और ना
naṣīrin
نَصِيرٍ
कोई मददगार
तुम न तो धरती में क़ाबू से बाहर निकल सकते हो और न आकाश में। और अल्लाह से हटकर न तो तुम्हारा कोई मित्र है और न सहायक ([२९] अल-अनकबूत: 22)
Tafseer (तफ़सीर )
२३

وَالَّذِيْنَ كَفَرُوْا بِاٰيٰتِ اللّٰهِ وَلِقَاۤىِٕهٖٓ اُولٰۤىِٕكَ يَىِٕسُوْا مِنْ رَّحْمَتِيْ وَاُولٰۤىِٕكَ لَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ ٢٣

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
biāyāti
بِـَٔايَٰتِ
अल्लाह की आयात का
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की आयात का
waliqāihi
وَلِقَآئِهِۦٓ
और उसकी मुलाक़ात का
ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
ya-isū
يَئِسُوا۟
जो मायूस हो गए
min
مِن
मेरी रहमत से
raḥmatī
رَّحْمَتِى
मेरी रहमत से
wa-ulāika
وَأُو۟لَٰٓئِكَ
और यही लग हैं
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
ʿadhābun
عَذَابٌ
अज़ाब है
alīmun
أَلِيمٌ
दर्दनाक
और जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों और उससे मिलने का इनकार किया, वही लोग है जो मेरी दयालुता से निराश हुए और वही है जिनके लिए दुखद यातना है। - ([२९] अल-अनकबूत: 23)
Tafseer (तफ़सीर )
२४

فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهٖٓ اِلَّآ اَنْ قَالُوا اقْتُلُوْهُ اَوْ حَرِّقُوْهُ فَاَنْجٰىهُ اللّٰهُ مِنَ النَّارِۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يُّؤْمِنُوْنَ ٢٤

famā
فَمَا
तो ना
kāna
كَانَ
था
jawāba
جَوَابَ
जवाब
qawmihi
قَوْمِهِۦٓ
उसकी क़ौम का
illā
إِلَّآ
मगर
an
أَن
ये कि
qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
uq'tulūhu
ٱقْتُلُوهُ
क़त्ल कर दो उसे
aw
أَوْ
या
ḥarriqūhu
حَرِّقُوهُ
जला डालो उसे
fa-anjāhu
فَأَنجَىٰهُ
तो निजात दी उसे
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
mina
مِنَ
आग से
l-nāri
ٱلنَّارِۚ
आग से
inna
إِنَّ
बेशक
فِى
इसमें
dhālika
ذَٰلِكَ
इसमें
laāyātin
لَءَايَٰتٍ
अलबत्ता निशानियाँ हैं
liqawmin
لِّقَوْمٍ
उन लोगों के लिए
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
जो ईमान लाते हैं
फिर उनकी क़ौम के लोगों का उत्तर इसके सिवा और कुछ न था कि उन्होंने कहा, 'मार डालो उसे या जला दो उसे!' अंततः अल्लाह ने उसको आग से बचा लिया। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है, जो ईमान लाएँ ([२९] अल-अनकबूत: 24)
Tafseer (तफ़सीर )
२५

وَقَالَ اِنَّمَا اتَّخَذْتُمْ مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ اَوْثَانًاۙ مَّوَدَّةَ بَيْنِكُمْ فِى الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا ۚ ثُمَّ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ يَكْفُرُ بَعْضُكُمْ بِبَعْضٍ وَّيَلْعَنُ بَعْضُكُمْ بَعْضًا ۖوَّمَأْوٰىكُمُ النَّارُ وَمَا لَكُمْ مِّنْ نّٰصِرِيْنَۖ ٢٥

waqāla
وَقَالَ
और उसने कहा
innamā
إِنَّمَا
बेशक
ittakhadhtum
ٱتَّخَذْتُم
बना लिया तुमने
min
مِّن
सिवाए
dūni
دُونِ
सिवाए
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
awthānan
أَوْثَٰنًا
बुतों को
mawaddata
مَّوَدَّةَ
मोहब्बत का ज़रिया
baynikum
بَيْنِكُمْ
आपस में
فِى
ज़िन्दगी में
l-ḥayati
ٱلْحَيَوٰةِ
ज़िन्दगी में
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَاۖ
दुनिया की
thumma
ثُمَّ
फिर
yawma
يَوْمَ
दिन
l-qiyāmati
ٱلْقِيَٰمَةِ
क़यामत के
yakfuru
يَكْفُرُ
इन्कार करेगा
baʿḍukum
بَعْضُكُم
बाज़ तुम्हारा
bibaʿḍin
بِبَعْضٍ
बाज़ का
wayalʿanu
وَيَلْعَنُ
और लानत करेगा
baʿḍukum
بَعْضُكُم
बाज़ तुम्हारा
baʿḍan
بَعْضًا
बाज़ को
wamawākumu
وَمَأْوَىٰكُمُ
और ठिकाना तुम्हारा
l-nāru
ٱلنَّارُ
आग है
wamā
وَمَا
और नहीं
lakum
لَكُم
तुम्हारे लिए
min
مِّن
कोई मददगार
nāṣirīna
نَّٰصِرِينَ
कोई मददगार
और उसने कहा, 'अल्लाह से हटकर तुमने कुछ मूर्तियों को केवल सांसारिक जीवन में अपने पारस्परिक प्रेम के कारण पकड़ रखा है। फिर क़ियामत के दिन तुममें से एक-दूसरे का इनकार करेगा और तुममें से एक-दूसरे पर लानत करेगा। तुम्हारा ठौर-ठिकाना आग है और तुम्हारा कोई सहायक न होगा।' ([२९] अल-अनकबूत: 25)
Tafseer (तफ़सीर )
२६

۞ فَاٰمَنَ لَهٗ لُوْطٌۘ وَقَالَ اِنِّيْ مُهَاجِرٌ اِلٰى رَبِّيْ ۗاِنَّهٗ هُوَ الْعَزِيْزُ الْحَكِيْمُ ٢٦

faāmana
فَـَٔامَنَ
तो ईमान लाया
lahu
لَهُۥ
उस पर
lūṭun
لُوطٌۘ
लूत
waqāla
وَقَالَ
और उसने कहा
innī
إِنِّى
बेशक
muhājirun
مُهَاجِرٌ
हिजरत करने वाला हूँ
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ अपने रब के
rabbī
رَبِّىٓۖ
तरफ़ अपने रब के
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
huwa
هُوَ
वो ही है
l-ʿazīzu
ٱلْعَزِيزُ
बहुत ज़बरदस्त
l-ḥakīmu
ٱلْحَكِيمُ
ख़ूब हिकमत वाला है
फिर लूत ने उसकी बात मानी औऱ उसने कहा, 'निस्संदेह मैं अपने रब की ओर हिजरत करता हूँ। निस्संदेह वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।' ([२९] अल-अनकबूत: 26)
Tafseer (तफ़सीर )
२७

وَوَهَبْنَا لَهٗٓ اِسْحٰقَ وَيَعْقُوْبَ وَجَعَلْنَا فِيْ ذُرِّيَّتِهِ النُّبُوَّةَ وَالْكِتٰبَ وَاٰتَيْنٰهُ اَجْرَهٗ فِى الدُّنْيَا ۚوَاِنَّهٗ فِى الْاٰخِرَةِ لَمِنَ الصّٰلِحِيْنَ ٢٧

wawahabnā
وَوَهَبْنَا
और अता कर दिया हमने
lahu
لَهُۥٓ
उसे
is'ḥāqa
إِسْحَٰقَ
इस्हाक़
wayaʿqūba
وَيَعْقُوبَ
और याक़ूब
wajaʿalnā
وَجَعَلْنَا
और रख दी हमने
فِى
उसकी औलाद में
dhurriyyatihi
ذُرِّيَّتِهِ
उसकी औलाद में
l-nubuwata
ٱلنُّبُوَّةَ
नुबूव्वत
wal-kitāba
وَٱلْكِتَٰبَ
और किताब
waātaynāhu
وَءَاتَيْنَٰهُ
और अता किया हमने उसे
ajrahu
أَجْرَهُۥ
अजर उसका
فِى
दुनिया में
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَاۖ
दुनिया में
wa-innahu
وَإِنَّهُۥ
और बेशक वो
فِى
आख़िरत में
l-ākhirati
ٱلْءَاخِرَةِ
आख़िरत में
lamina
لَمِنَ
अलबत्ता सालेह लोगों में से है
l-ṣāliḥīna
ٱلصَّٰلِحِينَ
अलबत्ता सालेह लोगों में से है
और हमने उसे इसहाक़ और याक़ूब प्रदान किए और उसकी संतति में नुबूवत (पैग़म्बरी) और किताब का सिलसिला जारी किया और हमने उसे संसार में भी उसका अच्छा प्रतिदान प्रदान किया। और निश्चय ही वह आख़िरत में अच्छे लोगों में से होगा ([२९] अल-अनकबूत: 27)
Tafseer (तफ़सीर )
२८

وَلُوْطًا اِذْ قَالَ لِقَوْمِهٖٓ اِنَّكُمْ لَتَأْتُوْنَ الْفَاحِشَةَ ۖمَا سَبَقَكُمْ بِهَا مِنْ اَحَدٍ مِّنَ الْعٰلَمِيْنَ ٢٨

walūṭan
وَلُوطًا
और लूत को
idh
إِذْ
जब
qāla
قَالَ
उसने कहा
liqawmihi
لِقَوْمِهِۦٓ
अपनी क़ौम से
innakum
إِنَّكُمْ
बेशक तुम
latatūna
لَتَأْتُونَ
अलबत्ता तुम आते हो
l-fāḥishata
ٱلْفَٰحِشَةَ
बेहयाई को
مَا
नहीं
sabaqakum
سَبَقَكُم
सबक़त की तुम पर
bihā
بِهَا
साथ इसके
min
مِنْ
किसी एक ने
aḥadin
أَحَدٍ
किसी एक ने
mina
مِّنَ
तमाम जहान वालों में से
l-ʿālamīna
ٱلْعَٰلَمِينَ
तमाम जहान वालों में से
और हमने लूत को भेजा, जबकि उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, 'तुम जो वह अश्लील कर्म करते हो, जिसे तुमसे पहले सारे संसार में किसी ने नहीं किया ([२९] अल-अनकबूत: 28)
Tafseer (तफ़सीर )
२९

اَىِٕنَّكُمْ لَتَأْتُوْنَ الرِّجَالَ وَتَقْطَعُوْنَ السَّبِيْلَ ەۙ وَتَأْتُوْنَ فِيْ نَادِيْكُمُ الْمُنْكَرَ ۗفَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهٖٓ اِلَّآ اَنْ قَالُوا ائْتِنَا بِعَذَابِ اللّٰهِ اِنْ كُنْتَ مِنَ الصّٰدِقِيْنَ ٢٩

a-innakum
أَئِنَّكُمْ
क्या बेशक तुम
latatūna
لَتَأْتُونَ
अलबत्ता तुम आते हो
l-rijāla
ٱلرِّجَالَ
मर्दों को
wataqṭaʿūna
وَتَقْطَعُونَ
और तुम काटते हो
l-sabīla
ٱلسَّبِيلَ
रास्ते
watatūna
وَتَأْتُونَ
और तुम आते हो
فِى
अपनी मजलिसों में
nādīkumu
نَادِيكُمُ
अपनी मजलिसों में
l-munkara
ٱلْمُنكَرَۖ
बुरे कामों को
famā
فَمَا
तो ना
kāna
كَانَ
था
jawāba
جَوَابَ
जवाब
qawmihi
قَوْمِهِۦٓ
उसकी क़ौम का
illā
إِلَّآ
मगर
an
أَن
ये कि
qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
i'tinā
ٱئْتِنَا
ले आ हम पर
biʿadhābi
بِعَذَابِ
अज़ाब
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह का
in
إِن
अगर
kunta
كُنتَ
है तू
mina
مِنَ
सच्चों में से
l-ṣādiqīna
ٱلصَّٰدِقِينَ
सच्चों में से
क्या तुम पुरुषों के पास जाते हो और बटमारी करते हो औऱ अपनी मजलिस में बुरा कर्म करते हो?' फिर उसकी क़ौम के लोगों का उत्तर बस यही था कि उन्होंने कहा, 'ले आ हमपर अल्लाह की यातना, यदि तू सच्चा है।' ([२९] अल-अनकबूत: 29)
Tafseer (तफ़सीर )
३०

قَالَ رَبِّ انْصُرْنِيْ عَلَى الْقَوْمِ الْمُفْسِدِيْنَ ࣖ ٣٠

qāla
قَالَ
कहा
rabbi
رَبِّ
ऐ मेरे रब
unṣur'nī
ٱنصُرْنِى
मदद फ़रमा मेरी
ʿalā
عَلَى
ऊपर
l-qawmi
ٱلْقَوْمِ
इन लोगों के
l-muf'sidīna
ٱلْمُفْسِدِينَ
जो मुफ़सिद हैं
उसने कहास 'ऐ मेरे रब! बिगाड़ पैदा करनेवाले लोगों के मुक़ावले में मेरी सहायता कर।' ([२९] अल-अनकबूत: 30)
Tafseer (तफ़सीर )