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सूरा अल-अनकबूत - Page: 2

Al-'Ankabut

(मकड़ी)

११

وَلَيَعْلَمَنَّ اللّٰهُ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَلَيَعْلَمَنَّ الْمُنٰفِقِيْنَ ١١

walayaʿlamanna
وَلَيَعْلَمَنَّ
और अलबत्ता ज़रूर जान लेगा
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनको जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
walayaʿlamanna
وَلَيَعْلَمَنَّ
और अलबत्ता वो ज़रूर जान लेगा
l-munāfiqīna
ٱلْمُنَٰفِقِينَ
मुनाफ़िक़ों को
और अल्लाह तो उन लोगों को मालूम करके रहेगा जो ईमान लाए, और वह कपटाचारियों को भी मालूम करके रहेगा ([२९] अल-अनकबूत: 11)
Tafseer (तफ़सीर )
१२

وَقَالَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوا اتَّبِعُوْا سَبِيْلَنَا وَلْنَحْمِلْ خَطٰيٰكُمْۗ وَمَا هُمْ بِحَامِلِيْنَ مِنْ خَطٰيٰهُمْ مِّنْ شَيْءٍۗ اِنَّهُمْ لَكٰذِبُوْنَ ١٢

waqāla
وَقَالَ
और कहा
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन लोगों ने जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
lilladhīna
لِلَّذِينَ
उन लोगों से जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
ittabiʿū
ٱتَّبِعُوا۟
पैरवी कर
sabīlanā
سَبِيلَنَا
हमारे रास्ते की
walnaḥmil
وَلْنَحْمِلْ
और हम ज़रूर उठा लेंगे
khaṭāyākum
خَطَٰيَٰكُمْ
ख़ताऐं तुम्हारी
wamā
وَمَا
हालाँकि नहीं
hum
هُم
वो
biḥāmilīna
بِحَٰمِلِينَ
उठाने वाले
min
مِنْ
उनकी ख़ताओं में से
khaṭāyāhum
خَطَٰيَٰهُم
उनकी ख़ताओं में से
min
مِّن
कोई चीज़
shayin
شَىْءٍۖ
कोई चीज़
innahum
إِنَّهُمْ
बेशक वो
lakādhibūna
لَكَٰذِبُونَ
अलबत्ता झूठे हैं
और इनकार करनेवाले ईमान लानेवालों से कहते है, 'तुम हमारे मार्ग पर चलो, हम तुम्हारी ख़ताओं का बोझ उठा लेंगे।' हालाँकि वे उनकी ख़ताओं में से कुछ भी उठानेवाले नहीं है। वे निश्चय ही झूठे है ([२९] अल-अनकबूत: 12)
Tafseer (तफ़सीर )
१३

وَلَيَحْمِلُنَّ اَثْقَالَهُمْ وَاَثْقَالًا مَّعَ اَثْقَالِهِمْ وَلَيُسْـَٔلُنَّ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ عَمَّا كَانُوْا يَفْتَرُوْنَ ࣖ ١٣

walayaḥmilunna
وَلَيَحْمِلُنَّ
और अलबत्ता वो ज़रूर उठाऐंगे
athqālahum
أَثْقَالَهُمْ
बोझ अपने
wa-athqālan
وَأَثْقَالًا
और कई बोझ
maʿa
مَّعَ
साथ
athqālihim
أَثْقَالِهِمْۖ
अपने बोझों के
walayus'alunna
وَلَيُسْـَٔلُنَّ
और अलबत्ता वो ज़रूर पूछे जाऐंगे
yawma
يَوْمَ
दिन
l-qiyāmati
ٱلْقِيَٰمَةِ
क़यामत के
ʿammā
عَمَّا
उस चीज़ के बारे में जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yaftarūna
يَفْتَرُونَ
वो गढ़ा करते
हाँ, अवश्य ही वे अपने बोझ भी उठाएँगे और अपने बोझों के साथ और बहुत-से बोझ भी। और क़ियामत के दिन अवश्य उनसे उसके विषय में पूछा जाएगा जो कुछ झूठ वे घड़ते रहे होंगे ([२९] अल-अनकबूत: 13)
Tafseer (तफ़सीर )
१४

وَلَقَدْ اَرْسَلْنَا نُوْحًا اِلٰى قَوْمِهٖ فَلَبِثَ فِيْهِمْ اَلْفَ سَنَةٍ اِلَّا خَمْسِيْنَ عَامًا ۗفَاَخَذَهُمُ الطُّوْفَانُ وَهُمْ ظٰلِمُوْنَ ١٤

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
arsalnā
أَرْسَلْنَا
भेजा हमने
nūḥan
نُوحًا
नूह को
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ उसकी क़ौम के
qawmihi
قَوْمِهِۦ
तरफ़ उसकी क़ौम के
falabitha
فَلَبِثَ
तो वो रहा
fīhim
فِيهِمْ
उनमें
alfa
أَلْفَ
एक हज़ार
sanatin
سَنَةٍ
साल
illā
إِلَّا
मगर
khamsīna
خَمْسِينَ
पचास
ʿāman
عَامًا
साल (कम)
fa-akhadhahumu
فَأَخَذَهُمُ
तो पकड़ लिया उन्हें
l-ṭūfānu
ٱلطُّوفَانُ
तूफ़ान ने
wahum
وَهُمْ
जबकि वे
ẓālimūna
ظَٰلِمُونَ
ज़ालिम थे
हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा। और वह पचास साल कम एक हजार वर्ष उनके बीच रहा। अन्ततः उनको तूफ़ान ने इस दशा में आ पकड़ा कि वे अत्याचारी था ([२९] अल-अनकबूत: 14)
Tafseer (तफ़सीर )
१५

فَاَنْجَيْنٰهُ وَاَصْحٰبَ السَّفِيْنَةِ وَجَعَلْنٰهَآ اٰيَةً لِّلْعٰلَمِيْنَ ١٥

fa-anjaynāhu
فَأَنجَيْنَٰهُ
तो निजात दी हमने उसे
wa-aṣḥāba
وَأَصْحَٰبَ
और कश्ती वालों को
l-safīnati
ٱلسَّفِينَةِ
और कश्ती वालों को
wajaʿalnāhā
وَجَعَلْنَٰهَآ
और बना दिया हमने उसे
āyatan
ءَايَةً
एक निशानी
lil'ʿālamīna
لِّلْعَٰلَمِينَ
तमाम जहान वालों के लिए
फिर उसको और नौकावालों को हमने बचा लिया और उसे सारे संसार के लिए एक निशानी बना दिया ([२९] अल-अनकबूत: 15)
Tafseer (तफ़सीर )
१६

وَاِبْرٰهِيْمَ اِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ اعْبُدُوا اللّٰهَ وَاتَّقُوْهُ ۗذٰلِكُمْ خَيْرٌ لَّكُمْ اِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ ١٦

wa-ib'rāhīma
وَإِبْرَٰهِيمَ
और इब्राहीम को
idh
إِذْ
जब
qāla
قَالَ
उसने कहा
liqawmihi
لِقَوْمِهِ
अपनी क़ौम से
uʿ'budū
ٱعْبُدُوا۟
इबादत करो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह की
wa-ittaqūhu
وَٱتَّقُوهُۖ
और डरो उससे
dhālikum
ذَٰلِكُمْ
ये
khayrun
خَيْرٌ
बेहतर है
lakum
لَّكُمْ
तुम्हारे लिए
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
taʿlamūna
تَعْلَمُونَ
तुम जानते
और इबराहीम को भी भेजा, जबकि उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, 'अल्लाह की बन्दगी करो और उसका डर रखो। यह तुम्हारे लिए अच्छा है, यदि तुम जानो ([२९] अल-अनकबूत: 16)
Tafseer (तफ़सीर )
१७

اِنَّمَا تَعْبُدُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ اَوْثَانًا وَّتَخْلُقُوْنَ اِفْكًا ۗاِنَّ الَّذِيْنَ تَعْبُدُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ لَا يَمْلِكُوْنَ لَكُمْ رِزْقًا فَابْتَغُوْا عِنْدَ اللّٰهِ الرِّزْقَ وَاعْبُدُوْهُ وَاشْكُرُوْا لَهٗ ۗاِلَيْهِ تُرْجَعُوْنَ ١٧

innamā
إِنَّمَا
बेशक
taʿbudūna
تَعْبُدُونَ
तुम इबादत करते हो
min
مِن
सिवाए
dūni
دُونِ
सिवाए
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
awthānan
أَوْثَٰنًا
कुछ बुतों की
watakhluqūna
وَتَخْلُقُونَ
और तुम गढ़ते हो
if'kan
إِفْكًاۚ
झूट
inna
إِنَّ
बेशक
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिनकी
taʿbudūna
تَعْبُدُونَ
तुम इबादत करते हो
min
مِن
सिवाए
dūni
دُونِ
सिवाए
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
لَا
नहीं वो मालिक हो सकते
yamlikūna
يَمْلِكُونَ
नहीं वो मालिक हो सकते
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
riz'qan
رِزْقًا
रिज़्क़ के
fa-ib'taghū
فَٱبْتَغُوا۟
पस तलाश करो
ʿinda
عِندَ
अल्लाह के पास
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के पास
l-riz'qa
ٱلرِّزْقَ
रिज़्क़
wa-uʿ'budūhu
وَٱعْبُدُوهُ
और इबादत करो उसकी
wa-ush'kurū
وَٱشْكُرُوا۟
और शुक्र अदा करो
lahu
لَهُۥٓۖ
उसका
ilayhi
إِلَيْهِ
तरफ़ उसी के
tur'jaʿūna
تُرْجَعُونَ
तुम लौटाए जाओगे
तुम तो अल्लाह से हटकर बस मूर्तियों को पूज रहे हो और झूठ घड़ रहे हो। तुम अल्लाह से हटकर जिनको पूजते हो वे तुम्हारे लिए रोज़ी का भी अधिकार नहीं रखते। अतः तुम अल्लाह ही के यहाँ रोज़ी तलाश करो और उसी की बन्दगी करो और उसके आभारी बनो। तुम्हें उसी की ओर लौटकर जाना है ([२९] अल-अनकबूत: 17)
Tafseer (तफ़सीर )
१८

وَاِنْ تُكَذِّبُوْا فَقَدْ كَذَّبَ اُمَمٌ مِّنْ قَبْلِكُمْ ۗوَمَا عَلَى الرَّسُوْلِ اِلَّا الْبَلٰغُ الْمُبِيْنُ ١٨

wa-in
وَإِن
और अगर
tukadhibū
تُكَذِّبُوا۟
तुम झुठलाते हो
faqad
فَقَدْ
पस तहक़ीक़
kadhaba
كَذَّبَ
झुठलाया
umamun
أُمَمٌ
उम्मतों ने
min
مِّن
जो तुम से पहले थीं
qablikum
قَبْلِكُمْۖ
जो तुम से पहले थीं
wamā
وَمَا
और नहीं
ʿalā
عَلَى
रसूल पर
l-rasūli
ٱلرَّسُولِ
रसूल पर
illā
إِلَّا
मगर
l-balāghu
ٱلْبَلَٰغُ
पहुँचा देना
l-mubīnu
ٱلْمُبِينُ
वाज़ेह तौर पर
और यदि तुम झुठलाते हो तो तुमसे पहले कितने ही समुदाय झुठला चुके है। रसूल पर तो बस केवल स्पष्ट रूप से (सत्य संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है।' ([२९] अल-अनकबूत: 18)
Tafseer (तफ़सीर )
१९

اَوَلَمْ يَرَوْا كَيْفَ يُبْدِئُ اللّٰهُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيْدُهٗ ۗاِنَّ ذٰلِكَ عَلَى اللّٰهِ يَسِيْرٌ ١٩

awalam
أَوَلَمْ
क्या भला नहीं
yaraw
يَرَوْا۟
उन्होंने देखा
kayfa
كَيْفَ
किस तरह
yub'di-u
يُبْدِئُ
इब्तिदा करता है
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
l-khalqa
ٱلْخَلْقَ
मख़लूक़ की
thumma
ثُمَّ
फिर
yuʿīduhu
يُعِيدُهُۥٓۚ
वो एआदा करेगा उसका
inna
إِنَّ
बेशक
dhālika
ذَٰلِكَ
ये
ʿalā
عَلَى
अल्लाह पर
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह पर
yasīrun
يَسِيرٌ
बहुत आसान है
क्या उन्होंने देखा नहीं कि अल्लाह किस प्रकार पैदाइश का आरम्भ करता है और फिर उसकी पुनरावृत्ति करता है? निस्संदेह यह अल्लाह के लिए अत्यन्त सरल है ([२९] अल-अनकबूत: 19)
Tafseer (तफ़सीर )
२०

قُلْ سِيْرُوْا فِى الْاَرْضِ فَانْظُرُوْا كَيْفَ بَدَاَ الْخَلْقَ ثُمَّ اللّٰهُ يُنْشِئُ النَّشْاَةَ الْاٰخِرَةَ ۗاِنَّ اللّٰهَ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرٌ ۚ ٢٠

qul
قُلْ
कह दीजिए
sīrū
سِيرُوا۟
चलो-फिरो
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
fa-unẓurū
فَٱنظُرُوا۟
फिर देखो
kayfa
كَيْفَ
किस तरह
bada-a
بَدَأَ
उसने इब्तिदा की
l-khalqa
ٱلْخَلْقَۚ
मख़लूक़ की
thumma
ثُمَّ
फिर
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
yunshi-u
يُنشِئُ
वो उठाएगा
l-nashata
ٱلنَّشْأَةَ
उठाना
l-ākhirata
ٱلْءَاخِرَةَۚ
आख़िरी बार
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
ʿalā
عَلَىٰ
ऊपर
kulli
كُلِّ
हर
shayin
شَىْءٍ
चीज़ के
qadīrun
قَدِيرٌ
ख़ूब क़ुदरत रखना वाला है
कहो कि, 'धरती में चलो-फिरो और देखो कि उसने किस प्रकार पैदाइश का आरम्भ किया। फिर अल्लाह पश्चात्वर्ती उठान उठाएगा। निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है ([२९] अल-अनकबूत: 20)
Tafseer (तफ़सीर )