Skip to content

सूरा अल-क़सस - Page: 6

Al-Qasas

(कहानियाँ)

५१

۞ وَلَقَدْ وَصَّلْنَا لَهُمُ الْقَوْلَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُوْنَ ۗ ٥١

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
waṣṣalnā
وَصَّلْنَا
पै दर पै भेजा हमने
lahumu
لَهُمُ
उनके लिए
l-qawla
ٱلْقَوْلَ
कलाम (अपना)
laʿallahum
لَعَلَّهُمْ
ताकि वो
yatadhakkarūna
يَتَذَكَّرُونَ
वो नसीहत पकड़ें
और हम उनके लिए वाणी बराबर अवतरित करते रहे, शायद वे ध्यान दें ([२८] अल-क़सस: 51)
Tafseer (तफ़सीर )
५२

اَلَّذِيْنَ اٰتَيْنٰهُمُ الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلِهٖ هُمْ بِهٖ يُؤْمِنُوْنَ ٥٢

alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
ātaynāhumu
ءَاتَيْنَٰهُمُ
दी हमने उन्हें
l-kitāba
ٱلْكِتَٰبَ
किताब
min
مِن
इससे पहले
qablihi
قَبْلِهِۦ
इससे पहले
hum
هُم
वो
bihi
بِهِۦ
इस पर
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
वो ईमान लाते हैं
जिन लोगों को हमने इससे पूर्व किताब दी थी, वे इसपर ईमान लाते है ([२८] अल-क़सस: 52)
Tafseer (तफ़सीर )
५३

وَاِذَا يُتْلٰى عَلَيْهِمْ قَالُوْٓا اٰمَنَّا بِهٖٓ اِنَّهُ الْحَقُّ مِنْ رَّبِّنَآ اِنَّا كُنَّا مِنْ قَبْلِهٖ مُسْلِمِيْنَ ٥٣

wa-idhā
وَإِذَا
और जब
yut'lā
يُتْلَىٰ
पढ़ा जाता है
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर (क़ुरआन)
qālū
قَالُوٓا۟
वो कहते हैं
āmannā
ءَامَنَّا
ईमान लाए हम
bihi
بِهِۦٓ
उस पर
innahu
إِنَّهُ
बेशक वो
l-ḥaqu
ٱلْحَقُّ
हक़ है
min
مِن
हमारे रब की तरफ़ से
rabbinā
رَّبِّنَآ
हमारे रब की तरफ़ से
innā
إِنَّا
बेशक हम
kunnā
كُنَّا
थे हम
min
مِن
इससे पहले ही
qablihi
قَبْلِهِۦ
इससे पहले ही
mus'limīna
مُسْلِمِينَ
फ़रमाबरदार
और जब यह उनको पढ़कर सुनाया जाता है तो वे कहते है, 'हम इसपर ईमान लाए। निश्चय ही यह सत्य है हमारे रब की ओर से। हम तो इससे पहले ही से मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।' ([२८] अल-क़सस: 53)
Tafseer (तफ़सीर )
५४

اُولٰۤىِٕكَ يُؤْتَوْنَ اَجْرَهُمْ مَّرَّتَيْنِ بِمَا صَبَرُوْا وَيَدْرَءُوْنَ بِالْحَسَنَةِ السَّيِّئَةَ وَمِمَّا رَزَقْنٰهُمْ يُنْفِقُوْنَ ٥٤

ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
yu'tawna
يُؤْتَوْنَ
जो दिए जाऐंगे
ajrahum
أَجْرَهُم
अज्र अपना
marratayni
مَّرَّتَيْنِ
दो बार
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
ṣabarū
صَبَرُوا۟
उन्होंने सब्र किया
wayadraūna
وَيَدْرَءُونَ
और वो दूर करते हैं
bil-ḥasanati
بِٱلْحَسَنَةِ
साथ भलाई के
l-sayi-ata
ٱلسَّيِّئَةَ
बुराई को
wamimmā
وَمِمَّا
और उसमें से जो
razaqnāhum
رَزَقْنَٰهُمْ
रिज़्क़ दिया हमने उन्हें
yunfiqūna
يُنفِقُونَ
वो ख़र्च करते हैं
ये वे लोग है जिन्हें उनका प्रतिदान दुगना दिया जाएगा, क्योंकि वे जमे रहे और भलाई के द्वारा बुराई को दूर करते है और जो कुछ रोज़ी हमने उन्हें दी हैं, उसमें से ख़र्च करते है ([२८] अल-क़सस: 54)
Tafseer (तफ़सीर )
५५

وَاِذَا سَمِعُوا اللَّغْوَ اَعْرَضُوْا عَنْهُ وَقَالُوْا لَنَآ اَعْمَالُنَا وَلَكُمْ اَعْمَالُكُمْ ۖسَلٰمٌ عَلَيْكُمْ ۖ لَا نَبْتَغِى الْجٰهِلِيْنَ ٥٥

wa-idhā
وَإِذَا
और जब
samiʿū
سَمِعُوا۟
वो सुनते हैं
l-laghwa
ٱللَّغْوَ
बेहूदा बात को
aʿraḍū
أَعْرَضُوا۟
वो ऐराज़ करते हैं
ʿanhu
عَنْهُ
उससे
waqālū
وَقَالُوا۟
और वो कहते हैं
lanā
لَنَآ
हमारे लिए
aʿmālunā
أَعْمَٰلُنَا
आमाल हमारे
walakum
وَلَكُمْ
और तुम्हारे लिए
aʿmālukum
أَعْمَٰلُكُمْ
आमाल तुम्हारे
salāmun
سَلَٰمٌ
सलाम हो
ʿalaykum
عَلَيْكُمْ
तुम पर
لَا
नहीं हम चाहते
nabtaghī
نَبْتَغِى
नहीं हम चाहते
l-jāhilīna
ٱلْجَٰهِلِينَ
जाहिलों को
और जब वे व्यर्थ की बात सुनते है तो यह कहते हुए उससे किनारा खींच लेते है कि 'हमारे लिए हमारे कर्म है और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म है। तुमको सलाम है! ज़ाहिलों को हम नहीं चाहते।' ([२८] अल-क़सस: 55)
Tafseer (तफ़सीर )
५६

اِنَّكَ لَا تَهْدِيْ مَنْ اَحْبَبْتَ وَلٰكِنَّ اللّٰهَ يَهْدِيْ مَنْ يَّشَاۤءُ ۚوَهُوَ اَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِيْنَ ٥٦

innaka
إِنَّكَ
बेशक आप
لَا
नहीं आप हिदायत दे सकते
tahdī
تَهْدِى
नहीं आप हिदायत दे सकते
man
مَنْ
जिसे
aḥbabta
أَحْبَبْتَ
पसंद करें आप
walākinna
وَلَٰكِنَّ
और लेकिन
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
yahdī
يَهْدِى
वो हिदायत देता है
man
مَن
जिसे
yashāu
يَشَآءُۚ
वो चाहता है
wahuwa
وَهُوَ
और वो
aʿlamu
أَعْلَمُ
ख़ूब जानता है
bil-muh'tadīna
بِٱلْمُهْتَدِينَ
हिदायत पाने वालों को
तुम जिसे चाहो राह पर नहीं ला सकते, किन्तु अल्लाह जिसे चाहता है राह दिखाता है, और वही राह पानेवालों को भली-भाँति जानता है ([२८] अल-क़सस: 56)
Tafseer (तफ़सीर )
५७

وَقَالُوْٓا اِنْ نَّتَّبِعِ الْهُدٰى مَعَكَ نُتَخَطَّفْ مِنْ اَرْضِنَاۗ اَوَلَمْ نُمَكِّنْ لَّهُمْ حَرَمًا اٰمِنًا يُّجْبٰٓى اِلَيْهِ ثَمَرٰتُ كُلِّ شَيْءٍ رِّزْقًا مِّنْ لَّدُنَّا وَلٰكِنَّ اَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَ ٥٧

waqālū
وَقَالُوٓا۟
और उन्होंने कहा
in
إِن
अगर
nattabiʿi
نَّتَّبِعِ
हम पैरवी करें
l-hudā
ٱلْهُدَىٰ
हिदायत की
maʿaka
مَعَكَ
आप के साथ
nutakhaṭṭaf
نُتَخَطَّفْ
हम उचक लिए जाऐंगे
min
مِنْ
अपनी ज़मीन में
arḍinā
أَرْضِنَآۚ
अपनी ज़मीन में
awalam
أَوَلَمْ
क्या भला नहीं
numakkin
نُمَكِّن
हमने जगह दी
lahum
لَّهُمْ
उन्हें
ḥaraman
حَرَمًا
हरम
āminan
ءَامِنًا
अमन वाले में
yuj'bā
يُجْبَىٰٓ
खिंचे चले आते हैं
ilayhi
إِلَيْهِ
तरफ़ उसके
thamarātu
ثَمَرَٰتُ
फल
kulli
كُلِّ
हर
shayin
شَىْءٍ
चीज़ के
riz'qan
رِّزْقًا
रिज़्क़ के तौर पर
min
مِّن
हमारी तरफ़ से
ladunnā
لَّدُنَّا
हमारी तरफ़ से
walākinna
وَلَٰكِنَّ
और लेकिन
aktharahum
أَكْثَرَهُمْ
अक्सर उनके
لَا
नहीं वो इल्म रखते
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
नहीं वो इल्म रखते
वे कहते है, 'यदि हम तुम्हारे साथ इस मार्गदर्शन का अनुसरण करें तो अपने भू-भाग से उचक लिए जाएँगे।' क्या ख़तरों से सुरक्षित हरम में हमने ठिकाना नहीं दिया, जिसकी ओर हमारी ओर से रोज़ी के रूप में हर चीज़ की पैदावार खिंची चली आती है? किन्तु उनमें से अधिकतर जानते नहीं ([२८] अल-क़सस: 57)
Tafseer (तफ़सीर )
५८

وَكَمْ اَهْلَكْنَا مِنْ قَرْيَةٍ ۢ بَطِرَتْ مَعِيْشَتَهَا ۚفَتِلْكَ مَسٰكِنُهُمْ لَمْ تُسْكَنْ مِّنْۢ بَعْدِهِمْ اِلَّا قَلِيْلًاۗ وَكُنَّا نَحْنُ الْوَارِثِيْنَ ٥٨

wakam
وَكَمْ
और कितनी ही
ahlaknā
أَهْلَكْنَا
हलाक कीं हमने
min
مِن
बस्तियाँ
qaryatin
قَرْيَةٍۭ
बस्तियाँ
baṭirat
بَطِرَتْ
जो इतराती थीं
maʿīshatahā
مَعِيشَتَهَاۖ
अपनी मईशत पर
fatil'ka
فَتِلْكَ
तो ये
masākinuhum
مَسَٰكِنُهُمْ
घर हैं उनके
lam
لَمْ
नहीं
tus'kan
تُسْكَن
वो बसाय गए
min
مِّنۢ
बाद उनके
baʿdihim
بَعْدِهِمْ
बाद उनके
illā
إِلَّا
मगर
qalīlan
قَلِيلًاۖ
बहुत थोड़े
wakunnā
وَكُنَّا
और हैं हम
naḥnu
نَحْنُ
हम ही
l-wārithīna
ٱلْوَٰرِثِينَ
वारिस
हमने कितनी ही बस्तियों को विनष्ट कर डाला, जिन्होंने अपनी गुज़र-बसर के संसाधन पर इतराते हुए अकृतज्ञता दिखाई। तो वे है उनके घर, जो उनके बाद आबाद थोड़े ही हुए। अन्ततः हम ही वारिस हुए ([२८] अल-क़सस: 58)
Tafseer (तफ़सीर )
५९

وَمَا كَانَ رَبُّكَ مُهْلِكَ الْقُرٰى حَتّٰى يَبْعَثَ فِيْٓ اُمِّهَا رَسُوْلًا يَّتْلُوْا عَلَيْهِمْ اٰيٰتِنَاۚ وَمَا كُنَّا مُهْلِكِى الْقُرٰىٓ اِلَّا وَاَهْلُهَا ظٰلِمُوْنَ ٥٩

wamā
وَمَا
और नहीं
kāna
كَانَ
है
rabbuka
رَبُّكَ
रब आपका
muh'lika
مُهْلِكَ
हलाक करने वाला
l-qurā
ٱلْقُرَىٰ
बस्तियों को
ḥattā
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
yabʿatha
يَبْعَثَ
वो भेज दे
فِىٓ
उनके मरकज़ में
ummihā
أُمِّهَا
उनके मरकज़ में
rasūlan
رَسُولًا
कोई रसूल
yatlū
يَتْلُوا۟
जो पढ़ता हो
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
āyātinā
ءَايَٰتِنَاۚ
आयात हमारी
wamā
وَمَا
और नहीं
kunnā
كُنَّا
हैं हम
muh'likī
مُهْلِكِى
हलाक करने वाले
l-qurā
ٱلْقُرَىٰٓ
बस्तियों को
illā
إِلَّا
मगर
wa-ahluhā
وَأَهْلُهَا
इस हाल में कि रहने वाले उसके
ẓālimūna
ظَٰلِمُونَ
ज़ालिम हों
तेरा रब तो बस्तियों को विनष्ट करनेवाला नहीं जब तक कि उनकी केन्द्रीय बस्ती में कोई रसूल न भेज दे, जो हमारी आयतें सुनाए। और हम बस्तियों को विनष्ट करनेवाले नहीं सिवाय इस स्थिति के कि वहाँ के रहनेवाले ज़ालिम हों ([२८] अल-क़सस: 59)
Tafseer (तफ़सीर )
६०

وَمَآ اُوْتِيْتُمْ مِّنْ شَيْءٍ فَمَتَاعُ الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا وَزِيْنَتُهَا ۚوَمَا عِنْدَ اللّٰهِ خَيْرٌ وَّاَبْقٰىۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ࣖ ٦٠

wamā
وَمَآ
और जो भी
ūtītum
أُوتِيتُم
दिए गए तुम
min
مِّن
कोई चीज़
shayin
شَىْءٍ
कोई चीज़
famatāʿu
فَمَتَٰعُ
पस सामान है
l-ḥayati
ٱلْحَيَوٰةِ
ज़िन्दगी का
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَا
दुनिया की
wazīnatuhā
وَزِينَتُهَاۚ
और रौनक़ उसकी
wamā
وَمَا
और जो कुछ
ʿinda
عِندَ
पास है
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
khayrun
خَيْرٌ
बेहतर है
wa-abqā
وَأَبْقَىٰٓۚ
और ज़्यादा बाक़ी रहने वाला
afalā
أَفَلَا
क्या भला नहीं
taʿqilūna
تَعْقِلُونَ
तुम अक़्ल से काम लेते
जो चीज़ भी तुम्हें प्रदान की गई है वह तो सांसारिक जीवन की सामग्री और उसकी शोभा है। और जो कुछ अल्लाह के पास है वह उत्तम और शेष रहनेवाला है, तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? ([२८] अल-क़सस: 60)
Tafseer (तफ़सीर )