۞ وَلَقَدْ وَصَّلْنَا لَهُمُ الْقَوْلَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُوْنَ ۗ ٥١
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- waṣṣalnā
- وَصَّلْنَا
- पै दर पै भेजा हमने
- lahumu
- لَهُمُ
- उनके लिए
- l-qawla
- ٱلْقَوْلَ
- कलाम (अपना)
- laʿallahum
- لَعَلَّهُمْ
- ताकि वो
- yatadhakkarūna
- يَتَذَكَّرُونَ
- वो नसीहत पकड़ें
और हम उनके लिए वाणी बराबर अवतरित करते रहे, शायद वे ध्यान दें ([२८] अल-क़सस: 51)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَّذِيْنَ اٰتَيْنٰهُمُ الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلِهٖ هُمْ بِهٖ يُؤْمِنُوْنَ ٥٢
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- ātaynāhumu
- ءَاتَيْنَٰهُمُ
- दी हमने उन्हें
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- min
- مِن
- इससे पहले
- qablihi
- قَبْلِهِۦ
- इससे पहले
- hum
- هُم
- वो
- bihi
- بِهِۦ
- इस पर
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- वो ईमान लाते हैं
जिन लोगों को हमने इससे पूर्व किताब दी थी, वे इसपर ईमान लाते है ([२८] अल-क़सस: 52)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا يُتْلٰى عَلَيْهِمْ قَالُوْٓا اٰمَنَّا بِهٖٓ اِنَّهُ الْحَقُّ مِنْ رَّبِّنَآ اِنَّا كُنَّا مِنْ قَبْلِهٖ مُسْلِمِيْنَ ٥٣
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- yut'lā
- يُتْلَىٰ
- पढ़ा जाता है
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर (क़ुरआन)
- qālū
- قَالُوٓا۟
- वो कहते हैं
- āmannā
- ءَامَنَّا
- ईमान लाए हम
- bihi
- بِهِۦٓ
- उस पर
- innahu
- إِنَّهُ
- बेशक वो
- l-ḥaqu
- ٱلْحَقُّ
- हक़ है
- min
- مِن
- हमारे रब की तरफ़ से
- rabbinā
- رَّبِّنَآ
- हमारे रब की तरफ़ से
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- kunnā
- كُنَّا
- थे हम
- min
- مِن
- इससे पहले ही
- qablihi
- قَبْلِهِۦ
- इससे पहले ही
- mus'limīna
- مُسْلِمِينَ
- फ़रमाबरदार
और जब यह उनको पढ़कर सुनाया जाता है तो वे कहते है, 'हम इसपर ईमान लाए। निश्चय ही यह सत्य है हमारे रब की ओर से। हम तो इससे पहले ही से मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।' ([२८] अल-क़सस: 53)Tafseer (तफ़सीर )
اُولٰۤىِٕكَ يُؤْتَوْنَ اَجْرَهُمْ مَّرَّتَيْنِ بِمَا صَبَرُوْا وَيَدْرَءُوْنَ بِالْحَسَنَةِ السَّيِّئَةَ وَمِمَّا رَزَقْنٰهُمْ يُنْفِقُوْنَ ٥٤
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- yu'tawna
- يُؤْتَوْنَ
- जो दिए जाऐंगे
- ajrahum
- أَجْرَهُم
- अज्र अपना
- marratayni
- مَّرَّتَيْنِ
- दो बार
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- ṣabarū
- صَبَرُوا۟
- उन्होंने सब्र किया
- wayadraūna
- وَيَدْرَءُونَ
- और वो दूर करते हैं
- bil-ḥasanati
- بِٱلْحَسَنَةِ
- साथ भलाई के
- l-sayi-ata
- ٱلسَّيِّئَةَ
- बुराई को
- wamimmā
- وَمِمَّا
- और उसमें से जो
- razaqnāhum
- رَزَقْنَٰهُمْ
- रिज़्क़ दिया हमने उन्हें
- yunfiqūna
- يُنفِقُونَ
- वो ख़र्च करते हैं
ये वे लोग है जिन्हें उनका प्रतिदान दुगना दिया जाएगा, क्योंकि वे जमे रहे और भलाई के द्वारा बुराई को दूर करते है और जो कुछ रोज़ी हमने उन्हें दी हैं, उसमें से ख़र्च करते है ([२८] अल-क़सस: 54)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا سَمِعُوا اللَّغْوَ اَعْرَضُوْا عَنْهُ وَقَالُوْا لَنَآ اَعْمَالُنَا وَلَكُمْ اَعْمَالُكُمْ ۖسَلٰمٌ عَلَيْكُمْ ۖ لَا نَبْتَغِى الْجٰهِلِيْنَ ٥٥
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- samiʿū
- سَمِعُوا۟
- वो सुनते हैं
- l-laghwa
- ٱللَّغْوَ
- बेहूदा बात को
- aʿraḍū
- أَعْرَضُوا۟
- वो ऐराज़ करते हैं
- ʿanhu
- عَنْهُ
- उससे
- waqālū
- وَقَالُوا۟
- और वो कहते हैं
- lanā
- لَنَآ
- हमारे लिए
- aʿmālunā
- أَعْمَٰلُنَا
- आमाल हमारे
- walakum
- وَلَكُمْ
- और तुम्हारे लिए
- aʿmālukum
- أَعْمَٰلُكُمْ
- आमाल तुम्हारे
- salāmun
- سَلَٰمٌ
- सलाम हो
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- lā
- لَا
- नहीं हम चाहते
- nabtaghī
- نَبْتَغِى
- नहीं हम चाहते
- l-jāhilīna
- ٱلْجَٰهِلِينَ
- जाहिलों को
और जब वे व्यर्थ की बात सुनते है तो यह कहते हुए उससे किनारा खींच लेते है कि 'हमारे लिए हमारे कर्म है और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म है। तुमको सलाम है! ज़ाहिलों को हम नहीं चाहते।' ([२८] अल-क़सस: 55)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّكَ لَا تَهْدِيْ مَنْ اَحْبَبْتَ وَلٰكِنَّ اللّٰهَ يَهْدِيْ مَنْ يَّشَاۤءُ ۚوَهُوَ اَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِيْنَ ٥٦
- innaka
- إِنَّكَ
- बेशक आप
- lā
- لَا
- नहीं आप हिदायत दे सकते
- tahdī
- تَهْدِى
- नहीं आप हिदायत दे सकते
- man
- مَنْ
- जिसे
- aḥbabta
- أَحْبَبْتَ
- पसंद करें आप
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yahdī
- يَهْدِى
- वो हिदायत देता है
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُۚ
- वो चाहता है
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो
- aʿlamu
- أَعْلَمُ
- ख़ूब जानता है
- bil-muh'tadīna
- بِٱلْمُهْتَدِينَ
- हिदायत पाने वालों को
तुम जिसे चाहो राह पर नहीं ला सकते, किन्तु अल्लाह जिसे चाहता है राह दिखाता है, और वही राह पानेवालों को भली-भाँति जानता है ([२८] अल-क़सस: 56)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَالُوْٓا اِنْ نَّتَّبِعِ الْهُدٰى مَعَكَ نُتَخَطَّفْ مِنْ اَرْضِنَاۗ اَوَلَمْ نُمَكِّنْ لَّهُمْ حَرَمًا اٰمِنًا يُّجْبٰٓى اِلَيْهِ ثَمَرٰتُ كُلِّ شَيْءٍ رِّزْقًا مِّنْ لَّدُنَّا وَلٰكِنَّ اَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَ ٥٧
- waqālū
- وَقَالُوٓا۟
- और उन्होंने कहा
- in
- إِن
- अगर
- nattabiʿi
- نَّتَّبِعِ
- हम पैरवी करें
- l-hudā
- ٱلْهُدَىٰ
- हिदायत की
- maʿaka
- مَعَكَ
- आप के साथ
- nutakhaṭṭaf
- نُتَخَطَّفْ
- हम उचक लिए जाऐंगे
- min
- مِنْ
- अपनी ज़मीन में
- arḍinā
- أَرْضِنَآۚ
- अपनी ज़मीन में
- awalam
- أَوَلَمْ
- क्या भला नहीं
- numakkin
- نُمَكِّن
- हमने जगह दी
- lahum
- لَّهُمْ
- उन्हें
- ḥaraman
- حَرَمًا
- हरम
- āminan
- ءَامِنًا
- अमन वाले में
- yuj'bā
- يُجْبَىٰٓ
- खिंचे चले आते हैं
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ उसके
- thamarātu
- ثَمَرَٰتُ
- फल
- kulli
- كُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ के
- riz'qan
- رِّزْقًا
- रिज़्क़ के तौर पर
- min
- مِّن
- हमारी तरफ़ से
- ladunnā
- لَّدُنَّا
- हमारी तरफ़ से
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- aktharahum
- أَكْثَرَهُمْ
- अक्सर उनके
- lā
- لَا
- नहीं वो इल्म रखते
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- नहीं वो इल्म रखते
वे कहते है, 'यदि हम तुम्हारे साथ इस मार्गदर्शन का अनुसरण करें तो अपने भू-भाग से उचक लिए जाएँगे।' क्या ख़तरों से सुरक्षित हरम में हमने ठिकाना नहीं दिया, जिसकी ओर हमारी ओर से रोज़ी के रूप में हर चीज़ की पैदावार खिंची चली आती है? किन्तु उनमें से अधिकतर जानते नहीं ([२८] अल-क़सस: 57)Tafseer (तफ़सीर )
وَكَمْ اَهْلَكْنَا مِنْ قَرْيَةٍ ۢ بَطِرَتْ مَعِيْشَتَهَا ۚفَتِلْكَ مَسٰكِنُهُمْ لَمْ تُسْكَنْ مِّنْۢ بَعْدِهِمْ اِلَّا قَلِيْلًاۗ وَكُنَّا نَحْنُ الْوَارِثِيْنَ ٥٨
- wakam
- وَكَمْ
- और कितनी ही
- ahlaknā
- أَهْلَكْنَا
- हलाक कीं हमने
- min
- مِن
- बस्तियाँ
- qaryatin
- قَرْيَةٍۭ
- बस्तियाँ
- baṭirat
- بَطِرَتْ
- जो इतराती थीं
- maʿīshatahā
- مَعِيشَتَهَاۖ
- अपनी मईशत पर
- fatil'ka
- فَتِلْكَ
- तो ये
- masākinuhum
- مَسَٰكِنُهُمْ
- घर हैं उनके
- lam
- لَمْ
- नहीं
- tus'kan
- تُسْكَن
- वो बसाय गए
- min
- مِّنۢ
- बाद उनके
- baʿdihim
- بَعْدِهِمْ
- बाद उनके
- illā
- إِلَّا
- मगर
- qalīlan
- قَلِيلًاۖ
- बहुत थोड़े
- wakunnā
- وَكُنَّا
- और हैं हम
- naḥnu
- نَحْنُ
- हम ही
- l-wārithīna
- ٱلْوَٰرِثِينَ
- वारिस
हमने कितनी ही बस्तियों को विनष्ट कर डाला, जिन्होंने अपनी गुज़र-बसर के संसाधन पर इतराते हुए अकृतज्ञता दिखाई। तो वे है उनके घर, जो उनके बाद आबाद थोड़े ही हुए। अन्ततः हम ही वारिस हुए ([२८] अल-क़सस: 58)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا كَانَ رَبُّكَ مُهْلِكَ الْقُرٰى حَتّٰى يَبْعَثَ فِيْٓ اُمِّهَا رَسُوْلًا يَّتْلُوْا عَلَيْهِمْ اٰيٰتِنَاۚ وَمَا كُنَّا مُهْلِكِى الْقُرٰىٓ اِلَّا وَاَهْلُهَا ظٰلِمُوْنَ ٥٩
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- kāna
- كَانَ
- है
- rabbuka
- رَبُّكَ
- रब आपका
- muh'lika
- مُهْلِكَ
- हलाक करने वाला
- l-qurā
- ٱلْقُرَىٰ
- बस्तियों को
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- yabʿatha
- يَبْعَثَ
- वो भेज दे
- fī
- فِىٓ
- उनके मरकज़ में
- ummihā
- أُمِّهَا
- उनके मरकज़ में
- rasūlan
- رَسُولًا
- कोई रसूल
- yatlū
- يَتْلُوا۟
- जो पढ़ता हो
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- āyātinā
- ءَايَٰتِنَاۚ
- आयात हमारी
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- kunnā
- كُنَّا
- हैं हम
- muh'likī
- مُهْلِكِى
- हलाक करने वाले
- l-qurā
- ٱلْقُرَىٰٓ
- बस्तियों को
- illā
- إِلَّا
- मगर
- wa-ahluhā
- وَأَهْلُهَا
- इस हाल में कि रहने वाले उसके
- ẓālimūna
- ظَٰلِمُونَ
- ज़ालिम हों
तेरा रब तो बस्तियों को विनष्ट करनेवाला नहीं जब तक कि उनकी केन्द्रीय बस्ती में कोई रसूल न भेज दे, जो हमारी आयतें सुनाए। और हम बस्तियों को विनष्ट करनेवाले नहीं सिवाय इस स्थिति के कि वहाँ के रहनेवाले ज़ालिम हों ([२८] अल-क़सस: 59)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَآ اُوْتِيْتُمْ مِّنْ شَيْءٍ فَمَتَاعُ الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا وَزِيْنَتُهَا ۚوَمَا عِنْدَ اللّٰهِ خَيْرٌ وَّاَبْقٰىۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ࣖ ٦٠
- wamā
- وَمَآ
- और जो भी
- ūtītum
- أُوتِيتُم
- दिए गए तुम
- min
- مِّن
- कोई चीज़
- shayin
- شَىْءٍ
- कोई चीज़
- famatāʿu
- فَمَتَٰعُ
- पस सामान है
- l-ḥayati
- ٱلْحَيَوٰةِ
- ज़िन्दगी का
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया की
- wazīnatuhā
- وَزِينَتُهَاۚ
- और रौनक़ उसकी
- wamā
- وَمَا
- और जो कुछ
- ʿinda
- عِندَ
- पास है
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर है
- wa-abqā
- وَأَبْقَىٰٓۚ
- और ज़्यादा बाक़ी रहने वाला
- afalā
- أَفَلَا
- क्या भला नहीं
- taʿqilūna
- تَعْقِلُونَ
- तुम अक़्ल से काम लेते
जो चीज़ भी तुम्हें प्रदान की गई है वह तो सांसारिक जीवन की सामग्री और उसकी शोभा है। और जो कुछ अल्लाह के पास है वह उत्तम और शेष रहनेवाला है, तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? ([२८] अल-क़सस: 60)Tafseer (तफ़सीर )