قُلْ اَرَءَيْتُمْ اِنْ جَعَلَ اللّٰهُ عَلَيْكُمُ الَّيْلَ سَرْمَدًا اِلٰى يَوْمِ الْقِيٰمَةِ مَنْ اِلٰهٌ غَيْرُ اللّٰهِ يَأْتِيْكُمْ بِضِيَاۤءٍ ۗ اَفَلَا تَسْمَعُوْنَ ٧١
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- ara-aytum
- أَرَءَيْتُمْ
- क्या ग़ौर किया तुमने
- in
- إِن
- अगर
- jaʿala
- جَعَلَ
- कर दे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- ʿalaykumu
- عَلَيْكُمُ
- तुम पर
- al-layla
- ٱلَّيْلَ
- रात
- sarmadan
- سَرْمَدًا
- हमेशा/दाइमी
- ilā
- إِلَىٰ
- दिन तक
- yawmi
- يَوْمِ
- दिन तक
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِ
- क़यामत के
- man
- مَنْ
- कौन है
- ilāhun
- إِلَٰهٌ
- इलाह
- ghayru
- غَيْرُ
- सिवाए
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- yatīkum
- يَأْتِيكُم
- जो लाए तुम्हारे पास
- biḍiyāin
- بِضِيَآءٍۖ
- कोई रौशनी
- afalā
- أَفَلَا
- क्या भला नहीं
- tasmaʿūna
- تَسْمَعُونَ
- तुम सुनते
कहो, 'क्या तुमने विचार किया कि यदि अल्लाह क़ियामत के दिन तक सदैव के लिए तुमपर रात कर दे तो अल्लाह के सिवा कौन इष्ट-प्रभु है जो तुम्हारे लिए प्रकाश लाए? तो क्या तुम देखते नहीं?' ([२८] अल-क़सस: 71)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ اَرَءَيْتُمْ اِنْ جَعَلَ اللّٰهُ عَلَيْكُمُ النَّهَارَ سَرْمَدًا اِلٰى يَوْمِ الْقِيٰمَةِ مَنْ اِلٰهٌ غَيْرُ اللّٰهِ يَأْتِيْكُمْ بِلَيْلٍ تَسْكُنُوْنَ فِيْهِ ۗ اَفَلَا تُبْصِرُوْنَ ٧٢
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- ara-aytum
- أَرَءَيْتُمْ
- क्या ग़ौर किया तुमने
- in
- إِن
- अगर
- jaʿala
- جَعَلَ
- कर दे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- ʿalaykumu
- عَلَيْكُمُ
- तुम पर
- l-nahāra
- ٱلنَّهَارَ
- दिन को
- sarmadan
- سَرْمَدًا
- हमेशा/दाइमी
- ilā
- إِلَىٰ
- दिन तक
- yawmi
- يَوْمِ
- दिन तक
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِ
- क़यामत के
- man
- مَنْ
- कौन
- ilāhun
- إِلَٰهٌ
- इलाह है
- ghayru
- غَيْرُ
- सिवाए
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- yatīkum
- يَأْتِيكُم
- जो लाएगा तुम्हारे पास
- bilaylin
- بِلَيْلٍ
- रात को
- taskunūna
- تَسْكُنُونَ
- तुम सुकून पा सको
- fīhi
- فِيهِۖ
- उसमें
- afalā
- أَفَلَا
- क्या फिर नहीं
- tub'ṣirūna
- تُبْصِرُونَ
- तुम देखते
कहो, 'क्या तुमने विचार किया? यदि अल्लाह क़ियामत के दिन तक सदैव के लिए तुमपर दिन कर दे तो अल्लाह के सिवा दूसरा कौन इष्ट-पूज्य है जो तुम्हारे लिए रात लाए जिसमें तुम आराम पाते हो? तो क्या तुम देखते नहीं? ([२८] अल-क़सस: 72)Tafseer (तफ़सीर )
وَمِنْ رَّحْمَتِهٖ جَعَلَ لَكُمُ الَّيْلَ وَالنَّهَارَ لِتَسْكُنُوْا فِيْهِ وَلِتَبْتَغُوْا مِنْ فَضْلِهٖ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ٧٣
- wamin
- وَمِن
- और उसकी रहमत में से है
- raḥmatihi
- رَّحْمَتِهِۦ
- और उसकी रहमत में से है
- jaʿala
- جَعَلَ
- कि उसने बनाया
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम्हारे लिए
- al-layla
- ٱلَّيْلَ
- रात
- wal-nahāra
- وَٱلنَّهَارَ
- और दिन को
- litaskunū
- لِتَسْكُنُوا۟
- ताकि तुम सुकून पाओ
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- walitabtaghū
- وَلِتَبْتَغُوا۟
- और ताकि तुम तलाश करो
- min
- مِن
- उसके फ़ज़ल में से
- faḍlihi
- فَضْلِهِۦ
- उसके फ़ज़ल में से
- walaʿallakum
- وَلَعَلَّكُمْ
- और ताकि तुम
- tashkurūna
- تَشْكُرُونَ
- तुम शुक्र अदा करो
उसने अपनी दयालुता से तुम्हारे लिए रात और दिन बनाए, ताकि तुम उसमें (रात में) आराम पाओ और ताकि तुम (दिन में) उसका अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो और ताकि तुम कृतज्ञता दिखाओ।' ([२८] अल-क़सस: 73)Tafseer (तफ़सीर )
وَيَوْمَ يُنَادِيْهِمْ فَيَقُوْلُ اَيْنَ شُرَكَاۤءِيَ الَّذِيْنَ كُنْتُمْ تَزْعُمُوْنَ ٧٤
- wayawma
- وَيَوْمَ
- और जिस दिन
- yunādīhim
- يُنَادِيهِمْ
- वो पुकारेगा उन्हें
- fayaqūlu
- فَيَقُولُ
- तो वो फ़रमाएगा
- ayna
- أَيْنَ
- कहाँ हैं
- shurakāiya
- شُرَكَآءِىَ
- मेरे शरीक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिनका
- kuntum
- كُنتُمْ
- थे तुम
- tazʿumūna
- تَزْعُمُونَ
- तुम दावा करते
ख़याल करो, जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा और कहेगा, 'कहाँ है मेरे वे मेरे साझीदार, जिनका तुम्हे दावा था?' ([२८] अल-क़सस: 74)Tafseer (तफ़सीर )
وَنَزَعْنَا مِنْ كُلِّ اُمَّةٍ شَهِيْدًا فَقُلْنَا هَاتُوْا بُرْهَانَكُمْ فَعَلِمُوْٓا اَنَّ الْحَقَّ لِلّٰهِ وَضَلَّ عَنْهُمْ مَّا كَانُوْا يَفْتَرُوْنَ ࣖ ٧٥
- wanazaʿnā
- وَنَزَعْنَا
- और निकाल लाऐंगे हम
- min
- مِن
- हर उम्मत से
- kulli
- كُلِّ
- हर उम्मत से
- ummatin
- أُمَّةٍ
- हर उम्मत से
- shahīdan
- شَهِيدًا
- एक गवाह
- faqul'nā
- فَقُلْنَا
- तो कहेंगे हम
- hātū
- هَاتُوا۟
- लाओ
- bur'hānakum
- بُرْهَٰنَكُمْ
- दलील अपनी
- faʿalimū
- فَعَلِمُوٓا۟
- तो वो जान लेंगे
- anna
- أَنَّ
- बेशक
- l-ḥaqa
- ٱلْحَقَّ
- हक़
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह ही के लिए है
- waḍalla
- وَضَلَّ
- और गुम हो जाऐंगे
- ʿanhum
- عَنْهُم
- उनसे
- mā
- مَّا
- जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yaftarūna
- يَفْتَرُونَ
- वो गढ़ा करते
और हम प्रत्येक समुदाय में से एक गवाह निकाल लाएँगे और कहेंगे, 'लाओ अपना प्रमाण।' तब वे जान लेंगे कि सत्य अल्लाह की ओर से है और जो कुछ वे घड़ते थे, वह सब उनसे गुम होकर रह जाएगा ([२८] अल-क़सस: 75)Tafseer (तफ़सीर )
۞ اِنَّ قَارُوْنَ كَانَ مِنْ قَوْمِ مُوْسٰى فَبَغٰى عَلَيْهِمْ ۖوَاٰتَيْنٰهُ مِنَ الْكُنُوْزِ مَآ اِنَّ مَفَاتِحَهٗ لَتَنُوْۤاُ بِالْعُصْبَةِ اُولِى الْقُوَّةِ اِذْ قَالَ لَهٗ قَوْمُهٗ لَا تَفْرَحْ اِنَّ اللّٰهَ لَا يُحِبُّ الْفَرِحِيْنَ ٧٦
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- qārūna
- قَٰرُونَ
- क़ारून
- kāna
- كَانَ
- था वो
- min
- مِن
- क़ौम से
- qawmi
- قَوْمِ
- क़ौम से
- mūsā
- مُوسَىٰ
- मूसा की
- fabaghā
- فَبَغَىٰ
- तो उसने सरकशी की
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْۖ
- उन पर
- waātaynāhu
- وَءَاتَيْنَٰهُ
- और अता किया हमने उसे
- mina
- مِنَ
- ख़ज़ानों में से
- l-kunūzi
- ٱلْكُنُوزِ
- ख़ज़ानों में से
- mā
- مَآ
- इस क़द्र कि
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- mafātiḥahu
- مَفَاتِحَهُۥ
- कुंजियाँ उसकी
- latanūu
- لَتَنُوٓأُ
- अलबत्ता वो भारी होती थीं
- bil-ʿuṣ'bati
- بِٱلْعُصْبَةِ
- एक जमात पर
- ulī
- أُو۟لِى
- क़ुव्वत वाली
- l-quwati
- ٱلْقُوَّةِ
- क़ुव्वत वाली
- idh
- إِذْ
- जब
- qāla
- قَالَ
- कहा
- lahu
- لَهُۥ
- उसे
- qawmuhu
- قَوْمُهُۥ
- उसकी क़ौम ने
- lā
- لَا
- ना तुम इतराओ
- tafraḥ
- تَفْرَحْۖ
- ना तुम इतराओ
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं वो पसंद करता
- yuḥibbu
- يُحِبُّ
- नहीं वो पसंद करता
- l-fariḥīna
- ٱلْفَرِحِينَ
- इतराने वालों को
निश्चय ही क़ारून मूसा की क़ौम में से था, फिर उसने उनके विरुद्ध सिर उठाया और हमने उसे इतने ख़जाने दे रखें थे कि उनकी कुंजियाँ एक बलशाली दल को भारी पड़ती थी। जब उससे उसकी क़ौम के लोगों ने कहा, 'इतरा मत, अल्लाह इतरानेवालों के पसन्द नही करता ([२८] अल-क़सस: 76)Tafseer (तफ़सीर )
وَابْتَغِ فِيْمَآ اٰتٰىكَ اللّٰهُ الدَّارَ الْاٰخِرَةَ وَلَا تَنْسَ نَصِيْبَكَ مِنَ الدُّنْيَا وَاَحْسِنْ كَمَآ اَحْسَنَ اللّٰهُ اِلَيْكَ وَلَا تَبْغِ الْفَسَادَ فِى الْاَرْضِ ۗاِنَّ اللّٰهَ لَا يُحِبُّ الْمُفْسِدِيْنَ ٧٧
- wa-ib'taghi
- وَٱبْتَغِ
- और तलाश करो
- fīmā
- فِيمَآ
- उसमें से जो
- ātāka
- ءَاتَىٰكَ
- दिया तुम्हें
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- l-dāra
- ٱلدَّارَ
- घर
- l-ākhirata
- ٱلْءَاخِرَةَۖ
- आख़िरत का
- walā
- وَلَا
- और ना
- tansa
- تَنسَ
- तुम भूलो
- naṣībaka
- نَصِيبَكَ
- हिस्सा अपना
- mina
- مِنَ
- दुनिया में से
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَاۖ
- दुनिया में से
- wa-aḥsin
- وَأَحْسِن
- और एहसान करो
- kamā
- كَمَآ
- जैसा कि
- aḥsana
- أَحْسَنَ
- एहसान किया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- ilayka
- إِلَيْكَۖ
- तुम पर
- walā
- وَلَا
- और ना
- tabghi
- تَبْغِ
- तुम चाहो
- l-fasāda
- ٱلْفَسَادَ
- फ़साद
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِۖ
- ज़मीन में
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं वो पसंद करता
- yuḥibbu
- يُحِبُّ
- नहीं वो पसंद करता
- l-muf'sidīna
- ٱلْمُفْسِدِينَ
- फ़साद करने वालों को
जो कुछ अल्लाह ने तुझे दिया है, उसमें आख़िरत के घर का निर्माण कर और दुनिया में से अपना हिस्सा न भूल, और भलाई कर, जैसा कि अल्लाह ने तेरे साथ भलाई की है, और धरती का बिगाड़ मत चाह। निश्चय ही अल्लाह बिगाड़ पैदा करनेवालों को पसन्द नहीं करता।' ([२८] अल-क़सस: 77)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ اِنَّمَآ اُوْتِيْتُهٗ عَلٰى عِلْمٍ عِنْدِيْۗ اَوَلَمْ يَعْلَمْ اَنَّ اللّٰهَ قَدْ اَهْلَكَ مِنْ قَبْلِهٖ مِنَ الْقُرُوْنِ مَنْ هُوَ اَشَدُّ مِنْهُ قُوَّةً وَّاَكْثَرُ جَمْعًا ۗوَلَا يُسْـَٔلُ عَنْ ذُنُوْبِهِمُ الْمُجْرِمُوْنَ ٧٨
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- innamā
- إِنَّمَآ
- बेशक
- ūtītuhu
- أُوتِيتُهُۥ
- दिया गया हूँ मैं इसे
- ʿalā
- عَلَىٰ
- इल्म कि बिना पर
- ʿil'min
- عِلْمٍ
- इल्म कि बिना पर
- ʿindī
- عِندِىٓۚ
- जो मेरे पास है
- awalam
- أَوَلَمْ
- क्या भला नहीं
- yaʿlam
- يَعْلَمْ
- उसने जाना
- anna
- أَنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह ने
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- ahlaka
- أَهْلَكَ
- उसने हलाक कर दिया
- min
- مِن
- इससे पहले
- qablihi
- قَبْلِهِۦ
- इससे पहले
- mina
- مِنَ
- कई उम्मतों को
- l-qurūni
- ٱلْقُرُونِ
- कई उम्मतों को
- man
- مَنْ
- वो जो
- huwa
- هُوَ
- वो जो
- ashaddu
- أَشَدُّ
- ज़्यादा सख़्त थीं
- min'hu
- مِنْهُ
- उससे
- quwwatan
- قُوَّةً
- क़ुव्वत में
- wa-aktharu
- وَأَكْثَرُ
- और अक्सर
- jamʿan
- جَمْعًاۚ
- जमीअत में
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- yus'alu
- يُسْـَٔلُ
- पूछे जाते
- ʿan
- عَن
- अपने गुनाहों के बारे में
- dhunūbihimu
- ذُنُوبِهِمُ
- अपने गुनाहों के बारे में
- l-muj'rimūna
- ٱلْمُجْرِمُونَ
- मुजरिम
उसने कहा, 'मुझे तो यह मेरे अपने व्यक्तिगत ज्ञान के कारण मिला है।' क्या उसने यह नहीं जाना कि अल्लाह उससे पहले कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर चुका है जो शक्ति में उससे बढ़-चढ़कर और बाहुल्य में उससे अधिक थीं? अपराधियों से तो (उनकी तबाही के समय) उनके गुनाहों के विषय में पूछा भी नहीं जाता ([२८] अल-क़सस: 78)Tafseer (तफ़सीर )
فَخَرَجَ عَلٰى قَوْمِهٖ فِيْ زِيْنَتِهٖ ۗقَالَ الَّذِيْنَ يُرِيْدُوْنَ الْحَيٰوةَ الدُّنْيَا يٰلَيْتَ لَنَا مِثْلَ مَآ اُوْتِيَ قَارُوْنُۙ اِنَّهٗ لَذُوْ حَظٍّ عَظِيْمٍ ٧٩
- fakharaja
- فَخَرَجَ
- तो वो निकला
- ʿalā
- عَلَىٰ
- अपनी क़ौम पर
- qawmihi
- قَوْمِهِۦ
- अपनी क़ौम पर
- fī
- فِى
- अपनी ज़ीनत में
- zīnatihi
- زِينَتِهِۦۖ
- अपनी ज़ीनत में
- qāla
- قَالَ
- कहा
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों ने जो
- yurīdūna
- يُرِيدُونَ
- चाहते थे
- l-ḥayata
- ٱلْحَيَوٰةَ
- ज़िन्दगी
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया की
- yālayta
- يَٰلَيْتَ
- ऐ काश कि होता
- lanā
- لَنَا
- हमारे लिए
- mith'la
- مِثْلَ
- मानिन्द
- mā
- مَآ
- उसके जो
- ūtiya
- أُوتِىَ
- दिया गया
- qārūnu
- قَٰرُونُ
- क़ारून
- innahu
- إِنَّهُۥ
- यक़ीनन वो
- ladhū
- لَذُو
- अलबत्ता क़िस्मत वाला है
- ḥaẓẓin
- حَظٍّ
- अलबत्ता क़िस्मत वाला है
- ʿaẓīmin
- عَظِيمٍ
- बहुत बड़ी
फिर वह अपनी क़ौम के सामने अपने ठाठ-बाट में निकला। जो लोग सांसारिक जीवन के चाहनेवाले थे, उन्होंने कहा, 'क्या ही अच्छा होता जैसा कुछ क़ारून को मिला है, हमें भी मिला होता! वह तो बड़ा ही भाग्यशाली है।' ([२८] अल-क़सस: 79)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَالَ الَّذِيْنَ اُوْتُوا الْعِلْمَ وَيْلَكُمْ ثَوَابُ اللّٰهِ خَيْرٌ لِّمَنْ اٰمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا ۚوَلَا يُلَقّٰىهَآ اِلَّا الصّٰبِرُوْنَ ٨٠
- waqāla
- وَقَالَ
- और कहा
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों ने जो
- ūtū
- أُوتُوا۟
- दिए गए थे
- l-ʿil'ma
- ٱلْعِلْمَ
- इल्म
- waylakum
- وَيْلَكُمْ
- अफ़सोस तुम पर
- thawābu
- ثَوَابُ
- सवाब
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर है
- liman
- لِّمَنْ
- उसके लिए जो
- āmana
- ءَامَنَ
- ईमान लाया
- waʿamila
- وَعَمِلَ
- और उसने अमल किया
- ṣāliḥan
- صَٰلِحًا
- नेक
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- yulaqqāhā
- يُلَقَّىٰهَآ
- पा सकते उसे
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-ṣābirūna
- ٱلصَّٰبِرُونَ
- सब्र करने वाले
किन्तु जिनको ज्ञान प्राप्त था, उन्होंने कहा, 'अफ़सोस तुमपर! अल्लाह का प्रतिदान उत्तम है, उस व्यक्ति के लिए जो ईमान लाए और अच्छा कर्म करे, और यह बात उन्हीम के दिलों में पड़ती है जो धैर्यवान होते है।' ([२८] अल-क़सस: 80)Tafseer (तफ़सीर )