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सूरा अल-क़सस - Page: 8

Al-Qasas

(कहानियाँ)

७१

قُلْ اَرَءَيْتُمْ اِنْ جَعَلَ اللّٰهُ عَلَيْكُمُ الَّيْلَ سَرْمَدًا اِلٰى يَوْمِ الْقِيٰمَةِ مَنْ اِلٰهٌ غَيْرُ اللّٰهِ يَأْتِيْكُمْ بِضِيَاۤءٍ ۗ اَفَلَا تَسْمَعُوْنَ ٧١

qul
قُلْ
कह दीजिए
ara-aytum
أَرَءَيْتُمْ
क्या ग़ौर किया तुमने
in
إِن
अगर
jaʿala
جَعَلَ
कर दे
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
ʿalaykumu
عَلَيْكُمُ
तुम पर
al-layla
ٱلَّيْلَ
रात
sarmadan
سَرْمَدًا
हमेशा/दाइमी
ilā
إِلَىٰ
दिन तक
yawmi
يَوْمِ
दिन तक
l-qiyāmati
ٱلْقِيَٰمَةِ
क़यामत के
man
مَنْ
कौन है
ilāhun
إِلَٰهٌ
इलाह
ghayru
غَيْرُ
सिवाए
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
yatīkum
يَأْتِيكُم
जो लाए तुम्हारे पास
biḍiyāin
بِضِيَآءٍۖ
कोई रौशनी
afalā
أَفَلَا
क्या भला नहीं
tasmaʿūna
تَسْمَعُونَ
तुम सुनते
‍‍कहो, 'क्या तुमने विचार किया कि यदि अल्लाह क़ियामत के दिन तक सदैव के लिए तुमपर रात कर दे तो अल्लाह के सिवा कौन इष्ट-प्रभु है जो तुम्हारे लिए प्रकाश लाए? तो क्या तुम देखते नहीं?' ([२८] अल-क़सस: 71)
Tafseer (तफ़सीर )
७२

قُلْ اَرَءَيْتُمْ اِنْ جَعَلَ اللّٰهُ عَلَيْكُمُ النَّهَارَ سَرْمَدًا اِلٰى يَوْمِ الْقِيٰمَةِ مَنْ اِلٰهٌ غَيْرُ اللّٰهِ يَأْتِيْكُمْ بِلَيْلٍ تَسْكُنُوْنَ فِيْهِ ۗ اَفَلَا تُبْصِرُوْنَ ٧٢

qul
قُلْ
कह दीजिए
ara-aytum
أَرَءَيْتُمْ
क्या ग़ौर किया तुमने
in
إِن
अगर
jaʿala
جَعَلَ
कर दे
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
ʿalaykumu
عَلَيْكُمُ
तुम पर
l-nahāra
ٱلنَّهَارَ
दिन को
sarmadan
سَرْمَدًا
हमेशा/दाइमी
ilā
إِلَىٰ
दिन तक
yawmi
يَوْمِ
दिन तक
l-qiyāmati
ٱلْقِيَٰمَةِ
क़यामत के
man
مَنْ
कौन
ilāhun
إِلَٰهٌ
इलाह है
ghayru
غَيْرُ
सिवाए
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
yatīkum
يَأْتِيكُم
जो लाएगा तुम्हारे पास
bilaylin
بِلَيْلٍ
रात को
taskunūna
تَسْكُنُونَ
तुम सुकून पा सको
fīhi
فِيهِۖ
उसमें
afalā
أَفَلَا
क्या फिर नहीं
tub'ṣirūna
تُبْصِرُونَ
तुम देखते
कहो, 'क्या तुमने विचार किया? यदि अल्लाह क़ियामत के दिन तक सदैव के लिए तुमपर दिन कर दे तो अल्लाह के सिवा दूसरा कौन इष्ट-पूज्य है जो तुम्हारे लिए रात लाए जिसमें तुम आराम पाते हो? तो क्या तुम देखते नहीं? ([२८] अल-क़सस: 72)
Tafseer (तफ़सीर )
७३

وَمِنْ رَّحْمَتِهٖ جَعَلَ لَكُمُ الَّيْلَ وَالنَّهَارَ لِتَسْكُنُوْا فِيْهِ وَلِتَبْتَغُوْا مِنْ فَضْلِهٖ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ٧٣

wamin
وَمِن
और उसकी रहमत में से है
raḥmatihi
رَّحْمَتِهِۦ
और उसकी रहमत में से है
jaʿala
جَعَلَ
कि उसने बनाया
lakumu
لَكُمُ
तुम्हारे लिए
al-layla
ٱلَّيْلَ
रात
wal-nahāra
وَٱلنَّهَارَ
और दिन को
litaskunū
لِتَسْكُنُوا۟
ताकि तुम सुकून पाओ
fīhi
فِيهِ
उसमें
walitabtaghū
وَلِتَبْتَغُوا۟
और ताकि तुम तलाश करो
min
مِن
उसके फ़ज़ल में से
faḍlihi
فَضْلِهِۦ
उसके फ़ज़ल में से
walaʿallakum
وَلَعَلَّكُمْ
और ताकि तुम
tashkurūna
تَشْكُرُونَ
तुम शुक्र अदा करो
उसने अपनी दयालुता से तुम्हारे लिए रात और दिन बनाए, ताकि तुम उसमें (रात में) आराम पाओ और ताकि तुम (दिन में) उसका अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो और ताकि तुम कृतज्ञता दिखाओ।' ([२८] अल-क़सस: 73)
Tafseer (तफ़सीर )
७४

وَيَوْمَ يُنَادِيْهِمْ فَيَقُوْلُ اَيْنَ شُرَكَاۤءِيَ الَّذِيْنَ كُنْتُمْ تَزْعُمُوْنَ ٧٤

wayawma
وَيَوْمَ
और जिस दिन
yunādīhim
يُنَادِيهِمْ
वो पुकारेगा उन्हें
fayaqūlu
فَيَقُولُ
तो वो फ़रमाएगा
ayna
أَيْنَ
कहाँ हैं
shurakāiya
شُرَكَآءِىَ
मेरे शरीक
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिनका
kuntum
كُنتُمْ
थे तुम
tazʿumūna
تَزْعُمُونَ
तुम दावा करते
ख़याल करो, जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा और कहेगा, 'कहाँ है मेरे वे मेरे साझीदार, जिनका तुम्हे दावा था?' ([२८] अल-क़सस: 74)
Tafseer (तफ़सीर )
७५

وَنَزَعْنَا مِنْ كُلِّ اُمَّةٍ شَهِيْدًا فَقُلْنَا هَاتُوْا بُرْهَانَكُمْ فَعَلِمُوْٓا اَنَّ الْحَقَّ لِلّٰهِ وَضَلَّ عَنْهُمْ مَّا كَانُوْا يَفْتَرُوْنَ ࣖ ٧٥

wanazaʿnā
وَنَزَعْنَا
और निकाल लाऐंगे हम
min
مِن
हर उम्मत से
kulli
كُلِّ
हर उम्मत से
ummatin
أُمَّةٍ
हर उम्मत से
shahīdan
شَهِيدًا
एक गवाह
faqul'nā
فَقُلْنَا
तो कहेंगे हम
hātū
هَاتُوا۟
लाओ
bur'hānakum
بُرْهَٰنَكُمْ
दलील अपनी
faʿalimū
فَعَلِمُوٓا۟
तो वो जान लेंगे
anna
أَنَّ
बेशक
l-ḥaqa
ٱلْحَقَّ
हक़
lillahi
لِلَّهِ
अल्लाह ही के लिए है
waḍalla
وَضَلَّ
और गुम हो जाऐंगे
ʿanhum
عَنْهُم
उनसे
مَّا
जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yaftarūna
يَفْتَرُونَ
वो गढ़ा करते
और हम प्रत्येक समुदाय में से एक गवाह निकाल लाएँगे और कहेंगे, 'लाओ अपना प्रमाण।' तब वे जान लेंगे कि सत्य अल्लाह की ओर से है और जो कुछ वे घड़ते थे, वह सब उनसे गुम होकर रह जाएगा ([२८] अल-क़सस: 75)
Tafseer (तफ़सीर )
७६

۞ اِنَّ قَارُوْنَ كَانَ مِنْ قَوْمِ مُوْسٰى فَبَغٰى عَلَيْهِمْ ۖوَاٰتَيْنٰهُ مِنَ الْكُنُوْزِ مَآ اِنَّ مَفَاتِحَهٗ لَتَنُوْۤاُ بِالْعُصْبَةِ اُولِى الْقُوَّةِ اِذْ قَالَ لَهٗ قَوْمُهٗ لَا تَفْرَحْ اِنَّ اللّٰهَ لَا يُحِبُّ الْفَرِحِيْنَ ٧٦

inna
إِنَّ
बेशक
qārūna
قَٰرُونَ
क़ारून
kāna
كَانَ
था वो
min
مِن
क़ौम से
qawmi
قَوْمِ
क़ौम से
mūsā
مُوسَىٰ
मूसा की
fabaghā
فَبَغَىٰ
तो उसने सरकशी की
ʿalayhim
عَلَيْهِمْۖ
उन पर
waātaynāhu
وَءَاتَيْنَٰهُ
और अता किया हमने उसे
mina
مِنَ
ख़ज़ानों में से
l-kunūzi
ٱلْكُنُوزِ
ख़ज़ानों में से
مَآ
इस क़द्र कि
inna
إِنَّ
बेशक
mafātiḥahu
مَفَاتِحَهُۥ
कुंजियाँ उसकी
latanūu
لَتَنُوٓأُ
अलबत्ता वो भारी होती थीं
bil-ʿuṣ'bati
بِٱلْعُصْبَةِ
एक जमात पर
ulī
أُو۟لِى
क़ुव्वत वाली
l-quwati
ٱلْقُوَّةِ
क़ुव्वत वाली
idh
إِذْ
जब
qāla
قَالَ
कहा
lahu
لَهُۥ
उसे
qawmuhu
قَوْمُهُۥ
उसकी क़ौम ने
لَا
ना तुम इतराओ
tafraḥ
تَفْرَحْۖ
ना तुम इतराओ
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
لَا
नहीं वो पसंद करता
yuḥibbu
يُحِبُّ
नहीं वो पसंद करता
l-fariḥīna
ٱلْفَرِحِينَ
इतराने वालों को
निश्चय ही क़ारून मूसा की क़ौम में से था, फिर उसने उनके विरुद्ध सिर उठाया और हमने उसे इतने ख़जाने दे रखें थे कि उनकी कुंजियाँ एक बलशाली दल को भारी पड़ती थी। जब उससे उसकी क़ौम के लोगों ने कहा, 'इतरा मत, अल्लाह इतरानेवालों के पसन्द नही करता ([२८] अल-क़सस: 76)
Tafseer (तफ़सीर )
७७

وَابْتَغِ فِيْمَآ اٰتٰىكَ اللّٰهُ الدَّارَ الْاٰخِرَةَ وَلَا تَنْسَ نَصِيْبَكَ مِنَ الدُّنْيَا وَاَحْسِنْ كَمَآ اَحْسَنَ اللّٰهُ اِلَيْكَ وَلَا تَبْغِ الْفَسَادَ فِى الْاَرْضِ ۗاِنَّ اللّٰهَ لَا يُحِبُّ الْمُفْسِدِيْنَ ٧٧

wa-ib'taghi
وَٱبْتَغِ
और तलाश करो
fīmā
فِيمَآ
उसमें से जो
ātāka
ءَاتَىٰكَ
दिया तुम्हें
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
l-dāra
ٱلدَّارَ
घर
l-ākhirata
ٱلْءَاخِرَةَۖ
आख़िरत का
walā
وَلَا
और ना
tansa
تَنسَ
तुम भूलो
naṣībaka
نَصِيبَكَ
हिस्सा अपना
mina
مِنَ
दुनिया में से
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَاۖ
दुनिया में से
wa-aḥsin
وَأَحْسِن
और एहसान करो
kamā
كَمَآ
जैसा कि
aḥsana
أَحْسَنَ
एहसान किया
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
ilayka
إِلَيْكَۖ
तुम पर
walā
وَلَا
और ना
tabghi
تَبْغِ
तुम चाहो
l-fasāda
ٱلْفَسَادَ
फ़साद
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِۖ
ज़मीन में
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
لَا
नहीं वो पसंद करता
yuḥibbu
يُحِبُّ
नहीं वो पसंद करता
l-muf'sidīna
ٱلْمُفْسِدِينَ
फ़साद करने वालों को
जो कुछ अल्लाह ने तुझे दिया है, उसमें आख़िरत के घर का निर्माण कर और दुनिया में से अपना हिस्सा न भूल, और भलाई कर, जैसा कि अल्लाह ने तेरे साथ भलाई की है, और धरती का बिगाड़ मत चाह। निश्चय ही अल्लाह बिगाड़ पैदा करनेवालों को पसन्द नहीं करता।' ([२८] अल-क़सस: 77)
Tafseer (तफ़सीर )
७८

قَالَ اِنَّمَآ اُوْتِيْتُهٗ عَلٰى عِلْمٍ عِنْدِيْۗ اَوَلَمْ يَعْلَمْ اَنَّ اللّٰهَ قَدْ اَهْلَكَ مِنْ قَبْلِهٖ مِنَ الْقُرُوْنِ مَنْ هُوَ اَشَدُّ مِنْهُ قُوَّةً وَّاَكْثَرُ جَمْعًا ۗوَلَا يُسْـَٔلُ عَنْ ذُنُوْبِهِمُ الْمُجْرِمُوْنَ ٧٨

qāla
قَالَ
उसने कहा
innamā
إِنَّمَآ
बेशक
ūtītuhu
أُوتِيتُهُۥ
दिया गया हूँ मैं इसे
ʿalā
عَلَىٰ
इल्म कि बिना पर
ʿil'min
عِلْمٍ
इल्म कि बिना पर
ʿindī
عِندِىٓۚ
जो मेरे पास है
awalam
أَوَلَمْ
क्या भला नहीं
yaʿlam
يَعْلَمْ
उसने जाना
anna
أَنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह ने
qad
قَدْ
तहक़ीक़
ahlaka
أَهْلَكَ
उसने हलाक कर दिया
min
مِن
इससे पहले
qablihi
قَبْلِهِۦ
इससे पहले
mina
مِنَ
कई उम्मतों को
l-qurūni
ٱلْقُرُونِ
कई उम्मतों को
man
مَنْ
वो जो
huwa
هُوَ
वो जो
ashaddu
أَشَدُّ
ज़्यादा सख़्त थीं
min'hu
مِنْهُ
उससे
quwwatan
قُوَّةً
क़ुव्वत में
wa-aktharu
وَأَكْثَرُ
और अक्सर
jamʿan
جَمْعًاۚ
जमीअत में
walā
وَلَا
और नहीं
yus'alu
يُسْـَٔلُ
पूछे जाते
ʿan
عَن
अपने गुनाहों के बारे में
dhunūbihimu
ذُنُوبِهِمُ
अपने गुनाहों के बारे में
l-muj'rimūna
ٱلْمُجْرِمُونَ
मुजरिम
उसने कहा, 'मुझे तो यह मेरे अपने व्यक्तिगत ज्ञान के कारण मिला है।' क्या उसने यह नहीं जाना कि अल्लाह उससे पहले कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर चुका है जो शक्ति में उससे बढ़-चढ़कर और बाहुल्य में उससे अधिक थीं? अपराधियों से तो (उनकी तबाही के समय) उनके गुनाहों के विषय में पूछा भी नहीं जाता ([२८] अल-क़सस: 78)
Tafseer (तफ़सीर )
७९

فَخَرَجَ عَلٰى قَوْمِهٖ فِيْ زِيْنَتِهٖ ۗقَالَ الَّذِيْنَ يُرِيْدُوْنَ الْحَيٰوةَ الدُّنْيَا يٰلَيْتَ لَنَا مِثْلَ مَآ اُوْتِيَ قَارُوْنُۙ اِنَّهٗ لَذُوْ حَظٍّ عَظِيْمٍ ٧٩

fakharaja
فَخَرَجَ
तो वो निकला
ʿalā
عَلَىٰ
अपनी क़ौम पर
qawmihi
قَوْمِهِۦ
अपनी क़ौम पर
فِى
अपनी ज़ीनत में
zīnatihi
زِينَتِهِۦۖ
अपनी ज़ीनत में
qāla
قَالَ
कहा
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन लोगों ने जो
yurīdūna
يُرِيدُونَ
चाहते थे
l-ḥayata
ٱلْحَيَوٰةَ
ज़िन्दगी
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَا
दुनिया की
yālayta
يَٰلَيْتَ
ऐ काश कि होता
lanā
لَنَا
हमारे लिए
mith'la
مِثْلَ
मानिन्द
مَآ
उसके जो
ūtiya
أُوتِىَ
दिया गया
qārūnu
قَٰرُونُ
क़ारून
innahu
إِنَّهُۥ
यक़ीनन वो
ladhū
لَذُو
अलबत्ता क़िस्मत वाला है
ḥaẓẓin
حَظٍّ
अलबत्ता क़िस्मत वाला है
ʿaẓīmin
عَظِيمٍ
बहुत बड़ी
फिर वह अपनी क़ौम के सामने अपने ठाठ-बाट में निकला। जो लोग सांसारिक जीवन के चाहनेवाले थे, उन्होंने कहा, 'क्या ही अच्छा होता जैसा कुछ क़ारून को मिला है, हमें भी मिला होता! वह तो बड़ा ही भाग्यशाली है।' ([२८] अल-क़सस: 79)
Tafseer (तफ़सीर )
८०

وَقَالَ الَّذِيْنَ اُوْتُوا الْعِلْمَ وَيْلَكُمْ ثَوَابُ اللّٰهِ خَيْرٌ لِّمَنْ اٰمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا ۚوَلَا يُلَقّٰىهَآ اِلَّا الصّٰبِرُوْنَ ٨٠

waqāla
وَقَالَ
और कहा
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन लोगों ने जो
ūtū
أُوتُوا۟
दिए गए थे
l-ʿil'ma
ٱلْعِلْمَ
इल्म
waylakum
وَيْلَكُمْ
अफ़सोस तुम पर
thawābu
ثَوَابُ
सवाब
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह का
khayrun
خَيْرٌ
बेहतर है
liman
لِّمَنْ
उसके लिए जो
āmana
ءَامَنَ
ईमान लाया
waʿamila
وَعَمِلَ
और उसने अमल किया
ṣāliḥan
صَٰلِحًا
नेक
walā
وَلَا
और नहीं
yulaqqāhā
يُلَقَّىٰهَآ
पा सकते उसे
illā
إِلَّا
मगर
l-ṣābirūna
ٱلصَّٰبِرُونَ
सब्र करने वाले
किन्तु जिनको ज्ञान प्राप्त था, उन्होंने कहा, 'अफ़सोस तुमपर! अल्लाह का प्रतिदान उत्तम है, उस व्यक्ति के लिए जो ईमान लाए और अच्छा कर्म करे, और यह बात उन्हीम के दिलों में पड़ती है जो धैर्यवान होते है।' ([२८] अल-क़सस: 80)
Tafseer (तफ़सीर )